विद्यापति के पद के प्रश्न उत्तर: Class 12 Hindi Chapter 8 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi antra |
Chapter | Chapter 8 |
Chapter Name | विद्यापति के पद question answer |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
क्या आप Class 12 Hindi Antra Chapter 8 question answer ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से विद्यापति के पद के प्रश्न उत्तर कर सकते हैं।
प्रश्न 1: प्रियतमा के दुख के क्या कारण हैं?
उत्तर 1: प्रियतमा के दुख के ये कारण निहित हैं-
- सावन मास में प्रियतमा का दुःख बढ़ जाता है। यह मास वर्षा ऋतु में आता है और वर्षा ऋतु में विरह की पीड़ा असह्य हो जाती है।
- प्रियतमा के पास उसका प्रियतम नहीं है। यह सावन के महीने में भी अकेली है।
- वर्षा ऋतु में विरह की पीड़ा असहा हो जाती है।
- प्रियतमा का प्रियतम उसके मन को हराकर अपने साथ ले गया है।
- प्रियतमा अपनी प्रियतम की उपेक्षा का शिकार है। अब उसका मन इस प्रियतम की ओर नहीं रह गया है।
प्रश्न 2: कवि ‘नयन न तिरपित भेल’ के माध्यम से विरहनी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर 2: कवि इन पंक्तियों में नायिका के उस मनोदश का वर्णन करते है, जिनमे नायिका सब कुछ छोड़ कर सिर्फ अपने प्रियतम को निहारते रहना चाहती है। वह अपने प्रियतम के रूप को जितना भी निहारे, उसे तृप्ति नहीं मिलती है वह अतृप्त रहती है। यह पंक्ति नायिका के मन में, उसके प्रियतम के लिए असीम प्रेम को दर्शाता है। उसके प्रियतम का सलोना रूप उसे पल-पल बदलता रहता है और हर बार वह उसकी ओर अधिक आकर्षित होती है। इसलिए नायिका तृप्त नहीं है।
प्रश्न 3: नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने का कारण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर 3: नायिका कृष्ण को जन्मभर निहारती रही। वह उनके प्रिय शब्दों को कानों से सुनती रही, परंतु वह उन्हें अच्छी तरह नहीं जान पाई। उसे अपने प्रिय से मिलने वाले सुख में हर बार अलग-अलग आनंदानुभूति होती है। यह आनंदानुभूति ऐसी है, जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। यह सुख और प्रिय का रूप उसे अतृप्त बनाए रखता है। वह लंबे समय तक उनके हृदय को अपने हृदय में रखे रही, परंतु अपने हृदय की आग को शांत नहीं कर पाई। कृष्ण रसिक शिरोमणि हैं। उनके जैसे रसिक लाखों में एक होते हैं। इस कारण नायिका के प्राण तृप्त नहीं हो पाए।
प्रश्न 4: ‘सेह पिरित अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन होए’-से लेखक का क्या आशय है ?
उत्तर 4: प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेम के विषय में वर्णन कर रही हैं। इसके अनुसार प्रेम ऐसा भाव है, जिसके विषय में कुछ कहना या व्यक्त करना संभव नहीं है। प्रेम में पड़ा हुआ व्यक्ति इस प्रकार दीवाना हो जाता है कि वह जितना स्वयं को निकालना चाहता है, उतना ही डूबता चला जाता है। यह पुराना होने पर भी नए के समान लगता है क्योंकि प्रेमियों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण तथा प्रेम प्रागढ़ होता जाता है।
कवि के अनुसार प्रेम कोई स्थिर चीज़ नहीं है, जिसमें कोई परिवर्तन न हो। स्थिर वस्तु का बखान करना सरल है परन्तु यह ऐसा भाव है, जो समय के साथ-साथ पल-पल बदलता रहता है। यही कारण है कि इसका वर्णन करना कठिन हो जाता है और इसमें नवीनता बनी रहती है।
प्रश्न 5: कोयल और भौरों के कलरव का नायिका पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर 5: कोयल और भौरों के कलरव का नायिका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कोयल का मधूर स्वर और भौरों का गुंजन नायिका को अपने प्रेमी की याद दिला देती है। वह अपने कानों को बंद कर इनके कलरव सुनने से बचना चाहती है परन्तु ये आवाज़ें उसे फिर भी सता रही हैं। परदेश गए प्रियतम की याद उसे सताने लगती है। विरहग्नि उसे वैसे ही बहुत जलाए हुए हैं। ये कलरव उसे और भी जला रहा है।
प्रश्न 6: कातर दृष्टि से चारों तरफ़ प्रियतम को ढूँढ़ने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है?
