उपनिवेशवाद और देहात Notes: Class 12 history chapter 10 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 10 |
Chapter Name | उपनिवेशवाद और देहात |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 history chapter 10 notes in hindi, उपनिवेशवाद और देहात notes इस अध्याय मे हम ब्रिटिश काल के दौरान किसान, जमीदारो की स्थित तथा ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियां इत्यादि बारे में जानेंगे ।
उपनिवेशवाद का अर्थ : –
🔹 हम सभी जानते हैं कि उपनिवेश शब्द का अर्थ गुलामी और उपनिवेशवाद का अर्थ गुलाम बनाने वाली विचारधारा होता है ।
देहात का अर्थ : –
🔹 देहात शब्द को अक्सर गांव या ग्रामीण जीवन पद्धति व्यतीत करने वाले व्यक्तियों के संदर्भ में देखा जाता है ।
उपनिवेशवाद और देहात का अर्थ : –
🔹 उपनिवेशवाद और देहात का अर्थ है की औपनिवेशिक शासन का यानी अंग्रेजी शासन का भारतीय ग्रामीण जीवन पर प्रभाव।
ताल्लुक़दार : –
🔹 ‘ताल्लुक़दार’ का शब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक़ यानी संबंध हो। आगे चलकर ताल्लुक़ का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया।
रैयत : –
🔹 ‘रैयत’ शब्द का प्रयोग अंग्रेजों के विवरणों में किसानों के लिए किया जाता था। बंगाल में रैयत ज़मीन को खुद काश्त नहीं करते थे, बल्कि ‘शिकमी- रैयत’ को आगे पट्टे पर दे दिया करते थे।
बेनामी : –
🔹 बेनामी का शाब्दिक अर्थ ‘गुमनाम’ है, हिंदी तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में इस शब्द का प्रयोग ऐसे सौदों के लिए किया जाता है जो किसी फ़र्जी या अपेक्षाकृत महत्त्वहीन व्यक्ति के नाम से किए जाते हैं और उनमें असली फ़ायदा पाने वाले व्यक्ति का नाम नहीं दिया जाता।
लठियाल : –
🔹 लठियाल, का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास लाठी या डंडा हो। ये ज़मींदार के लठैत यानी डंडेबाज पक्षधर होते थे।
साहूकार : –
🔹 साहूकार ऐसा व्यक्ति होता था जो पैसा उधार देता था और साथ ही व्यापार भी करता था।
किरायाजीवी : –
🔹 किरायाजीवी शब्द ऐसे लोगों का द्योतक है जो अपनी संपत्ति के किराए की आय पर जीवनयापन करते हैं।
भारत में औपनिवेशिक शासन : –
🔹 भारत में औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था। यही वह प्रांत था जहाँ पर सबसे पहले ग्रामीण समाज को पुनर्व्यस्थित करने और भूमि संबंधी अधिकारों की नई व्यवस्था तथा नई राजस्व प्रणाली स्थापित करने के प्रयास किए गए थे।
राजस्व बंदोबस्त की नीतियाँ : –
🔹 अंग्रेजों ने अपने औपनिवेशिक शासन के तहत भू-राजस्व की तीन नीतियाँ अलग-अलग प्रान्तों में स्थापित की थीं : –
🔸 स्थाई बंदोबस्त (1793 ) : – बंगाल में बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश तथा बनारस खण्ड, उत्तरी कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश के बनारस खण्ड में लगभग 19% भाग में यह व्यवस्था थी।
🔸 रैयतबाड़ी बन्दोबस्त (1792 ) : – यह व्यवस्था बम्बई, असम तथा मद्रास के अन्य प्रान्तों में लागू की गई। इसके अन्तर्गत औपनिवेशिक भारत की भूमि का 51% भाग में यह व्यवस्था थी।
🔸 महालबाड़ी बन्दोबस्त : – यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश, मध्य प्रान्त तथा पंजाब में लागू की गई । औपनिवेशिक भूमि का 30% भाग में यह व्यवस्था थी।
ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियां : –
🔹 तीन प्रमुख भूराजस्व नीतियाँ स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी, महालवाड़ी –
- स्थायी बन्दोबस्त : –
- 1793 में चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा लागू किया गया ।
- स्थायी बन्दोबस्त (इस्तमरारी बन्दोबस्त ) बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा वाराणसी में लागू ।
- जमींदार समाहर्ता के रूप में।
- राजस्व मांग स्थाई तथा ऊँची दर ।
- जमींदारों द्वारा निर्धारित राजस्व राशि को गाँवों से इकट्ठा करना ।
- नियमित रूप से राजस्व राशि को कम्पनी को अदा करना ।
- समय पर लगान नहीं दिए जाने पर जमींदार की जमीन जब्त और नीलाम ।
- रैयतवाड़ी : –
- थॉमस मुनरो द्वारा 1820 में बम्बई दक्कन में लागू ।
- राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय ।
- रैयत को भू-स्वामित्व ।
- राजस्व की मांग चिरस्थायी नहीं ।
- महालवाड़ी : –
- उत्तर-पश्चिम भारत में लागू।
- जमीन को महाल में बाँटा गया।
- सम्पूर्ण महाल (गाँव) को एक इकाई माना गया ।
- गाँव के मुखिया द्वारा भू-राजस्व इकट्ठा किया जाना ।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) : –
🔹 बंगाल के जमींदारों व ईस्ट इंडिया कम्पनी के मध्य कर वसूलने से सम्बंधित एक सहमति समझौता जो इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) कहलाया।
🔹 1793 ई. में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त की व्यवस्था को लागू किया गया जिसके तहत राजस्व की राशि को ईस्ट इंडिया कम्पनी के द्वारा निश्चित कर दिया गया, इस राशि को प्रत्येक जमींदार द्वारा जमा कराना अनिवार्य था। जो जमींदार अपनी निश्चित राजस्व राशि जमा नहीं करा पाता था, उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी सम्पदाओं (महाल) की नीलामी कर दी जाती थी ।
बर्दवान में की गई नीलामी की एक घटना : –
🔹 बद्रवान (आधुनिक बर्द्धमान) में 1797 ई. में एक नीलामी की घटना घटित हुई। बद्रवान के राजा के द्वारा धारित अनेक भू-सम्पदाएँ बेची जा रही थी क्योंकि बद्रवान के राजा पर राजस्व की बड़ी भारी रकम बकाया थी ।
🔹 नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक खरीददार उपस्थित होते थे, जो सबसे ऊँची बोली लगाता था उसी को सम्पदाएँ (महाल) बेच दी जाती थीं लेकिन जिलाधीश (कलेक्टर) के समक्ष एक अजीब बात सामने आयी कि नीलामी में बोली लगाने वाले खरीददार राजा (जमींदार) के ही एजेन्ट अथवा नौकर होते थे । नीलामी में 95 प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी
थी।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) की मुख्या धाराएं : –
🔹 इसमें जमींदारों को एक निश्चित राशि पर भूमि दी गई।
🔹 जमींदार की मृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारी को भूमि का स्वामित्व प्राप्त ।
🔹 जमींदारों को तय की गई राशि को निश्चित समय सीमा के अन्दर कम्पनी को देना होता था ।
🔹 सूर्यास्त कानून के तहत यह राशि देय तिथि को सूर्यास्त से पहले जमा करनी पड़ती थी ।
🔹 जमा न किए जाने पर जमींदार की जमीन नीलाम का दी जाती।
🔹 तय राशि की दरें निश्चित ( स्थायी) होती एव ऊँची जमींदार कम्पनी के समाहर्ता व किसान एक किरायेदार के रूप में होते।
🔹 राजस्व राशि का 10 / 11 भाग कम्पनी का तथा 1 / 11 भाग जमींदार का होता ।
🔹 राजस्व की मांग निर्धारित किए जाने पर जमींदारों में सुरक्षा का भाव होता, ऐसी कम्पनी की सोच थी ।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) को लागू करने के उद्देश्य : –
🔹 स्थायी रूप से राजस्व की राशि तय करने पर कम्पनी को नियमित राशि प्राप्त हो सकेगी।
🔹 इसके अतिरिक्त बंगाल विजय के समय से ही जो परेशानियाँ आईं वे दूर हो जायेंगी क्योंकि बंगाल की ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था 1770 के दशक से दयनीय तथा संकटपूर्ण स्थिति का सामना कर रही थी।
🔹 अकाल की पुनरावृत्ति होने के कारण कृषि नष्ट हो रही थी।
🔹 व्यापार पतन की ओर अग्रसर था।
🔹 कृषि निवेश के अभाव में क्षेत्र में राजस्व संसाधन का अभाव हो गया था ।
🔹 कृषि निवेश को प्रोत्साहन देने के लिये जमींदारों को विशेष क्षेत्र (सम्पत्ति ) देकर राजस्व वसूल की माँग को स्थायी रूप से करने पर कम्पनी को आर्थिक लाभ होगा।
🔹 इसके अतिरिक्त कृषकों तथा जमींदारों (धनी भू-स्वामियों) का एक ऐसा समूह पैदा होगा जो ब्रिटिश कम्पनी का वफादार वर्ग साबित होगा जिसके पास कृषि में निवेश करने के लिये उद्यम तथा पूँजी होंगे।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) के लगी होने की पूरी प्रक्रिया : –
🔹 कंपनी के अधिकारियों के बीच परस्पर लंबे वाद-विवाद के बाद, बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया।
🔹 अब उन्हें ज़मींदारों के रूप में वर्गीकृत किया गया और उन्हें सदा के लिए एक निर्धारित राजस्व माँग को अदा करना था।
🔹 इस परिभाषा के अनुसार, ज़मींदार गाँव में भू-स्वामी नहीं था, बल्कि वह राज्य का राजस्व समाहर्ता (यानी संग्राहक ) मात्र था।
