संविधान का निर्माण question answer: Class 12 history chapter 12 ncert solutions in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 12 ncert solutions |
Chapter Name | संविधान का निर्माण |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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Class 12 History chapter 12 questions and answers in hindi [ उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में) ]
note: ये सभी प्रश्न और उत्तर नए सिलेबस पर आधारित है। इसलिए चैप्टर नंबर आपको अलग लग रहे होंगे।
प्रश्न 1. उद्देश्य प्रस्ताव’ में किन आदर्शों पर जोर दिया गया था?
उत्तर: उद्देश्य प्रस्ताव में निम्नलिखित आदशों पर जोर दिया गया –
- (i) भारत एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न गणतंत्र है।
- (ii) भारत राज्यों का एक संघ होगा, जिसमें ब्रिटेन के अधीन रहे भारतीय क्षेत्र, भारतीय राज्य तथा भारत-संघ में सम्मिलित होने की इच्छा रखने वाले अन्य राज्य सम्मिलित होंगे।
- (iii) भारत संघ के क्षेत्र में स्वायत्त इकाइयां होंगी।
- (vi) प्रभुसत्ता संपन्न स्वतंत्र भारत संघ तथा इसके अंगों को सभी अधिकार तथा शक्तियां जनता से प्राप्त होंगी।
- (v) सभी भारतीयों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय तथा समानता प्राप्त होगी। सभी को धर्म, विचार अभिव्यक्ति, उपासना, व्यवसाय आदि की मौलिक स्वतंत्रता होगी।
- (vi) अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों एवं कबीलों को पूरी सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- (vii) गणतंत्र की क्षेत्रीय अखंडता और इसके प्रभुसत्ता संबंधी सभी अधिकारों को सभ्य राष्ट्रों के नियमों तथा न्याय के अनुसार बनाए रखा जाएगा।
- (viii) भारत राज्य विश्वशांति तथा मानव-कल्याण को बढ़ावा देने में अपना पूरा योगदान देगा।
प्रश्न 2. विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे?
उत्तर: विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द अपने-अपने ढंग से परिभाषित कर रहे थे।
(i) मद्रास के बी० पोकर बहादुर के अनुसार अल्पसंख्यक सब जगह होते हैं और चाहने पर भी उन्हें हटाया नहीं जा सकता, इसलिए उनके हितों की रक्षा के लिए पृथक निर्वाचिका को बनाए रखना चाहिए। उनका कहना था कि मुसलमानों की जरूरतों को गैर-मुसलमान अच्छी तरह नहीं समझ सकते। न ही अन्य समुदायों के लोग मुसलमानों का कोई सही प्रतिनिधि चुन सकते हैं।
(ii) एन० जी० रंगा जो किसान आंदोलन के नेता और समाजवादी विचारों वाले थे, के अनुसार अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा आर्थिक स्तर पर की जानी चाहिए। उनके अनुसार अल्पसंख्यक वास्तव में ‘गरीब’ और दबे-कुचले लोग हैं। उन्होंने आदिवासियों को भी अल्पसंख्यकों में गिनाया था।
(iii) आदिवासी सदस्य जयपाल सिंह के अनुसार असली अल्पसंख्यक आदिवासी लोग हैं जिन्हें पिछले 6000 वर्षों से अपमानित किया जा रहा है, उपेक्षित किया जा रहा है। उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।
(vi) दीमत जातियों के नेताओं के अनुसार असली अल्पसंख्यक लोग वे ही हैं जो चाहे गिनती में कम नहीं हैं, परन्तु समाज के अन्य वर्गों का उनके साथ व्यवहार बहुत गलत रहा है। ऐसे नेताओं की आवाज को सुना जाए और अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए।
प्रश्न 3. प्रांतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए?
उत्तर: (i) प्रांतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में संतनम ने सबसे अधिक आवाज उठाई। उन्होंने दलील दी कि केन्द्र को सारी शक्तियाँ प्रदान करने से वह मजबूत हो जाएगा, यह गलत अवधारणा है। उन्होंने कहा कि केन्द्र को शक्तिशाली बनाने के लिए केन्द्र को सारी शक्तियाँ सौंपना गलत है। अगर केंन्द्र के पास जरुरत से ज्यादा जिम्मेदारियाँ होगी तो वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएगा। उनके दायित्वों में कमी करने से और उनहें राज्यों/प्रांतों को सौंप देने से केन्द्र ज्यादा मजबूत हो सकता है।
(ii) संतनम का मानना था कि शक्तियों का वर्तमान वितरण राज्य को पंगु बना देगा। राजकोषीय प्रावधान प्रांतों को खोखला कर देगा क्योंकि भूराजस्व को छोड़ कर अधिकांश कर केंन्द्र सरकार के अधिकार में हैं। पैसे के बिना राज्यों में विकास परियोजनाएं नहीं चल सकती। “मैं ऐसा संविधान नहीं चाहता जिसमें राज्य को केंन्द्र से यह कहना पड़े कि “मैं लोगों की शिक्षा की व्यवस्था नहीं कर सकता। मैं उन्हें साफ-सफाई नहीं दे सकता। मुझे सड़कों में सुधार तथा उद्योगों की स्थापना के लिए भीख दे दीजिए। अच्छा तो यही होगा कि हम संघीय व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दें और एकात्मक व्यवस्था (यूनिटरी सिस्टम) स्थापित करें।”
(iii) संतनम ने कहा कि यदि पर्याप्त जांच-पड़ताल किए बिना शक्तियों का प्रस्तावित वितरण लागू कर दिया गया तो हमारा भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा। इस स्थिति में कुछ ही सालों में सभी प्रांत “केन्द्र के विरुद्ध” उठ खड़े होंगे।
प्रश्न 4. महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिंदुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?
उत्तर: महात्मा गाँधी का मानना था कि हरेक को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें। हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिंदुस्तानी भारतीय जनता के बहुत बड़े हिस्से की भाषा थी और यह विविध संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा थी। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया बहुत तरह के स्रोतों से नए-नए शब्द और अर्थ इसमें समाते गए और इसे विभिन्न क्षेत्रों के बहुत सारे लोग समझने लगे। महात्मा गाँधी को लगता था कि हिन्दुस्तानी जैसी बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के बीच संचार की आदर्श भाषा हो सकती है : वह हिंदुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है।
History class 12th chapter 12 question answer in hindi [ निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में) ]
प्रश्न 5. वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया?
उत्तर: संविधान का स्वरूप तय करने में अनेक ऐतिहासिक ताकतों का हाथ रहा।
(i) संविधान सभा का निर्माण 1946 ई० में हो चुका था। जब भारत अभी-स्वतंत्र नहीं हुआ था, इसलिए इस सभा में ब्रिटिश प्रांतों द्वारा भेजे गए सदस्यों के अतिरिक्त रियासतों के सदस्य भी सम्मिलित थे। प्रांत और भारतीय रियासतों के सदस्य ऐतिहासिक ताकतों के महत्त्वपूर्ण अंग थे जो संविधान के स्वरूप को प्रभावित करने में सक्षम थे।
(ii) इस संविधान सभा में मुस्लिम लीग के सदस्य भी थे जो संविधान सभा का बहिष्कार करके अपने ही ढंगों से इस पर प्रभाव डालना चाहते थे।
(iii) इस संविधान सभा के 80 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के थे इसलिए संविधान की रूपरेखा तैयार करने में यह सबसे शक्तिशाली ताकत थी।
(iv) इनमें से कुछ सदस्य आर० एस० एस० और हिंदू महासभा के भी थे। चाहे इनकी संख्या कम ही थी परन्तु संविधान के स्वरूप को तय करने में वे भी प्रयत्नशील थे।
(v) इस संविधान सभा में कुछ समाजवादी विचारों वाले सदस्य भी थे जो आर्थिक नीतियों को प्रभावित कर सकते थे।
(vi) कुछ सदस्य जमींदारों के समर्थक भी थे, कुछ महिला सदस्य भी थे, कुछ स्वतंत्र सदस्य भी थे और कुछ अन्य जातियों और धर्मों से संबंध रखने वाले सदस्य थे जो अपने-अपने ढंग से संविधान सभा को प्रभावित कर सकते थे।
(vii) कुछ सदस्य विधि विशेषज्ञ भी थे जो संविधान के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकते थे।
(viii) संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से भी प्रभावित होती रही। महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जनता के सुझाव भी आमन्त्रित किए जाते थे। हमारे विधि निर्माताओं पर जनता के विभिन्न समूहों के विचारों का भी काफी प्रभाव रहा।
