शेर, पहचान, चार हाथ, साझा question answer: Class 12 Hindi Chapter 14 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi antra |
Chapter | Chapter 14 |
Chapter Name | शेर, पहचान, चार हाथ, साझा के प्रश्न उत्तर |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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1. शेर –
प्रश्न 1: लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुँह में क्यों जा रही थी ?
उत्तर 1: लेखक ने जंगल में देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन में चले जा रहे हैं और शेर के मुँह में घुसते चले जा रहे हैं। शेर उन्हें बिना चबाए गटकता जा रहा है। फिर उसे एक लोमड़ी मिली। वह भी शेर के मुँह में चली जा रही थी। वह स्वेच्छा से अर्थात् अपनी मर्जी से शेर के मुँह में जा रही थी। जब लेखक ने उससे पूछा कि तुम शेर के मुँह में क्यों जा रही हो; तब उसने उत्तर दिया-” शेर के मुँह में रोज़गार का दफ्तर है। मैं वहाँ दरखास्त दूँगी, फिर मुझे नौकरी मिल जाएगी।” यह बात उसे शेर ने ही बताई थी।
प्रश्न 2: कहानी में लेखक ने शेर को किसका प्रतीक बताया हैं?
उत्तर 2: कहानी में लेखक ने शेर को एक ऐसी स्त्ता के परिचायक का रूप बताया हैं जो अलग अलग प्रकार का लालच देकर आम आदमी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
प्रश्न 3: शेर के मुँह और रोज़गार के दफ़्तर के बीच क्या अंतर है?
उत्तर 3: शेर के मुँह में गए जानवर कभी लौटकर नहीं आते हैं। वह मुँह में समाकर मर जाते हैं या उनका अस्तित्व नष्ट हो जाता है। रोज़गार के दफ़्तर में ऐसी स्थिति नहीं होती है। यहाँ पर लोग नौकरी पाने की आशा में जाते हैं। वे यहाँ के चक्कर लगाते हुए थक जाते हैं लेकिन उन्हें नौकरी कभी नहीं मिलती। बस उनका अस्तित्व समाप्त नहीं होता है। शेर के मुँह के समान रोज़गार का दफ़्त्तर लोगों को निगलता नहीं है। बस उनकी आशा समाप्त कर देता है।
प्रश्न 4: ‘प्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास’ कहानी के आधार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर 4: लेखक कहता है कि हर शासन-व्यवस्था विश्वास पर चलती है। यदि उस व्यवस्था में विश्वास नहीं है तो गुण होने के बावजूद वह स्वयं को बचा नहीं पाती। लेखक इस परंपरा से हटकर व्यवस्था से प्रमाण माँगता है। उसे लगता है कि उसे छला जा रहा है, परंतु ऐसा करने पर व्यवस्था उस पर प्रहार करती है। उसे विश्वास को महत्वपूर्ण बताया जाता है तथा प्रमाण के नाम पर टरका दिया जाता है।
2. पहचान –
प्रश्न 1: राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें?
उत्तर 1: राजा ने जनता को ऐसा हुक्म इसलिए दिया ताकि लोग राजा के अत्याचार, शोषण तथा दोहन के प्रति उपेक्षित हो जाएँ। इस तरह वह लोगों का मनचाहा शोषण कर उनसे अपने कार्य करवाता रहे। इस तरह वह लोगों का मनचाहा प्रयोग कर रहा था। दूसरे वह लोगों की एकता की शक्ति को समाप्त कर रहा था। यदि लोगों की आँखें खुली रहती, तो शायद वे अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाते और अशांति व्याप्त हो जाती। शांति के बहाने से वह उन्हें सत्य देखने से रोक रहा था।
प्रश्न 2: आँखें बंद रखने और आँखें खोलकर देखने के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर 2: आखें बंद रखने से लोगों ने लंबे समय तक अपना शोषण करवाया। उन्होंने आँखें बंद करके राजा को उनका शोषण करने की पूरी आज़ादी दे दी। उत्पादन, क्षमता का विकास हुआ तथा एकाग्रता अवश्य बड़ी पर वह मात्र भ्रम थी। आखें खोलकर देखने से उन्हें समझ में आया कि वह अभी तक क्या कर रहे थे। जिस विकास और प्रगति के नाम पर वे ठगे जा रहे थे, आँखें खोलने पर उन्हें पता चला कि इसका लाभ तो केवल राजा ही उठा रहा था।
प्रश्न 3: राजा ने कौन-कौन से हुक्म निकाले ? सूची बनाइए और इनके निहितार्थ लिखिए।
उत्तर 3: राजा द्वारा निकाले गए हुक्म निम्नलिखित हैं –
- प्रजा अपनी आंखे बन्द करले – राजा के इस हुक्म में निहित अर्थ है कि प्रजा राजा द्वारा किए जा रहे अत्याचार और शोषण से उपेक्षित हो जाए ताकि राजा मनमाने ढंग से उनका शोषण करके लाभ उठता रहे।
