Class 12 Political science book 2 chapter 4 notes in hindi: भारत के विदेश संबंध Notes
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | भारत के विदेश संबंध Notes |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
भारत के विदेश संबंध notes, class 12 political science book 2 chapter 4 notes in hindi इस अध्याय मे हम भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध विदेश नीति के सिद्धान्त , भारत के दूसरे देशों के साथ बदलते संबंधः यूएस , रूस , चीन , इज़राइल , पाकिस्तान , बांग्लादेश , नेपाल , श्रीलंका , और म्यान्मार , भारत का परमाणु कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
विदेश नीति : –
🔹 जब एक देश विभिन्न देशों , अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों , अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों तथा आन्दोलनों व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जिन नीतियों को अपनाता है , उन नीतियों को सामूहिक रूप से विदेश नीति कहा जाता है ।
🔹 अर्थात प्रत्येक देश अन्य देशों के साथ संबंधों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की ही नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहते हैं ।
भारत की विदेश निति : –
🔹 भारत बहुत चुनौतीपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आजाद हुआ था । उस समय लगभग संपूर्ण विश्व दो ध्रुवों मे बँट चुका था । ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने बड़ी दूरदर्शिता के साथ भारत की विदेश नीति तय की । भारत की विदेश नीति पर देश के पहले प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री पं जवाहर लाल नेहरू की अमिट छाप है ।
नेहरू जी की विदेश नीति के तीन मुख्य उद्देश्य थे : –
- 1 ) कठिन संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बचाए रखना ।
- 2 ) क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना ।
- 3 ) तेज गति से आर्थिक विकास करना ।
भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्त : –
- गुटनिरपेक्षता
- वसुधैव कुटुम्बकम
- अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्रतापूर्वक एवं सक्रिय भागीदारी
- पंचशील
- साम्राज्यवाद का विरोध
- अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण हल
- निःशस्त्रीकरण
शान्तिपूर्ण सह – अस्तित्व : –
🔹 शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है । शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का अभिप्राय है कि अन्तर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय विवादों को आपसी बात – चीत के माध्यम से समाप्त करना । अपने समान दूसरे राष्ट्रों के अस्तित्व को महत्व देना । किसी भी देश को किसी अन्य देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना । शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व भारतीय विदेश नीति जियो और जीने दो का महान सिद्धांत का ही पर्याय है ।
गुट निरपेक्षता का क्या अर्थ है ?
🔹 गुटों की राजनीति से अलग रहते हुए अपना स्वतंत्र विचार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रस्तुत करना गुट निरपेक्षता की नीति है ।
गुट निरपेक्षता की नीति : –
🔹 अथक प्रयासों से मिली स्वतन्त्रता के पश्चात भारत के समक्ष एक बड़ी चुनौती अपनी संप्रभुता को बचाए रखने की थी । इसके अतिरिक्त भारत को तीव्र आर्थिक व सामाजिक विकास के लक्ष्य को भी प्राप्त करना था । अतः इन दोनों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति के एक प्रमुख तत्व के रूप में अंगीकार किया ।
गुट निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना : –
🔹 इसी कड़ी में 1955 में इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में एफ्रो – एशियाई सम्मेलन हुआ , जिसमें गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी ।
🔹 सितंबर 1961 में बेलग्रेड में प्रथम गुट निरपेक्ष सम्मेलन के साथ इस आंदोलन का औपचारिक प्रारम्भ हुआ । इसमें 25 देशों ने भाग लिया और इस प्रकार गुट – निरपेक्ष आन्दोलन का आरम्भ हुआ ।
गुट निरपेक्ष आंदोलन के निर्माताओं के नाम : –
🔹 यह आन्दोलन भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर व युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डाॅ सुक्रणों एवं घाना – क्वामें एन्क्रूमा आंदोलनों के निर्माता है ।
गुट निरपेक्ष देशों की संख्या : –
🔹 गुट निरपेक्ष देशों की संख्या स्थापना के समय 25 देशों की थी आज 120 देशों की है ।
भारत द्वारा गुट निरपेक्षता की नीति अपनाये जाने के कारण : –
- शीत युद्ध को अलग रखने हेतु ,
- विश्व शांति की इच्छा ,
- सैनिक गुटों से पृथक् रहने हेतु ,
- स्वतंत्र विदेश नीति के संचालन की अभिलाषा ,
- आर्थिक कारण दोनों गुटों से मदद हेतु ,
- भारत की भौगोलिक स्थिति सुरक्षा हेतु ।
गुट निरपेक्षता की नीति का उद्देश्य : –
🔹 इस नीति के द्वारा भारत जहाँ शीत युद्ध के परस्पर विरोधी खेमों तथा उनके द्वारा संचालित सैन्य संगठनों जैसे – नाटो , वारसा पेक्ट आदि से अपने को दूर रख सका ।
🔹 वहीं आवश्यकता पड़ने पर दोनों ही खेमों से आर्थिक व सामरिक सहायता भी प्राप्त कर सका । एशिया तथा अफ्रीका के नव . स्वतन्त्र देशों के मध्य भविष्य में अपनी महत्वपूर्ण व विशिष्ट स्थिति की संभावना को भांपते हुए भारत ने वि – औपनिवेशिकरण की प्रक्रिया का प्रबल समर्थन किया ।
गुटनिरपेक्ष सम्मेलन : –
🔹 सितंबर 2016 में गुट निरपेक्ष आंदोलन का 17वां सम्मेलन वेनेजुएला में सम्पन्न हुआ ।
🔹 18वां सम्मेलन अक्तूबर 2019 में अजरबैजान में प्रस्तावित है ।
🔹 4 मई 2020 को अज़रबैजान की अध्यक्षता में गुटनिरपेक्ष समूह के देशों का एक वर्चुअल सम्मेलन का आयोजन हुआ । इसमें COVID – 19 को मानवता का सबसे बड़ा संकट बताया गया , आतंकवाद और Fake News जैसे मुद्दों पर चिंता व्यक्त की ।
