Class 12 Chemistry Chapter 5 ncert solutions in hindi उपसहसंयोजन यौगिक

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Chemistry Class 12 Chapter 5 exercise solutions in hindi: Class 12 Chemistry Chapter 5 Question answer in Hindi

TextbookNcert
ClassClass 12
SubjectChemistry
ChapterChapter 5
Chapter Nameउपसहसंयोजन यौगिक Class 12 ncert solutions in hindi
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 5.1: वर्नर की अभिधारणाओं के आधार पर उपसहसंयोजन यौगिकों में आबंधन को समझाइए।

उत्तर 5.1: मुख्य अभिधारणाओं इस प्रकार हैं:

  • उपसहसंयोजन यौगिकों में धातुएँ दो प्रकार की संयोजकताएँ दर्शाती हैं- प्राथमिक तथा द्वितीयक।
  • प्राथमिक संयोजकताएँ सामान्य रूप से धातु परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था से संबंधित होती हैं। तथा आयननीय होती हैं। ये संयोजकताएँ ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं।
  • द्वितीयक संयोजकताएँ धातु परमाणु की उपसहसंयोजन संख्या से संबंधित होती हैं। द्वितीयक संयोजकताएँ अन-आयननीय होती हैं। ये उदासीन अणुओं अथवा ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं। द्वितीयक संयोजकता उपसहसंयोजन संख्या के बराबर होती है तथा इसका मान किसी धातु के लिए सामान्यत: निश्चित होता है।
  • धातु से द्वितीयक संयोजकता से आबंधित आयन समूह विभिन्न उपसहसंयोजन संख्या के अनुरूप दिक्स्थान में विशिष्ट रूप से व्यवस्थित रहते हैं।

प्रश्न 5.2: FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1 : 1 मोलर अनुपात में मिश्रण Fe2+ आयन का परीक्षण देता है, परंतु CuSOव जलीय अमोनिया का 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रण Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता। समझाइए क्यों?

उत्तर 5.2: FeSO4 विलयन को (NH4)2SO4 विलयन में 1 : 1 मोलर अनुपात में मिश्रित करने पर एक द्विक-लवण प्राप्त होता है, जिसे मोहर लवण (FeSO4.(NH4)2SO4.6H2O) कहते हैं। यह निम्न प्रकार आयनित होता है –
FeSO4 .(NH4)2 SO4 .6H4O → F2+ + 2NH+4 + 3SO2-4 + 6H2O

विलयन में Fe2+ आयनों की उपस्थिति के कारण यह Fe2+ आयन का परीक्षण देता है। जब CuSO4 विलयन को जलीय अमोनिया में 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रित किया जाता है, तो संकर लवण [Cu(NH4)4]SO4 प्राप्त होता है। यह विलयन में निम्न प्रकार आयनित होता है-
[Cu(NH3)4]SO4 → [Cu(NH3)4]2+ + SO2-4
संकर आयन [Cu(NH3)4]2+ पुन: आयनित होकर Cu2+ आयन नहीं देता है। इसलिए विलयन Cu2+ आयन का परीक्षण नहीं देता है।

प्रश्न 5.3: प्रत्येक के दो उदाहरण देते हुए निम्नलिखित को समझाइए-समन्वय समूह, लिगेण्ड, उपसहसंयोजन संख्या, उपसहसंयोजन बहुफलक, होमोलेप्टिक तथा हेटरोलेप्टिक।

उत्तर 5.3: निम्नलिखित प्रश्न में दिए गए रासायनिक शब्दों का अर्थ और उनके उदाहरण समझाए गए हैं:

1. समन्वय समूह: समन्वय समूह वे परमाणु या परमाणुओं के समूह होते हैं जो केंद्रीय धातु आयन के साथ सीधे जुड़कर समन्वय यौगिक का निर्माण करते हैं। ये समूह यौगिक में लिगैंड की तरह काम करते हैं और केंद्रीय धातु आयन के साथ सहसंयोजन बंध के रूप में जुड़ते हैं।

  • उदाहरण:
    1. \([Cu(NH_3)_4]^{2+}\) में \(NH_3\) समन्वय समूह है।
    2. \([Fe(CN)_6]^{3-}\) में \(CN^-\) समन्वय समूह है।

2. लिगैंड: लिगैंड वह परमाणु या परमाणुओं का समूह होता है जो केंद्रीय धातु आयन के साथ सहसंयोजक बंध बनाता है। लिगैंड्स केंद्रीय आयन के आसपास एक विशेष संरचना बनाते हैं और इलेक्ट्रॉन दाता के रूप में काम करते हैं।

  • उदाहरण:
    1. \(H_2O\) (जैसे \([Fe(H_2O)_6]^{3+}\) में)
    2. \(Cl^-\) (जैसे \([CuCl_4]^{2-}\) में)

3. उपसहसंयोजन संख्या: उपसहसंयोजन संख्या उस संख्या को कहते हैं जो यह दर्शाती है कि केंद्रीय धातु आयन के साथ कितने लिगैंड बंधित हैं। यह उस संख्या को दर्शाता है, जितने लिगैंड्स केंद्रीय धातु आयन से सीधे जुड़ते हैं।

  • उदाहरण:
    1. \([PtCl_6]^{2-}\) में प्लैटिनम की उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
    2. \([Ni(CO)_4]\) में निकल की उपसहसंयोजन संख्या 4 है।

