विकास question answer: Ncert Solution for Class 12 Biology Chapter 6 in Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Biology |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | विकास ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: डार्विन के चयन सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में जीवाणुओं में देखी गई प्रतिजैविक प्रतिरोध का स्पष्टीकरण करें।
उत्तर 1: डार्विन के चयन सिद्धांत के अनुसार, जीवों की आबादी में अनुवांशिक भिन्नता होती है, और जो जीव अपने पर्यावरण में अधिक अनुकूल होते हैं, वे जीवित रहने और प्रजनन में सफल होते हैं। इसे “प्राकृतिक चयन” कहा जाता है। यही सिद्धांत जीवाणुओं में प्रतिजैविक प्रतिरोध के विकास में भी लागू होता है।
डार्विन के चयन सिद्धांत के अनुसार, प्रतिजैविकों का प्रयोग एक चयन दबाव (selective pressure) उत्पन्न करता है, जिसमें केवल प्रतिरोधी जीवाणु जीवित रहते हैं और बाकी जीवाणु मर जाते हैं। इस प्रकार, प्रतिजैविक प्रतिरोध विकसित होता है और प्रतिरोधक जीवाणुओं की आबादी बढ़ती जाती है। ये प्रतिरोधी जीवाणु अपनी प्रतिरोधी जीनों को अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करते हैं, जिससे प्रतिजैविक के प्रति प्रतिरोधी जीवाणुओं की संख्या बढ़ती जाती है।
प्रश्न 2: समाचार-पत्रों और लोकप्रिय वैज्ञानिक लेखों से विकास संबंधी नए जीवाश्मों और मतभेदों की जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर 2: वैज्ञानिकों को मोरक्को में 60 करोड़ वर्ष पुराने प्राणियों के जीवाश्म मिले हैं, जो आधुनिक हाथी के पूर्वज खरगोश के आकार के थे। पैलेओंटोलॉजिस्ट एम्मानुएल ने कैसाब्लांका, मोरक्को से 60 मील (100 किलोमीटर) पूर्व में बेसिन में खरगोश के आकार के प्रोटो-हाथी के खोपड़ी के टुकड़े की खोज की। इथोपिया तथा तंजानिया से कुछ मानव जैसी अस्थियाँ के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। मिस्र desh में कैरो के पास सन् 1961 में एक पुरानी दुनिया का एक जीवाश्म प्राप्त हुआ है। इसमें 32 दाँत थे। 1858 में ओरियोपिथेकस का जीवाश्म इटली में एक कोयले की खान में इसका पूरा कंकाल प्राप्त हुआ।
प्रश्न 3: ‘प्रजाति’ की स्पष्ट परिभाषा देने का प्रयास करें।
उत्तर 3: ‘प्रजाति’ (Species) जीवविज्ञान में एक मौलिक इकाई है, जिसकी परिभाषा विभिन्न संदर्भों में थोड़ी भिन्न हो सकती है, लेकिन सबसे सामान्य और स्वीकृत परिभाषा के अनुसार, प्रजाति उन जीवों के समूह को कहा जाता है जो समान विशेषताओं को साझा करते हैं, एक-दूसरे के साथ स्वाभाविक रूप से प्रजनन कर सकते हैं, और उपजाऊ संतान उत्पन्न कर सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि एक ही प्रजाति के जीव अपने पर्यावरण में अनुकूल होते हैं और आपस में प्रजनन करके नई संतति का उत्पादन कर सकते हैं, जबकि अन्य प्रजातियों के साथ प्रजनन आमतौर पर संभव नहीं होता, या यदि होता भी है तो उपजाऊ संतान नहीं बनती।
प्रश्न 4: मानव विकास के विभिन्न घटकों का पता करें (संकेत-मस्तिष्क साइज और कार्य, कंकाल-संरचना, भोजन में पसंदगी आदि)।
उत्तर 4:
नाम | विशेषताएँ |
ड्रायोपिथिकस | वनमानुष जैसे, बड़े नुकीले दाँतों वाले, पैर और हाथ बराबर आकार के होते थे और मुलायम फल और पत्ते खाते थे। |
रामापिथिकस | अधिक मनुष्यों जैसे, नुकीले दाँत छोटे जबकि दाढ़ बड़े, सीधे खड़े होते थे और बीज तथा नट्स खाते थे। |
ओस्ट्रालोपिथेसिन | मनुष्यों जैसे, कैनाइन तथा कृन्तक छोटे, सीधे होकर चलते थे, पत्थर के हथियार से शिकार करते थे, फल खाते थे, दिमागी क्षमता 400-600 सीसी होती थी। |
होमो हैबिलस | पहले मानव प्राणी जैसे, कैनाइन छोटे, हथियारों का निर्माण करने वाले प्रथम मानव, मांस नहीं खाते थे और दिमागी क्षमता 650-800 सीसी होती थी। |
होमो इरैक्टस |
शिकार के लिए पत्थरों तथा हड्डियों के हथियार का प्रयोग करते थे, मांस खाते थे और दिमागी क्षमता 900 सीसी होती थी। होमो नियंडरथैलेन्सिस गुफा में रहने वाले, अपने शरीर की रक्षा के लिए खालों का इस्तेमाल करते थे, मृतकों को जमीन में गाड़ते थे और दिमागी क्षमता 1400 सीसी होती थी। होमो सैंपियंस तीव्र बुद्धि वाले आधुनिक मानव, विकसित कला, संस्कृति, भाषा, खेती की गई फसलें तथा पालतू जानवर।
प्रश्न 5: इंटरनेट (अंतरजाल-तंत्र) या लोकप्रिय विज्ञान लेखों से पता करें कि क्या मानवेत्तर किसी प्राणी में आत्म संचेतना थी।
उत्तर 5: मानवेत्तर प्राणियों में आत्म-संचेतना (self-awareness) के प्रश्न पर वैज्ञानिकों ने कई अनुसंधान और प्रयोग किए हैं, जिनके नतीजे दर्शाते हैं कि कुछ गैर-मानव प्राणी भी आत्म-संचेतना की क्षमताएं प्रदर्शित करते हैं। आत्म-संचेतना का सबसे सामान्य परीक्षण “मिरर टेस्ट” (दर्पण परीक्षण) के माध्यम से किया जाता है, जिसे 1970 के दशक में विकसित किया गया था।
इस परीक्षण में यह देखा जाता है कि क्या एक प्राणी खुद को दर्पण में पहचान सकता है, और क्या उसे यह समझ होती है कि वह अपनी ही छवि देख रहा है, न कि किसी अन्य प्राणी की। जैसे, चिंपैंजी, डॉल्फिन, हाथी, और कुछ पक्षी (जैसे कौवे) “मिरर टेस्ट” में सफल रहे हैं, जो आत्म-संचेतना की क्षमता का संकेत माना जाता है।
हालांकि, मिरर टेस्ट आत्म-संचेतना का एक संकेतक है, लेकिन यह केवल एक तरीका है, और कुछ प्राणी जो इस परीक्षण में असफल होते हैं, वे भी अन्य तरीकों से आत्म-संचेतना या उच्च स्तर की संज्ञानात्मक क्षमताएं प्रदर्शित कर सकते हैं।
प्रश्न 6: इंटरनेट (अंतरजाल-तंत्र) संसाधनों के उपयोग करते हुए आज के 10 जानवरों और उनके विलुप्त जोड़ीदारों की सूची बनाएँ (दोनों के नाम दें)।
उत्तर 6: यहाँ 10 आधुनिक जीवित जानवरों और उनके विलुप्त जोड़ीदारों की सूची दी गई है:
- हाथी – विलुप्त जोड़ीदार: मैमथ
- गेंडा – विलुप्त जोड़ीदार: वूल्ली राइनो (Woolly Rhino)
- शार्क – विलुप्त जोड़ीदार: मेगालोडॉन
- भालू – विलुप्त जोड़ीदार: केव भालू (Cave Bear)
- बाघ – विलुप्त जोड़ीदार: सैबर्टूथ कैट (स्मिलोडॉन)
- ऑस्ट्रिच – विलुप्त जोड़ीदार: मॉआ (Moa)
- जिराफ़ – विलुप्त जोड़ीदार: सिवाथेरियम (Sivatherium)
- नीली व्हेल – विलुप्त जोड़ीदार: बेसिलोसॉरस (Basilosaurus)
- कछुआ – विलुप्त जोड़ीदार: आर्कीलॉन (Archelon)
- कंगारू – विलुप्त जोड़ीदार: प्रोकॉप्टोडॉन (Procoptodon)
प्रश्न 7: विविध जंतुओं और पौधों के चित्र बनाएँ।
उत्तर 7: अध्याय से विविध जंतुओं और पौधों के चित्र बनाएँ।
प्रश्न 8: अनुकूलनी विकिरण के एक उदाहरण का वर्णन करें।
उत्तर 8: अनुकूलनी विकिरण (Adaptive Radiation) एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें एक ही प्रजाति के विभिन्न समूह विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में अपने-अपने विशेषीकृत रूपों और कार्यों के अनुसार विकसित होते हैं। इस प्रक्रिया का एक प्रसिद्ध उदाहरण गैलापागोस द्वीपसमूह पर पाए जाने वाले डार्विन के फिंच हैं। इन फिंचों का मूल ancestor एक ही प्रजाति से आया था, लेकिन समय के साथ, विभिन्न द्वीपों पर इनके बीच भूगोलिक अलगाव और अलग-अलग खाद्य संसाधनों की उपलब्धता के कारण, इनकी शारीरिक विशेषताएँ और व्यवहार में विविधता उत्पन्न हुई।
उदाहरण के लिए, कुछ फिंचों के चोंच लंबे और संकीर्ण हैं, जो उन्हें फूलों के रस चूसने में मदद करते हैं, जबकि अन्य के चोंच मोटे और मजबूत हैं, जो कठोर बीजों को तोड़ने के लिए उपयुक्त हैं। इस प्रकार, अनुकूलनी विकिरण की प्रक्रिया ने इन फिंचों को विभिन्न वातावरणों में सफलतापूर्वक जीवित रहने और प्रजनन करने में सक्षम बनाया।
प्रश्न 9: क्या हम मानव विकास को अनुकूलनी विकिरण कह सकते हैं?
