शीतयुद्ध का दौर Notes In Hindi: Class 12 political science chapter 1 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | शीतयुद्ध का दौर |
Category | Political Science |
Medium | Hindi |
Class 12 political science chapter 1 notes in hindi, शीत युद्ध का दौर notes इस अध्याय मे हम अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच हुए शीत युद्ध के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
शीत युद्ध का दौर का अर्थ :-
🔹 शीतयुद्ध का अर्थ होता है जब दो या दो से अधिक देशो के बीच ऐसी स्थिति बन जाए कि लगे युद्ध होकर रहेगा परंतु वास्तव मे कोई युद्ध नही होता । इसमे युद्ध की पूरी संभावना रहती है , युद्ध की आशंका , डर , तनाव , संघर्ष जारी रहता है लेकिन युद्ध नही होता ।
शीत युद्ध :-
🔹 शीत युद्ध से अभिप्राय विश्व की दो महाशक्तियों अमरीका व भूतपूर्व सोवियत संघ के बीच व्याप्त उन कटु संबधों के इतिहास से है जो तनाव , भय ईर्ष्या पर आधारित था । दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945-1991 के मध्य इन दोनों महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध का दौर चला और विश्व दो गुटों में बँट गया । यह दोनों के मध्य विचारात्मक तथा राजनैतिक संघर्ष था ।
शीतयुद्ध की शुरुआत :-
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीत युद्ध की शुरूआत हुई ।
- शीत युद्ध 1945-1991 तक चला ।
शीतयुद्ध का अंत :-
🔹 क्यूबा का मिसाइल संकट शीत युद्ध का अंत था | लेकिन इसका प्रमुख कारण सोवियत संघ का विघटन माना जाता है । बर्ष 1991 में कई कारणों की वजय से सोवियत संघ का विघटन हो गया जिसने शीतयुद्ध की समाप्ति को चिहिंत किया क्योंकि दो महाशक्तियों में से एक अब कमजोर पड़ गयी थी ।
शीतयुद्ध का कारण :-
🔹 अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक – दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना ।
🔹 परमाणु बम से होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बस की बात नहीं ।
🔹 दोनों महाशक्तियाँ परमाणु हथियारों से संपन्न थी । उनके पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार थे कि वे एक – दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सकते है तो ऐसे में दोनों के रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है ।
🔹 एक दुसरे को उकसावे के वावजूद कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों पर युद्ध की मार नहीं देखना चाहता था ।
🔹 दोनों राष्ट्रों के बीच गहन प्रतिद्वंदिता ।
शीतयुद्ध एक विचारधारा की लड़ाई :-
🔹 अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधाराओ की लड़ाई से तातपर्य है कि – दुनिया में आर्थिक , सामाजिक जीवन को सूत्र बद्ध करने का सबसे अच्छा सिद्धान्त कौन सा है ।
🔹 अमेरिका ऐसा मानता था कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए बेहतर है जबकि सोवियत संघ मानता था कि समाजवादी , साम्यवादी अर्थव्यवस्था बेहतर है ।
- { पूंजीवाद } :- सरकार का हस्तक्षेप कम होता है , व्यापार अधिक होता है , निजी व्यवस्था
- { समाजवाद } :- सारी व्यवस्था सरकार के हाथ मे होती हैं, निजी व्यवस्था का विरोध होता हैं।
- प्रथम विश्व युद्ध – 1914 से 1918 तक
- द्वितीय विश्व युद्ध – 1939 से 1945 तक
द्वितीय विश्व युद्ध के गुट :-
🔸 (1) मित्र राष्ट्र – द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ , फ्रांस , ब्रिटेन संयुक्त राज्य अमेरिका को विजय मिली इन्ही 4 राष्ट्रों को संयुक्त रूप से मित्र राष्ट्र के नाम से जाना जाता है ।
🔸 (2) धुरी राष्ट्र – जिन राष्ट्रों को द्वितीय विश्व युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था उन्हें धुरी राष्ट्र के नाम से जाना जाता है । ये राष्ट्र थे जर्मनी , जापान , इटली ।
द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत :-
🔹 द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत अगस्त 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े । इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध का अंत हुआ ।
🔹 बमो के कूट नाम :-
1 . लिटिल बॉय ( little boy )
2 . फैट मैन ( Fat Man )
🔹 बमो की छमता = 15 से 21 किलो टन
अमेरिका की आलोचना :-
🔹 अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है । ऐसे में बम गिरने की आवश्यकता नही थी।
अमेरिका ने अपने पक्ष में कहा :-
🔹 अमरीका के समर्थकों का तर्क था कि युद्ध को जल्दी से जल्दी समाप्त करने तथा अमरीका और साथी राष्ट्रों की आगे की जनहानि को रोकने के लिए परमाणु बम गिराना जरूरी था ।
हमले के पीछे उद्देश्य :-
🔹 वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत है ।
क्यूबा मिसाइल संकट :-
🔹 क्यूबा एक छोटा सा द्वपीय देश है जो कि अमेरिका के तट से लगा है । यह नजदीक तो अमेरिका के है लेकिन क्यूबा का जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे वित्तीय सहायता देता था ।
🔹 सोवियत संघ के नेता नीकिता खुश्चेव ने क्यूबा को रूस के ‘ सैनिक अड्डे ‘ के रूप में बदलने का फैसला किया । 1962 में उन्होंने क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे के रूप में बदल दिया।
🔹 1962 में खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं । इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया । हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू – भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला कर सकता था ।
🔹 अमेरिका को इसकी खबर 3 हफ्ते बाद लगी। अमरीकी राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिससे दोनों के बीच युद्ध छिड़ जाये । अमेरिका ने अपने जंगी बेड़ों को आगे कर दिया ताकि क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए । इन दोनो महाशक्तियों के बीच ऐसी स्थिति बन गई कि लगा कि युद्ध होकर रहेगा । इतिहास में इसी घटना को क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है ।
क्यूबा मिसाईल संकट के समय मुख्य नेता :-
1 ) क्यूबा | फिदेल कास्त्रो |
2 ) सोवियत संघ | निकिता खुस्च्रेव |
3 ) अमरीका | जॉन ऍफ़ कैनेडी |
दो – ध्रुवीय विश्व का आरम्भ :-
🔹 दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों पर अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं । दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद अमेरिका तथा सोवियत संघ को दो गुटों में बांट दिया गया विश्व दो में बट गया , यही दो ध्रुवीय विश्व है ।
🔹 बंटवारा सबसे पहले यूरोप महाद्वीप से शुरू हुआ ।
- पूर्वी यूरोप = सोवियत संघ { दूसरी दुनिया }
- पश्चिमी यूरोप = अमेरिका ( पहली दुनिया }
पूर्वी यूरोप :-
🔹 पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत गठबंधन में शामिल हो गए । इस गठबंधन को पूर्वी गठबंधन कहते है । इसमें शामिल देश हैं – पोलैंड , पूर्वी जर्मनी , हंगरी , बुल्गारिया , रोमानिया आदि ।
पश्चिमी यूरोप :-
🔹 पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने अमरीका का पक्ष लिया । इन्ही देशों के समूह को पश्चिमी गठबंधन कहते हैं । इस गठबंधन में शामिल देश है – ब्रिटेन , नार्वे , फ्रांस , पश्चिमी जर्मनी , स्पेन , इटली और बेल्जियम आदि ।
नाटो ( NATO ) :-
🔹 पश्चिमी गठबन्धन ने स्वयं को एक संगठन का रूप दिया । 4 अप्रैल 1949 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन ( North Atlantic Treaty Organisation ) ( नाटो ) की स्थापना हुई । जिसमें 12 देश शामिल थे ।
🔹 इस संगठन ने घोषणा की कि उत्तरी अमरीका अथवा यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर भी हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे । और नाटो में शामिल हर देश एक दुसरे की मदद करेगा ।
वारसा संधि :-
🔹 सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है । इसकी स्थापना सन् 1955 में हुई थी और इसका मुख्य काम ‘ नाटो ‘ में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना था ।
महाशक्तियों के लिए छोटे देश का महत्व :-
🔸 महत्त्वपूर्ण संसाधनों – जैसे तेल और खनिज के लिए ।
🔸 भू – क्षेत्र – ताकि यहाँ से महाशक्तियाँ अपने हथियारों और सेना का संचालन कर सके ।
🔸 सैनिक ठिकाने – जहाँ से महाशक्तियाँ एक – दूसरे की जासूसी कर सके ।
🔸 आर्थिक मदद – जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे – छोटे देश सैन्य – खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे ।
🔸 विचारधारा – गुटों में शामिल देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध जीत रही हैं ।
🔹 गुट में शामिल हो रहे देशों के आधार पर वे सोंच सकते थे कि उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद , समाजवाद और साम्यवाद से कही बेहतर है ।
शीतयुद्ध के परिणाम :-
- गुटनिरपेक्ष देशों का जन्म ।
- अनेक खूनी लडाइयों के वावजूद तीसरे विश्वयुद्ध का टल जाना ।
- अनेक सैन्य संगठन संधियाँ ।
- दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणु जखीरे और हथियारों की होड़ ।
- दो ध्रुवीय विश्व