जैव विविधता एवं संरक्षण question answer: Ncert Solution for Class 12 Biology Chapter 13 in Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Biology |
Chapter | Chapter 13 |
Chapter Name | जैव विविधता एवं संरक्षण ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: जैव-विविधता के तीन आवश्यक घटक (कंपोनेंट) का नाम बतायें?
उत्तर 1: जैवविविधता, जैवीय संगठन के सभी स्तरों में उपस्थित कुल विविधता को दर्शाती है। जैव विविधता के तीन महत्वपूर्ण घटक हैं:
- (क) आनुवांशिक विविधता
- (ख) जातीय विविधता
- (ग) पारितंत्र विविधता
प्रश्न 2: पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आंकलन करते हैं?
उत्तर 2: पारिस्थितिकीविद् विश्व की कुल जातियों का आंकलन विभिन्न विधियों और दृष्टिकोणों का उपयोग करके करते हैं। सबसे पहले, वे विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रों और क्षेत्रों का अध्ययन करते हैं और वहां पाई जाने वाली प्रजातियों की पहचान और वर्गीकरण करते हैं। इसके बाद, वे अनुमान लगाते हैं कि अन्य अनदेखे या अनजाने क्षेत्रों में कितनी अतिरिक्त प्रजातियाँ हो सकती हैं। इस प्रक्रिया में वे सांख्यिकीय मॉडल और सैंपलिंग विधियों का सहारा लेते हैं, जिसमें कुछ हिस्सों से प्राप्त डेटा के आधार पर पूरे क्षेत्र का अनुमान लगाया जाता है।
इसके अलावा, डीएनए विश्लेषण और अन्य तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके उन प्रजातियों की भी पहचान की जाती है, जिन्हें पारंपरिक तरीकों से देखना मुश्किल होता है। इस प्रकार के अनुमान अक्सर भिन्न हो सकते हैं क्योंकि सभी क्षेत्रों का पूरी तरह अध्ययन करना संभव नहीं होता, और जीवों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ अलग-अलग गति से खोजी जाती हैं।
प्रश्न 3: उष्ण कटिबंध क्षेत्र में सबसे अधिक स्तर की जाति-समृद्धि क्यों मिलती हैं? इसकी तीन परिकल्पनाएँ दीजिए?
उत्तर 3: उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में सबसे अधिक स्तर की जाति-समृद्धि पाई जाती है, और इसके पीछे कई वैज्ञानिक परिकल्पनाएँ दी गई हैं। तीन प्रमुख परिकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं:
1. जलवायु स्थिरता परिकल्पना: उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में जलवायु बहुत लंबे समय से अपेक्षाकृत स्थिर रही है। यहां तापमान और नमी का स्तर स्थिर और अनुकूल होता है, जिससे जीवों के विकास और विविधता बढ़ने के लिए अधिक समय मिलता है। स्थिर जलवायु के कारण यहाँ प्रजातियों के अनुकूलन और विस्तार की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
2. उत्पादकता परिकल्पना: उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में धूप और वर्षा की प्रचुरता के कारण पौधों की उत्पादकता बहुत अधिक होती है। अधिक जैविक उत्पादकता (जैसे कि पौधों और वनस्पति का उत्पादन) जीवों के लिए भोजन और ऊर्जा का बड़ा स्रोत प्रदान करती है, जिससे विभिन्न जीव-जंतु और प्रजातियाँ जीवित रहकर पनप सकती हैं। इससे पारिस्थितिक तंत्र में जाति-समृद्धि बढ़ती है।
3. विकास की दर परिकल्पना: इस परिकल्पना के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म तापमान और उच्च ऊर्जा की उपलब्धता से जैविक प्रक्रियाएँ तेजी से होती हैं, जिससे विकास की दर बढ़ जाती है। अधिक तेज़ विकास और पीढ़ी दर (generation rate) के कारण नई प्रजातियों का उद्भव होता है, जिससे क्षेत्र में जैव विविधता बढ़ती है।
प्रश्न 4: जातीय-क्षेत्र संबंध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्त्व है?
