कक्षा 8 इतिहास पाठ 7 प्रश्न उत्तर: महिलाएँ जाति एवं सुधार Class 8 question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 8 |
Subject | इतिहास |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | महिलाएँ जाति एवं सुधार प्रश्न उत्तर |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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फिर से याद करें कक्षा 8 हमारे अतीत पाठ 7 के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया:
राममोहन रॉय
दयानंद
वीरेशलिंगम पंतुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज़ अली
ईश्वरचंद्र विघासहर
उत्तर 1:
- राममोहन रॉय – ब्रम्ह समाज की स्थापना, सती प्रथा का विरोध।
- दयानंद सरस्वती – आर्य समाज की स्थापना, विधवा विवाह का समर्थन।
- वीरेशलिंगम पंतुलु – विधवा पुनर्विवाह।
- ज्योतिराव फुले – सत्यशोधक समाज संगठन, जाती आधारित समाज की आलोचना।
- पंडिता रमाबाई – महिला अधिकार, विधवा गृह की स्थापना (पूना में)।
- पेरियार – हिंदू धर्मग्रंथों के आलोचक, स्वाभिमान आंदोलन।
- मुमताज़ अली – मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा।
- ईश्वरचंद्र विद्यासागर – महिला शिक्षा।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ:
(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपति उत्तराधिकार आदि के बारे में ने कानून बना दिए।
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर – तरीकों के लिए प्राचीन ग्रन्थों से दूर रहना पड़ता था।
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलाता था।
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था।
उत्तर 2: (क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) गलत
आइए विचार करें कक्षा 8 हमारे अतीत पाठ 7 के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 3: प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?
उत्तर 3: प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान ने सुधारकों को समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ तर्क देने और नए कानून बनवाने में मदद की। उन्होंने धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों से उदाहरण देकर यह साबित किया कि सामाजिक सुधार संभव और उचित है। जैसे, राजा राम मोहन राय ने वेदों और शास्त्रों के आधार पर सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई, जिससे 1829 में सती प्रथा प्रतिबंधित हुई। इसी तरह, ज्योतिबा फुले और अन्य सुधारकों ने शास्त्रों की व्याख्या कर जाति भेदभाव और महिला शिक्षा के लिए नए कानून बनवाने में योगदान दिया।
प्रश्न 4: लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?
उत्तर 4: लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास निम्नलिखित कारण होते थे:
- सामाजिक रूढ़िवादिता: समाज में लड़कियों की शिक्षा को अनावश्यक माना जाता था।
- लैंगिक भूमिकाएँ: लड़कियों को घरेलू कामकाज तक सीमित रखने की मानसिकता।
- सुरक्षा की चिंता: लड़कियों को बाहर भेजने को असुरक्षित माना जाता था।
- आर्थिक कारण: गरीब परिवार लड़कियों की शिक्षा पर खर्च नहीं करना चाहते थे।
- शादी की प्राथमिकता: लड़कियों की शिक्षा से ज्यादा उनकी शादी को महत्व दिया जाता था।
- शिक्षा का अभाव: लड़कियों के लिए उचित शिक्षा संस्थानों की कमी।
प्रश्न 5: ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा? यदि हाँ तो किस कारण?
उत्तर 5: आलोचना का कारण-
- भारतीय संस्कृति को नष्ट कर पाश्चात्य संस्कृति को भारतीयों पर लाद देंगे।
- जनजातीय समूहों तथा निम्न जाति के लोगों का धर्म परिवर्तन कर देंगे।
समर्थन के कारण
- जनजातीय लोगों तथा निम्न जाति के लोगों के लिए स्कूलों की स्थापना की।
- ये स्त्री-शिक्षा तथा पुरुषों के समानता के अधिकार के पक्षधर थे।
प्रश्न 6: अंग्रेजों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन-से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?
उत्तर 6: नए अवसर-
- बहुत सारे लोग असम, मॉरीशस, त्रिनीदाद और इंडोनेशिया आदि स्थानों पर बाग़ानों में काम करने के लिए भी जा रहे थे।
- उन्नीसवीं सदी में ईसाई प्रचारक आदिवासी समुदायों और निचली” जातियों के बच्चों के लिए स्कूल खोलने लगे थे।
- शहरों में रोजगार के नए-नए अवसर सामने आ रहे थे; जैसे-मकान, पार्क, सड़कें, नालियाँ, बाग, मिलें, रेलवे लाइन, स्टेशन आदि के निर्माण के लिए मजदूरों की आवश्यकता थी। इन कामों के लिए शहर जाने वालों में से बहुत सारे ‘निम्न जातियों के लोग थे।
प्रश्न 7: ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर 7: ज्योतिराव फुले और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचना को तर्क, इतिहास और नैतिकता के आधार पर सही ठहराया। उन्होंने बताया कि शास्त्रों की गलत व्याख्या करके ऊँची जातियों ने निम्न जातियों का शोषण किया। फुले ने “गुलामगिरी” नामक पुस्तक लिखकर वर्ण व्यवस्था की क्रूरता उजागर की और समानता व शिक्षा के अधिकार की वकालत की। अन्य सुधारकों, जैसे डॉ. बी.आर. आंबेडकर, ने भी संविधान और मानवाधिकारों के आधार पर जाति-आधारित भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने सभी के लिए शिक्षा और समान अवसरों की जरूरत पर जोर दिया, जिससे सामाजिक न्याय की नींव रखी गई।
प्रश्न 8: फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आज़ादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया?
उत्तर 8: अमेरिकी आंदोलन को समर्पित-
1873 में फुले ने गुलामगीरी (गुलामी) नामक एक पुस्तक लिखी। फुले के पुस्तक लिखने से 10 वर्ष पूर्व अमेरिका में गृहयुद्ध के फलस्वरूप दास प्रथा का अंत हो। चुका था। फुले ने भारत की “निम्न जातियों और अमरीका के काले गुलामों की दुर्दशा को एक-दूसरे से जोड़कर देखा। इसलिए फुले ने अपनी पुस्तक को उन सभी अमेरिकियों को समर्पित किया, जिन्होंने गुलामों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया था।
प्रश्न 9: मंदिर प्रवेश आंदोलन के ज़रिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे?
उत्तर 9: मंदिर प्रवेश आंदोलन के जरिए डॉ. बी.आर. आंबेडकर समाज में समानता स्थापित करना चाहते थे। वे चाहते थे कि दलितों को भी वही धार्मिक अधिकार मिले जो ऊँची जातियों को प्राप्त थे। इस आंदोलन के माध्यम से उन्होंने छुआछूत का विरोध किया और दलितों को आत्मसम्मान व सामाजिक स्वीकृति दिलाने का प्रयास किया। उनका उद्देश्य था कि धर्म के नाम पर किए जा रहे भेदभाव को खत्म किया जाए और सभी लोगों को समान धार्मिक स्वतंत्रता मिले।
प्रश्न 10: ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
उत्तर 10: राष्ट्रीय संघर्ष में मदद-
- फुले ने जाति व्यवस्था की अपनी आलोचना को सभी प्रकार क़ी गैर बराबरी से जोड़ दिया था, वह “उच्च जाति महिलाओं की दुर्दशा, मजदूरों की मुसीबतों और निम्न जातियों के अपमानपूर्ण हालात के बारे में गहरे तौर पर चिंतित थे।
- पेरियार की दलीलों और आंदोलन से उच्च जातीय राष्ट्रवादी नेताओं के बीच कुछ आत्ममंथन और आत्मालोचना की प्रक्रिया शुरू हुई।
- इनकी आलोचना से समाज में समानता का भाव आया। जातीय बंधन ढीले पड़े, छुआछूत की भावना कम हुई, जिससे राष्ट्रीय आंदोलन में एकता का भाव पैदा हुआ।