कक्षा 12 भूगोल अध्याय 3 प्रश्न उत्तर: भूसंसाधन तथा कृषि प्रश्न उत्तर
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | भूगोल |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | भूसंसाधन तथा कृषि ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
क्या आप Geography Class 12 chapter 3 question answer in hindi ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से भूसंसाधन तथा कृषि प्रश्न उत्तर Download कर सकते हैं।
प्रश्न 1: नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए ।
प्रश्न 1.(i): निम्न में से कौन-सा भू-उपयोग संवर्ग नहीं है?
(क) परती भूमि
(ख) सीमांत भूमि
(ग) निवल बोया क्षेत्र
(घ) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि
उत्तर 1.(i): (ख) सीमांत भूमि
प्रश्न 1.(ii): पिछले 40 वर्षों में वनों का अनुपात बढ़ने का निम्न में से कौन-सा कारण है?
(क) वनीकरण के विस्तृत व सक्षम प्रयास
(ख) सामुदायिक वनों के अधीन क्षेत्र में वृद्धि
(ग) वन बढ़ोतरी हेतु निर्धारित अधिसूचित क्षेत्र में वृद्धि
(घ) वन क्षेत्र प्रबंधन में लोगों की बेहतर भागीदारी
उत्तर 1.(ii): (क) वनीकरण के विस्तृत व सक्षम प्रयास
प्रश्न 1.(iii): निम्न में से कौन-सा सिंचित क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण का मुख्य प्रकार है?
(क) अवनालिका अपरदन
(ख) वायु अपरदन
(ग) मृदा लवणता
(घ) भूमि पर सिल्ट का जमाव
उत्तर 1.(iii): (ग) मृदा लवणता
प्रश्न 1.(iv): शुष्क कृषि में निम्न में से कौन-सी फसल नहीं बोई जाती?
(क) रागी
(ख) ज्वार
(ग) मूंगफली
(घ) गन्ना
उत्तर 1.(iv): (घ) गन्ना
प्रश्न 1.(v): निम्न में से कौन से देशों में गेहूं व चावल की अधिक उत्पादकता की किस्में विकसित की गई थीं?
(क) जापान तथा आस्ट्रेलिया
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जापान
(ग) मैक्सिको तथा फिलीपींस
(घ) मैक्सिको तथा सिंगापुर
उत्तर 1.(v): (ग) मैक्सिको तथा फिलीपींस।
प्रश्न 2: निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
प्रश्न 2.(i): बंजर भूमि तथा कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर 2.(i): बंजर भूमि और कृषियोग्य व्यर्थ भूमि दोनों ही भूमि की प्रकारें हैं, लेकिन इन दोनों में अंतर है।
बंजर भूमि वह भूमि होती है जो उपजाऊ नहीं होती, यानी इसमें प्राकृतिक संसाधनों की कमी होती है और इसे खेती के लिए उपयोगी नहीं माना जाता। यह भूमि अक्सर सूखी, क्षरणग्रस्त या अत्यधिक खारे पानी वाली हो सकती है।
कृषियोग्य व्यर्थ भूमि वह भूमि होती है जो तकनीकी या आर्थिक कारणों से खेती के लिए उपयोग नहीं की जा रही है, लेकिन यह भूमि कृषि के लिए उपयुक्त है। इसमें उपजाऊ मिट्टी होती है, परंतु कोई विशेष कारण, जैसे सिंचाई की कमी या अन्य संसाधनों का अभाव, इसे व्यर्थ बना देते हैं।
इस प्रकार, बंजर भूमि में प्राकृतिक समस्याएँ होती हैं, जबकि कृषियोग्य व्यर्थ भूमि में संभावनाएँ होते हुए भी बाहरी कारणों से उपयोग नहीं की जाती।
प्रश्न 2.(ii): निवल बोया गया क्षेत्र तथा सकल बोया गया क्षेत्र में अंतर बताएँ।
उत्तर 2.(ii): निवल बोया गया क्षेत्र वह क्षेत्र है, जिसमें फसलें बोई जाती हैं, और इसमें केवल एक बार बोई जाने वाली ज़मीन को ही शामिल किया जाता है। इसका मतलब है कि यह क्षेत्र उन खेतों का माप है जो वास्तव में खेती के लिए उपयोग किए गए हैं, जिसमें द्वितीयक फसलें भी शामिल नहीं होतीं।
वहीं, सकल बोया गया क्षेत्र वह क्षेत्र है, जिसमें एक वर्ष में एक से अधिक बार फसलें बोई जाती हैं। इसमें उन सभी खेतों का माप शामिल होता है, जहां एक या अधिक फसलें उगाई जाती हैं, यानी यह निवल बोया गए क्षेत्र से अधिक हो सकता है।
इस प्रकार, मुख्य अंतर यह है कि सकल बोया गया क्षेत्र में वही ज़मीन शामिल होती है जिस पर एक से अधिक फसलें बोई जाती हैं, जबकि निवल बोया गया क्षेत्र में केवल एक ही फसल बोई जाती है।
प्रश्न 2.(iii): भारत जैसे देश में गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर 2.(iii): भारत जैसे देश में गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। कृषि उत्पादकता को बढ़ाना, किसानों की आय में सुधार करना, और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। गहन कृषि नीति से बेहतर सिंचाई व्यवस्था, उन्नत बीजों का प्रयोग, तकनीकी नवाचार और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाना और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 2.(iv): शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में क्या अंतर है?
