भरत-राम का प्रेम प्रश्न उत्तर, पद के प्रश्न उत्तर: Class 12 Hindi Chapter 6 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi antra |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | भरत-राम का प्रेम question answer,पद question answer |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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भरत-राम का प्रेम question answer, भरत-राम का प्रेम प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: ‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर 1: भरत के इस कथन का आशय है कि श्रीराम में बचपन से ही बड़प्पन की भावना थी। वे अपने छोटे भाइयों को अत्यधिक स्नेह करते थे। वे कभी भी उनका दिल दुखी नहीं करते थे। खेल खेलते समय भी वे जानबूझ कर इसलिए हार जाते थे ताकि भरत के दिल को चोट न पहुँचे। वे भरत को जान-बूझकर जिता देते थे, जिससे उसका उत्साह बढ़ा रहे। जहाँ राम अपने अनुज के प्रति स्नेह रखते थे वहीं भरत के मन में बड़े भाई राम के प्रति कृतजता का भाव है। वे उस भाव का ही यहाँ प्रकटीकरण कर रहे हैं।
प्रश्न 2: ‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर 2: प्रस्तुत पंक्ति में राम के स्वभाव की इन विशेषताओं की ओर संकेत मिलता है –
- राम तो अपराधी व्यक्ति तक पर क्रोध नहीं करते, फिर सामान्य व्यक्ति पर क्रोध करने का प्रश्न ही नहीं उठता।
- भरत पर उनकी विशेष कृपा रहती थी क्योक वे उनके अनुज थे।
- राम तो खेलने में भी कभी खुनिस नहीं निकालते थे। वे अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीं करते थे।
- राम ने बचपन से ही उनका साथ दिया है।
- वे के कभी भरत का दिल नहीं दुःखा सकते थे। अतः खेल में जीतकर भी हार जाते थे और भरत को जिता देते थे।
प्रश्न 3: राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 3: श्रीराम चन्द्र भरत के बड़े भाई थे और भरत उनसे असीम प्रेम करते थे। भरत श्रीराम को भगवान मानकर खुद को उनका सेवक समझते थे और उनकी पूजा करते थे। जब भरत अपने बड़े भाई श्रीराम से उनके वनवास के दौरान मिलने जाते हैं तो श्रीराम की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता है। भरत जब श्रीराम को देखते हैं तो वह अपने आँसूओं को रोक नहीं पाते हैं। भरत जी श्रीराम से अपनी आशाएं बताते है और श्रीराम को उनकी खूबियों के बारे में भी अवगत करा कर अपनी श्रद्धा को उनके समक्ष उजागर करते हैं। श्रीराम को वन में देखकर भरत बहुत दुखी होते हैं और खुद को दोष देते हैं। भरत का यह व्यवहार उनके श्रीराम के प्रति असीम प्रेम और श्रद्धा को दर्शाता है।
प्रश्न 4: ‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर 4: प्रस्तुत पंक्ति में भरत स्वयं के प्रति अपना दृष्टिकोण अभिव्यक्त करते हैं। भरत मानते हैं कि इस पथ्वी में जितना भी अनर्थ हो रहा है, वे इन सबके मूल हैं। अर्थात उनके कारण ये सब घटनाएँ घट रही हैं। इस प्रकार वे स्वयं को दोषी मानते हुए दुखी हो रहे हैं।
ऐसा प्रतित होता है मानो वे अपराध बोध के नीचे दबे हुए हैं, जिसका बोझ उन्हें असाध्य दुख दे रहा है। उनके मन में किसी के लिए भी बैरभाव तथा कलुषित भावना विद्यमान नहीं है। जो हुआ है वे स्वयं को इस सबका ज़िम्मेदार मानते हुए माता कैकेयी को कहे कटु शब्दों के लिए भी दुख प्रकट करते हैं। इससे पता चलता है कि भरत सच्चे, क्षमाशील और सहृदय व्यक्ति हैं।
प्रश्न 5: ‘फरह कि कोदव वालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली’। पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 5: भाव-सौंदर्य-उपर्युक्त चौपाई में भरत राम वनगमन पर पश्चाताप व्यक्त करते हुए कहते हैं कि क्या कोदों की बाली से उत्तम धान उत्पन्न हो सकता है ? क्या काली घोंघी से मोती उत्पन्न हो सकते हैं ? कहने का तात्पर्य है कि जननी कभी दोषी नहीं होती। व्यक्ति अपने कर्मों से ही बुरा बनता है।
शिल्प-सौंदर्य-इस पंक्ति में कवि ने उदाहरण अलंकार के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट की है। अवधी भाषा में भावों की सशक्त अभिव्यक्ति है। गेयता और संगीतात्मकता का गुण है। ध्वन्यानुप्रास की छटा है। शांत रस घनीभूत है।
पद के प्रश्न उत्तर, पद question answer
प्रश्न 1: राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 1: राम के वन-गमन जाने के बाद माँ उनकी वस्तुएँ देखकर भाव-विभोर हो जाती हैं। उनका स्नेह आँसुओं के रूप में आँखों से छलक पड़ता है। उन्हें राजभवन में तथा राम के भवन में राम ही दिखाई देते हैं। उनकी आँखें हर स्थान पर राम को देखती हैं और जब उन्हें इस बात का स्मरण आता है कि राम उनके पास नहीं हैं, वह चौदह वर्षों के लिए उनसे दूर चले गए है, तो वे चित्र के समान चकित और स्तब्ध रह जाती हैं। राम से जूड़ी वस्तु को नेत्रों से लगा लेती हैं। वह इतनी व्याकुल हो जाती हैं कि उन्हें स्वयं की भी सुध नहीं रहती हैं। पुत्र के कष्टों का भान करते हुए वे और भी दुखी हो जाती हैं।
प्रश्न 2: ‘रहि चाकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 2: कवि कहता है कि कौशल्या राम के वियोग से पीड़त हैं। वे राम की यादों में खोई हुई हैं। वे रामगमन की बातें याद करके चित्र की भौंति निर्जीव-सी हो जाती हैं। उन्हें पुरानी बातें याद करके बेहद दुख होता है। उनका व्यवहार अर्धविक्षिप्ता जैसा हो गया है। वे स्वयं नहीं समझ पाती हैं कि उन्हें क्या हो गया है जो राम के न रहते हुए भी ऐसा कार्य-व्यवहार कर रही हैं।
प्रश्न 3: गीतावली से संकलित पद ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ मैं निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 3: प्रस्तुत पंक्ति में माता कौशल्या का दुख और पुत्र वियोग दुष्टिगोचर होता है। माता कौशल्या राम के वन में जाने से बहुत दुखी हैं। वे अपने पुत्र राम को वापस आने का निवेदन करती हैं। कौशल्या का यह निवेदन अपने लिए नहीं है बल्कि राम के घोड़े के लिए है। राम का घोड़ा उनके जाने से बहुत दुखी है। वह भरत की देखभाल के बाद भी कमज़ोर होता जा रहा है। कौशल्या माता से उसका दुख नहीं देखा जाता है।
वे घोड़े का विरह भली-प्रकार से समझ पा रही हैं। दोनों ही राम को बहुत प्रेम करते हैं। अत: उनका हृदय रो पड़ता है और वे यह कहने के लिए विवश हो जाती हैं कि राम तुम एक बार लौट कर आ जाओ, मेरे लिए नहीं अपने प्रिय घोड़े के लिए आ जाओ।
प्रश्न 4: (क) उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर 4: (क) उपमा अलंकार के दो उदाहरण –
1. “कबहुँ समुझि वनगमन राम को रही चकि चित्रलिखी सी।”– इस पंक्ति में ‘चित्रलिखी सी’ में उपमा अलंकार है। इसमें माता कौशल्या की दशा का वर्णन चित्र रूप में उकेरी गई स्त्री से किया गया है। जैसे- चित्र में बनी स्त्री हिलती-डुलती नहीं है, वैसे ही माता कौशल्या राम को अपने पास न पाकर चित्र के समान स्तब्ध और चकित खड़ी रह जाती है।
2. ‘तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।’– इस पंक्ति में ‘सीखी सी’ में उपमा अलंकार है। इसमें माता कौशल्या की दशा मोरनी के समान दिखाई गयी है। जो वर्षा के समय प्रसन्न होकर नाचती है परन्तु जब उसकी दुष्टि अपने पैरों पर जाती है, तो वह रो पड़ती है।
