भारतीय राजनीति में नए बदलाव notes, Class 12 political science book 2 chapter 9 notes in hindi

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Class 12 political science book 2 chapter 9 notes in hindi: भारतीय राजनीति में नए बदलाव notes

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science 2nd book
ChapterChapter 9
Chapter Nameभारतीय राजनीति में नए बदलाव notes
CategoryClass 12 Political Science
MediumHindi

भारतीय राजनीति में नए बदलाव notes, class 12 political science book 2 chapter 9 notes in hindi इस अध्याय मे हम  गठबंधन का दौर : राष्ट्रीय मोर्चा , संयुक्त मोर्चा , संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन , [ UPA ] , – I & II , राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन [ NDA ] -I , II , III , & IV , विकास और शासन के विषय के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

1990 का दशक : –

🔹 1989 के आम चुनावों में किसी भी दल को बहुमत प्राप्त ना होने की स्थिति में भारतीय राजनीति में केन्द्रीय स्तर पर गठबन्धन के युग का आरम्भ हुआ । इस बदलाव ने राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका में अभिवृद्धि की ।

🔹 1990 के पश्चात् भारतीय राजनीति में सामाजिक , आर्थिक व राजनीतिक स्तर पर कई बड़े बदलाव देखे गए जिन्होंने भारतीय राजनिति की दशा व दिशा को बदलने का काम किया ।

1990 के बाद प्रमुख बदलाव : –

  • कांग्रेस प्रणाली की समाप्ति ।
  • राष्ट्रीय राजनीति में जनता दल व भारतीय जनता पार्टी की प्रभावशाली भूमिका ।
  • राष्ट्रीय राजनीति में मंडल मुद्दे का उदय । 
  • नयी आर्थिक नीति 
  • अयोध्या विवाद 
  • गठबंधन की राजनीति का उदय 
  • शाहबानो प्रकरण

कांग्रेस प्रणाली का अन्त : –

🔹 सन् 1984 में आम चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा में बड़ी जीत मिली । इसके बाद 1989 से लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला । इसीलिए कुछ आलोचक 1989 के बाद को कांग्रेस प्रणाली का अन्त कहते हैं । हालाँकि 1991 तथा 2004 में मिली – जुली सरकार में कांग्रेस की सबसे बड़ी भूमिका रही ।

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नई आर्थिक नीति : –

🔹 1991 में श्री पी . बी . नरसिम्हाराव के नेतृत्व वाली सरकार ( जिसके वित्तमंत्री डा . मनमोहन सिंह थे ) ने देश में नई आर्थिक नीति लागू की जिसे बाद में आने वाली सभी सरकारों ने जारी रखा । इस नीति में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और निजीकरण पर बल दिया गया ।

सन् 1989 से अब तक भारत के प्रधानमंत्री : – 

  • वी . पी . सिंह , 
  • चंद्रशेखर , 
  • पी . वी . नरसिम्हाराव , 
  • अटल बिहारी बाजपेयी , 
  • एच . डी . देवगोड़ा , 
  • इन्द्र कुमार गुजराल , 
  • अटल बिहारी बाजपेयी , 
  • मनमोहन सिंह , 
  • नरेन्द्र मोदी ।

1989 के पश्चात् , भारत में बहुदलीय प्रणाली का युग : –

🔹 1989 के चुनावों से भारत में गठबंधन की राजनीति के एक लंबे दौर की शुरुआत हुई । उसके बाद की सरकारें बहुदलीय थी :-

  • दिसम्बर 1989 से नवंबर 1990 : – राष्ट्रीय मोर्चा सरकार , वाम मोर्चा और भाजपा का समर्थन । 
  • नवंबर 1990 से जून 1991 : – राष्ट्रीय मोर्चा का एक तबका समाजवादी जनता पार्टी की सरकार , कांग्रेस का समर्थन ।
  • जून 1991 से मई 1996 : – कांग्रेस की सरकार , ए . आई . डी . एम के . तथा कुछ अन्य दलों का समर्थन । 
  • मई 1996 से जून 1996 : – भाजपा की अल्पमत सरकार , क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन । 
  • जून 1996 से अप्रैल 1997 : – संयुक्त मोर्चा की सरकार , कांग्रेस का समर्थन ।
  • अप्रैल 1997 से मार्च 1998 : – संयुक्त मोर्चा की सरकार , कांग्रेस का समर्थन । 
  • मार्च 1998 से अक्टूबर 1999 एवं अक्टूबर 1999 से मई 2004  : – भाजपा नीति राजग गठबंधन की सरकार । 
  • मई 2004 तथा 2009 : – संप्रग गठबंधन की सरकार ।

गठबंधन का युग : –

🔹  कांग्रेस की हार के साथ भारत की दलीय व्यवस्था से उसका प्रभुत्व समाप्त हो गया और बहुदलीय शासन – प्रणाली का युग शुरू हुआ । अब केंद्र में गठबंधन सरकारों के निर्माण में क्षेत्रीय दलों का महत्व बढ़ गया । 

🔹 1989 के चुनावों के बाद गठबंधन का युग आरंभ हुआ । इन चुनावों के बाद जनता दल और कुछ क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बने राष्ट्रीय मोर्चे ने भाजपा और वाम मोर्चे के समर्थन से गठबंधन सरकार बनायी । 

🔹 1998 से 2004 तक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठनबंधन की सरकार रही । इस दौरान अटल बिहारी वाजयेपी प्रधानमंत्री रहे । 

🔹 2004 से 2009 व 2009 से 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए । इस दौरान डा . मनमोहन सिंह प्रधनमंत्री रहे । 

🔹 2014 में नेरन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रचते हुए 30 साल बाद पूर्ण बहुमत प्राप्त किया परन्तु चुनाव पूर्व गठबंधन की प्रतिबद्धता का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनाई ।

गठबंधन की सरकार क्या है ? 

🔹 गठबंधन की सरकार में अनेक राजनीतिक पार्टियाँ एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत सरकार का गठन करती है । इसमें किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं होता है । गठबंधन की सरकार का गठन के पीछे मुख्य कारण यह है कि इसमें किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है ।

🔹 गठबंधन की सरकार का गठन राष्ट्रीय संकट जैसे युद्ध या आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है । अगर गठबंधन टूट जाता है , तो उस स्थिति में सदन में अविश्वास मत लाया जाता है ।

गठबंधन सरकारों के उदय के कारण : –

  • राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का कमजोर होना ।
  • क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव व सरकारों के निर्माण में बढ़ती भूमिका ।
  • जाति व सम्प्रदाय आधारित अवसरवादी राजनीति का उदय ।

गठबंधन सरकारो के कारण केन्द्र राज्य संबंधों में आए परिवर्तन : –

  • धारा 356 का दुरुपयोग कम हुआ । 
  • राज्यों में केन्द्र का हस्तक्षेप कम ।
  • अधिकतर राज्यों में राष्ट्रीय दलों का कमजोर पड़ना इत्यादि ।

गठबंधन सरकार के लाभ : –

🔹 गठबंधन सरकार के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है : –

🔸 संघवाद को बढ़ावा :- भारत राज्यों का संघ है । गठबंधन सरकार बनने से संघवाद मजबूत होता है क्योंकि राज्यों के दलों और राज्यों को पर्याप्त महत्व दिया जाता है।

🔸 सामूहिक निर्णय :- गठबंधन सरकार की स्थापना से छोटे – बड़े सभी दलों के द्वारा मिलकर विभिनन मामलों के निर्णय लिये जाते हैं जिससे सही निर्णय लिये जाने की संभावना बढ़ जाती है । 

🔸 क्षेत्रीय विकास :- कोई गठबंधन बनने से क्षेत्रीय दलों का प्रभाव दिखाई देता है , इस कारण क्षेत्रीय मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाता है जिससे क्षेत्र का विकास होता है । 

🔸 पुनः निर्वाचन से मुक्ति :- गठबंधन सरकार उस स्थिति में बनती है जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है । अगर गठबंधन सरकार नहीं बनेंगे तो पुनः चुनाव कराने पड़ेंगे । बार – बार चुनाव होने से आर्थिक हानि व प्रशासनिक कार्यों में देरी होती है । गठबंधन सरकार के गठन से पुनः निर्वाचन से बच जाते हैं ।

गठबंधन सरकार की हानियाँ : –

🔹 गठबंधन सरकार की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित है : –

🔸 प्रधानमंत्री की कमजोर स्थिति :- गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री की स्थिति कमजोर बनी रहती है , क्योंकि उसे डर रहता है कि ज्यादा सख्त रहने पर कहीं समर्थन वापस न ले । 

🔸 निर्णय में देरी :- किसी महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय निर्माण की स्थिति में देरी की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि विभिन्न मुद्दों पर अलग – अलग दलों में मतभेद होता है । 

