Ncert Solutions for Class 12 Micro Economics Chapter 4 in hindi: पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत question answer
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Economics |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत class 12 ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर 1: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की ये विशेषताएं होती हैं:
- बाज़ार में सभी वस्तुएं और सेवाएं एक जैसी होती हैं।
- बाज़ार में प्रवेश और निकास की आज़ादी होती है।
- बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत ज़्यादा होती है।
- कोई भी कंपनी बाज़ार का काफ़ी बड़ा हिस्सा नहीं रखती।
- बाज़ार में एकाधिकार संयोजन नहीं हो सकता।
- बाज़ार में उत्पादन मानकीकृत होता है।
- बाज़ार में आर्थिक संसाधनों का कुशल आवंटन होता है।
- बाज़ार में सभी फ़र्म कीमत लेने वाली होती हैं।
- खरीदारों को बाज़ार में होने वाली कीमतों और लेन-देन के बारे में पूरी जानकारी होती है।
- उत्पादन के कारक एक उत्पादन से दूसरे उत्पादन में आसानी से बदले जा सकते है।
प्रश्न 2: एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर 2: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में, एक फर्म की संप्राप्ति (Revenue), बाजार कीमत और उसके द्वारा बेची गई मात्रा के बीच सीधा संबंध होता है। इस संबंध को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
कुल संप्राप्ति (Total Revenue) = मूल्य (Price) × बेची गई मात्र (Quantity) ( TR = P x Q ) चूंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्म “Price Taker” होती है, यानी वह बाजार में तय की गई कीमत को स्वीकार करती है, फर्म की कुल संप्राप्ति बेची गई मात्रा और बाजार कीमत के गुणनफल के बराबर होती है।
प्रश्न 3: कीमत रेखा क्या है?
उत्तर 3: कीमत रेखा को बजट रेखा भी कहा जाता है। यह एक ग्राफिकल प्रतिनिधित्व है जो उपभोक्ता द्वारा उपलब्ध आय और वस्तुओं की कीमतों के आधार पर विभिन्न वस्तुओं के संयोजन को दर्शाता है जिन्हें उपभोक्ता अपनी पूरी आय खर्च करके खरीद सकता है।
यह रेखा निम्नलिखित बातों को स्पष्ट करती है:
- आय सीमा: उपभोक्ता की आय एक सीमा तय करती है कि वह कितनी मात्रा में वस्तुओं का संयोजन खरीद सकता है।
- वस्तुओं की कीमत: विभिन्न वस्तुओं की कीमतें इस बात को प्रभावित करती हैं कि उपभोक्ता अपनी आय से कितनी वस्तुएँ खरीद सकता है।
मूल रूप से, कीमत रेखा उपभोक्ता के लिए उसके बजट की सीमा को दर्शाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उसकी उपलब्ध आय से कौन-कौन से वस्तु संयोजन खरीदे जा सकते हैं।
प्रश्न 4: एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर 4: कुल संप्राप्ति वक्र की प्रवणता सीमान्त संप्राप्ति द्वारा निर्धारित होती है। एक कीमत स्वीकारक फर्म में बहुत बड़ी संख्या में क्रेता और विक्रेता होने के कारण तथा वस्तु समरूप होने के कारण वस्तु की कीमत बाजार माँग और बाजार पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।
ऐसे में AR वक्र X अक्ष के समान्तर रेखा हो जाता है। AR स्थिर होने से MR भी स्थिर हो जाता है तथा उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर AR = MR होता है। अतः TR वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाला सीधी रेखा होता है। यह एक उद्गम से होकर गुजरता है, क्योंकि बिक्री की मात्रा शून्य होने पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होता है।
प्रश्न 5: एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर 5: एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाजार कीमत और औसत संप्राप्ति के बीच सीधा और सरल संबंध होता है। इस संबंध को इस प्रकार समझा जा सकता है:
- बाजार कीमत = औसत संप्राप्ति
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में, फर्म “कीमत-स्वीकारक” होती है, यानी उसे बाजार द्वारा तय की गई कीमत को स्वीकार करना पड़ता है। इसका मतलब है कि फर्म द्वारा प्रत्येक इकाई को बेचे जाने पर जो संप्राप्ति होती है, वह बाजार कीमत के बराबर होती है।
- औसत संप्राप्ति (AR) = कुल संप्राप्ति / बेची गई कुल मात्रा
- लेकिन चूंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कुल संप्राप्ति = कीमत × मात्रा होती है, इसलिए औसत संप्राप्ति हमेशा कीमत के बराबर होती है।
इस प्रकार, कीमत-स्वीकारक फर्म के लिए बाजार कीमत और औसत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं।
प्रश्न 6: एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमान्त संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर 6: एक कीमत-स्वीकारक फर्म के लिए बाजार कीमत और सीमांत संप्राप्ति के बीच सीधा और महत्वपूर्ण संबंध होता है:
- बाजार कीमत = सीमांत संप्राप्ति
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में, फर्म को बाजार द्वारा तय की गई कीमत को स्वीकार करना पड़ता है। इसका मतलब यह है कि हर अतिरिक्त इकाई बेचने पर फर्म को जो अतिरिक्त संप्राप्ति प्राप्त होती है, वह उसी बाजार कीमत के बराबर होती है।
- सीमांत संप्राप्ति (MR) वह संप्राप्ति है, जो एक अतिरिक्त इकाई बेचने पर प्राप्त होती है।
इस प्रकार, पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सीमांत संप्राप्ति हमेशा बाजार कीमत के बराबर होती है, क्योंकि फर्म अपनी किसी भी बेची गई मात्रा के लिए बाजार द्वारा तय की गई एक ही कीमत पर विक्रय करती है।
प्रश्न 7: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर 7: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण करने वाली फर्म के लिए सकारात्मक उत्पादन करने की शर्तें निम्नलिखित हैं:
- बाजार कीमत ≥ औसत परिवर्ती लागत (Price ≥ AVC): फर्म तभी उत्पादन जारी रखेगी जब बाजार कीमत औसत परिवर्ती लागत से अधिक या बराबर हो। यदि कीमत AVC से कम होती है, तो फर्म को अल्पावधि में उत्पादन बंद करना पड़ सकता है।
- सीमांत लागत = सीमांत संप्राप्ति (MC = MR): फर्म अपना उत्पादन उस स्तर तक बढ़ाती है जहाँ सीमांत लागत (MC) सीमांत संप्राप्ति (MR) के बराबर हो, ताकि अधिकतम लाभ या न्यूनतम हानि हो सके।
- दीर्घकाल में कीमत औसत कुल लागत से अधिक हो (P ≥ ATC): दीर्घकाल में, फर्म का सकारात्मक उत्पादन करने के लिए आवश्यक है कि बाजार कीमत उसकी औसत कुल लागत से कम से कम बराबर हो या उससे अधिक हो। यदि बाजार कीमत ATC से कम होती है, तो फर्म को दीर्घकाल में आर्थिक हानि होगी और वह बाजार से बाहर हो सकती है।
प्रश्न 8: क्या प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमान्त लागत के बराबर नहीं है, उसकी निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर 8: प्रतिस्पर्धी बाजार में, लाभ-अधिकतमीकरण करने वाली फर्म का उत्पादन स्तर सकारात्मक तभी हो सकता है जब उसकी बाजार कीमत (P) और सीमांत लागत (MC) बराबर हों, यानी ( P = MC )।
यदि बाजार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, तो फर्म लाभ अधिकतम नहीं कर रही होगी:
- यदि ( P > MC ): फर्म अपनी निर्गत (output) बढ़ाकर अधिक लाभ कमा सकती है, क्योंकि हर अतिरिक्त इकाई पर संप्राप्ति लागत से अधिक है।
- यदि ( P < MC ): फर्म को अपनी निर्गत कम करनी चाहिए, क्योंकि प्रत्येक अतिरिक्त इकाई पर लागत संप्राप्ति से अधिक है, जिससे हानि हो रही है।
इसलिए, ( P = MC ) के बिना फर्म का उत्पादन स्तर सकारात्मक और लाभ अधिकतम नहीं हो सकता।
प्रश्न 9: क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमान्त लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।
उत्तर 9: नहीं, एक प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती जब सीमांत लागत (MC) घट रही हो। एक लाभ अधिकतमीकरण फर्म संतुलन में तब होगी जब
- MR = MC
- MC बढ़ रहा है।
प्रश्न 10: क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ – अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है, यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर 10: नहीं, यदि बाजार कीमत (P) न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से कम है, तो एक प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक उत्पादन नहीं कर सकती। अल्पकाल में उत्पादन की शर्त: यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से कम है, तो फर्म अपने परिवर्ती लागत (variable costs) को भी कवर नहीं कर पा रही होती। ऐसे में, फर्म को नुकसान हो रहा होता है और वह अल्पकाल में उत्पादन बंद करने का निर्णय ले सकती है। इसलिए, यदि P < AVC तो फर्म सकारात्मक उत्पादन नहीं कर सकती।
प्रश्न 11: क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाजार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर 11: यदि दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण में बाजार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो फर्म उत्पादन बंद कर देगी। दीर्घकाल में सारी लागत परिवर्ती लागत होती है। अतः यदि औसत लागत तक भी। एक उत्पादक को प्राप्त नहीं हो रही तो वह उत्पादन कदापि नहीं करेगा।
प्रश्न 12: अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर 12: अल्पकाल में फर्म का पूर्ति वक्र सीमांत लागत (MC) वक्र के उस हिस्से को दर्शाता है जो औसत परिवर्ती लागत (AVC) से ऊपर होता है।
प्रश्न 13: दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर 13: दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र (Long-Run Supply Curve) वह वक्र होता है जो बाजार में विभिन्न कीमतों पर फर्म द्वारा उत्पादित और बेची गई मात्रा को दर्शाता है, जबकि दीर्घकाल में सभी कारक उत्पादन के लिए परिवर्तनीय होते हैं। दीर्घकाल में, फर्म का पूर्ति वक्र सीमांत लागत (MC) वक्र के उस हिस्से को दर्शाता है, जहां P = ATC और P ≥ AVC होती है।
प्रश्न 14: प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर 14: प्रौद्योगिकी प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती है: उत्पादन लागत में कमी, पूर्ति वक्र का विस्तार, अल्पकाल और दीर्घकाल में प्रभाव। संक्षेप में, प्रौद्योगिकी प्रगति फर्म के पूर्ति वक्र को नीचे और दाएं शिफ्ट कर देती है, जिससे अधिक उत्पादन संभव होता है और लागत कम होती है।
प्रश्न 15: इकाई कर लगाने से एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता
उत्तर 15: जब किसी वस्तु पर इकाई कर लगता है तो अल्पकाल में पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है, क्योंकि अल्पकाल काल का पूर्ति वक्र MC का न्यूनतम AVC वक्र के ऊपर का हिस्सा होता है। कर लगने पर MC तथा AVC वक्र बाँई ओर खिसकेंगे, अतः पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसकेगा।
प्रश्न 16: किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर 16: आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को ऊपर की ओर शिफ्ट कर देती है। जब किसी आगत (जैसे कच्चा माल, श्रमिकों की मजदूरी, ऊर्जा, आदि) की कीमत बढ़ती है, तो उत्पादन की लागत भी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप सीमांत लागत (MC) और औसत कुल लागत (ATC) में वृद्धि होती है, जिससे फर्म को अधिक कीमतों पर ही उत्पादन जारी रखने का प्रोत्साहन मिलता है। इस प्रकार, पूर्ति वक्र ऊंचा हो जाता है, और फर्म कम उत्पादन करेगी या उच्च कीमतों पर उत्पादन बढ़ाएगी।
प्रश्न 17: बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाजार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर 17: बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाजार पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जायेगा। जब अधिक फर्म बाजार में प्रवेश करती हैं, तो कुल आपूर्ति में वृद्धि होती है, जिससे बाजार में उत्पाद की उपलब्धता बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न कीमतों पर अधिक उत्पादन किया जाता है, और पूर्ति वक्र दाएं की ओर खिसकता है, यानी बाजार में अधिक मात्रा में उत्पाद उपलब्ध होता है। यह वृद्धि आमतौर पर बाजार की प्रतिस्पर्धा बढ़ाती है और कीमतों पर दबाव डाल सकती है।
प्रश्न 18: पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर 18: पूर्ति की कीमत लोच का अर्थ है, किसी वस्तु की कीमत में बदलाव के प्रति उसकी आपूर्ति में होने वाला प्रतिशत परिवर्तन। यह यह बताता है कि जब वस्तु की कीमत में वृद्धि या गिरावट होती है, तो उसके उत्पादन या आपूर्ति में कितनी बड़ी मात्रा में बदलाव आता है।
पूर्ति की कीमत लोच (PES) को निम्नलिखित सूत्र से मापा जाता है:
PES = कीमत में परिवर्तन\आपूर्ति में परिवर्तन
जहाँ:
- % कीमत में परिवर्तन = \(\frac{\Delta P}{P} \times 100\)
- % आपूर्ति में परिवर्तन = \(\frac{\Delta Q}{Q} \times 100\)
यहाँ:
- P = कीमत,
- Q = आपूर्ति की मात्रा,
- ΔP = कीमत में बदलाव,
- ΔQ = आपूर्ति में बदलाव।
प्रश्न 19: निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई कीमत 10 रुपए है।
बेचीं गई मात्रा | कुल संप्राप्ति | सीमांत संप्राप्ति | औसत संप्राप्ति |
0 | |||
1 | |||
2 | |||
3 | |||
4 | |||
5 | |||
6 |
उत्तर 19:
बेचीं गई मात्रा | कीमत | कुल संप्राप्ति | सीमांत संप्राप्ति | औसत संप्राप्ति |
---|---|---|---|---|
0 | 10 | 10 × 0 = 10 | — | — |
1 | 10 | 10 × 1 = 10 | 10 – 0 = 10 | 10 |
2 | 10 | 10 × 2 = 20 | 20 – 10 = 10 | 10 |
3 | 10 | 10 × 3 = 30 | 30 – 20 = 10 | 10 |
4 | 10 | 10 × 4 = 40 | 40 – 30 = 10 | 10 |
5 | 10 | 10 × 5 = 50 | 50 – 40 = 10 | 10 |
6 | 10 | 10 × 6 = 60 | 60 – 50 = 10 | 10 |
प्रश्न 20: निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाजार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
बेची गई मात्रा | (कुल संप्राप्ति) रु | (कुल लागत)रु | लाभ |
0 | 0 | 5 | |
1 | 5 | 7 | |
2 | 10 | 10 | |