4. उपसहसंयोजन बहुफलक: उपसहसंयोजन बहुफलक वह ज्यामितीय संरचना होती है जो केंद्रीय धातु आयन के चारों ओर लिगैंड्स के स्थिति से बनती है।

  • उदाहरण:
    1. \([Cu(NH_3)_4]^{2+}\) में समन्वय बहुफलक एक चतुष्फलकीय (tetrahedral) होता है।
    2. \([Co(NH_3)_6]^{3+}\) में समन्वय बहुफलक एक अष्टफलकीय (octahedral) होता है।

5. होमोलेप्टिक यौगिक: होमोलेप्टिक यौगिक वे होते हैं जिनमें सभी लिगैंड्स एक ही प्रकार के होते हैं। इस प्रकार के यौगिकों में केंद्रीय धातु आयन एक ही प्रकार के लिगैंड्स से बंधा होता है।

  • उदाहरण:
    1. \([Co(NH_3)_6]^{3+}\)
    2. \([Cu(CN)_4]^{2-}\)

6. हेटरोलेप्टिक यौगिक: हेटरोलेप्टिक यौगिक वे होते हैं जिनमें लिगैंड्स दो या अधिक प्रकार के होते हैं। इस प्रकार के यौगिकों में केंद्रीय धातु आयन अलग-अलग प्रकार के लिगैंड्स से बंधा होता है।

  • उदाहरण:
    1. \([Cu(NH_3)_4Cl_2]\)
    2. \([Fe(CO)_5(NO)]\)

प्रश्न 5.4: एकदन्तुर, द्विदन्तुर तथा उभयदन्तुर लिगेण्ड से क्या तात्पर्य है? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर 5.4: एकदन्तुर, द्विदन्तुर और उभयदन्तुर लिगैंड धातु आयन से जुड़ने की उनकी क्षमता के आधार पर वर्गीकृत होते हैं। आइए इनके बारे में समझते हैं और उदाहरणों के साथ विस्तार से जानते हैं:

1. एकदन्तुर लिगैंड: एकदन्तुर लिगैंड ऐसे लिगैंड होते हैं जो केंद्रीय धातु आयन से केवल एक आबंध (समन्वय बंध) बनाते हैं। इन लिगैंड्स के पास एक ही ऐसा परमाणु होता है जो धातु आयन के साथ आबंध बना सकता है।

  • उदाहरण:
  • Cl (क्लोराइड आयन)
  • NH3 (अमोनिया)

2. द्विदन्तुर लिगैंड: द्विदन्तुर लिगैंड ऐसे लिगैंड होते हैं जो केंद्रीय धातु आयन से दो स्थानों पर आबंध बनाते हैं। इन लिगैंड्स में दो आबंध स्थल होते हैं, जो एक ही समय में धातु आयन से जुड़ सकते हैं।

  • उदाहरण:
  • एथिलीन डायमीन \((NH_2CH_2CH_2NH_2)\) (दो नाइट्रोजन परमाणु के माध्यम से धातु से जुड़ता है)
  • ऑक्सालेट आयन \((C_2O_4^{2-})\) (दो ऑक्सीजन परमाणु के माध्यम से धातु से जुड़ता है)

3. उभयदन्तुर लिगैंड: उभयदन्तुर लिगैंड ऐसे लिगैंड होते हैं जिनके पास दो संभावित आबंध स्थल होते हैं, लेकिन ये एक समय में केवल एक स्थल से धातु आयन से जुड़ते हैं। इनमें दो आबंध स्थलों में से कोई एक धातु से आबंध बना सकता है।

  • उदाहरण:
  • साइनाइड आयन (CN) (कार्बन या नाइट्रोजन के माध्यम से जुड़ सकता है)
  • नाइट्रो आयन (NO2​) (नाइट्रोजन या ऑक्सीजन के माध्यम से जुड़ सकता है)

प्रश्न 5.5: निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में धातुओं के ऑक्सीकरण अंक का उल्लेख कीजिए –
(i) [Co(H2O)(CN)(en)2]2+, (ii) [CoBr2(en)2]+, (iii) [PtCl4]2–, (iv) K3[Fe(CN)6], (v) [Cr(NH3)3Cl3 

उत्तर 5.5: माना कि दिये गये संकर आयनों में धातु के ऑक्सीकरण अंक x हैं। अत:

  • (i) [Co(H2O)(CN)(en)2]2+ x + 0 + (–1) + (2 × 0) = + 2, x = +3
  • (ii) [CoBr2(en)2]+ x + 2 × (–1) + (2 × 0) = + 1, x = +3
  • (iii) [PtCl4]2– x + (–1) × 4 = –2, x = +2
  • (iv) K3[Fe(CN)6] 1 × 3 + x + 6 × (–1) = 0, x = +3
  • (v) [Cr(NH3)3Cl3] x + 3 × 0 + 3 × (–1) = 0, x = +3

प्रश्न 5.6: IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के लिए सूत्र लिखिए –
(i) टेट्राहाइड्रॉक्सिडोजिंकेट(II)
(ii) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
(iii) डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लैटिनम (II)
(iv) पोटैशियम टेट्रासायनिडोनिकिलेट (II)
(v) पेन्टाऐम्मीननाइट्रिटो-O-कोबाल्ट(III)
(vi) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट(III) सल्फेट
(vii) पोटैशियम ट्राइ (ऑक्सेलेटो) क्रोमेट(III)
(viii) हेक्साऐम्मीनप्लैटिनम(IV)
(ix) टेट्राब्रोमिडोक्यूप्रेट(II)
(x) पेन्टाऐम्मीनंनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट(III)

