Alankar अलंकार : परिभाषा , भेद और उदाहरण Alankar in hindi

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Alankar अलंकार – अलंकार की परिभाषा ( Alankar ki Paribhasha ) , अलंकार के भेद ( Alankar ke bhed ), अलंकार के उदाहरण ( Alankar ke udaharan )

अलंकार का अर्थ (Alankar ka arth)

🔹 हिंदी साहित्य कोश के अनुसार अलंकार शब्द दो शब्दों के योग से बना है – ‘ अलम् ‘ और ‘ कार ‘‘ अलम् ‘ का अर्ध है भूषण तथा ‘ कार ‘ का अर्थ है करनेवाला अर्थात जो अलंकृत या भूषित करे , सजाए , सँवारे , वह अलंकार है । 

🔹 जिस प्रकार आभूषण धारण करने से स्त्री के सौंदर्य में वृद्धि हो जाती है , उसी प्रकार काव्य में अलंकार का प्रयोग करने से उसकी सुंदरता में चमत्कार उत्पन्न हो जाता है ।

अलंकार किसे कहते हैं ( alankar kise kahate hain )

अलंकार की परिभाषा ( alankar ki paribhasha ) :- 

🔹 काव्य के आभूषण अर्थात सौंदर्यवर्धक गुण अलंकार कहलाते हैं । यह शब्द में भी हो सकता है और अर्थ में भी ।

🔹 काव्य को जिन तत्वों से सजाया जाता है या अलंकृत किया जाता है , उन्हें अलंकार कहते हैं ।

🔹 जिस प्रकार शरीर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए मनुष्य ने विभिन्न प्रकार के आभूषणों का प्रयोग किया , उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए कुछ तत्वों का प्रयोग किया , जिन्हें अलंकार कहते हैं ।

अलंकार के उदाहरण ( alankar ke udaharan )

🔹 अलकार भाषा के शृंगार हैं । एक साधारण बात अलंकारों के प्रयोग से अधिक स्पष्ट , प्रभावित करनेवाली और चमत्कारपूर्ण हो जाती है । उदाहरण सहित समझिए :-

साधारण वाक्य के उदाहरण :-

  • सूर्यपुत्री यमुना के तट पर तमाल के बहुत से वृक्ष हैं । 
  • वह दिन में तीन बार खाती थी , अब तीन बेर खाती है ।
  • हाय ! कोमल और सुंदर बच्ची की मृत्यु हो गई । 
  • हनुमान जी ने पलभर में लंका को जलाकर राख कर डाला । 

अलंकार के उदाहरण :-

  • तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए । 
  • तीन बेर खाती थी , वह तीन बेर खाती है । 
  • हाय ! फूल – सी कोमल बच्ची हुई राख की थी ढेरी । 
  • हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग । लंका सिगरी जरि गई , गए निशाचर भाग । 

🔹 उपर्युक्त सभी वाक्यों को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अलंकारों के प्रयोग ने साधारण कथन में सौंदर्य व चमत्कार उत्पन्न कर दिया है । हमें यह बात सदा याद रखनी होगी कि जिस प्रकार अनावश्यक और अत्यधिक अलंकारों ( गहनों , आभूषणों के प्रयोग से किसी सुंदर स्त्री का सौंदर्य बढ़ने के स्थान पर कम होकर उसे कुरूप बना सकता है , उसी तरह कविता में अलंकारों का अनावश्यक या बलात प्रयोग करने से वह अपना सौंदर्य खो सकती है ।

अलंकार का महत्व :- 

🔹 प्रसिद्ध कवि केशवदास ने अलंकारों का महत्व दर्शाते हुए कहा है – ” भूषण बिनु न विराजई कविता – वनिता मित्त । ” अर्थात ” हे मित्र ! आभूषण के बिना नारी और अलंकारों के बिना कविता शोभा नहीं पाती । “

