Macroeconomics Class 12 Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र question and answer in hindi

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Ncert Solutions for Class 12 Macro Economics Chapter 6 in hindi: खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र question answer

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectEconomics
ChapterChapter 6
Chapter Nameखुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र class 12 ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 1: संतुलित व्यापार शेष और चालू खाता संतुलन में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर 1: संतुलित व्यापार शेष और चालू खाता संतुलन दोनों ही एक देश के विदेशी व्यापार और आर्थिक स्थितियों का आकलन करते हैं, लेकिन इन दोनों में महत्वपूर्ण अंतर है। आइए इन्हें अलग-अलग समझें:

1. संतुलित व्यापार शेष:

  • यह केवल वस्तुओं के निर्यात (Exports) और आयात (Imports) के बीच का अंतर होता है।
  • इसे माल व्यापार संतुलन भी कहा जाता है, क्योंकि यह वस्तुओं के व्यापार पर ही आधारित है।
  • अगर निर्यात आयात से अधिक होता है, तो इसे व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) कहते हैं, और यदि आयात निर्यात से अधिक होता है, तो इसे व्यापार घाटा (Trade Deficit) कहा जाता है।
  • उदाहरण: यदि एक देश ने 100 करोड़ के सामान निर्यात किए और 80 करोड़ के सामान आयात किए, तो उस देश का व्यापार शेष 20 करोड़ का अधिशेष होगा।

2. चालू खाता संतुलन: चालू खाता संतुलन एक व्यापक अवधारणा है, जो न केवल वस्तुओं के व्यापार (Balance of Trade) को शामिल करती है, बल्कि सेवाओं, आय, और नकद हस्तांतरणों को भी कवर करती है।

  1. सेवाएं (Services): देश द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का निर्यात और आयात, जैसे आईटी सेवाएं, टूरिज्म, आदि।
  2. आय (Income): विदेशों में किए गए निवेश से प्राप्त लाभांश, ब्याज आदि, और विदेशों में काम करने वाले नागरिकों की कमाई।
  3. नकद हस्तांतरण (Transfers): विदेश में रहने वाले नागरिकों द्वारा अपने देश में भेजा गया धन, जैसे कि रेमिटेंस।

चालू खाता संतुलन में इन सभी कारकों का जोड़-घटाव किया जाता है। यदि एक देश का चालू खाता अधिशेष होता है, तो इसका मतलब है कि देश विदेशी लेन-देन में अधिक धन कमा रहा है, और अगर घाटा होता है, तो यह दर्शाता है कि देश विदेशी लेन-देन में अधिक खर्च कर रहा है।

प्रश्न 2: आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन क्या है? अदायगी संतुलन में इनके महत्व का वर्णन कीजिए।

उत्तर 2: आधिकारिक आरक्षित लेन-देन से अभिप्राय सरकारी कोषों में उपलब्ध सोने के कोष तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के कोष में कमी और वृद्धि से है। इसका प्रयोग अदायगी संतुलन के आधिक्य और घाटे को ठीक करने के लिए किया जाता है। घाटे की दशा में विदेशी विनिमय बाजार में करेंसी को बेचकर तथा अपने देश के विदेशी विनिमय को कम करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है।

अधिकृत आरक्षित निधि में कमी को कुल अदायगी-घाटा संतुलन कहते हैं। इसके विपरीत आधिक्य की दशा में विदेशी विनिमय बाजार में करेंसी को खरीदकर तथा अपने देश के विदेशी विनिमय को बढ़ा करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है। अधिकृत आरक्षित निधि में वृद्धि को कुल अदायगी आधिक्य संतुलन कहते हैं।

प्रश्न 3: मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए यदि आपको घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो तो कौन-सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?

