Class 9 Science chapter 10 कार्य तथा ऊर्जा notes in hindi

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कक्षा 9 विज्ञान अध्याय 10 नोट्स: कार्य तथा ऊर्जा class 9 notes

TextbookNcert
ClassClass 9
SubjectScience
ChapterChapter 10
Chapter Nameकार्य तथा ऊर्जा नोट्स
MediumHindi

आप यहां से karya tatha urja class 9 notes download कर सकते हैं। इस अध्याय मे हम बल द्वारा किया गया कार्य, ऊर्जा, शक्ति, गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा, ऊर्जा संरक्षण का नियम आदि के बारे में विस्तार से पड़ेगे।

जैव प्रक्रम :- 

जीवित रहने के लिए सजीवों को जो विभिन्न मूलभूत गतिविधियाँ करनी पड़ती हैं उन्हें हम जैव प्रक्रम कहते हैं।

कार्य :-

किसी वस्तु पर बल लगाने पर अगर उसमें विस्थापन या परिवर्तन हो तो यह कार्य कहलाता है। कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है यह ऊर्जा:

  • सजीवों को ऊर्जा, भोजन से मिलती है।
  • मशीनों को ऊर्जा, ईंधन से मिलती है।

दैनिक जीवन में ‘कार्य’ का अर्थ :-

हम किसी भी शारीरिक या मानसिक परिश्रम को “कार्य” कहते हैं। उदाहरण: पढ़ाई करना, बातचीत करना, खेलना, चित्र बनाना आदि। परंतु विज्ञान में ‘कार्य’ की परिभाषा भिन्न होती है।

विज्ञान में ‘कार्य’ की परिभाषा :-

जब किसी वस्तु पर बल लगाया जाता है और वह वस्तु उस बल की दिशा में विस्थापित होती है, तब कहा जाता है कि कार्य हुआ है।

🔸 सरल शब्दों में: विज्ञान में कार्य तभी कहा जाएगा जब किसी वस्तु पर बल लगाने से विस्थापन हो। अर्थात्, यदि वस्तु हिली नहीं, तो वैज्ञानिक दृष्टि से कार्य शून्य है।

  • 🔸 कार्य का सूत्र: 
    • कार्य (W) = बल (F) × विस्थापन (s) (जब बल और विस्थापन एक ही दिशा में हों)
    • कार्य = बल × विस्थापन की दिशा में दूरी

🔸 विज्ञान की दृष्टि से मुख्य याद रखने योग्य बातें:

  • कार्य करने के लिए दो दशाओं का होना आवश्यक है: 
    • (i) वस्तु पर कोई बल लगना चाहिए, तथा 
    • (ii) वस्तु विस्थापित होनी चाहिए।

कार्य तभी होगा जब बल और विस्थापन दोनों मौजूद हों। यदि बल तो लगाया गया है, लेकिन विस्थापन शून्य है, तो कार्य शून्य होगा।

(In simple words) कार्य होने की शर्तें :- 

  • 🔸 कार्य तभी होगा जब:
    • वस्तु पर बल लगाया गया हो, और
    • वस्तु में विस्थापन हुआ हो, और
    • बल का कुछ अंश विस्थापन की दिशा में हो।

उदाहरण के साथ समझे:

स्थितिवैज्ञानिक दृष्टि से कार्य हुआ या नहींकारण
(क) चट्टान को धकेलना पर वह नहीं हिली❌ नहीं हुआविस्थापन नहीं हुआ
(ख) सिर पर बोझ रखकर स्थिर खड़े रहना❌ नहीं हुआवस्तु की स्थिति नहीं बदली
(ग) सीढ़ियाँ या पेड़ पर चढ़ना✅ हुआविस्थापन ऊपर की दिशा में हुआ

कार्य के उदाहरण :- 

  • 1. गुटका (Block) को धकेलना
  • जब आप गुटके को धक्का देते हैं, तो उस पर बल लगता है।
  • गुटका कुछ दूरी तक खिसकता है (विस्थापित होता है)।
  • 👉 इसलिए कार्य किया गया है।
  • 2. लड़की द्वारा ट्रॉली खींचना
  • लड़की ट्रॉली पर बल लगाती है।
  • ट्रॉली चलती है यानी उसका विस्थापन होता है।
  • 👉 यहाँ भी कार्य किया गया है।
  • 3. पुस्तक को ऊँचाई तक उठाना
  • पुस्तक को ऊपर उठाने के लिए बल (ऊपर की दिशा में) लगाया जाता है।
  • पुस्तक ऊपर जाती है, अर्थात् विस्थापन हुआ।
  • 👉 इसलिए यह भी कार्य का उदाहरण है।

कार्य का मात्रक :-

🔸 कार्य का मात्रक :- कार्य का मात्रक न्यूटन मीटर है। इस मात्रक को जूल भी कहते है, तथा इसे ( J ) से प्रदर्शित्त करते है।

