कवितावली question answer, लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप question answer : Class 12 Hindi Chapter 7 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | Hindi Aroh |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | कवितावली के प्रश्न उत्तर, लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप के प्रश्न उत्तर |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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पाठ के साथ
प्रश्न 1: कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
उत्तर 1: ‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के अध्ययन से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। वे समाज के विभिन्न वगों का वर्णन करते हैं जो कई तरह के कार्य करके अपना निर्वाह करते हैं।
तुलसी दास तो यहाँ तक बताते हैं कि पेट भरने के लिए लोग गलत-सही सभी कार्य करते हैं। उनके समय में भयंकर गरीबी व बेरोजगारी थी। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच देते थे। बेरोजगारी इतनी अधिक थी कि लोगों को भीख तक नहीं मिलती थी। दरिद्रता रूपी रावण ने हर तरफ हाहाकार मचा रखा था।
प्रश्न 2: पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है- तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर 2: मनुष्य का जन्म, कर्म, कर्म-फल सब ईश्वर के अधीन हैं। निष्ठा और पुरुषार्थ से ही मनुष्य के पेट की आग का शमन हो सकता है। पेट की आग बुझाने के लिए मेहनत के साथ-साथ ईश्वर कृपा का होना जरूरी है। फल प्राप्ति के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है। ईश्वर का मेघ मनुष्यों को बुरे काम करने से रोकता है और मोक्ष की ओर ले जाता है|
प्रश्न 3: तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आती?
उत्तर 3: गोस्वामी तुलसीदास जी के युग में, जाति से संबंधित नियम बहुत ही सख्त थे। समकालीन समाज ने भी अपनी जाति और जाति के संबंध में सवाल उठाए थे। तुलसीदास जी भक्त कवि थे और सांसारिक संबंधों में उनकी कोई विशेष रूचि नहीं थी। इस कवितावली में वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि अगर मैं अपने देश के बारे में बात करूँगा तो सामाजिक संदर्भ में उसका मतलब अलग होगा।
क्योंकि शादी के बाद लड़की को अपनी जाति छोड़कर पति के जाति को अपनाना पड़ता है। दूसरी बात यह है कि यदि तुलसीदास जी अपनी बेटी की शादी ना करने का फैसला करते तो समाज में यह बात निंदा एवं गलतफहमी के रूप में देखी जाती। तीसरी बात यह है कि यदि वे अपनी बेटी की शादी दूसरी जाति में करते तो सामाजिक संघर्ष उत्पन्न हो जाता।
प्रश्न 4: धूत कहौ ______ वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर 4: इस छंद को पढ़कर ही पता चल जाता है कि तुलसी बहुत ही स्वाभिमानी भक्त हैं। उन्हें लोगों के कहने से दुख होता है। जब लोग उनकी भक्ति के विषय में भला बुरा कहते हैं। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि लोग उनके विषय में क्या कहते हैं। बात तब उन्हें खराब लगती है, जब लोग उनकी भक्ति को ही बुरी दृष्टि से देखते हैं। शायद यही कारण है कि वे इस पंक्ति के माध्यम से लोगों के आक्षेप का जवाब देते हैं।
वह स्पष्ट कर देते हैं कि लोग उन्हें किस जाति का समझते हैं, उससे उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। उनका लोगों से कोई मतलब नहीं है। ना ही उन्हें अपनी संतान का विवाह किसी भी व्यक्ति की संतान से करना है। वह मात्र राम की भक्ति करना जानते हैं और यही उनकी पहचान हैं। राम की भक्ति उनका स्वाभिमान है। अतः कोई इसे खंड़ित करने का प्रयास करेगा, तो वह उसे जवाब अवश्य देगें।
प्रश्न 5: व्याख्या करें
(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥
(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
(ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु ने दैबको दोऊ॥
(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥
उत्तर 5: (क) लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग कर दिया और वनवास स्वीकार किया। तुमने वन में रहते हुए सर्दी, धूप, आँधी आदि सहन किया। यदि मुझे पहले ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा तो मैं पिता की बात नहीं मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता। राम लक्ष्मण की नि:स्वार्थ सेवा को याद कर रहे हैं।
(ख) मूर्चिछत लक्ष्मण को गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सँड़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।
(ग) तुलसीदास ने समाज से अपनी तटस्थता की बात कही है। वे कहते हैं कि समाज की बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं हैं वे मात्र राम के सेवक हैं। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं तथा मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं है।
(घ) तुलसीदास ने अपने समय की आर्थिक दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस समय लोग छोटे-बड़े, गलतसही सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूख मिटानी है। वे कर्म की प्रवृत्ति व तरीके की परवाह नहीं करते। पेट की आग को शांत करने के लिए वे अपने बेटा-बेटी अर्थात संतानों को भी बेचने के लिए विवश हैं अर्थात पेट भरने के लिए व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है।
प्रश्न 6: भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर 6: हाँ, भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। वे लक्ष्मण को मूर्छित पाकर अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं| लक्ष्मण के बिना राम फूट-फूट कर रो रहे हैं। राम कहते हैं कि संसार में धन, संपत्ति, भवन, परिवार तो बार-बार मिल जाते हैं लेकिन लक्ष्मण जैसा भाई बार-बार नहीं मिल सकता। उन्होंने कहा कि सब यही कहेंगे कि राम ने अपनी पत्नी के लिए अपने भाई को न्योछावर कर दिया और उनको इस कलंक के साथ जीना पड़ेगा।
प्रश्न 7: शोक ग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का अवीरभाव क्यों कहा गया है?
