Class 12 political science book 2 chapter 7 notes in hindi: जन आंदोलन का उदय Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | जन आंदोलन का उदय |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
जन आंदोलन का उदय notes, Class 12 political science book 2 chapter 7 notes in hindi इस अध्याय मे हम सामाजिक बनाम नए सामाजिक आंदोलन, किसान आंदोलन, कार्यकर्ता आंदोलन, महिला आंदोलन, पारिस्थितिक आंदोलन के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
जन आंदोलन :-
🔹 एक स्पष्ट उद्देश्य के लिए किए जाने वाले प्रयास को जन आंदोलन कहा जाता है । जन आंदोलन के प्रमुख कारणों में गरीबी , बेरोजगारी , लोगों का राजनीतिक नेताओं और संस्थाओं से मोहभंग होना और किसानों का राजनेताओं से मोह भंग होना आदि शामिल है ।
दल आधारित आंदोलन :-
🔹 जो आंदोलन किसी राजनीतिक दल के सहयोग द्वारा शुरू किये जाते हैं उन्हें दल आधारित आंदोलन कहते हैं । जैसे आंध्र प्रदेश में किसानों द्वारा तेलंगाना आंदोलन ( कम्यूनिस्ट पार्टी ) तिभागा आंदोलन , नक्सलवादी आंदोलन ।
राजनैतिक दलों से स्वतंत्र जन आंदोलन :-
🔹 जो आंदोलन स्वयंसेवी संगठनों , स्थानीय लोगों , छात्रों द्वारा किसी समस्या से पीड़ित होने के कारण शुरू किये जाते हैं , उन्हें राजनैतिक दलों से स्वतंत्र जन आंदोलन कहते हैं । जैसे – दलित पैंथर्स , ताड़ी विरोधी आंदोलन ।
आंदोलन के प्रकार :-
- दल – आधारित
- गैर – दलीय
दल – आधारित आंदोलन :-
- नक्सल्वाड़ी
- तेलगांना
- तिभागा आंदोलन
गैर – दलीय आंदोलन :-
महिला आंदोलन जैसे :- | ( चिपको व ताड़ी विरोधी आंदोलन ) |
पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन जैसे :- | ( नर्मदा बचाओ व चिपको आंदोलन ) |
जाति आधारित आंदोलन जैसे :- | ( दलित पैन्थर्स आंदोलन ) |
किसान आंदोलन जैसे :- | ( BKU ) |
नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह :-
🔹 यह दल आधारित आंदोलन का उदाहरण है जो 1967 में चारू मजमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में किया गया ।
चिपको आंदोलन ( पर्यावरण आंदोलन ) :-
- 1973 में उत्तराखण्ड में शुरू ।
- वन विभाग ने खेती बाड़ी के औजार बनाने के लिये पेड़ो ( अंगू ) की कटाई से इंकार किया ।
- जबकि खेल – सामग्री के विनिर्माता को व्यवसायिक इस्तेमाल के लिये जमीन का आबंटन ।
- महिलाओं व समस्त ग्रामवासियों द्वारा पेड़ो की कटाई का विरोध । महिलायें पेड़ों की कटाई के विरोध में पेड़ों से चिपक गयी ।
गाँव वालो की माँगें :-
- स्थानीय लोगों का जल , जंगल , जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण ।
- सरकार लघु उद्योगों के लिये कम कीमत पर सामग्री उपलब्ध कराये ।
- क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुँचाये बिना विकास सुनिश्चित करे ।
- महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी आवाज उठायी ।
परिणाम :-
🔹 सरकार ने 15 सालो के लिये हिमालयी क्षेत्र में पेड़ो की कटाई पर रोक लगा दी ।
प्रमुख नेता :-
🔶 सुन्दरलाल बहुगुणा :- बाद के वर्षों में देश के विभिन्न भागों में उठे जन आंदोलन का प्रतीक । महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया ।
दलित पैन्थर्स :-
प्रारम्भ | 1972 में । |
स्थान | महाराष्ट्र । |
नेतृत्व | दलित युवाओं के द्वारा । |
🔹 दलित समुदाय की पीड़ा व आक्रोश की अभिव्यक्ति महाराष्ट्र में 1972 में शिक्षित दलित युवाओं ने ‘ दलित पैन्थर्स ‘ नामक संगठन बना कर की ।
