Macroeconomics Class 12 Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग question and answer in hindi

Follow US On 🥰
WhatsApp Group Join Now Telegram Group Join Now

Ncert Solutions for Class 12 Macro Economics Chapter 3 in hindi: मुद्रा और बैंकिंग question answer

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectEconomics
ChapterChapter 3
Chapter Nameमुद्रा और बैंकिंग class 12 ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

Are you looking for Macroeconomics Class 12 Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग question and answer in hindi? Now you can download मुद्रा और बैंकिंग ncert solutions pdf from here.

प्रश्न 1: वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?

उत्तर 1: वस्तु विनिमय प्रणाली एक पुरानी आर्थिक प्रणाली है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान किया जाता है, बिना किसी मुद्रा के उपयोग के। इसमें लोग अपनी जरूरत की वस्तुओं या सेवाओं को प्राप्त करने के लिए अपनी पास की वस्तुएं या सेवाएं प्रदान करते थे। उदाहरण के लिए, यदि किसी किसान के पास अनाज है और उसे कपड़े की आवश्यकता है, तो वह किसी बुनकर से कपड़े के बदले अनाज की अदला-बदली कर सकता है।

वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियाँ:

दोहरा संयोग की आवश्यकता: इस प्रणाली में लेन-देन तब ही संभव होता है जब दोनों पक्षों की जरूरतें एक-दूसरे से मेल खाती हों। इसे “दोहरा संयोग” (double coincidence of wants) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि एक किसान के पास गेहूं है और उसे जूते चाहिए, तो उसे किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना पड़ेगा जिसके पास जूते हों और जिसे गेहूं चाहिए हो, जो अक्सर कठिन होता है।

वस्तुओं का विभाजन मुश्किल: सभी वस्तुओं को समान भागों में विभाजित करना संभव नहीं होता। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के पास गाय है और उसे कुछ अन्न चाहिए, तो वह गाय को छोटे हिस्सों में विभाजित करके अन्न का आदान-प्रदान नहीं कर सकता।

मूल्य निर्धारण की समस्या: वस्तु विनिमय में प्रत्येक वस्तु या सेवा का सटीक मूल्य निर्धारित करना कठिन होता है। जैसे, यह तय करना कि 10 किलो गेहूं के बदले कितनी मात्रा में कपड़ा मिलेगा, मुश्किल हो सकता है।

संचय और भविष्य के लेन-देन की समस्या: वस्तुओं का संग्रहण (storage) करना कठिन हो सकता है, विशेष रूप से जो जल्दी खराब हो जाती हैं जैसे खाद्य पदार्थ। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति को अपनी वस्तु का तत्काल उपयोग नहीं करना है, तो उसे संग्रहित करने की समस्या आ सकती है।

भिन्न गुणवत्ता और माप की समस्या: वस्तुओं की गुणवत्ता और माप में अंतर हो सकता है, जिससे लेन-देन में असमानता पैदा हो सकती है। उदाहरण के लिए, अगर एक व्यक्ति अपने उत्पाद की गुणवत्ता को अधिक बताता है और दूसरा व्यक्ति उसे स्वीकार करता है, तो विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

वस्तुओं का स्थानांतरण: बड़ी या भारी वस्तुओं को स्थानांतरित करना कठिन हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को बड़ी मात्रा में अनाज या पशु बदलने हों, तो उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल हो सकता है।

प्रश्न 2: मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है?

