महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन question answer: Class 12 history chapter 11 ncert solutions in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 11 ncert solutions |
Chapter Name | महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
क्या आप कक्षा 12 विषय इतिहास पाठ 11 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन के प्रश्न उत्तर ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से Class 12 History chapter 11 questions and answers in hindi, महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन question answer download कर सकते हैं।
Class 12 History chapter 11 questions and answers in hindi [ उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में) ]
note: ये सभी प्रश्न और उत्तर नए सिलेबस पर आधारित है। इसलिए चैप्टर नंबर आपको अलग लग रहे होंगे।
प्रश्न 1. महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
- उत्तर: (i) महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए सर्वसाधारण की तरह मामूली कपड़े पहने। धोती उनकी विशेष पहचान थी।
- (ii) प्रतिदिन वे कुछ समय के लिए चरखा कातते थे। इस प्रकार उन्होंने आम जनता के श्रम को गौरव प्रदान किया।
- (iii) वे आम लोगों के बीच घुल-मिल कर रहते थे और उनके मन में साधारण जनता के कष्टों के प्रति हमदर्दी थी।
- (iv) उन्होंने आम लोगों की तरह सादा जीवन व्यतीत किया।
- (v) वे आम लोगों की भाषा बोलते थे।
- (vi) वे हरिजनों के हितों और महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार और सच्ची सहानुभूति रखते थे।
प्रश्न 2. किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?
उत्तर: गाँधी जी को किसान अपना हमदर्द मानते थे। वे उन्हें एक चमत्कारिक व्यक्तित्व का स्वामी मानते थे। किसानों के लिए वे एक उद्धारक के समान थे जो उनकी ऊँचे करों तथा अधिकारियों के दमन से सुरक्षा कर सकते थे। किसानों का मानना था कि गाँधीजी किसानों को हर प्रकार के शोषण से मुक्ति दिला सकते हैं। उनकी समस्याओं को सुलझा सकते हैं। गाँधी जी ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं और किसानों के कुटीर धंधों के समर्थक थे। किसानों का मानना था कि गाँधीजी उन्हें अंग्रेजों की दासता, जमींदारों के शोषण और साहूकारों के चंगुल से अहिंसात्मक आंदोलनों और शांतिपूर्ण प्रतिरोधों द्वारा बचा लेंगे।
प्रश्न 3. नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर: नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। इसका कारण यह था कि नमक कानून के अनुसार नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार प्राप्त था। महात्मा गाँधी ने इसका जमकर विरोध किया और घोषणा की कि नमक एक बुनियादी वस्तु है और सभी लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है, परंतु इस पर एकाधिकार ब्रिटिश सरकार का है। इस एकाधिकार को तोड़ना आवश्यक था।
प्रत्येक भरतीय घर में नमक का प्रयोग होता था, परंतु उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया। इस प्रकार उन्हें दुकानों से ऊँचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया गया। अतः इस कानून के खिलाफ जनता में काफी रोष व्याप्त था। गाँधीजी इस कानून को तोड़कर जनता में व्याप्त असंतोष को अंग्रेजी शासन के विरूद्ध एकजुट करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने दांडी मार्च किया और नमक कानून को तोड़ा।
प्रश्न 4. राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अख़बार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों है?
उत्तर: राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार बहुत महत्वपूर्ण स्रोत हैं। अंग्रेजी और भारत की विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में छपने वाले समकालीन अखबार भी एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। ये अखबार महात्मा गाँधी की प्रत्येक गतिविधियों पर नजर रखते थे और उनके बारे में खबरे छापते थे। इन अखबारों से इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि आम भारतीय की उनके बारे में क्या सोच थी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान छपने वाले अखबारों से देश में होने वाली घटनाओं, नेताओं और अन्य लोगों की गतिविधियों, विचारों आदि की जानकारी मिलती है।
प्रश्न 5. चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर: चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि नेताओं और खासकर महात्मा गाँधी, का मानना था कि मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रमिकों के हाथों से काम और रोजगार छीन लिया है। ऐसी स्थिति में चरखा राष्ट्र को नया जीवन प्रदान करेगा। गाँधीजी का मानना था कि यह मानव-श्रम के लिए गौरव को फिर से जीवित करेगा और जनता को स्वावलम्बी बनाएगा। उनके अनुसार भारत एक गरीब देश है।