उत्तर 5.6:

  • ( i ) [Zn(OH)4]2 –
  • ( ii ) K2[ Pd Cl4]
  • ( iii ) [ Pt ( NH3)2Cl2]
  • ( iv ) K2[ Ni(CN )4]
  • ( v ) [ Co (NO2) ( NH3)52+
  • ( vi) [ Co( NH3)6]2 (SO4)3
  • ( vii ) K3 [ Cr ( C2O4)3]
  • ( viii ) [ Pt (NH3)64+
  • ( ix ) [ Cu (Br)42−
  • ( x ) [Co(NH3)5(NO2)]2+

प्रश्न 5.7: IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के सुव्यवस्थित नाम लिखिए –
(i) [Co(NH3)6]Cl3, (ii) [Pt(NH3)2Cl(NH2CH3)]Cl, (iii) [Ti(H2O)6]3+, (iv) [Co(NH3)4Cl(NO2)]Cl, (v) [Mn(H2O)6]2+, (vi) [NiCl4]2–, (vii) [Ni(NH3)6]Cl2, (viii) [Co(en)3]3+, (ix) [Ni(CO)4]

उत्तर 5.7:

  1. हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
  2. डाइऐम्मीनक्लोरिडो( मेथिल ऐमीन)प्लैटिनम (II) क्लोराइड
  3. हेक्साऐक्वाटाइटेनियम (III) आयन
  4. टेट्राऐम्मीनक्लोरिडोनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट (III) क्लोराईड
  5. हेक्साऐक्वामैंगनीज (II) आयन
  6. टेट्राक्लोरिडोनिकिलेट (II) आयन
  7. हेक्साऐम्मीननिकिल (II) क्लोराइड
  8. ट्रिस(एथेन-1,2-डाइऐमीन) कोबाल्ट (III) आयन
  9. टेट्राकार्बोनिलनिकिल(0)।

प्रश्न 5.8: उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए सम्भावित विभिन्न प्रकार की समावयवताओं को सूचीबद्ध कीजिए तथा प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर 5.8: उपसहसंयोजन यौगिक में समावयवता दो प्रकार की होती है:

(1) संरचनात्मक समावयवता, (2) त्रिविम समावयवता

(1) संरचनात्मक समावयवता: यह 4 प्रकार की होती है:

(i) बंधनी समावयवता: इस प्रकार की समावयवता उन संकुलों में पाई जाती है जिनमें उभयदंतीय लिगैंड होते हैं। उदाहरण के लिए: 

[Co(NH3)5(NO2)]Cl2, जो लाल रूप में प्राप्त होता है और [Co(NH3)5(ONO)]Cl2 जो पीले रूप में प्राप्त होता है।

(ii) उपसहसंयोजन समावयवता: इस प्रकार की समावयवता तब उत्पन्न होती है जब परिसर में उपस्थित विभिन्न धातु आयनों की धनायनिक और ऋणायन इकाइयों के बीच लिगैंडों का आदान-प्रदान होता है।

[Co(NH3)6] [Cr(CN)6] और [Cr(NH3)6] [Co(CN)6]

(iii) आयनन समावयवता: इस प्रकार की समावयवता तब उत्पन्न होती है जब समन्वय क्षेत्र के भीतर एक प्रतिआयन एक लिगैंड की जगह लेता है। इस प्रकार, ऐसे संकुल जिनकी संरचना समान होती है लेकिन पानी में घुलने पर अलग-अलग आयन देते हैं, उन्हें आयनीकरण समावयवी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, Co(NH3)5SO4)Br और Co(NH3)5Br]SO4

(iv) विलायकयोजन समावयवता: विलायकयोजन समावयवों में इस आधार पर अंतर होता है कि विलायक अणु सीधे धातु आयन से बंधा है या नहीं, या केवल क्रिस्टल जालक में एक मुक्त विलायक अणु के रूप में मौजूद है।

[Cr[H2O)6]Cl3 (बैंगनी) तथा [Cr(H2O)5Cl]Cl2.H2O (भूरा-हरा)।

(2) त्रिविम समावयवता:  यह 2 प्रकार का होता है:

(i) ज्यामितीय समावयवता: इस प्रकार की समावयवता हेटेरोलेप्टिक संकुलों में आम है। यह लिगैंड्स की विभिन्न संभावित ज्यामितीय व्यवस्थाओं के कारण उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए:

(ii) ध्रुवण समावयवता: इस प्रकार की समावयवता काइरल अणुओं में उत्पन्न होती है। समावयव एक दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं तथा एक दूसरे पर अध्यारोपित नहीं किए जा सकते।

प्रश्न 5.9: निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में कितने ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं?
(i) [Cr(C2O4)3]3–, (ii) [Co(NH3)3Cl3]

उत्तर 5.9: (i) [Cr(C2O4)3]3− के लिए कोई ज्यामितीय समावयवी सम्भव नहीं है क्योंकि यह एक द्विदंतीय लिगैंड है।

