Class 12 political science book 2 chapter 6 notes in hindi: लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Notes
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Notes |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट notes, Class 12 political science book 2 chapter 6 notes in hindi इस अध्याय मे हम जय प्रकाश नारायण और समग्र क्रान्ति , राम मनोहर लोहिया और समाजवाद , पंडित दीन दयाल उपाध्याय और एकात्म मानववाद , राष्ट्रीय आपातकाल , लोकतान्त्रिक अभ्युत्थान – वयस्क , पिछड़े और युवाओं की भागीदारी के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ( जेपी ) ( 1902-1979 )
🔹 युवावस्था में मार्क्सवादी थे । कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी संस्थापक एवं महासचिव थे । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक रहे एवं नेहरू के उत्तराधिकारी के रूप में देखे गए । इन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार किया । 1955 के बाद सक्रिय राजनीति छोड़ी ।
🔹 गाँधीवादी बनने के बाद भूदान आंदोलन में सक्रिय रहे नगा विद्रोहियों से सुलह की बातचीत की एवं कश्मीर में शांति प्रयास किए । चंबल के डकैतों से आत्मसमर्पण कराया एवं बिहार आंदोलन के नेता रहे । आपातकाल के विरोध के प्रतीक बन गए थे ; जनता पार्टी के गठन के प्रेरणास्त्रोत रहे ।
जय प्रकाश नारायण के प्रमुख योगदान : –
🔹 जय प्रकाश नारायण अपने तीन प्रमुख योगदानों के लिए जाने जाते हैं : –
- भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष ,
- सामुदायिक समाजवाद का सिद्धांत तथा
- ‘ समग्र क्रांति ‘ के प्रवर्तक ।
🔸 भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष : – स्वातंत्र्योत्तर भारत में जय प्रकाश नारायण ऐसे प्रथम नेता थे जिन्होंने मुख्यतः गुजरात और बिहार में युवा सहभागिता द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक वृहत अभियान आरंभ किया । उन्होंने भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोकपाल संस्था का पक्ष समर्थन किया ।
🔸 सामुदायिक समाजवाद का सिद्धांत : – सामुदायिक समाजवाद का उनका सिद्धांत समुदाय , क्षेत्र एवं राष्ट्र के त्रि – स्तरीय रूप में एक यथार्थ संघ का उदाहरण उदृत करते हुए भारत को समुदायों के एक समाज के रूप में दृष्टिगत करता है । उपरोक्त सिद्धांतों पर आधरित अपने ‘ समग्र आंदोलन ‘ के माध्यम से जय प्रकाश नारायण व्यक्ति , समाज तथा राज्य के रूपांतरण का प्रतिपादन करते हैं ।
🔸 समग्र क्रांति : – समग्र क्रांति के लिए उनका आह्वान नैतिक , सांस्कृतिक , आर्थिक , राजनीतिक तथा पारिस्थितिकीय रूपांतरण के समावेशन की पहल है । उनका राजनीतिक रूपांतरण लोकतांत्रिक राजनीति में प्रतिनिधियों को वापिस बुलाने के अधिकार , ग्राम्य / मौहल्ला समितियों के महत्व तथा देश की स्वच्छ राजनीति में ऊपर के लोगों / विशिष्ट वर्गों को राजनीतिक संघर्ष में सम्मिलित होने का आह्वान है । जय प्रकाश नारायण के अनुसार इस रूपांतरण का मूल तत्व ‘ व्यक्ति है जो भारत में परिर्वतन का प्रमुख द्योतक है ।
राम मनोहर लोहिया :-
जन्म | 23 march, 1910 |
मृत्यु | 12 October, 1967 |
विचारधारा | समाजवाद, समाजवादी चिंतक, गांधीवाद |
‘ राम मनोहर लोहिया तथा लोकतांत्रिक समाजवाद ‘ : –
🔹 राम मनोहर लोहिया भारत में समाजवाद के प्रमुख प्रतिपादकों में से एक प्रतिपादक रहें हैं । समाजवाद को लोकतंत्र से सम्बद्ध करते हुए उन्होंने ‘ लोकतांत्रिक समाजवाद ‘ के विचार का प्रतिपादन किया । लोहिया भारतीय समाज में पूंजीवाद तथा साम्यवाद दोनों को ही समान रूप से अप्रसांगिक मानते थे ।
🔸 राम मनोहर लोहिया के लोकतांत्रिक समाजवाद के दो सिद्धांत : –
🔹 उनके लोकतांत्रिक समाजवाद के दो सिद्धांत थे भोजन एवं शरण के रूप में आर्थिक उद्देश्य तथा लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता के रूप में गैर – आर्थिक उद्देश्य ।
🔹 सकारात्मक कार्यवाही को प्रधानता देते हुए लोहिया का मत है कि यह सिद्धांत न केवल अशक्त लोगों के लिए होना चाहिए अपितु महिलाओं और गैर – धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए ।
🔸 राम मनोहर लोहिया के राजनीति तथा समाजवाद के चार स्तम्भ : –
🔹 लोहिया ने चौबुर्ज राजनीति का प्रतिपादन किया जिसमें उन्होंने राजनीति तथा समाजवाद के चार स्तम्भों का वर्णन किया जो परस्पर एक दूसरे से सम्बद्ध हैं । ये चार स्तम्भ हैं :-
- केन्द्र ,
- क्षेत्र ,
- जिला एवं
- ग्राम्य ।
🔸 राम मनोहर लोहिया समाजवादी दल : –
🔹 लोकतांत्रिक समाजवाद तथा चौबुर्ज राजनीति के सिद्धांतों पर आधरित लोहिया ‘ समाजवादी दल ‘ ( Party of Socialism ) का पक्ष समर्थन करते हैं जो सभी दलों के विलय का एक प्रयास है । लोहिया के अनुसार समाजवाद दल तीन प्रतीकों पर आधरित होगा – कुदाल ( प्रयास का प्रतीक ) , मत ( मताधिकार का प्रतीक ) , बंधनग्रह ( समपर्ण का प्रतीक ) ।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय :-
जन्म | 25 sep, 1916 |
मृत्यु | 11 feb, 1968 |
पेशा | दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ |
राजनीतिक दल | यह भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े । |
‘ दीन दयाल उपाध्याय तथा एकात्म मानवावाद ‘ : –
🔹 पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक दार्शनिक , समाजशास्त्री , अर्थशास्त्री तथा राजनीतिज्ञ थे । उनके प्रदेश को ‘ एकात्म मानववाद ‘ कहा जाता हैं जो एक ‘ स्वदेशीय सामाजिक – आर्थिक प्रमिमान ‘ का प्रतिपादन है जहाँ मानव विकास का केन्द्र होता है ।
🔹 व्यक्ति तथा समाज की आवश्यकताओं के मध्य समन्वय स्थापित करते हुए प्रत्येक मानव के लिए एक गरिमामयी जीवन सुनिश्चित करना एकात्म मानववाद का उद्देश्य है ।
🔹 पंडित दीनदयाल उपाध्याय पश्चिमी ‘ पूंजीवादी व्यक्तिवाद ‘ तथा ‘ मार्क्सवादी समाजवाद ‘ दोनों के विरोधी थे । उनके अनुसार पूंजीवादी तथा समाजवादी विचारधराएँ केवल मानव शरीर और मस्तिष्क की आवश्यकताओं पर ही बल देती हैं , अतः ये भौतिकवादी उद्देश्य पर आधरित हैं जबकि मानव के समग्र विकास के लिए आध्यात्मिक विकास भी उतना ही आवश्यक है जो पूंजीवाद और समाजवाद दोनों में अनुपस्थित है । आंतरिक चेतना , पवित्र मानवीय आत्मा पर आधरित अपने दर्शन जिसे चित्ति कहते हैं , दीनदयाल उपाध्याय एक वर्गविहीन , जातिविहीन तथा संघर्षमुक्त सामाजिक व्यवस्था की परिकल्पना करते हैं ।
एकात्म मानववाद : –
🔹 एकात्म मानववाद प्राकृतिक संसाधनों के समपोषित उपभोग का समर्थन करता है जिससे इन संसाधनों की पुर्नः पूर्ति हो सके । यह न केवल राजनीतिक अपितु आर्थिक तथा सामाजिक लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता को भी बढाता है । चूंकि यह सिद्धांत विविधता का संवर्धन करता है , भारत जैसे विविध राष्ट्र के लिए यह श्रेष्ठकर है ।
एकात्म मानववाद का दर्शन सिद्धांत : –
🔹 एकात्म मानववाद का दर्शन निम्न तीन सिद्धांत पर आधरित है :-
- समग्रता की प्रधनता
- धर्म की सर्वोच्चता
- समाज की स्वायतता
1971 के बाद कि स्थिति : –
- 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने ‘ गरीबी हटाओ ‘ का नारा दिया था ।
- 1971-72 के बाद के सालों में भी देश की सामाजिक – आर्थिक दशा में खास सुधार नहीं हुआ ।
- बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था ।
- लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गए थे ।
- इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा ।
- युद्ध के बाद अमरीका ने भारत को हर तरह की सहायता देना बंद कर दिया ।
- इसी अवधि में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई ।
- इससे विभिन्न चीज़ों की कीमतें भी तेज़ी से बढ़ीं ।
- 1973 में चीज़ों की कीमतों में 23 फीसदी और 1974 में 30 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ ।
- 1972-73 के वर्ष में मानसून असफल रहा । इससे कृषि की पैदावार में भारी गिरावट आई ।
1971 के बाद कि राजनीति : –
🔹 25 जून 1975 से 18 माह तक अनुच्छेद 352 के प्रावधान आंतरिक अशांति के तहत भारत में आपातकाल लागू रहा । आपातकाल में देश की अखंडता व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रखते हुए समस्त शक्तियाँ केंद्रीय सरकार को प्राप्त हो जाती है ।
राष्ट्रीय आपातकाल : –
🔹 25 जून 1975 से 18 माह तक अनुच्छेद 352 के प्रावधान आंतरिक अशांति के तहत भारत में आपातकाल लागू रहा । आपातकाल में देश की अखंडता व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रखते हुए समस्त शक्तियाँ केंद्रीय सरकार को प्राप्त हो जाती है ।
वे परिस्थितियॉ जिनके कारण 1975 में आपातकालीन स्थिति की घोषणा हुई : –
- ‘ गरीबी हटाओ ‘ का नारा अपना प्रभाव खोता जा रहा था ।
- 1972-73 में मानसून के विफल होने से कृषि की पैदावार में भारी गिरावट ।
- 1973 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमते बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा ।
- रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल ।
- गुजरात और बिहार के छात्र आंदोलन ।
- श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया था ।
- सरकार की गलत नीतियों के कारण जनता में आक्रोश पनपा ।
आपातकाल के प्रमुख कारक : –
- आर्थिक कारक
- छात्र आंदोलन
- नक्सलवादी आंदोलन
- रेल हड़ताल
- न्यायपालिका के संघर्ष
आर्थिक कारक : –
- गरीबी हटाओं का नारा कुछ खास नहीं कर पाया था ।
- बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ बड़ा था ।
- अमेरिका ने भारत को हर तरह की सहायता देनी बंद कर दी थी ।
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों के बढ़ने से विभिन्न चीजों की कीमतें बहुत बढ़ गई थी ।
- औद्योगिक विकास की दर बहुत कम हो गयी थी ।
- शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई थी ।
- सरकार ने खर्चे कम करने के लिए सरकारी कर्मचारियों का वेतन रोक दिया था ।
छात्र आंदोलन : –
🔹 गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न , खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतें तथा उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जनवरी 1974 में आंदोलन शुरू किया ।
🔹 मार्च 1974 में बढ़ती हुई कीमतों , खाद्यान्न के अभाव , बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया ।
🔸 जय प्रकाश नारायण की भूमिका :-
🔹 जय प्रकाश नारायण ( जेपी ) ने इस आंदोलन का नेतृत्व दो शर्तो पर स्वीकार किया ।
- ( क ) आंदोलन अहिंसक रहेगा ।
- ( ख ) यह बिहार तक सीमित नहीं रहेगा , अतिपु राष्ट्रव्यापी होगा ।
🔹 जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति द्वारा सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की बात की थी ।
🔹 जय प्रकाश नारायण ने भारतीय जनसंघ , कांग्रेस ( ओ ) , भारतीय लोकदल , सोशलिस्ट पार्टी जैसे गैर – कांग्रेसी दलों के समर्थन से ‘ संसद – मार्च ‘ का नेतृत्व किया था । इसे “ संपूर्ण क्रांति “ के नाम से जाना जाता है
🔹 इंदिरा गांधी ने इस आंदोलन को अपने प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित बताया था ।
रेल हड़ताल : –
🔹 जार्ज फर्नाडिस के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय समिति ने रेलवे कर्मचारियों की सेवा तथा बोनस आदि से जुड़ी माँगो को लेकर 1974 में हड़ताल की थी ।
🔹 सरकार मे हड़ताल को असंवैधानिक घोषित किया और उनकी माँगे स्वीकार नहीं की ।
🔹 इससे मजदूरों , रेलवे कर्मचारियों , आम आदमी और व्यापारियों में सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा हुआ ।
न्यायपालिका के संघर्ष : –
🔹 सरकार के मौलिक अधिकारों में कटौती , संपत्ति के अधिकार में कॉट – छॉट और नीति – निर्देशक सिद्धांतो को मौलिक अधिकारों पर ज्यादा शक्ति देना जैसे प्रावधानों को सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया ।
🔹 सरकार ने जे . एम . शैलट , के . एस . हेगड़े तथा ए . एन . ग्रोवर की वरिष्ठता की अनदेखी करके ए . एन . रे . को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करवाया ।
🔹 सरकार के इन कार्यों से प्रतिबद्ध न्यायपालिका तथा नौकरशाही की बातें होने लगी थी ।