अलंकार कितने प्रकार के होते हैं ( alankar kitne prakar ke hote hain )

🔹 व्याकरण शास्त्रियों के द्वारा अलंकार को उनके गुणों के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया हैं :- शब्दालंकार , अर्थालंकार और उभयालंकार । हमारे पाठ्यक्रम के अनुसार शब्दालंकार और अर्थालंकार तथा उनके उपभेदों का अध्ययन किया जाता है ।

अलंकार के भेद ( alankar ke bhed )

अलंकार के तीन भेद होते है :-

  • शब्दालंकार 
  • अर्थालंकार  
  • उभयालंकार

1. शब्दालंकार ( Shabd Alankar)

🔹 ध्वनि के आधार पर ही शब्दालंकार की सृष्टि होती है । किसी विशेष शब्द के प्रयोग के कारण काव्य – सौंदर्य में वृद्धि होती है । यदि शब्द को बदल दिया जाए और उसके स्थान पर उस शब्द का पर्याय रख दिया जाए तो काव्य का सौंदर्य समाप्त हो जाता है ।

🔹 शब्दालंकार का अर्थ ही है – शब्दों के कारण उत्पन्न सौंदर्य या चमत्कार । शब्दों के उच्चारण के कारण , एक ही शब्द के बार – बार आने के कारण उत्पन्न चमत्कार ही शब्दालंकार कहलाता है ।

जैसे :- भुज भुजगेस की बै संगिनी भुजंगिनी – सी , खेदि – खेदि खाति दीह दारुन दलन के

🔹 यहाँ भ , ख तथा द वर्णों की आवृत्ति के कारण सुनने में आनंद आ रहा है , हो सकता है अर्थ समझ न भी आए परंतु शब्द झंकार – सी उत्पन्न कर रहे हैं । यहाँ ‘ शब्दों ‘ के कारण आनंदानुभूति हो रही है अतः शब्दालंकार कहा जाएगा । ध्यान दें काव्य पंक्तियों में एक से अधिक अलंकार भी हो सकते हैं । 

शब्दालंकार के भेद :-

  • ( क ) अनुप्रास अलंकार
  • ( ख ) यमक अलंकार
  • ( ग ) श्लेष अलंकार

( क ) अनुप्रास अलंकार ( anupras alankar )

अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ( anupras alankar kise kahate hain )

अनुप्रास अलंकार की परिभाषा ( anupras alankar ki paribhasha ) :- जहाँ वर्ण की आवृत्ति एक निश्चित क्रम में बार – बार हो , वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण ( anupras alankar ke udaharan )

  • तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए । 
    • इस काव्य पंक्ति में ‘ त ‘ वर्ण की आवृत्ति बार – बार होने से काव्य पंक्ति में चमत्कार उत्पन्न हो गया है । 
  • छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की । 
    • इस काव्य पंक्ति में अंतिम वर्ण ‘ ट ‘ की आवृत्ति एक से अधिक बार होने से सौंदर्य वृद्धि हुई है । 
  • बंदौ गुरु पद पदुम परागा सुरुचि सुबास सरस अनुरागा 
    • तुलसीदास द्वारा रचित इन काव्य पंक्तियों में ‘ प ‘ और ‘ स ‘ वर्ण की आवृत्ति एक निश्चित क्रम में होने से सौंदर्य वृद्धि हुई है । 
  • विमल वाणी जी कमल कोमल कर में सप्रीत 
    • इस काव्य पंक्ति में ‘ व ‘ तथा ‘ क ‘ वर्ण की आवृत्ति से चमत्कार उत्पन्न हुआ है ।
  • कर कानन कुंडल मोर पखा , उर पै बनमाल बिराजति है । 
    • यहाँ ‘ क ‘ ध्वनि तीन बार तथा ‘ ब ‘ की दो बार आवृत्ति होने के कारण पंक्ति में चमत्कार आ गया है ।
  • चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं , जल – थल में 
    • ‘ च ‘ और अंत में आए ‘ ल ‘ वर्ण की पुनरावृत्ति चमत्कार उत्पन्न कर रही है । 
  • मुदित महीपति मंदिर आए । सेवक सचिव सुमंत बुलाए । 
    • ‘ म ‘ और ‘ स ‘ वर्ण की आवृत्ति हो रही है , जिससे पंक्ति में चमत्कार उत्पन्न हो रहा है ।
  • सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुम पर खिलते हैं । 
    • ‘ स ‘ वर्ण बार – बार आने के कारण अनुप्रास अलंकार है । 
  • निरपख होड के हरि भजे , सोई संत सुजान
    • ‘ स ‘ वर्ण की आवृत्ति हो रही है । अत : अनुप्रसास अलंकार है । 
  • कंकन , किंकिनि , नुपुर , धुनि सुनि 
    • ‘ न ‘ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकर है ।  
  • टेरि कहीं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझे हैं । 
    • ‘ क ‘ वर्ण की आवृत्ति हो रही है । अत : अनुपास अलंकार है ।  
  • जी खग हीं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन । ‘ 
    • क ‘ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है । 

अनुप्रास अलंकार के भेद :-

  • छेकानुप्रास अलंकार
  • वृत्यानुप्रास अलंकार
  • लाटानुप्रास अलंकार
  • अन्त्यानुप्रास अलंकार
  • श्रुत्यानुप्रास अलंकार

छेकानुप्रास अलंकार :- 

जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” इस करुणा कलित हृदय में , अब विकल रागिनी बजती ” । 
    • यहाँ करुणा कलित में छेकानुप्रास है । 

वृत्यानुप्रास अलंकार :- 

काव्य में पाँच वृत्तियाँ होती हैं – मधुरा , ललिता , प्रौढ़ा , परुषा और भद्रा । कुछ विद्वानों ने तीन वृत्तियों को ही मान्यता दी है – उपनागरिका , परुषा और कोमला । इन वृत्तियों के अनुकूल वर्ण साम्य को वृत्यानुप्रास कहते  हैं । 

  • जैसे :- ‘ कंकन , किंकिनि , नूपुर , धुनि , सुनि 
    • यहाँ पर ‘ न ‘ की आवृत्ति पाँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृत्ति का पोषण हुआ है । अतः यहाँ वृत्यानुप्रास है । 

श्रुत्यनुप्रास अलंकार :-

जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्णों की आवृत्ति होती है , वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ‘ तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई ‘ 
    • यहाँ ‘ त ‘ , ‘ द ‘ , ‘ स ‘ , ‘ न ‘ एक ही उच्चारण स्थान ( दन्त्य ) से उच्चरित होने वाले वर्णों की कई बार आवृत्ति हुई है , अतः यहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार है । 

अन्त्यानुप्रास अलंकार :-

जहाँ पद के अन्त के एक ही वर्ण और एक ही स्वर की आवृत्ति हो , वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ” ।।
    • यहाँ दोनों पदों के अन्त में ‘ आगर ‘ की आवृत्ति हुई है , अतः अन्त्यानुप्रास अलंकार है । 

लाटानुप्रास अलंकार :- 

जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो परन्तु अर्थ में अन्तर हो , वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” पूत सपूत , तो क्यों धन संचय ? पूत कपूत , तो क्यों धन संचय ” ? 
    • यहाँ प्रथम और द्वितीय पंक्तियों में एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ है परन्तु प्रथम और द्वितीय पंक्ति में अन्तर स्पष्ट है , अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है ।

( ख ) यमक अलंकार ( yamak alankar ) 

यमक अलंकार की परिभाषा ( yamak alankar ki paribhasha )

🔹 यमक अलंकार में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आता है , परंतु उसका अर्थ हर बार भिन्न होता है । 

यमक अलंकार के उदाहरण ( yamak alankar ke udaharan )

