Biology Class 12 Chapter 10 question answer in Hindi जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

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जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग question answer: Ncert Solution for Class 12 Biology Chapter 10 in Hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectBiology
ChapterChapter 10
Chapter Nameजैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

क्या आप Biology Class 12 Chapter 10 question answer in Hindi ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग question answer download कर सकते हैं।

प्रश्न 1: विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप को कौन-सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है। तथा क्यों?

उत्तर 1: पादप को विषाणु मुक्त बनाने के लिए, पौधे का शीर्ष और कक्षीय भाग (विभज्योतक) सबसे उपयुक्त होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि: 

  • माइक्रोप्रोपेगेशन की प्रक्रिया द्वारा वायरस मुक्त पौधों को उगाने के लिए मेरिस्टेम सबसे उपयुक्त होता है।
  • पौधे के शीर्ष और कक्षीय भाग को मेरिस्टेम कहते हैं।
  • मेरिस्टेम कोशिकाओं का एक स्थानीय समूह होता है जो सक्रिय रूप से विभाजित होता है।
  • जब पौधा वायरस से संक्रमित होता है, तब भी मेरिस्टेम वायरस से मुक्त रहता है।
  • मेरिस्टेम बहुत तेज़ गति से विभाजित होता है, इसलिए वायरस वहां तक नहीं पहुंच सकता।

प्रश्न 2: सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?

उत्तर 2: सूक्ष्मप्रवर्धन (Micropropagation) पादपों के उत्पादन की एक अत्यधिक प्रभावी और आधुनिक विधि है, जिसमें पौधों की ऊतक संस्कृति के माध्यम से तेजी से नई पौधों की उत्पत्ति होती है। इस विधि से बने पौधे, मूल पौधे से आनुवंशिक रूप से मिलते-जुलते होते हैं। इन्हें सोमाक्लोन कहा जाता है। सूक्ष्म प्रवर्धन के ज़रिए, कम समय में बड़ी संख्या में पौधे तैयार किए जा सकते हैं। इस प्रक्रिया के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

  1. तेज़ और बड़ी मात्रा में उत्पादन – कम समय में बड़ी संख्या में पौधे तैयार किए जा सकते हैं।
  2. विषाणु-मुक्त पौधे – मेरिस्टेम का उपयोग करके रोग-रहित और स्वस्थ पौधे उगाए जा सकते हैं।
  3. आनुवंशिक रूप से समान पौधे – सभी पौधे एक समान होते हैं, क्योंकि वे एक ही मूल पौधे से उत्पन्न होते हैं।
  4. संपूर्ण वर्ष उत्पादन – नियंत्रित परिस्थितियों में पूरे साल पौधों का उत्पादन किया जा सकता है।
  5. दुर्लभ और लुप्तप्राय पौधों का संरक्षण – दुर्लभ पौधों का संरक्षण और पुनरुत्पादन संभव होता है।

प्रश्न 3: पत्ती में कर्तोतक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है, उसमें विभिन्‍न घटकों का पता लगाओ।

उत्तर 3: पत्ती में कर्तोतक पादप (organogenic plant) के प्रवर्धन के लिए जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है, उसे सामान्यतः संवर्धन माध्यम (culture medium) कहते हैं। इस माध्यम में कई आवश्यक घटक होते हैं जो पादप वृद्धि और विकास के लिए जरूरी होते हैं। इस प्रकार के माध्यम के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:

  • मूल लवण (Basic Salts):
    • मैक्रोन्यूट्रिएंट्स: नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटैशियम (K), कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), और सल्फर (S)।
    • माइक्रोन्यूट्रिएंट्स: लोहा (Fe), मैंगनीज (Mn), तांबा (Cu), जिंक (Zn), मोलिब्डेनम (Mo), और बोरॉन (B)।
  • विटामिन्स: जैसे थायमिन (B1), निकोटिनिक एसिड (B3), और पाइरिडॉक्सिन (B6), जो कोशिका विभाजन और वृद्धि में सहायक होते हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट्स: मुख्य रूप से सुक्रोज (शर्करा) जो ऊर्जा का स्रोत होती है और पादप की वृद्धि के लिए आवश्यक होती है।
  • हॉर्मोन्स (विकास नियामक):
    • ऑक्सिन्स (जैसे IAA, NAA): जड़ विकास के लिए।
    • साइटोकिनिन्स (जैसे BAP, Kinetin): अंकुर और पत्ती विकास के लिए।
    • कभी-कभी जिबरेलिन्स का भी प्रयोग किया जाता है, जो तने की लंबाई बढ़ाने में सहायक होते हैं।
  • जेलिंग एजेंट: अगर-अगर या जेलाइट जैसे पदार्थ का उपयोग माध्यम को ठोस रूप में रखने के लिए किया जाता है, ताकि पत्तियाँ और अन्य ऊतक आसानी से उस पर विकसित हो सकें।
  • पी.एच. नियामक (pH Regulator): माध्यम का पी.एच. 5.5 से 5.8 के बीच रखा जाता है ताकि पौधों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित हो सके।

ये सभी घटक मिलकर पत्तियों के कर्तोतक पादप प्रवर्धन में आवश्यक पोषक और संरचनात्मक सहायता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4: बीटी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाए जाते हैं लेकिन जीवाणु स्वयं को नहीं मारते हैं; क्योंकि-
(क) जीवाणु आविष के प्रति प्रतिरोधी हैं।
(ख) आविष अपरिपक्व हैं।
(ग) आविष निष्क्रिय होता है।
(घ) आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है।

उत्तर 4: (ग) आविष निष्क्रिय होता है।

स्पष्टीकरण: Bacillus thuringiensis (Bt) नामक जीवाणु द्वारा उत्पन्न किया गया Bt टॉक्सिन अपनी निष्क्रिय रूप (protoxin) में मौजूद होता है। यह आविष (protoxin) तब तक सक्रिय नहीं होता जब तक यह कीट के क्षारीय पेट में नहीं पहुंचता, जहां यह सक्रिय रूप में परिवर्तित होता है और कीट की आंत की कोशिकाओं को प्रभावित करता है। इसी कारण जीवाणु स्वयं को इससे कोई हानि नहीं पहुंचाता, क्योंकि उसके अंदर यह विष सक्रिय रूप में नहीं होता।

प्रश्न 5: पारजीवी जीवाणु क्या है? किसी एक उदाहरण द्वारा सचित्र वर्णन करो।

उत्तर 5: पारजीवी जीवाणु (Parasitic Bacteria) वे जीवाणु होते हैं जो अपने जीवन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। ये जीवाणु अपने पोषण के लिए मेज़बान (host) जीव के शरीर के ऊतकों, कोशिकाओं या द्रवों का उपयोग करते हैं और अक्सर बीमारियाँ फैलाते हैं।

  • उदाहरण: Mycobacterium tuberculosis
    • रोग: यह जीवाणु मनुष्यों में ट्यूबरकुलोसिस (क्षय रोग) फैलाता है।
    • संक्रामक तरीका: यह जीवाणु मनुष्य की श्वसन प्रणाली (फेफड़ों) में प्रवेश करता है और वहां के ऊतकों को संक्रमित करता है।
    • प्रभाव: फेफड़ों में संक्रमण के कारण खांसी, बुखार, वजन कम होना और थकान जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह जीवाणु फेफड़ों की कोशिकाओं का उपयोग कर अपने आप को विकसित करता है और मेज़बान को कमजोर करता है।
  • सचित्र वर्णन:
    • संक्रमण का प्रारंभ: जब Mycobacterium tuberculosis जीवाणु हवा के माध्यम से श्वसन तंत्र में प्रवेश करता है।
    • मेज़बान कोशिकाओं पर हमला: यह फेफड़ों के अंदर स्थित कोशिकाओं पर आक्रमण करता है और उनमें प्रवेश करता है।
    • रोग के लक्षण: संक्रमित व्यक्ति में खांसी, बुखार और थकावट जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं, और संक्रमण बढ़ता रहता है।

प्रश्न 6: आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के लाभ का तुलनात्मक विभेद कीजिए।

उत्तर 6: आनुवंशिक रूपांतरित फसलों (Genetically Modified Crops, GM Crops) के उत्पादन के कई लाभ होते हैं, जो पारंपरिक फसलों की तुलना में कई महत्वपूर्ण फायदे प्रदान करते हैं। आनुवंशिक रूपांतरित (GM) फसलों के उत्पादन के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता: GM फसलें कीटों और रोगाणुओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है।
  • उच्च उपज: आनुवंशिक रूप से सुधारित फसलें अधिक उपज देने में सक्षम होती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा बढ़ती है।
  • सिंचाई और जलवायु सहिष्णुता: GM फसलें सूखा, अधिक तापमान, और लवणता जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन कर सकती हैं।
  • पोषक तत्वों की वृद्धि: फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जा सकती है, जैसे कि विटामिन और खनिज।
  • कम उत्पादन लागत: कीटनाशकों, उर्वरकों और सिंचाई की कम आवश्यकता होने से किसानों की उत्पादन लागत में कमी आती है।
  • पर्यावरणीय लाभ: कम कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी और जल प्रदूषण की संभावना घटती है।

प्रश्न 7: क्राई प्रोटीन्स क्या है? उस जीव का नाम बताओ जो इसे पैदा करता है। मनुष्य इस प्रोटीन को अपने फायदे के लिए कैसे उपयोग में लाता है?

उत्तर 7: क्राई प्रोटीन्स एक प्रकार के प्रोटीन होते हैं जो मुख्य रूप से बैसीलस थुरीनजिएंसिस (Bt) नामक बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये प्रोटीन कीटों के लिए अत्यधिक विषैले होते हैं और विशेषकर कीटों की आंतों में जाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। बैसीलस थुरीनजिएंसिस ( Bacillus thuringiensis ) (Bt) जीवाणु यह एक स्पोर-फॉर्मिंग बैक्टीरिया है जो क्राई प्रोटीन का उत्पादन करता है।

मनुष्य के फायदे: मनुष्य इन क्राई प्रोटीन्स का उपयोग निम्नलिखित तरीकों से करता है:

  1. कृषि में कीटनाशक के रूप में: Bt बैक्टीरिया से प्राप्त क्राई प्रोटीन्स को जैविक कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है। ये कीटों को मारने में प्रभावी होते हैं, जिससे फसलों की सुरक्षा होती है।
  2. आनुवंशिक रूपांतरित फसलों में: आनुवंशिक रूपांतरित फसलों (जैसे Bt कॉर्न और Bt कपास) में इन क्राई प्रोटीन्स को शामिल किया जाता है ताकि वे कीटों के प्रति प्रतिरोधक बन सकें। इससे फसल की उपज में वृद्धि होती है और रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है।
  3. पर्यावरणीय लाभ: क्राई प्रोटीन्स के उपयोग से पारंपरिक रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में कम विषाक्तता होती है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 8: जीन चिकित्सा क्या है? एडीनोसीन डिएमीनेज (ए डी ए) की कमी का उदाहरण देते हुए इसका सचित्र वर्णन करें।

उत्तर 8: जीन चिकित्सा आनुवंशिक रोगों का इलाज करने की एक तकनीक है। जीन चिकित्सा एक आनुवंशिक अभियांत्रिकी दृष्टिकोण है जिसमें एक दोषपूर्ण जीन को एक सामान्य, क्रियात्मक जीन से बदलना शामिल है। 1990 में, एडीनोसीन डिएमीनेज की कमी से पीड़ित एक 4 वर्षीय बच्चे को पहली नैदानिक ​​जीन चिकित्सा मिली। यह एंजाइम प्रतिरक्षा प्रणाली के संचालन के लिए आवश्यक है। गंभीर संयुक्त प्रतिरक्षा की कमी (एससीआईडी) एंजाइम एडीनोसीन डिएमीनेज में एक जीन असामान्यता के कारण होती है। एससीआईडी रोगियों में कार्यशील टी-लसीकाणुओं की कमी होती है और वे जीवाणुओं और अन्य सूक्ष्मजीवों से नहीं लड़ सकते हैं।

​​जीन चिकित्सा करने के लिए, रोगी की अस्थिमज्जा से लसीकाणु लिए जाते हैं, और एडीए के लिए कूटलेखन करने वाले मानव जीन की एक सामान्य कार्यात्मक प्रतिरूप को पश्चविषाणु संवाहक का उपयोग करके लसीकाणु में प्रवेश कराया जाता है। उपचारित कोशिकाओं को रोगी की अस्थिमज्जा में फिर से प्रवेश कराया जाता है। ये कोशिकाएँ लसीकाणु बनाती हैं जिनमें कार्यशील एडीए जीन होता है, जो पीड़ित की प्रतिरक्षातंत्र को फिर से सक्रिय करता है। हालाँकि, ये लसीकाणु विभाजित नहीं हो सकते हैं और इनका जीवनकाल छोटा होता है, इसलिए उन्हें नियमित रूप से अभियांत्रिकी कोशिकाओं के साथ आपूर्ति की जानी चाहिए। प्रारंभिक भ्रूणीय अवस्था के दौरान स्टेम कोशिकाओं को संशोधित करके इस कठिनाई को हल किया जा सकता है।

प्रश्न 9: ई. कोलाई जैसे जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर 9: ई.कोलाई में वृद्धि हार्मोन के लिए जीन के क्लोनिंग और स्थानांतरण का तंत्र नीचे दर्शाया गया है:

प्रश्न 10: तेल के रसायन शास्त्र तथा आरडीएनए जिसके बारे में आपको जितना भी ज्ञान प्राप्त है, उसमें आधार बीजों तेल हाइड्रोकार्बन हटाने की कोई एक विधि सुझाओ।

उत्तर 10: बीजों से तेल हाइड्रोकार्बन हटाने के लिए, रिकॉम्बिनेंट डीएनए (आरडीएनए) तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है आरडीएनए तकनीक एक आनुवंशिक अभियांत्रिकी दृष्टिकोण है जो दो अलग-अलग स्रोतों से डीएनए को मिलाकर पुनर्योगज या पुनः संयोजक डीएनए (आरडीएनए) बनाता है।

  • आरडीएनए तकनीक का इस्तेमाल किसी जीव की आनुवंशिक सामग्री में बदलाव करने के लिए किया जाता है।
  • आरडीएनए का इस्तेमाल करके, तेल के घटक ग्लिसरॉल और फैटी एसिड के संश्लेषण को रोका जा सकता है।
  • इसके लिए, ग्लिसरॉल संश्लेषण अवरोधकों या फैटी एसिड संश्लेषण अवरोधकों में से किसी के लिए जीन ले जाने वाले आरडीएनए को बीजों में डाला जाता है।
  • इससे तेल संश्लेषण बाधित हो जाता है और पुनः संयोजक बीजों में तेल नहीं होता।
  • तेलों के संश्लेषण के लिए ज़िम्मेदार जीनों को हटाना भी एक विकल्प है।

प्रश्न 11: इंटरनेट से पता लगाइए कि गोल्डन राइस (गोल्डन धान) क्या है?

उत्तर 11: गोल्डन राइस, ओरिजा सैटिवा नामक धान की आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म है, जिसे उन क्षेत्रों के लिए एक मज़बूत भोजन के रूप में विकसित किया गया है जहाँ आहार विटामिन ए की कमी है। इसमें समर्थक-विटामिन ए का एक अग्रदूत होता है, जिसे बीटा-कैरोटीन कहा जाता है, जिसे आनुवंशिक अभियांत्रिकी के माध्यम से धान में शामिल किया गया है।। धान का पौधा स्वाभाविक रूप से अपनी पत्तियों में बीटा-कैरोटीन वर्णक पैदा करता है। हालाँकि, यह बीज के एंडोस्पर्म में अनुपस्थित है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि बीटा-कैरोटीन वर्णक प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में मदद करता है जबकि एंडोस्पर्म में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। चूँकि बीटा-कैरोटीन प्रो-विटामिन ए का अग्रदूत है, इसलिए इसे आहार संबंधी विटामिन ए की कमी को पूरा करने के लिए धान की किस्म में शामिल किया गया है। यह विटामिन अनुपूरक का सरल और कम खर्चीला विकल्प है। हालाँकि, धान की इस किस्म को पर्यावरण कार्यकर्ताओं से काफी विरोध का सामना करना पड़ा है। इसलिए, वे अभी भी मानव उपभोग के लिए बाजार में उपलब्ध नहीं हैं।

प्रश्न 12: क्या हमारे रक्त में प्रोटीओजेज तथा न्यूक्लीऐजिज हैं?

उत्तर 12: नहीं, हमारे रक्त में प्रोटीओजेज़ और न्यूक्लीऐज़ नहीं होते:

  • रक्त में प्रोटीओजेज़ और न्यूक्लीऐज़ एंजाइम होते हैं जो प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड को पचाते हैं।
  • अगर ये एंजाइम रक्त में मौजूद होते, तो ये रक्त प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड को तोड़कर रक्त कोशिकाओं और रक्त वाहिकाओं को घेरने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देते।
  • रक्त सीरम में प्रोटीएज़ अवरोधक होते हैं जो प्रोटीएज़ की क्रिया से रक्त प्रोटीन को टूटने से बचाते हैं।

प्रश्न 13: इंटरनेट से पता लगाइए कि मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन को किस प्रकार बनाएँगे? इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर 13: मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन का निर्माण लक्ष्य निर्धारित उत्परिवर्तनजन के उपयोग द्वारा प्रोटीन के जीनों को पुननिर्मित करके रूपांतरित पेप्टाइड की अभिव्यक्ति के द्वारा किया जाता है।

इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन : इस प्रकार की औषधि प्रोटीन के निर्माण में मुख्य समस्या यह है कि मुख सक्रिय प्रोटीन की अर्द्ध आयु छोटी होती है, जिसके कारण वे जल्दी निष्क्रिय हो जाते हैं तथा इनका उचित अवशोषण भी नहीं हो पाता है। ये उपापचयी रूप से स्थिर व दीर्घायु होने वाले होने चाहिए ताकि इनका शीघ्र विघटन न हो तथा इनका शरीर द्वारा पर्याप्त रूप से अवशोषण हो सके।

यह भी देखें ✯ Class 12

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