उत्तर 7: लक्ष्मण को ठीक करने के लिए संजीवनी बूटी लाना बहुत ही आवश्यक था। संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान को भेजा गया था। ज्यों-ज्यों हनुमान को संजीवनी बूटी लाने में देरी हो रही थी, त्यों-त्यों राम की नाराजगी से वानर सेना शोकाकुल एवं चिंतित हो रही थी। इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी का पूरा पहाड़ लेकर पहुंचे।
वैद्य सुषेण ने संजीवनी बूटी ढूंढ कर दवा तैयार किया और लक्ष्मण को पिला दिया। दवा पीने के पश्चात लक्ष्मण ठीक हो गए और यह देखकर राम का शोक समाप्त हो गया। राम अपने भाई को देख कर बहुत प्रसन्न हो गए। लक्ष्मण को जीवित देखकर पूरी वानर सेना में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। इस तरह, हनुमान लक्ष्मण के लिए जड़ी बूटियों का पहाड़ उठाकर, शोक के बीच वीर रस का प्रचार कर रहे हैं।
प्रश्न 8: जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
उत्तर 8: प्रस्तुत दृष्टिकोण से पता चलता है कि उस समय स्त्रियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण अच्छा नहीं था। उस समय बहु विवाह प्रचलित थे। राजा तो अनेक शादियाँ कर सकता था। अतः स्त्री के प्रति ऐसा दृष्टिकोण होना स्वभाविक ही होगा। अतः एक स्त्री (पत्नी) के लिए भाई को खोना बुरी माना जाता होगा। इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि स्त्री चली जाए उससे पति को कोई खास दुख नहीं होता है।
पुरुष दोबारा विवाह कर सकता है परन्तु खून के संबंधों को चोट नहीं आनी चाहिए। खून के संबंध विवाह संबंधों से बड़े माने जाते थे। इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि समाज में स्त्री के प्रति संकीर्ण और उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण विद्यमान था। उस समय एक विवाहित स्त्री के लिए मयाके तथा ससुराल दोनों ही अपने नहीं थे।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1: कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर ‘अज’ तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
उत्तर 1: ‘सरोज-स्मृति’ में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है। लक्ष्मण अभी सिर्फ़ मूर्चिछत ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे, सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।
प्रश्न 2: ‘पेट ही को पचत, बेचते बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
उत्तर 2: तुलसी युग में भी समाज में भुखमरी, गरीबी का बोलबाला था। भुखमरी के कारण लोग अपनी भूख मिटाने के कारण अपने बेटे-बेटियों को ही बेच दिया करते थे। आज के युग में मनुष्य के पास साधनों की कमी नहीं है परन्तु आज भी लोग गरीबी और भुखमरी से परेशान होकर अपने बेटे-बेटियों को बेच रहे हैं।
उस युग में किसानों के पास खेत नहीं होती थी| उनका अधिकांश अनाज का हिस्सा कर के रूप में ही ले लिया जाता था जिससे उनकी स्थिति काफी दयनीय थी| आज के किसान भी भी यदि किसान क़र्ज़ चुका पाने की स्थिति में नहीं होते और उन्हें परेशान किया जाता है तो वे आत्महत्याएँ कर लेते हैं।
प्रश्न 3: तुलसी के युग के बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्याओं के कारणों के साथ उसे मिलाकर परिचर्चा करें।
उत्तर 3: तुलसी के समय में बेकारी के बहुत कारण रहे होगें। वे इस प्रकार हैं-
अत्यधिक लगान
प्रकृति प्रकोप (सूखा या बाढ़)
मुस्लिम शासकों द्वारा लगाए गए अनैतिक कर
मंत्रियों द्वारा शोषण
आज के समय में बेकारी की समस्या के पीछे निम्नलिखित कारण हैं-
शिक्षा का अभाव
कृषि के प्रति लोगों में उपेक्षा भाव
प्रकृति का प्रकोप (सूखा या बाढ़)
अत्यधिक कर्ज
मशीनों का अत्यधिक प्रयोग जिसके कारण फैक्टरी में लोगों की आवश्यकता कम हो जाना
प्रश्न 4: राम कौशल्या के पुत्र थे लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा- ”मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।
उत्तर 4: राम और लक्ष्मण सगे भाई नहीं थे। वे सौतले भाई थे लेकिन उनके मध्य जो प्रेम था, वे सगे भाइयों से भी बढ़कर था। लक्ष्मण सदैव राम के साथ छाया के समान बने रहे। राम को जब वनवास मिला, तो वह चुपचाप राम के साथ हो लिए। उन्होंने अपनी पत्नी तथा माता-पिता तक का त्याग कर दिया।
बस राम की सेवा को ही अपना कर्तव्य समझा। राम उनके लिए भाई नहीं बल्कि स्वामी के समान थे। अपने सौतेले भाई के प्रेम के कारण ही राम ने ऐसे शब्द कहे। इस प्रकार का प्रेम तो सगा भाई भी नहीं कर सकता, जैसा सौतेले भाई ने किया था। अतः राम उन्हें सगा ही मानते थे। शायद अपने भाई के इसी प्रेम को और भली प्रकार से बताने के लिए उन्होंने ऐसा कहा होगा।
प्रश्न 5: यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।
उत्तर 5: तुलसी साहित्य में अन्य छंद एवं काव्य रूप आए हैं जो निम्नलिखित है।
- छंद – बरवै,छप्पय और हरिगीतिकाI
- काव्य रूप – रामचरितमानस – प्रबंध काव्य
- विनय पत्रिका – मुक्तक काव्य
- गीतावली एवं कृष्णावली – गेय पद शैली।