🔹 आजादी के बाद के सालो में दलित समूह मुख्यता जाति आधारित असमानता और अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे ।
🔹 छुआछूत प्रथा के खिलाफ थे ( Article 17 )
दलित युवाओ की माँगे :-
- जाति आधारित असमानता तथा भौतिक संसाधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ना ।
- आरक्षण के कानून व सामाजिक न्याय की नीतियों के कारगर क्रियान्वयन की माँग ।
- दलित महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का विरोध ।
- भूमिहीन किसानो , मजदूरों व सारे वंचित वर्ग को उनके अधिकार दिलवाना ।
- दलितों में शिक्षा का प्रसार
दलित पैंथर्स की गतिविधियाँ :-
- अनेको साहित्यिक रचनायें लिखी ।
- रचनात्मक व सृजनात्मक ढंग से अपनी लड़ाई लड़ी ।
- दलित युवकों ने आगे बढ़कर अत्याचारों का विरोध किया ।
परिणाम :-
🔹 सरकार ने 1989 में कानून बनाकर दलितों पर अत्याचार करने वालों के लिये कठोर दण्ड का प्रावधान किया ।
🔹 दलित पैन्थर्स के राजनीतिक पतन के बाद बामसेफ ( Backward and Minority Classes Employees Federation BAMCEF ) का निर्माण ।
भारतीय किसान यूनियन ( BKU ) :-
प्रारंभ | 1988 में । |
स्थान | मेरठ ( U.P ) |
नेतत्व | BKU |
🔹 1988 के जनवरी में उत्तर प्रदेश के मेरठ में BKU के सदस्य किसानों ने धरना दिया । ( महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में )
माँगें :-
- बिजली की दर में की गयी बढ़ोत्तरी का विरोध ।
- गन्ने व गेहूँ के सरकारी मूल्यों में बढ़ोतरी की माँग ।
- कृषि उत्पादों के अन्तर्राजयीय व्यापार पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की माँग ।
- निर्बाध विद्युत आपूर्ति की सुनिश्चितता ।
- किसानों के लिये पेंशन का प्रावधान ।
- किसानों के बकाया कर्ज माफ ।
कार्यवाही । शैली । गतिविधियाँ :-
🔹 धरना , रैली , प्रदर्शन , जेल भरो आदि कार्यवाहियों से सरकार पर दबाब बनाया ।
विशेषताएँ :-
🔹 BKU ने किसानों की लामबंदी के लिये जातिगत जुड़ाव का इस्तेमाल किया ।
🔹 अपनी संख्या के दम पर राजनीति में एक दबाब समूह की भांति सक्रिय । आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीति , मोलभाव की क्षमता थी क्योंकि ये नकदी फसल उपजाते थे ।
🔹 अपने क्षेत्र की चुनावी राजनीति में इसके सदस्यों का रसूख था ।
🔹 महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन व कर्नाटक का रैयतकारी संगठन किसान संगठनों के जीवन्त उदाहरण हैं ।
ताड़ी विरोधी आंदोलन :-
🔹 शराब विरोधी आंदोलन की शुरूआत आंध्रप्रदेश के नैल्लौर जिले के दुबरगंटा गाँव में हुआ ।
🔹 लगभग 5000 गाँवों की महिलाओं ने आंदोलन में भाग लिया । नेल्लौर जिले में ताड़ी की बिक्री की नीलामी 17 बार रद्द हुई ।
🔹 ‘ ताड़ी की बिक्री बंद करो ‘ का नारा लगाया ।
माँगे :-
🔹 शराब की वजह से स्वास्थ्य खराब हो गया था , आर्थिक कठिनाई हो रही थी अतः ताड़ी की बिक्री का विरोध – घरेलू हिंसा , महिलाओं पर हो रहे अत्याचार , तथा लैंगिक भेदभाव का विरोध ।
🔹 दहेज प्रथा का विरोध ।
परिणाम :-
- कई राज्यों में शराबबंदी लागू ।
- घरेलू हिंसा व महिला अत्याचारों के विरूद्ध कठोर नियम ।
- महिलाओं की माँग पर स्थानीय निकायों में आरक्षण लागू । L ( 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा )
नेशनल फिशवर्कस फोरम ( NFF ) :-
🔹 मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है ।
🔹 सरकार द्वारा बॉटम ट्राऊलिंग ( व्यवसायिक जहाजों को गहरे समुद्र में मछली मारने की इजाजत ) से मछुआरों की आजीविका पर प्रश्न चिन्ह बाध्य होकर मछुआरों में NFF बनाया ।