उत्तर 3: मौद्रिक विनिमय दर वह विनिमय दर है, जिसमें एक करेंसी की अन्य करेंसियों के संबंध में औसत शक्ति को मापते समय कीमत स्तर में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान नहीं दिया जाता। अन्य शब्दों में, यह मुद्रास्फीति के प्रभाव से मुक्त नहीं होती। इसके विपरीत, वास्तविक विनिमय दर वह है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के कीमत स्तरों में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखा जाता है। यह वह विनिमय दर से, जो स्थिर कीमतों पर आधारित होने के कारण मुद्रास्फीति के प्रभाव से मुक्त होती है। किसी भी एक समय पर, घरेलू वस्तुएँ खरीदने के लिए मौद्रिक विनिमय दर अधिक उपयुक्त होती है।

प्रश्न 4: यदि 1 रु० की कीमत 1.25 येन है और जापान में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो तो भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर की गणना कीजिए (जापानी वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में)। संकेत : रुपये में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए।

उत्तर 4: इस प्रश्न में, हमें भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर (Real Exchange Rate) की गणना करनी है। वास्तविक विनिमय दर (RER) एक विदेशी देश की वस्तुओं की कीमत की तुलना घरेलू वस्तुओं की कीमत से करता है, और इसे निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है:

RER = \(\left( \frac{E \times P^*}{P} \right)\)

जहां,

  • ( E ) = नाममात्र विनिमय दर (Nominal Exchange Rate), जो रुपये में येन की कीमत दर्शाता है।
  • ( P* ) = विदेशी देश का मूल्य स्तर (जापान में कीमत स्तर)।
  • ( P ) = घरेलू देश का मूल्य स्तर (भारत में कीमत स्तर)।

अब, हम इसे चरण दर चरण हल करेंगे:

मौद्रिक विनिमय दर (Nominal Exchange Rate) ज्ञात करना

प्रश्न के अनुसार, 1 रुपये की कीमत 1.25 येन है। इसका मतलब है कि 1 रुपये के बदले में 1.25 येन मिलते हैं। लेकिन हमें मौद्रिक विनिमय दर “रुपये में येन की कीमत” के रूप में चाहिए, यानी 1 येन की कीमत कितने रुपये में है।

तो,
E = \(\frac{1}{1.25}\) = 0.8 रुपये प्रति येन

कीमत स्तर (Price Levels)

  • जापान में कीमत स्तर ( P* = 3 ) है।
  • भारत में कीमत स्तर ( P = 1.2 ) है।

वास्तविक विनिमय दर (RER) की गणना

अब, उपरोक्त सूत्र का उपयोग करते हुए वास्तविक विनिमय दर की गणना करते हैं:

RER = \(\left( \frac{E \times P^*}{P} \right)\)

RER = \(\left( \frac{0.8 \times 3}{1.2} \right)\)

RER = \(\frac{2.4}{1.2} = 2\)

भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर ( 2 ) है। इसका मतलब है कि जापानी वस्तुओं की कीमत भारतीय वस्तुओं के संदर्भ में दोगुनी है।

प्रश्न 5: स्वचालित युक्ति की व्याख्या कीजिए, जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।

उत्तर 5: स्वर्ण मानक प्रणाली के अनुसार, दूसरे देश की मुद्रा को मापने के उद्देश्य से सोने को एक सामान्य इकाई के रूप में लिया जाता था। इस प्रकार, किसी मुद्रा का मूल्य आमतौर पर सोने के संदर्भ में परिभाषित किया जाता था। खुले बाजार में, विनिमय दर भी सोने के संदर्भ में इसके मूल्य से निर्धारित होती थी। इसे निचली सीमा और ऊपरी सीमा में तय किया गया था, और उन सीमाओं के भीतर इसे उतार-चढ़ाव की अनुमति थी। इसलिए, स्वर्ण मानक के तहत विनिमय दर स्थिर हो गई। इसके बाद, सभी देशों ने मुद्रा विनिमय के लिए सोने का स्टॉक रखना शुरू कर दिया।

प्रश्न 6: नम्य विनिमय दर व्यवस्था में विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है?

