Macroeconomics Class 12 Chapter 4 आय और रोजगार के निर्धारण question and answer in hindi

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Ncert Solutions for Class 12 Macro Economics Chapter 4 in hindi: आय और रोजगार के निर्धारण question answer

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectEconomics
ChapterChapter 4
Chapter Nameआय और रोजगार के निर्धारण class 12 ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 1: सीमांत उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमांत बचत प्रवृत्ति से संबंधित है?

उत्तर 1:

1. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) की परिभाषा: सीमांत उपभोग प्रवृत्ति वह अनुपात है जो यह बताता है कि किसी व्यक्ति या अर्थव्यवस्था की आय में 1 रुपए की वृद्धि से कितना हिस्सा उपभोग पर खर्च किया जाएगा। इसका सूत्र इस प्रकार है:

\(MPC = \frac{\Delta C}{\Delta Y}\)

जहाँ:

  • \(\Delta C\) = उपभोग में परिवर्तन
  • \(\Delta Y\) = आय में परिवर्तन

अगर (MPC = 0.8), इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति की आय में 1 रुपए की वृद्धि होती है, तो वह उसमें से 80 पैसे उपभोग में खर्च करेगा।

2. सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) की परिभाषा: सीमांत बचत प्रवृत्ति वह अनुपात है जो यह बताता है कि आय में वृद्धि होने पर अतिरिक्त आय का कितना हिस्सा बचत में जाता है। इसका भी एक सरल सूत्र है:

\(MPS = \frac{\Delta S}{\Delta Y}\)

जहाँ:

  • \(\Delta S\) = बचत में परिवर्तन
  • \(\Delta Y\) = आय में परिवर्तन

अगर (MPS = 0.2), तो इसका मतलब है कि व्यक्ति अपनी अतिरिक्त आय में से 20 पैसे बचाएगा।

3. MPC और MPS के बीच संबंध:

सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) के बीच सीधा गणितीय संबंध होता है। किसी भी व्यक्ति की आय का हिस्सा या तो उपभोग में जाता है या बचत में। इसलिए:

MPC + MPS = 1

उदाहरण के लिए, अगर (MPC = 0.75) है, तो (MPS = 1 – 0.75 = 0.25) होगा। इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी आय का 75% उपभोग पर खर्च करेगा और 25% बचत करेगा।

प्रश्न 2: प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?

उत्तर 2:

1. प्रत्याशित निवेश:

  • प्रत्याशित निवेश वह निवेश है जिसकी एक व्यवसाय, फर्म या सरकार पहले से योजना बनाती है।
  • यह निवेश भविष्य की आर्थिक स्थिति, माँग और उत्पादकता को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
  • यह निश्चित होता है और उम्मीदों के आधार पर किया जाता है।
  • इसमें उन कारकों का समावेश होता है जिन्हें भविष्य में नियंत्रण में रखा जा सकता है, जैसे पूंजीगत वस्तुओं की खरीद, उत्पादन क्षमता का विस्तार आदि।

2. यथार्थ निवेश:

  • यथार्थ निवेश वास्तविक निवेश है जो किसी समय में वास्तविक रूप से किया जाता है।
  • यह निवेश आर्थिक गतिविधियों और बाजार की वास्तविक स्थितियों पर निर्भर करता है।
  • इसमें प्रत्याशित निवेश के साथ-साथ अनियोजित (unplanned) निवेश भी शामिल हो सकता है, जैसे कि अप्रत्याशित रूप से उत्पादों का स्टॉक बढ़ जाना या घट जाना।
  • यथार्थ निवेश प्रत्याशित निवेश से भिन्न हो सकता है क्योंकि यह बाजार की बदलती परिस्थितियों, मांग, और अन्य बाहरी कारकों पर निर्भर करता है।

3. प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश के बीच अंतर:

प्रत्याशित निवेशयथार्थ निवेश
परिभाषा: वह निवेश जिसे कंपनियाँ और व्यवसाय योजना बनाकर करने की सोचते हैं।परिभाषा: वह निवेश जो वास्तव में अर्थव्यवस्था में होता है।
नियोजित या अनियोजित: पूर्णत: नियोजित होता है, इसे करने की पूर्व योजना होती है।नियोजित या अनियोजित: इसमें नियोजित और अनियोजित दोनों प्रकार का निवेश शामिल हो सकता है।
इन्वेंटरी का प्रभाव: इसमें इन्वेंटरी के अप्रत्याशित बदलाव शामिल नहीं होते।इन्वेंटरी का प्रभाव: इन्वेंटरी में अनियोजित वृद्धि या कमी शामिल होती है।
आधार: यह भविष्य की मांग और अपेक्षाओं पर आधारित होता है।आधार: यह वास्तविक परिस्थितियों पर आधारित होता है, जैसे मांग में परिवर्तन या उत्पादन में गड़बड़ी।

प्रश्न 3: ‘ किसी देश में पैरामेट्रिक शिफ्ट ‘ से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है जब इसकी
(i) ढाल घटती है और
(ii) इसके अन्त:खण्ड में वृद्धि होती है?

उत्तर 3: पैरामेट्रिक शिफ्ट का अर्थ: ‘पैरामेट्रिक शिफ्ट‘ का तात्पर्य किसी आर्थिक या गणितीय मॉडल में एक या अधिक मानकों (parameters) में बदलाव से है। जब हम किसी देश के संदर्भ में पैरामेट्रिक शिफ्ट की बात करते हैं, तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि किसी विशेष नीति, नियम, या आर्थिक मानकों में परिवर्तन हो रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था की संरचना या व्यवहार बदल सकता है।

उदाहरण:

  • टैक्स दरों में बदलाव
  • ब्याज दरों में परिवर्तन
  • सरकारी व्यय में बदलाव

यह शिफ्ट किसी देश की आर्थिक नीतियों, औद्योगिक संरचनाओं या बाजार के कामकाज में हो सकता है, जो अर्थव्यवस्था के संतुलन, मांग-आपूर्ति, या उत्पादन-लागत संबंधों को प्रभावित कर सकता है।

रेखा में शिफ्ट: रेखा का अर्थ गणित या आर्थिक ग्राफ में एक सरल रेखा है, जो किसी दो चर के बीच संबंध को दर्शाती है। पैरामेट्रिक शिफ्ट से रेखा में दो प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं:

(i) ढाल घटती है:

ढाल (slope) किसी रेखा की तीव्रता या झुकाव को दर्शाता है, जो इस बात का मापक है कि एक चर में बदलाव के साथ दूसरा चर कितना बदलता है। अगर रेखा की ढाल घटती है, तो रेखा कम खड़ी होती है।

  • रेखा के परिवर्तन:
  • ढाल घटने पर रेखा ज्यादा क्षैतिज या फ्लैट हो जाती है।
  • यदि हम इसे किसी मांग-आपूर्ति या अन्य आर्थिक मॉडल के संदर्भ में देखें, तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि किसी चर के प्रति दूसरे चर की संवेदनशीलता (sensitivity) कम हो गई है। उदाहरण: कीमत में बदलाव के प्रति मांग की संवेदनशीलता कम हो जाना।

(ii) अन्त:खण्ड (Intercept) में वृद्धि:

अन्त:खण्ड वह बिंदु है जहाँ रेखा y-अक्ष को काटती है। इसका अर्थ यह है कि यदि x (स्वतंत्र चर) का मान शून्य हो, तो y (निर्भर चर) का मान क्या होगा।

  • रेखा के परिवर्तन:
  • जब अन्त:खण्ड में वृद्धि होती है, तो पूरी रेखा y-अक्ष पर ऊपर की ओर शिफ्ट हो जाती है। रेखा का ढाल वही रहता है, परंतु रेखा ऊपर खिसक जाती है। उदाहरण: किसी उत्पाद की कीमत के बढ़ने के बावजूद उसकी मांग में वृद्धि होना।

प्रश्न 4: “प्रभावी माँग” क्या है? जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?