इंडियन नेशनल आर्मी : –
🔹 इसकी स्थापना दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित की थी ।
एफ्रो – एशियाई एकता : –
- नेहरू के दौर में भारत ने एशिया और अफ्रीका के नव – स्वतंत्र देशों के साथ संपर्क बनाए ।
- 1940 और 1950 के दशक में नेहरू ने बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता की पैरोकारी की ।
- नेहरू की अगुआई में भारत ने मार्च 1947 में एशियाई संबंध सम्मलेन का आयोजन कर डाला ।
- नेहरू की अगुआई में भारत ने इंडोनेशिया की आज़ादी के लिए भरपूर प्रयास किए ।
- 1949 में भारत ने इंडोनेशिया की आजादी के समर्थन में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन किया ।
- भारत ने अनोपनिवेशीकरण की प्रकिया का समर्थन किया ।
- भारत ने खासकर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध किया ।
- इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में एफ्रो – एशियाई सम्मेलन 1955 में आयोजन किया गया । जिसमें गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी ।
भारत अमेरिकी संबंध : –
🔹 शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनाने के कारण महत्वपूर्ण हो गए है । भारत अब अमेरिका कर विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसके प्रमुख लक्षण परिलक्षित हो रहे है ।
🔶 भारत और अमेरिका के सम्बन्धो की विशेषताएं : –
- भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यात का 65 प्रतिशत अमेरिका को ।
- अमेरिकी कंपनी बोईंग के 35 प्रतिशत कर्मचारी भारतीय है ।
- 3 लाख से ज़्यादा भारतीय सिलिकॉन वाली में कार्यरत है ।
- अमरीकी कंपनियों में भारतीयों का अत्याधिक योगदान है ।
- अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है ।
- अमेरिका के विभिन्न राष्ट्रध्यक्षों द्वारा भारत से संबंध प्रगाढ़ करने हेतु उन्होंने भारत की यात्रा ।
- अमेरिका में बसे प्रवासी भारतीयों का ( खासकर सिलीकॉन वैली ) में प्रभाव है ।
- सामरिक महत्व के भारत अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते का सम्पन्न होना ।
- बराक ओबामा की 2015 की भारत यात्रा के दौरान रक्षा सौदों से संबंधित समझौते का नवीनीकरण किया गया तथा कई क्षेत्रों में भारत को त्रण प्रदान करने की घोषणा की गयी ।
🔹 वर्तमान में विभिन्न वैश्विक मंचों पर अमेरिका राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच हुई मुलाकातों तथा वार्ताओं को दोनों देशों के मध्य आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक तथा सैन्य संबंधों के सृदृढ़ीकरण की दिशा में संकारात्मक संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है ।
भारत और रूस सम्बन्ध : –
- पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं , रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है ।
- दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है ।
- दोनों देश सहअस्तित्व , सामूहिक सुरक्षा क्षेत्रीय सम्पुभुता , स्वतंत्रता , स्वतन्त्र विदेश नीति अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल , संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है ।
- 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए ।
- भारत रूसी हथियारों का खरीददार है ।
- रूस से तेल का आयात भारत में होता है ।
- परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद ।
- कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश ।
भारत और रूस ( ब्रिक्स सम्मेलन ) : –
🔹 गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स ( BRICS ) सम्मेलन के दौरान रूस – भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के बीच रक्षा , परमाणु उर्जा , अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया ।
🔹 वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की तुलना में रूस के साथ भारत के संबंध करीबी और बेहद मजबूत रहे हैं । भारत और रूस ऐतिहासिक रूप से रक्षा , व्यापार , उर्जा , अंतरिक्ष आदि क्षेत्रों में एक दूसरे से जुड़े रहे है । हाल ही में रूसी रक्षा मंत्रालय के निमंत्रण पर भारतीय रक्षा मंत्री द्वितीय विश्व युद्ध की 75 वी विजय दिवस परेड मे शामिल होने के लिए मास्को ( रूस ) पहुँचे थे ।
🔹 भारतीय रक्षा मंत्री ने अपनी तीन दिवसीय रूस यात्रा के दौरान भारत और रूस के संबंधों को ‘ विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी ‘ बताया तथा दोनो देशों के बीच वर्तमान द्विपक्षीय रक्षा अनुबंधों को जारी रखते हुए शीघ्र ही कई अन्य क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मज़बूत करने की प्रतिबद्धता को दोहराया ।
भारत और चीन संबंध : –
🔹 1949 में चीनी क्रांति के बाद चीन की कम्यूनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाला भारत पहले देशों में एक था । नेहरू जी ने चीन से अच्छे संबंध बनाने की पहल की । उप – प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आशंका जताई कि चीन भारत पर आक्रमण कर सकता है । नेहरू जी का मत इसके विपरित यह था कि इसकी संभावना नहीं है ।
पंचशील : –
🔹 29 अप्रैल 1954 को भारत के प्रधानमंत्री पं नेहरू तथा चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई के बीच द्विपक्षीय समझौता हुआ ।
🔹 जिसके अग्रलिखित पांच सिद्धान्त है :-
- i ) एक दूसरे के विरूद्ध आक्रमण न करना ।
- ii ) एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना ।
- iii ) एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता का आदर करना ।
- iv ) समानता और परस्पर मित्रता की भावना
- V ) शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व