उपनिवेशवाद और देहात question answer: Class 12 history chapter 9 ncert solutions in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 9 ncert solutions |
Chapter Name | उपनिवेशवाद और देहात |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
क्या आप कक्षा 12 विषय इतिहास पाठ 9 उपनिवेशवाद और देहात के प्रश्न उत्तर ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से Class 12 History chapter 9 questions and answers in hindi, उपनिवेशवाद और देहात question answer download कर सकते हैं।
Class 12 History chapter 9 questions and answers in hindi [ उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में) ]
note: ये सभी प्रश्न और उत्तर नए सिलेबस पर आधारित है। इसलिए चैप्टर नंबर आपको अलग लग रहे होंगे।
प्रश्न 1. ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था?
उत्तर: ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती था। इसके कई कारण थे। इनमें से कुछ कारण निम्नलिखित थे –
- (i) जोतदारों के पास जमीन के बड़े-बड़े रकबे होते थे।
- (ii) उन जोतदारों ने स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी अपना नियंत्रण कर लिया था। इस प्रकार वे उस क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर अपनी व्यापक शक्ति का प्रयोग करते थे।
- (iii) जोतदार गाँव में ही रहते थे और गरीब ग्रामवासियों के अधिकांश वर्ग पर सीधे अपनी ताकत की प्रयोग करते थे।
- (iv) वे स्वयं खेती नहीं करते थे, बल्कि उनकी खेती बटाईदारों द्वारा की जाती थी जो फसल के बाद उपज का आधा हिस्सा जोतदारों को दे देते थे। इस प्रकार जोतदार बिना किसी लागत और मेहनत के धनवान और शक्तिशाली होते चले गए।
प्रश्न 2. जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाए रखते थे?
उत्तर: जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर विभिन्न प्रकार से अपनाकर उनपर नियंत्रण रखते थे।
(i) फर्जी बिक्री एक महत्त्वपूर्ण तरकीब थी। अपनी भू-संपदा की नीलामी के समय उनके अपने ही आदमी ऊँची बोली लगाकर जमींदारी को खरीद लेते थे। बाद में खरीद की राशि देने से इनकार कर देते थे। दोबारा बोली लगाई जाती थी। एक बार फिर जमींदार के आदमी ऊँची बोली लगाकर भू-संपदा खरीद लेते थे, परंतु बाद में खरीद की राशि को देने से इनकार कर देते थे। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती थी, और अन्त में थककर सरकार द्वारा उस भू-संपदा को बहुत कम कीमत पर फिर जमींदार को ही बेचना पड़ता था।
(ii) जब कोई नया खरीददार जमींदारी खरीद लेता था, तो पुराने जमींदार के लठियाल नए खरीददार के लोगों को मारपीट कर उसे भगा देते थे।
(iii) कंपनी के निर्णय के अनुसार स्त्रियों से उनकी संपत्ति को नहीं छिना जा सकता था। अतः जमींदार अपनी जमींदारी का कुछ हिस्सा अपनी माता अथवा कुछ परिवार की किसी अन्य महिला सदस्य के नाम पर कर देते थे, ताकि पर उनका नियंत्रण बना रहे।
प्रश्न 3. पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई?
उत्तर: पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर विभिन्न प्रकार से अपनी प्रतिक्रिया दर्शाई। वे बाहरी लोगों को अपने इलाकों में आने का प्रतिरोध करते थे। वे बाहरी लोगों को संदेह और अविश्वास की दृष्टि से देखते थे। उन्हें डर था कि बाहरी लोग उनके क्षेत्र में पहुँचकर उनके वन्य जीवन को भारी नुकसान पहुँचा सकते थे और इसलिए उनके साथ पहाड़िया लोग शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते थे। पहाड़ियों का जीवन वन्य उत्पादों पर टिका था, इसलिए वे सदैव बाहरी व्यक्तियों के साथ शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते थे।
प्रश्न 4. संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
उत्तर: संथालों को स्थायी कृषि के लिए राजमहल की पहाड़ियों में ‘दामिन-इ-कोह’ के नाम से भूमि दी गई थी। परंतु जल्दी ही उन्हें एहसास होने लगा कि जिस जमीन को साफ करके उन्होंने खेती शुरू की थी वह उनके हाथ से निकलती जा रही थी। इसके अलावा साहूकर लोग काफी ऊँची दर पर ब्याज लगा रहे थे और कर्ज वापस नहीं किए जाने की स्थिति में जमीन पर ही अपना कब्जा जमा रहे थे। दूसरी ओर जमींदार लोग भी दामिन क्षेत्रों पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।
1850 के दशक तक संथालों को यह अच्छी तरह आभास हो गया था कि अपने लिए एक आदर्श संसार का निर्माण करने के लिए उनका अपना शासन होना आवश्यक था। इसलिए इन्होंने जमींदारों, साहूकारों और औपनिवेशिक राज के विरूद्ध विद्रोह कर दिया।
प्रश्न 5. दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे?
