Chemistry Class 12 Chapter 4 exercise solutions in hindi: Class 12 Chemistry Chapter 4 Question answer in Hindi
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Chemistry |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | d- एवं f- ब्लॉक के तत्व Class 12 ncert solutions in hindi |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 4.1: निम्नलिखित के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए – (i) Cr3+ (ii) Pm3+ (iii) Cu+ (iv) Ce4+ (v) Co2+ (vi) Lu2+ (vii) Mn2+ (viii) Th4+
उत्तर 4.1:
- (i) Cr3+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d3 या, [Ar]18 3d3
- (ii) Pm3+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p6 4f4 या, [Xe]54 3d3
- (iii) Cu+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 या, [Ar]18 3d10
- (iv) Ce4+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p6 या, [Xe]54
- (v) Co2+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d7 या, [Ar]18 3d7
- (vi) Lu2+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p6 4f14 5d1 या, [Xe]54 2f14 3d3
- (vii) Mn2+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d5 या, [Ar]18 3d5
- (viii) Th4+: 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 4f14 5s2 5p6 5d10 6s2 6s6 या, [Rn]86
प्रश्न 4.2: +3 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने के संदर्भ में Mn2+ के यौगिक Fe2+ के यौगिकों की तुलना में अधिक स्थायी क्यों हैं?
उत्तर 4.2: Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]18 3d5 है, जबकि Fe2+ का [Ar] 3d6 है। चूँकि Mn2+ में अर्द्ध-पूर्ण कक्ष (3d5) होती है, जो कि Fe2+ की 3d6 कक्ष से अधिक स्थायी है, इसलिए Mn2+ यौगिक सरलता से Mn3+ में ऑक्सीकृत नहीं होते हैं क्योंकि इनकी द्वितीय आयनन एन्थैल्पी बहुत अधिक होती है। इसके विपरीत, Fe2+ यौगिक कम द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के कारण Fe3+ में सरलता से ऑक्सीकृत हो जाता है। यही कारण है कि Mn2+ यौगिक अपनी +3 अवस्था के लिए ऑक्सीकरण के प्रति Fe2+ से अधिक स्थायी होते हैं।
प्रश्न 4.3: संक्षेप में स्पष्ट कीजिए कि प्रथम संक्रमण श्रेणी के प्रथम अर्धभाग में बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था कैसे अधिक स्थायी होती जाती है?
उत्तर 4.3: प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में +2 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व परमाणु क्रमांक के साथ बढ़ता है, क्योंकि d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है। इस श्रेणी के प्रारंभिक तत्वों (जैसे स्कैन्डियम, टाइटेनियम) में +2 ऑक्सीकरण अवस्था अपेक्षाकृत कम स्थायी होती है, क्योंकि उनके पास d-ऑर्बिटल में कम इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो उन्हें स्थिरता प्रदान नहीं कर पाते।
जैसे-जैसे हम श्रृंखला में आगे बढ़ते हैं (जैसे मैंगनीज, आयरन, कोबाल्ट), d-ऑर्बिटल में अधिक इलेक्ट्रॉनों का जुड़ना शुरू होता है, जिससे d-ऑर्बिटल की इलेक्ट्रॉनों को खोने की प्रवृत्ति कम हो जाती है और +2 अवस्था स्थिर हो जाती है। विशेष रूप से ज़िंक (Zn) के पास पूरी तरह भरे हुए d-ऑर्बिटल (d^10) होते हैं, जिससे +2 ऑक्सीकरण अवस्था अत्यधिक स्थिर हो जाती है।
प्रश्न 4.4: प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस सीमा तक ऑक्सीकरण अवस्थाओं को निर्धारित करते हैं? उत्तर को उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 4.4: जिस ऑक्सीकरण अवस्था में आयनों में पूर्ण भरी या अर्ध भरी d कक्ष होती है, वे आयन अधिक स्थायी होते हैं। जैसे Mn की +2 अवस्था इसकी अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं की अपेक्षा अधिक स्थायी होती है। जैसे Mn की +2 अवस्था इसकी अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं की अपेक्षा अधिक स्थायी होती है। क्योंकि Mn2+ में अर्ध भरी 3d5 कक्ष होती है। इसी प्रकार Zn की +2 अवस्था इसकी सबसे अधिक स्थायी अवस्था होती है क्योंकि इसमें पूर्ण भरी 3d10 कक्ष होती है।
प्रश्न 4.5: संक्रमण तत्वों की मूल अवस्था में नीचे दिए गए d इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में कौन-सी ऑक्सीकरण अवस्था स्थायी होगी?
3d3, 3d5, 3d8 तथा 3d4
उत्तर 4.5:
- 3d3 (वैनेडियम) : (+2), +3, +4, +5
- 3d5 (क्रोमियम) : +3, +4, +6
- 3d5 (मैंग्नीज) : +2, +4, +6, +7
- 3d8 (कोबाल्ट) : +2, +3
- 3d4 : इस विन्यास वाला कोई भी तत्त्व तलस्थ अवस्था में नहीं पाया जाता है।
प्रश्न 4.6: प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो-धातुऋणायनों का नाम लिखिए; जिसमें धातु संक्रमण श्रेणी की वर्ग संख्या के बराबर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है।
उत्तर 4.6: प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो-धातु ऋणायनों में, धातु की ऑक्सीकरण अवस्था उसकी वर्ग संख्या (समूह संख्या) के बराबर होती है। इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- Cr₂O₇²⁻ (डाईक्रोमेट आयन): इसमें क्रोमियम +6 ऑक्सीकरण अवस्था में होता है, जो कि उसकी समूह संख्या 6 के बराबर है।
- CrO₄²⁻ (क्रोमेट आयन): इसमें भी क्रोमियम +6 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है, जो उसकी समूह संख्या 6 के समान है।
- MnO₄⁻ (परमैंगनेट आयन): इसमें मैंगनीज +7 ऑक्सीकरण अवस्था में होता है, जो कि उसकी समूह संख्या 7 के बराबर है।
- VO₃⁻ (वैनाडेट आयन): इसमें वैनाडियम +5 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है, जो कि उसकी समूह संख्या 5 के बराबर है।
ये ऑक्सो-धातु ऋणायन संक्रमण धातुओं की विशिष्ट ऑक्सीकरण अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उनकी वर्ग संख्या से मेल खाते हैं।
प्रश्न 4.7: लैन्थेनाइड आकुंचन क्या है? लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणाम क्या हैं?
उत्तर 4.7: लैन्थेनाइड आकुंचन वह घटना है, जिसमें लैन्थेनमाला के तत्वों का परमाणु आकार और आयन radius उनके परमाणु क्रमांक के बढ़ने के साथ घटता है। इसे लैन्थेनाइड आकुंचन कहते हैं क्योंकि इसमें लैन्थेनमाला के तत्वों के साथ परमाणु और आयनिक आकारों में लगातार कमी देखी जाती है, जबकि इनके इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती जाती है।
लैन्थेनाइड आकुंचन के कारण: लैन्थेनाइड आकुंचन की प्रमुख वजह यह है कि लैन्थेनमाला के तत्वों में इलेक्ट्रॉनों की बढ़ती हुई संख्या के बावजूद, उनके बाहरी इलेक्ट्रॉनिक स्तरों के बीच में स्थित 4f-ऑर्बिटल्स के इलेक्ट्रॉन बहुत कमजोर तरीके से बाहरी इलेक्ट्रॉनिक स्तर से जुड़ते हैं। इस कारण, इलेक्ट्रॉनों की बढ़ती संख्या के बावजूद नाभिक का आकर्षण मजबूत बना रहता है, जिससे परमाणु और आयनिक आकार में गिरावट होती है।
लैन्थेनाइड आकुंचन के परिणाम:
- आयनीकरण ऊर्जा में वृद्धि: लैन्थेनाइड आकुंचन के कारण, परमाणु आकार के घटने से आयनीकरण ऊर्जा में वृद्धि होती है, क्योंकि नाभिक का बाहरी इलेक्ट्रॉनों पर प्रभाव अधिक होता है।
- ध्रुवीकरण (Polarity) में परिवर्तन: आयन की आकार में कमी होने से, इसकी ध्रुवीकरण क्षमता बढ़ जाती है, जिससे अन्य तत्वों के साथ संयुग्म (complex formation) में बदलाव आता है।
- गणना में असमानताएँ: लैन्थेनाइड आकुंचन के कारण, कुछ तत्वों के गुणधर्मों में असमानताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, विशेष रूप से उनके रासायनिक गुणों में।
- विज्ञान में महत्व: लैन्थेनाइड आकुंचन का अध्ययन रासायनिक प्रक्रियाओं, जैसे कि अणु संघटन, जैविक प्रतिक्रियाएँ और अणुओं के आकार की गणना के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 4.8: संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण क्या हैं? ये संक्रमण धातु क्यों कहलाती हैं?
उत्तर 4.8: संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण (Characteristics of Transition Metals): संक्रमण धातुएं वे तत्व हैं जो पीरियोडिक टेबल के d-ब्लॉक में स्थित होते हैं और इनके पास विशेष रासायनिक और भौतिक गुण होते हैं। इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- विविध ऑक्सीकरण अवस्थाएँ: संक्रमण धातुएं विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं में मौजूद हो सकती हैं, क्योंकि इनके d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन आसानी से खोने या प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।
- धात्विक गुण: ये तत्व आमतौर पर अच्छे कंडक्टर होते हैं, जैसे कि अच्छी विद्युत और तापीय चालकता। इनके पास उच्च धातु गुण होते हैं जैसे कि लचीलापन और कुचलने की क्षमता।
- कठोरता और उच्च गलनांक: संक्रमण धातुएं उच्च गलनांक (melting point) और उबालनांक (boiling point) प्रदर्शित करती हैं, क्योंकि इनकी संरचना में मजबूत धात्विक बंध होते हैं।
- रंगीन यौगिक: संक्रमण धातुओं के यौगिक आमतौर पर रंगीन होते हैं, क्योंकि d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने पर वे विशिष्ट वर्णात्मक रंग उत्पन्न करते हैं।
- जटिल यौगिक निर्माण: संक्रमण धातुएं जटिल यौगिक (complex compounds) बनाने की क्षमता रखती हैं, क्योंकि ये अपनी d-ऑर्बिटल्स के इलेक्ट्रॉनों के साथ अन्य अणुओं या आयनों से बंध बना सकती हैं।
- मैग्नेटिज़्म: कई संक्रमण धातु आयन मैग्नेटिक होते हैं, जैसे कि फेरोमैग्नेटिज़्म (Fe, Co, Ni) या पैरामैग्नेटिज़्म।
- संचलन में स्थायित्व: इन तत्वों के आयन स्थिर होते हैं, खासकर जब ये उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में होते हैं, जैसे कि +2, +3 या +4।
संक्रमण धातुएं क्यों कहलाती हैं?
संक्रमण धातुएं वे तत्व होते हैं जो पीरियोडिक टेबल के d-ब्लॉक में स्थित होते हैं, यानी वे तत्व जो अपनी भूतल (outer) इलेक्ट्रॉन कक्षाओं में d-ऑर्बिटल्स को भरते हैं। इन्हें “संक्रमण धातु” कहा जाता है क्योंकि:
- ऑक्सीकरण अवस्थाओं का संक्रमण: इन तत्वों में अलग-अलग ऑक्सीकरण अवस्थाएँ होती हैं, जिससे ये विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भाग ले सकते हैं। इनके ऑक्सीकरण अवस्थाएँ एक तत्व से दूसरे तत्व में संक्रमण (change) करती हैं, जो इनके नामकरण का कारण है।
- d-ऑर्बिटल्स का प्रयोग: इन तत्वों के बाहरी इलेक्ट्रॉन d-ऑर्बिटल्स में स्थित होते हैं, जो इनकी रासायनिक और भौतिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इस कारण इन्हें “d-ब्लॉक” तत्व या “संक्रमण धातु” कहा जाता है।
इन तत्वों में रासायनिक गुणों का संक्रमण और d-ऑर्बिटल्स के कारण विविधता इन्हें अन्य तत्वों से अलग करती है, जो इनकी पहचान को और स्पष्ट करती है।
प्रश्न 4.9: संक्रमण धातुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस प्रकार असंक्रमण तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से भिन्न हैं?
उत्तर 4.9: संक्रमण तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 1)d1–10 ns1–2 प्रकार के होते हैं तथा इस प्रकार इनमें अपूर्ण d-ऑर्बिटल होती है जबकि असंक्रमण तत्त्वों में d-ऑर्बिटल नहीं पायी जाती है। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1–2 या ns2 np1–6 प्रकार के होते हैं।
प्रश्न 4.10: लैन्थेनॉयडों द्वारा कौन-कौन सी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित की जाती हैं?
उत्तर 4.10: लैन्थेनॉयड तत्वों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +3 होती है। हालांकि, कुछ लैन्थेनॉयड तत्व +2 और +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएं भी प्रदर्शित करते हैं। जैसे, सीरियम (+4), यूरोपियम (+2), और यटर्बियम (+2)। लैन्थेनॉयडों द्वारा प्रदर्शित ऑक्सीकरण अवस्थाएँ:
- +3 ऑक्सीकरण अवस्था: यह लैन्थेनॉयड तत्वों की सबसे सामान्य और स्थिर ऑक्सीकरण अवस्था है। अधिकांश लैन्थेनॉयडों (जैसे La, Ce, Pr, Nd, आदि) में +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रमुख होती है, क्योंकि उनके 4f-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन आसानी से खो सकते हैं।
- +2 ऑक्सीकरण अवस्था: कुछ लैन्थेनॉयड तत्व, जैसे कि यूरोपियम (Eu) और समेरियम (Sm), +2 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं। यह अवस्था तब बनती है जब 4f-ऑर्बिटल से दो इलेक्ट्रॉन खो दिए जाते हैं, जिससे आयन +2 चार्ज प्राप्त करता है। हालांकि, यह अवस्था कम स्थिर होती है और कुछ विशेष परिस्थितियों में ही बनती है।
- +4 ऑक्सीकरण अवस्था: कुछ लैन्थेनॉयड तत्व जैसे थोरियम (Th) और डाइस्प्रोसियम (Dy) +4 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित कर सकते हैं, लेकिन यह अधिक दुर्लभ है और आमतौर पर उच्च तापमान या विशेष परिस्थितियों में ही उत्पन्न होती है।
- +5, +6 और +7 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ: बहुत ही कुछ लैन्थेनॉयडों में +5, +6, और +7 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अत्यंत दुर्लभ होती हैं, और ये केवल कुछ विशेष रासायनिक स्थितियों में ही उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि उच्च आक्सीडाइज़र के साथ प्रतिक्रिया करते समय। इन अवस्थाओं को कुछ विशेष लैन्थेनॉयड जैसे कि सेरियम (Ce), प्रसीओडिमियम (Pr) और अन्य के उच्च ऑक्सीकरण वाले यौगिकों में देखा जा सकता है।
प्रश्न 4.11: कारण देते हुए स्पष्ट कीजिए – (a) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुम्बकीय हैं। (b) संक्रमण धातुओं की कणन एन्थैल्पी के मान उच्च होते हैं। (c) संक्रमण धातुएँ सामान्यतः रंगीन यौगिक बनाती हैं। (d) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक उत्तम उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
उत्तर 4.11: (a) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुम्बकीय हैं।
संक्रमण धातुएँ और उनके अधिकांश यौगिक अनुचुम्बकीय (Diamagnetic) होते हैं क्योंकि उनके d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन पूरी तरह से जोड़े होते हैं। जब d-ऑर्बिटल्स के इलेक्ट्रॉन जोड़े होते हैं, तो उनका स्वयं का चुम्बकीय प्रभाव शून्य होता है। इस कारण इनका कुल चुम्बकीय प्रभाव भी शून्य या बहुत कम होता है, जिससे ये अनुचुम्बकीय होते हैं। उदाहरण के तौर पर, Zn²⁺, Cu²⁺ और Ni²⁺ जैसे आयन जो सामान्यत: जोड़े हुए d-इलेक्ट्रॉनों के साथ होते हैं, इनका चुम्बकीय प्रभाव नगण्य होता है।
(b) संक्रमण धातुओं की कणन एन्थैल्पी के मान उच्च होते हैं।
संक्रमण धातुओं की कणन एन्थैल्पी (Enthalpy of atomization) के मान उच्च होते हैं क्योंकि इन तत्वों के बीच में मजबूत धात्विक बंध होते हैं। संक्रमण धातुओं में d-ऑर्बिटल्स के इलेक्ट्रॉन आपस में अंतरक्रियात्मक होते हैं, जिससे इन तत्वों में उच्च धात्विक बंधन शक्ति उत्पन्न होती है। इन बंधनों को तोड़ने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसके कारण इनकी कणन एन्थैल्पी उच्च होती है। उदाहरण के लिए, टाइटेनियम (Ti) और लोहा (Fe) जैसे संक्रमण धातुओं में उच्च कणन एन्थैल्पी होती है।
(c) संक्रमण धातुएँ सामान्यतः रंगीन यौगिक बनाती हैं।
संक्रमण धातुएँ रंगीन यौगिक बनाती हैं क्योंकि इनके d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन के उत्तेजित होने पर वे विशेष प्रकार के प्रकाश को अवशोषित करते हैं। जब d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर पर जाते हैं और फिर वापस नीचे आते हैं, तो वे विशिष्ट ऊर्जा (वर्ण) की रेखाएं उत्पन्न करते हैं। इन रेखाओं के कारण यौगिक रंगीन दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, कॉपर (Cu²⁺) का नीला रंग, क्रोमियम (Cr³⁺) का हरा रंग और मंगल (Mn²⁺) का गुलाबी रंग इस प्रकार के रंगीन यौगिकों के उदाहरण हैं।
(d) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक उत्तम उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
संक्रमण धातुएं और इनके यौगिक उत्तम उत्प्रेरक (Excellent Catalysts) होते हैं क्योंकि इनके पास विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तन करने की क्षमता होती है। इनकी d-ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉनों की बढ़ती संख्या और उनकी लचीलापन इनको रासायनिक प्रतिक्रियाओं के दौरान ऊर्जा अवशोषित करने और प्रतिक्रिया के गति को बढ़ाने में सक्षम बनाती है। उत्प्रेरक के रूप में काम करते समय, ये यौगिक रासायनिक प्रतिक्रियाओं के दौरान खुद परिवर्तित नहीं होते, लेकिन प्रतिक्रिया की दर को तेजी से बढ़ाते हैं। उदाहरण के तौर पर, प्लैटिनम (Pt) और पैलैडियम (Pd) जैसे संक्रमण धातु उत्प्रेरकों का इस्तेमाल हाइड्रोजनation, क्रैकिंग और अन्य रासायनिक प्रक्रियाओं में किया जाता है।
प्रश्न 4.12: अन्तराकाशी यौगिक क्या हैं? इस प्रकार के यौगिक संक्रमण धातुओं के लिए भली प्रकार से ज्ञात क्यों हैं?
उत्तर 4.12: वे यौगिक जिनके क्रिस्टल जालक में अन्तराकाशी स्थलों को छोटे आकार वाले परमाणु अध्यासित कर लेते हैं, अन्तराकाशी यौगिक कहलाते हैं। अन्तराकाशी यौगिक संक्रमण धातुओं के लिए भली प्रकार से ज्ञात होते हैं क्योंकि संक्रमण धातुओं के क्रिस्टल जालकों में उपस्थित रिक्तियों (voids) में छोटे आकार वाले परमाणु; जैसे- H, N या C सरलता से सम्पाशित हो जाते हैं।
प्रश्न 4.13: संक्रमण धातुओं की ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता असंक्रमण धातुओं में ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता से किस प्रकार भिन्न है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 4.13: संक्रमण धातुओं की ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता असंक्रमण धातुओं की तुलना में अधिक होती है, क्योंकि संक्रमण धातुओं में d-ऑर्बिटल्स होते हैं, जो इलेक्ट्रॉन को आसानी से खोने या प्राप्त करने की अनुमति देते हैं। इस कारण संक्रमण धातुएं विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं में स्थिर हो सकती हैं।
उदाहरण:
- मँगनीज (Mn): मँगनीज +2, +3, +4, +6 और +7 ऑक्सीकरण अवस्थाओं में पाया जाता है।
- कॉपर (Cu): कॉपर +1 और +2 अवस्थाओं में स्थिर होता है।
वहीं, असंक्रमण धातुएं (जैसे कैल्शियम (Ca), नाइट्रोजन (N)) आमतौर पर केवल एक या दो ऑक्सीकरण अवस्थाओं में स्थिर रहती हैं, जैसे कैल्शियम में केवल +2 अवस्था होती है।
इस प्रकार, संक्रमण धातुओं में अधिक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ होती हैं, जबकि असंक्रमण धातुओं में कम और सीमित अवस्थाएँ होती हैं।
प्रश्न 4.14: आयरनक्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट बनाने की विधि का वर्णन कीजिए। पोटैशियम डाइक्रोमेट विलयन पर pH बढ़ाने से क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर 4.14: पोटैशियम डाइक्रोमेट बनाने की विधि – आयरन क्रोमाइट अयस्क (FeCr2O4) को जब वायु की उपस्थिति में सोडियम यो पोटैशियम कार्बोनेट के साथ संगलित किया जाता है तो क्रोमेट प्राप्त होता है।
4FeCr2O4 + 8Na2CO3 + 7O2 → 8Na2CrO4 +2Fe2O3 + 8CO2 ↑
सोडियम क्रोमेट के पीले विलयन को छानकर उसे सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा अम्लीय बना लिया जाता है। जिसमें से नारंगी सोडियम डाइक्रोमेट, Na2Cr2O7 . 2H2O को क्रिस्टलित कर लिया जाता है।
2Na2CrO4 + 2H+ → Na2Cr2O7 + 2Na+ + H2O
सोडियम डाइक्रोमेट की विलेयता, पोटैशियम डाइक्रोमेट से अधिक होती है, इसलिए सोडियम डाइक्रोमेट के विलयन में पोटैशियम क्लोराइड डालकर पोटैशियम डाइक्रोमेट प्राप्त कर लिया जाता है।
Na2Cr2O7 + 2KCl → K2Cr2O7 + 2NaCl
पोटैशियम डाइक्रोमेट के नारंगी रंग के क्रिस्टल, क्रिस्टलीकृत हो जाते हैं। जलीय विलयन में क्रोमेट तथा डाइक्रोमेट का अन्तरारूपान्तरण होता है जो विलयन के pH पर निर्भर करता है। क्रोमेट तथा डाइक्रोमेट में क्रोमियम की ऑक्सीकरण संख्या समान है।
2CrO2-4 + 2H+ → Cr2O2-7 + H2O
Cr2O2-7 + 2OH– → 2CrO2-4 + H2O
अत: pH बढ़ाने पर, अर्थात् विलयन को क्षारीय करने पर, डाइक्रोमेट आयन (नारंगी रंग) क्रोमेट आयनों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा विलयन का रंग पीला हो जाता है।
प्रश्न 4.15: पोटैशियम डाइक्रोमेट की ऑक्सीकरण क्रिया का उल्लेख कीजिए तथा निम्नलिखित के साथ आयनिक समीकरण लिखिए- (i) आयोडाइड आयन (ii) आयरन (II) विलयन (iii) H2S
उत्तर 4.15: पोटैशियम डाइक्रोमेट (K₂Cr₂O₇) की ऑक्सीकरण क्रिया:
पोटैशियम डाइक्रोमेट एक शक्तिशाली आक्सीकरण एजेंट होता है, और विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं में क्रोमियम (Cr) को उच्च ऑक्सीकरण अवस्था से कम ऑक्सीकरण अवस्था में परिवर्तित कर सकता है। पोटैशियम डाइक्रोमेट का मुख्य ऑक्सीकरण प्रभाव Cr₂O₇²⁻ आयन पर होता है, जो क्रोमियम (VI) की ऑक्सीकरण अवस्था में होता है। यह एक प्रमुख रिडक्शन और ऑक्सीकरण प्रतिक्रिया है, जिसमें डाइक्रोमेट आयन (Cr₂O₇²⁻) को क्रोमियम (III) आयन (Cr³⁺) में बदला जाता है।
आयनिक अभिक्रियाएँ (Ionic Reactions)
1. आयोडाइड आयन के साथ (With iodide ion) –
- Cr2O2-7 + 14H+ + 6I– → 2Cr3+ + 7H2O + 3I2 ↑
2. आयरन (II) विलयन के साथ (With Iron (II) solution)
- Cr2O2-7 + 14H+ + 6Fe2+ → 2Cr3+ + 7H2O + 6Fe3+
3. H2S के साथ (With H2S)
- Cr2O2-7 + 8H+ + 3H2S → 2Cr3+ + 7H2O + 3S ↓
प्रश्न 4.16: पोटैशियम परमैंगनेट को बनाने की विधि का वर्णन कीजिए। अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट किस प्रकार (i) आयरन (II) आयन, (ii) SO2 तथा (iii) ऑक्सैलिक अम्ल से अभिक्रिया करता है? अभिक्रियाओं के लिए आयनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर 4.16: पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) बनाने की विधि: पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) को आमतौर पर मैंगनीज़ (Mn) यौगिकों से तैयार किया जाता है। इसकी मुख्य विधि निम्नलिखित है:
- मैंगनीज़ डाइऑक्साइड (MnO₂) को पोटैशियम हाइड्रोक्साइड (KOH) और ऑक्सीजन के साथ उच्च तापमान पर प्रतिक्रिया कराकर पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) प्राप्त किया जाता है। इसमें मैंगनीज़ की ऑक्सीकरण अवस्था +4 से +7 तक बढ़ती है।
- प्रतिक्रिया:
\(2 \text{MnO}_2 + 4 \text{KOH} + O_2 \xrightarrow{\text{ताप}}\)\( 2 \text{KMnO}_4 + 2 \text{H}_2O\)
इस प्रक्रिया में, मैंगनीज़ डाइऑक्साइड (MnO₂) को ऑक्सीजन (O₂) के साथ ताप पर प्रतिक्रिया कर पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) प्राप्त होता है।
पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) की अम्लीय विलयन में अभिक्रिया: पोटैशियम परमैंगनेट एक शक्तिशाली आक्सीकरण एजेंट है और विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं में इसका उपयोग किया जाता है। अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट का विभिन्न पदार्थों के साथ अभिक्रिया में रिडक्शन होता है, और यह अपने क्रोमियम की उच्च ऑक्सीकरण अवस्था से घटित होकर कम ऑक्सीकरण अवस्था में बदलता है।
(i) आयरन(II) आयन (Fe²⁺) के साथ अभिक्रिया: आयरन(II) आयन (Fe²⁺) को पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) द्वारा ऑक्सीकरण किया जाता है, और पोटैशियम परमैंगनेट खुद रिड्यूस होकर Mn²⁺ आयन में बदलता है।
आयनिक समीकरण:
\(\text{MnO}_4^- + 8 \text{H}^+ + 5 \text{Fe}^{2+} \rightarrow\)\( \text{Mn}^{2+} + 5 \text{Fe}^{3+} + 4 \text{H}_2\text{O}\)
इस प्रतिक्रिया में, Mn (VII) से Mn (II) में बदलाव होता है, और Fe²⁺ को Fe³⁺ में ऑक्सीकरण किया जाता है।
(ii) SO₂ (सल्फर डाइऑक्साइड) के साथ अभिक्रिया: सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) को पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) द्वारा ऑक्सीकरण किया जाता है, और पोटैशियम परमैंगनेट Mn²⁺ में बदल जाता है।
आयनिक समीकरण:
\(2 \text{MnO}_4^- + 4 \text{H}^+ + 5 \text{SO}_2 \rightarrow\)\( 2 \text{Mn}^{2+} + 5 \text{SO}_4^{2-} + 2 \text{H}_2O\)
इसमें, Mn (VII) से Mn (II) में परिवर्तन होता है और SO₂ को SO₄²⁻ में ऑक्सीकरण किया जाता है।
(iii) ऑक्सैलिक अम्ल (C₂H₂O₄) के साथ अभिक्रिया: ऑक्सैलिक अम्ल (C₂H₂O₄) को पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) द्वारा ऑक्सीकरण किया जाता है, और पोटैशियम परमैंगनेट Mn²⁺ में रिड्यूस हो जाता है। इस प्रक्रिया में, ऑक्सैलिक अम्ल कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) में परिवर्तित हो जाता है।
आयनिक समीकरण:
\(2 \text{MnO}_4^- + 16 \text{H}^+ + 5 \text{C}_2\text{H}_2\text{O}_4 \rightarrow\)\( 2 \text{Mn}^{2+} + 10 \text{CO}_2 + 8 \text{H}_2O\)
इसमें, Mn (VII) से Mn (II) में परिवर्तन होता है, और ऑक्सैलिक अम्ल (C₂H₂O₄) को CO₂ में ऑक्सीकरण किया जाता है।
प्रश्न 4.17: M2+/M तथा M3+/M2+ निकाय के संदर्भ में कुछ धातुओं के EΘ के मान नीचे दिए गए हैं।
Cr2+/Cr -0.9V Cr3/Cr2+ -0.4 V
Mn2+/Mn -1.2V Mn3+/Mn2+ +1.5 V
Fe2+/Fe -0.4V Fe3+/Fe2+ +0.8 V उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए –
(i) अम्लीय माध्यम में Cr3+ या Mn3+ की तुलना में Fe3+ का स्थायित्व।
(ii) समान प्रक्रिया के लिए क्रोमियम अथवा मैंगनीज धातुओं की तुलना में आयरन के ऑक्सीकरण में सुगमता।
उत्तर 4.17: (i) Cr3+ / Cr2+ के लिए E का मान ऋणात्मक है। इसलिए Cr3+ स्थायी है तथा Cr2+ में अपचयित नहीं हो सकता है।
Mn3+ / Mn2+ के लिए E– का मान अधिक धनात्मक है, इसलिए Mn3+ बहुत स्थायी नहीं है तथा सरलता से Mn2+ में अपचयित हो सकता है। Fe3+ / Fe2+ के लिए E– का मान कम धनात्मक लेकिन छोटा है। इसलिए Fe3+, Mn3+ से अधिक स्थायी है। लेकिन यह Cr2+ से कम स्थायी है।
(ii) Fe, Cr तथा Mn के लिए ऑक्सीकरण विभव क्रमशः +0.4 V, + 0.9 V तथा +1.2 V है। इसलिए इनके ऑक्सीकरण की सुलभता का क्रम Mn > Cr > Fe होगा।
प्रश्न 4.18: निम्नलिखित में कौन-से आयन जलीय विलयन में रंगीन होंगे?
Ti3+, V3+, Cu+, Sc3+, Mn2+, Fe3+ तथा Co2+ प्रत्येक के लिए कारण बताइए।
उत्तर 4.18: केवल वे आयन रंगीन होंगे जिनके इलेक्ट्रॉन d-ऑर्बिटल में हैं और जिनमें d-d संक्रमण संभव है। वे आयन जिनमें d-ऑर्बिटल खाली हैं या पूरी तरह से भरे हुए हैं, वे रंगहीन होंगे क्योंकि उन विन्यासों में कोई d-d संक्रमण संभव नहीं है।
तत्व (Element) | परमाणु संख्या (Atomic Number) | आयनिक अवस्था (Ionic State) | आयनिक अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic configuration in ionic state) |
Ti | 22 | Ti3+ | [Ar] 3d1 |
V | 23 | V3+ | [Ar] 3d2 |
Cu | 29 | Cu+ | [Ar] 3d10 |
Sc | 21 | Sc3+ | [Ar] |
Mn | 25 | Mn2+ | [Ar] 3d5 |
Fe | 26 | Fe3+ | [Ar] 3d5 |
Co | 27 | Co2+ | [Ar] 3d7 |
उपरोक्त तालिका से, यह आसानी से देखा जा सकता है कि केवल Sc3+ में एक खाली d-ऑर्बिटल है और Cu+ में पूरी तरह से भरा हुआ d-ऑर्बिटल है। Sc3+ और Cu+ को छोड़कर अन्य सभी आयन d−d संक्रमण के कारण जलीय घोल में रंगीन हो जाएँगे।
प्रश्न 4.19: प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं की +2 ऑक्सीकरण अवस्थाओं के स्थायित्व की तुलना कीजिए।
उत्तर 4.19:
Sc | +3 | ||||||
Ti | +1 | +2 | +3 | +4 | |||
V | +1 | +2 | +3 | +4 | +5 | ||
Cr | +1 | +2 | +3 | +4 | +5 | +6 | |
Mn | +1 | +2 | +3 | +4 | +5 | +6 | +7 |
Fe | +1 | +2 | +3 | +4 | +5 | +6 | |
Co | +1 | +2 | +3 | +4 | +5 | ||
Ni | +1 | +2 | +3 | +4 | |||
Cu | +1 | +2 | +3 | ||||
Zn | +2 |
उपरोक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि ऑक्सीकरण अवस्थाओं की अधिकतम संख्या Mn द्वारा दर्शाई गई है, जो +2 से +7 तक बदलती रहती है। Sc से Mn की ओर बढ़ने पर ऑक्सीकरण अवस्थाओं की संख्या बढ़ जाती है। Mn से Zn की ओर बढ़ने पर, उपलब्ध अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में कमी के कारण ऑक्सीकरण अवस्थाओं की संख्या घट जाती है। ऊपर से नीचे की ओर बढ़ने पर +2 ऑक्सीकरण अवस्था की सापेक्ष स्थिरता बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऊपर से नीचे की ओर बढ़ने पर d-ऑर्बिटल से तीसरे इलेक्ट्रॉन को निकालना अधिक से अधिक कठिन हो जाता है।
प्रश्न 4.20: निम्नलिखित के सन्दर्भ में लैन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड के रसायन की तुलना कीजिए:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार (iii) ऑक्सीकरण अवस्था (iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता।
उत्तर 4.20: लैन्थेनाइड और ऐक्टिनाइड श्रृंखला के तत्वों की रासायनिक तुलना विभिन्न पहलुओं पर इस प्रकार की जा सकती है:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:
- लैन्थेनाइड्स: इन तत्वों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Xe]54 4f1-14 5d0-1 6s2 होता है। इसमें 4f ऑर्बिटल का क्रमिक रूप से भराव होता है।
- ऐक्टिनाइड्स: इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Rn]86 5f1-14 6d1-2 7s2 होता है, जिसमें 5f ऑर्बिटल भरता है। ऐक्टिनाइड्स में f ऑर्बिटल का अधिक विकृत आकार होता है, जिससे उनके रासायनिक गुण लैन्थेनाइड्स से भिन्न होते हैं।
(ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार:
- लैन्थेनाइड्स: लैन्थेनाइड संकुचन के कारण जैसे-जैसे श्रृंखला में आगे बढ़ते हैं, इनके परमाणु और आयनिक आकार में क्रमिक कमी होती है।
- ऐक्टिनाइड्स: ऐक्टिनाइड्स में भी संकुचन होता है, जिसे “ऐक्टिनाइड संकुचन” कहते हैं। हालांकि, यह लैन्थेनाइड संकुचन से अधिक होता है, क्योंकि 5f ऑर्बिटल का विकृत आकार होता है, जिससे कक्षीय संकुचन अधिक होता है।
(iii) ऑक्सीकरण अवस्था:
- लैन्थेनाइड्स: इनमें मुख्यत: +3 ऑक्सीकरण अवस्था पाई जाती है। हालांकि कुछ लैन्थेनाइड्स (जैसे Sm, Eu, Yb) +2 और (जैसे Ce, Pr, Tb) +4 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं।
- ऐक्टिनाइड्स: ऐक्टिनाइड्स में +3, +4, +5 और +6 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ आम हैं। यूरेनियम और नेप्टूनियम जैसे ऐक्टिनाइड +7 अवस्था भी प्रदर्शित कर सकते हैं। ऐक्टिनाइड्स में f ऑर्बिटल अधिक क्रियाशील होता है, जिससे ऑक्सीकरण अवस्था अधिक परिवर्तनशील होती है।
(iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता:
- लैन्थेनाइड्स: लैन्थेनाइड्स अपेक्षाकृत स्थिर होते हैं और उनकी रासायनिक अभिक्रियाशीलता कम होती है। वे धीरे-धीरे ऑक्सीकरण करते हैं और अम्लीय विलयन में अधिक आसानी से घुलते हैं।
- ऐक्टिनाइड्स: ऐक्टिनाइड्स की रासायनिक अभिक्रियाशीलता लैन्थेनाइड्स की तुलना में अधिक होती है। ये ऑक्सीकरण और रेडॉक्स अभिक्रियाओं में अधिक संलग्न होते हैं। ऐक्टिनाइड्स में रेडियोधर्मी गुण भी होते हैं, जो उनकी रासायनिक गतिविधियों को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 4.21: आप निम्नलिखित को किस प्रकार से स्पष्ट करेंगे –
(i) d4 स्पीशीज में से Cr2+ प्रबल अपचायक है, जबकि मैंगनीज (III) प्रबल ऑक्सीकारक है।
(ii) जलीय विलयन में कोबाल्ट (II) स्थायी है, परन्तु संकुलनकारी अभिकर्मकों की उपस्थिति में यह सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत हो जाता है।
(iii) आयनों का d1 विन्यास अत्यन्त अस्थायी है।
उत्तर 4.21: (i) Cr2+ प्रबल ऑक्सीकारक होता है क्योंकि इसमें 3d4 से 3d3 का परिवर्तन निहित है। 3d3 विन्यास (t32g) अधिक स्थायी है। Mn3+ के ऑक्सीकारक गुणों में 3d4 से 3d5 का परिवर्तन होता है। तथा 3d5 अधिक स्थायी विन्यास है। यही कारण है कि Mn3+ प्रबल ऑक्सीकारक है।
(ii) जटिलीकरण (complexing) अभिकर्मकों की उपस्थिति में क्रिस्टल फील्ड स्थिरीकरण ऊर्जा (CFSE) कोबाल्ट की तृतीय आयनन एन्थैल्पी से अधिक होती है। इस प्रकार Co (II) सरलता से Co (III) में ऑक्सीकृत हो जाता है।
(iii) वे आयन जिनमें d1 विन्यास होता है, वे d-उपकक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉन को त्यागने की प्रवृत्ति रखते हैं तथा अधिक स्थायी d0 विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। यह सरलता से सम्पन्न हो सकता है। क्योंकि जलयोजन या जालक ऊर्जा का मान d-उपकक्ष से इलेक्ट्रॉन के पृथक्कीकरण में निहित आयनन एन्थैल्पी से अधिक होता है।
प्रश्न 4.22: असमानुपातन से आप क्या समझते हैं? जलीय विलयन में असमानुपातन अभिक्रियाओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर 4.22: असमानुपातन (Disproportionation) एक ऐसी रासायनिक अभिक्रिया है, जिसमें एक ही तत्व के अणु या आयन एक साथ ऑक्सीकरण और अपचयन होते हैं, जिससे वह दो अलग-अलग ऑक्सीकरण अवस्थाओं में विभाजित हो जाता है। दूसरे शब्दों में, एक ही तत्व ऑक्सीकरण और अपचयन दोनों प्रक्रियाओं में भाग लेता है।
जलीय विलयन में असमानुपातन अभिक्रियाओं के दो उदाहरण:
- क्लोरीन का असमानुपातन:
Cl2 + 2OH− → ClO− + Cl− + H2O
इस अभिक्रिया में, क्लोरीन अणु (Cl2) असमानुपातित होकर (Cl−) (जिसमें क्लोरीन की ऑक्सीकरण अवस्था -1 होती है) और (ClO−) (जिसमें क्लोरीन की ऑक्सीकरण अवस्था +1 होती है) में बदल जाता है। - पोटैशियम परमैंगनेट का अम्लीय माध्यम में असमानुपातन:
\(3MnO_4^{2-} + 4H^+ \rightarrow\)\( 2MnO_4^- + MnO_2 + 2H_2O\)
यहाँ परमैंगनेट आयन \((MnO_4^{2-})\) का असमानुपातन होता है, जिससे \(MnO_4^-\) (जहाँ मैंगनीज की ऑक्सीकरण अवस्था +7 है) और MnO2 (जहाँ मैंगनीज की ऑक्सीकरण अवस्था +4 है) प्राप्त होते हैं।
इन अभिक्रियाओं में एक ही तत्व के विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्राप्त होती हैं, जो असमानुपातन का एक प्रमुख गुण है।
प्रश्न 4.23: प्रथम संक्रमण श्रेणी में कौन-सी धातु बहुधा तथा क्यों +1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाती हैं?