- प्रजा अपने कानों में पिघला शीशा डलवा ले – राजा के का हुक्म में निहित अर्थ है कि प्रजा अपने कानो में पिघला शीशा डलवा ले ताकि जनता राजा के विरोधियों की बातें ना सुन सके।
- प्रजा अपने मुंह को सिलवा ले – राजा के इस हुक्म में निहित अर्थ है कि मुंह सिलवाने से प्रजा में विरोध करने की क्षमता ख़तम हो जाएगी।
प्रश्न 4: जनता राज्य की स्थिति की ओर आँख बंद कर ले तो उसका राज्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 4: यदि जनता राज्य की स्थिति की ओर आँख बंद कर ले अर्थात् ध्यान न दे तो शासक वर्ग निरंकुश हो जाएगा। तब राज्य की प्रगति तो अवरुद्ध हो जाएगी, पर राजा (सत्ता) की व्यक्तिगत उन्नति खूब होगी। वह राज्य की संपत्ति का उपभोग अपने लिए ही करेगा। राज्य की दशा सुधारने में उसकी कोई रुचि नहीं होती। वह तो तभी रुचि लेता है जब राज्य की जनता सचेत रहती है। शासक वर्ग तो यही चाहता है कि राज्य की जनता राज्य के प्रति आँखें मूँदे रहे।
प्रश्न 5: खैराती, रामू और छिदू ने जब आँखें खोलीं तो उन्हें राजा ही क्यों दिखाई दिया ?
उत्तर 5: इतने समय तक राजा के कहने पर अँधे, गूंगे तथा बहरे बनने से प्रजा ने अपना अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। अब वे राजा की कठपुतली थे। यदि वे अपनी मर्जी से देखना भी चाहते थे, तो उनके पास अब कुछ शेष नहीं था। वे अपनी पहचान खो चुके थे। अतः राजा के अतिरिक्त उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता है। राजा उनकी पहचान बन जाता है। बस उसके आदेश का पालन करना ही उनके जीवन का उद्देश्य बन जाता है। अतः जब वे आँखें खोलकर देखने का प्रयास करते हैं, तो मात्र राजा ही दिखाई देता है।
3. चार हाथ –
प्रश्न 1: मज़दूरों को चार हाथ देने के लिए मिल मालिक ने क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर 1: मिल मालिक स्वयं मजदूरों को दो हाथ जोड़कर उन्हें चार हाथों वाला तो बना नहीं सकता था। इस काम के लिए उसने बड़े वैज्ञानिकों को भारी वेतन पर रखा। वे उसकी नौकरी करने लगे। उन वैज्ञानिकों का काम था कि वे ऐसी तकनीक निकालें कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। कई सालों के प्रयोग तथा शोध के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि यह असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ।
मिल मालिक ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। उसने स्वयं इस काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया। उसने कटे हाथ मँगवाकर मज़दूरों को फिट करवाए, परंतु असफल रहा। मज़दूरों को लकड़ी व लोहे के हाथ भी नहीं लग सके। उसके इतने प्रयोगों से मज़दूर मर गए।
प्रश्न 2: चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में क्या बात आई ?
उत्तर 2: चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में आई कि यह प्रयास व्यर्थ है। इससे अच्छा है कि मज़दूरों की मज़दूरी कम करके नए मज़दूर इसी मज़दूरी में रख लो और अपना कार्य तेज़ी से करवाओ।
4. साझा –
प्रश्न 1: साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को क्या बताया ?
उत्तर 1: साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को बताया कि मेरे साथ खेती करने से जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेतों की रखवाली भी अच्छी प्रकार से होगी।
प्रश्न 2: हाथी ने खेत की रखवाली के लिए क्या घोषणा की?
उत्तर 2: किसान अकेले खेती करने का साहस नहीं जुटा पाता था। वह पहले शेर, चीते, मगरमच्छ के साथ खेती कर चुका था, पर उसे कोई लाभ नहीं हुआ था। अबकी बार हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ खेती करे। इससे उसे यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा पाएँगे।
अंतत: किसान इसके लिए तैयार हो गया। उसने हाथी से मिलकर खेत में गन्ना बोया। हाथी ने खेत की रखवाली के लिए पूरे जंगल में घूमकर यह डुग्गी पीटी कि अब गन्ने के खेत में उसका साझा है, इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा नहीं होगा। इस प्रकार गन्ने के खेत की रखवाली अच्छी प्रकार से हो गई।
प्रश्न 3: आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बँटी ?