उत्तर 4: जातीय-क्षेत्र संबंध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का महत्व इस प्रकार है:
- किसी क्षेत्र की प्रजाति समृद्धि की भविष्यवाणी करने में मदद करती है।
- क्षेत्र पर प्रजाति समृद्धि की निर्भरता को दर्शाती है।
- किसी प्रजाति का जातीय-क्षेत्र संबंध जानने में मदद करती है।
- किसी निश्चित समय पर किसी स्थान पर प्रजाति की बहुलता का पता चलता है।
प्रश्न 5: किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर 5: किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण:
- वन्य क्षेत्र क्षति: जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों का अति-शोषण।
- वनों की कटाई: वनों की अंधाधुंध कटाई से जीवों के आवास नष्ट होते हैं।
- प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, भूकंप, सूखा आदि से जनजातीय और जातीय समुदायों को नुकसान।
- विस्थापन: विकास परियोजनाओं (बांध, सड़क निर्माण) से जबरन विस्थापन।
- आर्थिक असमानता: रोजगार के अवसरों और संसाधनों की कमी से जातीय समूहों की आर्थिक स्थिति में गिरावट।
- सामाजिक भेदभाव: जाति आधारित भेदभाव और हिंसा से हानि।
- प्रदूषण: जल, वायु और मिट्टी का प्रदूषण जीवों के जीवन को प्रभावित करता है।
- जलवायु परिवर्तन: तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव से जीवों के आवास प्रभावित होते हैं।
- आधुनिकरण और शहरीकरण: पारंपरिक आजीविका के साधनों और सांस्कृतिक पहचान का नुकसान।
प्रश्न 6: पारितंत्र के कार्यों के लिए जैवविविधता कैसे उपयोगी है?
उत्तर 6: जैवविविधता पारितंत्र के कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता, संतुलन, और उत्पादकता को बनाए रखने में मदद करती है। विभिन्न प्रजातियाँ पारिस्थितिक प्रक्रियाओं जैसे परागण, पोषक चक्रण, जल शुद्धिकरण, और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहयोग करती हैं। जैवविविधता की अधिकता से पारितंत्र प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय बदलावों के प्रति अधिक लचीला होता है, जिससे वह विभिन्न तनावों को सहन कर सकता है। साथ ही, यह खाद्य श्रृंखला और ऊर्जा प्रवाह में संतुलन बनाए रखती है, जो समग्र रूप से पारिस्थितिकी तंत्र की दीर्घकालिक संरचना और कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 7: पवित्र उपवन क्या हैं? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?
उत्तर 7: पवित्र उपवन ऐसे वन या प्राकृतिक क्षेत्र होते हैं जिन्हें धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण संरक्षित किया जाता है। ये स्थल अक्सर स्थानीय समुदायों द्वारा देवी-देवताओं, पूर्वजों, या प्रकृति की पूजा से जुड़े होते हैं, और इन क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप या वन संसाधनों के दोहन पर प्रतिबंध होता है।
भारत में पवित्र उपवनों के कुछ उदाहरण:
- मेघालय की खासी और जयंतिया पहाड़ियां
- राजस्थान की अरावली
- कर्नाटक और महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट
- मध्यप्रदेश के सरगूजा, चंदा, और बस्तर क्षेत्र
- गुजरात के साबरकांठा, दाहोद, और बनासकांठा
संरक्षण में भूमिका:
- स्थानीय समुदायों का सहयोग: पवित्र उपवनों के प्रति सामाजिक और धार्मिक प्रतिबद्धता से वनों और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा होती है।
- जैवविविधता संरक्षण: पवित्र उपवनों में कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ सुरक्षित रहती हैं, जो अन्यथा समाप्त हो सकती थीं।
- पर्यावरणीय संतुलन: ये उपवन पारिस्थितिकी तंत्र में जल और मिट्टी के संरक्षण, कार्बन अवशोषण और जलवायु संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।
- सांस्कृतिक और धार्मिक भूमिका: धार्मिक मान्यताओं के कारण इन क्षेत्रों की देखभाल और संरक्षण स्थानीय समुदायों द्वारा स्वाभाविक रूप से किया जाता है।
प्रश्न 8: पारितंत्र सेवा के अंतर्गत बाढ़ व भू-अपरदन (सॉइल-इरोजन) नियंत्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितंत्र के जीविय घटकों (बायोटिक कंपोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?
उत्तर 8: एक पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक घटक में पौधों और पशुओं जैसे जीवों को शामिल किया जाता है। बाढ़ और भू-अपरदन को नियंत्रित करने में पौधे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पौधों की जड़ें मिट्टी के कणों को एक साथ जकड़ कर रखती हैं, जो तेज हवा या पानी के कारण होने वाले मिट्टी के ऊपरी परत के क्षरण को रोकती है। जड़ें भी मिट्टी को छिद्रयुक्त बना देती हैं, जिससे भूजल अवशोषित होता है और यह बाढ़ को रोकता है। इसलिए, पौधे मिट्टी का क्षरण और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और सूखे को रोकने में सक्षम हैं। वे मिट्टी और जैव विविधता की उर्वरता भी बढ़ाते हैं।
प्रश्न 9: पादपों की जाति विविधता (22 प्रतिशत) जंतुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है; क्या कारण है कि जंतुओं में अधिक विविधता मिलती है?
उत्तर 9: पादपों की तुलना में जंतुओं में ज़्यादा विविधता होने के कई कारण हैं:
- जंतुओं का वितरण ज़्यादा होता है और उनमें नई प्रजातियों के विकास की संभावना ज़्यादा होती है।
- जंतुओं में गतिशीलता होती है, जबकि पौधे स्थिर होते हैं। इसलिए, जंतु कठिन परिस्थितियों से बचने के लिए दूसरी जगह जा सकते हैं या प्रवास कर सकते हैं। वहीं, पौधे विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए मजबूर रहते हैं।
- जंतुओं में पाए जाने वाले तांत्रिक तंत्र उन्हें ज़्यादा संवेदनशील बनाते हैं। इससे वे अपने आस-पास के बदलावों को महसूस कर सकते हैं और अपने आप को अनुकूलित कर सकते हैं।
- पौधे पानी, खनिज, और सूर्य के प्रकाश की अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए कम विकासवादी अनुकूलन की ज़रूरत होती है।
- पौधे नई जगहों पर कम फैल पाते हैं और नई जगहों पर ज़्यादा प्रवास नहीं कर पाते, जितना जंतु कर पाते हैं।
प्रश्न 10: क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं, जहाँ पर हम जानबूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?
उत्तर 10: हां, ऐसी स्थिति में हम जानबूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं, लेकिन इसे उचित नहीं समझते:
- जब कोई जाति पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए या दूसरी प्राकृतिक प्रजातियों को नुकसान पहुंचाए, तो ऐसी स्थिति में उस जाति को विलुप्त किया जा सकता है. जैसे, ऐडीज़ मच्छर को विलुप्त किया जा रहा है क्योंकि यह डेंगू, हाथीपाँव जैसे कई रोग फैलाता है।
- मत्स्य पालन में, अफ़्रीकी कैटफ़िश के आने से आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद मछलियां खत्म होने लगीं, तो अफ़्रीकी कैटफ़िश को खत्म करना ज़रूरी हो गया।
- वैज्ञानिकों ने टीकाकरण के ज़रिए चेचक वायरस को खत्म किया है। इसी तरह, पोलियो और हेपेटाइटिस बी टीकाकरण जैसे कई कार्यक्रमों का मकसद इन रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं को खत्म करना है।
- हानिकारक कीटों, कीड़ों, और बैक्टीरिया के ख़िलाफ़ कीटनाशक, कीटनाशक, और एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल भी जानबूझकर किसी प्रजाति को खत्म करने के लिए किया जाता है।