(ii) [Co(NH3)3Cl3] दो ज्यामितीय समावयवी संभव हैं।

प्रश्न 5.10: निम्नलिखित के प्रकाशिक समावयवों की संरचनाएँ बनाइए –
(i) [Cr(C2O4)3]3–, (ii) [PtCl2(en)2]2+, (iii) [Cr(NH3)2Cl2(en)]+

उत्तर 5.10: (i) [Cr(C2O4)3]3–

(ii) [PtCl2(en)2]2+

(iii) [Cr(NH3)2Cl2(en)]+

प्रश्न 5.11: निम्नलिखित के सभी समावयवों (ज्यामितीय व ध्रुवण) की संरचनाएँ बनाइए –
(i) [CoCl2(en)2]+, (ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+, (iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+

उत्तर 5.11: (i) [CoCl2(en)2]+

    विपक्ष  [CoCl2(en)2]+

समपक्ष [CoCl2(en)2]ध्रुवण समावयवता (d तथा l)

(ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+

विपक्ष समावयव

समपक्ष-समावयव ध्रुवण समावयवता 

(iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+

सभी असममिताकार हैं, इसलिए सभी प्रकाशिक समावयवता अर्थात् d(+) तथा l(-) रूप प्रदर्शित करेंगे जो एक-दूसरे पर अध्यारोपित न होने वाले दर्पण प्रतिबिंब हैं।

प्रश्न 5.12: [Pt(NH3)(Br)(Cl)(Py)] के सभी ज्यामितीय समावयव लिखिए। इनमें से कितने ध्रुवण अर्थात प्रकाशिक समावयवता दर्शाएँगे?

उत्तर 5.12: दिए गए यौगिक के तीन ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं।

इस प्रकार के समावयव ध्रुवण समावयवता नहीं दर्शाते हैं। ध्रुवण समावयवता वर्ग समतली या चतुष्फलकीय संकुलों में दुर्लभ रूप में पायी जाती है। जबकि इनमें असममिताकार कोलेटिंग लिगेण्ड उपस्थित हों।

प्रश्न 5.13: जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का), निम्नलिखित प्रेक्षण दर्शाता है –
(i) जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड के साथ हरा रंग
(ii) जलीय पोटैशियम क्लोराइड के साथ चमकीला हरा रंग।

उत्तर 5.13: जलीय कॉपर सल्फेट (CuSO4) का विलयन नीला रंग दिखाता है क्योंकि इसमें [Cu(H2O)4]2+ कॉम्प्लेक्स होता है, जिसमें पानी लिगैंड के रूप में कार्य करता है। जब अन्य लिगैंड्स प्रतिस्थापित होते हैं, तो रंग बदल जाता है।

(i) जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड (KF) जलीय कॉपर सल्फेट विलयन [Cu(H2O)4]SO4 के रूप में स्थित रहता है तथा [Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण इसका रंग नीला होता है। जब KF विलयन मिलाया जाता है, तो दुर्बल H2O लिगन्ड प्रबल F-लिगन्ड के द्वारा। प्रतिस्थापित हो जाते हैं। इस प्रकार, [CuF4]2− आयन बनते हैं, जो हरा अवक्षेप देते हैं।

[Cu(H2O)4]2+ + 4F → [Cu(F)4]2- + 4H2O

(ii) जलीय पोटैशियम क्लोराइड (KCl) जलीय कॉपर सल्फेट विलयन [Cu(H2O)4]SO4 के रूप में स्थित रहता है तथा [Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण इसका रंग नीला होता है। जब KCl विलयन मिलाया जाता है तो Cl लिगन्ड्स दुर्बल H2O लिगन्ड्स को प्रतिस्थापित कर देते हैं और [CuCl4]2− आयन बनाते हैं, जो चमकीले हरे रंग के होते हैं।

[Cu(H2O)4]2+ + 4Cl → [CuCl4]2- + 4H2O

अर्थात, दोनों लिगैंड्स (F और Cl) के जुड़ने से कॉम्प्लेक्स के रंग में परिवर्तन होता है, जो लिगैंड के प्रकार पर निर्भर करता है।

प्रश्न 5.14: कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN को आधिक्य में मिलाने पर बनने वाली उपसहसंयोजन सत्ता क्या होगी? इस विलयन में जब H2S गैस प्रवाहित की जाती है तो कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों नहीं प्राप्त होता?

उत्तर 5.14: जब जलीय KCN विलयन को जलीय कॉपर सल्फेट के विलयन में मिलाया जाता है, तो निम्न प्रकार से [Cu(CN)4]2− उपसहसंयोजन स्पीशीज प्राप्त होती है –

[Cu(H2O)4]2+ + 4CN ⟶ [Cu(CN)4]2− + 4H2O

इस प्रकार बनी उपसहसंयोजन स्पीशीज [Cu(CN)4]2− अत्यधिक स्थिर होती है क्योंकि CN प्रबल लिगन्ड होते हैं। इसलिए इस विलयन में H2S गैस प्रवाहित करने पर CuS का अवक्षेप प्राप्त नहीं होता है क्योंकि मुक्त Cu2+ आयन उपलब्ध नहीं होते हैं।

प्रश्न 5.15: संयोजकता आबन्धसिद्धान्त के आधार पर निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए –
(i) [Fe(CN)6]4–, (ii) [FeF6]3–, (iii) [Co(C2O4)3]3–, (iv) [CoF6]3-

