Class 12 Hindi Aroh Chapter 15 question answer श्रम विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

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श्रम विभाजन और जाति-प्रथा question answer, मेरी कल्पना का आदर्श समाज question answer: Class 12 Hindi Chapter 15 question answer

TextbookNcert
ClassClass 12
SubjectHindi Aroh
ChapterChapter 15
Chapter Nameश्रम विभाजन और जाति-प्रथा के प्रश्न उत्तर, मेरी कल्पना का आदर्श समाज के प्रश्न उत्तर
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 1: जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?

उत्तर 1: जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं –

  • जाति-प्रथा, श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन भी करती है।
  • सभ्य समाज में श्रम-विभाजन आवश्यक है, परंतु श्रमिकों के विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन किसी अन्य देश में नहीं है।
  • भारत की जाति-प्रथा में श्रम-विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं होता। वह मनुष्य की क्षमता या प्रशिक्षण को दरकिनार करके जन्म पर आधारित पेशा निर्धारित करती है।
  • जु:शुल्यक विपितपिस्थितयों मेंपेश बालक अनुपितनाह देता फल भूखे मरने की नौबत आ जाती है।

प्रश्न 2: जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?

उत्तर 2: जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी का कारण इस प्रकार बनी कि इसने व्यक्ति के पेशे को उसकी जाति के आधार पर तय कर दिया, जिससे उसे अपनी इच्छा या योग्यता के अनुसार रोजगार चुनने का अवसर नहीं मिला। अगर किसी जाति का पारंपरिक पेशा अपर्याप्त या अनुपयुक्त साबित होता, तो उस जाति के लोग भूखमरी और गरीबी का सामना करते।

आज यह स्थिति कम हुई है, क्योंकि लोग जाति से परे जाकर विभिन्न पेशों को अपना रहे हैं। हालांकि, जातिगत भेदभाव और अवसरों में असमानता के कारण यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

प्रश्न 3: लेखक के मत से दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है? 

उत्तर 3: लेखक के अनुसार जाति-व्यवस्था में व्यक्ति को पेशा चुनने की स्वतंत्रता नहीं होती है, यह एक दुखद दृश्य है। इस व्यवस्था के चलते मनुष्य अलग-अलग वर्गों में बँट गया और उसे कष्टों भरा जीवन व्यतीत करना पड़ा। लेखक मानता है कि दासता को खत्म करना बस कानून के हाथ ने नहीं था बल्कि लोगों की सोच भी वैसी ही थी।

दासता के अन्तर्गत निम्न श्रेणी के लोगों को उच्च स्तर के लोगों के आदेशों का पालन करना होता था, वह उनके पेशे को भी निर्धारित करते थे। निम्न श्रेणी के लोगों को अपना पेशा चुनने का कोई अधिकार नहीं था, वह बस उच्च स्तर के लोगों की गुलामी किया करते थे। इसे ही लेखक ‘दासता’ की संज्ञा देते है।

प्रश्न 4: शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर ‘समता’ के एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?

उत्तर 4: यह सभी जानते हैं कि स्वतंत्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः प्रत्येक मनुष्य को यह भी अधिकार है कि वह समाज में रहते हुए अपनी क्षमता का पूरा विकास करे। हमें चाहिए कि सबके साथ इस आधार पर समानता का व्यवहार किया जाए। यह समाज में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इस तरह हम समाज का उचित निर्माण ही नहीं करते बल्कि समाज का विकास भी करते हैं।

यदि प्रत्येक व्यक्ति के साथ समाज में समानता का व्यवहार नहीं किया जाता है, इससे सामाजिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है। इस तरह समाज में असंतोष, निराशा तथा अशांति का भाव व्याप्त हो सकता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता तथा योग्यता के आधार पर जीने तथा पेशा चुनने का अधिकार होगा, तो समाज प्रगति ही नहीं करेगा बल्कि खुशहाल भी होगा। अतः आंबेडकर जी ‘समता’ के एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह करते हैं।

प्रश्न 5: सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?