3 | 15 | 12 | |
4 | 20 | 15 | |
5 | 25 | 23 | |
6 | 30 | 33 | |
7 | 35 | 40 |
उत्तर 20:
बेची गई मात्रा | (कुल संप्राप्ति) रु | (कुल लागत)रु | लाभ | MR (Rs) |
0 | 0 | 5 | -5 | – |
1 | 5 | 7 | -2 | 5 |
2 | 10 | 10 | 0 | 5 |
3 | 15 | 12 | 3 | 5 |
4 | 20 | 15 | 5 | 5 |
5 | 25 | 23 | 2 | 5 |
6 | 30 | 33 | -3 | 5 |
7 | 35 | 40 | -5 | 5 |
अतः लाभ 4 इकाई पर अधिकतम है। इस उत्पादन स्तर पर कीमत 20/4 = ₹ 5 होगी।
प्रश्न 21: निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रुपए दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
उत्पादन | कुल लागत (इकाई) (रु) |
0 | 5 |
1 | 15 |
2 | 22 |
3 | 27 |
4 | 31 |
5 | 38 |
6 | 49 |
7 | 63 |
8 | 81 |
9 | 101 |
10 | 123 |
उत्तर 21:
मात्रा | संप्राप्ति सीमान्त | कुल लागत (रु) | कुल संप्राप्ति | लाभ (TR – TC) |
0 | 10 | 5 | 0 | -5 |
1 | 10 | 15 | 10 | 5 |
2 | 10 | 22 | 20 | -2 |
3 | 10 | 27 | 30 | 3 |
4 | 10 | 31 | 40 | 9 |
5 | 10 | 38 | 50 | 12 |
6 | 10 | 49 | 60 | 11 |
7 | 10 | 63 | 70 | 7 |
8 | 10 | 81 | 80 | -1 |
9 | 10 | 101 | 90 | -11 |
10 | 10 | 123 | 100 | -23 |
लाभ अधिकतम 5 यूनिट उत्पादन पर है। इसलिए, लाभ-अधिकतम निर्गत स्तर 5 यूनिट है।
प्रश्न 22: दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है- SS1 कॉलम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कॉलम SS2 में फर्म 2 की पूर्ति सारणी है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत | SS1 इकाइयां | SS2 इकाइयां |
0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 |
2 | 0 | 0 |
3 | 1 | 1 |
4 | 2 | 2 |
5 | 3 | 3 |
6 | 4 | 4 |
उत्तर 22:
कीमत | SS1 इकाइयां | SS2 इकाइयां | बाजार पूर्ति |
0 | 0 | 0 | 0 + 0 = 0 |
1 | 0 | 0 | 0 + 0 = 0 |
2 | 0 | 0 | 0 + 0 = 0 |
3 | 1 | 1 | 1 + 1 = 2 |
4 | 2 | 2 | 2 + 2 = 4 |
5 | 3 | 3 | 3 + 3 = 6 |
6 | 4 | 4 | 4 + 4 = 8 |
प्रश्न 23: एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कॉलम SS1 तथा कालम SS2 क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत (रु) | SS1 (किलो) | SS2 (किलो) |
0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 |
2 | 0 | 0 |
3 | 1 | 0 |
4 | 2 | 0.5 |
5 | 3 | 1 |
6 | 4 | 1.5 |
7 | 5 | 2 |
8 | 6 | 2.5 |
उत्तर 23:
कीमत (रु) | SS1 (किलो) | SS2 (किलो) | बाजार पूर्ति |
0 | 0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 | 0 |
2 | 0 | 0 | 0 |
3 | 1 | 0 | 1 |
4 | 2 | 0.5 | 2.5 |
5 | 3 | 1 | 3 |
6 | 4 | 1.5 | 5.5 |
7 | 5 | 2 | 7 |
8 | 6 | 2.5 | 8.5 |
प्रश्न 24: एक बाजार में 3 समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाजार पूर्ति सारणी को परिकलन कीजिए।
कीमत (रु) | SS1 (इकाई) |
0 | 0 |
1 | 0 |
2 | 2 |
3 | 4 |
4 | 6 |
5 | 8 |
6 | 10 |
7 | 12 |
8 | 14 |
उत्तर 24: क्योंकि तीनों फर्मे समरूपी हैं बाजार पूर्ति ss1 को 3 से गुणा करके ज्ञात की जा सकती है।
कीमत (रु) | SS1 (इकाई) | बाजार पूर्ति |
---|---|---|
0 | 0 | 3 × 0 = 0 |
1 | 0 | 3 × 0 = 0 |
2 | 2 | 3 × 2 = 6 |
3 | 4 | 3 × 4 = 12 |
4 | 6 | 3 × 6 = 18 |
5 | 8 | 3 × 8 = 24 |
6 | 10 | 3 × 10 = 30 |
7 | 12 | 3 × 12 = 36 |
8 | 14 | 3 × 14 = 42 |
प्रश्न 25: 10 रुपए प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रुपए है। बाजार कीमत बढ़कर 15 रुपए हो जाती है और अब फर्म को 150 रुपए की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
