मानव स्वास्थ्य तथा रोग question answer: Ncert Solution for Class 12 Biology Chapter 7 in Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Biology |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | मानव स्वास्थ्य तथा रोग ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: कौन से विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय हैं, जिन्हें आप संक्रामक रोगों के विरुद्ध रक्षा-उपायों के रूप में सुझायेंगे?
उत्तर 1: संक्रामक रोगों के विरुद्ध रक्षा-उपायों के रूप में विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय निम्नलिखित हैं:
- Vaccination (टीकाकरण): टीकाकरण सबसे प्रभावी उपायों में से एक है, जो कई संक्रामक रोगों जैसे पोलियो, मीजल्स, हेपेटाइटिस बी, और इन्फ्लुएंजा के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- स्वच्छता और सफाई: व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वच्छता को बढ़ावा देना, जैसे कि हाथ धोने की आदतें, सफाई बनाए रखना, और खाने-पीने की चीजों की सफाई, संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकता है।
- सुरक्षित पानी और स्वच्छता (WASH): स्वच्छ जल स्रोतों का उपयोग और स्वच्छता सुविधाओं की उपलब्धता, जैसे शौचालय, पानीborne रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है।
- अवशिष्ट प्रबंधन: ठोस और तरल अवशिष्ट का उचित प्रबंधन, जैसे कचरे का निपटान और रिसाइक्लिंग, संक्रामक रोगों के प्रसार को कम करता है।
- सामुदायिक स्वास्थ्य शिक्षा: लोगों को संक्रामक रोगों और उनके प्रसार के तरीकों के बारे में जागरूक करना, ताकि वे सतर्क रहें और उचित उपाय अपनाएं।
- प्रभावी रोग निगरानी प्रणाली: संक्रामक रोगों के फैलने की स्थिति को ट्रैक करने के लिए एक प्रभावी निगरानी प्रणाली स्थापित करना, ताकि समय पर प्रतिक्रिया की जा सके।
- सामाजिक दूरी और संगरोध: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में लोगों के बीच सामाजिक दूरी बनाए रखना और संक्रमित व्यक्तियों को पृथक करना, रोगों के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त बनाना ताकि समय पर चिकित्सा सहायता मिल सके और रोगों का जल्दी पता लगाया जा सके।
- जांच और उपचार: संक्रामक रोगों की शीघ्र जांच और इलाज के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना।
- सामाजिक नीतियों का कार्यान्वयन: सरकार द्वारा सामाजिक नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन, जैसे कि स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच बढ़ाना, जो सभी समुदायों के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 2: जैविकी के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियन्त्रित करने में किस प्रकार हमारी सहायता की है?
उत्तर 2: जैविकी के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में निम्नलिखित तरीकों से सहायता की है:
रोगाणुओं की पहचान: जैविकी ने हमें बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और प्रोटोजोआ जैसी संक्रामक एजेंटों की पहचान करने और उनका वर्गीकरण करने में मदद की है।
टीकाकरण विकास: जैविकी के ज्ञान के आधार पर टीकों का विकास किया गया है, जो विभिन्न संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा बढ़ाते हैं।
उपचार विधियों का विकास: जैविक अनुसंधान ने एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल्स और अन्य दवाओं के विकास में योगदान दिया है, जो संक्रामक रोगों का प्रभावी उपचार करते हैं।
रोग के प्रसार का अध्ययन: जैविकी ने रोगों के प्रसार के तरीके और कारकों को समझने में मदद की, जिससे प्रभावी रोकथाम उपाय विकसित किए जा सके।
सहजीविता और रोग प्रतिरोध: जैविकी के अध्ययन ने हमें यह समझने में मदद की है कि कैसे जीवित प्राणी संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं।
प्रश्न 3: निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है?