🔸 दल – बदल को प्रोत्साहन :- गठबंधन सरकार के बनने से छोटे – छोटे दलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है । सरकार को बनाने के लिए आजकल मोलभाव किया जाता है , जिससे प्रभावित होकर अनेक लोग अपना दल बदल लेते हैं या गठबंधन बदल लेते हैं । 

🔸 भ्रष्टाचार में वृद्धि :- सरकार बनाने के लिए किसी भी प्रकार का गठबंधन किया जाता है तथा आपसी सामंजस्य भी नहीं रहता है । चूँकि प्रधानमंत्री को भी गठबंधन बचाना पड़ता है । इस प्रकार वो सदस्यों पर पर्याप्त नियंत्रण नहीं रख पाते हैं । हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार में वृद्धि होने का प्रमुख कारण गठबंधन सरकार की कमजोर स्थिति ही है ।

राजग क्या है ?

🔹 सन् 1998 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में कई क्षेत्रीय पार्टियों को मिलाकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाया गया । इसमें समता पार्टी तेलुगू देशम तथा शिवसेवा प्रमुख घटक दल थे । 

‘ संप्रग ‘ क्या है ? 

🔹 सन् 2004 के चुनाव में राजग की हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय जनता दल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम तथा अन्य कई क्षेत्रीय दलों को मिलाकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ( संप्रग ) बनाया । मनमोहन सिंह के नेतृत्व में इस गठबंधन की सरकार बनी ।

मंडल मुद्दा : –

🔹 1978 में जनता पार्टी सरकार ने दूसरे ‘ पिछड़ा आयोग ‘ का गठन किया । इसके अध्यक्ष विन्देश्वरी प्रसाद मंडल थे इसलिए इसे मंडल आयोग के नाम से जाना जाता है । 

मंडल आयोग की स्थापना कब की गई ? 

🔹 मण्डल आयोग की स्थापना 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने बी . पी . मण्डल की अध्यक्षता में की ।

मंडल आयोग की मुख्य सिफारिशें : – 

  • अन्य पिछड़ा वर्ग OBC को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण । 
  • भूमि सुधारों को पूर्णता से लागू करना । 

🔹1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वी . पी . सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की । इसके खिलाफ देश के विभिन्न भागों में मंडल विरोधी हिंसक प्रदर्शन हुए ।

सिफारिशों को लागू करने के परिणाम : –

🔹 आरक्षण के विरोध में उत्तर भारत के शहरों में व्यापक हिंसक प्रर्दशन हुए । इसमें छात्रों द्वारा हड़ताल , धरना , प्रर्दशन , सरकारी संपत्ति को नुकसान आदि शामिल थे । 

🔹 परन्तु इस विरोध का सबसे अहम पहलू बेरोजगार युवाओं व छात्रों द्वारा आत्मदाह तथा आत्महत्या जैसी घटनायें थी । दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी द्वारा सरकार के फैसले के खिलाफ सर्वप्रथम आत्मदाह का प्रयास किया गया ।

🔹 विरोधियों का तर्क था कि जातिगत आधार पर आरक्षण समानता के अधिकार के खिलाफ है । तमाम विरोधों के बावजूद 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी . पी . सिंह द्वारा ये सिफारिशें लागू कर दी गयी ।

अयोध्या विवाद : –

🔹 16 वीं सदी में मीर बाकी द्वारा अयोध्या में बनवाई मस्जिद के बारे में कहा गया कि यह मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनवाई गई । यह मामला अदालत में गया और 1940 के दशक में टाला लगा दिया गया । बाद में जब ताला खुला तो इस मुद्दे पर वोट बैंक की राजनीति हुई । 6 दिसम्बर 1992 को मस्जिद का ढांचा तोड़ दिया गया । इससे कारण देश में साम्प्रदायिक हिंसा फैली और 1993 में मुम्बई में दंगे हुई । वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस विषय पर निर्णय दे दिया गया है ।

दिसंबर 1992 की अयोध्या घटना के प्रभाव : –

  • उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार बर्खास्त ।
  • देश में सांप्रदायिक तनाव ।
  • केंद्र सरकार द्वारा जांच आयोग की नियुक्ति  
  • ज्यादातर राजनीतिक दलों द्वारा घटना की निंदा आदि ।

सम्प्रदायिकता का अर्थ : –

🔹 धर्म के आधार पर एक दूसरे से भेदभाव की भावना रखना तथा एक धार्मिक समुदाय दुसरे धार्मिक समुदायों और राष्ट्र के विरुद्ध उपयोग करना सम्प्रदायिकता है ।

