सरोज स्मृति के प्रश्न उत्तर: Class 12 Hindi Chapter 2 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi antra |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | सरोज स्मृति question answer |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
क्या आप Class 12 Hindi Antra Chapter 2 question answer ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से सरोज स्मृति के प्रश्न उत्तर कर सकते हैं।
प्रश्न 1: सरोज के नव-वधू के रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर 1: सरोज के नववधू के रूप से सुसज्जित होकर विवाह-मंडप में उपस्थित है। उसके मन में प्रिय-मिलन का आह्ललाद है। उसके होठों पर मंद हँसी है। उसने मनभावन शृंगार कर रखा है। लाज एवं संकोच से झुकी उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई है। उसके नत नयनों से प्रकाश उतर कर अधरों तक आ गया है। उसकी सुंदर मूर्ति वसंत के गीत के समान प्रतीत होती है।
प्रश्न 2: कवि को अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद क्यों आई?
उत्तर 2: कवि को अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर आई क्योंकि नव वधु के रूप में सरोज में उसकी माँ की छवि बहुत उभरकर आ रही थी । वे अपनी पत्नी को हर उस पल याद कर रहे थे जहां एक माँ की भूमिका होती है, पने बच्चों के लिए। अपनी पत्नी के साथ शुरू किया गया सफर उन्हें अब मंज़िल तक पहुंचता हुआ दिख रहा था जिसके कारण उन्हें अपनी पत्नी का स्मरण हो आया।
प्रश्न 3: ‘आकाश बदल कर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ शब्द किसकी ओर संकेत करते हैं?
उत्तर 3: ये शब्द कवि की श्रृंगार से पूर्ण कल्पनाओं तथा उसकी पुत्री सरोज की ओर संकेत करते हैं। कवि के अनुसार वह अपनी कविताओं में श्रृंगार भाव से युक्त कल्पनाएँ किया करता था। जब उसने नव-वधु के रूप में अपनी पुत्री को देखा, तो उसे लगा जैसे उसकी पुत्री के सौंदर्य में वह कल्पनाएँ साकार हो गई हैं और धरती पर उतर आयी हैं। अत: आकाश को वह श्रृंगार भाव से युक्त कल्पनाएँ तथा मही के रूप में अपनी पुत्री सरोज की ओर संकेत करता है।
प्रश्न 4: सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर 4: सरोज का विवाह अन्य विवाहों की तरह चमक-दमक, शोर-शराबे से रहित था। सरोज का विवाह बहुत सादे तरीके से हुआ था। इस विवाह में समस्त रिश्तेदारों, मित्रों तथा पड़ोसियों को नहीं बुलाया गया था बल्कि यह परिवार के कुछ लोगों के मध्य ही संपन्न हुआ था। इसमें संगीत तथा मेहंदी जैसी रस्मों का अभाव था। किसी ने विवाह के गीत नहीं गाए न ही लोगों का ताँता लगा था। बस चारों तरफ़ शांति विराजमान थी। यह विवाह इसी शांति के मध्य हुआ था। माँ के अभाव में कवि ने ही माँ की ज़िम्मेदारी को निभाया तथा उसे कुल संबंधी नसीहतें दीं।
प्रश्न 5: ‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?
उत्तर 5: इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि सरोज की माता उस परिवार की थी जिस ननिहाल में सरोज कुछ दिन ससुराल में रहने के बाद गई थी। सरोज उसी लता रूपी माता में कली के रूप में खिली थी। यहाँ ‘लता’ सरोज की माता को और ‘कली’ सरोज को बताया गया है। दोनों को ही कवि की ससुराल से भरपूर स्नेह मिला है। सरोज की माता का तो वह मायका ही था। सरोज को भी अपनी माता की मृत्यु के बाद ननिहाल से ही स्नेह प्राप्त हुआ था। वहीं उसका पालन-पोषण हुआ था।
प्रश्न 6: ‘मुझ भाग्यहीन की तु संबल ‘निराला जी की य़ह पंक्ति क्या ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रम की मांग करती है?
