कक्षा 12 भूगोल अध्याय 6 प्रश्न उत्तर: भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास प्रश्न उत्तर
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | भूगोल |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए ।
प्रश्न 1.(i): प्रदेशीय नियोजन का संबंध है-
(क) आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का विकास
(ख) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(ग) परिवहन जल तंत्र में क्षेत्रीय अंतर
(घ) ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
उत्तर 1.(i): (ख) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
प्रश्न 1.(ii): आई०टी०डी०पी० निम्नलिखित में से किस संदर्भ में वर्णित है?
(क) समन्वित पर्यटन विकास प्रोग्राम
(ख) समन्वित यात्रा विकास प्रोग्राम
(ग) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(घ) समन्वित परिवहन विकास प्रोग्राम
उत्तर 1.(ii): (ग) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
प्रश्न 1.(iii): इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है
(क) कृषि विकास
(ख) पारितंत्र-विकास
(ग) परिवहन विकास
(घ) भूमि उपनिवेशन
उत्तर 1.(iii): (क) कृषि विकास
प्रश्न 2: निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
प्रश्न 2.(i): भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या हैं?
उत्तर 2.(i): भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के लागू होने से प्राप्त सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार तथा बाल-विवाह में कमी शामिल है। इस क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88% से बढ़कर 2001 में 42.83% हो गई थी।
प्रश्न 2.(ii): सतत पोषणीय विकास की संकल्पना को परिभाषित करें।
उत्तर 2.(ii): सतत पोषणीय विकास की संकल्पना ऐसी विकास प्रक्रिया है, जो वर्तमान की आवश्यकताओं को इस प्रकार पूरा करती है कि भविष्य की पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता प्रभावित न हो। यह प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने पर बल देती है। इसका उद्देश्य आर्थिक प्रगति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता सुनिश्चित करना है।
प्रश्न 2.(iii): इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
उत्तर 2.(iii): यह नहर इस कमान क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करेगी। नहर सिंचाई से इस शुष्क क्षेत्र की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और सामाजिक दशाओं में परिवर्तन होगा। सिंचाई से कृषि अर्थव्यवस्था में सफलतापूर्वक फ़सलें उगाई जाएंगी। जैसे-गेहूँ, कपास, मूंगफली और चावल की कृषि होगी।
प्रश्न 3: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
प्रश्न 3.(i): सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायक है?
उत्तर 3.(i): सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP) की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) के दौरान सूखा संभावी क्षेत्रों में रोजगार सृजन और सूखे के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से की गई थी। यह कार्यक्रम इन क्षेत्रों में उत्पादन के साधनों को बढ़ाने और लोगों की आजीविका में सुधार लाने का प्रयास करता है। बाद में, इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास, वनीकरण, चरागाह विकास, तथा ग्रामीण आधारभूत संरचना जैसे विद्युत, सड़कें, बाज़ार और ऋण सुविधाओं पर जोर दिया गया।
शुष्क भूमि कृषि विकास में योगदान यह कार्यक्रम शुष्क भूमि कृषि विकास में निम्नलिखित तरीकों से सहायक है:
- जल संरक्षण और प्रबंधन: जल संभर विकास कार्यक्रम के माध्यम से जल संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।
- मृदा संरक्षण: मिट्टी के कटाव को रोकने और उसकी उर्वरता बनाए रखने के लिए भूमि विकास कार्य किए जाते हैं।
- वनीकरण और चरागाह विकास: हरित क्षेत्र बढ़ाने और पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराने से कृषि और पशुपालन को प्रोत्साहन मिलता है।
- पारिस्थितिकी संतुलन: जल, मिट्टी, पौधों, मानव और पशु जनसंख्या के बीच संतुलन स्थापित करने के प्रयास होते हैं।
- सिंचाई सुविधाओं का विकास: सूखा संभावी क्षेत्रों में सिंचाई परियोजनाएं फसलों की स्थिरता और उत्पादकता को बढ़ाती हैं।
राजस्थान, गुजरात, मराठवाड़ा, रायलसीमा और कर्नाटक पठार जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में यह कार्यक्रम शुष्क भूमि कृषि की क्षमता को बढ़ाने और सूखे के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 3.(ii): इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर 3.(ii): इंदिरा गांधी नहर परियोजना ने राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में हरित क्रांति की संभावना बढ़ाई है। हालांकि, इस क्षेत्र में पर्यावरणीय और संसाधन-आधारित चुनौतियाँ भी उभरी हैं। सतत् पोषणीय विकास को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- जल प्रबंधन: जल का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कठोर जल प्रबंधन नीति लागू की जानी चाहिए। चरण-1 में फसल संरक्षण सिंचाई और चरण-2 में चरागाह विकास तथा कम पानी वाली फसलों के लिए विस्तारित सिंचाई प्रणाली अपनाई जाए।
- बागवानी कृषि: जल सघन फसलों की जगह खट्टे फलों और अन्य कम पानी मांगने वाली बागवानी फसलों को प्राथमिकता दी जाए। यह न केवल जल बचाएगा, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ाएगा।
- जल वितरण सुधार: जल वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए नालों को पक्का करना, भूमि समतलन, और “वारबंदी” पद्धति का पालन किया जाए। इससे जल का समान वितरण होगा और बहते जल की बर्बादी रोकी जा सकेगी।
- भूमि सुधार: जलक्रांतता और लवणता से प्रभावित भूमि का पुनः सुधार किया जाए। बेहतर मृदा स्वास्थ्य के लिए जैविक तकनीकों और प्राकृतिक उपायों का उपयोग किया जाए।
- वनीकरण और चरागाह विकास: पर्यावरणीय संतुलन के लिए वनीकरण, वृक्ष संरक्षण, और चरागाह विकास को प्राथमिकता दी जाए। चरण-2 के भंगुर पर्यावरण में पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लिए यह आवश्यक है।
- कृषि में सहायक उपाय: गरीब किसानों को वित्तीय और संस्थागत सहायता प्रदान की जाए। इसके लिए सहकारी समितियों और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया जाए।
- आर्थिक विविधीकरण: केवल कृषि और पशुपालन पर निर्भर रहने के बजाय, इस क्षेत्र में कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प, और सेवा क्षेत्रों का विकास किया जाए। ग्रामीण बाजार और विपणन केंद्रों को सुदृढ़ करके आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए।