पहलवान की ढोलक question answer: Class 12 Hindi Chapter 13 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi Aroh |
Chapter | Chapter 13 |
Chapter Name | पहलवान की ढोलक के प्रश्न उत्तर |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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पाठ के साथ
प्रश्न 1: कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
उत्तर 1: कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में अद्भुत तालमेल था। ढोल बजते ही लुट्टन की रगों में खून दौड़ने लगता था। उसे हर थाप में नए दाँव-पेंच सुनाई पड़ते थे। ढोल की आवाज उसे साहस प्रदान करती थी। ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में निम्नलिखित तालमेल था
- धाक-धिना, तिरकट तिना – दाँव काटो, बाहर हो जाओ।
- चटाक्र-चट्-धा – उठा पटक दे।
- धिना-धिना, धिक-धिना — चित करो, चित करो।
- ढाक्र-ढिना – वाह पट्ठे।
- चट्-गिड-धा – मत डरना। ये ध्वन्यात्मक शब्द हमारे मन में उत्साह का संचार करते हैं।
प्रश्न 2: कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर 2: कहानी के आरंभ में लुट्टन के माता-पिता चल बसे। सास ने उसका पालन-पोषण किया। कहानी के मध्य में किशोर अवस्था में दंगल जीतकर वह मशहूर पहलवान बन गया। उसकी इस ख्याति ने उसके जीवन को सरल बना दिया। अब हर प्रकार की सुख-सुविधा उसके पास थी। दो जवान बेटों का पिता बन चूका था परंतु पत्नी स्वर्ग सिधार गई।
राजा जी के मरते ही उनके बेटे ने उन्हें अपने यहाँ से जाने के लिए कह दिया। अब जीविका का एकमात्र साधन हाथ से निकल गया। गाँव आकर उसने बेटों के साथ जीना चाहा, तो हैज़े ने गाँव को चपेट में ले लिया। कहानी के अंत में हैज़े की बीमारी से उसके दोनों बेटे मृत्यु को प्राप्त हो गए। आखिर में वह स्वयं भी इस बीमारी का शिकार होकर संसार से चला गया।
प्रश्न 3: लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोलक है?
उत्तर 3: लुट्टन ने पहलवानी कभी किसी गुरु से नहीं सीखी क्योंकि उसे कभी जरूरत नहीं पड़ी। वह ढोलक की थाप सुनते ही जोश में भर जाता था और जैसे-जैसे ढोलक बजती वह भी वैसे ही दाँव पेंच लगाता था। मानो लगातार ढोलक उसे सिखा रही हो। तभी उसने कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं यही ढोलक है।
प्रश्न 4: गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?
उत्तर 4: गाव में महमारी और सूखे के कारण निराशजनक माहोल तथा मृत्यु का सन्नाटा छाया रहता है ऐसे दुःख के समय में पहलवान की ढोलक निराश गाव वालो के मन में जीने की उमंग जगती है। जेसे ढोलक उन्हें महामारी से कभी न हारने को पेरित करती है।
प्रश्न 5: ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?