उत्तर: दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति निम्नलिखित कारणों से क्रुद्ध थे –
(i) पहले ऋणदाताओं ने कपास की खेती के लिए रैयतों को काफी उधार दिया और मुनाफा कमाया। परंतु जब उन्न लगने लगा कि अब भारतीय कपास की माँग कम होती जा रही है और रैयत उनका कर्ज नहीं चुका सकते थे तो उन्होंने ऋण देने से इन्कार कर दिया।
(ii) रैयत अब अपने को असहाय महसूस कर रहे थे। ऋणदाताओं द्वारा ऋण देने से इन्कार को लेकर उन्हें बहुत गुस्सा आया।
(iii) वे सिर्फ इस बात से क्रोधित नहीं थे कि वे ऋण के बोझ से दबे जा रहे थे अथवा कि वे अपने जीवन को बचाने के लिए ऋणदाता पर पूर्ण रूप से निर्भर थे, बल्कि उन्हें इस बात का ज्यादा गुस्सा था कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनशील हो गया था कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा था।
(iv) ऋण देने वाले लोग गाँव के प्रथागत मानकों यानि रूढ़ि रिवाजों का भी उल्लंघन कर रहे थे।
History class 12th chapter 9 question answer in hindi [ निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)
प्रश्न 6. इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गईं?
उत्तर: सन् 1793 में औपनिवेशिक शासन द्वारा इस्तमरारी बंदोबस्त को लागू किया गया। इसके तहत प्रत्येक जमींदार को एक निश्चित राशि राजस्व के रूप में जमा करनी होती थी। लेकिन इस्तमरारी बंदोबस्त के पश्चात् कुछ प्रारंभिक दशकों में जमींदारों ने राजस्व माँग को अदा करने में बराबर अपनी हिचिकिचाहट दिखाई और इस कारण राजस्व की बकाया राशि में लगातार बढ़ोतरी होती गई। ऐसी व्यवस्था की गई थी कि निश्चित राशि नहीं चुका पाने वाले जमींदारों से राजस्व वसूल करने के लिए उनकी संपदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं। इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद 75 प्रतिशत से अधिक जमींदारियाँ हस्तांतरित कर दी गई थी।
प्रश्न 7. पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप से भिन्न थी?
उत्तर: पहाड़िया लोगों की आजीविका –
(i) पहाड़िया लोगों का गुजर-बसर जंगल की उपज से होता था। वे झूम खेती किया करते थे। वे जंगल के छोटे से हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फूस को जलाकर जमीन को साफ कर लेते थे और राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर तरह-तरह की दालें और ज्वार-बाजरा उगा लेते थे।
(ii) कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन में खेती करते थे और फिर उसे कुछ वर्षों के लिए परती छोड़कर नए इलाके में चले जाते थे जिससे कि उस जमीन की समाप्त हो चुकी उर्वरता फिर से उत्पन्न हो सके।
(iii) पहाड़िया लोग खाने के लिए जंगलों से महुआ के फूल एकत्र करते थे।
(iv) पहाड़िया लोग बेचने के लिए रेशम के कोया और राल तथा काठ-कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करते थे। वे कुदाल का इस्तेमाल करते थे।
(v) पहाड़िया लोग पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे
(vi) वे जंगल में शिकार करते थे।
(vii) पहाड़ियों को अपना मूलाधार बनाकर, पहाड़िया लोग बराबर उन मैदानों पर आक्रमण करते रहते थे। पहाड़ियों द्वारा ये आक्रमण मुख्यतः अपने आपको अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे।
(viii) मैदानों में रहने वाले जमींदार प्रायः इन पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देते थे और उनसे शांति खरीदते थे। इसी प्रकार, व्यापारी लोग भी इन पहाड़ियों द्वारा नियंत्रित रास्तों का इस्तेमाल करने की अनुमति प्राप्त करने हेतु उन्हें कुछ पथकर दिया करते थे। इस प्रकार का पथकर पाकर पहाड़िया मुखिया उन व्यापारियों की रक्षा करते थे और उन्हें यह भी आश्वासन देते थे कि कोई भी उनके माल को नहीं लूटेगा।