🔹 2002 में NFF द्वारा विदेशी कंपनियों को मछली मारने का लाइसेंस जारी करने के विरोध में राष्ट्र व्यापी हड़ताल की गयी ।
🔹 पारिस्थितिकी की रक्षा व मछुआरों के जीवन को बचाने के लिये अनेक कानूनी लड़ाईयाँ लड़ी ।
🔹 विश्व के समधर्मा संगठनों से हाथ मिलाया ।
नर्मदा बचाओ आंदोलन :-
🔹 नर्मदा घाटी विकास परियोजना में मध्य प्रदेश , गुजरात , व महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा व सहायक नदियों पर 30 बड़े , 135 मझोले तथा 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव ।
लाभ :-
- गुजरात के बहुत बड़े हिस्से सहित तीनों राज्यों में पीने के पानी , सिंचाई तथा बिजली उत्पादन की सुविधा ।
- कृषि की उपज में गुणात्मक सुधार ।
- बाढ़ व सूखे की आपदाओं पर अंकुश ।
विरोध :-
- इन परियोजनाओं का लोगों के पर्यावास , आजीविका , संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव ।
- परियोजना के कारण हजारों लोग बेघर ( 245 गाँव के डूब के क्षेत्र में आने है । 2 . 5 लाख लोग बेघर ) ।
माँगे :-
- परियोजना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित सभी लोगों का समुचित पुर्नवास ।
- परियोजना की निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की भागीदारी ।
- जल , जंगल , जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर उनका प्रभावी नियन्त्रण ।
- बाँधों के निर्माण में आ रही भारी लागत का सामाजिक नुकसान के संदर्भ में मूल्यांकन किया जाये ।
आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेता / व्यक्ति :-
🔹 मेधा पाटेकर , आमिर खान
परिणाम :-
🔹 इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप केन्द्र सरकार ने 2003 में राष्ट्रीय पुर्नस्थापन नीति की घोषणा की ।
जन आंदोलन के सबक :-
🔹 इन आंदोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियो को दूर करना ।
🔹 सामाजिक आंदोलनों ने समाज के उन नये वर्गों की सामाजिक आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के जरिये हल नहीं कर पा रहे थे ।
🔹 जनता के क्षोभ व समाज के गहरे तनावों को सार्थक दिशा दे कर लोकतंत्र की रक्षा की ।
🔹 सक्रिय भागीदारी के नये प्रयोग ने लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया ।
🔹 जनता को जागरूक किया तथा लोकतांत्रिक राजनीति को बेहतर ढंग से समझने में मदद ।
सूचना का अधिकार ( RTI ) :-
🔹 आंदोलन की शुरूआत 1990 में MKSS ( मजदूर किसान शक्ति संगठन ) ने की ( राजस्थान के दौसा जिले की भीम तहसील में ) ।
🔹 ग्रामीणों ने प्रशासन से अपने वेतन व भुगतान के बिल उपलब्ध कराने को कहा ।
🔹 उन्हें दी गयी मजदूरी में हेरा फेरी हुई थी ।
🔹 आंदोलन के दबाव में राजस्थान सरकार ने कानून बनाया कि जनता को पंचायत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने की अनुमति है ।
🔹 पंचायतों के लिये बजट , लेखा , खर्च , नीतियों व लाभार्थियो के बारे में सार्वजनिक घोषणा करना अनिवार्य ।
🔹 1996 में MKSS ने दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया ।
🔹 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा गया ।
🔹 जून 2005 में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली
निष्कर्ष :-
🔹 ये आंदोलन लोकतंत्र के लिये खतरा नहीं होते , बल्कि लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास जागृत करते है । इनका उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना होता है । अतः इन्हें समस्या के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये ।