कक्षा 8 विज्ञान अध्याय 1 नोट्स: फसल उत्पादन एवं प्रबंधन notes
Textbook | Ncert |
Class | Class 8 |
Subject | Science |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | फसल उत्पादन एवं प्रबंधन notes |
Medium | Hindi |
क्या आप Class 8 Science chapter 1 notes in hindi ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से फसल उत्पादन एवं प्रबंधन notes download कर सकते हैं। इस अध्याय मे हम फसल क्या होती है?, कृषि क्रियाएँ, कृषि उपकरण , सिंचाई की विधियाँ , खाद और उर्वरक में अंतर के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
फसल किसे कहते है?
🔹 जब एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं, तो इसे फसल कहते हैं, जैसे: गेहूं, धान (चावल), मक्का, सरसों, गन्ना, सब्ज़ियाँ आदि।
ऋतुओ के आधार पर फसल के प्रकार :-
🔹 गऋतुओं के आधार पर फसलों को तीन वर्गों में बांटा गया है :-
- खरीफ़ फसलें (बरसात में बोई जाती हैं, जैसे चावल, मक्का)
- रबी फसलें (सर्दियों में बोई जाती हैं, जैसे गेहूं, सरसों)
- ज़ायद फसलें (गर्मी के मौसम की फसलें, जैसे खरबूज़ा, तरबूज़)
हमारे देश में उगाई जाने वाली फसलें :-
🔹 हमारे देश में मोटे तौर पर फसलों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :-
- खरीफ़ फसलें – ये फसलें वर्षा ऋतु में (जून से सितंबर) बोई जाती हैं और अक्टूबर में काटी जाती हैं। प्रमुख खरीफ़ फसलों में धान (चावल), मक्का, बाजरा, कपास, सोयाबीन और मूंगफली शामिल हैं।
- रबी फसलें – ये फसलें सर्दी के मौसम में (अक्टूबर से मार्च) बोई जाती हैं और मार्च-अप्रैल में काटी जाती हैं। इनमें गेहूं, जौ, चना, मटर और सरसों जैसी फसलें शामिल हैं।
कृषि पद्धतियाँ :-
🔹 फसल उगाने के लिए किसान जो क्रियाकलाप करता है। उसे कृषि पद्धतियाँ कहते है। जैसे:
- (i) मिट्टी तैयार करना
- (ii) बुआई
- (iii) खाद एवं उवर्रक देना
- (iv) सिंचाई
- (v) खरपतवार से सुरक्षा
- (vi) कटाई
- (vii) भण्डारण
(i) मिट्टी तैयार करना :-
🔹 फसल उगाने से पहले मिट्टी तैयार करना कृषि पद्धति का सबसे पहला चरण होता है जिसमें मिट्टी को पलटना तथा इसे पोला बनाना कृषि का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। इससे जड़ें भूमि में गहराई तक जा सकती हैं। पोली मिट्टी में गहराई में धँसी जड़ें भी सरलता से श्वसन कर सकती हैं। अतः मिट्टी को उलटना-पलटना एवं पोला करना फसल उगाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जुताई :-
🔹 मिट्टी को उलटने-पलटने एवं पोला करने की प्रक्रिया जुताई कहलाती है।
जुताई का महत्व :-
- मिट्टी को ढीला करती है।
- जड़ों को गहराई तक बढ़ने में मदद करती है।
- जड़ों को साँस लेने में सुविधा होती है।
- खरपतवारों को हटाने में सहायक।
- पोषक तत्वों का समान वितरण करती है।
- गहराई से खनिज ऊपर लाकर पौधों को सुलभ कराती है।
(ii) बुआई :-
🔹 बुआई फसल उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण चरण हैं। बोने से पहले अच्छी गुणवत्ता वाले साफ एवं स्वस्थ बीजों का चयन किया जाता हैं एवं उन बीजों को खेत में बोया जाता है। बीजों को उचित गहराई और दूरी पर बोया जाता है ताकि पौधों को पर्याप्त स्थान मिल सके।
बुआई की विधियां :-
🔹 बुआई हाथों से या मशीनों की सहायता से की जाती है। कुछ विधियाँ इस प्रकार हैं:
(i) परम्परागत औज़ार: परंपरागत रूप से बीजों की बुआई में इस्तेमाल किया जाने वाला औज़ार कीप के आकार का होता है। बीजों को कीप के अंदर डालने पर यह दो या तीन नुकीले सिरे वाले पाइपों से गुजरते हैं। ये सिरे मिट्टी को भेदकर बीज को स्थापित कर देते हैं।
(ii) सीड ड्रिल (बीज ड्रिल): आजकल ट्रैक्टर की सहायता से बीज ड्रिल का प्रयोग किया जाता है। यह उपकरण बीजों को उचित दूरी और गहराई पर समान रूप से बोता है। इससे बीज मिट्टी से ढक जाते हैं और पक्षियों द्वारा नुकसान नहीं होता। यह समय और श्रम दोनों की बचत करता है।
(iii) खाद एवं उवर्रक :-
🔹 इसमें फसल को पोषण देने के लिए गोबर की खाद (प्राकृतिक) या रासायनिक उर्वरक डाले जाते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है।
उर्वरक एवं खाद में अंतर :-
उर्वरक | खाद |
---|---|
उर्वरक एक मानव निर्मित लवण है। | खाद एक प्राकृतिक पदार्थ है जो गोबर एवं पौधों के अवशेष के विघटन से प्राप्त होता है। |
उर्वरक का उत्पादन फैक्ट्रियों में होता है। | खाद खेतों में बनाई जा सकती है। |
उर्वरक से मिट्टी को ह्यूमस प्राप्त नहीं होती। | खाद से मिट्टी को ह्यूमस प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। |
उर्वरक में पादप पोषक, जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटैशियम प्रचुरता में होते हैं। | खाद में पादप पोषक तुलनात्मक रूप से कम होते हैं। |
खाद के लाभ :-
🔹 जैविक खाद उर्वरक की अपेक्षा अधिक अच्छी मानी जाती है। इसका मुख्य कारण है:
- इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।
- इससे मिट्टी भुरभुरी एवं सरंध्र हो जाती है जिसके कारण गैस विनिमय सरलता से होता है।
- इससे मित्र जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
- इस जैविक खाद से मिट्टी का का गठन सुधर जाता है।
(iv) सिंचाई :-
🔹 यह प्रक्रिया फसलों को आवश्यकता अनुसार पानी देने की है। पानी फसल के लिए जरूरी पोषक तत्वों को घुलाने और पौधों तक पहुँचाने में मदद करता है।
सिंचाई के स्रोत
🔹 कुएँ, जलकूप, तालाव झील, नदियाँ, बाँध एवं नहर इत्यादि जल के स्रोत हैं।
सिंचाई के तरीके :-
🔹 सिंचाई के विभिन्न तरीके निम्नलिखित हैं :-
- पारंपरिक विधियाँ
- आधुनिक विधियाँ
1. पारंपरिक सिंचाई के तरीके :-
🔹 इन तरीकों में मानव या पशु शक्ति का उपयोग होता है। ये कम लागत वाले तरीके हैं।
- मोहत: बाल्टी से पानी खींचकर खेतों में पहुँचाया जाता है।
- रहट: बैल या ऊँट की मदद से पानी खींचा जाता है।
- ढेंकली: एक लंबी लकड़ी और भार का उपयोग कर पानी निकाला जाता है।
- चेन पंप: चेन और बाल्टियों की मदद से पानी खींचा जाता है।
2. आधुनिक सिंचाई के तरीके :-
🔹 ये तरीके जल की बचत करते हैं और अधिक प्रभावी होते हैं।
1. छिड़काव तंत्र :- इस विधि का उपयोग समतल भूमि के लिए किया जाता है जहां पर जल कम मात्रा में उपलब्ध होता है इसमे ऊर्ध्व पाइपों (नलो) के ऊपरी सिरे पर घूमने वाले नोजल लगे होते हैं। यह पाइप निश्चित दूरी पर मुख्य पाइप से जुड़े होते हैं जब पंप की सहायता से जल मुख्य पाइप में भेजा जाता है तो वह घूमते हुए नोजल से बाहर निकलता है इसका छिड़काव पौधों पर इस प्रकार होता है जैसे वर्षा हो रही हो।
2. ड्रिप तंत्र :- इस विधि में जल बूंद-बूंद करके पौधों की जड़ों में गिरता है अतः इसे ड्रिप तंत्र कहते हैं फलदार पौधों बगीचों एवं वृक्षों को पानी देने का यह सर्वोत्तम तरीका है इससे पौधों को बूंद-बूंद करके जल प्राप्त होता है इस विधि में जल बिल्कुल व्यर्थ नहीं होता है यह जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए एक वरदान के रूप में है।
(v) खरपतवार :-
🔹 खेत में कई अन्य अवांछित पौधे प्राकृतिक रूप से फसल के साथ उग जाते हैं। इन अवांछित पौधों को खरपतवार कहते हैं।
निराई :-
