Chemistry Class 12 Chapter 10 exercise solutions in hindi: Class 12 Chemistry Chapter 10 Question answer in Hindi
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Chemistry |
Chapter | Chapter 10 |
Chapter Name | जैव-अणु Class 12 ncert solutions in hindi |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 10.1: मोनोसैकेराइड क्या होते हैं?
उत्तर 10.1: मोनोसैकेराइड सरलतम प्रकार के कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो साधारण शर्करा के रूप में जाने जाते हैं। ये ऐसे कार्बनिक यौगिक हैं जिनमें कार्बन (C), हाइड्रोजन (H), और ऑक्सीजन (O) का अनुपात सामान्यतः Cn(H2O)n होता है, जहाँ n तीन या अधिक होता है। इन्हें “सरल शर्करा” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्हें हाइड्रोलिसिस (जल अपघटन) द्वारा और छोटे शर्करा अणुओं में नहीं तोड़ा जा सकता।
उदाहरण:
- एल्डोज़ (Aldoses):
- जिन मोनोसैकेराइड्स में एल्डीहाइड समूह (CHO) होता है।
- उदाहरण: ग्लूकोज, गैलेक्टोज।
- कीटोज़ (Ketoses):
- जिनमें कीटोन समूह (C=O) होता है।
- उदाहरण: फ्रक्टोज।
प्रश्न 10.2: अपचायी शर्करा क्या होती है?
उत्तर 10.2: अपचायी शर्करा वे कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो ऑक्सीडाइजिंग एजेंट, जैसे टॉलेन अभिकर्मक या फेहलिंग विलयन, को इलेक्ट्रॉन प्रदान करके अपचयित करते हैं, अपचायी शर्कराएँ कहलाते हैं। इस प्रक्रिया में टॉलेन अभिकर्मक चांदी का दर्पण बनाता है, और फेहलिंग विलयन लाल अवक्षेप (कॉपर(I) ऑक्साइड) देता है।
- मोनोसैकेराइड्स (जैसे ग्लूकोज, फ्रक्टोज) और कुछ डाइसैकेराइड्स (जैसे माल्टोज और लैक्टोज) अपचयी शर्कराएँ हैं।
- सुक्रोज अपवाद है क्योंकि यह अपचय नहीं करता।
प्रश्न 10.3: पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो मुख्य कार्यों को लिखिए।
उत्तर 10.3: पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:
1. संरचनात्मक कार्य:
- कार्बोहाइड्रेट जैसे सेलूलोज पौधों की कोशिका भित्ति का मुख्य घटक है।
- यह कोशिकाओं को यांत्रिक समर्थन प्रदान करता है और पौधों को अपनी संरचना बनाए रखने में मदद करता है।
2. ऊर्जा भंडारण और आपूर्ति:
- कार्बोहाइड्रेट जैसे स्टार्च ऊर्जा भंडारण के लिए कार्य करता है।
- पौधे इसे जल अपघटन (Hydrolysis) के माध्यम से तोड़कर आवश्यकतानुसार ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
- इसके अलावा, ग्लूकोज और फ्रक्टोज जैसे साधारण शर्कराएँ तुरंत ऊर्जा प्रदान करती हैं।
- जैव-ऊर्जा उत्पादन का उदाहरण: C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा (2880 kJ)
प्रश्न 10.4: निम्नलिखित को मोनोसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड में वर्गीकृत कीजिए – राइबोस, 2-डिऑक्सीराइबोस, माल्टोस, गैलेक्टोस, फ्रक्टोस तथा लैक्टोस
उत्तर 10.4:
- मोनोसैकेराइड :राइबोस, 2-डीऑक्सीराइबोस, गैलेक्टोस, तथा फ्रक्टोस।
- डाइसैकेराइड :माल्टोस तथा लैक्टोस।
प्रश्न 10.5: ग्लाइकोसाइडी बंध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर 10.5: ग्लाइकोसाइडी बंध वह सहसंयोजक बंध है जो दो शर्करा अणुओं (या एक शर्करा और किसी अन्य अणु) के बीच बनता है। यह बंध तब बनता है जब एक शर्करा अणु के हाइड्रॉक्सिल समूह (-OH) और दूसरे अणु के हाइड्रॉक्सिल समूह के बीच जल अणु (H₂O) के निष्कासन (डिहाइड्रेशन) से एक नया बंध बनता है।
इस बंध को मुख्यतः ओ-ग्लाइकोसाइडी बंध कहा जाता है, क्योंकि यह ऑक्सीजन परमाणु के माध्यम से जुड़ता है। उदाहरण के लिए, माल्टोज़ (डाईसैकेराइड) में ग्लूकोज के दो अणु एक दूसरे से α-1,4-ग्लाइकोसाइडी बंध द्वारा जुड़े होते हैं।
उदाहरण:
- माल्टोज़: ग्लूकोज + ग्लूकोज (α-1,4-ग्लाइकोसाइडी बंध)
- सुक्रोज़: ग्लूकोज + फ्रक्टोज (α-1,2-ग्लाइकोसाइडी बंध)
- सेलूलोज: β-1,4 ग्लाइकोसाइडी बंध से जुड़ा हुआ पॉलिमर।
प्रश्न 10.6: ग्लाइकोजन क्या होता है तथा ये स्टार्च से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर 10.6: जंतुओं के शरीर में कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहता हैं। इसे जंतु स्टार्च भी कहते हैं, क्योंकि इसकी संरचना ऐमाइलोपेक्टिन के समान होती है, लेकिन यह इससे अत्यधिक शाखित होता है। यह यकृत तथा पेशियों में संचित रहता है।
जब हमारे शरीर को ग्लूकोस की आवश्यकता होती है तब एन्जाइम ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में परिवर्तित कर देते हैं। दूसरी ओर, स्टार्च ऐमाइलोस (15-20%) जो कि जल में विलेय होता है तथा ऐमाइलोपेक्टिन (80-85%) जो कि जल में अविलेय होता है का मिश्रण होता है। ग्लाइकोजन तथा ऐमाइलोपेक्टिन दोनों α-D-ग्लूकोस के शाखित बहुलक होते हैं। स्टार्च पौधों का प्रमुख संचित पॉलीसैकैराइड होता है।
प्रश्न 10.7: (अ) सुक्रोस तथा
(ब) लैक्टोस के जल-अपघटन से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर 10.7: (अ) सुक्रोज: सुक्रोज के जल-अपघटन (हाइड्रोलिसिस) से दो मोनोसैकेराइड प्राप्त होते हैं:
- ग्लूकोज
- फ्रक्टोज
अभिक्रिया:
C12H22O11 + H2O \(\xrightarrow{\text{Invertase}}\) C6H12O6(ग्लूकोज) + C6H12O6(फ्रक्टोज)
(ब) लैक्टोज: लैक्टोज के जल-अपघटन से दो मोनोसैकेराइड प्राप्त होते हैं:
- ग्लूकोज
- गैलेक्टोज
अभिक्रिया:
C12H22O11 + H2O \(\xrightarrow{\text{Lactase}}\) C6H12O6(ग्लूकोज) + C6H12O6(फ्रक्टोज)
प्रश्न 10.8: स्टार्च तथा सेलुलोस में मुख्य संरचनात्मक अंतर क्या है?
उत्तर 10.8: स्टार्च और सेलुलोज के मुख्य संरचनात्मक अंतर निम्नलिखित हैं:
1. रासायनिक संरचना:
- स्टार्च: इसमें α-ग्लाइकोसाइडिक बंध (α-1,4 और α-1,6) होते हैं।
- सेलुलोज: इसमें β-ग्लाइकोसाइडिक बंध (β-1,4) होते हैं।
2. शाखा संरचना (Branching):
- स्टार्च: यह शाखित और बिना शाखा दोनों प्रकार का हो सकता है।
- एमाइलोज: बिना शाखाओं वाला।
- एमाइलोपेक्टिन: शाखाओं वाला।
- सेलुलोज: यह सीधा, बिना शाखाओं वाला पॉलिमर है।
3. मोनोमर्स (मूल इकाइयाँ):
- स्टार्च: ग्लूकोज की α-आकारिकी (anomer) इकाइयों से बना होता है।
- सेलुलोज: ग्लूकोज की β-आकारिकी इकाइयों से बना होता है।
4. बनावट:
- स्टार्च: यह गोल घुमावदार (helical) संरचना बनाता है।
- सेलुलोज: यह रैखिक (linear) संरचना बनाता है और हाइड्रोजन बंधों से मजबूत फाइबर बनाता है।
5. कार्य:
- स्टार्च: पौधों में ऊर्जा भंडारण का मुख्य स्रोत।
- सेलुलोज: पौधों की कोशिका भित्ति का मुख्य संरचनात्मक घटक।
6. पाचन:
- स्टार्च: यह एंजाइम (जैसे एमाइलेज) द्वारा पच सकता है।
- सेलुलोज: मनुष्यों में पाचन नहीं होता क्योंकि β-ग्लाइकोसाइडिक बंध तोड़ने वाले एंजाइम (सेलुलेस) मौजूद नहीं होते।
सारणीबद्ध तुलना:
गुणधर्म | स्टार्च | सेलुलोज |
---|---|---|
बंध | α-ग्लाइकोसाइडिक | β-ग्लाइकोसाइडिक |
संरचना | शाखित या घुमावदार | रैखिक |
कार्य | ऊर्जा भंडारण | संरचनात्मक समर्थन |
पाचन | पचने योग्य | अपाच्य (मनुष्यों में) |
स्टार्च और सेलुलोज ग्लूकोज से बने होते हुए भी उनके बंध और संरचना में अंतर के कारण उनके गुण और कार्य भिन्न होते हैं।
प्रश्न 10.9: क्या होता है जब D-ग्लूकोस की अभिक्रिया निम्नलिखित अभिकर्मकों से करते हैं?
(i) HI
(ii) ब्रोमीन जल
(iii) HNO3
उत्तर 10.9: (i)
प्रश्न 10.10: ग्लूकोस की उन अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो इसकी विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकतीं।
उत्तर 10.10: निम्नलिखित अभिक्रियाएँ ग्लूकोस की विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकती हैं, इन्हें बॉयर ने प्रस्तावित किया था
- ऐल्डिहाइड समूह उपस्थित होते हुए भी ग्लूकोस 2 , 4 – DNP परीक्षण तथा शिफ़-परीक्षण नहीं देता एवं यह NaHSO3 के साथ हाइड्रोजन सल्फाइड योगज उत्पाद नहीं बनाता।
- ग्लूकोस का पेन्टाऐसीटेट, हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता जो मुक्त —CHO समूह की अनुपस्थिति को इंगित करता है।
- जब D-ग्लूकोस को शुष्क हाइड्रोजन क्लोराईड गैस की उपस्थिति में मेथेनॉल के साथ अभिकृत कराया जाता है, तब यह दो समावयव मोनोमेथिल व्युत्पन्न देता है जिन्हें मेथिल -α – D-ग्लूकोसाइड तथा मेथिल β-D-ग्लूकोसाइड के नाम से जाना जाता है। ये ग्लूकोसाइड फेहलिंग विलयन को अपचयित नहीं करते तथा हाइड्रोजन सायनाइड अथवा हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं तथा मुक्त -CHO समूह की अनुपस्थिति को इंगित करते हैं।
प्रश्न 10.11: आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्ल क्या होते हैं? प्रत्येक प्रकार के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर 10.11: (i) आवश्यक ऐमीनो अम्ल (Essential amino acids) :
ऐमीनो अम्ल जिनकी आवश्यकता मानव स्वास्थ्य तथा वृद्धि के लिए होती है, लेकिन इनका संश्लेषण मनुष्य के शरीर में नहीं होता है, आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं; जैसे-वेलिन, ल्यूसीन, फेनिलऐलानीन आदि।
(ii) अनावश्यक ऐमीनो अम्ल (Non-essential amino acids) :
ऐमीनो अम्ल जिनकी आवश्यकता मानव स्वास्थ्य तथा वृद्धि के लिए होती है तथा जिनका संश्लेषण मानव शरीर में होता है, अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं; जैसे-ग्लाइसीन, ऐलानीन, ऐस्पार्टिक अम्ल आदि।
प्रश्न 10.12: प्रोटीन के सन्दर्भ में निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए-
(i) पेप्टाइड बन्ध
(ii) प्राथमिक संरचना
(iii) विकृतीकरण।
उत्तर 10.12:
(i) पेप्टाइड बंध (Peptide Bond):
- यह कोवैलेंट बंध है, जो दो अमीनो अम्लों के बीच बनता है।
- कैसे बनता है?
- एक अमीनो अम्ल का कार्बोक्सिल समूह (-COOH) और दूसरे अमीनो अम्ल का एमिनो समूह (-NH2) मिलकर पानी का अणु ( H2O ) हटाते हैं, और (-CO-NH-) बंध बनता है।
- इस प्रक्रिया को संयोग अभिक्रिया कहते हैं।
- उदाहरण: ग्लाइसीन और एलैनिन का संयोग ग्लाइसिलऐलैनिन नामक डाइपेप्टाइड बनाता है।
(ii) प्राथमिक संरचना:
- प्रोटीन की प्राथमिक संरचना में अमीनो अम्ल एक विशिष्ट क्रम में जुड़ते हैं, जिसे एमिनो अम्ल अनुक्रम कहते हैं।
- यह संरचना प्रोटीन के जैविक कार्य को निर्धारित करती है।
- महत्त्व: अगर इस संरचना में कोई बदलाव (जैसे अमीनो अम्ल के क्रम में परिवर्तन) हो जाए, तो प्रोटीन का प्रकार और उसका कार्य बदल सकता है।
(iii) विकृतीकरण:
- विकृतीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें प्रोटीन की द्वितीयक (2°) और तृतीयक (3°) संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, लेकिन प्राथमिक संरचना (1°) अप्रभावित रहती है।
- यह प्रक्रिया प्रोटीन की जैविक सक्रियता को समाप्त कर देती है।
- कारण:
- भौतिक परिवर्तन: जैसे अत्यधिक तापमान।
- रासायनिक परिवर्तन: जैसे pH में बदलाव।
- उदाहरण:
- उबालने पर अंडे की सफेदी का जमना।
- दूध का दही में बदलना।
प्रश्न 10.13: प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या हैं?
उत्तर 1.13: किसी प्रोटीन की द्वितीयक संरचना का सम्बन्ध उस आकृति से है जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला विद्यमान होती है। यह दो भिन्न प्रकार की संरचनाओं में विद्यमान होती हैं α – हेलिक्स तथा β – प्लीटेड शीट संरचना। ये संरचनाएँ पेप्टाइड आबन्ध के \( \begin{matrix} O \\ \parallel \\ -C- \end{matrix}\) तथा – NH -समूह के मध्य हाइड्रोजन आबन्ध के कारण पॉलिपेप्टाइड की मुख्य श्रृंखला के नियमित कुण्डलन में उत्पन्न होती हैं।
α-हेलिक्स संरचना एक ऐसी संरचना है जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला में सभी संभव हाइड्रोजन आबंध बन सकते हैं। इसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला दक्षिणावर्ती पेंच के सामन मुड़ी रहती है फलस्वरूप प्रत्येक ऐमीनो अम्ल अवशिष्ट का –NH समूह, कुंडली के अगले मोड़ पर स्थित ∖C=O/ समूह के साथ हाइड्रोजन आबंध बनता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
प्रोटीन की α-कुंडलिनि संरचना
β-संरचना में सभी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएँ लगभग अधिकतम विस्तार तक खिंची रहकर एक दूसरे के पार्श्व में स्थित होती हैं तथा आपस में अंतराआण्विक हाइड्रोजन आबंध द्वारा जुड़ी रहती हैं। यह संरचना वस्त्रों में प्लीट के समान होती है अतः इसको β-प्लीटेड शीट कहते हैं।
प्रोटीन की β-प्लीटेड शीट संरचना
प्रश्न 10.14: प्रोटीन की α-हेलिक्स संरचना के स्थायीकरण में कौन-से आबंध सहायक होते हैं?