उत्तर 9: नहीं, मानव विकास को अनुकूलनी विकिरण नहीं कह सकते, क्योंकि अनुकूलनी विकिरण एक विकासीय प्रक्रिया है जिसमें एक जीव तेजी से वंश विविधीकरण द्वारा नई प्रजाति की उत्पत्ति करता है, जोकि मानव विकास के मामले में नहीं है।
प्रश्न 10: विभिन्न संसाधनों जैसे कि विद्यालय का पुस्तकालय या इंटरनेट (अंतरजाल-तंत्र) तथा अध्यापक से चर्चा के बाद किसी जानवर जैसे कि घोड़े के विकासीय चरणों को खोजें।
उत्तर 10: घोड़े का विकास इओसीन काल के दौरान इओहिप्पस से शुरू हुआ। इसमें निम्नलिखित विकासीय चरणों शामिल थे।
- शरीर के आकार में धीरे-धीरे वृद्धि
- सिर और गर्दन के क्षेत्र का विस्तार
- अंगों और पैरों की लंबाई में वृद्धि
- पार्श्व अंगुलियों में धीरे-धीरे कमी
- तीसरे कार्यशील पैर की अंगुली का बढ़ना
- पीठ का मजबूत होना
- मस्तिष्क और संवेदी अंगों का विकास
- घास खाने के लिए दांतों की जटिलता में वृद्धि
घोड़े के विकास को इस प्रकार दर्शाया गया है-
इक्वस: प्लियोहिप्पस ने इक्वस या आधुनिक घोड़े को जन्म दिया जिसके प्रत्येक पैर में एक अंगुली होती है। उनके पास घास काटने के लिए कृन्तक दांत और भोजन पीसने के लिए दाढ़ होती हैं।
इओहिप्पस: इसका सिर और गर्दन छोटी थी। इसके चार कार्यशील पंजे थे और प्रत्येक पश्चपाद पर 1 और 5 की एक पट्टी और प्रत्येक अग्रपाद पर 1 और 3 की एक पट्टी थी। दाढ़ें छोटी मुकुट वाली थीं जो पौधे के आहार को पीसने के लिए अनुकूलित थीं।
मीसोहिप्पस: मीसोहिप्पस लगभग 40 करोड़ वर्ष पूर्व आलीगोसीन काल में प्रकट हुए, जो इओहिप्पस से लगभग 0.06 मी. बड़े आकार के थे| इसकी अगली तथा पिछली टाँगों में तीन-तीन अंगुलियाँ थीं|
मेरीचिप्पस: इसका आकार लगभग 100 सेमी था। हालाँकि इसके प्रत्येक पैर में अभी भी तीन पंजे थे, लेकिन यह एक पैर के अंगूठे पर दौड़ सकता था। पार्श्व पंजा ज़मीन को नहीं छूता था। दाढ़ें घास चबाने के लिए अनुकूलित थीं।
प्लियोहिप्पस: यह आधुनिक घोड़े जैसा दिखता था और लगभग 108 सेमी लंबा था। इसमें एक ही कार्यशील पैर का अंगूठा था, जिसके प्रत्येक अंग में दूसरे और चौथे अंग की पट्टियाँ लगी हुई थीं।