उत्तर 3: गन्ने की फसल पकने पर किसान हाथी को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी को यह बात कही तो वह बिगड़ उठा। वह बोला, “अपने-पराए की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों गन्ने के स्वामी हैं।
अतः हम मिलकर गन्ने खाएँगे।” यह कहकर गन्ने का एक छोर हाथी ने अपने मुँह में ले लिया और दूसरा सिरा किसान के मुँह में दे द्यिया। गन्ने के साथ-साथ आदमी भी हाथी के मुँह की तरफ खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। इस प्रकार सारा गन्ना हाथी के हिस्से में आ गया।
योग्यता विस्तार –
1. शेर –
प्रश्न 1: इस कहानी में हमारी व्यवस्था पर जो व्यंग्य किया गया है, उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 1: लेखक ने इस कहानी में हमारी व्यवस्था के दिखावे पर व्यंग्य किया है। हमारी व्यवस्था बाहरी तौर पर न्यायप्रिय, अहिंसावादी तथा शांतिप्रिय प्रतीत होती है, परंतु उसका यह स्वरूप तभी तक बना रहता है, जब तक उसके नियमों का पालन होता रहे। विरोध होने पर वह आपा खो बैठती है और विरोधी का हर प्रकार से दमन करने का प्रयास करती है।
प्रश्न 2: यदि आपके भी सींग निकल आते तो आप क्या करते ?
उत्तर 2: यदि मेरे सींग निकल आते तो मैं डॉक्टर के पास जाता और उसके उगने का कारण पूछता। उसके बाद प्रयास करता कि इसका इलाज करवाया जा सके ताकि समय रहते मैं इस समस्या से मुक्ति पा जाऊँ।
2. पहचान –
प्रश्न 1: गांधी जी के तीनों बंदर आँख, कान, मुँह बंद करते थे किंतु उनका उद्देश्य अलग था कि वे बुरा न देखेंगे, न सुनेंगे, न बोलेंगे। यहाँ राजा ने अपने लाभ के लिए या राज्य की प्रगति के लिए ऐसा किया। दोनों की तुलना कीजिए।
उत्तर 1: गाँधीजी परोपकारी थे जबकि यह राजा घोर स्वार्थी है। वह जनता को गूँगी, बहरी और अंधी बनाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। गाँधीजी आदर्शवादी थे।
प्रश्न 2: भारतेंदु हरिशचंद्र का ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ नाटक देखिए और उस राजा से ‘पहचान’ के राजा की तुलना कीजिए।
उत्तर 2: भारतेंदु हरिशचंद्र द्वारा रचित नाटक ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ नाटक में राजा निरा मूर्ख है। उसके पास ऐसी बुद्धि ही नहीं है कि वह प्रजा की सोच को बंद कर सके। वह अपने अजीब फैसलों से जनता को परेशान करता रहता है। उसके यहाँ रबड़ी से लेकर सोना तक एक आना सेर मिलता है। अर्थात वह कीमती और मूल्यविहिन वस्तुओं की कीमत एक-सी रखता है।
उसे प्रजा की प्रगति और विकास से कोई सरोकार नहीं है। न्याय के नाम पर किसी ओर के स्थान पर किसी दूसरे को फांसी चढ़ा देता है। यहाँ तक की अंत में अपनी मूर्ख बुद्धि के कारण स्वयं ही फांसी पर लटक जाता है। इस पाठ का राजा बहुत बुद्धिमान है। व
ह जानता है कि जनता को अपने फायदे के लिए कैसे गुलाम बनाया जा सकता है? अपनी शक्ति का कैसे गलत फायदा उठाया जा सकता है? वह जनता को विवश कर देता है कि प्रगति तथा विकास के लिए अपनी आँख, कान तथा मुँह को बंद करके रखे। वह जनता का फायदा भी उठता है, उन्हें पता भी नहीं चलने देता। अतः यह राजा अधिक चतुर है।
3. चार हाथ –
प्रश्न 1: आप यदि मिल मालिक होते तो उत्पादन दो गुना करने के लिए क्या करते ?