उत्तर 6: नम्य विनिमय दर का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पूर्ति तथा माँग की शक्तियों द्वारा होता है, जबकि विदेशी विनिमय की माँग इसकी अपनी कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है, विदेशी विनिमय की पूर्ति इसकी अपनी कीमत से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होती है।

प्रश्न 7: अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर 7: अवमूल्यन और मूल्यह्रास दोनों ही एक मुद्रा की विनिमय दर में गिरावट को दर्शाते हैं, लेकिन ये अलग-अलग संदर्भों में होते हैं और इनके कारण और प्रक्रिया भी भिन्न होती हैं। आइए इनके बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से समझें:

1. अवमूल्यन:

  • अवमूल्यन तब होता है जब सरकार या केंद्रीय बैंक जानबूझकर अपनी मुद्रा के मूल्य को कम करती है। यह मुख्य रूप से उन देशों में होता है जहां मुद्रा की विनिमय दर को स्थिर (fixed exchange rate) रखा जाता है।
  • सरकारें या केंद्रीय बैंक, व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए अवमूल्यन का सहारा ले सकती हैं, ताकि निर्यात सस्ता हो जाए और आयात महंगा हो जाए, जिससे भुगतान संतुलन सुधर सके।
  • उदाहरण: यदि 1 डॉलर की कीमत पहले 70 रुपये थी, और सरकार ने इसे 75 रुपये कर दिया, तो यह अवमूल्यन कहलाएगा।

2. मूल्यह्रास :

  • मूल्यह्रास तब होता है जब किसी देश की मुद्रा की विनिमय दर बाजार के कारण (मार्केट फोर्सेज़ जैसे मांग और आपूर्ति) गिर जाती है। यह उन देशों में होता है जहां मुद्रा की विनिमय दर लचीली (flexible/floating exchange rate) होती है।
  • यह किसी देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति, ब्याज दरों, विदेशी निवेश, राजनीतिक अस्थिरता या व्यापार घाटे जैसे कारकों के कारण स्वाभाविक रूप से हो सकता है।
  • उदाहरण: अगर 1 डॉलर पहले 70 रुपये का था और बाजार में मांग और आपूर्ति के चलते इसकी कीमत बढ़कर 75 रुपये हो जाती है, तो यह मूल्यह्रास कहलाएगा।

प्रश्न 8: क्या केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए।

उत्तर 8: हाँ केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में विदेश करेंसी के विक्रय तथा क्रय के द्वारा होता है। जब केंद्रीय बैंक को लगता है कि घरेलू करेंसी के बाजार मूल्य का अत्याधिक मूल्यह्रास हो रहा है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए तथा घरेलू करेंसी के पूर्व मूल्य को स्थापित करने के लिए यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में यू.एस.डॉलर की बिक्री करेगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर बेचकर केंद्रीय बैंक डॉलर पूर्ति में वृद्धि करता है। अन्य बातें समान रहने पर डॉलर की पूर्ति में वृद्धि होने से घरेलू करेंसी के संबंध में डॉलर की कीमत में कमी की संभावना होती है।

ऐसी क्रिया तब अनिवार्य हो जाती है, जब रुपये के मूल्य में कमी के कारण सरकार का आयात बिल बढ़ जाता है। इसी भांति जब केंद्रीय बैंक यह महसूस करता है कि घरेलू करेंसी का बाजार मूल्य अत्यधिक बढ़ रहा है तो वह विदेशी करेंसी खरीदना आरंभ कर देता है जब विदेशी करेंसी के लिए माँग में वृद्धि होती है, तो घरेलू करेंसी के संबंध में इसकी कीमत बढ़ने लगती है अब विदेशी एक यू.एस. डॉलर से अधिक घरेलू वस्तुएँ खरीद सकते हैं। तदनुसार, घरेलू वस्तुओं के लिए निर्यात माँग पुनः होने लगती है।

प्रश्न 9: क्या देशी वस्तुओं की माँग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान हैं?