संथालों की आजीविका –
- (i) संथल लोग भी जंगल को काटकर जमीन जोतते थे और चावल, कपास, तंबाकू तथा सरसों की खेती करते थे।
- (ii) संथाल लोग खेती के लिए हल का प्रयोग करते थे।
- (iii) बाद में संथाल लोग एक जगह रहकर स्थायी कृषि करने लगे थे।
- (iv) संथाल व्यापारियों तथा साहूकारों के साथ लेन-देन भी करते थे।
प्रश्न 8. अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: सन् 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ गया। इस गृहयुद्ध से ब्रिटेन के कपास क्षेत्र (मंडी तथा कारखानों) में हड़कंप मच गया। अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई। वह सामान्य मात्रा का 3 प्रतिशत तक रह गया। भारत तथा अन्य देशों को बड़ी व्यग्रता से यह संदेश भेजा गया कि ब्रिटेन को कपास का अधिक मात्रा में निर्यात करे। साहूकारों को अधिक से अधिक अग्रिम राशियाँ दी गई, जिससे वे रैयतों को अधिक से अधिक उधार दे सकें। दक्कन के रैयतों को अकस्मात् ही असीमित ऋण उपलब्ध होने लगा।
उन् कपास उगाई जाने वाले प्रत्येक एकड़ जमीन के लिए 100 रु० अग्रिम मिलने लगे। साहूकार भी दीर्घावधिक ऋण देने के लिए एकदम तैयार बैठे थे। अमेरिकी संकट के दौरान कपास उगाने वाले एकड़ों की संख्या दोगुनी हो गई 1882 तक स्थिति यह हो गई कि ब्रिटेन में आयात होने वाले कपास का 90 प्रतिशत भारत से निर्यात होता था। लेकिन इन सबके बावजूद सभी किसान उत्पादकों को समृद्धि प्राप्त नहीं हो सकी। कुछ धनी किसानों लिए तो यह काफी फायदेमंद साबित हुआ, लेकिन अधिकतर किसान कर्ज के बोझ से और अधिक दब गए।
अमेरिकी गृहयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् भारतीय कपास की माँग धीरे धीरे घटती चली गई। पूर्व में लिए गए ऋण को नहीं चुकाने के बावजूद, रैयत फिर से ऋण लेने पर मजबूर होतं गए। धीरे-धीरे साहूकारों ने ऋण देना भी बंद कर दिया। रैयतों की स्थिति बेहद नाजूक हो गई और आखिरकार उन्होंने विद्रोह का रास्ता अपना लिया।
प्रश्न 9. किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?
उत्तर: किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्त्रोतों के उपयोग के बारे में अनेक प्रकार की समस्याएँ आती हैं।
(i) सरकारी स्त्रोत सरकार के कार्यों से संबंद्ध होते हैं। वे घटनाओं के बारे में सरकारी सरोकार और अर्थ प्रतिबिंबित करते हैं। उदाहरण के लिए, दक्कन आयोग में विशिष्ट रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया कि क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर विद्रोह का कारण था। और संपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद आयोग ने यह सूचित किया था कि सरकारी माँग किसानों के गुस्स की वजह नहीं थी। इसमें सारा दोष ऋणदाताओं या साहूकारों का ही था। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि औपनिवंशिक सरकार यह मानने के लिए कदापि तैयार नहीं थी कि जनता में असंतोष या रोष कभी सरकारी कार्यवाही के कारण उत्पन्न हुआ था।
(ii) सरकारी स्त्रोत में किसानों के हित की बात तो की जाती है परंतु उनके अहित की चर्चा नहीं की जाती।
(iii) सरकारी रिपोर्ट किसानों के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए बहुमूल्य स्रोत तो है, परंतु उन्हें सदैव सावधानीपूर्वक पढ़ना आवश्यक है।
(iv) सरकारी स्रोतों से प्राप्त जानकारी को समाचार पत्रों, गैर-सरकारी वृतांतों, वैधिक अभिलेखों और यथासंभव मौखिक स्त्रोतों से संकलित प्रमाण के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच की जानी चाहिए।