उत्तर 1: यदि मैं मिल मालिक होता तो उत्पादन दो गुना बढ़ाने के लिए मज़दूरों को बोनस देता। ऐसे उपहार रखता, जिससे लोगों को काम करने के लिए प्रोत्साहन मिले। उनको ओवर टाइम देता। इसके अतिरिक्त उनकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखता। मुझे यकीन है कि इसके बाद मेरा उत्पादन दो गुना नहीं बल्कि चार गुना बढ़ जाता।
4. साझा –
प्रश्न 1: ‘पंचतंत्र की कथाएँ’ भी पढ़िए।
उत्तर 1: पंचतंत्र की कथाएँ भारतीय साहित्य की प्राचीन और अत्यंत महत्वपूर्ण नीतिकथाएँ हैं, जिनका रचनाकार पंडित विष्णु शर्मा को माना जाता है। इसका रचना काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास निर्धारित किया गया है। यह ग्रंथ पाँच तंत्रों (भागों) में विभाजित है, जिनमें से प्रत्येक का उद्देश्य नीति और जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाना है:
- मित्रभेद – मित्रों के बीच मनमुटाव और अलगाव को दर्शाने वाली कथाएँ।
- मित्रलाभ – सच्चे मित्र प्राप्त करने और उनके लाभ को उजागर करने वाली कहानियाँ।
- काकोलुकीयम् – कौवे और उल्लुओं के संघर्ष के माध्यम से राजनीति और कूटनीति की बातें।
- लब्धप्रणाश – पहले से प्राप्त चीजों के खोने से संबंधित शिक्षाएँ।
- अपरीक्षित कारक – बिना परखे और जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों के खतरों को दर्शाती कथाएँ।
इन कथाओं में मुख्य रूप से पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर गूढ़ शिक्षाएँ दी गई हैं। इस प्रकार यह ग्रंथ सरल और मनोरंजक ढंग से जीवन जीने के व्यावहारिक नियम सिखाने में सहायक है।
प्रश्न 2: ‘भेड़ और भेड़िए’ हरिशंकर परसाई की रचना पढ़िए।
उत्तर 2:
1. वन के पशुओं ने प्रजातंत्र की स्थापना का निर्णय क्यों लिया? वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उच्च स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था की आवश्यकता है। उन्हें विश्वास था कि प्रजातंत्र के माध्यम से सुख, समृद्धि, और सुरक्षा का स्वर्ण-युग आएगा।
2. भेड़ों और भेड़ियों की चिंताएँ कैसे अलग थीं?
- भेड़ों की चिंताएँ: भेड़ों को विश्वास था कि प्रजातंत्र से उन्हें भयमुक्त जीवन मिलेगा। वे ऐसा समाज चाहती थीं जो शांति, स्नेह, बंधुत्व और सहयोग पर आधारित हो।
- भेड़ियों की चिंताएँ: भेड़ियों को डर था कि भेड़ों के बहुमत के कारण ऐसे कानून बन सकते हैं जो शिकार पर रोक लगा दें। यह स्थिति उनके अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर सकती थी, क्योंकि वे घास चरने के लिए अनुकूल नहीं थे।
3. सियार भेड़ियों के प्रति वफादार क्यों रहते हैं? सियार भेड़ियों के आस-पास इसलिए रहते हैं क्योंकि उन्हें भेड़ियों के शिकार के बाद बचा-खुचा माँस खाने और हड्डियाँ चूसने को मिलती हैं। भेड़ियों की सेवा और उनकी जय-जयकार करके वे अपना पेट भरने का साधन सुनिश्चित करते हैं।
4. बूढ़े सियार ने भेड़िये से क्या पूछा, और भेड़िये ने क्या जवाब दिया?
- बूढ़े सियार का प्रश्न: “महाराज, आपके मुखचंद्र पर चिंता के मेघ क्यों छाए हैं?”
- भेड़िये का उत्तर: भेड़िये ने बताया कि वन-प्रदेश में नई सरकार बनने वाली है, जिससे उनका राज्य छिनने का खतरा है।
5. इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है? हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य के माध्यम से सत्ता, राजनीति, और समाज में शक्तिशाली और कमजोर वर्ग के बीच के संबंधों को उजागर किया है। कहानी यह दर्शाती है कि जब सत्ता परिवर्तन होता है, तो कमजोर वर्ग (भेड़ें) उत्साहित होता है, लेकिन ताकतवर वर्ग (भेड़िए) अपने विशेषाधिकार खोने के डर से चिंतित हो जाता है। यह कहानी समाज के शोषण, छल-कपट, और राजनीति के ताने-बाने पर एक गहरा व्यंग्य करती है।
प्रश्न 3: कहानी और लघुकथा में अंतर जानिए।
उत्तर 3: कहानी में एक भाव का पूर्व विवरण होता है। इसका आकार बड़ा होता है तथा विषय-क्षेत्र भी विस्तृत होता है। लघु कथा का आकार बेहद छोटा होता है तथा इसमें एक ही मुख्य बात को कहा जाता है। कुछ अनिवार्य तत्वों या गुणों के उपस्थित होने पर ही किसी कथ्य को कहानी कहा जाता है, जबकि लघुकथा में इन तत्वों की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती है।