उत्तर 10.14: प्रोटीन की z-हेलिक्स संरचना एक ऐमीनो अम्ल अवशिष्ट के C=0 तथा चतुर्थ ऐमीनो अम्ल अवशेष के N – H के मध्य अन्तरा – आणविक H-आबन्ध द्वारा स्थायित्व प्राप्त करती है।
प्रश्न 10.15: रेशेदार तथा गोलिकाकार (globular) प्रोटीन को विभेदित कीजिए।
उत्तर 10.15: रेशेदार प्रोटीन (Fibrous proteins): जब पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएँ समानांतर होती हैं तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड आबंधों द्वारा संयुक्त रहती हैं तो रेशासम (रेशे जैसी) संरचना बनती है। इस प्रकार के प्रोटीन सामान्यत: जल में अविलेय होती हैं। रेशेदार प्रोटीन जंतु ऊतकों की प्रमुख संरचनात्मक पदार्थ होती हैं। कुछ सामान्य उदाहरण किरेटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) आदि हैं।
गोलिकाकार प्रोटीन (Globular proteins): जब पॉलिपेप्टाइड की श्रृंखलाएँ कुंडली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती हैं तो ऐसी संरचनाएँ प्राप्त होती हैं। ये सामान्यतः जल में विलेय होती हैं क्योंकि इनके अणु दुर्बल अंतराअणुक बलों द्वारा जुड़े रहते हैं। इन्सुलिन तथा ऐल्बुमिन इनके सामान्य उदाहरण हैं।
प्रश्न 10.16: ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति को आप कैसे समझाएँगे?
उत्तर 10.16: ऐमीनो अम्ल में एक कार्बोक्सिल समूह (अम्लीय) तथा एक ऐमीन समूह (क्षारीय) समान अणु में पाए जाते हैं। जलीय विलयन में -COOH समूह एक H+ खोता है तथा —NH2, समूह इसे स्वीकार करता है। इस प्रकार ज्विट्टर आयन (zwitter ion) का निर्माण होता है।
द्विध्रुवीय या ज्विट्टर आयन संरचना के कारण ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी (amphoteric) प्रकृति के होते हैं। ऐमीनो अम्ल की अम्लीय प्रकृति \(\overset { + }{ N } { H }_{ 3 }\) के कारण होती है तथा क्षारीय प्रकृति COO– समूह के कारण होती है।
प्रश्न 10.17: एन्जाइम क्या होते हैं?
उत्तर 10.17: एन्जाइम: एन्जाइम जैव-उत्प्रेरक (biocatalysts) होते हैं जो शरीर में रासायनिक अभिक्रियाओं की गति को बढ़ाते हैं। ये प्रोटीन अणु होते हैं और हर एन्जाइम एक विशिष्ट अभिक्रिया या समूह से जुड़ा होता है।
एन्जाइमों का कार्य शरीर में जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक रासायनिक अभिक्रियाओं को त्वरित करना है, जैसे भोजन का पाचन, ऊर्जा का उत्पादन, और अन्य जैविक प्रक्रियाएँ।
- विशिष्टता: प्रत्येक एन्जाइम विशेष क्रियावली के लिए विशिष्ट होता है, जैसे कि एक विशेष पदार्थ के लिए।
- गति में वृद्धि: एन्जाइमों के बिना, ये रासायनिक अभिक्रियाएँ बहुत धीमी या असंभव हो सकती हैं।
- कार्य करने की स्थितियाँ: एन्जाइम सामान्यतः 310 K (37°C) तापमान, pH 7.4 (रक्त का सामान्य pH) और एक वायुमंडलीय दाब पर कार्य करते हैं।
- प्रोटीन संरचना: रासायनिक रूप से, लगभग सभी एन्जाइम गोलिकाकार प्रोटीन होते हैं, और इनमें अत्यंत कम मात्रा में कार्य करने की क्षमता होती है।