उत्तर 5.15: 1. [Fe(CN6)]4- – इस संकुल आयन में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है।
Fe का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d6 4s2
Fe 2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d6
छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए आयरन (II) आयन को छह रिक्त कक्षक उपलब्ध करने चाहिए। ऐसा निम्नलिखित संकरण पद्धति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जिसमें d-उपकोश के इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं, चूँकि CN आयन प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड हैं।

अत: छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्म आयरन (II) आयन के छह संकरित कक्षकों को अध्यासित कर लेते हैं। इस प्रकार किसी भी कक्षक में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकत्व दर्शाता है। अतः [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय है।

2. [FeF6]3- – यह संकुल उच्च चक्रण (या चक्रण मुक्त) या बाह्य संकुल है, चूंकि केन्द्रीय धातु आयन, Fe(III) संकरण के लिए nd-कक्षकों का प्रयोग करता है। यह एक अष्टफलकीय संकुल है। जिसमें sp3 d2 संकरण होता है, प्रत्येक कक्षक में छह फ्लुओराइड आयनों से एक-एक एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म स्थान प्राप्त करता है जैसा कि निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है –

चूँकि संकुल में पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं, अत: यह अनुचुम्बकीय है।

3. [CO(C2O4)3]3-
Co (Z = 27) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : [Ar] 3d7 4s2
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : [Ar] 3d6 4s0
C2O2-4 प्रबल क्षेत्रीय लिगेण्ड है जिसके कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।

अतः स्पष्ट है कि [Co(C2O4)3]3- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।

4. [CoF6]3- – Co (27) : [Ar] 3d7 4s2
Co3+ : [Ar] 3d6 4s0
F एक दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड होने के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं कर सकता है।

अतः [CoF6]3- अनुचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।

प्रश्न 5.16: अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d-कक्षकों के विपाटन को दर्शाने के लिए चित्र बनाइए।

उत्तर 5.16: माना छह लिगन्ड कार्तिक अक्षों के अनुदिश सममित रूप से स्थित हैं तथा धातु परमाणु मूल बिंदु पर है।

लिगन्ड के निकट आने पर d-कक्षकों की ऊर्जा में मुक्त आयनों की तुलना में अपेक्षित वृद्धि होती है। जैसा कि गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की स्थिति में होता है।

अक्षों के अनुदिश कक्षक (dZdZ2 तथा dxydx2-y2) dxy , dyz तथा dzx कक्षकों की तुलना में अधिक प्रबलता से प्रतिकर्षित होते हैं तथा इनमें अक्षों के मध्य निर्देशित पालियाँ (lobes) होती हैं। गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र में औसत ऊर्जा की अपेक्षा dZdZ2 तथा dxydx2-y2 कक्षक ऊर्जा में बढ़ जाते हैं तथा dxy, dyz, dzx, कक्षक ऊर्जा में न्यून हो जाते हैं।

अतः d- कक्षकों का समभ्रंश समूह (degenerate set) दो समूहों में विपाटित हो जाता है- निम्न ऊर्जा कक्षक समूह t2g तथा उच्च ऊर्जा कक्षक समूह eg ऊर्जा Δ0 द्वारा पृथक्कृत होती हैं।

प्रश्न 5.17: स्पेक्ट्रमीरासायनिक श्रेणी क्या है? दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर 5.17: क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, Δ0 लिगन्ड तथा धातु आयन पर विद्यमान आवेश से उत्पन्न क्षेत्र पर निर्भर करता है। कुछ लिगन्ड प्रबल क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं तथा ऐसी स्थिति में विपाटन अधिक होता है, जबकि अन्य दुर्बल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जिसके फलस्वरूप d-कक्षकों का विपाटन कम होता है। सामान्यत: लिगन्डों को उनके बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में एक श्रेणी में निम्नानुसार व्यवस्थित किया जा सकता है –

I− < Br− < S2− < SCN− < Cl−< N3 < F− < OH− < C2O42− ∼ H2O < NCS− ∼ H− < CN− < NH3 < en ∼ SO32− < NO2− < phen < CO

इस प्रकार की श्रेणी स्पेक्ट्रमीरासायनिक श्रेणी (spectrochemical series) कहलाती है। यह विभिन्न लिगन्डों के साथ बने संकुलों द्वारा प्रकाश के अवशोषण पर आधारित प्रायोगिक तथ्यों द्वारा निर्धारित श्रेणी है।

दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के मध्य अन्तर (Difference between weak field ligand and strong field ligand) – वे लिगेण्ड जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (CFSE), Δ0 का मान कम होता है, दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं। दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता तथा ये उच्च चक्रण संकुल बनाते हैं। वे लिगेण्ड जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, Δ0 का मान अधिक होता है, प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं। प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है तथा ये निम्न चक्रण संकुल बनाते हैं।

प्रश्न 5.18: क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है? उपसहसंयोजन सत्ता में 4-कक्षकों का वास्तविक विन्यास Δ0 के मान के आधार पर कैसे निर्धारित किया जाता है?