(क) अमीबता
(ख) मलेरिया
(ग) एस्केरिसता
(घ) न्युमोनिया
उत्तर 3: निम्नलिखित रोगों का संचरण इस प्रकार होता है:
(क) अमीबता (Amebiasis): यह रोग एंटामोएबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है और संक्रमित पानी या भोजन के सेवन से फैलता है। यह अधिकतर उन क्षेत्रों में होता है जहाँ स्वच्छता की कमी होती है।
(ख) मलेरिया (Malaria): मलेरिया प्लाज्मोडियम नामक परजीवी के कारण होता है, जो मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से फैलता है। यह मच्छर संक्रमित व्यक्ति के रक्त से परजीवी लेता है और फिर दूसरे व्यक्ति को काटकर उसे संक्रमित करता है।
(ग) एस्केरिसता (Ascariasis): यह रोग एस्केरिस नामक गोल कृमि के कारण होता है। यह संक्रमित पानी या भोजन के सेवन से फैलता है जिसमें कृमि के अंडे होते हैं। संक्रमित भोजन या पानी पीने से ये अंडे शरीर में पहुँचकर आंतों में विकसित हो जाते हैं।
(घ) न्युमोनिया (Pneumonia): न्युमोनिया, जो विभिन्न रोगाणुओं (जैसे स्ट्रेप्टोकोकस न्युमोनी) के कारण हो सकता है, मुख्यतः एयरबोर्न ड्रॉपलेट्स (हवा में सूक्ष्म कणों) के माध्यम से फैलता है। इसके संक्रमण का प्रसार खांसी, छींक या संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से होता है। संक्रमित कण वायु के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जा सकते हैं।
प्रश्न 4: जल-वाहित रोगों की रोकथाम के लिये आप क्या उपाय अपनायेंगे?
उत्तर 4: जल-वाहित रोगों की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- स्वच्छ जल का उपयोग: साफ और सुरक्षित पेयजल का उपयोग करना आवश्यक है।
- जल शुद्धिकरण: जल को उबालना, क्लोरीन का उपयोग करना या अन्य जल शुद्धिकरण तकनीकों का उपयोग करना।
- स्वच्छता और सफाई: आस-पास के वातावरण को साफ रखना और नियमित रूप से कूड़ा-कर्कट को हटाना।
- हाथ धोने की आदत: खाने से पहले और शौचालय के बाद हाथ धोने की आदत डालना।
- टीकाकरण: जल-वाहित रोगों जैसे हैजा और टायफाइड के खिलाफ टीकाकरण कराना।
- स्वास्थ्य शिक्षा: समुदाय में जल-वाहित रोगों की रोकथाम के बारे में जागरूकता फैलाना।
- जल निकासी: जल-जमाव वाले स्थानों की पहचान कर उनका उचित निपटारा करना।
- खाद्य सुरक्षा: खाने की चीजों को साफ और सुरक्षित रखना, और खुले में खाने से बचना।
इन उपायों के द्वारा जल-वाहित रोगों की रोकथाम में मदद मिल सकती है।
प्रश्न 5: डी एन ए वैक्सीन के संदर्भ में ‘उपयुक्त जीन’ के अर्थ के बारे में अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए।
उत्तर 5: डीएनए वैक्सीन में एक उपयुक्त जीन होता है जो एक प्रतिजनी प्रोटीन को संकेत देता है, जिसे बाद में प्लास्मिड में रखा जाता है, और फिर लक्ष्य जानवर की कोशिकाओं में एकीकृत किया जाता है। डीएनए (जीन) ले जाने वाला प्लास्मिड वैक्सीन लक्ष्य कोशिकाओं के केंद्रक में प्रवेश करता है और आरएनए का उत्पादन करता है, और बदले में विशिष्ट प्रतिजनी प्रोटीन बनाता है, क्योंकि इन प्रोटीनों को बाहरी रूप में पहचाना जाता है। जब उन्हें परपोषी कोशिकाओं द्वारा संसाधित किया जाता है और उनकी सतह पर प्रदर्शित किया जाता है, तो प्रतिरक्षी-तंत्र सतर्क हो जाती है, जो फिर प्रतिरक्षा अनुक्रियाओं की एक श्रृंखला को सक्रिय कर देती है।