उत्तर 2: मुद्रा के प्रमुख कार्य:

विनिमय का माध्यम: मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय का एक सामान्य माध्यम प्रदान करता है। इससे वस्तु विनिमय प्रणाली में “दोहरा संयोग” की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। लोग अपनी वस्तु या सेवा को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकते हैं और बाद में इसे अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीदने के लिए उपयोग कर सकते हैं।

मूल्य मापने की इकाई: मुद्रा वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापने का एक मानक पैमाना प्रदान करती है। इसके द्वारा, प्रत्येक वस्तु और सेवा का मूल्य आसानी से निर्धारित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, हम कह सकते हैं कि एक कपड़ा 500 रुपये का है और एक किताब 200 रुपये की है। इससे मूल्य की तुलना और निर्णय लेना आसान हो जाता है।

मूल्य का भंडारण: मुद्रा का एक और महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह मूल्य को भविष्य के लिए सुरक्षित रखने का माध्यम है। आप अपनी कमाई या धन को मुद्रा के रूप में जमा करके भविष्य में इसे उपयोग कर सकते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं को लंबे समय तक संरक्षित करना कठिन होता था, विशेषकर जब वस्तुएं खराब होने वाली हों।

भविष्य के भुगतान का मानक: मुद्रा के उपयोग से लोग भविष्य में होने वाले भुगतान की योजना बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, लोग उधार लेकर बाद में भुगतान कर सकते हैं। मुद्रा इस तरह की व्यवस्था को आसान बनाती है, क्योंकि इसका भविष्य में भी मूल्य स्थिर रहता है, जबकि वस्तु विनिमय में वस्तुओं की कीमतें बदल सकती हैं।

वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करने के तरीके:

  • दोहरा संयोग की आवश्यकता समाप्त: मुद्रा के उपयोग से दो व्यक्तियों की आपसी जरूरतों का मेल होना आवश्यक नहीं होता।
  • विभाजन की समस्या हल: मुद्रा आसानी से विभाजित की जा सकती है, जिससे छोटे लेन-देन संभव होते हैं।
  • मूल्य निर्धारण सरल: मुद्रा वस्तुओं और सेवाओं का सटीक मूल्य निर्धारित करने में मदद करती है।
  • संचय और संग्रहण आसान: मुद्रा को लंबे समय तक सुरक्षित रूप से संग्रहीत किया जा सकता है।
  • गुणवत्ता और माप की समस्या का हल: मुद्रा मानकीकृत होती है, इसलिए गुणवत्ता और माप का सवाल ही नहीं उठता।
  • स्थानांतरण में सुविधा: मुद्रा हल्की होती है और इसका लेन-देन आसानी से किया जा सकता है।

प्रश्न 3: संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किसी प्रकार संबंधित है?

उत्तर 3: मुद्रा की माँग संव्यवहार को पूरा करने के उद्देश्य से की जाती है तो इसे संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग कहा जाता है। अन्य शब्दों में यह गृहस्थों तथा फर्मों द्वारा अपने दिन-प्रतिदिन के लेन-देन के कार्यों के लिए की गई मुद्रा की माँग है। सौदों के लिए नकदी संचय की माँग इसीलिए होती है, क्योंकि मुद्रा की प्राप्ति और उसके व्यय में समय का अन्तर होता है।

यदि कोई व्यक्ति अपनी आये मासिक आधार पर प्राप्त करता है और मास के पहले दिन बिल का भुगतान करते हैं, तो हमें पूरे मास नकद राशि धारण करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु ऐसा नहीं है लोग अलग-अलग समय पर आय प्राप्त करते हैं। उनका व्यय उस पूरे समयांतराल में लगातार होता रहता है। व्यक्ति एवं फर्मे कितनी मात्रा में नकदी का संचय करना चाहेंगे यह सौदों की कुल मात्रा पर निर्भर करता है। अर्थव्यवस्था में कुल सौदों की मात्रा राष्ट्रीय आय पर निर्भर करती है। सूत्र के रूप में

\(M_T^d = k T\)

\(M_T^d = k T\) जहाँ  संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग

K = धनात्मक अंश
T = एक इकाई समयावधि में अर्थव्यवस्था में संव्यवहार का कुल मूल्य
एक इकाई समयावधि में अर्थव्यवस्था में संव्यवहार का कुल मूल्य राष्टीय आय तथा कीमत स्तर पर निर्धारित करता है अतः हम कह सकते है – 

\(M_T^d = \) KPy

जहाँ y  = वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद और P = सामान्य कीमत स्तर है

अतः किसी अर्थव्यवस्था में संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग का अर्थव्यवस्था की वास्तविक आय और उसके औसत कीमत स्तर के बीच धनात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 4: भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है?

उत्तर 4: मुद्रा पूर्ति किसी देश में एक निश्चित समय पर अर्थव्यवस्था में उपलब्ध कुल मुद्रा की मात्रा को संदर्भित करती है। भारत में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मुद्रा पूर्ति को मापने के लिए विभिन्न वैकल्पिक परिभाषाएं विकसित की हैं। इन वैकल्पिक परिभाषाओं के तहत, मुद्रा की तरलता के आधार पर मुद्रा पूर्ति को कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिन्हें M1, M2, M3 और M4 के रूप में जाना जाता है। यह वर्गीकरण इस बात पर आधारित है कि किस प्रकार की संपत्ति कितनी जल्दी नकदी में परिवर्तित की जा सकती है।

  1. M1: जनता के पास नकदी + माँग जमा (बैंक) + अन्य जमा (RBI)।
  2. M2: M1 + डाकघर बचत बैंकों में जमा (सिर्फ बचत खाते)।
  3. M3: M1 + वाणिज्यिक बैंकों की निवल आवधिक जमाएँ।
  4. M4: M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ (राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्रों को छोड़कर)

प्रश्न 5: वैधानिक पत्र क्या है? कागजी मुद्रा क्या है?

उत्तर 5: वैधानिक पत्र एक ऐसी मुद्रा है जिसे किसी भी ऋण, सेवाओं या वस्तुओं के लिए देश के कानून के तहत भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाना अनिवार्य होता है। यह सरकार द्वारा अधिकृत होती है और देश के कानूनी ढांचे के अंतर्गत मान्य होती है। वैधानिक पत्र का उपयोग लेन-देन के लिए किया जाता है, और इसे कोई भी व्यक्ति या संस्था, विशेष रूप से लेनदार, मना नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, भारत में भारतीय रुपया वैधानिक पत्र है, और इसे देश के भीतर किसी भी वित्तीय लेन-देन में स्वीकार करना अनिवार्य है।

कागजी मुद्रा वह मुद्रा है जो कागज के नोटों के रूप में सरकार या केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक) द्वारा जारी की जाती है। यह देश की आधिकारिक मुद्रा होती है और इसे भुगतान और लेन-देन के लिए उपयोग किया जाता है। कागजी मुद्रा, वैधानिक पत्र का सबसे सामान्य रूप होती है, जिसे विशेष सुरक्षा तंत्र (जैसे वॉटरमार्क, हॉलोग्राम) के साथ छापा जाता है ताकि इसे नकली न बनाया जा सके।

प्रश्न 6: उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?

उत्तर 6: उच्च शक्तिशाली मुद्रा से तात्पर्य देश के मौद्रिक प्राधिकरण यानी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की कुल देयता होती है, उच्च शक्तिशाली मुद्रा को मौद्रिक आधार या केंद्रीय बैंक मुद्रा भी कहा जाता है। यह वह मुद्रा है जो केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक) द्वारा जारी की जाती है और यह बैंकिंग प्रणाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसे “उच्च शक्तिशाली” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह एक बहुगुणक प्रभाव पैदा करती है, जिसके माध्यम से बैंक कई गुना ज्यादा पैसा उधार देने में सक्षम होते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।

प्रश्न 7: व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर 7: व्यावसायिक बैंक एक ऐसा वित्तीय संस्थान है जो जनता से जमा स्वीकार करता है, उन्हें उधार देता है और विभिन्न वित्तीय सेवाएँ प्रदान करता है। ये बैंक देश की आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और व्यक्तियों, व्यवसायों, तथा सरकारों को विभिन्न प्रकार की वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं।

व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्य: 1. प्राथमिक कार्य:

1. जमा स्वीकार करना: यह व्यावसायिक बैंकों का सबसे मुख्य कार्य है। बैंक जनता से विभिन्न प्रकार के जमा स्वीकार करते हैं और उन पर ब्याज देते हैं। जमा मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:

  • चालू खाता: इसमें जमा राशि पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता, और जमा राशि को किसी भी समय बिना किसी प्रतिबंध के निकाला जा सकता है।
  • बचत खाता: इसमें जमा पर सीमित ब्याज मिलता है और निकासी पर कुछ सीमाएं हो सकती हैं।
  • सावधि जमा: इसमें जमा एक निश्चित अवधि के लिए होता है, और इस पर अधिक ब्याज मिलता है। राशि को एक निश्चित अवधि के बाद ही निकाला जा सकता है।

2. ऋण और अग्रिम देना: बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य जनता और व्यवसायों को ऋण और अग्रिम प्रदान करना है। बैंक जनता से जमा के रूप में जो राशि प्राप्त करते हैं, उसका एक हिस्सा लोगों को उधार देते हैं। ऋण मुख्यतः निम्न प्रकार के होते हैं:

  • मांग ऋण: ये तुरंत चुकाने योग्य होते हैं।
  • सावधि ऋण: ये ऋण एक निश्चित अवधि के लिए दिए जाते हैं।
  • ओवरड्राफ्ट सुविधा: यह सुविधा उन लोगों के लिए होती है जो चालू खाते में जमा राशि से अधिक निकालना चाहते हैं।
  • हाइपोथिकेशन और मॉर्गेज पर ऋण: संपत्ति या प्रतिभूति को गिरवी रखकर ऋण दिया जाता है।

3. विनिमय का माध्यम: व्यावसायिक बैंक विनिमय के लिए सुविधा प्रदान करते हैं, जैसे चेक, ड्राफ्ट, और ऑनलाइन बैंकिंग सुविधाएँ, जो लेन-देन को सरल और सुरक्षित बनाते हैं। इसके माध्यम से व्यक्ति और व्यवसाय आसानी से पैसा ट्रांसफर कर सकते हैं।

2. माध्यवर्ती कार्य:

1. एजेंसी कार्य: बैंक कई एजेंसी सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिसके तहत वे ग्राहकों की ओर से विभिन्न कार्य करते हैं, जैसे:

  • बिलों का संग्रहण और भुगतान: बैंक ग्राहकों के बिलों, जैसे बिजली, पानी, फोन आदि के भुगतान करते हैं।
  • चेक और ड्राफ्ट का संग्रहण: बैंक ग्राहकों के चेक और ड्राफ्ट को संग्रहित करके उनके खातों में जमा करते हैं।
  • प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री: बैंक अपने ग्राहकों के लिए शेयर, बॉन्ड, और अन्य प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री करते हैं।
  • निधियों का हस्तांतरण: बैंक अपने ग्राहकों के पैसे को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में मदद करते हैं, जैसे एनईएफटी, आरटीजीएस आदि के माध्यम से।

2. सामान्य उपयोगिता सेवाएँ: ये सेवाएँ ग्राहकों के लिए सामान्य सुविधा प्रदान करती हैं, जैसे:

  • लॉकर सुविधा: बैंक ग्राहकों को उनके मूल्यवान वस्त्रों और दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए लॉकर सुविधा प्रदान करते हैं।
  • विदेशी मुद्रा विनिमय: बैंक विदेशी मुद्रा का विनिमय करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए पत्र-क्रेडिट (Letter of Credit) और बिलों का भुगतान करते हैं।
  • क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड सेवाएँ: बैंक ग्राहकों को खरीदारी और अन्य लेन-देन के लिए क्रेडिट और डेबिट कार्ड की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएँ: बैंक इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से लेन-देन को डिजिटल रूप में आसान बनाते हैं।

3. क्रेडिट निर्माण: व्यावसायिक बैंक क्रेडिट निर्माण के लिए जिम्मेदार होते हैं। जब बैंक जमा राशि से ऋण प्रदान करते हैं, तो वे आर्थिक प्रणाली में नया धन सृजित करते हैं। यह क्रेडिट निर्माण देश की मुद्रा आपूर्ति और आर्थिक विकास को बढ़ाने में मदद करता है।