कनक कनक ते सौ गुनी , मादकता अधिकाय ।

या खाए बौराय जग वा पाए बौराय ॥ 

प्रस्तुत दोहे में कनक ‘ शब्द दो बार आया है । पहले ‘ कनक ‘ का अर्थ है – धतूरा और दूसरे कनक ‘ का अर्थ है – सोना । कवि के अनुसार सोने में धतूरे से सौ गुना अधिक मादकता होती है । जहाँ धतूरा खाकर व्यक्ति उन्मत्त ( पागल ) हो जाता है , वहीं अधिक मात्रा में सोना प्राप्त हो जाए तो उसकी उन्मत्तता जोवनपर्यंत समाप्त ही नहीं होती । कवि ने शब्दों को आवृत्ति करके भिन्न अर्थ में चमत्कार दर्शाया है । अत : यहाँ यमक अलंकार है । 

काली घटा का घमंड घटा , नभ मंडल तारक वृंद खिले 

यहाँ घटा शब्द के दो अर्थ हैं । घटा – काले बादल ; घटा कम हो जाना । कवि के अनुसार वर्षा बीत गई है , शरद ऋतु आ गई है और काली घटा का घमंड भी घट गया है । ‘ घटा ‘ शब्द से पंक्ति में सौंदर्य की अभिवृद्धि हुई है । अतः यहाँ यमक अलंकर है ।

अन्य उदाहरण  :-

  • या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी । 
  • रती – रती सोभा सब रती के सरीर की ।
  • कहे कवि बेनी , बेनी ब्याल की चुराई लीनी ।
  • माला फेरत जुग भया , फिरा न मनका फेर । कर का मनका डारि दै , मन का मनका फेर ।
  • तू मोहन के उरबसी हवै उरबसी समान ।
  • तीन बेर खाती थी वह तीन बेर खाती हैं ।
  • पच्छी परछी ने ऐसे परे पर छीने ब तेरी बरछी ने बर छीने है खलन के ।

( ग ) श्लेष अलंकार 

श्लेष अलंकार की परिभाषा ( shlesh alankar ki paribhasha )

🔹 श्लेष का अर्थ है – चिपकना । जहाँ एक ही शब्द से दो या दो से अधिक अर्थ ध्वनित हो रहे हों , वहाँ श्लेष अलंकार होता है । 

श्लेष अलंकार के उदाहरण ( shlesh alankar ke udaharan )

  • सुबरन को ढूँढ़त फिरत कवि , व्यभिचारी , चोर । 
    • दोहे की उपर्युक्त पंक्ति में ‘ सुबरन ‘ का प्रयोग किया गया है , जिसे – कवि , व्यभिचारी और चोर तीनों ढूँढ़ रहे हैं । सुबरन के तीन विभिन्न अर्थ हैं – अच्छे शब्द , अच्छा रंग – रूप , सोना । कवि अच्छे शब्द , व्यभिचारी अच्छा रंग – रूप और चोर सोना ढूँढ़ रहा है । 
  • रावन सिर सरोज बनचारी । चलि रघुबीर सिलीमुख धारी ॥ 
    • प्रस्तुत दोहे में ‘ सिलीमुख ‘ शब्द के दो अर्थ हैं – भौंरा और बाण । 
    • कवि के अनुसार रावण के सिर रूपी कमल – वन में रामचंद्र के बाण रूपी भँवरे प्रवेश कर गए । 
  • मानसरोवर सुभर जल , हंसा केलि कराहि । 
    • यहाँ सुभर शब्द के दो अर्थ हैं – शुभ ( पवित्र ) और भरपूर । 
  • भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी , माया रहै न बाँधी ।। 
    • माया के दो अर्थ – मोहमाया तथा रस्सी ।
  • त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि , कुबुद्धि का भाँडा फूटा । 
    • भाँडाँ फूटना के दो अर्थ – रहस्य खुलना , बरतन टूटना ।