उत्तर 4.23: Cu(3d10 4s1) प्रायः +1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है तथा Cu+ आयन (3d10) बनाता है, जिसकी अधिक स्थायी विन्यास होता है।
प्रश्न 4.24: निम्नलिखित गैसीय आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की गणना कीजिए –
Mn3+, Cr3+, v3+ तथा Ti3+ इनमें से कौन-सा जलीय विलयन में अतिस्थायी है?
उत्तर 4.24:
- Mn3+; 3d4 अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 4
- Cr3+; 3d3 अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 3
- V3+; 3d3 अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 2
- Ti3+; 3d1 अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 1
इनमें से Cr3+ जलीय विलयन में अतिस्थायी हैं, क्योंकि इनमें अर्द्धपूरित t2g स्तर होता है।
प्रश्न 4.25: उदाहरण देते हुए संक्रमण धातुओं के रसायन के निम्नलिखित अभिलक्षणों का कारण बताइए –
(i) संक्रमण धातु का निम्नतम ऑक्साइड क्षारकीय है, जबकि उच्चतम ऑक्साइड उभयधर्मी या अम्लीय है।
(ii) संक्रमण धातु की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइडों तथा फ्लुओराइडों में। प्रदर्शित होती है।
(iii) धातु के ऑक्सोऋणायनों में उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित होती है।
उत्तर 4.25: (i) निम्नतम ऑक्साइड में संक्रमण धातु की ऑक्सीकरण अवस्था सबसे कम होती है। इसलिए ऑक्साइड क्षारीय होता है तथा उच्च ऑक्सीकरण अवस्था प्राप्त करने के लिए अम्ल से क्रिया कर ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति रखता है। जबकि उच्चतम ऑक्साइड उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में बनते हैं। परिणामस्वरूप, ये ऑक्साइड अम्लीय या उभयधर्मी होते हैं।
(ii) संक्रमण धातु की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइडों तथा फ्लुओराइडों में प्रदर्शित होती है। क्योंकि ऑक्सीजन तथा फ्लुओरीन उच्च विद्युत ऋणात्मक तत्त्व हैं तथा आकर में छोटे होते हैं। ये प्रबल ऑक्सीकारक होते हैं। उदाहरणार्थ– ऑस्मियम, OsF6 में +6 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है तथा वेनेडियम, V2O5 में +5 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है।
(iii) धातु ऑक्सोऋणायनों में उच्च ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित होती है जैसे- Cr2O2-7 में Cr की ऑक्सीकरण अवस्था +6 है, जबकि MnO–4 में Mn की ऑक्सीकरण अवस्था +7 है। धातु का ऑक्सीजन से संयोग का कारण यह है कि ऑक्सीजन उच्च विद्युत ऋणात्मक तथा ऑक्सीकरक तत्त्व है।
प्रश्न 4.26: निम्नलिखित को बनाने के लिए विभिन्न पदों का उल्लेख कीजिए – (i) क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 (ii) पाइरोलुसाइट से KMnO4
उत्तर 4.26: (i) क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 (पोटैशियम डाइक्रोमेट) बनाने की प्रक्रिया:
1. अम्लीय ऑक्सीकरण:
- सबसे पहले, क्रोमाइट अयस्क \((FeCr_2O_4)\) को सोडियम या पोटैशियम कार्बोनेट \((Na_2CO_3 \text{ या } K_2CO_3)\) के साथ और वायु की उपस्थिति में उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे सोडियम या पोटैशियम क्रोमेट बनता है:
\(4FeCr_2O_4 + 8Na_2CO_3 + 7O_2 \rightarrow\)\( 8Na_2CrO_4 + 2Fe_2O_3 + 8CO_2\)
2. अम्लीय माध्यम में परिवर्तित करना:
- अब, इस सोडियम क्रोमेट को अम्लीय माध्यम में मिलाकर डाइक्रोमेट में परिवर्तित किया जाता है। इसमें \( Na_2CrO_4 \) को (H+) से मिलाकर सोडियम डाइक्रोमेट \((Na_2Cr_2O_7)\) बनाया जाता है।
\(2Na_2CrO_4 + H_2SO_4 \rightarrow\)\( Na_2Cr_2O_7 + Na_2SO_4 + H_2O\)
3. पोटैशियम डाइक्रोमेट का निर्माण:
- अंत में, सोडियम डाइक्रोमेट को पोटैशियम क्लोराइड (KCl) के साथ क्रिया कराकर पोटैशियम डाइक्रोमेट \((K_2Cr_2O_7)\) प्राप्त किया जाता है:
\(Na_2Cr_2O_7 + 2KCl \rightarrow\)\( K_2Cr_2O_7 + 2NaCl\)
(ii) पाइरोलुसाइट से KMnO4 (पोटैशियम परमैंगनेट) बनाने की प्रक्रिया:
1. ऑक्सीकरण द्वारा मैंगनीज डाइऑक्साइड का क्रोमेट से क्रिया:
- पाइरोलुसाइट (MnO2) को पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH) और ऑक्सीजन (O2) की उपस्थिति में गर्म किया जाता है, जिससे पोटैशियम मैंगनेट (K2MnO4) बनता है:
2MnO2 + 4KOH + O2 → 2K2MnO4 + 2H2O
2. पोटैशियम मैंगनेट का ऑक्सीकरण:
- पोटैशियम मैंगनेट (K2MnO4) को अम्लीय या न्यूट्रल माध्यम में डालकर इसे पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO4) में परिवर्तित किया जाता है:
3K2MnO4 + 2H2O → 2KMnO4 + MnO2 + 4KOH
इन प्रक्रियाओं से क्रोमाइट अयस्क से ( K2Cr2O7 ) और पाइरोलुसाइट से ( KMnO4 ) का निर्माण किया जा सकता है।
प्रश्न 4.27: मिश्रातुएँ क्या हैं? लैन्थेनाइड धातुओं से युक्त एक प्रमुख मिश्रातु का उल्लेख कीजिए। इसके उपयोग भी बताइए।
उत्तर 4.27: मिश्रातुएँ वे पदार्थ हैं, जो दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर बनाए जाते हैं, जिससे उनकी यांत्रिक और रासायनिक विशेषताओं में सुधार किया जा सके। मिश्रातु बनाने का उद्देश्य धातुओं की कठोरता, स्थायित्व, संक्षारण प्रतिरोध, विद्युत या ऊष्मा चालकता जैसी विशेषताओं को बढ़ाना होता है।
लैन्थेनाइड धातुओं से युक्त प्रमुख मिश्रातु
मिश्र धातु का नाम: मिश्रधातु (Mischmetal)
- संरचना: यह मिश्रधातु लगभग 95% लैन्थेनाइड धातुओं का मिश्रण होती है, जिसमें मुख्यतः सेरियम (Ce), लैंथेनम (La), और अन्य लैन्थेनाइड्स (जैसे नियोडाइमियम (Nd) और प्रसीओडाइमियम (Pr)) होती हैं। बाकी 5% लोहा (Fe) और अन्य अवशिष्ट धातुएँ होती हैं।
उपयोग
1. हाइड्रोजन उत्पादन: मिश्रधातु का उपयोग हाइड्रोजन गैस के उत्पादन के लिए किया जाता है। पानी के साथ इसकी प्रतिक्रिया से हाइड्रोजन उत्पन्न होती है, जो एक महत्वपूर्ण उपयोग है।
2. एयरोस्पेस और नाभिकीय उद्योग में: मिश्रधातु का उपयोग विभिन्न एयरोस्पेस अनुप्रयोगों में किया जाता है, क्योंकि यह उच्च तापमान पर स्थिर रहती है। इसका उपयोग नाभिकीय रिएक्टरों में भी होता है।
प्रश्न 4.28: आन्तरिक संक्रमण तत्व क्या हैं? बताइए कि निम्नलिखित में कौन-से परमाणु क्रमांक आन्तरिक संक्रमण तत्वों के हैं –
29, 59, 74, 95, 102, 104
उत्तर 4.28: वे तत्त्व जिनमें विभेदी इलेक्ट्रॉन (n – 2) f-उपकक्षक में प्रवेश करता है, अन्त: संक्रमण तत्त्व कहलाते हैं। दिये गये तत्त्वों में 59,95 तथा 102 परमाणु क्रमांक वाले तत्त्व अन्त: संक्रमण तत्त्व हैं।
प्रश्न 4.29: ऐक्टिनाइड तत्वों का रसायन उतना नियमित नहीं है जितना कि लैन्थेनाइड तत्वों का रसायन। इन तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आधार पर इस कथन का आधार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर 4.29: लैन्थेनाइडों की ऑक्सीकरण अवस्थाएँ +2, +3 तथा +4 हैं। इनमें से +3 अवस्था सर्वाधिक सामान्य है। ऑक्सीकरण अवस्थाओं की सीमित संख्या का कारण 4f, 5d तथा 6s उपकक्षाओं के बीच अधिक ऊर्जा अन्तर होना है। इसके विपरीत, ऐक्टिनाइड अनेक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ जैसे +2, +3, +4, +5, +6 तथा +7 प्रदर्शित करते हैं, यद्यपि इनकी सामान्य अवस्था +3 होती है। इसका कारण यह है कि 5f, 6d तथा 7s उपकक्षाओं के बीच ऊर्जा का अन्तर कम होता है।
प्रश्न 4.30: ऐक्टिनाइड श्रेणी का अन्तिम तत्व कौन-सा है? इस तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इस तत्व की सम्भावित ऑक्सीकरण अवस्थाओं पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर 4.30: ऐक्टिनाइड श्रेणी का अन्तिम तत्त्व लॉरेन्शियम (Lr) है तथा इसका परमाणु क्रमांक 103 होता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Rn]5f14 6d1 7s2 है तथा सम्भावित ऑक्सीकरण अवस्था +3 है।
प्रश्न 4.31: हुंड-नियम के आधार पर Ce3+ आयन के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को व्युत्पन्न कीजिए तथा ‘प्रचक्रण मात्र सूत्र’ के आधार पर इसके चुंबकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।
उत्तर 4.31: Ce तथा Ce3+ आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न है –
Ce (Z = 58) : 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6
4d10 4f1 5s2 5p6 5d1 6s2 या : [Xe] 4f1 5d1 6s2
Ce3+ (z = 55) : [Xe]4f1
इस प्रकार Ce+ में केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होता है, अर्थात् n = 1
∴ μs = \(\sqrt { n(n+2) } \) BM
= \(\sqrt { 1\times (1+2) } =\sqrt { 3 } \)
= 1.732 BM
प्रश्न 4.32: लैन्थेनाइड श्रेणी के उन सभी तत्वों का उल्लेख कीजिए जो +4 तथा जो +2 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाते हैं। इस प्रकार के व्यवहार तथा उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर 4.32: +4 ऑक्सीकरण अवस्था : Ce, Pr, Nd, Tb तथा Dy
+2 ऑक्सीकरण अवस्था : Ce, Nd, Sm, Tm तथा Yb
ये तत्त्व +2 ऑक्सीकरण अवस्था उस समय प्रदर्शित करते हैं जब इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d0 6s2 होता है। इसके विपरीत, +4 अवस्था उस समय प्रदर्शित की जाती है जब इनका शेष विन्यास 4f0 के समीप (जैसे 4f1, 4f2, 4f3) या 4f7 की समीप (जैसे 4f8, 4f9) होता है।
प्रश्न 4.33: निम्नलिखित के सन्दर्भ में ऐक्टिनाइड श्रेणी के तत्वों तथा लैन्थेनाइड श्रेणी के तत्वों के रसायन की तुलना कीजिए –
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ।
(iii) रासायनिक अभिक्रियाशीलता।
उत्तर 4.33: ऐक्टिनाइड और लैन्थेनाइड श्रेणी के तत्वों के रसायन की तुलना निम्नलिखित आधार पर की जा सकती है:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
- लैन्थेनाइड्स: लैन्थेनाइड्स के तत्वों में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सामान्यतः [Xe]54 4f1-14 5d0-1 6s2 होता है। लैन्थेनाइड श्रेणी के तत्वों में, (4f) कक्ष की क्रमिक पूर्ति होती है।
- ऐक्टिनाइड्स: ऐक्टिनाइड्स के तत्वों में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Xe]54 4f1-14 5d0-1 6s2 होता है। ऐक्टिनाइड श्रेणी के तत्वों में (5f) कक्ष की पूर्ति होती है। ऐक्टिनाइड्स में (5f) इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा (6d) और (7s) इलेक्ट्रॉनों के बराबर होती है, जिससे यह अस्थिरता प्रदर्शित करते हैं।
(ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ
- लैन्थेनाइड्स: अधिकांश लैन्थेनाइड्स +3 ऑक्सीकरण अवस्था में स्थिर रहते हैं। कुछ तत्व +2 और +4 अवस्थाएँ भी दिखाते हैं, लेकिन ये असामान्य होती हैं।
- ऐक्टिनाइड्स: ऐक्टिनाइड्स में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ +3 से +6 तक पाई जाती हैं। कई ऐक्टिनाइड तत्व +4 और +5 अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं और कुछ तत्व, जैसे यूरेनियम, +6 ऑक्सीकरण अवस्था तक पहुँच सकते हैं। इस कारण ऐक्टिनाइड्स में ऑक्सीकरण अवस्थाओं की विविधता अधिक होती है।
(iii) रासायनिक अभिक्रियाशीलता
- लैन्थेनाइड्स: लैन्थेनाइड्स अपेक्षाकृत कम रासायनिक रूप से सक्रिय होते हैं। यह धीमी ऑक्सीकरण दर के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और पानी के साथ धीरे-धीरे अभिक्रिया करते हैं। इनकी रासायनिक अभिक्रियाएँ धीरे-धीरे होती हैं।
- ऐक्टिनाइड्स: ऐक्टिनाइड्स अत्यधिक रासायनिक रूप से सक्रिय होते हैं, विशेषकर शुरुआती ऐक्टिनाइड तत्व, जैसे यूरेनियम और थोरियम। ये हवा में तेजी से ऑक्सीकरण करते हैं और पानी के साथ भी तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं। ऐक्टिनाइड्स में रेडियोधर्मिता होती है जो उनकी अभिक्रियाशीलता को बढ़ाती है।
प्रश्न 4.34: 61, 91, 101 तथा 109 परमाणु क्रमांक वाले तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर 4.34:
Z = 61 (प्रोमिथियम, Pm) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास,
[Xe]54 4f5 5d0 6s2
Z = 91 (प्रोटेक्टिनियम, Pa) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास,
[Rn]86 5f2 6d1 7s2
Z = 101 (मेण्डेलीवियम, Md) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
[Rn]86 5f13 6d0 7s2
Z = 109 (मेटनेरियम, Mt) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
[Rn]86 5f14 6d7 7s2