उत्तर 6: निराला जी की यह पंक्ति बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम की मांग करती है क्योंकि पत्नी के गुजर जाने के बाद कवि का इकलौता सहारा उनकी पुत्री ही थी और जब वह भी गुजर गयी तब उनका जीवन केवल दुख से भरा हुआ रह गया था।
प्रश्न 7: निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए-
- (क) नत नयनों से आलोक उतर
- (ख) श्रृंगार रहा जो निराकार
- (ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
- (घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ।
उत्तर 7: (क) विवाह के समय सजी-धजी सरोज इतनी अधिक सुंदर तथा आकर्षक प्रतीत हो रही थी कि उसके झुके हुए नेत्रों से भी मानो एक अलौकिक प्रकाश प्रस्फुटित हो रहा था। दांपत्य जीवन की सुखद कल्पनाओं से ही उसके नेत्र प्रसन्नता से जगमगा रहे थे।
(ख) दुल्हन के रूप में सजी हुई अपनी पुत्री को देखकर कवि को अपने यौवन के दिन स्मरण हो आए। उसे उसके इस श्रृंगार में उस शृंगार के दर्शन हो रहे थे जो आकारहीन होकर भी उसके काव्य में रस की धारा बहाता रहता है।
(ग) कवि विदाई के समय अपनी पुत्री को शिक्षा देते हुए सोचता है कि वह भी सरोज को वैसे ही शिक्षा दे रहा है जैसे कण्व ऋषि ने शकुंतला को दी थी। तभी उसे स्मरण हो आता है कि वह तो अपनी पुत्री को शकुंतला से भिन्न शिक्षा दे रहा है क्योंकि उसकी पुत्री सरोज शकुंतला से भिन्न स्थिति में है। इसलिए उसने सरोज को भिन्न प्रकार की शिक्षा दी।
(घ) कवि अपनी पुत्री का तर्पण स्वयं करता है। इसलिए वह कहता है कि यदि मेरा धर्म बना रहेगा तथा मेरे सभी कर्मों पर भले ही बिजली गिर पड़े तो भी मैं अपने झुके सिर से उसे स्वीकार करूँगा। कवि अपनी पुत्री का तर्पण करने के लिए सब प्रकार की विपत्तियाँ सहन करने को तैयार है।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1: निराला के जीवन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए रामविलास शर्मा की कविता ‘महाकवि निराला’ पढ़िए।
उत्तर 1: महामानव निराला – रामविलास शर्मा
‘महामानव निराला’ श्री रामविलास शर्मा द्वारा रचित एक सफल संस्मरण है। इसका सार इस प्रकार है –
‘महामानव निराला’ श्री रामविलास शर्मा द्वारा रचित एक सफल संस्मरण है। इसका सार इस प्रकार है: सन् 1934 से 1938 तक का काल निराला जी के कवि-जीवन का सबसे अच्छा काल था। इसी काल में उनकी श्रेष्ठ रचनाएँ ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘सरोज स्मृति’ आदि काव्य तथा ‘प्रभावती’ और ‘निरुपमा’ आदि उपन्यास रचे गए। इससे पहले का काल तैयारी का और बाद का काल सूर्यास्त के बाद का प्रकाश भर कहा जा सकता है।