खरपतवार हटाने को निराई कहते हैं। निराई आवश्यक है क्योंकि खरपतवार जल, पोषक, जगह और प्रकाश की स्पर्धा कर फसल की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं।
हम खरपतवारों को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं (खरपतवारनाशी) :-
🔹 रसायनों के उपयोग से भी खरपतवार नियंत्रण किया जाता है, जिन्हें खरपतवारनाशी कहते हैं, जैसे, 2, 4-D
(vi) कटाई :-
🔹 फसल की कटाई एक महत्वपूर्ण कार्य है। फसल के पकने के बाद उसे काटना कटाई कहलाता है। कटाई में, फसल को उखाड़ दिया जाता है या जमीन के करीब से काट दिया जाता है। अनाज की फसल को पकने में आमतौर पर 3 से 4 महीने लगते हैं।
कटाई के तरीके :-
कटाई दो तरीकों से की जाती है।
- मैनुअल तरीका: इसमें किसान दरांती (हँसिया) का उपयोग करके फसल को हाथों से काटते हैं।
- यांत्रिक तरीका: इसमें हार्वेस्टर नामक एक बड़ी मशीन का प्रयोग किया जाता है, जो फसल की कटाई को तेज और कुशलता से करती है।
श्रेसिंग :-
🔹 बीज को भूसे से अलग करना श्रेसिंग कहलाता है यह यह कार्य कंबाइन मशीन के द्वारा किया जाता है जो वास्तव में हार्वेस्टर और थ्रेसर का संयुक्त रूप होता है इसी के साथ छोटे खेत वाले किसान अनाज के दानों को पटक कर बीज व भूसे को अलग कर देते हैं।
(vii) भण्डारण :-
🔹 कटाई के बाद अनाज को अच्छी तरह सुखाकर सुरक्षित स्थानों (जैसे कोठी, गोदाम या बोरियों) में रखा जाता है ताकि वह नमी, कीड़ों और फफूंदी से बचा रहे।
भंडारण के बारे में विवरण :-
- भंडारण का उद्देश्य: कटाई के बाद अनाज को नमी, कीड़ों, चूहों और सूक्ष्मजीवों से लंबे समय तक सुरक्षित रखना।
- नमी की समस्या: ताज़ा कटे हुए अनाज में नमी की मात्रा अधिक होती है, जिससे वह जल्दी खराब हो सकता है।
- सुखाने की आवश्यकता: भंडारण से पहले अनाज को धूप में अच्छी तरह सुखाना जरूरी होता है ताकि वह खराब होने और सूक्ष्मजीवों के हमले से बच सके।
- रासायनिक उपचार: बड़े गोदामों में कीटों और सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा के लिए अनाज का रासायनिक उपचार किया जाता है।
कृषि औजार :-
🔹 कृषि कार्यों को सरल, तेज़ और प्रभावी बनाने के लिए किसान विभिन्न प्रकार के औज़ारों का उपयोग करता है। ये औज़ार फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक के काम में आते हैं।
महत्वपूर्ण कृषि उपकरण :-
- हल: मिट्टी की जुताई और पलटाई के लिए।
- कुदाल: मिट्टी खोदने और समतल करने के लिए।
- खुरपी: निंदाई-गुड़ाई और छोटे पौधों के आसपास काम के लिए।
- दरांती: फसल की कटाई के लिए।
- बीज ड्रिल: बीज बोने के लिए आधुनिक उपकरण।
- फव्वारा प्रणाली: सिंचाई के लिए जल छिड़काव प्रणाली।
- टपक सिंचाई प्रणाली: पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद पानी देने की प्रणाली।
- थ्रेशर: अनाज को भूसे से अलग करने के लिए।
- कम्बाइन हार्वेस्टर: कटाई, गहाई और साफ़ करने का संयुक्त यंत्र।
- ट्रैक्टर: भारी कृषि कार्यों जैसे जुताई, बोवाई, कटाई आदि के लिए।
जानवरों से प्राप्त भोजन :-
🔹 पौधों की तरह जानवर भी हमें कई प्रकार के उपयोगी और पोषक भोज्य पदार्थ प्रदान करते हैं, जैसे:
- दूध – गाय, भैंस, बकरी से
- मांस – मुर्गी, बकरी, मछली आदि से
- अंडे – मुर्गी, बत्तख आदि से
- शहद – मधुमक्खी से
- घी, दही, पनीर – दूध से बने उत्पाद
पशुपालन :-
🔹पशुपालन का अर्थ है पालतू जानवरों जैसे गाय, भैंस, बकरी, भेड़, मुर्गी, सूअर आदि का पालन-पोषण और देखभाल करना। यह कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है और किसानों की आय का एक प्रमुख स्रोत भी होता है।