प्रश्न 4.35: प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के अभिलक्षणों की द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के वर्गों के संगत तत्वों से क्षैतिज वर्गों में तुलना कीजिए। निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष महत्त्व दीजिए –
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (iii) आयनन एन्थैल्पी तथा (iv) परमाण्वीय आकार।
उत्तर 4.35: 1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic configuration) – एक ही वर्ग के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सामान्यतया समान होते हैं। यद्यपि प्रथम संक्रमण श्रेणी दो अपवाद प्रदर्शित करती है –
Cr = 3d5 4s1 तथा Cu = 3d10 4s1, परन्तु द्वितीय श्रेणी इससे अधिक अपवाद प्रदर्शित करती है –
Mo (42) = 4d5 5s1, Tc (43) = 4d6 5s1, Ru (44) = 4d7 5s1, Rh (45) = 4d8 5s1, Pd (46) = 4d210 5s0, Ag (47) = 4d10 5s1। इसी प्रकार, तृतीय श्रेणी में W (74) = 5d4 6s1, Pt (78) = 5d9 6s1 तथा Au (79) = 5d10 6s1 अपवाद हैं। इसलिए क्षैतिज वर्ग में अनेक स्थितियों में, तीनों श्रेणियों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान नहीं हैं।
2. ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Oxidation states) – दोनों श्रृंखलाओं में तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अलग-अलग होती हैं। उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ‘s’ और ‘d’ ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉनों की कुल मात्रा के अनुरूप होती है। 5d संक्रमण श्रृंखला 4d श्रृंखला की तुलना में कम ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दिखाती है। 3d श्रृंखला में, +2 और +3 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ आम हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्थिर संकुल बनते हैं। अन्य श्रृंखलाओं में, OsO4 और PtF6 उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाओं पर स्थिर होते हैं।
3. आयनन एन्थैल्पी (Ionization enthalpy) – प्रत्येक श्रेणी में बाएँ से दाएँ जाने पर प्रथम आयनन एन्थैल्पी सामान्यतया धीरे-धीरे बढ़ती है, यद्यपि प्रत्येक श्रेणी में कुछ अपवाद भी प्रेक्षित होते हैं। समान क्षैतिज वर्ग में 3d श्रेणी के तत्वों की तुलना में 4d श्रेणी के कुछ तत्वों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी उच्च तथा कुछ तत्वों की कम होती है, यद्यपि 5d श्रेणी की प्रथम आयनन एन्थैल्पी 3d तथा 4d श्रेणियों की तुलना में उच्च होती है। इसका कारण 5d श्रेणी में 4f इलेक्ट्रॉनों पर नाभिक का दुर्बल परिरक्षण प्रभाव है।
4. परमाण्वीय आकार (Atomic sizes) – सामान्यतया किसी श्रेणी में समान आवेश के आयन अथवा परमाणु, परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ त्रिज्याओं में क्रमिक कमी प्रदर्शित करते हैं, यद्यपि यह कमी अत्यन्त कम होती है। परन्तु 4d श्रेणी के परमाणुओं के आकार, 3d श्रेणी के सम्बन्धित तत्वों की तुलना में अधिक होते हैं, जबकि 5d श्रेणी के सम्बन्धित तत्वों के आकार के लगभग समान होते हैं। इसका कारण लैन्थेनाइड आकुंचन है।
प्रश्न 4.36: निम्नलिखित आयनों में प्रत्येक के लिए 3d इलेक्ट्रॉनों की संख्या लिखिए –
Ti2+, V2+, Cr3+, Mn2+, Fe2+, Fe3+, Co2+, Ni2+, Cu2+
आप इन जलयोजित आयनों (अष्टफलकीय) में पाँच 3d कक्षकों को किस प्रकार अधिग्रहीत करेंगे? दर्शाइए।
उत्तर 4.36:
धातु आयन | d-इलेक्ट्रॉनों की संख्या | डी-ऑर्बिटल्स का भरना |
Ti2+ | 2 | t2g2 |
V2+ | 3 | t2g3 |
Cr3+ | 3 | t2g3 |
Mn2+ | 5 | t2g3 eg2 |
Fe2+ | 6 | t2g4 eg2 |
Fe3+ | 5 | t2g3 eg2 |
CO2+ | 7 | t2g5 eg2 |
Ni2+ | 8 | t2g6 eg2 |
Cu2+ | 9 | t2g6 eg3 |
प्रश्न 4.37: प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व भारी संक्रमण तत्वों के अनेक गुणों से भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर 4.37: दिया गया कथन सत्य है। इस कथन के पक्ष में कुछ प्रमाण निम्नलिखित हैं –
- प्रथम संक्रमण श्रेणी में, निम्न ऑक्सीकरण अवस्थाएं अधिक स्थायी होती हैं, जबकि भारी संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाएं अधिक होती हैं।
- 5d संक्रमण श्रृंखला, 3d और 4d संक्रमण श्रृंखला की तुलना में उच्च आयनन एन्थैल्पी प्रदर्शित करती है।
- M-M बंधन भारी संक्रमण धातुओं में प्रचलित है, लेकिन पहली श्रृंखला में कम।
- प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व 7 या 8 उपसहसंयोजन संख्या वाले संकुल नहीं बनाते हैं।
- पहली श्रेणी के तत्व लिगैंड शक्ति के आधार पर उच्च या निम्न स्पिन संकुल बना सकते हैं, जबकि दूसरी श्रेणी के तत्व लिगैंड शक्ति की परवाह किए बिना निम्न स्पिन संकुल बनाते हैं।
प्रश्न 4.38: निम्नलिखित संकुल स्पीशीज़ के चुंबकीय आघूर्णो के मान से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे?
उदाहरण | चुंबकीय आघूर्ण (BM) |
K4[Mn(CN)6] | 2.2 |
[Fe(H2O)6]2+ | 5.3 |
K2[MnCl4] | 5.9 |
उत्तर 4.38:
चुंबकीय आघूर्ण (μ): \(\nu = \sqrt{n(n+2)}\)
जब n = 1,
\(\nu = \sqrt{1(1+2)} = \sqrt{3} = 1.732\)
जब n = 2,
\(\nu = \sqrt{2(2+2)} = \sqrt{8} = 2.83\)
जब n = 3,
\(\nu = \sqrt{3(3+2)} = \sqrt{15} = 3.87\)
जब n = 4,
\(\nu = \sqrt{4(4+2)} = \sqrt{24} = 4.899\)
जब n = 5,
\(\nu = \sqrt{5(5+2)} = \sqrt{35} = 5.92\)
K4[Mn(CN)6]: Mn की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है, और Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d5 है।
चूँकि μ = 2.2 BM जो एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन के अनुरूप है। Mn2+ के लिए कक्षीय आरेख 3d है।
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[Fe(H2O)6]2+: μ = 5.3 BM 4 अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के अनुरूप है। Fe2+ आयन का विन्यास [Ar]3d6 है और कक्षीय आरेख 3d है।
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K2[MnCl4]: μ = 5.9 BM, Mn2+ आयन में 5 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। इसका कक्षीय आरेख 3d है।
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