Class 12 Hindi Aroh Chapter 14 question answer शिरीष के फूल

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शिरीष के फूल question answer: Class 12 Hindi Chapter 14 question answer

TextbookNcert
ClassClass 12
SubjectHindi Aroh
ChapterChapter 14
Chapter Nameशिरीष के फूल के प्रश्न उत्तर
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 1: लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत ( संन्यासी ) की तरह क्यों माना है?

उत्तर 1: लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा फलता-फूलता है। वह कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-रस बनाए रखता है। इसी तरह शिरीष का वृक्ष है। वह भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है।

वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा रहता है। उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, तब भी शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है, वह काल व समय को जीतकर लहलहाता रहता है।

प्रश्न 2: हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है – प्रस्तुत पीठ के आधार पर स्पष्ट करें। 

उत्तर 2: शिरीष के विषय में लेखक मनुष्य को एक सीख देता है। लेखक के अनुसार जिस प्रकार शिरीष को कोमल मानकर कवि उसे पूरा ही कोमल मान लेते हैं, तो यह उसके साथ अन्याय है। इसके फल उतने ही कठोर तथा सख्त होते हैं। लेखक कहता है कि हमें इनसे सीख लेनी चाहिए कि अपने हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता कभी-कभी ज़रूरी हो जाती है। यदि हम अपना व्यवहार कभी कठोर कर लेते हैं, तो लोगों से ठगे जाने का खतरा कम हो जाता है।

प्रश्न 3: द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।

उत्तर 3: शिरीष उस समय पनपता है, जब गर्मी अपने चरम सीमा पर होती है। यहाँ लेखक ने जीवन के संघर्ष के साथ गर्मी की तीव्रता को जोड़ा है। हर मनुष्य का जीवन संघर्षों और पीड़ाओं के मेल से बना होता है, और मनुष्य को ना केवल इसका सामना करना पड़ता है, बल्कि विसम हालातों में भी कोमल फूलों की तरह खिलकर यह साबित करना होता है कि, सबसे कठिन परिस्थितियों में भी, एक व्यक्ति जीने की इच्छा को बनाए रखकर इसे दूर कर सकता है।

यह मनुष्य के जीने की इच्छा और उसके जीवित रहने के संघर्ष पर निर्भर करता है। यदि कोई आदमी लड़ना बंद कर देता है और विषम और विकट परिस्थितियों से घबरा जाता है तो, वह व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता,वह टूट जाएगा। शिरीष वृक्ष हमें सभी जीव जीवों से मुक्त रहने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 4: हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?

उत्तर 4: अवधूत सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठा व्यक्ति होता है। वे आत्मबल के प्रतीक होते हैं। परंतु आज मानव आत्मबल की बजाय देहबल, धनबल आदि जुटाने में लगें हैं। आज मनुष्य में आत्मबल का अभाव हो चला है। आज मनुष्य मूल्यों को त्यागकर हिंसा, असत्य आदि गलत प्रवृत्तियों को अपनाकर ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। ऐसी स्थिति किसी भी सभ्यता के लिए संकट के समान है।

प्रश्न 5: कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय- एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊंचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तार पूर्वक समझाएं!

उत्तर 5: कवि द्विवेदी जी के अनुसार साहित्य कर्म के लिए जो मानदंड निर्धारित है वह यह है कि, एक महान कवि वही बन सकता है, जिसके पास एक अनासक्त योगी की तरह  स्थिर दिल और एक प्रेमी की तरह उदार दिल हो।  छंद आदि विधाएं तो कोई भी लिख सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक महान कवि है। कवि को वज्र के समान कठोर और फूल की तरह कोमल दोनों प्रवृत्ति का होना चाहिए। इसीलिए लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कबीर दास और कालिदास को महान माना है क्योंकि, दोनों में एक प्रकार की स्थिरता थी एवम  अनासक्ति का भाव था ।

प्रश्न 6: सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर 6: परिवर्तन प्रकृति का नियम है। मनुष्य को समयानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए। एक ही लीक पर चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। शिरीष के फूल हमें यही सिखाते हैं। वह हर मौसम में अपने को और अपने स्वभाव को बदल लेता है। इसी कारण वह निर्लिप्त भाव से वसंत, आषाढ़ और भादों में खिला रहता है। प्रचंड लू और उमस को सहन करता है। लेकिन फिर भी खिला रहता है। फूलों के माध्यम से कोमल व्यवहार करता है तो फलों के माध्यम से कठोर व्यवहार। इसीलिए वह दीर्घजीवी बन जाता है। मनुष्य को भी ऐसा ही करना चाहिए।

प्रश्न 7: आशय स्पष्ट कीजिए- 1. दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हैं। जमे कि मरे।
2. जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?…मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।
3. फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।

उत्तर 7: 1. इन पक्तियों का आशय जीवन जीने की कला से है। लेखक के अनुसार दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। जो बुद्धिमान हैं वे इससे संघर्ष कर अपना जीवनयापन करते हैं। मूर्ख व्यक्ति यह समझते हैं कि वे जहाँ है वहाँ डटे रहने से काल देवता की नज़र से बच जाएँगे। वे भोले होते हैं उन्हें यह नहीं पता होता है कि जड़ता मृत्यु के समान है तो गतिशीलता जीवन है। जो हिलता-डुलता है, स्थान बदलता है वही प्रगति के साथ-साथ मृत्यु से भी बचा रहता है क्योंकि गतिशीलता ही तो जीवन है।

2. लेखक कहता है कि कवि को सबसे पहले अनासक्त होना चाहिए अर्थात तटस्थ भाव से निरीक्षण करने वाला होना चाहिए। उसे फक्कड़ होना चाहिए अर्थात उसे सांसारिक आकर्षणों से दूर रहना चाहिए। जो अपने किए कार्यों का लेखा-जोखा करता है, वह कवि नहीं बन सकता। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे फक्कड़ बनना चाहिए।

3. यह रेखा सौंदर्य और सृजन की सीमा को संदर्भित करती है। लेखक का यह कहना था कि फल, वृक्ष और फूल का अपना अस्तित्व है। ये सिर्फ खत्म नहीं होते हैं, बल्कि वे हम सभी को संकेत देते हैं कि जीवन में अभी बहुत कुछ बाकी है। अभी भी सृजन की बहुत संभावना है, और हर अंत के बाद जीवन की एक नई शुरुआत होती है।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1: शिरीष के पुष्य को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?

उत्तर 1: शिरीष का फूल प्रचंड गरमी में भी खिला रहता है। वह लू और उमस में भी जोर शोर से खिलता है अर्थात् विषम परिस्थितियों में भी वह समता का भाव रखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को शीतपुष्प का अर्थ है ठंडक देने वाला फूल और शिरीष का फूल भयंकर गरमी में भी ठंडक प्रदान करता है।

प्रश्न 2: कोमल और कठोर दोनो भाव किस प्रकार गांधीजी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।

उत्तर 2: अगर हम गांधीजी के बारे में बात करते हैं, तो वह मनुष्यों की तुलना में, उच्च स्तर तक बढ़ कर एक विचार बन गए हैं। इसके दो सबसे बड़े कारण यह हैं कि, सबसे पहले, उनके पास बच्चों की तरह कोमल भावनाएं और कोमल हृदय था, जिसके फलस्वरूप, भारत के आम लोगों की पीड़ा के साथ रो पड़े।

दूसरी ओर, उनके पास वज्र के समान साहस था, जिसमे वे अंग्रेजों से भी भीड़ गए और उनके खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की। एक तरफ गांधीजी के भीतर सत्य और अहिंसा की कोमल भावना थी, दूसरी तरफ अनुशासन के मामले में वे बहुत दृढ़ थे। इसलिए, हम कह सकते हैं कि कोमल और कठोर दोनों भाव गांधीजी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।

प्रश्न 3: आजकल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्ज़ी व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती को ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-वाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।

उत्तर 3: समय बदल रहा है। अतः किसानों को भी उसके साथ बदलना पड़ रहा है। पहले किसान साग-सब्ज़ी व अन्न के उत्पादन को ही अपना सबकुछ मानता था। वे इसके जीवन के आधार थे। जीवन का आधार जीवन को सुचारू रूप से न चलाए पाएँ, तो वह किसी काम का नहीं है। आज का किसान साग-सब्ज़ी व अन्न का उत्पादन करके भी कुछ नहीं पाता है।

उसका स्वयं का जीवन भी कठिनाई से चलता है। जो दूसरों का पेट पालता हो, वह स्वयं भूखा रह जाए तो यह विडंबना ही है। एक किसान स्वयं तो भूखा रह सकता है लेकिन अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता। साग-सब्ज़ी व अन्न उसे वह नहीं दे रहे हैं, जो उसे फूलों की खेती दे रही है। इसके लिए मेहनत कम और फल अधिक मिलता है। इसी कारण उसके बच्चे अच्छी शिक्षा, भरपूर पेट भोजन और एक अच्छी जीवन शैली जी पा रहे हैं।

एक किसान जन्मदाता कहा जाता है। उसे ही रक्षक माना जाता है यदि रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो बाकी लोगों का क्या होगा। ऐसा हर किसान वर्ग के साथ नहीं हो रहा है। इस प्रकार का नुकसान छोटे किसान भोग रहे हैं। एक संपन्नशाली किसान यदि साग-सब्ज़ी व अन्न को छोड़कर फूलों की खेती करेगा, तो देश तथा विश्व की जनता जीवित कैसी रहेगी। यह भावना उचित नहीं है।

प्रश्न 4: हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इस पाठ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्त्व व्यंजक ललित निबंध और भी लिखे हैं- कुटज, आम फिर बौरा गए, अशोक के फूल, देवदारु आदि। शिक्षक की सहायता से इन्हें ढूँढ़िए और पढ़िए।

उत्तर 4: विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 5: द्विवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता है? आज साहित्यिक रचना-फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही है। तब ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ गया है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है या उपेक्षामय? इसका मूल्यांकन करें।

उत्तर 5: मेरा प्रकृति के प्रति दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है। यही कारण है कि मैंने इस रचना को न केवल पढ़ा बल्कि इस वृक्ष को ढूँढ भी निकाला। अब मैं इसी तर्ज पर फूलों, वृक्षों उनके गुणों इत्यादि पर जानकारी एकत्र कर रहा हूँ। मैं अपने पिता के साथ अपने दादाजी के गढ़वाल भी जाता हूँ। मेरा गाँव गढ़वाल में है। वहाँ पर प्रकृति के मध्य रहना मुझे अच्छा लगता है।

दादा-दादी के साथ मैं रोज़ सुबह निकल जाता हूँ और प्रकृति का सानिध्य भी पाता हूँ। मैंने पर्वतीय प्रदेश की वनस्पतियों के बारे में भी बहुत सी जानकारियाँ एकत्र की हैं। वहाँ के पशु तथा पक्षियों के चित्र लिए हैं। इन सबकी मैंने एक पुस्तक बनाई है।

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