कक्षा 8 इतिहास पाठ 4 प्रश्न उत्तर: आदिवासी दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना Class 8 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 8 |
Subject | इतिहास |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | आदिवासी दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना प्रश्न उत्तर |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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फिर से याद करें कक्षा 8 हमारे अतीत पाठ 4 के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: रिक्त स्थान भरें –
(क) अंग्रेजों ने आदिवासियों को ………………. के रूप में वर्णित किया।
(ख) झूम खेती में बीज बोने के तरीके को ………………. कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदिवासी मुखियाओं को …………… स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के ……………… और बिहार की ……………. में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।
उत्तर 1: (क) अंग्रेजों ने आदिवासियों को जंगली और बर्बर के रूप में वर्णित किया।
(ख) झुम खेती में बीज बोने के तरीके को बिखेरना कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदिवासी मुखियाओं को भूमि का स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के चाय बागानों और बिहार की कोयला खानों में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।
प्रश्न 2: सही या गलत बताएँ :
(क) झूम काश्तकार जमीन की जुताई करते हैं और बीज रोपते हैं।
(ख) व्यापारी संथालों से कृमिकोष खरीदकर उसे पाँच गुना ज्यादा कीमत पर बेचते थे।
(ग) बिरसा ने अपने अनुयायियों का आह्वान किया कि वे अपना शुद्धिकरण करे, शराब पीना छोड़ दे और डायन व जादू-टोने जैसी प्रथाओं में यकीन न करें।
(घ) अंग्रेज आदिवासियों की जीवन पद्धति को बचाए रखना चाहते थे।
उत्तर 2: (क) गलत
(ख) सही
(ग) सही
(घ) गलत
आइए विचार करें कक्षा 8 हमारे अतीत पाठ 4 के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 3: ब्रिटिश शासन में घुमंतू काश्तकारों के सामने कौन सी समस्याएँ थीं?
उत्तर 3: ब्रिटिश शासन में घुमंतू काश्तकारों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिनमें प्रमुख थे:
- जमीन से बेदखली – ब्रिटिश नीतियों के कारण उनकी पारंपरिक ज़मीनें छीनी गईं।
- कठोर कर व्यवस्था – उन्हें भारी कर देना पड़ता था, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर हो गए।
- जंगल और चरागाहों पर प्रतिबंध – नए वन कानूनों के कारण उनकी चरागाह और खेती की ज़मीनें सीमित कर दी गईं।
- जबरन बसने की नीति – ब्रिटिश सरकार ने घुमंतू समुदायों को स्थायी रूप से बसाने की कोशिश की, जिससे उनकी जीवनशैली प्रभावित हुई।
- पारंपरिक अधिकारों की समाप्ति – उनके पारंपरिक अधिकारों और प्रथाओं को अवैध घोषित कर दिया गया।
- आजीविका संकट – खेती और पशुपालन की कठिनाइयों के कारण उनकी आजीविका संकट में आ गई।
- ब्रिटिश मॉडल – घुमंतू कातश्कार जो ब्रिटिश मॉडल के अनुसार हल-बैल के प्रयोग द्वारा खेती करते थे जिससे उन्हें कठिनाई होती थी, क्योंकि उन्हें खेती से अच्छी पैदावार नहीं मिल रही है जिससे उन्हें लगान चुकाना मुश्किल हो रहा था।
प्रश्न 4: औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं की ताकत में क्या बदलाव आए?
उत्तर 4: आदिवासी मुखियाओं की ताकत में बदलाव-
- आदिवासी मुखियाओं के कई प्रशासनिक अधिकार खत्म हो गए। उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया गया।
- आदिवासी मुखियाओं को जब अंग्रेज़ अधिकारियों को नजराना देना पड़ता था और अंग्रेजों के प्रतिनिधि के रूप में अपने समूहों को अनुशासन में रखना होता था।
- आदिवासी मुखियाओं के पास जो ताकत पहले थी अब वह ताकत नहीं रही। वे परंपरागत कार्यों को करने के लिए भी लाचार हो गए।
प्रश्न 5: दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे?
उत्तर 5: आदिवासी समाज में दीकुओं (बाहरी लोगों) के प्रति गुस्से के मुख्य कारण थे:
- भूमि हड़पना – दीकुओं (साहूकारों, जमींदारों, व्यापारियों) ने आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर लिया।
- जबरन कर वसूली – ब्रिटिश शासन और दीकुओं ने भारी कर लगाया, जिससे आदिवासी आर्थिक रूप से कमजोर हो गए।
- शोषणकारी कर्ज प्रणाली – साहूकारों ने ऊँची ब्याज दरों पर कर्ज दिया और आदिवासियों को कर्ज के जाल में फँसा दिया।
- परंपरागत जीवन शैली पर खतरा – जंगलों पर प्रतिबंध और नई नीतियों से उनका पारंपरिक जीवन कठिन हो गया।
- जबरी मजदूरी (बेगारी) – जमींदार और साहूकार जबरन आदिवासियों से मुफ्त में काम कराते थे।
- ब्रिटिश प्रशासन का समर्थन – सरकार ने दीकुओं का पक्ष लिया और आदिवासियों की शिकायतें नजरअंदाज कीं।
- सांस्कृतिक हस्तक्षेप – दीकुओं और मिशनरियों ने आदिवासी संस्कृति, धर्म और रीति-रिवाजों में दखल दिया।
प्रश्न 6: बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग किस तरह का था? आपकी राय में यह कल्पना लोगों को इतनी आकर्षक क्यों लग रही थी?
उत्तर 6: बिरसा की नजर में स्वर्ण युग-
- बिरसा ने अपने अनुयायियों से अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए संकल्प लेने का आह्वान किया।
- बिरसा ऐसे स्वर्ण युग की चर्चा करते थे जब मुंडा लोग अच्छा जीवन जीते थे, तटबंध बनाते थे, कुदरती झरनों को नियंत्रित करते थे, पेड़ और बाग़ लगाते थे, पेट पालने के लिए खेती करते थे।
- उस काल्पनिक युग में मुंडा अपने भाइयों और रिश्तेदारों का खून नहीं बहाते थे वे ईमानदारी से जीते थे।
- बिरसा चाहते थे कि लोग एक बार फिर अपनी जमीन पर खेती करें, एक जगह स्थायी रूप से रहें। और अपने खेतों में काम करें।
आइए करके देखें। कक्षा 8 हमारे अतीत पाठ 4 के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 7: अपने माता-पिता दोस्तों या शिक्षकों से बात करके बीसवीं सदी के अन्य आदिवासी विद्रोहों के नायकों के नाम पता करें। कहानी अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर 7: बिरसा मुंडा की कहानी – एक वीर आदिवासी योद्धा
बिरसा मुंडा झारखंड के एक छोटे से गाँव में जन्मे थे। बचपन से ही उन्होंने देखा कि कैसे अंग्रेजों और जमींदारों ने आदिवासियों की जमीन छीन ली और उन्हें शोषित किया। बिरसा ने आदिवासियों को संगठित किया और उन्हें उनके अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया। उन्होंने “उलगुलान” (महाविद्रोह) का नेतृत्व किया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा। 1900 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
बिरसा मुंडा आज भी आदिवासी समुदायों के लिए एक प्रेरणा हैं, और उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाता है।
प्रश्न 8: भारत में रहने वाले किसी भी आदिवासी समूह को चुनें। उनके रीति-रिवाज़ और जीवन पद्धति का पता लगाएँ और देखें कि पिछले 50 जीवन मे साल के दौरान उनके जीवन में क्या बदलाव आएँ हैं?
उत्तर 8: गोंड जनजाति – उनकी रीति-रिवाज और पिछले 50 वर्षों में आए बदलाव
परिचय:
गोंड जनजाति भारत की सबसे बड़ी आदिवासी जनजातियों में से एक है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलंगाना में पाई जाती है। इनका पारंपरिक जीवन जंगलों, कृषि और पशुपालन पर आधारित रहा है।
गोंड जनजाति के रीति-रिवाज और जीवन पद्धति:
- भाषा और धर्म: गोंड लोग अपनी “गोंडी” भाषा बोलते हैं और प्रकृति पूजा करते हैं। वे महादेव, फुलदेवी, और पेन (गोंड देवता) की पूजा करते हैं।
- पारंपरिक कला: गोंड चित्रकला (Gond Art) विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें पशु-पक्षियों और प्रकृति के चित्र बनाए जाते हैं।
- शादी और समाज: गोंड समाज में विवाह को सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाता है। इनमें घोटुल प्रथा (युवा मेल-जोल की परंपरा) प्रसिद्ध रही है।
- त्योहार और नृत्य: गोंड लोग “करमा”, “दीवाली”, “पोला”, और “मड़ई” जैसे त्योहार मनाते हैं। धमाल और सैला नृत्य बहुत लोकप्रिय हैं।
- पारंपरिक आजीविका: गोंड लोग खेती, शिकार, लकड़ी इकट्ठा करना और हस्तशिल्प के काम में लगे रहते थे।
पिछले 50 वर्षों में आए बदलाव:
- शिक्षा में सुधार: पहले शिक्षा का अभाव था, लेकिन अब स्कूल और कॉलेज खुलने से नई पीढ़ी शिक्षित हो रही है।
- कृषि में बदलाव: पहले गोंड लोग जंगलों पर निर्भर थे, लेकिन अब वे आधुनिक खेती और नकदी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं।
- जंगलों की कटाई: सरकार द्वारा वन क्षेत्र कम करने और खनन के कारण उनके परंपरागत संसाधनों पर असर पड़ा है।
- आधुनिकता और रोजगार: पहले केवल खेती और जंगलों पर निर्भरता थी, अब गोंड युवा शहरों में नौकरी करने लगे हैं।
- परंपराओं में कमी: घोटुल जैसी परंपराएँ धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं और लोग मुख्यधारा की संस्कृति अपना रहे हैं।
- सरकारी योजनाओं का प्रभाव: गोंड समुदाय को वन अधिकार अधिनियम, 2006 और अन्य सरकारी योजनाओं से लाभ मिला, जिससे उन्हें जमीन के अधिकार मिले।
- संस्कृति और पहचान: गोंड चित्रकला और संस्कृति को अब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल रही है, जिससे कलाकारों को आर्थिक लाभ हो रहा है।