उत्तर 9: देशी वस्तुओं की माँग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान नहीं हैं। ये दोनों अवधारणाएँ अर्थशास्त्र में अलग-अलग संदर्भों में उपयोग होती हैं और उनके अलग-अलग प्रभाव होते हैं।

देशी वस्तुओं की माँग से आशय उन वस्तुओं और सेवाओं की माँग से है, जो किसी देश के भीतर उत्पादित होती हैं, चाहे उनकी खपत देश के अंदर हो या उन्हें विदेशों में निर्यात किया जाए। इसमें देश के कुल उत्पादन की माँग शामिल होती है।

दूसरी ओर, वस्तुओं की देशीय माँग उस माँग को दर्शाती है, जो किसी देश के भीतर सभी वस्तुओं के लिए होती है, चाहे वे देश में उत्पादित हों या विदेश से आयातित हों। इसका मतलब है कि देश के अंदर उपभोक्ता, व्यवसाय और सरकार द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं में घरेलू उत्पादन के साथ-साथ आयातित वस्तुएँ भी शामिल होती हैं।

इसलिए, देशी वस्तुओं की माँग केवल घरेलू उत्पादों पर केंद्रित होती है, जबकि वस्तुओं की देशीय माँग घरेलू और आयातित दोनों वस्तुओं को कवर करती है।

प्रश्न 10: जब M = 60 + 0.06Y हो, तो आयात की सीमांत प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में क्या संबंध है?

उत्तर 10: आयात की सीमांत प्रवृत्ति = 0.06 होगी आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन से अप्रत्यक्ष संबंध है। अर्थात आयात की सीमांत प्रवृत्ति बढ़ने पर समस्त माँग फलन कम हो जाता है और आयात की सीमांत प्रवृत्ति कम होने पर समस्त माँग फलन बढ़ जाता है।

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प्रश्न 11: खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्त व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा क्यों होता है?

उत्तर 11: खुली अर्थव्यवस्था गुणक बंद अर्थव्यवस्था गुणक से छोटा होता है, क्योंकि घरेलू माँग का एक हिस्सा विदेशी | वस्तुओं के लिए होता है। अतः स्वायत्त माँग में वृद्धि से बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में निर्गत में कम वृद्धि होती। है। इससे व्यापार शेष में भी गिरावट होती है।

प्रश्न 12: पाठ में इकमुश्त कर की कल्पना के स्थान पर आनुपातिक कर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की। गणना कीजिए।

उत्तर 12: व्यय गुणक का अनुमान है कि सरकारी खरीद, निवेश व्यय, उपभोग व्यय, या शुद्ध निर्यात सहित स्वायत्त व्यय में भिन्नता से उत्पन्न कुल उत्पादन में अंतर है। व्यय गुणक एकल माप में समग्र व्यय रेखा में अंतर के प्रभावों को दर्शाता है, यह एक उपाय है जो आमतौर पर एक से अधिक होता है।

आनुपातिक करों के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की गणना करें।

आनुपातिक करों के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक

Y = C + c (1 − tY + I + G + X − M − mY

Y − c (1 − tY + mY = C + I +G + X − M

Y[1 − c (1 − t) +m] = C + I + G + X − M

Y = \(\frac{C + I + G + X − M}{1-c(1-Y)+m}\)

स्वायत्त व्यय (A) = C + I + G + X − M

इसलिए, आनुपातिक करों के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक होगी

\(\frac{\Delta Y}{\left(\Delta A\right)}=\frac{1}{1-c(1-t)+m}\)

प्रश्न 13: मान लीजिए C = 40 + 0.8Y D, T = 50, I = 60, G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y (a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए, (b) संतुलन आय पर निवल निर्यात संतुलन ज्ञात कीजिए, (c) संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन क्या होता है जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है?