उत्तर 6: नायिका कातर दृष्टि से चारों तरफ प्रियतम को ढूँढती रहती है। कवि उसकी मनोदशा का वर्णन इन शब्दों में करता हैकातर दिठि करि, चौदिस हेरि-हेरि नयन गरए जल धारा। कवि बताता है नायिका का शरीर विरह दशा में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के समान क्षीण हो गया है। नयनों से अश्रुधारा बहती रहती है अर्थात् हर समय रोती रहती है और इधर-उधर प्रियतम को ढूँढने का प्रयास करती रहती है।
प्रश्न 7: निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए –
तिरपित, छन, बिदगध, निहारल, पिरित, साओन, अपजस, छिन, तोहारा, कातिक।
उत्तर 7:
- तिरपित = तृप्त
- निहारल = निहारना
- अपजस = अपयश
- छन = क्षण
- पिरित = प्रीति
- छिन = क्षण, क्षीण
- विदगध = विदाध
- साओन = सावन (श्रावण)
- तोहारा = तुम्हारा
- कातिक = कार्तिक।
प्रश्न 8: निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखिख अनकर दु :ख दारुन रे जग के पतिआएा।
(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल सुति पथ परस न गेल।।
(ग) कुसुमति कानन हेरि कमलमुखि मुदि रहए दु नयनि।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
उत्तर 8: (क) प्रस्तुत पद में नायिका का पति परदेश गया हुआ है। वह घर में अकेली है। पति से अलग होने का विरह उसे इतना सताता है कि वह अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! पति के बिना मुझसे घर में अकेला नहीं रहा जाता है। वह आगे कहती है कि हे सखी! इस संसार में ऐसा कौन-सा मनुष्य विद्यमान है, जो किसी अन्य के कठोर दुःख पर विश्वास करे। अर्थात कोई अन्य किसी दूसरे के दुख को गहनता से नहीं समझ पाता है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका की अतुप्ति का वर्णन करते हैं। अपने प्रेमी के साथ उसे बहुत समय हो गया है। परन्तु अब तक वह तृप्त नहीं हो पायी है। वह जन्मों से अपने प्रियतम को निहारती रही है परन्तु हर बार उसे और देखने का ही मन करता है। नेत्रों में अतृप्ति का भाव विद्यमान है। इसी तरह वह उसकी मधुर वाणी को लंबी अवधी से सुनती आ रही है। उसके बाद भी उसके बोल नए से ही लगते हैं। उसके रूप तथा वाणी के अंदर नवीनता का समावेश है, जिस कारण मैं तृप्त ही नहीं हो पाती हूँ।
(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में प्रेमिका की हृदय की दशा का वर्णन किया गया है। कवि के अनुसार नायिका को ऐसा प्राकृतिक वातावरण भाता नहीं है, जो संयोग कालीन हो। वह स्वयं वियोग की अवस्था में है। उसका प्रियतम उसे छोड़कर बाहर गया हुआ है। वसंत के कारण वन विकसित हो रहा है। नायिका को यह दृश्य विरहग्नि में जला रहा है। अतः कमल के समान सुंदर मुख वाली राधा दोनों हाथों से अपनी आँखों को बंद कर देती है। इसी तरह जब कोयल कूकने लगती है और भंवरे फूलों पर गुंजान करने लगते हैं, तो वह अपने कानों को बंद कर लेती है क्योंकि उनका मधुर स्वर उसे आहत करता है। उसे रह-रहकर अपने प्रियतम का स्मरण हो आता है।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1: पठित पाठ के आधार पर विद्यापति के काव्य में प्रयुक्त भाषा की पाँच विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
- उत्तर 1: विद्यापति जी के काव्य में प्रयुक्त भाषा की पाँच विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- अलंकारों का बहुत ही सुंदर तथा सटीक प्रयोग किया गया है। जैसे-
- तोहर बिरह दिन छन-छन तुन छिन-चौदसि-चाँद समान।
- प्रस्तुत पंक्तियों में ‘छन-छन’ के अंदर वीप्सा अलंकार की छटा है ‘चाँद समान’ में उपमा अलंकार तथा ‘चौदसि चाँद’ में अनुप्रास अंलकार का प्रयोग किया गया है।
- इन्होंने भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। जैसे- निहारल, साओन, तोहारा, तिरपित इत्यादि।
- इनकी भाषा मैथली है। पाठ में दी गई सभी रचनाएँ मैथली भाषा में लिखी गई है।
- पाठ का अंतिम भाग वियोग श्रृंगार का सुंदर उदाहरण है।
- इनकी भाषा में लौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति है। तीनों भाग इस बात का प्रमाण है।
प्रश्न 2: विद्यापति के गीतों का ऑडियो रिकॉर्ड बाजार में उपलब्ध है, उसको सुनिए।
उत्तर 2: विद्यार्थी बाजार से खरीदकर सुनें।
प्रश्न 3: विद्यापति और जायसी प्रेम के कवि हैं। दोनों की तुलना कीजिए।
उत्तर 3: जायसी और विद्यापति दोनों प्रेम के कवि हैं। जायसी के प्रेम में अलौकिकता का समावेश है। उन्होंने लोकाकथा के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है।
विद्यापति की व्यंजना शुद्ध रूप में लौंकिक है। यह शृंगार-वर्णन है। इसमें संयोग और वियोग दोनों दशाओं का वर्णन है।