प्रश्न 6: प्राथमिक और द्वितीयक लसीकाओं के अंगों के नाम बताइए।
उत्तर 6: प्राथमिक लसीकाएँ (Primary Lymphatic Organs):
- अस्थि मज्जा (Bone Marrow): यहाँ रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है, जिसमें लसीका कोशिकाएँ भी शामिल हैं।
- थाइमस ग्रंथि (Thymus Gland): यह ग्रंथि टी-लिम्फोसाइट्स (T-lymphocytes) के विकास और परिपक्वता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
द्वितीयक लसीकाएँ (Secondary Lymphatic Organs):
- लसीका नोड्स (Lymph Nodes): यह लसीका प्रवाह में मौजूद रोगाणुओं और विषाणुओं को पकड़ने में मदद करते हैं।
- तिल्ली (Spleen): यह रक्त में से पुरानी या संक्रमित रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने और इम्यून प्रतिक्रिया में मदद करता है।
- लसीका ग्रंथियाँ (Lymphatic Nodules): जैसे कि पेयेर प्लाक्स (Peyer’s Patches) जो आंतों में पाए जाते हैं और शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया में योगदान करते हैं।
- एडेनोइड्स (Adenoids): ये ग्रंथियाँ गले में होती हैं और संक्रमण से रक्षा करती हैं।
- टॉन्सिल्स (Tonsils): ये ग्रंथियाँ मुँह और गले में स्थित होती हैं और रोगाणुओं से रक्षा में सहायता करती हैं।
प्रश्न 7: इस अध्याय में निम्नलिखित सुप्रसिद्ध संकेताक्षर इस्तेमाल किए गए हैं। इनका पूरा रूप बताइए-
(क) एमएएलटी
(ख) सीएमआई
(ग) एड्स
(घ) एनएसीओ
(ङ) एचआईवी
उत्तर 7: यहाँ पर दिए गए सुप्रसिद्ध संकेताक्षरों के पूर्ण रूप निम्नलिखित हैं:
- (क) एमएएलटी: म्यूकोसा-एसोसिएटेड लिम्फोइड टिश्यू (Mucosa-Associated Lymphoid Tissue)
- (ख) सीएमआई: सेल मेडिएटेड इम्युनिटी (Cellular Mediated Immunity)
- (ग) एड्स: एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेंसी सिंड्रोम (Acquired Immunodeficiency Syndrome)
- (घ) एनएसीओ: नेशनल एड्स कन्ट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (National AIDS Control Organization)
- (ङ) एचआईवी: ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (Human Immunodeficiency Virus)
प्रश्न 8: निम्नलिखित में भेद कीजिए और प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
(क) सहज (जन्मजात) और उपर्जित प्रतिरक्षा
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा
उत्तर 8: (क) सहज (जन्मजात) और उपर्जित प्रतिरक्षा
प्रकार | सहज (जन्मजात) प्रतिरक्षा | उपर्जित प्रतिरक्षा |
---|---|---|
परिभाषा | यह प्रतिरक्षा शरीर की प्राकृतिक प्रतिक्रिया है, जो जन्म के समय से मौजूद होती है। यह प्रतिरक्षा तंत्र जल्दी प्रतिक्रिया करता है, लेकिन यह विशेष रूप से किसी एक रोगाणु के खिलाफ नहीं होती। | यह प्रतिरक्षा तब विकसित होती है जब शरीर एक विशेष रोगाणु के संपर्क में आता है। यह एक अनुकूलन प्रक्रिया है और इसके लिए समय लगता है। |
विशेषताएँ | गैर-विशिष्ट होती है, सभी प्रकार के संक्रमणों के खिलाफ तुरंत प्रतिक्रिया देती है। | विशिष्ट होती है, किसी विशेष रोगजनक के खिलाफ प्रतिक्रिया देती है। |
उदाहरण | त्वचा, आँसू, पेट का अम्ल | टीकाकरण से बनी प्रतिरक्षा, रोग से संक्रमित होने के बाद विकसित हुई प्रतिरक्षा |