निराला जी कविता लिखने से पहले उसकी चर्चा बहुत कम करते थे। वे कविता के भाव को मन में संजोए रखते थे और धीरे-धीरे वे भाव कविता का आकार ग्रहण करते जाते थे। उनके मन की गहराई को जानना संभव नहीं था। इस प्रक्रिया में वे किसी से बात भी नहीं करते थे। निराला जी ने लेखक को लखनऊ में एक मकान में ‘तुलसीदास’ कविता के दो बंद (छंद) सुनाए थे। एक दिन उन्होंने ‘राम की शक्ति पूजा’ का पहला छंद सुनाकर पूछा था- ”कैसा है?” तारीफ सुनकर बोले- ”तो पूरा कर डालें इसे।” निराला जी की बहुत सी कविताएँ आसानी से समझ में नहीं आतीं। लोग उन पर कई प्रकार के आक्षेप लगाते थे कि वे शब्दों को ढूँस-ढूँसकर किसी तरह कविता पूरी कर देते हैं। पर सच्चाई यह थी कि वे कविता लिखने में बहुत परिश्रम करते थे। वे एक-एक शब्द का ध्यान रखते थे। पसंद न आने पर दुबारा लिखते। उनके कई अधलिखे पोस्टकार्ड मिलते हैं।
कविताएँ पढ़ने और सुनाने में उन्हें बहुत आनंद आता था। उन्हें सैकड़ों कविताएँ याद थीं। वे भाव-विद्वल होकर हाव-भाव के साथ कविता सुनाते थे। कविता को लेकर वे अंग्रेजी और संस्कृत के आचार्य की परीक्षा तक ले चुके थे। उनका घर साहित्यकारों का तीर्थ था। पंत जी प्रायः उनके घर आते थे। एक बार निराला जी ने पंत से कविता सुनाने का आग्रह किया तो उन्होंने कोमल स्वर में ‘जग के उर्षर आँगन में, बरसो ज्योतिर्मय जीवन’ शीर्षक कविता सुनाई थी।
एक बार जब उनके यहाँ जयशंकर प्रसाद जी पधारे तो उन्होंने उनके साथ ऐसे बातें कीं मानो उनका बड़ा भाई आ गया हो। वे प्रसाद जी की कविताओं के प्रशंसक थे। वे अन्य साहित्यकारों का भी बहुत सम्मान करते थे। हाँ, वे स्वाभिमानी बहुत थे। राजा साहब के सामने अपना परिचय इस प्रकार दिया- “हम वो हैं जिनके दादा के दादा की पालकी आपके दादा के दादा ने उठाई थी।” एक साधारण कहानीकार ‘बलभद्र दीक्षित पढ़ीस’ को उन्होंने लेखक से सम्मानपूर्वक परिचित कराया। नई पीढ़ी के लेखकों पर उनकी विशेष कृपा रहती थी। जिससे प्रसन्न होते थे उसे कालिका भंडार में रसगुल्ले खिलाते थे। वे मुँहदेखी प्रशंसा से चिढ़ते थे।
निराला जी अपने तर्कों से विरोधियों को पछाड़ देते थे। कहानियाँ लिखने से पूर्व उनकी चर्चा किया करते थे। वे अपनी बात अभिनय करके समझाने की कला में पारंगत थे। हर चीज का सक्रिय प्रदर्शन ही उन्हें पसंद था। उन्हें बेईमानी से चिढ़ थी। वे कुछ प्रकाशकों की बेईमानी से चिढ़कर उनकी पूजा कर चुके थे। वैसे वे बहुत व्यवहार-कुशल थे। विरोधी का सम्मान करते थे। एक साहित्यकार ने उन पर व्यक्तिगत आक्षेप लिखा था। इस पर उनका संदेश था- “तुम्हारे लिए चमरौधा भिगो रखा है।” पर उसके लखनऊ आने पर केले-संतरों से उसका सत्कार किया।
निराला जी खेलों के भी शौकीन थे। कबड्डी और फुटबॉल खेल लिया करते थे। जवानी में उनका शरीर बड़ा सुडौल था। वे गामा और ध्यानचंद के कौशल की तुलना रवींद्रनाथ ठाकुर से किया करते थे। उनमें तंबाकू फाँकने का व्यसन था, जिसे वे चाहकर भी नहीं छोड़ पाए। निराला जी पाक-कला में सिद्धहस्त थे। वे अपनी कविता की आलोचना तो सह जाते थे, पर अपने बनाए भोजन की निंदा सुनना उन्हें बहुत बुरा लगता था।
वे गरीबी में रहे पर ख्वाब देखा महलों का। एक बार प्रकाशक से दस-दस के पाँच नोट लेकर पंखे का काम लेते हुए सड़क पर जा रहे थे कि एक विरोधी कवि ने अपना दुखड़ा रोकर उनसे एक नोट झटक लिया। वे नाई को भी बाल कटवाने के धोती या लिहाफ दे देते थे।