2. अर्थालंकार 

🔹 साहित्य में अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते हैं । प्रमुख अर्थालंकार मुख्य रुप से चौदह है :- उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा प्रान्तिमान , मानवीकरण , सन्देह , दृष्टान्त अतिशयोक्ति , विभावना अन्योक्ति विरोधाभास विशेषोक्ति , प्रतीप , अर्थान्तरन्यास आदि । 

1. उपमा अलंकार ( upma alankar )

उपमा अलंकार की परिभाषा ( upma alankar ki paribhasha )

🔹 समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी  वस्तु से की जाती है , वहाँ उपमा अलंकार होता है । 

उपमा अलंकार के उदाहरण ( upma alankar ke udaharan )

कर कमल – सा कोमल है ।

पीपर पात सरिस मन डोला ।

मुख चन्द्रमा – सा सुन्दर है ।

नील गगन – सा शांत हृदय था रो रहा ।

उपमा अलंकार के कितने अंग होते हैं ( upma alankar ke kitne ang hote hain )

🔹 उपमा के चार अंग है :- उपमेय, उपमान, वाचक शब्द और साधारण धर्म ।

  1. उपमेय :- वर्णनीय वस्तु जिसकी उपमा या समानता दी जाती है , उसे ‘ उपमेय ‘ कहते हैं । जैसे :- उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है । वाय में ‘ मुख ‘ की चन्द्रमा से समानता बताई गई है , अत : मुख उपमेय है । 
  2. उपमान :- जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है उसे उपमान कहते हैं । जैसे :- उपमेय ( मुख ) की समानता चन्द्रमा से की गई है , अत : चन्द्रमा उपमान है । 
  3. साधारण धर्म :- जिस गुण के लिए उपमा दी जाती है , उसे साधारण धर्म कहते हैं । उक्त उदाहरण में सुन्दरता के लिए उपमा दी गई है , अतः सुन्दरता साधारण धर्म है । 
  4. वाचक शब्द :- जिस शब्द के द्वारा उपमा दी जाती है , उसे वाचक शब्द कहते हैं । उपर्युक्त उदाहरण में समान शब्द वाचक है । इसके अलावा ‘ सी ‘ , ‘ सम ‘ , ‘ सरिस ‘ सदृश शब्द उपमा के वाचक होते हैं । 

उपमा अलंकार के भेद ( upma alankar ke bhed )

उपमा के तीन भेद हैं :- पूर्णोपमा , लुप्तोपमा और मालोपमा । 

  • ( क ) पूर्णोपमा :- जहाँ उपमा के चारों अंग विद्यमान हो वहाँ पूर्णपमा अलंकार होता है । जैसे :- ” हरिपद कोमल कमल से ” 
  • ( ख ) लुप्तोपमा :- जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगो का अभाव हो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है । जैसे :- ” पड़ी थी बिजली – सी विकराला लपेटे थे घन जैसे बाल ” ॥ 
  • ( ग ) मालोपमा :- जहाँ किसी कथन में एक ही उपमेय के अनेक उपमान होते हैं वहाँ मालोपमा अलंकार होता है । जैसे :- ” चन्द्रमा सा कान्तिमय मृदु कमल सा कोमल महा । कुसुम सा हँसता हुआ प्राणेश्वरी का मुख रहा ।। ” 

2. रूपक अलंकार ( rupak alankar )

रूपक अलंकार की परिभाषा ( rupak alankar ki paribhasha )

🔹 जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप हो अर्थात् उपमेय और उपमान को एक रूप कह दिया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है । 

रूपक अलंकार के उदाहरण ( rupak alankar ke udaharan )