उत्तर 13: (a) संतुलन आय (Y) ज्ञात करें:

संतुलन की स्थिति में, कुल मांग (AD) = कुल आपूर्ति (Y) होती है।
कुल मांग (AD) का सूत्र: AD = C + I + G + (X – M)

जहां,

  • ( C = 40 + 0.8YD ) (YD = Y – T, जहां T = 50)
  • ( I = 60 )
  • ( G = 40 )
  • ( X = 90 )
  • ( M = 50 + 0.05Y )

पहले ( C ) की गणना करें:
C = 40 + 0.8(Y – 50)
C = 40 + 0.8Y – 40
C = 0.8Y

अब कुल मांग (AD) लिखें:
AD = 0.8Y + 60 + 40 + (90 – (50 + 0.05Y))
AD = 0.8Y + 60 + 40 + 90 – 50 – 0.05Y
AD = 0.8Y + 140 – 0.05Y
AD = 0.75Y + 140

संतुलन स्थिति में ( AD = Y ), इसलिए:
Y = 0.75Y + 140
Y – 0.75Y = 140
0.25Y = 140
Y = \(\frac{140}{0.25}\)
Y = 560

(b) संतुलन आय (Y = 560) पर निवल निर्यात (NX) ज्ञात करें:

निवल निर्यात (NX) = X – M
जहां ( X = 90 ) और ( M = 50 + 0.05Y )

जब Y = 560:
M = 50 + 0.05 × 560 = 50 + 28 = 78

तो,
NX = 90 – 78 = 12

(c) सरकार के क्रय (G) में 40 से 50 की वृद्धि के बाद संतुलन आय और निवल निर्यात:

अब ( G = 50 ) हो जाता है।
नया AD सूत्र:
AD = 0.75Y + 150

संतुलन स्थिति में:
Y = 0.75Y + 150
Y – 0.75Y = 150
0.25Y = 150
Y = \(\frac{150}{0.25}\)
Y = 600

अब नए संतुलन आय (Y = 600) पर निवल निर्यात (NX) ज्ञात करें:

जब Y = 600:
M = 50 + 0.05 × 600 = 50 + 30 = 80

तो,
NX = 90 – 80 = 10

  • (a) संतुलन आय ( Y = 560 )
  • (b) संतुलन आय पर निवल निर्यात ( NX = 12 )
  • (c) जब सरकार का खर्च 40 से बढ़कर 50 होता है, संतुलन आय 600 और निवल निर्यात 10 हो जाता है।

प्रश्न 14: उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात में x = 100 का परिवर्तन हो तो संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।

उत्तर 14: माना संतुलन  AD = AS
AD = C + 1 + G + (X – M)
AS = y
C + I + G + (X – M) = y
40 + 0.8(y – 50) + 60 + 40 + (100 – 50 – 0.5y) = y 
40 + 0.8y – 40 + 60 + 40 + 50 – 0.5y = y 
0 .7y = 150,    y = 214.28 करोड़
निवल निर्यात = X – M
100 – 50 – 0.5(214.28) = 50 – 107.14 = – 57.14 करोड़

प्रश्न 15: व्याख्या कीजिए कि G – T = (Sg – 1) – (X – M)।

उत्तर 15: एक अर्थव्यवस्था में आय संतुलन में होता है जब AD = AS हो।
AD = C + I + G + (X – M)
AS = C + S + T
अतः अर्थव्यवस्था संतुलन में होती है जब
C + S + T = C + I + G + (X – M)
पुनः प्रतिबंधित करने पर
(S – I) – (X – M) = G – T
अतः सिद्ध हुआ।
यह इसकी बीजगणितीय सिद्धि थी। तार्किक आधार पर अर्थव्यवस्था संतुलन में होती है, जब क्षरण = भरण हो। S, T और M क्षरण हैं जबकि I, G और X भरण हैं। जब इनका अंतर बराबर होगा तो आय को चक्रीय प्रवाह संतुलन होगा।

प्रश्न 16: यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?

