Class 9 Science chapter 11 ध्वनि notes in hindi

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कक्षा 9 विज्ञान अध्याय 11 नोट्स: ध्वनि class 9 notes

TextbookNcert
ClassClass 9
SubjectScience
ChapterChapter 11
Chapter Nameध्वनि नोट्स
MediumHindi

आप यहां से dhwani class 9 notes in hindi download कर सकते हैं। इस अध्याय मे हम ध्वनि की प्रकृति और अलग-अलग माध्यमों में संचरण, ध्वनि की चाल, मानव में श्रव्यता परिसर, पराध्वनि, ध्वनि का परावर्तन, प्रतिध्वनि आदि के बारे में विस्तार से पड़ेगे।

ध्वनि :-

हमारे कानों में श्रवण का संवेदन उत्पन्न करने वाली ऊर्जा को ध्वनि कहा जाता है। हम ध्वनि को विभिन्न स्रोतों जैसे मनुष्य, पक्षी, घंटियाँ, मशीनें, वाहन, टीवी, रेडियो आदि के द्वारा से सुनते हैं।

ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है?

जब कोई वस्तु कंपन करती है, तब ध्वनि उत्पन्न होती है। किसी वस्तु को कंपित करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो किसी बाहरी स्रोत से प्राप्त होती है।

उदाहरण: जब आप ताली बजाते हैं, तो आपके हाथों की यांत्रिक ऊर्जा ध्वनि ऊर्जा में बदल जाती है। 

यानी, ध्वनि उत्पन्न करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 

ध्वनि उत्पन्न करने के अन्य तरीके :- 

हम विभिन्न वस्तुओं में घर्षण द्वारा, खुरच कर, रगड़ कर, वायु फूंक कर या वस्तुओं को हिलाने या ठोकने से ध्वनि उत्पन्न कर सकते हैं।

कंपन :- 

कंपन का अर्थ होता है किसी वस्तु का तेज़ी से बार-बार इधर-उधर गति करना।

ध्वनि का संचरण :-

किसी स्रोत से ध्वनि का हमारे कानों तक पहुँचना, ध्वनि का संचरण कहलाता है।

दूसरे शब्दों में, ध्वनि के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने की प्रक्रिया को ध्वनि का संचरण कहते हैं।

  • 🔸 नोट: 
    • ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम आवश्यक होता है। 
    • निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं होता।

माध्यम :- 

वह पदार्थ जिससे होकर ध्वनि संचरित होती है, माध्यम कहलाता है। यह ठोस, द्रव या गैस कोई भी माध्यम हो सकता है। ध्वनि ठोस में सबसे तेज, द्रव में उससे कम, और गैस में सबसे धीमी गति से चलती है।

ध्वनि का संचरण कैसे होता है?

जब कोई वस्तु कंपन करती है, तो उसके आस-पास की वायु कणों में विक्षोभ उत्पन्न होता है। फलतः इन कणों में कम्पन आरंभ हो जाता है। ये कण वस्तु से हमारे कानों तक स्वयं गति कर नहीं पहुँचते, बल्कि अपने निकटवर्ती कणों में कम्पन और विक्षोभ उत्पन्न करते हैं। 

सबसे पहले कंपमान वस्तु के संपर्क में रहने वाले माध्यम के कण अपनी संतुलित अवस्था से विस्थापित होते हैं। ये अपने समीप के कणों पर एक बल लगाते हैं। जिसके फलस्वरूप निकटवर्ती कण अपनी विरामावस्था से विस्थापित हो जाते हैं। निकटवर्ती कणों को विस्थापित करने के पश्चात् प्रारंभिक कण अपनी मूल अवस्थाओं में वापस लौट आते हैं। 

यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और कम्पन श्रोता के कानों के नजदीक उपस्थित कणों तक पहुँचता है। अंततः ये कण श्रोता के कर्ण-पटल (डायाफ्राम) में कम्पन उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार ध्वनि हवा में अनुदैर्ध्य तरंग-गति के रूप में संचरित होती है।