उत्तर 2.(iv): शुष्क कृषि और आर्द्र कृषि दो भिन्न कृषि प्रणालियाँ हैं, जो जलवायु और वर्षा की मात्रा पर आधारित होती हैं।
शुष्क कृषि में वर्षा की मात्रा कम होती है, और जल संसाधनों की कमी रहती है। इस प्रकार की कृषि में ऐसे फसलों का उत्पादन किया जाता है जो कम पानी में उग सकें, जैसे बाजरा, मूंग, और तिल।
आर्द्र कृषि में अधिक वर्षा होती है, जिससे मिट्टी में पर्याप्त नमी रहती है। यहां पर अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलें जैसे चावल, गेंहू, और गन्ना उगाई जाती हैं।
इस प्रकार, शुष्क कृषि में जल की कमी होती है, जबकि आर्द्र कृषि में जल की प्रचुरता होती है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
प्रश्न 3.(i): भारत में भू-संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी हैं? उनका निदान कैसे किया जाए?
उत्तर 3.(i): भारत में भू-संसाधनों का निम्नीकरण एक गंभीर समस्या है जोकि कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों के कारण उत्पन्न हुई है। भू-संसाधनों का निम्नीकरण एक गंभीर समस्या इसलिए है क्योंकि इससे मृदा की उर्वरता क्षीण हो गई है। यह समस्या विशेषकर सिंचित क्षेत्रों में अधिक भयावह है जिसके निम्नलिखित कारण हैं
- कृषिभूमि का एक बड़ा भाग जलाक्रांतता, लवणता तथा मृदा क्षारता के कारण बंजर हो चुका है।
- अब तक लगभग 80 लाख हेक्टेयर भूमि लवणता व क्षारता से कुप्रभावित हो चुकी है तथा 70 लाख हेक्टेयर भूमि जलाक्रांतता के कारण अपनी उर्वरता खो चुकी है।
- कीटनाशकों, रसायनों के व रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मृदा परिच्छेदिका में जहरीले तत्त्वों का सांद्रण बढ़ा है।
- सिंचित क्षेत्रों के फसल प्रतिरूप में दलहन का विस्थापन हो चुका है तथा वहाँ बहु-फसलीकरण में बढ़ोतरी से परती भूमि का क्षेत्र कम हुआ है जिससे भूमि में पुनः उर्वरता पाने की प्राकृतिक प्रक्रिया अवरुद्ध हुई है।
- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र क्षेत्रों में जल द्वारा मृदा अपन तथा शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वायु अपरदन एक आम समस्या है।
ऊपर वर्णित सभी समस्याओं का निदान हम उपयुक्त प्रौद्योगिकी व तकनीक विकसित करके कर सकते हैं। साथ ही समस्याओं को जन्म देने वाले क्रियाकलापों को नियंत्रित करना भी बहुत जरूरी है।
प्रश्न 3.(ii): भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि विकास की महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर 3.(ii): भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कृषि विकास की प्रमुख नीतियाँ निम्नलिखित थीं:
- खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान: स्वतंत्रता के बाद, सरकार ने खाद्यान्नों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई उपायों को लागू किया। व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यान्न फसलों को बढ़ावा दिया गया, कृषि गहनता बढ़ाई गई और कृषि योग्य बंजर भूमि को उपयोग में लाया गया।
- गहन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) और गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP): 1950 के दशक के अंत में कृषि उत्पादन में स्थिरता को देखते हुए, इन कार्यक्रमों को शुरू किया गया ताकि कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सके।
- हरित क्रांति: 1960 के दशक में अकालों के कारण अन्न संकट को देखते हुए, उच्च उत्पादकता वाली किस्मों (HYV) का आयात किया गया। मैक्सिको से गेहूँ और फिलीपींस से चावल की उन्नत किस्मों को मंगवाया गया। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और गुजरात में इन किस्मों को अपनाया गया, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
- कृषि जलवायु नियोजन: 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक संतुलन लाने के लिए योजना आयोग ने कृषि जलवायु नियोजन की शुरुआत की, जिसमें कृषि, पशुपालन और जल कृषि के विकास पर बल दिया गया।
- उदारीकरण और बाजार अर्थव्यवस्था: 1990 के दशक में उदारीकरण और उन्मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की नीतियाँ लागू की गईं, जिससे भारतीय कृषि में उत्पादन वृद्धि के बावजूद ग्रामीण अवसंरचना के विकास में कमी आई और फसलों के समर्थन मूल्यों में कटौती की गई।