चरखा गरीबों को एक पूरक आमदनी प्रदान करेगा जिससे वे स्वावलंबी बनेंगे और गरीबी तथा बेरोजगारी से उन्हें मुक्ति मिलेगी। गाँधीजी का मानना था कि मशीनों के प्रयोग से धन का कुछ हाथों में केंद्रीयकरण होता जा रहा है। चरखा धन के केंद्रीयकरण को रोकने में सहायक है। इसलिए वे स्वयं प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा चलाते थे।
History class 12th chapter 11 question answer in hindi [ निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) ]
प्रश्न 6. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर: असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध था। यह प्रतिरोध अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कुछ दमनीय नीतियों, कानूनों और नियमों के खिलाफ था। 1914-18 के विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच के किसी को भी कारावास में डाल देने की अनुमति दे दी थी। इस संदर्भ में रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई और इस समिति की संस्तुतियों के आधार पर इन कठोर तरीकों को जारी रखा गया। गाँधीजी ने देश भर में ‘रॉलेट एक्ट’ के खिलाफ एक व्यापक अभियान चलाया। इस अभियान को व्यापक जनसमर्थन प्रदान हुआ। स्कूलों, कॉलेज, दुकानें आदि सभी ने इसमें भाग लिया। जनजीवन एक तरह से ठहर सा गया।
इसी दौरान जालियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ जिसमें अंग्रेजों ने शांतिपूर्ण ढंग से एक राष्ट्रवादी सभा पर गोलियों द्वारा हजारों निहत्थे नागरिकों को मार डाला। इसके विरोध में गाँधीजी ने देशभर में व्यापक असहयोग आंदोलन चलाया। उपनिवेशवाद को जड़ से समाप्त करने के उद्देश्य से यह आह्वान किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालयों का बहिष्कार करें और कर न चुकाएं। सभी लोगों से अंग्रेजी सरकार के साथ (सभी) ऐच्छिक संबंधों के परित्याग का पालन करने के लिए कहा गया। असहयोग आंदोलन ने निश्चित रूप से एक लोकप्रिय कार्यवाही के बहाव को उन्मुक्त कर दिया था और ये चीजें औपनिवेशिक भारत में बिल्कुल अभूतपूर्व थी।
इस आंदोलन में सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों ने अपने-अपने स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रम वर्ग भी हड़ताल पर चले गए। देहातों में भी जबरदस्त असंतोष आंदोलन हो रहा था। उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों को मानने से इंकार कर दिया। अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए। कुमाऊँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया।
इन विरोध आंदोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवज्ञा करते हुए कार्यान्वित किया गया। किसानों, श्रमिको और अन्य ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की तथा औपनिवेशिक शासन के साथ असहयोग के लिए उन्होंने ऊपर से प्राप्त निर्देशों को मानने की बजाए अपने हितों से मेल खाते उपायों का इस्तेमाल कर कार्यवाही की। 1857 के विद्रोह के बाद पहली बार असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजी शासन की नींव हिल गई।
प्रश्न 7. गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर: प्रथम गोलमेज सम्मेलन, नवम्बर 1930 में आयोजित किया गया, परंतु इसमें देश के किसी भी प्रमुख नेता ने भाग नहीं लिया। इसी कारण यह सम्मेलन असफल रहा। 1931 के अंत में दूसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें गाँधीजी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे। उनका कहना था कि उनकी पार्टी भारत का प्रतिनिधित्व करती है। परंतु उनके इस दावे को तीन तरफ से चुनौती दी गई। मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है। रजवाड़ों का दावा था कि कांग्रेस का उनके नियंत्रण वाले भू-भाग पर कोई प्रभुत्व नहीं है।
तीसरी ओर बी० आर० अंबेडकर ने दावा किया कि गाँधीजी और कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। इन विरोधों के कारण दूसरा गोलमेज सम्मेलन भी असफल रहा। तीसरा गोलमेज सम्मेलन गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के दौरान हुआ। परंतु इंग्लैंड की लेबर पार्टी ने इसमें भाग नहीं लिया। कांग्रेस पार्टी ने भी इस सम्मेलन का बहिष्कार किया। सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले कुछ भारतीय प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया। सम्मेलन में लिए निर्णयों के आधार पर 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ।