4. विदेशी व्यापार सेवाएँ: बैंक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे कि:

  • विदेशी मुद्रा विनिमय: बैंक आयातकों और निर्यातकों के लिए विदेशी मुद्रा का विनिमय करते हैं।
  • पत्र-क्रेडिट: बैंक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सुरक्षा के तौर पर पत्र-क्रेडिट प्रदान करते हैं।
  • मनी ट्रांसफर: बैंक विदेशों से धन को देश में स्थानांतरित करने में मदद करते हैं।

प्रश्न 8: मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगें?

उत्तर 8: मुद्रा गुणक, अर्थव्यवस्था में धन सृजन की एक घटना है। यह एक सूत्र है जिसकी मदद से वाणिज्यिक बैंकों द्वारा जमा गुणन की प्रक्रिया के ज़रिए बनाई जा सकने वाली अधिकतम धनराशि का पता चलता है।

Mm = \(\frac{M}{H}\)

जहाँ,  Mm धन गुणक है

M धन के स्टॉक को दर्शाता है

H उच्च शक्ति वाले धन का प्रतिनिधित्व करता है

अब

\(\frac{M}{H}\) = \(\frac{1+cdr}{cdr=rdr}\) जो कि > 1

यह मुद्रा गुणक का माप है 
क्योंकि मुद्रा का स्टॉक सामान्यतया शक्तिशाली मुद्रा के मूल्य से अधिक होता है इसीलिए मुद्रा गुणक का मूल्य १ से अधिक होता है

प्रश्न 9: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण कौन-कौन से हैं?

उत्तर 9: केन्द्रीय बैंक/भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरणों को दो मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है

1. मात्रात्मक उपकरण
2. गुणात्मक उपकरण

1. मात्रात्मक उपकरण: मात्रात्मक उपकरण वे उपकरण होते हैं जो कुल साख की मात्रा को प्रभावित करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य बाजार में उपलब्ध साख की मात्रा को नियंत्रित करना है। ये इस प्रकार हैं

(i) बैंक दर: बैंक दर वह ब्याज दर होती है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। इसे रेपो दर (Repo Rate) भी कहा जाता है। अगर केंद्रीय बैंक बैंक दर बढ़ाता है, तो ऋण महंगा हो जाता है और बाजार में साख की मांग कम हो जाती है। जब बैंक दर घटती है, तो साख की मांग बढ़ती है।

(ii) खुले बाजार की क्रियाएँ: ओपन मार्केट ऑपरेशंस वह प्रक्रिया है जिसमें केंद्रीय बैंक सरकारी बांडों की खरीद और बिक्री करता है। जब केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ बेचता है, तो यह बैंकों से नकदी खींचता है, जिससे साख की उपलब्धता घट जाती है। जब प्रतिभूतियाँ खरीदी जाती हैं, तो बैंकों के पास अधिक नकदी आ जाती है, जिससे साख की उपलब्धता बढ़ती है।

(iii) नकद आरक्षित अनुपात: CRR वह न्यूनतम प्रतिशत होता है जिसे वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का केंद्रीय बैंक के पास रिजर्व के रूप में रखना होता है। CRR को बढ़ाकर केंद्रीय बैंक बैंकों की साख निर्माण क्षमता को घटा सकता है। अगर CRR घटाया जाता है, तो बैंकों के पास अधिक राशि उधार देने के लिए होती है, जिससे साख का प्रवाह बढ़ता है।

(iv) सांविधिक तरलता अनुपात: SLR वह अनुपात है जिसे वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का कुछ प्रतिशत सुरक्षित परिसंपत्तियों (जैसे सरकारी बॉन्ड्स) के रूप में रखना होता है। जब SLR बढ़ाया जाता है, तो बैंकों के पास उधार देने के लिए कम पैसा होता है, जिससे साख की आपूर्ति घट जाती है।

2. गुणात्मक उपकरण: गुणात्मक उपकरण वे होते हैं जो साख की मात्रा को प्रभावित नहीं करते, बल्कि साख के प्रवाह को एक विशेष दिशा में प्रभावित करते हैं। इनका उद्देश्य साख के प्रवाह को नियंत्रण में रखना है, ताकि साख केवल उन क्षेत्रों में जाएं जहां इसकी अधिक आवश्यकता हो।

(i) सीमांत आवश्यकता: इसका मतलब है कि जब बैंकों को किसी ऋण के बदले कोई संपत्ति गिरवी रखने के लिए दी जाती है, तो ऋण राशि और गिरवी संपत्ति के मूल्य के बीच का अंतर। अगर सीमांत आवश्यकता बढ़ाई जाती है, तो ऋण लेने की क्षमता कम हो जाती है और बैंकों के लिए यह अधिक जोखिमपूर्ण हो सकता है। जब सीमांत आवश्यकता घटाई जाती है, तो साख विशेष क्षेत्रों में प्रवाहित होती है, जैसे शिक्षा, कृषि इत्यादि।

(ii) साख राशनिंग: इस प्रक्रिया में RBI बैंकों को किसी विशेष क्षेत्र में ऋण देने के लिए एक सीमा निर्धारित करता है। जैसे, यदि बैंक कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहता है, तो वह उस क्षेत्र को विशेष कोटा दे सकता है।

(iii) नैतिक प्रभाव: इसमें RBI बैंकों पर नैतिक दबाव डालता है ताकि वे अपनी साख नीति के अनुरूप काम करें। RBI बैंकों से यह अपेक्षा करता है कि वे अपनी ऋण नीति में बदलाव करें ताकि कुछ खास क्षेत्रों (जैसे कृषि, रोजगार आदि) को प्राथमिकता दी जा सके।

प्रश्न 10: क्या आप ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही ‘मुद्रा का निर्माण करते हैं?

उत्तर 10: हाँ, वाणिज्यिक बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। वे अपने द्वारा दिए गए ऋणों से संबंधित माँग जमाओं के रूप में साख का सृजन करते हैं। वाणिज्यिक बैंकों की माँग जमाएँ उनके नकद कोषों से कई गुणा अधिक होती है। यदि यह मान लें कि उनके नकद कोषों की राशि के 1000 है तथा माँग जमाएँ ₹ 10,000 है, तो अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति वाणिज्यिक बैंकों के नकद कोषों से दस गुणा अधिक हो जाएगी। इसी प्रकार नकद कोषों के ₹ 1,000 के आधार पर वाणिज्यिक बैंकों ने मुद्रा की पूर्ति में ₹ 10,000 का योगदान दिया।

प्रश्न 11: भारतीय रिज़र्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?

उत्तर 11: अंतिम ऋणदाता के रूप में केंद्रीय बैंक वित्तीय संकट के दौरान वाणिज्यिक बैंकों के लिए गारंटीकर्ता के रूप में तैयार होता है। वाणिज्यिक बैंक अपनी जमाओं को सामूहिक रूप से तुरंत निकलवाने के लिए तत्पर रहने वाले जमाकर्ताओं का विश्वास खो सकते हैं, चूंकि वाणिज्यिक बैंकों के नकद कोष उनकी माँग जमाओं का एक छोटा-सा भाग होते हैं, कोष बाहर जा सकते हैं, जिसके कारण बैंक में वित्तीय संकट आ जाता है। ऐसी स्थिति में केंद्रीय बैंक ही होता है जो वाणिज्यिक बैंक के लिए गारंटीकर्ता की भांति तैयार रहता है तथा उसे दिवालियापन से बचाता है।

यह भी देखें ✯ Class 12

💞 SHARING IS CARING 💞
Ncert Books PDF

English Medium

Hindi Medium

Ncert Solutions and Question Answer

English Medium

Hindi Medium

Revision Notes

English Medium

Hindi Medium

Related Chapters