उत्तर 5: ढोलक की आवाज़ सुनकर लोगों को प्रेरणा तथा सहानुभूति मिलती थी। मृत्यु के भय से आक्रांत लोग, अर्धचेतन अवस्था में पड़े लोग, जिदंगी से हारे लोग ढोलक की आवाज़ से जी उठते थे। रात की विभीषिका उन्हें आक्रांत नहीं कर पाती थी। जब तक ढोल बजता था उनकी अश्रु से भरी आँखें उसे सुनकर चमक उठती थी। मृत्यु का भय इस आवाज़ से चला जाता था और जीवन का संचार होता था।
प्रश्न 6: महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
उत्तर 6: महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में बड़ा अंतर होता था। सूर्योदय के समय कलरव, हाहाकार तथा हृदय विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर चमक होती थी लोग एक-दूसरे को सांत्वना बँधाते रहते थे परन्तु सूर्यास्त होते ही सारा परिदृश्य बदल जाता था। लोग अपने घरों में दुबक कर बैठ जाते थे।
तब वे चूँ भी नहीं कर सकते थे। यहाँ तक कि माताएँ अपने दम तोड़ते पुत्र को ‘बेटा’ भी कह नहीं पाती थी। ऐसे समय में केवल पहलवान की ढोलक की आवाज सुनाई देती थी जैसे वह महामारी को चुनौती दे रही हो।
प्रश्न 7: कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था-
(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
उत्तर 7: (क) कुश्ती या दंगल पहले लोगों व राजाओं के प्रिय शौक हुआ करते थे। राजा पहलवानों को सम्मान देते थे, परंतु आज स्थिति बदल गई है। अब पहले की तरह राजा नहीं रहे। दूसरे, मनोरंजन के अनेक साधन प्रचलित हो गए हैं।
(ख) कुश्ती की जगह अब अनेक आधुनिक खेल प्रचलन में हैं; जैसे-क्रिकेट, हॉकी, बैडमिंटन, टेनिस, शतरंज, फुटबॉल आदि।
(ग) कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए ग्रामीण स्तर पर कुश्ती की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जा सकती साथ-साथ पहलवानों को उचित प्रशिक्षण तथा कुश्ती को बढ़ावा देने हेतु मीडिया का सहयोग लिया जा सकता है।
प्रश्न 8: आंशय स्पष्ट करें- आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर 8: लेखक यहाँ गाँव की असहनीय परिस्थिति को बताता है। वह कहना चाहते हैं कि इस महामारी काल में कोई भी उस गाँव की रक्षा करने वाला नहीं है। ग्रामीणों की पीड़ा से प्रकृति भीं दुखी हैं। इसलिए आकाश में भीं निस्तब्धता छाई हुई है। यदि कोई तारा आकर इनके दुख को समेटना भी चाहता है तो वह बीच में ही विलीन हो जाता है, वह पृथ्वी पर पहुंच नहीं पाता है। तथा अन्य सभी तारे उस तारे की इस स्थिति पर उसका मजाक उड़ाते हैं।
प्रश्न 9: पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए?
उत्तर 9: मानवीकरण के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था।
गाँव भर में मलेरिया तथा हैज़ा फैला पड़ा था। लोग मर रहे थे।
अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
ऐसा लगता था मानो रात रो रही हो।
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा तारे को मनुष्य के समान भावुक दिखाया है।
तारे का टूटकर गिरने का वर्णन है।
अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
यहाँ तारों को मज़ाक उड़ाते दिखा गया है।
रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती
रात्रि को मनुष्य के समान चलता हुआ दिखा गया है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1: पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे/करेंगी?
उत्तर 1: पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति का चित्रण किया गया है। आजकल ‘स्वाइन फ्लू’ जैसी बीमारी से आम जनता में दहशत है। मैं ऐसी स्थिति में निम्नलिखित कार्य करूंगा
- लोगों को स्वाइन फ्लू के विषय में जानकारी दूँगा।
- स्वाइन फ्लू के रोगियों को उचित इलाज करवाने की सलाह दूँगा।
- जुकाम व बुखार के रोगियों को घर में रहने तथा मास्क लगाने का परामर्श दूँगा।
- मरीजों की जाँच में सहायता करूंगा।
प्रश्न 2: ढोलक की थाप मृत गांव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी। कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए?
उत्तर 2: कला और जीवन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, दोनों का गहरा सम्बन्ध है। कला ही है जिसमें मानव मन में संवेदनाएं उभारने, प्रवृत्तियों को ढालने तथा चिंतन को मोड़ने, अभिरुचि को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है। कला व्यक्ति के मन में बसी हुई स्वार्थ परिवार धर्म आदि की सीमाओं को मिटा कर मानव मन को व्यापकता प्रदान करती है। मानव कला के हर एक रुप काव्य, संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला और रंगमंच से अटूट संबंध है।
प्रश्न 3: चर्चा करें कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है?