प्रश्न 8. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर: महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को पूरी तरह से बदल दिया था। अब यह आंदोलन सिर्फ व्यावसायिकों तथा बुद्धिजीवियों का ही नहीं रह गया था, बल्कि अब हजारों की संख्या में किसानों, श्रमिकों तथा कारीगरों ने भी इसमें हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इनमें से अनेक गाँधी जी के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए उन्हें अपना ‘महात्मा’ कहने लगे। उन्हें इस बात का गर्व होता था कि गाँधी जी उनकी ही तरह के वस्त्र पहनते थे, उनकी ही तरह रहते थे और उनकी ही भाषा में बोलते थे। दूसरे नेताओं की भांति वे सामान्य जनसमूह, से पृथक नहीं खड़े होते थे बल्कि वे उनसे सहानुभूति रखने तथा उनसे घनिष्ट संबंध भी जोड़ लेते थे।
वे प्रतिदिन कुछ समय चरखा चलाते थे और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करते थे। सूत कताई के कार्य ने गाँधी जी को पारंपरिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम की दीवार को तोड़ने में मदद की। गाँधीजी ने किसानों तथा अन्य निर्धन लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास किया। उनके संबंध में चमत्कारों के बारे में फैली अफवाहों ने उनकी लोकप्रियता को घर-घर पहुँचा दिया। अतः बड़ी संख्या में लोग राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए। गाँधीजी ने राष्ट्रवादी संदेश का प्रसार अंग्रेजी भाषा की बजाए स्थानीय भाषाओं में करने पर बल दिया।
राष्ट्रीय-आंदोलनों के आधार को मजबूत करने के लिए उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। गाँधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन चलाने के नए तरीकों को आजमाया और वे इसमें सफल भी रहे। उनके दर्शन के आधारभूत सिद्धांत थे – अहिंसा, शांति, सत्याग्रह, गरीबों के प्रति सच्ची सहानुभूति, महिलाओं का सशक्तिकरण, कुटीर उद्योग धंधे, चरखा एवं खादी अपनाने पर बल, रंगभेद और जातीय भेद का विरोध, साम्प्रदायिक सद्भाव, अस्पृश्यता का विरोध आदि।
प्रश्न 9. निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्योरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर: निजी पत्रों तथा आत्मकथाए निम्न प्रकार से उपयोगी सिद्ध होते हैं –
(i) निजी पत्रों में कोई भी व्यक्ति अपनी पीड़ा तथा प्रसन्नता, असंतोष और बेचैनी, आशाएँ और हताशाएँ व्यक्त करने का प्रयत्न करता है।
(ii) महात्मा गाँधी अपने हरिजन नामक अखबार में अन्य लोगों से प्राप्त पत्रों को छापते रहते थे। इससे उनके व्यक्तित्व के बारे में लोगों के भिन्न-भिन्न विचार देखने को मिलते हैं। व्यक्ति का ठीक-ठाक जायजा लेने में निजी पत्र एक अनमोल स्त्रोत है।
(iii) निजी पत्र राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जो डॉ० राजेंद्र प्रसाद ने जवाहरलाल नेहरू को लिखे उसमें उन्होंने कांग्रेस के कार्यक्रम, उसकी प्राथमिकताएँ आदि के बारे में जानकारी दी। इसी तरह जो निजी पत्र जवाहरलाल ने महात्मा गाँधी को लिखे उनमें भी विभिन्न नेताओं, अपने विचार, कार्यक्रम, कार्यक्षमता आदि की जानकारी दी। गाँधी जी ने जो पत्र व्यक्तिगत तौर पर जवाहर लाल नेहरू या अन्य लोगों को लिखे उनसे हमे पता लगता है कि एक पार्टी के रूप में कांग्रेस के आदर्श किस तरह विकसित हुए। समय-समय पर उठने वाले आंदोलनों में गाँधी जी ने क्या भूमिका निभाई। इनसे कांग्रेस की आंतरिक प्रणाली तथा राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में विभिन्न नेताओं के दृष्टिकोण के बारे में जानकारी मिलती है।
(iv) विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न नेताओं, संगठनों के द्वारा लिखे गए पत्रों के माध्यम से मिली जानकारियाँ, सरकार के दृष्टिकोण व्यवहार, राष्ट्रीय नेताओं को जेलों में सामना करने वाली परिस्थितियाँ, आंतरिक दशाएँ आदि के बारे में भी जानकारी मिलती है।
(v) आत्मकथाओं में लेखक के सार्वजनिक विचार व्यक्त होते हैं।
(vi) आत्मकथा को प्रायः स्मृति के आधार पर लिखा जाता है। उनसे हमें पता चलता है कि लिखने वाले को क्या याद रहा होगा, उसे कौन-सी चीजें महत्वपूर्ण लगती थी या वह क्या याद रखना चाहता था, या वह औरों की दृष्टि में अपनी जिंदगी को किस प्रकार से दिखाना चाहता है।
(vii) आत्मकथा लिखना अपनी तस्वीर गढ़ने का एक तरीका है। फलस्वरूप, इस वृतांतों को पढ़ते हुए यह देखने की कोशिश करनी चाहिए जिसे लेखक हमें नहीं दिखाना चाहता।
(viii) सरकारी ब्यौरों से स्त्रोतों के रूप में निजी पत्र और आत्मकथाएँ पूरी तरह भिन्न होती हैं। सरकारी ब्यौरे प्रायः गुप्त रूप से लिखे जाते हैं। ये लिखाने वाली सरकार और लिखने वाले विवरणदाता या लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों, दृष्टिकोणों आदि से प्रभावित होते हैं। जबकि प्रायः निजी पत्र दो व्यक्तियों के बीच में आपसी संबंध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुड़ी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं। किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा उसकी ईमानदारी, निष्पक्षता और सच्चे विवरण पर उसका मूल्य निर्धारित करती हैं।