उत्तर 5: हम लेखक की बात से सहमत है कि उन्होंने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है। किसी भी समाज में भावनात्मक समत्व तभी आ सकता है जब सभी को समान भौतिक सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। समाज में जाति-प्रथा के उन्मूलन के लिए समता आवश्यक तत्व है।

मनुष्यों के प्रयासों का मूल्यांकन भी तभी हो सकता है जब सभी को अवसर समान मिले उदहारण गाँव की पाठशाला और यहाँ कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों सही का मूल्यांकन हम कैसे कर सकते हैं अत:पहले जातिवाद का उन्मूलन हो सभी को समान भौतिक सुविधाएँ मिलें और उसके पश्चात जो भी श्रेष्ठ हो वही उत्तम व्यवहार के हकदार हो।

प्रश्न 6: आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/ समझेंगी?

उत्तर 6: लेखक ने अपने आदर्श समाज में भ्रातृता के अंतर्गत स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। भ्रातृता से अभिप्राय भाईचारे की भावना अथवा विश्व बंधुत्व की भावना से है। जब यह भावना किसी व्यक्ति विशेष या लिंग विशेष की है ही नहीं तो स्त्रियाँ स्वाभाविक रूप से इसमें सम्मिलित हो जाती हैं। आखिर स्त्री का स्त्री के प्रति प्रेम भी तो बंधुत्व की भावना को ही प्रकट करता है। इसलिए मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि यह शब्द पूर्णता का द्योतक है।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1: आंबेडकर ने जाति प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है- उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।

उत्तर 1: ‘गलता लोहा’ कहानी बहुत से मुद्दों पर प्रकाश डालती है। इसमें दो बालक हैं। एक का नाम धनराम है, जो लुहार का बेटा है। दूसरा लड़का मोहन है, जो ब्राह्मण का बेटा है। यहाँ मास्टर धनराम को शिक्षा ग्रहण करने के लायक नहीं मानता है। वह यह मान लेता है कि लुहार का बेटा होने के कारण शिक्षा इसके लिए नहीं बनी है और वह धनराम के मन में भी यह बात बिठा देते हैं।

उसे अपनी लुहार जाति होने के कारण शिक्षा के स्थान पर लुहार के कार्य को ही अपनाना पड़ता है। यही सख्त व्यवहार धनराम को शिक्षित नहीं बनने देता है। आंबेडकर जी ने यही बात कही है। यदि धनराम पर ध्यान दिया जाता, तो वह अपने पैतृक व्यवसाय से बाहर आ सकता था। इस तरह वह दूसरा व्यवसाय कर सकता था। मोहन परिस्थिति वश लुहार का कार्य करने के लिए विवश होता है।

प्रश्न 2: कार्य कुशलता पर जाति प्रथा का प्रभाव विषय पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।

उत्तर 2: कार्य कुशलता पर जाति प्रथा का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि एक चित्रकार का बेटा अच्छा चित्रकार हो या एक व्यापारी का बेटा अच्छा व्यापारी हो। हर व्यक्ति की अपनी जन्मजात योग्यता तथा क्षमता होती हैं। एक चित्रकार का बेटा अच्छा व्यापारी बन सकता है और एक व्यवसायी का बेटा अच्छा चित्रकार।

अतः हमें यह अधिकार होना चाहिए कि व्यक्ति को उसकी कार्य कुशलता के आधार पर पेशे चुनने का अधिकार हो। न कि जाति प्रथा के आधार पर किसी मनुष्य का पेशा निर्धारित किया जाए। जाति प्रथा ने लंबे समय तक लोगों का शोषण ही नहीं किया है बल्कि उनकी योग्यताओं तथा क्षमताओं का भी गला घोंटा है। यह उचित नहीं है।

इन्हें भी जानें

प्रश्न 1: आंबेडकर की पुस्तक जातिभेद का उच्छेद और इस विषय में गांधी जी के साथ उनके संवाद की जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर 1: विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2: हिंद स्वराज नामक पुस्तक में गांधी जी ने कैसे आदर्श समाज की कल्पना की है, उसे भी पढ़ें।

उत्तर 2: विद्यार्थी स्वयं करें।

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