उत्तर 5.18: जब लिगेण्ड संक्रमण धातु आयन के निकट जाता है, तब d-कक्षक दो समुच्चयों में विपाटित हो जाते हैं, एक निम्न ऊर्जा के साथ तथा दूसरा उच्च ऊर्जा के साथ। कक्षकों के इन दो समुच्चयों के बीच ऊर्जा का अन्तर अष्टफलकीय क्षेत्र के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, Δ0 कहलाता है।

यदि Δ0 < P (युग्मन ऊर्जा) तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक है, कक्षक में प्रवेश करता है तथा t32g e1g विन्यास देकर उच्च चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, Δ0 < P) दुर्बल क्षेत्र लिंगैण्ड कहलाते हैं।
यदि Δ0 > P तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक है t2g कक्षक में युग्मित होता है तथा t42g e0g विन्यास देकर निम्न चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, Δ0 > P) प्रबल क्षेत्र लिंगेण्ड कहलाते।

प्रश्न 5.19: [Cr(NH3)6] अनुचुम्बकीय है, जबकि [Ni(CN)4] प्रतिचुम्बकीय, समझाइए क्यों?

उत्तर 5.19: [Cr(NH3)6]3+ का निर्माण (Formation of [Cr(NH3)6]3+):
[Cr(NH3)6]3+ आयन में क्रोमियम की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है। क्रोमियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d5 4s1 है। संकरण को निम्नलिखित आरेख में दर्शाया गया है –

Cr3+ आयन अमोनिया के छह अणुओं से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए छह रिक्त कक्षक उपलब्ध कराते हैं। परिणामत: संकुल [Cr(NH3)]3+ में d2 sp3 संकरण होता है तथा यह अष्टफलकीय होता है। संकुल में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति इसके अनुचुम्बकीय गुण को स्पष्ट करती हैं।

[Ni(CN)4]2- का निर्माण (Formation of [Ni(CN)4]2-)
[Ni(CN)4]2- में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d है। संकरण को निम्नवत् समझाया जा सकता है –

प्रत्येक संकरित कक्षक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति [Ni(CN)4]2- के प्रतिचुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि करती है।

प्रश्न 5.20: [Ni(H2O)6]2+ का विलयन हरा है, परन्तु [Ni(CN)4]2- का विलयन रंगहीन है। समझाइए।

उत्तर 5.20: [Ni(H2O)6]2+ विलयन में निकिल Ni2+ के रूप में स्थित रहता है तथा इसका 3d8 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है। इसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो कि दुर्बल जल लिगेण्डों की उपस्थिति में युग्मित नहीं हो पाते हैं। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन d – d संक्रमण प्रदर्शित करते हैं जिसमें Ni2+ लाल प्रकाश अवशोषित करता है। इसलिए, संकर पूरक हरा रंग प्रदर्शित करता है।

[Ni(CN)4]2- में भी निकिल Ni2+ आयन के रूप में रहता है। इसका भी 3d8 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है, जिसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं परन्तु प्रबल CN लिगेण्ड युग्मित हो जाते हैं अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति में d- d संक्रमण नहीं होता है तथा विलयन रंगहीन रहता है।

प्रश्न 5.21: [Fe(CN)6]4- तथा [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं। क्यों?

उत्तर 5.21: [Fe(CN)6]4- और [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग उनके लिगैंड्स के कारण भिन्न होते हैं।

  • [Fe(CN)6]4-: इसमें CN एक मजबूत क्षेत्र लिगैंड है, जो बड़ी शक्ति से इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करता है। इससे (d-d) इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण की ऊर्जा अधिक होती है, और यौगिक हल्का रंग या रंगहीन होता है।
  • [Fe(H2O)6]2+: इसमें H2O एक कमजोर क्षेत्र लिगैंड है, जो कम ऊर्जा विभाजन करता है। इसका परिणाम यह होता है कि कम ऊर्जा पर (d-d) इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण होता है, और यह हल्के नीले या हरे रंग का दिखता है।

इसलिए, लिगैंड्स की ताकत के आधार पर रंग भिन्न होते हैं।

प्रश्न 5.22: धातु काबनिलों में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए।

उत्तर 5.22: धातु कार्बोनिलों के धातु-कार्बन आबंध में σ तथा π दोनों के गुण पाए जाते हैं।M–C σ आबंध कार्बोनिल समूह के कार्बन पर उपस्थित इलेक्ट्रॉन युगल को धातु के रिक्त कक्षक में दान करने से बनता है। M–C π आबंध धातु के पूरित d कक्षकों में से एक इलेक्ट्रॉन युगल को कार्बन मोनोक्साइड के रिक्त प्रतिआबंधन π* कक्षक में दान करने से बनता है। धातु से लिगन्ड का आबंध एक सहक्रियाशीलता का प्रभाव उत्पन्न करता है जो CO व धातु के मध्य आबंध को मज़बूत बनाता है।

प्रश्न 5.23: निम्नलिखित संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d-कक्षकों का अधिग्रहण एवं उपसहसंयोजन संख्या बतलाइए –
(i) K3[Co(C2O4)3] , (ii) cis-[CrCl2(en)2]Cl, (iii) (NH4)2[CoF4], (iv) [Mn(H2O)6]SO4

उत्तर 5.23:

  • (i) K3[Co(C2O4)3]
  • ऑक्सीकरण अवस्था = +3,
  • उपसहसंयोजन संख्या = 6,
  • 3dविन्यास = t2g6eg0
  • (ii) cis-[CrCl2(en)2]Cl,
  • ऑक्सीकरण अवस्था = +3,
  • उपसहसंयोजन संख्या = 6,
  • dविन्यास =  t2g3eg0
  • (iii) (NH4)2[CoF4],
  • ऑक्सीकरण अवस्था = +2,
  • उपसहसंयोजन संख्या = 4,
  • dविन्यास = eg4t2g3
  • (iv) [Mn(H2O)6]SO4
  • ऑक्सीकरण अवस्था = +2,
  • उपसहसंयोजन संख्या = 6,
  • dविन्यास = t2g3 eg2.