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग गीतावली के दूसरे पद की इस पंक्ति में हुआ है- “तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे मनहुँ कमल हिमसारे।” इसमें राम वियोगी घोड़ों की मुरझाई दशा की संभावना ऐसे कमलों से की गई है, जो बर्फ की मार के कारण मुरझा रहे हैं। ऐसा करके तुलसीदास जी ने घोड़ों की दशा का सटीक वर्णन किया है। उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कर कवि ने उपमेय में उपमान की संभावना कर पद का सौंदर्य निखार दिया है और घोड़ों का दुख बहुत सजीव रूप में उभरकर सामने आया है।
प्रश्न 5: पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
उत्तर 5: तुलसीदास द्वारा रचित पदों का पठन करते ही यह सिद्ध हो जाता है कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था। वे संस्कृत, ब्रज और अवधी तीनों भाषा के ज्ञाता थे। उन्होंने राम-भरत का प्रेम अवधी भाषा में लिखा है और पद ब्रजभाषा में लिखे हैं। दोनों की भाषाओं में मधुरता और सुंदर शब्द विन्यास दृष्टिगोचर होता है। भाषा सरल और सहज है। गीतावाली की रचना पद शैली में हुई है। इसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग सर्वत्र दिखाई देता है। उपमा अलंकार और उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा भी पदों का सौंदर्य निखार देती है।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1: ‘महानता लाभलोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है’ को केंद्र में रखकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर 1: महानता कोई वस्तु नहीं है, जिसे हर मनुष्य द्वारा पाया जा सकता है। यह वह पदवी है, जो विरले किसी व्यक्ति को समाज द्वारा प्राप्त होती है। यह वह सम्मान है, जो व्यक्ति को उसकी उदारता, त्याग तथा समर्पण के कारण प्राप्त होता है। साधारण मनुष्य सारा जीवन लाभ-लोभ के फेर में पड़ा रहता है। उसे अपनी सुख-सुविधाओं की चिंता होती है।
वह सारी उम्र उन्हें पाने के लिए प्रयासरत्त रहता है। परन्तु जो मनुष्य इस प्रकार की भावनाओं से मुक्त हो जाता है और परहित के लिए अपना जीवन स्वाहा कर देता है, उसे इस भावना से युक्त माना जाता है। यह भाव मनुष्य को अपने लिए नहीं दूसरे के लिए करने के प्रेरित करता है। ऐसा व्यक्ति भगवान के समक्ष आ बैठता है।
प्रश्न 2: भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को भी जानिए।
उत्तर 2: भरत ने अयोध्या के राजसिंहासन पर भाई राम की चरण-पादुकाएँ रखकर ही राज-काज चलाया। कभी स्वयं को अयोध्या का राजा नहीं माना। उन्होंने अत्यंत साधारण जीवन बिताया। वे राम के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। वन से लौटने पर उन्हीं को अयोध्या की सत्ता सौंप दी।
प्रश्न 3: आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है ? अपनी राय लिखिए।
उत्तर 3: राम और भरत का युग विश्वास और आस्था का युग था। उस समय संदेह का कोई स्थान नहीं था। परिवार में स्पर्धा का भाव नहीं था। आज का युग प्रतिस्पर्धा एवं भौतिकता का युग है । हर व्यक्ति अपना विकास चाहता है। उसे परिवार, समाज तथा देश की कोई परवाह नहीं है। प्रगति की अंधी दौड़ में जीतने तथा सुख-सुविधामय जीवन बिताने हेतु धन एकत्र करने में वे सभी संबंधों की बलि चढ़ा देते हैं। अत: आज के युग में राम और भरत जैसा भ्रातृप्रेम बेहद मुश्कल है।