उत्तर 4: “प्रभावी माँग” एक आर्थिक अवधारणा है, जो किसी वस्तु या सेवा की उस माँग को दर्शाती है जो उपभोक्ता न केवल चाहते हैं, बल्कि उसे खरीदने के लिए सक्षम और इच्छुक भी हैं। प्रभावी माँग का विचार यह मानता है कि किसी वस्तु या सेवा की वास्तविक माँग तब मानी जाती है जब उसके लिए भुगतान करने की क्षमता और इच्छा दोनों ही मौजूद हों। संक्षेप में, प्रभावी माँग वह माँग है जो वास्तविक रूप से बाजार में क्रय शक्ति और क्रय की इच्छा से समर्थित होती है।

जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज दर दी हुई हो, तब स्वायत्त व्यय गुणक इस तरह से प्राप्त किया जा सकता है:

इस ग्राफ में, x-अक्ष आय को दर्शाता है, और y-अक्ष समग्र मांग के स्तर को दर्शाता है। दो वक्र, AD और AS, संतुलन बिंदु E पर मिलते हैं। प्रभावी मांग EG द्वारा दर्शाई गई है। AD उत्पादन स्तर को दर्शाता है। स्वायत्त व्यय गुणक को निम्न प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है

  • स्वायत्त व्यय गुणक को संतुलन पर Y = AD के रूप में प्राप्त किया जाता है।
  • Y = A + cY.
  • Y – cY = A.
  • Y1 – c = AY = A/1 – C.
  • जहाँ A = स्वायत्त व्यय.
  • c = MPC.
  • Y = आय का स्तर.
  • 1/1 – C = स्वायत्त व्यय गुणक।

इसलिए हम कह सकते हैं कि स्वायत्त व्यय गुणक आय और MPC पर निर्भर करता है।

प्रश्न 5: जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रु० हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय (y) का स्तर 4,00,000 करोड़ रु० हो तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।

उत्तर 5: आय का स्तर y = ₹ 4,00,000 
स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) = र 50 करोड़ 
सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 0.2 = 0.8  (∴ MPC = 1 – MPS)
y = A + C – y = 50 + 0.8 x 4,000 (∴ C = MPC)
= 50 + 3,200 = ₹ 32,50 करोड़

प्रत्याशित समस्त माँग = ₹ 3,250 करोड़
चूँकि वर्तमान आय का स्तर ₹ 4,000 करोड़ है जो प्रत्याशित समस्त माँग में ₹ 750 करोड़ अधिक है तो वह स्थिति अधिपूर्ति की होगी। इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

प्रश्न 6: मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।

उत्तर 6: मितव्ययिता का विरोधाभास एक महत्वपूर्ण आर्थिक सिद्धांत है, जिसे सबसे पहले जॉन मेनार्ड केन्स ने प्रस्तुत किया था। यह सिद्धांत बताता है कि व्यक्तिगत स्तर पर बचत करना भले ही एक समझदारी भरा निर्णय हो, लेकिन जब समाज के सभी लोग एक साथ ज्यादा बचत करने का प्रयास करते हैं, तो इसका समग्र आर्थिक प्रभाव नकारात्मक हो सकता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

मितव्ययिता का विरोधाभास: जब कोई व्यक्ति अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा बचाने का निर्णय लेता है, तो यह उस व्यक्ति के लिए फायदेमंद हो सकता है क्योंकि उसकी भविष्य की सुरक्षा के लिए संसाधन बचते हैं। लेकिन जब समाज के सभी लोग एक साथ बचत बढ़ाने का निर्णय लेते हैं, तो उपभोग (खपत) में गिरावट आती है। उपभोग में कमी से निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:

  1. माँग में कमी: जब लोग अधिक बचत करने लगते हैं, तो वे वस्तुओं और सेवाओं पर कम खर्च करते हैं। इससे समग्र माँग (Aggregate Demand) कम हो जाती है।
  2. उत्पादन में कमी: समग्र माँग में गिरावट के कारण उत्पादन घट जाता है क्योंकि उत्पादक कम माँग के अनुसार उत्पादन करना शुरू कर देते हैं।
  3. आय और रोजगार में कमी: उत्पादन में कमी आने से फैक्ट्रियों और व्यवसायों में रोजगार के अवसर घटते हैं, जिससे लोगों की आय कम हो जाती है।
  4. बचत में कमी: कम आय के कारण लोगों की बचत क्षमता भी घट जाती है, और अंततः पूरे समाज में बचत का स्तर भी गिर जाता है, भले ही बचत करने की मंशा शुरू में बढ़ गई हो।
यह भी देखें ✯ Class 12

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