प्रश्न 5.24: निम्नलिखित संकुलों के IUPAC नाम लिखिए तथा ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और उपसहसंयोजन संख्या दर्शाइए। संकुल का त्रिविम रसायन तथा चुम्बकीय आघूर्ण भी बतलाइए –
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2].3H2O
(ii) [CrCl3(Py)3]
(iii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iv) Cs[FeC4]
(v) K4[Mn(CN)6]

उत्तर 5.24:

प्रश्न 5.25: उपसहसंयोजन यौगिक के विलयन में स्थायित्व से आप क्या समझते हैं? संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर 5.25: विलयन में उपसहसंयोजन यौगिकों को स्थायित्व (Stability of Coordination Compounds in Solution) – अधिकांश संकुल अत्यधिक स्थायी होते हैं। धातु आयन तथा लिगेण्ड के बीच अन्योन्यक्रिया को लुईस अम्ल-क्षार अभिक्रिया के समान माना जाता है। यदि अन्योन्यक्रिया प्रबल होगी तो बनने वाला संकुल ऊष्मागतिकीय रूप से अत्यधिक स्थायी होगा।

विलयन में संकुल के स्थायित्व का अर्थ है–साम्य अवस्था पर भाग ले रही दो स्पीशीज के मध्य संगुणन की मात्रा का मान। संगुणन के लिए साम्य स्थिरांक (स्थायित्व या विरचन) को परिमाण गुणात्मक रूप से स्थायित्व को प्रकट करता है। इस प्रकार यदि हम निम्न प्रकार की अभिक्रिया को लें –

M + 4L \(\rightleftharpoons\) ML
K = \(\frac { [{ ML }_{ 4 }] }{ { [M][L] }^{ 4 } } \)

साम्य स्थिरांक का मान जितना अधिक होगा, ML4 की विलयन में मात्रा उतनी ही अधिक होगी। विलयन में मुक्त धातु आयनों का अस्तित्व नगण्य होता है। अत: M सामान्यत: विलायक अणुओं से घिरा होगा जो लिगेण्ड अणुओं, L से प्रतिस्पर्धा करेंगे तथा धीरे-धीरे उनसे प्रतिस्थापित हो जाएँगे।

संकुलों (complexes) के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं:

  1. केंद्रीय धातु आयन का प्रकृति: उच्च आवेश और छोटी त्रिज्या वाले धातु आयन स्थिर संकुल बनाते हैं।
  2. लिगैंड की प्रकृति: मजबूत क्षेत्र लिगैंड (जैसे CN अधिक स्थिर संकुल बनाते हैं, जबकि कमजोर लिगैंड (जैसे H2O) कम स्थिर होते हैं।
  3. चिलेट प्रभाव: बहुदन्तुर (polydentate) लिगैंड्स, विशेष रूप से चिलेट लिगैंड्स, अधिक स्थिर संकुल बनाते हैं।
  4. एंट्रॉपी प्रभाव: चिलेट संकुल बनने से एंट्रॉपी में वृद्धि होती है, जिससे स्थायित्व बढ़ता है।
  5. आयन का ऑक्सीकरण अवस्था: उच्च ऑक्सीकरण अवस्था वाले आयन अधिक स्थिर संकुल बनाते हैं।

प्रश्न 5.26: कीलेट प्रभाव से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर 5.26: जब कोई बहुदन्तुर लिगेण्ड दो या अधिक दाता परमाणुओं के द्वारा केन्द्रीय धातु आयन से अपने आप को इस प्रकार जोड़ता है कि केन्द्रीय आयन के साथ 5 या 6 सदस्यीय चक्र बनता है, तो यह प्रभाव कीलेट प्रभाव कहलाता है। कीलेट संकर यौगिक को स्थिरता प्रदान करते हैं; जैसे –

प्रश्न 5.27: प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित में उपसहसंयोजन यौगिकों की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए –
(i) जैव प्रणालियाँ, (ii) औषध रसायन, (iii) विश्लेषणात्मक रसायन (iv) धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म।

उत्तर 5.27: 1. जैव प्रणालियाँ (Biological Systems) – उपसहसंयोजन यौगिक जैव तन्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। प्रकाश संश्लेषण के लिए उत्तरदायी वर्णक, क्लोरोफिल, मैग्नीशियम का उपसहसंयोजन यौगिक हैं। रक्त का लाल वर्णक हीमोग्लोबिन, जो कि ऑक्सीजन का वाहक है, आयरन का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। विटामिन B12 सायनोकोबालऐमीन, प्रतिप्रणाली अरक्तता कारक (antipernicious anaemia factor), कोबाल्ट का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। जैविक महत्त्व के अन्य धातु आयन युक्त उपसहसंयोजन यौगिक; जैसे- कार्बोक्सीपेप्टिडेज-A (carboxypeptidase A) तथा कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase) (जैव प्रणाली के उत्प्रेरक) एन्जाइम हैं।