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा
प्रकार | सक्रिय प्रतिरक्षा | निष्क्रिय प्रतिरक्षा |
---|---|---|
परिभाषा | यह तब होती है जब शरीर स्वयं एंटीबॉडी उत्पन्न करता है। यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया होती है, जो शरीर को भविष्य में संक्रमण से बचाती है। | यह तब होती है जब किसी व्यक्ति को पहले से बने बाहरी स्रोत से एंटीबॉडी प्राप्त मिलते हैं, बजाय इसके कि उसका शरीर स्वयं उन्हें उत्पन्न करे। यह तात्कालिक लेकिन अस्थायी होती है। |
विशेषताएँ | लंबे समय तक टिकने वाली होती है। | अल्पकालिक होती है। |
उदाहरण | टीकाकरण से प्राप्त प्रतिरक्षा, किसी रोग के संपर्क में आने के बाद विकसित प्रतिरक्षा | माँ के दूध से शिशु को मिली प्रतिरक्षा, एंटीबॉडी इंजेक्शन |
प्रश्न 9: प्रतिरक्षी (प्रतिपिंड) अणु का अच्छी तरह नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर 9:
प्रश्न 10: वे कौन से विभिन्न रास्ते हैं जिनके द्वारा मानव प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु (एचआईवी) का संचारण होता है?
उत्तर 10: मानव प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु (एचआईवी) के संक्रमण के विभिन्न रास्ते हैं:
- यौन संचारण: असुरक्षित यौन संबंध (जननांग, मौखिक या गुदा) के माध्यम से।
- रक्त के माध्यम से: संक्रमित रक्त का आदान-प्रदान (जैसे, रक्त संक्रमण, सुई साझा करना)।
- मातृ से बच्चे में: गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान के दौरान संक्रमित माँ से बच्चे को।
- संक्रामक वस्त्रों के माध्यम से: संक्रमित सुइयाँ, रक्त या अन्य उपकरणों का उपयोग।
- संक्रमित अंगों के प्रत्यारोपण: संक्रमित अंगों या ऊतकों का प्रत्यारोपण।
प्रश्न 11: वे कौन सी क्रियाविधि है जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र का ह्रास करता है।
उत्तर 11:
- संक्रमित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् एड्स विषाणु वृहत भक्षकाणु (macrophage) में प्रवेश करता है।
- यहाँ इसका आरएनए जीनोम, विलोम ट्रांसक्रिप्टेज प्रकिण्व (reverse transcriptase enzyme) की मदद से, प्रतिकृति (replication) द्वारा विषाणुवीय डीएनए (viral DNA) बनाता है जो कोशिका में डीएनए में प्रविष्ट होकर, संक्रमित कोशिकाओं में विषाणु कण निर्माण का निर्देशन करता है।
- वृहत भक्षकाणु विषाणु उत्पादन जारी रखते हैं व एचआईवी की उत्पादन फैक्टरी का कार्य करते हैं।
- एचआईवी सहायक टी-लसीकाणु में प्रविष्ट होकर अपनी प्रतिकृति बनाता है व संतति विषाणु उत्पन्न करता है।
- रक्त में उपस्थित संतति विषाणु अन्य सहायक टी-लसीकाणुओं पर हमला करते हैं।
- यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है जिसके परिणामस्वरूप संक्रमित व्यक्ति के शरीर में टी-लसीकाणुओं की संख्या घटती रहती है।
- रोगी ज्वर व दस्त से निरन्तर पीड़ित रहता है, वजन घटता जाता है, रोगी की प्रतिरक्षा इतनी कम हो जाती है कि वह इन प्रकार के संक्रमणों से लड़ने में असमर्थ होता है।
प्रश्न 12: प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर 12:
प्रसामान्य कोशिका (Normal Cell) | कैंसर कोशिका (Cancer Cell) |
---|---|