  • “ मैया मैं तो चन्द्र – खिलौना लैहों ” 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में चन्द्रमा एवं खिलोने में समानता न दिखाकर चाँद को ही खिलौना बोल दिया गया है । अतएव यह रूपक अलंकार होगा ।
  • चरण – कमल बंदौं हरिराई । 
    • ऊपर दिए गए गए वाक्य में चरणों को कमल के सामान न दिखाकर चरणों को ही कमल बोल दिया गया है । अतः यह रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा । 
  • शशि – मुख पर घूँघट डाले अंचल में दीप छिपाये । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा आप देख सकते हैं कि मुख ( उपमेय ) पर शशि यानी चन्द्रमा ( उपमान ) का आरोप है । अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा । 
  • मन – सागर , मनसा – लहरि , बूड़े – बहे अनेक । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में मन ( उपमेय ) पर सागर ( उपमान ) का एवं मनसा यानी इच्छा ( उपमेय ) पर लहर ( उपमान ) का आरोप है । यहां उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है । अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा ।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार ( utpreksha alankar )

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा ( utpreksha alankar ki paribhasha )

🔹 जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है । इसमें जनु , मनु , मानो , जानो , इव , जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है । 

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण ( utpreksha alankar ka udaharan )

  • मुख मानो चन्द्रमा है । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में मुख के चन्द्रमा होने की संभावना का वर्णन हो रहा है । उक्त वाक्य में मानो भी प्रयोग किया गया है अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है । 
  • ले चला साथ मैं तुझे कनक । ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण ।। 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कनक का अर्थ धतुरा है । कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो । 
    • काव्यांश में ‘ ज्यों ’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक – उपमेय में स्वर्ण – उपमान के होने कि कल्पना हो रही है । अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा ।
  • सिर फट गया उसका वहीं । मानो अरुण रंग का घड़ा हो । 
    • दिए गए उदाहरण में सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की जा रही है । यहाँ सिर – उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा – उपमान है । उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है । अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा । 
  • नेत्र मानो कमल हैं । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘ नेत्र ‘ – उपमेय की ‘ कमल ‘ – उपमान होने कि कल्पना कि जा रही है । मानो शब्द का प्रय्प्ग कल्पना करने के लिए किया गया है । आएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा ।

उत्प्रेक्षा के भेद :-

उत्प्रेक्षा के तीन भेद हैं वस्तूत्प्रेक्षा , हेतृत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा ।

  • वस्तूप्रेक्षा :- जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाए वहाँ स्प्रेक्षा होती है । जैसे :- ” उसका मुख मानो चन्द्रमा है । ” 
  • हेतृत्प्रेक्षा :- जब किसी कथन में अवास्तविक कारण को कारण मान लिया जाए तो हेतृप्रेक्षा होती है । जैसे :- ” पिउ सो कहेव सन्देसहा हे भीरा हे काग । सो धनि विरही जरिमुई तेहिक धुवाँ हम लाग ” ।। यहाँ कौआ और भ्रमर के काले होने का वास्तविक कारण विरहिणी के विरहाग्नि में जल कर मरने का धुवाँ नहीं हो सकता है फिर भी उसे कारण माना गया है अत : हेतृत्प्रेक्षा अलंकार है । 
  • फलोत्प्रेक्षा :- जहाँ अवास्तविक फल को वास्तविक फल मान लिया जाए , वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है । जैसे :- ” नायिका के चरणों की समानता प्राप्त करने के लिए कमल जल में तप रहा है । ” यहाँ कमल का जल में तप करना स्वाभाविक है । चरणों की समानता प्राप्त करना वास्तविक फल नहीं है पर उसे मान लिया गया है , अतः यहाँ फलोत्प्रेक्षा है ।

4. अतिशयोक्ति अलंकार ( atishayokti alankar )

अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा ( atishayokti alankar ki paribhasha )

🔹 अतिशयोक्ति ‘ शब्द दो शब्दों की संधि से बना है ‘ अतिशय ‘ अर्थात ‘ बढ़ा – चढ़ा कर ‘ और ‘ उक्ति ‘ अर्थात ‘ बात । अतः अतिशयोक्ति का अर्थ हुआ बढ़ा – चढ़ा कर कही गयी बात । जहां किसी वस्तु पदार्थ अथवा कथन ( उपमेय ) का वर्णन लोक सीमा से बढ़कर प्रस्तुत किया जाए , वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है ।

अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण ( atishayokti alankar ka udaharan )

  • आगे नदियाँ पड़ी अपार , घोडा कैसे उतरे पार । राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में चेतक की शक्तियों व स्फूर्ति का बहुत बढ़ा – चढ़ाक्र वर्णन किया गया है । अतएव यहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होगा ।
  • हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग , लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका जलकर राख हो गयी और सारे राक्षस भाग खड़े हुए यह बात बिलकुल असंभव है एवं लोक सीमा से बढ़ाकर वर्णन किया गया है । अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा ।
  • देख लो साकेत नगरी है यही । स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही । 
    • यहाँ एक नगरी की सुंदरता का वर्णन किया जा रहा है । यह वर्णन बहुत ही बढ़ा चढ़कर किया जा रहा है ।

5. मानवीकरण अलंकार ( manvikaran alankar )

मानवीकरण अलंकार की परिभाषा ( manvikaran alankar ki paribhasha )

🔹 जब प्राकृतिक वस्तुओं कैसे पेड़ पौधे बादल आदि में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो यानी निर्जीव चीज़ों में सजीव होना दर्शाया जाए तब वहाँ मानवीकरण अलंकार आता है ।

मानवीकरण अलंकार के उदाहरण ( manvikaran alankar ke udaharan )

  • फूल हँसे कलियाँ मुसकाई । 
    • ऊपर दिए गए उदाहरण में फूल हँस रहे हैं एवं कलियाँ मुस्कुरा रही हैं । हँसने एवं मुस्कुराने की क्रियाएँ केवल मनुष्य ही कर सकते हैं प्राकृतिक चीजें नहीं ।
  • कलियाँ दरवाज़े खोल खोल जब झुरमुट में मुस्काती हैं । 
    • उदाहरण में कलियों को दरवाज़े खोल खोल कर झुरमुट में मुस्कुराते हुए वर्णित किया गया है । 
  • मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के । 
    • ऊपर के उदाहरण में दिया गया है कि बादल बड़े सज कर आये लेकिन ये सब क्रियाएँ तो मनुष्य कि होती हैं न कि बादलों की । 
  • मेघमय आसमान से उतर रही है संध्या सुन्दरी परी सी धीरे धीरे धीरे । 
    • ऊपर दी गयी पंक्तियों में बताया है कि संध्या सुन्दर परी की तरह धीरे धीरे आसमान से नीचे उतर रही है ।

6. भ्रांतिमान अलंकार ( bhrantiman alankar ) 

भ्रांतिमान अलंकार की परिभाषा ( bhrantiman alankar ki paribhasha )

🔹 जहां समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो , वहाँ भ्रांतिमान अलकार होता है ।

  • जैसे :- पायें महावर देन को नाइन बैठी आय । फिरि – फिरि जानि महावरी एड़ी मीड़ति जाय ।। 
    • ” यहाँ नाइन को एड़ी की स्वाभाविक लालिमा में महावर की काल्पनिक प्रतीति हो रही है , अत : यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है ।

7. सन्देह अलंकार

सन्देह अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी रहे अर्थात् जब उपमेय से अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो जाए , तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है , कि सारी की नारी है कि नारी की ही सारी । “
    • यहाँ उपमेय में उपमान का संशयात्मक ज्ञान है अतः यहाँ सन्देह अलंकार है । 

8. दृष्टान्त अलंकार 

दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त प्रस्तुत किया जाता है , वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” मन मलीन तन सुन्दर कैसे विषरस भरा कनक घट जैसे ।। ”
    • यहाँ उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य में विम्ब प्रतिबिम्ब का भाव है अत : यहाँ दृष्टान्त अलंकार है ।

9. विभावना अलंकार 

विभावना अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ कारण के बिना कार्य के होने का वर्णन हो , वहा विभावना अलंकार होता है । जैसे :- 

बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।

कर बिनु कर्म करै विधि नाना।

आनन रहित सकल रस भोगी।

बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।

  • यहाँ पैरों के बिना चलना , कानों के बिना सुनना , बिना हाथी के विविध कर्म करना , बिना मुख के सभी रस भोग करना और वाणी के बिना वक्ता होने का उल्लेख होने से विभावना अलेकार है । 

10. अन्योक्ति अलंकार 

अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिए कही जाए , वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” नहि पराग नहि मधुर मधु , नहि विकास एहि काला । गली कली ही सो बिध्यो , आगे कोन हवाला । ”
    • यहाँ पर अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया गया है अत : यहाँ अन्योक्ति अलंकार है । 

11. विरोधाभास अलंकार 

विरोधाभास अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास हो यहाँ विरोधाभास अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहि कोया ज्यों ज्यों बड़े स्याम रंग , त्यो त्यों उज्ज्वल होगा । “
    • यहाँ पर श्याम ( काला ) रंग में डूबने से उज्ज्वल होने का वर्णन है अत : यहाँ विरोधाभास अलंकार है । 

12. विशेषोक्ति अलंकार 

विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ कारण के रहने पर जैसे भी कार्य नहीं होता है वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है ।

जैसे :-” पानी बिच मीन पियासी । मोहि सुनि सुनि आवे हासी ।। 

13. प्रतीप अलंकार 

प्रतीप अलंकार की परिभाषा :-

🔹 प्रतीप का अर्थ है – ‘ उल्टा या विपरीत ‘ । जहाँ उपमेय का कथन उपमान के रूप में तथा उपमान का उपमेय के रूप में किया जाता है , वहाँ प्रतीप अलंकार होता है ।

  • जैसे :- ” उतरि नहाए जमुन जल , जो शरीर सम स्याम “
    • यहाँ यमुना के श्याम जल की समानता रामचन्द्र के शरीर से देकर उसे उपमेय बना दिया है , अतः यहाँ प्रतीप अलंकार है ।

14. अर्थान्तरन्यास अलंकार 

अर्थान्तरन्यास अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जहाँ किसी सामान्य बात का विशेष बात से तथा विशेष बात का सामान्य बात से समर्थन किया जाए , वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है ।

जैसे :- ” सबै सहायक सबल के कोउ न निवल सुहाय । पवन जगावत आग को दीपहिं देत बुझाय ।।

3. उभयालंकार 

उभयालंकार अलंकार की परिभाषा :-

🔹 जो शब्द और अर्थ दोनों में चमत्कार की वृद्धि करते हैं , उन्हें उभयालंकार कहते है । इसके दो भेद हैं :- 

( i ) संकर :- जहाँ पर दो या अधिक अलंकार आपस में ‘ नीर – क्षीर ‘ के समान सापेक्ष रूप से घुले – मिले रहते हैं , यहाँ ‘ संकर ‘ अलंकार होता है । जैसे :- 

  • ” नाक का मोती अधर की कान्ति से , 
  • बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से । 
  • देखकर सहसा हुआ शुक मोन है , 
  • सोचता है अन्य शुक यह कौन है ? ” 

( ii ) संसृष्टि :- जहाँ दो अथवा दो से अधिक अलंकार परस्पर मिलकर भी स्पष्ट रहे , वहाँ ‘ संसृष्टि ‘ अलंकार होता है । जैसे :- 

  • तिरती गृह वन मलय समीर , 
  • सॉस , सुधि , स्वप्न , सुरभि , सुखगान । 
  • मार केशर – शर , मलय समीर , 
  • हृदय हुलसित कर पुलकित प्राण ।

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