🔹 ज़मींदारों के नीचे अनेक ( कभी-कभी तो 400 तक) गाँव होते थे ।
🔹 कंपनी के हिसाब से, एक ज़मींदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलाकर एक राजस्व संपदा का रूप ले लेते थे।
🔹 कंपनी समस्त संपदा पर कुल माँग निर्धारित करती थी।
🔹 तदोपरांत, ज़मींदार यह निर्धारित करता था कि भिन्न-भिन्न गाँवों से राजस्व की कितनी – कितनी माँग पूरी करनी होगी।
🔹 और फिर ज़मींदार उन गाँवों से निर्धारित राजस्व राशि इकट्ठी करता था ।
🔹 ज़मींदार से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह कंपनी को नियमित रूप से राजस्व राशि अदा करेगा और यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसकी संपदा नीलाम की जा सकेगी।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) की विशेषताएँ : –
🔹 सरकार ने जमींदारों से सिविल और दीवानी सम्बन्धित मामले वापस ले लिये।
🔹 जमींदारों को लगान वसूली के साथ-साथ स्थाई भूमि स्वामी के अधिकार भी प्राप्त हुये । वे अपने स्वामित्व को अपने पुत्र या किसी व्यक्ति को दे सकते थे ।
🔹 सरकार को दिये जाने वाले लगान की राशि को निश्चित कर दिया गया जिसे अब बढ़ाया नहीं जा सकता था।
🔹 जमींदारों द्वारा किसानों से एकत्र किये हुये भूमि कर का 10/11 भाग सरकार को देना पड़ता था। शेष 1/11 भाग अपने पास रख सकते थे ।
🔹 सरकार द्वारा निश्चित भूमि कर की अदायगी में जमींदारों की असमर्थता होने पर सरकार द्वारा उसकी भूमि का कुछ भाग बेचकर यह राशि वसूल की जाती थी।
🔹 भूमिकर की निश्चित की गई राशि के अलावा सरकार को कोई और कर या नजराना आदि जमींदारों को नहीं चुकाना होता था ।
🔹 किसानों और जमींदारों के आपसी विवादों में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी ऐसा कहा गया था।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) व्यवस्था के लाभ : –
🔹 स्थायी बंदोबस्त होने से सरकार की आय निश्चित हो गई।
🔹 बार-बार बंदोबस्त करने की परेशानी से सरकार को छुटकारा मिल गया था।
🔹 स्थायी बंदोबस्त के होने से जमींदारों को लाभ हुआ। अतः वे सरकार के स्वामिभक्त बन गये। उन्होंने 1857 के विद्रोह में सरकार का पूरी तरह साथ दिया।
🔹 स्थायी बंदोबस्त हो जाने से सरकारी कर्मचारी तथा अधिकारी अधिक समय मिलने के कारण लोक-कल्याण के कार्य कर सकते थे।
🔹 चूँकि सरकार को निश्चित राशि देनी होती थी । अतः कृषि सुधार एवं भूमि सुधार से जमींदारों को अधिक लाभ हुआ।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) व्यवस्था के दोष : –
🔹 भूमिकर की राशि बहुत अधिक निश्चित की गई थी, जिसे न चुका सकने पर जमींदारों की भूमि बेचकर यह राशि वसूल की गई।
🔹 स्थायी बन्दोबस्त किसानों के हित को ध्यान में रखकर नहीं किया गया था। अधिक-से-अधिक राशि वसूल करने हेतु किसानों के साथ जमींदारों द्वारा कठोर व्यवहार किया गया।
🔹 सरकार ने कृषि सुधार हेतु कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि इससे होने वाले फायदे से उसे कोई लाभ नहीं था। लगान की राशि तो पहले ही निश्चित कर चुकी थी।
🔹 स्थायी बन्दोबस्त ने जमींदारों को आलसी और विलासी बना दिया।
🔹 बंगाल में जमींदारों और किसानों में आपसी विरोध बढ़ने लगा था।
🔹 जमींदारों ने भी कृषि की उपज बढ़ाने हेतु कोई ध्यान नहीं दिया। वे शहरों में जा बसे और उनके प्रतिनिधियों द्वारा किसानों पर अत्याचार किया गया।
इस्तमरारी बंदोबस्त ( स्थाई बंदोबस्त ) से जमीदारों का उद्देश्य और लाभ : –
🔹 जमीदार भूमि के वास्तविक स्वामी बन गए और उनका यह अधिकार वंशानुगत बन गया ।
🔹 जमीदार अंग्रेजों की जड़ें भारत में मजबूत करने में मदद करने लगे ।
🔹 जमीदार जब जमीनों के मालिक बन गए तो वह कृषि में रुचि लेने लगे और भारत में उत्पादन में भारी वृद्धि हुई जिससे अंग्रेजों को राजस्व प्राप्त करने में और अधिक पैसा मिलने लगा जिसका लाभ भारतीय जमीदारों को भी हुआ ।
🔹 कंपनी को प्रतिवर्ष निश्चित आय की प्राप्ति होने लगी ।
🔹 बार – बार लगान की दरें निर्धारित करने का झंझट खत्म हो गया ।
🔹 लगान वसूल करने के लिए कंपनी को अब अधिकारियों की आवश्यकता नहीं रही और धन स्वयं जमीदार इकट्ठा करके कंपनी तक पहुंचाने लगे ।