विकास और विभाजन: नियमित रूप से विभाजित होती हैं और विकास के लिए निर्धारित होते हैं। | विकास और विभाजन: अनियंत्रित और तेजी से विभाजित होती हैं। |
कोशिका चक्र: कोशिका चक्र के नियमों का पालन करती हैं और समय के साथ मरती हैं। | कोशिका चक्र: कोशिका चक्र के नियमों का उल्लंघन करती हैं और अनंतकाल तक जीवित रह सकती हैं। |
संरचना: सामान्य आकार और संरचना होती है। | संरचना: आकार और संरचना में असामान्यता हो सकती है, जैसे आकार में वृद्धि और आकृति में परिवर्तन। |
जीन अभिव्यक्ति: सामान्य जीनों और प्रोटीनों का संतुलित स्तर। | जीन अभिव्यक्ति: आनुवंशिक उत्परिवर्तन होते हैं, जिससे अनियंत्रित वृद्धि के लिए प्रोटीनों का असंतुलित स्तर होता है। |
सिग्नलिंग मार्ग: सामान्य सिग्नलिंग मार्गों का पालन करती हैं। | सिग्नलिंग मार्ग: अनियंत्रित सिग्नलिंग के माध्यम से विकास और विभाजन को बढ़ावा देती हैं। |
एपोप्टोसिस: यदि क्षतिग्रस्त होती हैं, तो स्व-नाश (apoptosis) के माध्यम से मर जाती हैं। | एपोप्टोसिस: क्षति के बावजूद मरती नहीं हैं, जिससे वे अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं। |
संक्रामकता: सामान्य रूप से, ये अन्य ऊतकों में फैलती नहीं हैं। | संक्रामकता: ये अन्य ऊतकों में फैल सकती हैं और ट्यूमर बनाती हैं। |
प्रश्न 13: मैटास्टेसिस का क्या मतलब है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर 13: मेटास्टेसिस की विशेषता दुर्दम अर्बुद द्वारा प्रदर्शित की जाती है। यह कैंसर कोशिकाओं को शरीर के विभिन्न भागों में फैलाने की वैकृतिक प्रक्रिया है। ये कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं, जिससे कोशिकाओं का एक समूह बनता है जिसे अर्बुद (ट्यूमर) कहा जाता है। अर्बुद से, कुछ कोशिकाएँ अलग हो जाती हैं और रक्त प्रवाह में प्रवेश करती हैं। रक्त प्रवाह से, ये कोशिकाएँ शरीर के दूर के हिस्सों तक पहुँचती हैं और इसलिए, सक्रिय रूप से विभाजित होकर नए अर्बुद का निर्माण शुरू करती हैं।
प्रश्न 14: ऐल्कोहल/ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाएँ।
उत्तर 14: ऐल्कोहल और ड्रग के कुप्रयोग से कई हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं, जो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, और आर्थिक स्तर पर देखे जा सकते हैं। यहाँ उनके कुछ प्रमुख हानिकारक प्रभावों की सूची दी गई है:
1. शारीरिक प्रभाव:
- लीवर की बीमारियाँ, जैसे सिरोसिस
- हृदय रोग और उच्च रक्तचाप
- पाचन तंत्र की समस्याएँ
- मस्तिष्क के कार्य में बाधा, जिससे याददाश्त और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है
- प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ता है
- नशे की अधिकता से ओवरडोज़ का खतरा, जो जानलेवा हो सकता है
2. मानसिक प्रभाव:
- अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक विकार
- नशे की लत और उस पर निर्भरता
- आत्मसम्मान में कमी और निराशा की भावना
- व्यवहार में बदलाव जैसे आक्रामकता और चिड़चिड़ापन
- मानसिक संतुलन में कमी, जिससे निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है
3. सामाजिक प्रभाव:
- पारिवारिक और रिश्तों में तनाव
- सामाजिक अलगाव और एकांतप्रियता
- कार्यक्षमता में कमी, जिससे नौकरी छूटने का खतरा बढ़ता है
- अपराध और हिंसा की प्रवृत्ति में वृद्धि
- नशे के कारण दुर्घटनाओं का खतरा, जैसे सड़क हादसे
4. आर्थिक प्रभाव:
- धन का दुरुपयोग, जिससे आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है
- चिकित्सा और पुनर्वास खर्चों में वृद्धि
- नशे की लत के कारण रोजगार खोने का खतरा, जिससे आय में कमी
- कानूनी मुद्दे जैसे जुर्माना या जेल, जो आर्थिक रूप से प्रभावित कर सकते हैं
5. दीर्घकालिक प्रभाव:
- जीवन की गुणवत्ता में कमी
- लंबी अवधि में सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में स्थायी नुकसान
इन सभी प्रभावों के कारण ऐल्कोहल और ड्रग के कुप्रयोग से बचना आवश्यक है, और समय पर सहायता प्राप्त करना चाहिए।
प्रश्न 15: क्या आप ऐसा सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहॉल/ड्रग सेवन के लिए प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं?
उत्तर 15: हाँ, मित्रगण किसी को ड्रग और ऐल्कोहॉल लेने के लिए प्रभावित कर सकते हैं। कोई व्यक्ति खुद को नशीली दवाओं के दुरुपयोग से बचाने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
- ऐल्कोहॉल और ड्रग से दूर रहने के लिए अपनी इच्छाशक्ति बढ़ाएँ। किसी को जिज्ञासा और मनोरंजन के लिए ऐल्कोहॉल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- ड्रग लेने वाले दोस्तों की संगति से बचें।
- माता-पिता और साथियों से मदद लें।
- ड्रग के दुरुपयोग के बारे में उचित जानकारी और सलाह लें। अपनी ऊर्जा को अन्य अतिरिक्त पाठयक्रम गतिविधियों में लगाएँ।
- अगर निराशा और हताशा के लक्षण स्पष्ट हो जाएँ तो मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों से तुरंत पेशेवर और चिकित्सा सहायता लें।
प्रश्न 16: ऐसा क्यों है कि जब कोई व्यक्ति ऐल्कोहॉल या ड्रग लेना शुरू कर देता है तो उस आदत से छुटकारा पाना कठिन होता है? अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए।
उत्तर 16: जब कोई व्यक्ति ऐल्कोहॉल या ड्रग लेना शुरू करता है, तो यह उसके मस्तिष्क में एक रासायनिक प्रतिक्रिया को उत्पन्न करता है, जो उसे तत्काल खुशी और संतोष का अनुभव कराता है। ये पदार्थ डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के स्तर को बढ़ाते हैं, जिससे व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है। धीरे-धीरे, शरीर इन पदार्थों के प्रति निर्भर हो जाता है, जिससे व्यक्ति को उसी आनंद की अनुभूति के लिए अधिक मात्रा में पदार्थ की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, कुप्रयोग से शारीरिक और मानसिक निर्भरता भी विकसित होती है।
जब व्यक्ति इन पदार्थों का सेवन बंद करता है, तो उसे शारीरिक लक्षणों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि बेचैनी, चिंता, और अवसाद, जिससे उसे वापिस कुप्रयोग की ओर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। सामाजिक दबाव, वातावरण और व्यक्तिगत समस्याएँ भी इस प्रक्रिया को जटिल बनाती हैं। इस प्रकार, यह संज्ञानात्मक और शारीरिक निर्भरता के संयोजन के कारण होता है कि ऐल्कोहॉल या ड्रग की आदत से छुटकारा पाना बहुत कठिन होता है।