उत्तर 3: कलाओं को फलने-फूलने के लिए भले व्यवस्था की जरुरत महसूस होती है परन्तु कलाओं का अस्तित्व केवल और केवल व्यवस्था का मोहताज नहीं होता है क्योंकि यदि कलाकार व्यवस्था द्वारा पोषित है और अपनी कला के प्रति समर्पित नहीं है तो वह कभी भी जनमानस में अपना स्थान नहीं बना पाएगा और कुछ ही समय बाद गायब हो जाएगा।
किसी भी कला को विकसित होने में कलाकार का अपनी कला के प्रति एकनिष्ठ भाव, समर्पण भावना, उसकी अथक मेहनत और जन-सामान्य का प्यार, सरहाना आवश्यक तत्व होते हैं है। जिस किसी ने भी इन उपर्युक्त गुणों को पा लिया वह व्यवस्था के बिना भी सदैव अपने स्थान पर टिका रहता है।
भाषा की बात
प्रश्न 1: हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए –
चिकित्सा, क्रिकेट, न्यायालय, या अपनी पसंद का कोई क्षेत्र
उत्तर 1:
- चिकित्सा – अस्पताल, नर्स, डॉक्टर, टीका, पथ्य, औषधि, जाँच।
- क्रिकेट – बैट, गेंद, विकेट, छक्का, चौका, क्लीन बोल्ड।
- न्यायालय – जज, वकील, नोटिस, जमानत, अपील, साक्षी, केस।
- शिक्षा – पुस्तक, अध्यापक, विद्यार्थी, स्कूल, बोर्ड, पुस्तकालय।
प्रश्न 2: पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं –
- फिर बाज की तरह उस पर टूट पड़ा।
- राजा साहेब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
- पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
उत्तर 2: एक गांव में मलखान नाम का पहलवान रहता था जिसके गांव में बहुत चर्चे थे। कोई भी पहलवान उसके सामने आने से डरता था ।एक दिन वह शहर की तरफ रवाना होता है जहाँ उसकी मुलाकात बिल्लू पहलवान से होती है। बिल्लू मलखान को अखाड़े में बुलाता है । मलखान उस पर बाज़ की तरह टूट पड़ता है। मलखान की जीत ने राजा साहब की स्नेह दृष्टि से उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। राजा साहब ने उसे राज पहलवान बना दिया। जिससे पहलवान मलखान की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई थी। फिर पहलवान ने शादी कर ली। शादी के दो साल बाद उसकी स्त्री ने दो पहलवानों को जन्म दिया और स्वर्ग सिधार गई।
प्रश्न 3: जैसे क्रिकेट में कमेंट्री की जाती है वैसे ही कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर – दिखाई पड़ता है?
उत्तर 3: समानता- क्रिकेट में बल्लेबाज़ पर सबकुछ निर्धारित रहता है। अतः कुश्ती में भी पहलवान पर सबका ध्यान रहता है। कुश्ती कमेंट्री करते समय पहलवान के बारे में बताया जाता है, क्रिकेट में बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ के बारे में बताया जाता है। कुश्ती में उसके चेहरे के भाव और उठाए गए कदम के बारे में बताया जाता है, क्रिकेट में बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ के चेहरे और भाव के बारे में बताया जाता है।
अंतर- क्रिकेट में जब बल्लेबाज़ बॉल को मार देता है, तो फिर खेल बॉल पर निर्भर करती है। अतः कमेंट्री में गेंद और अन्य खिलाड़ी जो उसके पीछे भागते हैं, उनकी प्रतिक्रिया बतायी जाती है। लेकिन कुश्ती करते हुए पहलवान के दाँव-पेच पर निर्भर होता है। वह जैसा दाँव मारेगा वैसा ही उसे फल मिलेगा। अतः यहाँ कमेंट्री दोनों पर ही आधारित होती है। अन्य किसी के बारे में नहीं बताया जाता है।