उत्तर 16: यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों की विनिमय दर स्थिर हो, तो इसका व्यापार शेष पर प्रभाव होगा। जब देश A में मुद्रास्फीति अधिक होती है, तो वहाँ की वस्तुएं और सेवाएँ महंगी हो जाएंगी, जिससे देश A की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी। इसके परिणामस्वरूप, देश A की निर्यात मांग घट सकती है, जबकि देश B की वस्तुएं और सेवाएँ सस्ती हो जाएंगी, जिससे देश A से देश B के आयात में वृद्धि हो सकती है।

इसके कारण, देश A का व्यापार शेष नकारात्मक (व्यापार घाटा) हो सकता है, जबकि देश B का व्यापार शेष सकारात्मक (व्यापार अधिशेष) हो सकता है, क्योंकि देश B को अधिक निर्यात और कम आयात होगा। इस प्रकार, देश A का व्यापार घाटा बढ़ सकता है और देश B का व्यापार अधिशेष बढ़ सकता है, भले ही विनिमय दर स्थिर रहे।

प्रश्न 17: क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।

उत्तर 17: चालू पूँजीगत खाता खतरे का संकेत होगा यदि इसका प्रयोग उपभोग अथवा गैर विकासात्मक कार्यों के लिए किया जा रहा है। यदि इसका उपयोग विकासात्मक योजनाओं के लिए किया जा रहा है, तो इससे अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार का स्तर ऊँचा उठेगा।

आय और रोजगार का स्तर ऊँचा उठने का अर्थ है कि भारतीयों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्यात क्षमता बढ़ेगी, विदेशों में निवेश करने की क्षमता बढ़ेगी तथा सरकारी आय (कर तथा अन्य कारकों से) बढ़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था इस घाटे की पूर्ति करने में समर्थ हो जायेगी।

प्रश्न 18: मान लीजिए C = 100 + 0.75Y D, I = 500, G = 750, कर आय का 20 प्रतिशत है, x = 150, M = 100 + 0.2Y, है तो संतुलन आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा अधिक्य की गणना कीजिए।

उत्तर 18: अर्थव्यवस्था में संतुलन आय स्तर वह होता है जहाँ 

750 – 0.2(2333.33) = 750 – 466.66 = 283.34 करोड़
व्यापार घाटा = X – M = 150 – 100 – 0.2y
50 – 0.292333.33 = 50 – 466.66 = 411.66 करोड़

प्रश्न 19: उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए किया है।

उत्तर 19: निम्नलिखित विनिमय दर व्यवस्थाओं का कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए प्रयोग किया है:

1. विस्तृत सीमा पट्टी प्रणाली: इस प्रणाली के अंतर्गत अंतराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में दी करेंसियों की समता दर के बीच + 10% तक का सामंजस्य करके भुगतान शेष को ठीक करने की छूट होती है। यह ऐसी प्रणाली को कहते हैं, जो स्थिर विनिमय दर में विस्तृत परिवर्तन/समंजन की अनुमति देती है।

2. चलित सीमाबंध प्रणाली: यह भी स्थिर और लोचशील विनिमय दर के बीच एक समझौता है, परंतु जैसा कि नाम है चलित यह कम विस्तृत है। इसके केवल समता दर के बीच + 1% तक का सामंजस्य करके भुगतान शेष को ठीक करने की छूट होती है। यह लघु सामंजस्य है जिसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है।

3. प्रबंधित तरणशीलता प्रणाली: स्थिर और लोचशील विनिमय दरों की एक अंतिम मिश्रित प्रणाली है। यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर का मिश्रण है, जो सरकार द्वारा प्रबंधित तथा नियंत्रित होता है। इसमें विनिमय दर को लगभग पूरी तरह से स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है और मौद्रिक अधिकारी कभी-कभी हस्तक्षेप करते हैं।

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