प्रश्न 17: आपके विचार से किशोरों को ऐल्कोहॉल या ड्रग के सेवन के लिये क्या प्रेरित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर 17: किशोरों को ऐल्कोहॉल या ड्रग का सेवन करने के निर्णय को कई कारक प्रभावित करते हैं। इसमें शामिल हैं:
- जिज्ञासा
- प्रयोग करने की इच्छा
- जोखिम उठाना और उत्तेजना के प्रति आकर्षण
- मित्रों का दबाव
- पारिवारिक इतिहास, यानी अस्थिर या असमर्थकारी पारिवारिक संरचना
- निराशा और उदासी
- तनाव से आराम
- स्वतंत्रता की भावना
- टेलीविजन, फिल्में, समाचार पत्र और इंटरनेट भी इस धारणा को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
निम्नलिखित उपायों से इससे बचा जा सकता है:
- शिक्षा और परामर्श: लोगों को चुनौतियों और तनाव से निपटने तथा बाधाओं और असफलताओं को जीवन का स्वाभाविक हिस्सा मानकर स्वीकार करने के बारे में शिक्षित करना और परामर्श देना।
- माता-पिता और समकक्षियों से सहायता लेना: माता-पिता और समकक्षियों से तुरंत संपर्क करना चाहिए ताकि वे उचित मार्गदर्शन प्रदान कर सकें। करीबी और भरोसेमंद दोस्त भी सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- संकट के संकेतों को देखना: माता-पिता और शिक्षकों को संकट के संकेतों पर नज़र रखने और उन्हें पहचानने का निर्देश दें। भले ही दोस्तों को पता चले कि कोई व्यक्ति ऐल्कोहॉल या ड्रग ले रहा है, लेकिन उन्हें संबंधित व्यक्ति के सर्वोत्तम हित में माता-पिता या शिक्षकों को सूचित करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
- पेशेवर और चिकित्सा सहायता प्राप्त करना: ऐल्कोहॉल या ड्रग के दुरुपयोग के जाल में फंसे लोगों की मदद करने के लिए उच्च योग्य मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों और व्यसन और पुन: स्थापना कार्यक्रमों के रूप में बहुत सारी सहायता उपलब्ध है।
- दवाएँ लिखने और बेचने से पहले क्रॉस-चेकिंग: चिकित्सकों को आदत बनाने वाली दवाएँ केवल वास्तविक व्यक्तियों को और आवश्यक समय के लिए देनी चाहिए। औषधालय को डॉक्टर के निर्धारण के बिना ये दवाएँ नहीं बेचनी चाहिए।
- अनुशासन: निरंतर अनुशासन के साथ अच्छे पालन-पोषण से, लेकिन अत्यधिक सख्ती न बरती जाने से नशे की लत की संभावना कम हो जाती है।
- संचार: बच्चे को अपने माता-पिता से बात करने, किसी भी संदेह पर स्पष्टीकरण मांगने और कक्षा में उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर दोस्तों, भाई-बहनों और अन्य लोगों के साथ चर्चा करने में सक्षम होना चाहिए।
- प्रशंसा: बच्चे की हर छोटी सफलता, अच्छे व्यवहार और अतिरिक्त पाठयक्रम गतिविधियों के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए।
- स्वतंत्र रूप से काम करना: बच्चे को अवसीमा से अधिक जिम्मेदारी न देना और उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने देना। हालाँकि, आवश्यकतानुसार निर्देश प्रदान किए जाने चाहिए।
- अनावश्यक दबाव से बचें: हर बच्चे का अपना व्यक्तित्व होता है, जिसमें प्राथमिकताएँ और विकल्प शामिल होते हैं। उन्हें देखा जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। किसी भी बच्चे से उसकी क्षमताओं से ऊपर प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए, चाहे वह स्कूल में हो या खेलकूद में। इसके अलावा, अतिरिक्त पाठयक्रम गतिविधियाँ।