शाहबानों प्रकरण : –

🔹 शाहबानों एक मुस्लिम महिला थीं जिसे तलाक के बाद पति ने गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया था । सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 44 ( समान नागरिक संहिता ) के तहत शाहबानों को पति के गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया ।

लोकसभा चुनाव 2004 : –

🔹 2004 के चुनावों में , बीजेपी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेतृत्व में गठबंधन को हराया गया और कांग्रेस के नेतृत्व में नया गठबंधन , जिसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के सत्ता में आने के रूप में जाना जाता है । 

‘ एनडीए [ NDA ] III और IV ’ : –

🔹 मई 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और भारतीय राजनीति में लगभग 30 वर्षों के बाद, केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली एक मजबूत सरकार की स्थापना हुई।

🔹 हालांकि एनडीए III कहा जाता है की 2014 का भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन अपनी पूर्ववर्ती (पहले) गठबंधन सरकारों से काफी हद तक अलग था।

🔹 जहां पिछले गठबंधनों का नेतृत्व राष्ट्रीय दलों में से एक ने किया था, एनडीए III गठबंधन को न केवल एक राष्ट्रीय पार्टी, यानी भाजपा द्वारा संचालित (लीड) किया गया था, यह भी लोकसभा में अपने पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा का प्रभुत्व था। इसे ‘अधिशेष बहुमत वाला गठबंधन’ भी कहा गया।

🔹 इस अर्थ में गठबंधन राजनीति की प्रकृति में एक बड़ा परिवर्तन देखा जा सकता है जिसे एक पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन से एक पार्टी के प्रभुत्व वाले गठबंधन में देखा जा सकता है।

🔹 2019 के लोकसभा चुनाव, आजादी के बाद से 17वें, ने 543 में से 350 से अधिक सीटें जीतकर एक बार फिर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए [एनडीए IV] को सत्ता के केंद्र में वापस ला दिया।

🔹 2019 में भाजपा की उथल-पुथल (उतार-चढ़ाव) की सफलता के आधार पर, सामाजिक वैज्ञानिकों ने समकालीन पार्टी प्रणाली की तुलना ‘भाजपा प्रणाली’ से करना शुरू कर दिया है, जहां भारत की लोकतांत्रिक राजनीति पर एक बार फिर कांग्रेस व्यवस्था की तरह एक दलीय प्रभुत्व का युग दिखाई देने लगा है ।

‘ विकास और शासन के मुद्दे ’ : –

🔹 अपने पूर्व – निर्धारित लक्ष्य सबका साथ , सबका विकास के साथ , एनडीए III सरकार ने विकास और शासन को जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए कई सामाजिक – आर्थिक कल्याणकारी योजनाएं शुरू की ।

🔹 जैसे :- प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना , स्वच्छ भारत अभियान , जन – धन योजना , दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना , किसान फसल बीमा योजना , बेटी पढाओ , देश बढ़ाओ , आयुष्मान भारत योजना आदि ।

🔹 इन सभी योजनाओं का उद्देश्य ग्रामीण परिवारों , विशेषकर महिलाओं को केंद्र सरकार की योजनाओं का वास्तविक लाभार्थी बनाकर प्रशासन को आम आदमी के दरवाजे तक ले जाना है । 

सहमति के मुद्दे : –

🔹 विभिन्न दलों में बढ़ती सहमति के मुद्दे निम्न हैं :

  • 1 ) नई आर्थिक नीति पर सहमति ।
  • 2 ) पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावों की स्वीकृति ।
  • 3 ) क्षेत्रीय दलों की भूमिका एवं साझेदारी को स्वीकृति ।
  • 4 ) विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर । 

आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी । इस दौरान में इस पार्टी के विकास क्रम का उल्लेख : –

🔹 आपातकाल के बाद निस्संदेह भाजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी । 

🔹 सन् 1980 में अपनी स्थापना के बाद भाजपा भारतीय राजनीति में सदैव आगे ही बढ़ती रही । 

🔹 1989 के नौवीं लोकसभा चुनाव में इसे 88 सीटें प्राप्त हुई तथा इसके समर्थन से जनता दल की सरकार बनी । 

🔹 1996 में हुए 11 वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई तथा श्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व से केन्द्र में पहली बार सरकार का निर्माण किया । 

🔹 1998 में हुए 12 वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने सर्वाधिक 181 सीटें जीतकर पुन : बाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई । 

🔹 1999 में हुए 13 वीं लोकसभा का चुनाव भाजपा ने राजग के घटक के रूप में लड़ा तथा इस गठबन्धन ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया । अतः एक बार फिर बाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने गठबन्धन सरकार बनाई । 