2. औषध रसायन (Medicinal Chemistry) – औषधं रसायन में कीलेट चिकित्सा के उपयोग में अभिरुचि बढ़ रही है। इसका एक उदाहरण है-पौधे/जीव-जन्तु निकायों में विषैले अनुपात में विद्यमान धातुओं के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का उपचार। इस प्रकार कॉपर तथा आयरन की अधिकता को D-पेनिसिलऐमीन तथा डेसफेरीऑक्सिम B लिगेण्डों के साथ उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर दूर किया जाता है। EDTA को लेड की विषाक्तता के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है। प्लैटिनम के कुछ उपसहसंयोजन यौगिक ट्यूमर वृद्धि को प्रभावी रूप से रोकते हैं। उदाहरण हैं- समपक्ष-प्लैटिन (cis-platin) तथा सम्बन्धित यौगिक

3. विश्लेषणात्मक रसायन (Analytical Chemistry) – गुणात्मक (qualitative) तथा मात्रात्मक (quantitative) रासायनिक विश्लेषणों में उपसहसंयोजन यौगिकों के अनेक उपयोग हैं। अनेक परिचित रंगीन अभिक्रियाएँ जिनमें धातु आयनों के साथ अनेक लिगेण्डों (विशेष रूप से कीलेट लिगेण्ड) की उपसहसंयोजन सत्ता बनने के कारण रंग उत्पन्न होता है, चिरसम्मत (classical) तथा यान्त्रिक (instrumental) विधियों द्वारा धातु आयनों की पहचान व उनके मात्रात्मक आकलन का आधार हैं। ऐसे अभिकर्मकों के उदाहरण हैं- EDTA, DMG (डाइमेथिल ग्लाइऑक्सिम), α- नाइट्रोसो- β- नैफ्थॉल आदि।

4. धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म (Extraction of the Metals/Metallurgy) – धातुओं की कुछ प्रमुख निष्कर्षण विधियों में; जैसे- सिल्वर तथा गोल्ड के लिए, संकुल विरचन का उपयोग होता, है। उदाहरणार्थ-ऑक्सीजन तथा जल की उपस्थिति में गोल्ड, सायनाइड आयन से संयोजित होकर जलीय विलयन में उपसहसंयोजन सत्ता, [Au(CN)2] बनाता है। इस विलयन में जिंक मिलाकर गोल्ड को पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 5.28: संकुल [Co(NH3)6]Cl2 से विलयन में कितने आयन उत्पन्न होंगे?
(i) 6 (ii) 4 (iii) 3 (iv) 2

उत्तर 5.28: (iii) 3 आयन स्पष्टीकरण: [Co(NH3)6]Cl2 → [Co(NH3)6]2+ + 2Cl

प्रश्न 5.29: निम्नलिखित आयनों में से किसके चुंबकीय आघूर्ण का मान सर्वाधिक होगा?
(i) [Cr(H2O)6]3+, (ii) [Fe(H2O)6]2+, (iii) [Zn(H2O)6]2+

उत्तर 5.29: (ii) [Fe(H2O)6]2+ का सबसे अधिक चुम्बकीय आघूर्ण है क्योंकि

स्पष्टीकरण:

[Fe(H2O)6]2+ का सबसे अधिक चुंबकीय आघूर्ण है क्योंकि Cr3+ में 3 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं, जबकि Fe2+ में चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं तथा Zn2+ में 0 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है।

प्रश्न 5.30: K[Co(CO)4] में कोबाल्ट (Co) की ऑक्सीकरण संख्या है – (i) +1, (ii) +3, (iii) – 1, (iv) -3

उत्तर 5.30: (iii) –1

स्पष्टीकरण:

+1 + x + 4 × (0) = 0;

∴ x = –1

प्रश्न 5.31: निम्नलिखित में सर्वाधिक स्थायी संकुल है – (i) [Fe(H2O)6]3+, (ii) [Fe(NH3)6]3+, (iii) [Fe(C2O4)3]3–, (iv) [FeCl6]3–

उत्तर 5.31: (iii) [Fe(C2O4)3]3−

स्पष्टीकरण:

C2O2-4 एक द्विदंतु लिगैंड है, यह सबसे अधिक स्थिर संकुल बनाता है।

प्रश्न 5.32: निम्नलिखित के लिए दृश्य प्रकाश में अवशोषण की तरंगदैर्घ्य का सही क्रम क्या होगा?
[Ni(NO2)6]4-, [Ni(NH3)6]2+, [Ni(H2O)6)2+

उत्तर 5.32: स्पेक्ट्रोकेमिकल श्रेणी में दिये गये संकर यौगिकों में उपस्थित लिगेण्ड्स का क्रम निम्न प्रकार है –
H2O < NH3 < NO3

इसलिए अवशोषित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य का क्रम निम्न होगा –
[Ni(H2O)6]2+ < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(NO2)6]4-

चूंकि अवलोकित तरंगदैर्घ्य अवशोषित तरंगदैर्घ्य की पूरक होती हैं, इसलिए अवशोषित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य ( E = \(\frac { hc }{ \lambda }\)) विपरीत क्रम में होगी अर्थात्
[Ni(NO2)6]4- < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(H2O)6]2+

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