उत्तर 25: पूर्ति वक्र की कीमत लोच की गणना करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है:
पूर्ति लोच Es = \(\frac{\%\Delta Q}{\%\Delta P}\)
जहां:
- %ΔQ = आपूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
- %ΔP = कीमत में प्रतिशत परिवर्तन
1. मूल और नई स्थिति की जानकारी:
- प्रारंभिक कीमत (P₁) = 10 रुपए
- नई कीमत (P₂) = 15 रुपए
- प्रारंभिक संप्राप्ति (Q₁ * P₁) = 50 रुपए
- नई संप्राप्ति (Q₂ * P₂) = 150 रुपए
2. प्रारंभिक और नई संप्राप्ति के आधार पर Q₁ और Q₂:
\(Q₁ = \frac{50}{10}\) = 5 इकाइयां
\(Q₂ = \frac{150}{15}\) = 10 इकाइयां
3. %ΔQ और %ΔP की गणना:
\(\%\Delta Q = \frac{Q₂ – Q₁}{Q₁} \times 100 \)\(= \frac{10 – 5}{5} \times 100 = 100\%\)
\(\%\Delta P = \frac{P₂ – P₁}{P₁} \times 100 \)\(= \frac{15 – 10}{10} \times 100 = 50\%\)
4. पूर्ति लोच (Eₛ):
\(Eₛ = \frac{100\%}{50\%} = 2\)
उत्तर: पूर्ति वक्र की कीमत लोच Es = 2
प्रश्न 26: एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रुपए से बदलकर 20 रुपए हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
उत्तर 26: पूर्ति वक्र की कीमत लोच का सूत्र है:
Es = \(\frac{\%\Delta Q}{\%\Delta P}\)
जहां:
- Es = पूर्ति लोच (0.5 दी गई है)
- %ΔQ = आपूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
- %ΔP = कीमत में प्रतिशत परिवर्तन
1. कीमत में प्रारंभिक और अंतिम स्थिति:
- प्रारंभिक कीमत (P₁) = 5 रुपए
- अंतिम कीमत (P₂) = 20 रुपए
2. %ΔP की गणना:
\(\%\Delta P = \frac{P₂ – P₁}{P₁} \times 100 \)\(= \frac{20 – 5}{5} \times 100 = 300\%\)
3. %ΔQ की गणना: चूंकि (Es = 0.5), इसलिए:
\(0.5 = \frac{\%\Delta Q}{300\%}\)
\(\%\Delta Q = 0.5 \times 300\% = 150\%\)
4. प्रारंभिक और अंतिम निर्गत स्तर की गणना:
माना कि प्रारंभिक निर्गत स्तर (Q₁) है, और अंतिम निर्गत स्तर (Q₂ = Q₁ + 15) है।
\(\%\Delta Q = \frac{Q₂ – Q₁}{Q₁} \times 100\)
150% = \(\frac{Q₁ + 15 – Q₁}{Q₁} \times 100\)
\(1.5 = \frac{15}{Q₁}\)
\(Q₁ = \frac{15}{1.5} = 10\)
तो, प्रारंभिक निर्गत स्तर (Q₁ = 10) इकाइयाँ है और अंतिम निर्गत स्तर (Q₂ = Q₁ + 15 = 10 + 15 = 25) इकाइयाँ है।
उत्तर:
- प्रारंभिक निर्गत स्तर = 10 इकाइयाँ
- अंतिम निर्गत स्तर = 25 इकाइयाँ
प्रश्न 27: 10 रुपए बाजार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाजार कीमत बढ़कर 30 रुपए हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
उत्तर 27: पूर्ति की नई मात्रा Q₂ का पता लगाने के लिए, हम पूर्ति लोच Es के सूत्र का उपयोग करेंगे:
Es = \(\frac{\%\Delta Q}{\%\Delta P}\)
1. दी गई जानकारी:
- प्रारंभिक कीमत P₁ = 10 रुपए
- अंतिम कीमत P₂ = 30 रुपए
- प्रारंभिक मात्रा Q₁ = 4 इकाइयाँ
- पूर्ति की कीमत लोच Es = 1.25
2. %ΔP की गणना:
\(\%\Delta P = \frac{P₂ – P₁}{P₁} \times 100\) \(= \frac{30 – 10}{10} \times 100 = 200\%\)
3. %ΔQ की गणना:
\(E_s = 1.25 = \frac{\%\Delta Q}{200\%}\)
\(\%\Delta Q = 1.25 \times 200\% = 250\%\)
4. नई मात्रा (Q₂) की गणना:
\(\%\Delta Q = \frac{Q₂ – Q₁}{Q₁} \times 100\)
\(250\% = \frac{Q₂ – 4}{4} \times 100\)
\(2.5 = \frac{Q₂ – 4}{4}\)
\(Q₂ – 4 = 2.5 \times 4 = 10\)
Q₂ = 4 + 10 = 14
उत्तर: नई कीमत पर फर्म 14 इकाइयों की पूर्ति करेगी।