🔸 1 जूल (1 J) का अर्थ :- जब किसी वस्तु पर 1 N का बल लगाकर, उसे बल की दिशा में 1 m विस्थापित किया जाए, तो किया गया कार्य 1 J होता है।

धनात्मक और ऋणात्मक कार्य :-

🔸 ऋणात्मक कार्य :- जब बल विस्थापन की दिशा के विपरीत दिशा में लगता है तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है। 

  • उदाहरण:
    • गतिशील वस्तु पर ब्रेक लगाना: कार आगे की ओर गति कर रही है (विस्थापन की दिशा), जबकि ब्रेल लगाने पर घर्षण बल पीछे की ओर (विस्थापन के विपरीत दिशा में) लगता है।
    • गेंद को ऊपर फेंकना: गेंद का विस्थापन ऊपर की ओर होता है, जबकि गुरुत्वाकर्षण बल नीचे की ओर लगता है।

🔸 धनात्मक कार्य :- जब बल विस्थापन की दिशा में लगता है तो किया गया कार्य धनात्मक होता है।

  • उदाहरण:
    • बच्चे द्वारा खिलौना कार खींचना: बच्चा जिस दिशा में कार को खींचता है (बल लगाता है), कार का विस्थापन भी उसी दिशा में होता है।
    • सीढ़ियाँ चढ़ना: आपका बल (मांसपेशियों का बल) ऊपर की ओर लगता है और विस्थापन भी ऊपर की ओर होता है।

ऊर्जा :- 

“किसी वस्तु की कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।” अर्थात्, यदि किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता है, तो कहा जाता है कि उसमें ऊर्जा है।

ऊर्जा का उदाहरण :- 

ऊँचाई से गिरता हथौड़ा: हथौड़ा नीचे गिरकर कील पर प्रहार करता है। हथौड़ा ऊपर की स्थिति में स्थितिज ऊर्जा रखता था। गिरते समय यह गतिज ऊर्जा में बदल जाती है और कील को लकड़ी में ठोक देती है।

तेज़ गेंद विकेटों से टकराती है: गेंद टकराने पर विकेट गिर जाते हैं। गेंद चल रही थी, यानी उसकी गति थी। गति वाली वस्तु में गतिज ऊर्जा होती है, जो टकराने पर विकेट को गिराने में काम आती है।

ऊर्जा का मात्रक :- 

ऊर्जा का मात्रक वही है जो कार्य का है अर्थात जूल (J)। 

एक जूल कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा 1J होती है। कभी-कभी ऊर्जा के बड़े मात्रक किलो जूल (kJ) का उपयोग किया जाता है। 1 kJ, 1000 J के बराबर होता है।

ऊर्जा और कार्य का संबंध :-

  • जो वस्तु कार्य करती है, उसकी ऊर्जा घटती है। अर्थात् कार्य करने वाली वस्तु में ऊर्जा की हानि होती है।
  • जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है, उसमें ऊर्जा की वृद्धि होती है।
  • जब एक वस्तु दूसरी पर बल लगाती है, तो ऊर्जा स्थानांतरित होती है।

ऊर्जा के रूप :- 

संसार में ऊर्जा कई रूपों में मौजूद होती है। ऊर्जा के मुख्य रूप हैं: 

  • स्थितिज ऊर्जा,
  • गतिज ऊर्जा, 
  • ऊष्मीय ऊर्जा, 
  • रासायनिक ऊर्जा, 
  • विद्युत् ऊर्जा, 
  • प्रकाश ऊर्जा।

गतिज ऊर्जा :- 

किसी गतिमान वस्तु में उसकी गति के कारण उत्पन्न ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहा जाता है। संक्षेप में, किसी वस्तु में उसकी गति के कारण निहित ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं।

  • गतिज ऊर्जा के उदाहरण:
    • गिरता हुआ नारियल
    • गतिशील कार
    • लुढ़कता हुआ पत्थर
    • उड़ता हुआ हवाई जहाज
    • बहता हुआ पानी
    • बहती हुई हवा
    • दौड़ता हुआ खिलाड़ी
  • 🔸 नोट:
    • जितनी तेज गति होगी, उतनी अधिक गतिज ऊर्जा होगी।
    • गतिज ऊर्जा केवल गतिमान वस्तु में होती है, स्थिर वस्तु में नहीं।

स्थितिज ऊर्जा :-

किसी वस्तु द्वारा इसकी स्थिति या विन्यास में परिवर्तन के कारण प्राप्त ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहा जाता है। यह किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान में रखने के बाद उस वस्तु में आती है।

उदाहरण:

खिलौना कार की कसी हुई स्प्रिंग: जब स्प्रिंग कसी हुई होती है, तो उसमें स्थितिज ऊर्जा संचित होती है। जैसे ही स्प्रिंग खुलती है, यह ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदल जाती है और कार चलने लगती है।

धनुष की तनित डोरी: धनुष की डोरी को खींचने पर उसमें स्थितिज ऊर्जा संचित होती है। जब तीर छोड़ा जाता है, तो यह ऊर्जा तीर की गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होती है।

गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा :-

किसी वस्तु की पृथ्वी तल से ऊंचाई के कारण जो ऊर्जा संचित होती है। उसे वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते है।

🔸 सरल शब्दों में: किसी वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा उस ऊर्जा को कहते हैं जो भूमि से ऊपर किसी बिंदु तक किसी वस्तु को भूमि से उस बिंदु तक उठाने में गुरुत्व बल के विरुद्ध किए गए कार्य के बराबर होती है।

🔸 गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का सूत्र :-

  • स्थितिज ऊर्जा = m × g × h 
  • Ep = mgh

स्थितिज ऊर्जा और गतिज ऊर्जा में अंतर :- 

स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा
यह वस्तु की स्थिति पर निर्भर करती हैयह वस्तु की गति पर निर्भर करती है
वस्तु को किसी स्थान से दूसरे स्थान पर रखने पर उत्पन्न होती हैवस्तु के विस्थापन और गतिशीलता के कारण उत्पन्न होती है
वस्तु स्वयं कार्य नहीं करती, बल बाहर से लगाया जाता हैवस्तु स्वयं कार्य करती है
इसमें ऊर्जा स्थानांतरण बाहर से होता हैइसमें ऊर्जा स्वतः उत्पन्न होती है (गतिमान होने के कारण)
इसमें वस्तु की अवस्था या स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होताविस्थापन के कारण वस्तु की स्थिति या अवस्था बदल जाती है

ऊर्जा रूपान्तरण :-

जब ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है, तो इस प्रक्रिया को ऊर्जा रूपान्तरण कहा जाता है। ऊर्जा-रूपातरंण की अवस्था में निकाय की कुल ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है। 

ऊर्जा रूपान्तरण के मुख्य उदाहरण: प्रकृति में हम ऊर्जा रूपान्तरण के अनेक उदाहरण देख सकते हैं।

  • विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में एक बिजली की मोटर द्वारा रूपान्तरित किया जाता है।
  • रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में एक बैटरी या सेल द्वारा रूपान्तरित किया जाता है।
  • विद्युत ऊर्जा को प्रकाशीय तथा ऊष्मीय ऊर्जा में एक विद्युत बल्ब द्वारा रूपान्तरित करते हैं।
  • ऊष्मीय ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में भाप इंजन द्वारा परिवर्तित किया जाता है।

ऊर्जा संरक्षण का नियम :-

ऊर्जा संरक्षण का नियम के अनुसार, ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित हो सकती है; न तो इसकी उत्पत्ति की जा सकती है और न ही विनाश। रूपांतरण के पहले व रूपांतरण के पश्चात् कुल ऊर्जा सदैव अचर रहती है। ऊर्जा संरक्षण का नियम प्रत्येक स्थिति तथा सभी प्रकार के रूपांतरणों में मान्य है।

ऊर्जा संरक्षण के नियम का सत्यापन :- 

  • 🔸 ऊर्जा संरक्षण का गणितीय रूप:
    • स्थितिज + गतिज = अचर
    • \(mgh + \frac{1}{2}mv^2 = \text{अचर}\)
  • जब कोई वस्तु गिरती है, तो उसकी
  • स्थितिज ऊर्जा घटती है,
  • और गतिज ऊर्जा बढ़ती है। 
  • परंतु कुल ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है।

🔸 सरल शब्दों में: किसी गिरती हुई वस्तु के लिए, जितनी स्थितिज ऊर्जा घटती है, उतनी ही गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है, और दोनों का योग सदैव समान (अचर) रहता है।

शक्ति :-

किसी कार्य को करने की दर या ऊर्जा रूपांतरण की दर को शक्ति कहते हैं।

  • 🔸 शक्ति का सूत्र :- 
    • शक्ति = कार्य/समय
    • \(P = \frac{W}{t}\)
  • जहाँ P = शक्ति, W = कार्य, t = समय

शक्ति का मात्रक :- 

शक्ति का मात्रक वाट है तथा इसका प्रतीक W है। (यह मात्रक जेम्स वाट (1736 – 1819) के सम्मान में रखा गया है।)

  • 1 वाट = 1 जूल/सेकंड या 1,W = 1,J/s
  • यानी 1 सेकंड में 1 जूल कार्य = 1 वाट
  • बड़ा मात्रक: 1,kW = 1000,W

औसत शक्ति :-

किसी अभिकर्ता की शक्ति समय के साथ बदल सकती है। अर्थात् अभिकर्ता भिन्न-भिन्न समय अन्तरालों में विभिन्न दरों से कार्य कर सकने में सक्षम होता है इसीलिए औसत शक्ति की अवधारणा व गणना आवश्यक हो जाती है। औसत शक्ति की गणना कुल उपयोग की गई ऊर्जा को कुल लिए गए समय से विभाजित कर प्राप्त किया जा सकता है।

\(\text{औसत शक्ति} = \frac{\text{कुल कार्य या ऊर्जा}}{\text{कुल समय}}\)

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