तरंग :- 

तरंग एक प्रकार का विक्षोभ है जो किसी माध्यम से होकर गति करता है तथा माध्यम के कण निकटवर्ती कणों में गति उत्पन्न कर देते हैं। माध्यम के कण स्वतः आगे नहीं बढ़ते हैं अपितु माध्यम के कणों के द्वारा केवल विक्षोभ आगे बढ़ जाता है।

संपीडन :-

जब कोई वस्तु आगे की ओर कंपन करती है, तो वह वायु के कणों को पास लाकर उच्च दाब का क्षेत्र बनाती है। इसे संपीडन (C) कहते हैं।

विरलन :-

जब वस्तु पीछे की ओर कंपन करती है, तो वायु के कण दूर हो जाते हैं और निम्न दाब का क्षेत्र बनता है। इसे विरलन (R) कहते हैं।

तरंगों के प्रकार :-

तरंगों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है:

🔸 (i) यान्त्रिक तरंगें :- वे तरंगें जिनके संचरण के लिए किसी भौतिक माध्यम (ठोस, द्रव या गैस) की आवश्यकता होती है यान्त्रिक तरंगें कहलाती हैं। जैसे-जल में उत्पन्न तरंगें, वायु में उत्पन्न तरंगें आदि।

🔸 (ii) विद्युत-चुम्बकीय तरंगें :- वे तरंगें जिनके संचरण के लिये किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती विद्युत-चुम्बकीय तरंगें कहलाती हैं। जैसे- रेडियो तरंगें, प्रकाश तरंगें आदि।

यांत्रिक तरंगें :-

ध्वनि तरंगें माध्यम के कणों की गति द्वारा अभिलक्षित की जाती हैं और यांत्रिक तरंगें कहलाती हैं।

  • ये दो प्रकार की होती हैं- 
    • (i) अनुदैर्ध्य तरंगे
    • (ii) अनुप्रस्थ तरंगें

(i) अनुदैर्ध्य तरंगें :- 

वे तरंगें जिसमें माध्यम के कणों का विस्थापन विक्षोभ के संचरण की दिशा के समांतर होता है, अनुदैर्ध्य तरंगें कहलाती है।

(ii) अनुप्रस्थ तरंगें :- 

वे तरंगें जिसमें माध्यम के कण अपनी माध्य स्थितियों पर तरंग के संचरण की दिशा के लम्बवत् गति करते हैं, अनुप्रस्थ तरंगें कहलाते हैं।

अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य तरंगों में अंतर :-

अनुप्रस्थ तरंगेंअनुदैर्ध्य तरंगें
वे तरंगें जिनमें माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् दोलन करते हैं, अनुप्रस्थ तरंगें कहलाती हैं।वे तरंगें जिनमें माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में आगे–पीछे (समानान्तर) दोलन करते हैं, अनुदैर्ध्य तरंगें कहलाती हैं।
पानी में पत्थर डालने पर या सितार के तार को छोड़ने पर अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं।वायु में उत्पन्न ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें हैं।
इनमें श्रृंग और गर्त उत्पन्न होते हैं।इनमें संपीडन और विरलन उत्पन्न होते हैं।
इनका संचरण किसी ठोस व द्रव की सतह पर ही हो सकता है।इनका संचरण ठोस, द्रव व गैस तीनों में हो सकता है।
किन्हीं दो समीपस्थ श्रृंगों या गर्तों के मध्य की दूरी तरंगदैर्घ्य (λ) कहलाती है।किन्हीं दो संपीडनों या विरलनों के मध्य की दूरी तरंगदैर्घ्य (λ) कहलाती है।

तरंगदैर्ध्य :-

दो क्रमागत संपीडनों (C) अथवा दो क्रमागत विरलनों (R) के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है। 

  • प्रतीक: तरंगदैर्ध्य को साधारणतः λ (ग्रीक अक्षर लैम्डा) से निरूपित किया जाता है।
  • SI मात्रक: इसका SI मात्रक मीटर (m) है।

ध्वनि की तरंगदैर्ध्य :-

वह न्यूनतम दूरी जिस पर किसी माध्यम का घनत्व या दाब आवर्ती रूप में अपने मान की पुनरावृत्ति करता है, ध्वनि की तरंगदैर्ध्य (λ) कहलाती है।

एक दोलन का पूरा होना :- 

घनत्व के अधिकतम मान से न्यूनतम मान तक परिवर्तन में और पुनः अधिकतम मान तक आने पर एक दोलन पूरा होता है।

ध्वनि तरंग के अभिलक्षण :-

किसी ध्वनि तरंग के निम्नलिखित अभिलक्षण होते हैं : तरंग दैर्ध्य, आवृत्ति, आयाम, आवर्तकाल तथा तरंग वेग। 

आवृति :- 

किसी निश्चित बिन्दु से एकांक समय (1 सेकण्ड) में होने वाली घटना की संख्या (दोहराव) को उस घटना की आवृत्ति कहा जाता है। 

  • सरल शब्दों में: एकांक समय में दोलनों की कुल संख्या ध्वनि तरंग की आवृत्ति कहलाती है।
  • उदाहरण: यदि आप किसी ढोल को एक सेकंड में 5 बार पीटते हैं, तो ढोल की आवृत्ति = 5 हर्ट्ज़ (Hz)।
  • प्रतीक: इसे सामान्यतया ν (ग्रीक अक्षर, न्यू) से प्रदर्शित किया जाता है। 
  • SI मात्रक: इसका SI मात्रक हर्ट्ज़ (hertz, प्रतीक Hz) है।

आवर्त काल :- 

दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों को किसी निश्चित बिंदु से गुजरने में लगे समय को तरंग का आवर्त काल कहते हैं।

  • सरल शब्दों में: माध्यम में घनत्व के एक सम्पूर्ण दोलन में लिया गया समय ध्वनि तरंग का आवर्तकाल कहा जाता है।
  • प्रतीक: इसे T अक्षर से निरूपित करते हैं। 
  • SI मात्रक: इसका SI मात्रक सेकंड (s) है।

तारत्व :- 

तारत्व वह ध्वनि अभिलक्षण है जिसके आधार पर हम किसी ध्वनि को तीक्ष्ण या मंद के रूप में सुनते हैं।

  • सरल शब्दों में: किसी उत्सर्जित ध्वनि की आवृत्ति को मस्तिष्क किस प्रकार अनुभव करता है, उसे तारत्व कहते हैं
  • उदाहरण: किसी आरकेस्ट्रा (वाद्यवृंद) में वायलिन तथा बाँसुरी एक ही समय बजाई जा सकती हैं और ध्वनि एक ही चाल से चलती है, परंतु उनकी आवृत्ति भिन्न होने के कारण उनका तारत्व अलग-अलग महसूस होता है।
  • महत्वपूर्ण नियम:
    • यदि किसी स्रोत का कंपन तेजी से होता है आवृत्ति उतनी ही अधिक होती है और उसका तारत्व भी अधिक होता है। 
    • यदि किसी स्रोत का कंपन धीमे गति से होता है आवृत्ति उतनी ही कम होती है और उसका तारत्व भी कम होता है। 
  • सरल शब्दों में:
    • जितनी अधिक आवृत्ति, उतना ही अधिक तारत्व होगा।
    • जितनी कम आवृत्ति, उतना ही कम तारत्व होगा।

आयाम :- 

किसी माध्यम में मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ को तरंग का आयाम कहते हैं।

  • प्रतीक: इसे साधारणतः अक्षर A से निरूपित किया जाता है।
  • SI मात्रक: ध्वनि के लिए इसका मात्रक दाब या घनत्व का मात्रक होगा।

ध्वनि की प्रबलता :- 

ध्वनि की प्रबलता या मृदुता मुख्यतः तरंग के आयाम पर निर्भर करती है।

उदाहरण: यदि हम किसी मेज़ पर धीरे से चोट मारें, तो हमें एक मृदु ध्वनि सुनाई देगी क्योंकि हम कम ऊर्जा की ध्वनि तरंग उत्पन्न करते हैं। यदि हम मेज़ पर जोर से चोट मारें तो हमें प्रबल ध्वनि सुनाई देगी।

  • धीरे से मेज़ पर चोट मारने पर → कम आयाम → मृदु ध्वनि
  • जोर से मेज़ पर चोट मारने पर → अधिक आयाम → प्रबल ध्वनि

टोन, स्वर और शोर :- 

  • 🔸 टोन : एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं।
  • 🔸 स्वर : अनेक आवृत्तियों के मिश्रण से उत्पन्न ध्वनि को स्वर कहते हैं।
  • 🔸 शोर: अनियमित आवृत्तियों की ध्वनि को शोर कहते हैं।

टोन और स्वर संगीतकारिता में सुखद ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जबकि शोर अप्रिय होता है।

तरंग वेग :-

तरंग के किसी बिंदु जैसे एक संपीडन या एक विरलन द्वारा एकांक समय में तय की गई दूरी को तरंग का वेग कहा जाता है।

  • 🔸 सूत्र:
    • \(वेग = \frac{दूरी}{समय}\)

यदि एक तरंग एक आवर्त काल (T) में अपनी एक तरंगदैर्घ्य (λ) जितनी दूरी तय करती है, तो —

  • वेग (v) = \(\frac{λ}{T}\)
  • चूँकि \( \frac{1}{T} = v \) (आवृत्ति),
  • इसलिए, v = λν
  • अर्थात्: तरंग का वेग = तरंगदैर्घ्य × आवृत्ति

निष्कर्ष: किसी एक ही माध्यम में और समान परिस्थितियों में ध्वनि का वेग सभी आवृत्तियों के लिए लगभग समान रहता है।

ध्वनि की तीव्रता :- 

किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकंड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं। 

🔸 नोट: यद्यपि हम कभी-कभी ‘प्रबलता’ तथा ‘तीव्रता’ शब्दों का पर्याय के रूप में उपयोग करते हैं लेकिन इनका अर्थ एक ही नहीं है।

विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल :-

ध्वनि एक निश्चित चाल से चलती है, जो माध्यम के गुणों पर निर्भर करती है।

ध्वनि की चाल प्रकाश की चाल से बहुत कम होती है।

उदाहरण: किसी पटाखे या तड़ित के गर्जन की चमक पहले दिखाई देती है, पर गर्जन बाद में सुनाई देती है।

  • 🔸 माध्यम के गुणों के आधार पर ध्वनि की चाल:
    • ठोस में → ध्वनि की चाल सबसे अधिक होती है।
    • द्रव में → ध्वनि की चाल मध्यम होती है।
    • गैस में → ध्वनि की चाल सबसे कम होती है।

🔸 कारण: ठोस में कण आपस में बहुत पास होते हैं, इसलिए कंपन जल्दी-जल्दी संचारित होते हैं।

ध्वनि की चाल पर ताप का प्रभाव :- 

किसी भी प्रकार के माध्यम में तापक्रम में वृद्धि होने पर ध्वनि की चाल (वेग) बढ़ जाती है तथा तापक्रम में कमी होने पर चाल में कमी हो जाती है। इसी कारण से हमें गर्मियों में सर्दियों की अपेक्षा साफ व स्पष्ट सुनाई देता है।

उदाहरणार्थ: 0°C ताप पर हवा में ध्वनि का वेग 331 ms और 22°C पर 344 m s¹ रहता है।

ध्वनि का परावर्तन :- 

ध्वनि का किसी ठोस या द्रव से टकराकर लौटना (परावर्तित होना) ध्वनि का परावर्तन कहलाता है।

🔸 सरल शब्दों में: किसी ठोस या द्रव से टकराकर ध्वनि उसी प्रकार वापस लौटती है जैसे कोई रबड़ की गेंद किसी दीवार से टकराकर वापस आती है।

  • 🔸 ध्वनि परावर्तन के नियम :-
    • आपतन कोण = परावर्तन कोण होता है।
    • आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब — ये तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं।
  • 🔸 परावर्तन की शर्तें :-
    • ध्वनि तरंगों के परावर्तन के लिए बड़े आकार की वस्तु चाहिए।
    • ध्वनि चमकीली सतह या खुरदरी दोनों स्थानों में परावर्तित हो सकती हैं।
    • छोटी वस्तुएँ या पतली सतहें ध्वनि को पर्याप्त रूप से परावर्तित नहीं कर पातीं।

प्रतिध्वनि :- 

जब कोई ध्वनि किसी परावर्तक सतह (जैसे — दीवार, पहाड़, इमारत आदि) से परावर्तित होकर कुछ समय बाद वापस सुनाई देती है, तो उस परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं।

स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने की शर्तें :-

मूल ध्वनि और परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 सेकंड का अंतराल होना चाहिए, क्योंकि हमारे मस्तिष्क में ध्वनि की संवेदना लगभग 0.1 सेकंड तक रहती है।

यदि हम किसी दिए हुए ताप, जैसे 22 C पर ध्वनि की चाल 344 m/s मान लें तो ध्वनि को अवरोधक तक जाने तथा परावर्तन के पश्चात् वापस श्रोता तक 0.1s के पश्चात् पहुँचना चाहिए। अतः श्रोता से परावर्तक सतह तक जाने तथा वापस आने में ध्वनि द्वारा तय की गई कुल दूरी कम से कम (344 m/s) x 0.1 s = 34.4 m होनी चाहिए।

🔹 अतः स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए अवरोधक की ध्वनि स्रोत से न्यूनतम दूरी ध्वनि द्वारा तय की गई कुल दूरी की आधी अर्थात् 17.2 m अवश्य होनी चाहिए।

  • 🔸 नोट: 
    • ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल बढ़ जाती है, इसलिए आवश्यक दूरी भी थोड़ी बदल जाती है।
    • ध्वनि के बारंबार परावर्तन से हमें कई प्रतिध्वनियाँ सुनाई दे सकती हैं। उदाहरण :- बादलों की गर्जना इसका उदाहरण है, क्योंकि ध्वनि कई परावर्तक सतहों (बादल, भूमि आदि) से टकराकर बार-बार लौटती है।

अनुरणन :- 

जब किसी बड़े हॉल या सभा भवन में उत्पन्न ध्वनि दीवारों, छतों आदि से बार-बार परावर्तित होकर कुछ समय तक बनी रहती है, तब इस घटना को अनुरणन कहा जाता है।

🔸 अनुरणन की समस्या: किसी सभा भवन या बड़े हॉल में अत्यधिक अनुरणन ध्वनि की स्पष्टता को कम कर देता है। यह अत्यंत अवांछनीय है क्योंकि वक्ता की आवाज़ अस्पष्ट हो जाती है।

🔸 अनुरणन कम करने के उपाय: हॉल की छत और दीवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थ लगाना, जैसे: संपीडित फाइबर बोर्ड, खुरदरे प्लास्टर, भारी पर्दे एवं सीटों के लिए ऐसे पदार्थ चुनना जो ध्वनि अवशोषित कर सकें।

श्रव्यता का परिसर :- 

मनुष्यों की श्रव्यता: मनुष्य लगभग 20 Hz से 20,000 Hz (20 kHz) तक की ध्वनियों को सुन सकते हैं। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और कुछ जानवर जैसे कुत्ते 25 kHz तक सुन सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ उच्च आवृत्ति की ध्वनियों को सुनने की क्षमता कम हो जाती है।

अवश्रव्य ध्वनि :- 

20 H2 से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं।

यदि हम अवश्रव्य ध्वनि को सुन पाते तो हम किसी लोलक के कंपनों को उसी प्रकार सुन पाते जैसे कि हम किसी मक्खी पंखों के कंपनों को सुन पाते हैं।

  • उदाहरण:
    • गैंडा: राइनोसिरस (गैंडा) 5Hz तक की आवृत्ति की अवश्रव्य ध्वनि का उपयोग करके संपर्क स्थापित करता है। 
    • हाथी और हेल: हेल तथा हाथी अवश्रव्य ध्वनि परिसर की ध्वनियाँ उत्पन्न करते हैं।

पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि :- 

20 kHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं। पराध्वनियाँ उच्च आवृत्ति की तरंगें हैं। पराध्वनियाँ अवरोधों की उपस्थिति में भी एक निश्चित पथ पर गमन कर सकती हैं।

उदाहरण: डॉलफिन, चमगादड़ और पॉरपॉइज जैसे जंतु पराध्वनि उत्पन्न करते हैं।

श्रवण सहायक युक्ति (श्रवण सहायक यंत्र) :- 

🔸 उद्देश्य: जिन लोगों को कम सुनाई देता है, उन्हें इस यंत्र की आवश्यकता होती है। यह बैट्री से चलने वाली एक इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है। 

🔸 संरचना: इसमें एक छोटा-सा माइक्रोफ़ोन, एक एंप्लीफायर व स्पीकर होता है। 

🔸 कार्य: जब ध्वनि माइक्रोफ़ोन पर पड़ती है तो वह ध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर देता है। एंप्लीफायर इन विद्युत संकेतों को प्रवर्धित कर देता है। ये संकेत स्पीकर द्वारा ध्वनि की तरंगों में परिवर्तित कर दिए जाते हैं। ये ध्वनि तरंगें कान के डायफ्राम पर आपतित होती हैं तथा व्यक्ति को ध्वनि साफ़ सुनाई देती है।

पराध्वनि के अनुप्रयोग :- 

उद्योगों तथा चिकित्सा के क्षेत्र में पराध्वनियों का विस्तृत रूप से उपयोग किया जाता है।

🔸 1. उद्योगों में उपयोग

  • साफ़ करने में: कठिनाई वाली वस्तुएँ जैसे: जैसे सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव को साफ करने में उपयोग किया जाता है।
    • प्रकिया: वस्तु को साफ करने वाले मार्जन विलयन में डाला जाता है और इस विलयन में पराध्वनि तरंगें भेजी जाती हैं। पराध्वनि तरंगें धूल और गंदगी को अलग कर देती हैं।
  • धातु में दोष पता करने में: पराध्वनि का उपयोग धातु के ब्लॉकों (पिंडों) में दरारों तथा अन्य दोषों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।
    • प्रकिया: पराध्वनि तरंगें धातु के ब्लॉक से गुज़रती हैं। थोड़ा-सा भी दोष होता है, तो पराध्वनि तरंगें परावर्तित हो जाती हैं जो दोष की उपस्थिति को दर्शाती है।

🔸 नोट: साधारण ध्वनि इस काम के लिए उपयोगी नहीं, क्योंकि उसकी तरंगदैर्ध्य अधिक होती है।

🔸 2. चिकित्सा में उपयोग

इकोकार्डियोग्राफी :- पराध्वनि तरंगों को हृदय के विभिन्न भागों से परावर्तित करा कर हृदय का प्रतिबिंब बनाया जाता है। इस तकनीक को “इकोकार्डियोग्राफ़ी” (ECG) कहा जाता है।

पराध्वनि संसूचक: इस संसूचक से रोगी के अंगों; जैसे यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे आदि का प्रतिबिंब प्राप्त किया जा सकता है। यह संसूचक को शरीर की असमान्यताएँ, जैसे पित्ताशय तथा गुर्दे में पथरी तथा विभिन्न अंगों में अर्बुद (ट्यूमर) का पता लगाने में सहायता करता है।

अल्ट्रासोनोग्राफी :- इस तकनीक में पराध्वनि तरंगें शरीर के ऊतकों में गमन करती हैं तथा उस स्थान से परावर्तित हो जाती हैं जहाँ ऊतक के घनत्व में परिवर्तन होता है। इसके पश्चात् इन तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित किया जाता है जिससे कि उस अंग का प्रतिबिंब बना लिया जाए। इन प्रतिबिंबों को मॉनीटर पर प्रदर्शित किया जाता है या फिल्म पर मुद्रित कर लिया जाता है। इस तकनीक को अल्ट्रासोनोग्राफी कहते हैं।

उपयोग: अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग गर्भ काल में भ्रूण की जाँच तथा उसके जन्मजात दोषों तथा उसकी वृद्धि की अनियमितताओं का पता लगाने में किया जाता है।

गुर्दे की पथरी तोड़ना :- पराध्वनि का उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए भी किया जा सकता है। ये कण बाद में मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं।

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