एन्जाइम शरीर में जैविक अभिक्रियाओं को त्वरित करने वाले प्रोटीन होते हैं और ये किसी विशेष रासायनिक क्रिया के लिए विशिष्ट होते हैं। इनकी अत्यधिक सक्रियता और सूक्ष्म मात्रा की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 10.18: प्रोटीन की संरचना पर विकृतीकरण का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर 10.18: प्रोटीन ऊष्मा, खनिज अम्ल, क्षार आदि की क्रिया के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। गर्म करने या खनिज अम्लों की क्रिया कराने पर गोलिकामय प्रोटीन (विलेय प्रोटीन) स्कन्दित या अवक्षेपित होकर तन्तुमय प्रोटीन देते हैं जोकि जल में अविलेय होते है जिसके परिणामस्वरूप प्रोटीन की जैव सक्रियता समाप्त हो जाती है। रासायनिक रूप से विकृतिकरण प्राथमिक संरचना को परिवर्तित नहीं करता है, लेकिन प्रोटीन की द्वितीयक तथा तृतीयक संरचनाएँ परिवर्तित हो जाती हैं।
प्रश्न 10.19: विटामिनों को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है? रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार विटामिन का नाम दीजिए।
उत्तर 10.19: वसा या जल में घुलनशीलता के आधार पर विटामिन सामान्यतः निम्न दो प्रकारों में वर्गीकृत होते है –
- जल में विलेय विटामिन: इसमें विटामिन B-संकुल (B1, B2, B3, B4, B6, B12 तथा निकोटिनिक अम्ल इत्यादि) तथा विटामिन C शामिल है।
- वसा में विलेय विटामिन: इसमें विटामिन A, D, E तथा K शामिल हैं। यकृत कोशिका में वसा में विलेय विटामिन बहुतायत में पाये जाते हैं। विटामिन K रक्त के स्कंदन के लिये उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 10.20: विटामिन A व C हमारे लिए आवश्यक क्यों हैं? उनके महत्त्वपूर्ण स्रोत दीजिए।
उत्तर 10.20: विटामिन A: ये हमारे लिये आवश्यक होते हैं क्योंकि इनकी कमी से रतौंधी तथा जीरोफ्थैल्मिया (आँख की कॉर्निया का कठोरीपन) का कारण बनती है।
स्रोत – गाजर, दूध, मक्खन, मछली के यकृत का तेल, अंडे का योक, पीली व हरी सब्जियाँ।
विटामिन C: ये हमारे लिये आवश्यक होते हैं क्योंकि इनकी कमी के कारण स्कर्वी (मसूड़ों में रक्त बहाव), दाँतों का टूटना, पाइरिया इत्यादि होता है।
स्रोत – नींबू, संतरा (रसीले फल), आँवला, टमाटर, आलू तथा हरी पत्तेदार सब्जियाँ।
प्रश्न 10.21: न्यूक्लीक अम्ल क्या होते हैं? इनके दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर 10.21: न्यूक्लीक अम्ल वे जैव-अणु होते हैं जो सभी जीवित कोशिकाओं के नाभिकों में न्यूक्लियो- प्रोटीन अथवा क्रोमोसोम के रूप में पाए जाते हैं। न्यूक्लीक अम्ल मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं—डिऑक्सीराइबोस न्यूक्लीक अम्ल (DNA) तथा राइबोसन्यूक्लीक अम्ल (RNA)। चूंकि न्यूक्लीक अम्ल न्यूक्लियोटाइडों की लम्बी श्रृंखला वाले बहुलक होते हैं, अतः इन्हें पॉलिन्यूक्लियोटाइड भी कहते हैं। न्यूक्लीक अम्लों के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं
(i) DNA आनुवंशिकता का रासायनिक आधार है तथा इसे आनुवंशिक सूचनाओं के संग्राहक के रूप में जाना जाता है। DNA लाखों वर्षों से किसी जीव की विभिन्न प्रजातियों की पहचान बनाए रखने के लिए विशिष्ट रूप से उत्तरदायी है। कोशिका विभाजन के समय एक DNA अणु स्वप्रतिकरण (self replication) में सक्षम होता है तथा पुत्री कोशिका में समान DNA रज्जुक का अन्तरण होता है।
(ii) न्यूक्लीक अम्ल (DNA तथा RNA) का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण है। वास्तव में कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण विभिन्न RNA अणुओं द्वारा होता है, परन्तु किसी विशेष प्रोटीन के संश्लेषण का सन्देश DNA में उपस्थित होता है।
प्रश्न 10.22: न्यूक्लिओसाइड तथा न्यूक्लिओटाइड में क्या अंतर होता है?
उत्तर 10.22: न्यूक्लिओसाइड और न्यूक्लिओटाइड दोनों न्यूक्लिक एसिड (डीएनए और आरएनए) के महत्वपूर्ण घटक हैं, लेकिन उनके बीच मुख्य अंतर यह है कि न्यूक्लिओटाइड में फॉस्फेट समूह उपस्थित होता है, जबकि न्यूक्लिओसाइड में नहीं।
न्यूक्लिओसाइड:
1. संरचना:
- न्यूक्लिओसाइड में दो घटक होते हैं:
- एक नाइट्रोजनयुक्त बेस (प्यूरीन या पायरिमिडीन)।
- एक शुगर (पेंटोज़ शुगर – राइबोज़ या डीऑक्सीराइबोज़)।
- फॉस्फेट समूह अनुपस्थित होता है।
2. उदाहरण:
- आरएनए में: एडेनोसिन, ग्वानोसिन, साइटिडिन, यूरिडिन।
- डीएनए में: डीऑक्सीडेनोसिन, डीऑक्सीग्वानोसिन, डीऑक्सीसाइटिडिन, डीऑक्सीयूरिडिन।
न्यूक्लिओटाइड:
1. संरचना:
- न्यूक्लिओटाइड में तीन घटक होते हैं:
- एक नाइट्रोजनयुक्त बेस (प्यूरीन या पायरिमिडीन)।
- एक शुगर (पेंटोज़ शुगर – राइबोज़ या डीऑक्सीराइबोज़)।
- एक या अधिक फॉस्फेट समूह।
2. भूमिका:
- न्यूक्लिओटाइड न्यूक्लिक एसिड (डीएनए और आरएनए) की लंबी श्रृंखला बनाने के लिए जुड़ते हैं।
- वे ऊर्जा के भंडारण और स्थानांतरण में (जैसे, एटीपी – एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. उदाहरण: एटीपी (Adenosine Triphosphate), सीटीपी (Cytidine Triphosphate), जीटीपी (Guanosine Triphosphate)।
मुख्य अंतर:
गुण | न्यूक्लिओसाइड | न्यूक्लिओटाइड |
---|---|---|
संरचना | नाइट्रोजनयुक्त बेस + शुगर | नाइट्रोजनयुक्त बेस + शुगर + फॉस्फेट समूह |
फॉस्फेट समूह | अनुपस्थित | उपस्थित |
उदाहरण | एडेनोसिन, ग्वानोसिन | एटीपी, जीटीपी, सीटीपी |
प्रश्न 10.23: DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं। समझाइए।
उत्तर 10.23: DNA अणु में दो रज्जुक (तंतु) एक-दूसरे से एक रज्जुक के प्यूरीन क्षार तथा दूसरे के पिरिमिडीन क्षार के बीच हाइड्रोजन बंध द्वारा बँधे रहते हैं । क्षारों के विभिन्न आकार तथा ज्यामिति के कारण, DNA में संभावित युग्मन है- ग्वानीन (G) तथा साइटोसीन (C) तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा अर्थात् (C = G) तथा एडेनीन A तथा थायमीन T दो हाइड्रोजन बंधों द्वारा अर्थात् (A = T)। इस क्षार युग्मन सिद्धांतानुसार एक रज्जुक में क्षारों का क्रम स्वतः दूसरे रज्जुक में क्षारों के क्रम को स्थिर करता है। अतः दो रज्जुक एक-दूसरे के पूरक तथा असमान होते हैं।
प्रश्न 10.24: DNA तथा RNA में महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक अंतर लिखिए।
उत्तर 10.24: संरचनात्मक अन्तर (Structural Difference)
DNA | RNA |
DNA में उपस्थित शर्करा β-D-2-डिऑक्सीराइबोस है। | RNA में उपस्थित शर्करा β-D-राइबोस है। |
DNA में साइटोसीन तथा थायमीन पिरिमिडीन क्षारकों के रूप में होते हैं। | RNA में साइटोसीन तथा यूरेसिल पिरिमिडीन क्षारकों के रूप में होते हैं। |
DNA की द्विकुंडलित α-हेलिक्स संरचना होती है। | RNA की एकल कुंडलित α-हेलिक्स संरचना होती है। |
DNA अणु अत्यधिक विशाल होते है। | RNA अणु अपेक्षाकृत छोटे होते है। |
क्रियात्मक अन्तर (Functional Difference)
DNA | RNA |
DNA में प्रतिकरण (replication) का विशिष्ट गुण होता है। | RNA सामान्यतया प्रतिकरण नहीं करता है। |
DNA आनुवंशिक प्रभावों के संचरण को नियंत्रित करता है। | RNA प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करता है। |
प्रश्न 10.25: कोशिका में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के RNA कौन-से हैं?
उत्तर 10.25: कोशिका में तीन प्रकार के RNA पाए जाते हैं
- राइबोसोमल RNA (r-RNA)
- सन्देशवाहक RNA (m-RNA)
- स्थानान्तरण RNA (t-RNA)