अच्छी पोशाक पहनने और अपनी तारीफ सुनने का उन्हें शौक था। वैसे चाहे गंदे कपड़े पहने रहते पर कवि सम्मेलन में जाते समय साफ कुरता-धोती पहनते थे तथा चंदन के साबुन से मुँह धोना और बालों में सेंट डालना नहीं भूलते थे। वे खाने-पीने तथा पहनने-ओढ़ने के शौकीन थे। अपने को वे साधारण आदमियों में गिनते थे। महामानव बनने तथा पूजा-वंदना से उन्हें चिढ़ थी। वे चतुरी चर्मकार के लड़के को अपने घर बुलाकर पढ़ाते थे। फुटपाथ पर पड़ी रहने वाली भिखारिन से उन्हें सहानुभूति थी।
इतना सब होते हुए भी उनका मन एकांत में दुःख में डूबा रहता था। उन्हें जीवन में लगातार विरोध और अपने प्रियजनों का विद्रोह सहना पड़ा था। अपनी पुत्री सरोज की अकाल मृत्यु ने उन्हें बुरी तरह झकझोर दिया था। वे दूसरों के दु:ख से भी दुःखी रहते थे। निराला जी हिंदी प्रेमियों के हृदय-सम्राट थे। वे साहित्यकार और मनुष्य दोनों रूपों में महान् थे।
प्रश्न 2: अपने बचपन की स्मृतियों को आधार बनाकर एक छोटी सी कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर 2:
हल्के हरे रंग सी तितली,
एक नहीं असंख्य उड़ी।
मैं उनके मध्य उड़ी,
नहीं उड़ी तो, ले उनको उड़ी
माचिस की डिब्बिया में भर,
कूद-कूद के मैं हूँ उड़ी,
हँसी और उत्साह ह्दय में लेकर
घर के छज्जे में हूँ खड़ी
बहुत सही तुमने पराधीनता,
अब उड़ चलो अपनी नगरी,
मैं यह कहकर उनके साथ उछली।
प्रश्न 3: ‘सरोज स्मृति’ पूरी पढ़कर आम आदमी के जीवन-संघर्षों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर 3: ‘सरोज स्मृति’ को पढ़कर पता चलता है कि आम आदमी का जीवन कितना कष्ट भरा है। कहीं धन का अभाव है, तो कहीं अपनों के प्रेम की कमी। एक आम आदमी का जीवन घर, कार्यालय, बिजली-पानी-भोजन की व्यवस्था में निकल जाता है। बच्चों की शिक्षा, उनका भविष्य तथा विवाह से संबंधित खर्चों के नीचे वह स्वयं को दबा पाता है। एक घर लेने के लिए उसे एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है और यदि वह घर ले लेता है, तो उसे जीवनभर कर्ज का बोझ दबा देता है। ऐसी स्थिति में घर और बच्चों की आवश्यकताओं के लिए वह कोल्हू का बैल बन जाता है।
जिनके लिए वह यह सब कर रहा है यदि ईश्वर ही उन्हें अपने पास बुला ले तो मनुष्य का ह्दय चित्कार उठता है। ‘सरोज स्मृति’ आम आदमी के जीवन-संघर्षों का प्रमाण है। कवि अपनी गिरती आर्थिक स्थिति के कारण पिता का कर्तव्य नहीं निभा पाता। मातृविहिन अपनी संतान को अपने से अलग रखता है। यद्यपि उसकी संतान को उसके नाना-नानी का समस्त प्यार-दुलार मिलता है लेकिन यह काफी नहीं है। यदि कवि के जीवन में धन का अभाव नहीं होता, तो वह अपनी संतान को अपने साथ रख पाता तथा उसका विवाह बड़े धूमधाम से कर पाता।
अपनी पुत्री का विवाह धन के अभाव में न कर पाने के कारण कवि का हृदय दुखी होता दिखाई देता तथा पत्नी के बाद पुत्री की मृत्यु उसे अंदर तक तोड़ देती है। वह विवश हो उठता है। अपने प्रेम को अपनी संतान के समक्ष रख नहीं पाता और उसकी वेदना से उपजी यह कविता हमारे समक्ष आ खड़ी होती है। हर मनुष्य के जीवन में ऐसे संघर्ष भरे पल विद्यमान होते हैं।