Biology Class 12 Chapter 8 question answer in Hindi मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

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मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव question answer: Ncert Solution for Class 12 Biology Chapter 8 in Hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectBiology
ChapterChapter 8
Chapter Nameमानव कल्याण में सूक्ष्मजीव ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

क्या आप Biology Class 12 Chapter 8 question answer in Hindi ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव question answer download कर सकते हैं।

प्रश्न 1: जीवाणुओं को नग्न नेत्रों द्वारा नहीं देखा जा सकता, परंतु सूक्ष्मदर्शी कीं सहायता से देखा जा सकता है। यदि आपको अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले जाना हो और सुक्ष्मदर्शी की सहायता से इस नमूने से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करना हो, तो किस प्रकार का नमूना आप अपने साथ ले जायेंगे और क्यों?

उत्तर 1: यदि मुझे अपने घर से जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले जाना हो और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करना हो, तो मैं एक मिट्टी का नमूना या पानी का नमूना (जैसे तालाब या नाले का पानी) ले जाऊंगा।

कारण:

  1. विविधता: मिट्टी और जल में कई प्रकार के सूक्ष्मजीव होते हैं, जैसे बैक्टीरिया, अल्गी, और प्रोटोज़ोआ, जो सूक्ष्मदर्शी में देखे जा सकते हैं।
  2. सहजता: ये नमूने आसानी से एकत्रित किए जा सकते हैं और इनके संग्रहण में कोई विशेष तकनीक की आवश्यकता नहीं होती। मिट्टी को एक साधारण कंटेनर में रखा जा सकता है, और पानी का नमूना भी एक बोतल में आसानी से लाया जा सकता है।
  3. उपयोगिता: इन नमूनों का अध्ययन सूक्ष्मजीवों के गुण, जैसे उनकी संरचना, आकार, और जीवन चक्र को समझने में मदद करता है।
  4. प्रयोग की क्षमता: प्रयोगशाला में, इन नमूनों पर विभिन्न परीक्षण किए जा सकते हैं, जैसे कल्चरिंग या रंगद्रव्य परीक्षण, ताकि सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को और अधिक सटीकता से प्रदर्शित किया जा सके।

इसलिए, मिट्टी या पानी का नमूना सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करने के लिए सर्वोत्तम विकल्प होंगे।

प्रश्न 2: उपापचय के दौरान सूक्ष्मजीव गैसों का निष्कासन करते हैं; उदाहरण द्वारा सिद्ध करें।

उत्तर 2: ऐसे कई उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि सूक्ष्मजीव अपने उपापचय के दौरान गैसों का निष्कासन करते हैं। उदाहरण इस प्रकार हैं:

किण्वन प्रक्रिया:

  • उदाहरण: ब्रेड बनाने की प्रक्रिया में यीस्ट का उपयोग होता है, जिसमें ब्रेड के आटे में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के बुलबुले बनते हैं, जिससे ब्रेड फूलती है।
  • यीस्ट (खमीर) जैसे सूक्ष्मजीवों द्वारा किण्वन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और इथेनॉल (alcohol) का निर्माण होता है। जब यीस्ट ग्लूकोज का अपघटन करते हैं, तो वह ऊर्जा प्राप्त करने के साथ CO₂ और इथेनॉल छोड़ते हैं।

स्विस चीज़ का निर्माण:

  • आपने प्रोपिओनिबैक्टीरियम शारमैनाई का उल्लेख किया, जो स्विस चीज़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह बैक्टीरिया किण्वन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करते हैं, जिससे बड़े छिद्र बनते हैं।
  • स्वाद: यह प्रक्रिया स्विस चीज़ को उसका विशेष स्वाद और बनावट प्रदान करती है।

प्रश्न 3: किस भोजन (आहार) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिलते हैं? इनके कुछ लाभप्रद उपयोगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर 3: लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया वाले खाद्य पदार्थ: दही, छाछ, आचार (Pickles)

लाभप्रद उपयोग:

  • स्वास्थ्य लाभ: मानसिक स्वास्थ्य और वजन प्रबंधन में सहायक हो सकते हैं।
  • पाचन स्वास्थ्य: आंतों में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देकर पाचन में सुधार करते हैं।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली: रोगों से लड़ने में मदद करते हैं।
  • सुधारित पोषण: विटामिन B12 और K का उत्पादन करते हैं।
  • खाद्य संरक्षण: खाद्य पदार्थों की शेल्फ लाइफ बढ़ाते हैं।

प्रश्न 4: कुछ पारंपरिक भारतीय आहार जो गेहूँ, चावल तथा चना (अथवा उनके उत्पाद) से बनते हैं और उनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग शामिल हो, उनके नाम बताएँ।

उत्तर 4: कुछ पारंपरिक भारतीय आहार जो गेहूँ, चावल, और चना (या उनके उत्पादों) से बनते हैं और जिनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग होता है, वे निम्नलिखित हैं:

इडली (चावल और उड़द की दाल): इडली बनाने के लिए चावल और उड़द की दाल को पीसकर उनका घोल तैयार किया जाता है, जिसे खमीर (फर्मेंटेशन) के लिए छोड़ दिया जाता है। इसमें लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया का प्रयोग होता है।

डोसा (चावल और उड़द की दाल): डोसा भी इडली की तरह ही चावल और उड़द की दाल के मिश्रण से बनता है। इसका घोल फर्मेंट करके पतली परत बनाई जाती है, जिसे तवे पर पकाया जाता है।

धोकला (बेसन): यह चने के आटे (बेसन) से बनता है। बेसन के घोल को खमीर उठाने के लिए गर्म स्थान पर रखा जाता है, जिससे इसमें खमीर उठता है और इसे पकाने पर यह फूला हुआ बनता है।

कनजी (काले गाजर और चावल): कनजी एक पारंपरिक पेय है, जिसे चावल और काले गाजर के साथ बनाया जाता है। इसे खमीरित (फर्मेंट) किया जाता है जिससे इसमें प्रोबायोटिक गुण उत्पन्न होते हैं।

कढ़ी (बेसन): कढ़ी बनाने के लिए दही और बेसन का प्रयोग होता है। दही में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया इसकी फर्मेंटेशन में मदद करते हैं।

प्रश्न 5: हानिप्रद जीवाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले रोगों के नियंत्रण में किस प्रकार सूक्ष्मजीव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?

उत्तर 5: हानिकारक जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न रोगों के नियंत्रण में सूक्ष्मजीव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस नियंत्रण के कुछ प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं:

1. प्रतिस्पर्धा: लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और अन्य प्रोबायोटिक्स हानिकारक बैक्टीरिया के लिए पोषण सामग्री के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे उनके विकास और फैलने में कमी आती है।

2. एंटीबायोटिक उत्पादन: कई सूक्ष्मजीव, जैसे स्टेफाइलोकोकस और एक्टिनोबैक्टीरिया, एंटीबायोटिक यौगिकों का उत्पादन करते हैं। ये यौगिक हानिकारक बैक्टीरिया को मारने या उनकी वृद्धि को रोकने में सहायक होते हैं।

3. किण्वन प्रक्रिया: किण्वन से उत्पन्न लैक्टिक एसिड और अन्य यौगिक हानिकारक बैक्टीरिया के लिए एक असहनीय वातावरण बनाते हैं, जिससे उनकी संख्या में कमी आती है। उदाहरण के लिए, दही और अन्य किण्वित खाद्य पदार्थों में यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है।

4. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना: कुछ सूक्ष्मजीव, जैसे प्रोबायोटिक्स, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाते हैं, जिससे शरीर हानिकारक जीवाणुओं से बेहतर तरीके से लड़ सकता है। यह शरीर के संक्रमणों से बचाव में सहायक होता है।

5. पैथोजन के अवशोषण में कमी: कुछ सूक्ष्मजीव, जैसे बैक्टीरियोफेज, विशेष रूप से हानिकारक बैक्टीरिया पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट करते हैं। इससे पैथोजन की संख्या में कमी आती है।

प्रश्न 6: किन्हीं दो कवक प्रजातियों के नाम लिखें, जिनका प्रयोग प्रतिजैविकों (ऐंटीबॉयोटिकों) के उत्पादन में किया जाता है।

उत्तर 6: प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिकों) के उत्पादन में उपयोग की जाने वाली दो प्रमुख कवक प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं:

पेनिसिलियम नॉटेटम (Penicillium notatum): यह कवक पेनिसिलिन नामक सबसे पहले खोजे गए एंटीबायोटिक का उत्पादन करता है। पेनिसिलिन का उपयोग बैक्टीरियल संक्रमणों के उपचार में किया जाता है।

स्ट्रेप्टोमाइसिस ग्रिसियस (Streptomyces griseus): यह कवक स्ट्रेपटोमाइसिन का उत्पादन करता है, जो विशेष रूप से तपेदिक (Tuberculosis) और अन्य बैक्टीरियल संक्रमणों के उपचार में प्रभावी है।

प्रश्न 7: वाहितमल से आप क्या समझते हैं, वाहितमल हमारे लिए किस प्रकार से हानिप्रद हैं?

उत्तर 7: वाहितमल एक सामूहिक शब्द है जिसका उपयोग शहरों और नगरों में उत्पन्न होने वाले नगरपालिका व्यर्थ जल (तरल और ठोस दोनों तरह के व्यर्थ जल) के लिए किया जाता है और इसे नाली में बहा दिया जाता है। रासायनिक रूप से, वाहित मल लगभग 99% पानी और 1% ठोस अपशिष्ट से बना होता है, जिसमें अकार्बनिक और कार्बनिक दोनों तरह के पदार्थ शामिल होते हैं।

वाहितमल में जीवाणु (कोलीफॉर्म, स्ट्रेप्टोकोकी, क्लॉस्ट्रिडिया, लैक्टोबैसिली), माइक्रोफंगी, प्रोटोजोआ और माइक्रोएल्गी होते हैं। उचित वाहितमल निपटान महत्वपूर्ण है क्योंकि नदियों और अन्य जल निकायों में अपचारित वाहितमल निम्नलिखित तरीकों से हानिकारक हो सकता है:

  • इससे जीवाणु जल जनित रोगों बीमारियाँ फैलती हैं।
  • इससे पानी में घुली ऑक्सीजन (DO) कम हो सकती है। ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी से वायुवीय जलीय जीवाणु के नष्ट होने की संभावना है।
  • अपचारित वाहितमल से ख़राब गंध उत्पन्न होती है।
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प्रश्न 8: प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहितमल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अंतर कौन से हैं?

उत्तर 8: प्राथमिक और द्वितीयक वाहितमल उपचार के बीच मुख्य अंतर ये हैं: 

  • प्राथमिक वाहितमल उपचार में बड़े कणों और बहते हुए कूड़े-करकट को अलग किया जाता है। यह भौतिक विधि है। वहीं, द्वितीयक वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीवों की मदद से जैवनिम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थों को हटाया जाता है। इसे जैविक उपचार भी कहा जाता है।
  • प्राथमिक वाहितमल उपचार में अवसादन और निस्यंदन की प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया साधारण और कम समय लेती है। वहीं, द्वितीयक वाहितमल उपचार में प्राथमिक बहिःस्राव को बड़े वायवीय टैंकों में से गुजारा जाता है। वहां, यह लगातार यांत्रिक रूप से हिलाया जाता है और इसमें वायु पंप की जाती है।

प्रश्न 9: सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है। यदि हाँ, तो किस प्रकार से इस पर विचार करें?

उत्तर 9: हां, सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में किया जा सकता है: 

1. बायोफ्यूल उत्पादन: एथेनॉल: कुछ सूक्ष्मजीव, जैसे जीनस ज़ीमोनास और स्ट्रेप्टोमाइसिस, कार्बोहाइड्रेट्स को किण्वित करके एथेनॉल का उत्पादन करते हैं, जो एक महत्वपूर्ण बायोफ्यूल है। एथेनॉल का उपयोग वाहनों में ईंधन के रूप में किया जाता है। बायोडीज़ल: कुछ अल्गी और फफूंद (फंगस) वसा के किण्वन से बायोडीज़ल का उत्पादन कर सकते हैं, जो पारंपरिक डीज़ल का एक स्वच्छ विकल्प है।

2. मिथेन उत्पादन: माइक्रोबियल मेटानोजेनेसिस: कुछ सूक्ष्मजीव, जैसे मेथानोजेन्स, जैविक अपशिष्ट को टूटने पर मिथेन गैस का उत्पादन करते हैं। इस मिथेन का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सकता है, जैसे कि बिजली उत्पादन में या बायोगैस संयंत्रों में।

3. सूक्ष्मजीवों द्वारा बिजली उत्पादन: माइक्रोबियल फ्यूल सेल्स: सूक्ष्मजीवों का उपयोग माइक्रोबियल फ्यूल सेल्स में किया जा सकता है, जो जैविक सामग्री को ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। यह प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनों को उत्पन्न करती है, जिन्हें विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 10: सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रसायन उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग को कम करने के लिए भी किया जा सकता है। यह किस प्रकार संपन्न होगा? व्याख्या कीजिए।

उत्तर 10: सूक्ष्मजीवों का उपयोग रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिए जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों के रूप में किया जा सकता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार से संपन्न होती है:

1. जैव उर्वरक (Biofertilizers):

  • नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation): राइजोबियम, एजोटोबैक्टर और ब्लू-ग्रीन शैवाल (BGA) जैसे सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन-फिक्सेशन करते हैं। ये वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन को पौधों द्वारा उपयोगी अमोनिया में बदलते हैं, जिससे पौधों को नाइट्रोजन की पूर्ति होती है। इससे रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
  • फॉस्फोरस का घुलन (Phosphorus Solubilization): कुछ सूक्ष्मजीव जैसे माइकोराइजा और फॉस्फेट सॉल्युबिलाइजिंग बैक्टीरिया मिट्टी में उपस्थित अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील रूप में परिवर्तित करते हैं, जिससे पौधों की फॉस्फोरस की आवश्यकता पूरी होती है।

2. जैव कीटनाशक (Biopesticides):

  • कीटों का नियंत्रण (Pest Control): बैसिलस थुरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis या Bt) जैसे सूक्ष्मजीव कीटों के खिलाफ विषाक्त पदार्थ पैदा करते हैं। यह कीटों के शरीर में जाकर उनके पाचन तंत्र को नष्ट कर देते हैं, जिससे कीट मर जाते हैं। यह रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत को कम करता है।
  • रोग नियंत्रण (Disease Control): ट्राइकोडर्मा और पेसिलोमायसिस जैसे कवक (fungi) का उपयोग पौधों की जड़ों के पास करके फफूंद और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट किया जा सकता है। यह पौधों को रोगों से बचाते हैं और इस तरह रासायनिक कवकनाशियों का उपयोग कम करते हैं।

प्रश्न 11: जल के तीन नमूने लो एक-नदी का जल, दूसरा अनुपचारित वाहित मल जल तथा तीसरा-वाहित मल उपचार संयत्र से निकला द्विंतीयक बहि:स्राव; इन तीनों नमूनों पर ‘अ’ ‘ब’ ‘स’ के लेबल लगाओ। इस बारे में प्रयोगशाला कर्मचारी को पता नहीं है कि कौन सा क्या है? इन तीनों नमूनों ‘अ’ ‘ब’ ‘स’ का बीओडी का रिकार्ड किया गया जो क्रमश: 20 mg/L, 8 mg/L, तथा 400 mg/L, निकाला। इन नमूनों में कौन सा सबसे अधिक प्रदूषित नमूना है? इस तथ्य को सामने रखते हुए कि नदी का जल अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ है। क्या आप सही लेबल का प्रयोग कर सकते हैं?

उत्तर 11: इस प्रश्न में हमें तीन जल नमूनों ‘अ’, ‘ब’, और ‘स’ का बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) का रिकॉर्ड दिया गया है, जो क्रमशः 20 mg/L, 8 mg/L और 400 mg/L है। बीओडी का मतलब होता है कि पानी में कितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है ताकि उसमें मौजूद कार्बनिक पदार्थों का विघटन हो सके। अधिक बीओडी का मतलब होता है कि जल में अधिक मात्रा में जैविक प्रदूषण है।

बीओडी के आधार पर सबसे अधिक और सबसे कम प्रदूषित जल नमूनों की पहचान कर सकते हैं:

  1. बीओडी 400 mg/L वाला नमूना सबसे अधिक प्रदूषित है। यह संभवतः अनुपचारित वाहित मल जल है क्योंकि इसमें जैविक पदार्थ की मात्रा सबसे अधिक है और इसे विघटित करने के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
  2. बीओडी 20 mg/L वाला नमूना मध्यम प्रदूषण दर्शाता है। यह संभवतः वाहित मल उपचार संयत्र से निकला द्विंतीयक बहि:स्राव है क्योंकि उपचारित जल में बीओडी कम होती है, लेकिन फिर भी यह नदी के पानी की तुलना में अधिक हो सकता है।
  3. बीओडी 8 mg/L वाला नमूना सबसे कम प्रदूषित है। यह नदी का जल है क्योंकि प्राकृतिक जल में बीओडी की मात्रा कम होती है।

इस प्रकार, सही लेबलिंग होगी:

  • ‘स’ – अनुपचारित वाहित मल जल (400 mg/L)
  • ‘अ’ – वाहित मल उपचार संयत्र से निकला द्विंतीयक बहि:स्राव (20 mg/L)
  • ‘ब’ – नदी का जल (8 mg/L)

इस प्रकार, सबसे अधिक प्रदूषित नमूना ‘स’ है, जिसमें बीओडी 400 mg/L है।

प्रश्न 12: उन सूक्ष्मजीवों के नाम बताओ जिनसे साइक्लोस्पोरिन-ए (प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) तथा स्टैटिन (रक्त कोलिस्ट्रॉल लघुकरण कारक) को प्राप्त किया जाता है।

उत्तर 12: साइक्लोस्पोरिन-ए (प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) कवक ट्राइकोडर्मा पॉलीस्पोरम से प्राप्त की जाती है, जबकि स्टैटिन (रक्त कोलिस्ट्रॉल लघुकरण कारक) यीस्ट मोनॉस्कस परप्यूरीअस से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 13: निम्नलिखित में सूक्ष्मजीवियों की भूमिका का पता लगाओ तथा अपने अध्यापक से इनके विषय में विचार-विमर्श करें।
(क) एकल कोशिका प्रोटीन (एससीपी)
(ख) मृदा

उत्तर 13: (क) एकल कोशिका प्रोटीन (एससीपी): हानिरहित सूक्ष्मजीवी कोशिकाओं को संदर्भित करता है जिसका प्रयोग अच्छे प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोत के रूप में किया जा सकता है। जैसे मशरूम (एक कवक) बहुत से लोगों के द्वारा खाया जाता है तथा एथलीट्स द्वारा प्रोटीन स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार, सूक्ष्मजीवी कोशिकाओं के अन्य रूपों को भी प्रोटीन, खनिज, वसा, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन समृद्ध भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। स्पिरुलीना और मेथिलोफिलस मिथाइलोट्रॉफ़स जैसे सूक्ष्मजीवों को औद्योगिक स्तर पर आलू के पौधों, पुआलों, गुड़, पशु खाद और वाहितमल से अपशिष्ट जल जैसे स्टार्च युक्त सामग्री पर उगाया जा रहा है। इन एकल कोशिकीय सूक्ष्मजीवों को स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

(ख) मृदा: मृदा उर्वरता बनाए रखने में सूक्ष्मजीव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपघटन की प्रक्रिया के द्वारा पोषक तत्व से समृद्ध ह्यूमस के निर्माण में सहायता करते हैं। बैक्टीरिया और साइनोबैक्टीरिया की कई प्रजातियों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को प्रयोग करने योग्य रूप में स्थिर करने की क्षमता होती है। राइजोबियम के सहजीवी संबंध द्वारा लैग्यूमिनस ग्रंथियों का निर्माण होता है जो पादप की जड़ों पर स्थित होते हैं। ऐजोस्पाइरिलम तथा ऐजोबैक्टर वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं जो मृदा में मुक्तावस्था में रहते हैं।

प्रश्न 14: निम्नलिखित को घटते क्रम में मानव समाज कल्याण के प्रति उनके महत्त्व के अनुसार संयोजित करें ; महत्त्वपूर्ण पदार्थ को पहले रखते हुए कारणों सहित अपना उत्तर लिखें।
बायोगैस, सिट्रिक एसिड, पैनीसिलिन तथा दही

उत्तर 14: मानव समाज कल्याण के प्रति महत्त्व के अनुसार निम्नलिखित पदार्थों को घटते क्रम में संयोजित किया जा सकता है: पैनीसिलिन > बायोगैस > दही > सिट्रिक एसिड

पैनीसिलिन एक एंटीबायोटिक है जो संक्रमण और बीमारियों के कारक रोगज़नक़ों को मारने में मदद करता है और इस प्रकार, यह जीवन बचाता है।

• बायोगैस एक गैर-प्रदूषणकारी स्वच्छ ईंधन है जो वाहितमल उपचार के उत्पादन द्वारा उत्पन्न किया जाता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में खाना बनाने और प्रकाश व्यवस्था के लिए प्रयोग किया जाता है।

• दही अच्छे पोषक तत्वों से भरपूर होता है तथा विटामिन-बी 12 की अधिक मात्रा पेट के हानिकारक बैक्टीरिया को सहायक बैक्टीरिया में बदल देता है।

• साइट्रिक एसिड भोजन के परिरक्षक के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 15: जैव उर्वरक किस प्रकार से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं?

उत्तर 15: जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों के मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लैग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर स्थित राइजोबियम के सहजीवी संबंध द्वारा ग्रंथियों का निर्माण होता है। यह जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। पादप इसका प्रयोग पोषकों के रूप में करते हैं। अन्य जीवाणु मृदा में मुक्तावस्था में रहते हैं। यह भी वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन अवयव बढ़ जाते हैं।

ग्लोमस जीनस के बहुत से सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं। कवकीय सहजीवी मृदा से फास्फोरस का अवशोषण कर उसे पादपों में भेज देते हैं। ऐसे संबंधों से युक्त पादप कई अन्य लाभ जैसे- पादप में मूलवातोढ़ रोगजनक के प्रति प्रतिरोधकता, लवणता तथा सूखे के प्रति सहनशीलता तथा कुलवृद्धि तथा विकास प्रदर्शित करते हैं। सायनोबैक्टीरिया स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमंडल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें बहुत से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर सकते हैं, जैसे- ऐनाबीना, नॉसटॉक, ऑसिलेटोरिया आदि।

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