प्रश्न 6. दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: दलित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए दावे –
(i) राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अंबेडकर ने दलित जातियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की थी जिसका विरोध महात्मा गाँधी ने यह कहकर किया कि ऐसा करने से दलित समुदाय सदा के लिए शेष समाज से कट जाएगा।
(ii) संविधान सभा के दलित वर्गों के सदस्यों का यह कहना था कि समाज ने उनकी सेवाओं और श्रम का इस्तेमाल तो किया है परन्तु उन्हें अपने से दूर रखा है। अन्य जातियों के लोग उनसे घुलने-मिलने में कतराते हैं। उनके साथ खाना नहीं खाते और उन्हें मंदिरों में नहीं जाने देते।
(iii) इस सम्बन्ध में मद्रास के जे० नागप्पा का कहना था, “हम सदा कष्ट उठाते रहे हैं पर अब और कष्ट उठाने को तैयार नहीं हैं। हमें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया है। हमें मालूम है कि अपनी बात कैसे मनवानी है। नागप्पा ने आगे कहा कि संख्या की दृष्टि से हरिजन अल्पसंख्यक नहीं है। आबादी में उनका हिस्सा 20-25 प्रतिशत है। उनकी पीडा का कारण यह है कि उन्हें बकायदा समाज व राजनीति के हाशिए पर रखा गया है। उसका कारण उनकी संख्यात्मक महत्त्वहीनता नहीं है। उनके पास न तो शिखा तक पहुँच थी और न ही शासन में हिस्सेदारी।
(iv) मध्य प्रांत के श्री के० जे० खाण्डेलकर ने दमित जाति से होने वाले अन्याय के बारे में कुछ इस प्रकार कहा : “हमें हजारों साल तक दबाया गया है। …. दबाया गया…. इस हद तक दबाया कि हमारे दिमाग, हमारी देह काम नहीं करती और अब हमारा हृदय भी भावशून्य हो चुका है। न ही हम आगे बढ़ने के लायक रह गए हैं। यही हमारी स्थिति है।”
(v) बँटवारे में होने वाली हिंसा को देखकर अम्बेडकर ने पृथक निर्वाचन क्षेत्र वाली अपनी मांग को छोड़ दिया।
(vi) परन्तु दमित वर्ग के सदस्यों की मांगों को उचित ठहराते हुए संविधान सभा ने यह सुझाव दिया, पहले यह कि अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए; दूसरे हिंदू मन्दिरों को सभी के लिये खोल दिया जाए; तीसरे, निचली जातियों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।
(vii) कुछ सदस्यों का यह मानना था कि इन कदमों से भी सारी समस्याएँ हल नहीं हो पायेगी। सामाजिक भेदभाव को केवल संवैधानिक कानून पास करके ही हल नहीं किया जा सकता। इसके लिये समाज की सोच में बदलाव लाना होगा। इस सभी सुझावों का केवल संविधान सभा के सदस्यों ने ही स्वागत किया परन्तु जनसाधारण ने भी इन सुझावों का अनुमोदन किया।
प्रश्न 7. संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मज़बूत केंद्र सरकार की ज़रूरत के बीच क्या संबंध देखा?
उत्तर: सविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिीत और एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच निम्न संबंधों की पहचान की :-
(i) जगह-जगह सड़कों पर होने वाली हिंसा से चिंतित सदस्यों ने बार-बार यह कहा कि केन्द्र की शक्तियों में भारी इजाफा होना चाहिए अन्यथा देश टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा।
(ii) बी० आर० अम्बेडकर ने भी इस बात की घोषणा की कि वे एक शक्तिशाली और एकीकृत केन्द्र चाहते हैं।
(iii) प्रांतों के लिए अधिक शक्तियों की मांग का जवाब देते हुए गोपाल-स्वामी अय्यर ने जोरदार शब्दों में कहा कि केन्द्र ज्यादा से ज्यादा मजबूत होना चाहिए।
(iv) बँटवारें से पहले कांग्रेस के सदस्यों ने मुस्लिम लीग की शंकाओं को दूर करने के लिए प्रांतों को काफी स्वायत्तता देने पर अपनी सहमति प्रकट की थी। परन्तु बँटवारे को देखने के बाद अधिकतर राष्ट्रवादियों की राय बदल चुकी थी। उनका कहना था कि अब बिकेन्द्रीकरण के लिए कोई औचित्य नहीं है और न कोई पहले जैसा दबाव है।
(v) अब विभाजन के कारण पैदा होने वाली अफरा-तफरी पर अंकुश लगाने और समूचे देश के आर्थिक विकास के लिए केन्द्रीयवाद को जरूरी माना जाने लगा।
(vi) संयुक्त प्रांत के सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने विश्वास से इस बात पर बल दिया कि शक्तिशाली केन्द्र का होना जरुरी है ताकि वे सारे देश के हित में योजनाएँ बना सके, उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटा सके, एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सकें और देश को विदेशी आक्रमण से बचा सकें।
प्रश्न 8. संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकला?
उत्तर: संविधान सभा में भाषा के मुद्दे पर कई महीनों तक वाद-विवाद होता रहा और कई बार काफी तनातनी भी पैदा हो गई।
(i) महात्मा गाँधी के अनुसार ऐसी भाषा हिन्दुस्तानी भाषा ही हो सकती है जो हिंदू और उर्दू के मेल से बनी है, जो अनेक संस्कृतियों के आदान-प्रदान से एक सांझी भाषा बन चुकी है, जिसमें समय के साथ-साथ अनेक स्रोतों से नए-नए शब्द समाते रहे हैं। उनके अनुसार यही हिन्दुस्तानी भाषा उत्तर और दक्षिण एवं हिंदू और मुसलमानों को एक-जुट करने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
(ii) परन्तु 19 वीं शताब्दी के अंत में हिन्दुस्तानी का स्वरूप साम्प्रदायिक टकराव के कारण बदलता जा रहा था। एक तरफ कुछ लोगों ने फारसी और अरबी के शब्दों को मिलाकर हिन्दी को सांस्कृतिक बनाने का प्रयत्न किया और दूसरी तरह कुछ अन्य लोगों ने उर्दू में फारसी और अरबी के शब्द मिलाकर उसे फारसीनिष्ठ बना दिया था। इस प्रकार हिन्दुस्तानी धार्मिक पहचान की राजनीति को एक हिस्सा-मात्र बनकर रह गई।
(iii) स्वतंत्रता के पश्चात् संविधान सभा के बहुत से सदस्य हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के पक्ष में हो गए। संयुक्त प्रान्त के कांग्रेसी नेता आर० वी० धुलेकर की भाँति बहुदल से सदस्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने पर जोर देने लगे। परन्तु जब कुछ सदस्यों ने यह कहा कि विधान सभा के सभी सदस्य हिन्दी नहीं जानते तो घुलेकर ने पलटकर कहा, “इस सदन में जो लोग भारत का संविधान रचने बैठे हैं और हिन्दी नहीं जानते वे इस सभा की सदस्यता के पात्र नहीं है उन्हें चले जाना चाहिये।” इस प्रकार भाषा के प्रश्न पर काफी वाद-विवाद उठ खड़ा हुआ।”
(iv) हिन्दी के समर्थकों और विरोधियों के बीच पैदा हो गए गतिरोध को देखते हुए संविधान सभा की भाषा समिति ने एक फार्मूला विकसित कर लिया था। उसने निम्नलिखित सुझाव दिये।
- (1) उसने हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा के स्थान पर राजकीय भाषा का पद देना स्वीकार किया। ऐसा करके उसने विभिन्न पक्षों को शांत करने का प्रयत्न किया।
- (2) हिन्दी को राष्ट्रभाषा यदि बनाना है तो धीरे-धीरे आगे बढ़ना होगा। पहले 15 साल तक सरकारी कामों में अंग्रेजी का इस्तेमाल जारी रहेगा।
- (3) प्रत्येक प्रांत में अपने कार्यों के लिये एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार होगा।
बहुत से सदस्यों का यह मानना था कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये आक्रमक रुख नहीं अपनाना चाहिये अन्यथा कुछ लोगों में गहरी कड़वाहट रह जायेगी। उदाहरण के तौर पर मद्रास के श्री टी० ए० रामलिंगम चेट्टियार ने यह सुझाव दिया कि “जो कुछ भी किया जाए, एहतियात के साथ किया जाए यदि आक्रामक होकर काम किया गया तो हिन्दी का कोई भला नहीं हो पाएगा अन्यथा लोगों में बड़ी कड़वाहट रह जायेगी।”