🔹 इस पार्टी ने अप्रैल – मई , 2004 में हुए 14 वें लोकसभा चुनाव में 138 एवं अप्रैल – मई 2009 में हुए 15 वीं लोकसभा चुनाव में 116 में सीटें जीतकर , दोनों बार लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी । 

🔹 अप्रैल – मई 2014 में हुए 16 वीं लोकसभा के चुनावों में तो भारतीय जनता पार्टी ने अकेले ही 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुतम प्राप्त किया तथा नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया । 

🔹 केन्द्र के अतिरिक्त भाजपा ने समय – समय पर उत्तर प्रदेश , गुजरात , राजस्थान , मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ , दिल्ली , कर्नाटका , हिमाचल प्रदेश , गोवा तथा हरियाणा में अपने दम पर सरकारें बनाईं तथा पंजाब , महाराष्ट्र तथा ओडिशा जैसे राज्यों में गठबन्धन सरकार का निर्माण किया । 

🔹 2019 में लोकसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त कर पुनः सरकार बनायी ।

राष्ट्रीय मोर्चा का गठन : –

🔹 गैर साम्यवादी विपक्षी दलों ने 17 सितम्बर , सन् 1988 को मद्रास में राष्ट्रीय मोर्चे का गठन किया । तेलुगुदेशम के नेता और आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन . टी . रामाराव को मोर्चे का अध्यक्ष तथा विश्वनाथ प्रतापसिंह को इसका संयोजक बनाया गया । मोर्चे में शामिल प्रमुख दल थे :- जनता दल , द्रमुक , असम गण परिषद , तेलुगुदेशम और कांग्रेस ( एस ) । 

🔹 सन् 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों के समर्थन से विश्वनाथ प्रतापसिंह के नेतृत्व में ‘ राष्ट्रीय मोर्चे ‘ की सरकार सत्तारूढ़ हुई । जनता दल द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के निर्णय के कारण राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार का पतन हो गया । 

🔹 नवम्बर सन् 1990 में केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार के पतन के बाद जनता दल का विभाजन हो गया । देवीलाल और चन्द्रशेखर के समर्थकों ने जनता दल से अलग होकर जनता दल ( समाजवादी ) की स्थापना की । कांग्रेस ( इ ) ने चन्द्रशेखर को सरकार बनाने में सहायता दी । फलस्वरूप केन्द्र में चन्द्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल ( समाजवादी ) की सरकार सत्ता में आई । मार्च सन् 1991 में कांग्रेस ( इ ) द्वारा सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण इसका पतन हो गया ।

संयुक्त मोर्चे का गठन : –

🔹 सन् 1991 के लोकसभा चुनावों में जन ( समाजवादी ) को पराजय का सामना करना पड़ा । अजीत सिंह के नेतृत्व में अनेक सांसदों ने जनता दल छोड़कर जनता दल ( अ ) का गठन किया । नवम्बर सन् 1992 के राज्य विधानसभा चुनावों से पूर्व जनता दल के पूर्व घटकों – जनता दल समाजवादी चन्द्रशेखर के समर्थकों , अजीत सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल तथा जनता दल ( बोम्मई ) ने एकीकृत जनता दल को पुनर्जीवित करने का निर्णय किया , लेकिन विधानसभा के चुनाव परिणामों के बाद उत्तरप्रदेश की राजनीति में अजीत सिंह की भूमिका के कारण जनता दल ( बोम्मई ) के नेताओं और अजीत सिंह के समर्थकों के बीच मतभेद बढ़ गए । 

🔹 अजीत सिंह ने पुन : जनता दल ( अ ) को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया । इसके कुछ दिनों बाद दिसम्बर , सन् 1993 को अजीत सिंह ने अपने समर्थकों सहित कांग्रेस ( इ ) में शामिल होने का निर्णय लेकर सबको स्तब्ध कर दिया । इससे जनता दल ( अ ) का वास्तविक अस्तित्व ही समाप्त हो गया ।

🔹 सन् 1996 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ( इ ) को पराजय का सामना करना पड़ा । भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई । राष्ट्रीय मोर्चे और वामपंथी मोर्चे और कतिपय क्षेत्रीय दलों को मिलाकर ‘ तीसरे मोर्चे ‘ का गठन किया गया । बाद में ‘ तीसरे मोर्चे ‘ को ‘ संयुक्त मोर्चे ‘ का नाम दिया गया ।

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