Ncert Solutions for Class 12 Micro Economics Chapter 5 in hindi: बाजार संतुलन question answer
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Economics |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | बाजार संतुलन class 12 ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: बाजार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर 1: बाजार संतुलन एक ऐसी स्थिति है जहाँ किसी वस्तु या सेवा की मांग (demand) और पूर्ति (supply) एक समान होती है। इस बिंदु पर बाजार में न तो अतिरिक्त आपूर्ति होती है और न ही मांग की कमी। इसे संतुलन मूल्य और संतुलन मात्रा कहा जाता है। यह स्थिति बाजार की स्थिरता का प्रतीक होती है, जहाँ मांग और आपूर्ति दोनों शक्तियाँ संतुलन में होती हैं।
प्रश्न 2: हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर 2: हम तब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है, जब उस वस्तु की मांग उसकी पूर्ति से अधिक होती है। इसका मतलब है कि मौजूदा मूल्य पर उपभोक्ता जितनी मात्रा में वस्तु खरीदना चाहते हैं, उत्पादक उतनी मात्रा में उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं।
प्रश्न 3: हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर 3: हम तब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है, जब उस वस्तु की पूर्ति उसकी मांग से अधिक होती है। इसका अर्थ है कि मौजूदा मूल्य पर उत्पादक जितनी मात्रा में वस्तु बेच रहे हैं, उपभोक्ता उतनी मात्रा में खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं।
प्रश्न 4: क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है?
(a) संतुलन कीमत से अधिक।
(b) संतुलन कीमत से कम हो।
उत्तर 4:
(a) यदि बाजार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से अधिक हो:
- जब मूल्य संतुलन कीमत से अधिक होगा, तो बाजार में अधिपूर्ति (Excess Supply) हो जाएगी।
- इसका मतलब है कि उत्पादक ज्यादा मात्रा में वस्तु बेचने के लिए तैयार होंगे, लेकिन उपभोक्ता इतनी अधिक कीमत पर वस्तु खरीदने में रुचि नहीं दिखाएंगे।
- इस स्थिति में, वस्तु की मांग घट जाएगी और पूर्ति बढ़ जाएगी, जिससे बाजार में सामान की अधिकता हो जाएगी।
- इससे कीमतें घटने का दबाव बनेगा ताकि संतुलन मूल्य की ओर लौट सकें।
(b) यदि बाजार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से कम हो:
- जब मूल्य संतुलन कीमत से कम होगा, तो बाजार में अधिमांग (Excess Demand) हो जाएगी।
- इसका मतलब है कि उपभोक्ता कम कीमत पर अधिक मात्रा में वस्तु खरीदना चाहेंगे, जबकि उत्पादक इतने कम मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में वस्तु उपलब्ध कराने के लिए तैयार नहीं होंगे।
- इस स्थिति में मांग बढ़ जाएगी और पूर्ति घट जाएगी, जिससे वस्तु की कमी हो जाएगी।
- इस स्थिति में कीमतें बढ़ने का दबाव बनेगा ताकि बाजार संतुलन की स्थिति में लौट सके।
प्रश्न 5: फर्मों की एक स्थिर संख्या होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर 5: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में, जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तो कीमत का निर्धारण बाजार की मांग और आपूर्ति के आधार पर होता है। प्रत्येक फर्म वस्तुओं का उत्पादन करती है और उन्हें बाजार में बेचती है, लेकिन किसी एक फर्म का कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं होता, क्योंकि बाजार में बड़ी संख्या में प्रतिस्पर्धी फर्में होती हैं। सभी फर्में एकसमान वस्तुएं (समान गुणों वाली) बेचती हैं, और उपभोक्ता सबसे कम कीमत पर वस्तु खरीदने का विकल्प चुनते हैं।
इस बाजार में संतुलन मूल्य तब निर्धारित होता है जब बाजार की कुल मांग और कुल आपूर्ति बराबर होती हैं। यदि किसी समय कीमतें संतुलन से ऊपर या नीचे जाती हैं, तो बाजार की शक्तियाँ (मांग और आपूर्ति) स्वतः इसे संतुलन मूल्य की ओर खींच लेती हैं। इस स्थिति में, प्रत्येक फर्म एक मूल्य ग्राही (price taker) होती है, यानी उन्हें बाजार में प्रचलित कीमत को स्वीकार करना पड़ता है, क्योंकि अगर कोई फर्म अपनी कीमत बढ़ाती है, तो उपभोक्ता दूसरी फर्म से खरीदना शुरू कर देंगे। इसी तरह, अगर कोई फर्म कीमत कम करती है, तो उसे घाटा उठाना पड़ेगा, क्योंकि यह उनके लागत से कम होगा।
प्रश्न 6: मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर 6: यदि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है और फर्मों के निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति दी जाती है, तो बाजार में निम्नलिखित समायोजन होंगे:
जब कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक होती है, तो मौजूदा फर्में असामान्य लाभ कमा रही होती हैं। इस लाभ को देखकर अन्य फर्में भी बाजार में प्रवेश करना शुरू कर देंगी। नए फर्मों के प्रवेश से बाजार में कुल आपूर्ति बढ़ जाएगी। बढ़ती आपूर्ति के कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे मूल्य घटने लगेगा। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी जब तक कि बाजार की कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर नहीं हो जाती।
इस बिंदु पर, सभी फर्में केवल सामान्य लाभ (normal profit) कमाएंगी, और नए फर्मों के प्रवेश की गति रुक जाएगी। इसी तरह, यदि कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम हो जाती है, तो फर्में घाटा उठाने के कारण बाजार से बाहर निकलेंगी, जिससे आपूर्ति घटेगी और कीमत फिर से संतुलन पर लौट आएगी।
इस प्रकार, फर्मों के प्रवेश और बहिर्गमन की प्रक्रिया बाजार को दीर्घकालिक संतुलन (long-run equilibrium) की ओर ले जाती है, जहाँ कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो जाती है।
प्रश्न 7: जब बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाजार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर 7: जब बाजार में निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति होती है, तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्में उस कीमत पर पूर्ति करती हैं जो उनकी न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। इस स्थिति में, फर्में केवल सामान्य लाभ कमा रही होती हैं, न कि असाधारण लाभ। यह दीर्घकालिक संतुलन की स्थिति होती है, जहाँ किसी फर्म को न तो बाजार में प्रवेश करने का प्रोत्साहन होता है और न ही बहिर्गमन करने की आवश्यकता होती है।
संतुलन मात्रा का निर्धारण: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में संतुलन मात्रा इस प्रकार निर्धारित होती है:
- मांग और आपूर्ति की शक्तियाँ मिलकर बाजार में कीमत तय करती हैं। इस कीमत पर कुल बाजार की मांग और कुल बाजार की आपूर्ति एक समान होती है।
- फर्म का उत्पादन स्तर इस प्रकार तय होता है कि उसकी सीमांत लागत (Marginal Cost) बाजार में प्रचलित कीमत के बराबर हो। यानी, प्रत्येक फर्म वह मात्रा उत्पादन करती है जहाँ उसकी सीमांत लागत और बाजार मूल्य बराबर हो जाते हैं, क्योंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्में कीमत की ग्राही (Price Taker) होती हैं।
- दीर्घकालिक संतुलन में, बाजार में इतनी फर्में प्रवेश कर चुकी होती हैं कि कुल आपूर्ति और कुल मांग के बीच संतुलन स्थापित हो जाता है, और प्रत्येक फर्म की कीमत उसकी न्यूनतम औसत लागत पर आ जाती है।
प्रश्न 8: एक बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर 8: जब बाज़ार में फर्मों को निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति होती है, तो उस बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या कीमत और न्यूनतम औसत लागत (LAC) के आधार पर निर्धारित होती है:
जब कीमत, LAC के न्यूनतम के बराबर होती है, तो कोई भी नई फ़र्म बाज़ार में प्रवेश करने के लिए आकर्षित नहीं होती और न ही कोई मौजूदा फ़र्म बाहर जाती है। इस तरह, कीमत की समानता और LAC के न्यूनतम के आधार पर फ़र्मों की संख्या निर्धारित होती है।
प्रश्न 9: संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में (a) वृद्धि होती है (b) कमी होती है?
उत्तर 9: संतुलन कीमत और मात्रा उपभोक्ताओं की आय में बदलाव से प्रभावित होती है, क्योंकि आय में परिवर्तन से वस्तुओं की मांग बदल जाती है। यह प्रभाव दो प्रकार के उत्पादों पर अलग-अलग हो सकता है: सामान्य वस्तुएँ (Normal Goods) और निम्न वस्तुएँ (Inferior Goods)। सामान्य वस्तुएँ वे होती हैं जिनकी मांग आय बढ़ने पर बढ़ती है, जबकि निम्न वस्तुओं की मांग आय बढ़ने पर घटती है।
(a) जब उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि होती है:
1. सामान्य वस्तुएँ: आय बढ़ने पर उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति (purchasing power) बढ़ जाती है, जिससे वे अधिक मात्रा में सामान्य वस्तुएँ खरीदने लगते हैं। इससे इन वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। मांग में वृद्धि से बाजार की मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि संतुलन की कीमत और मात्रा दोनों बढ़ जाती हैं, क्योंकि अधिक मांग से उत्पादकों को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
2. निम्न वस्तुएँ: आय बढ़ने पर निम्न वस्तुओं की मांग घट जाती है, क्योंकि उपभोक्ता अब बेहतर गुणवत्ता वाली वस्तुएँ खरीदने की ओर बढ़ते हैं। इससे निम्न वस्तुओं की मांग घट जाती है, और मांग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। परिणामस्वरूप, संतुलन की कीमत और मात्रा दोनों घट जाती हैं।
(b) जब उपभोक्ताओं की आय में कमी होती है:
1. सामान्य वस्तुएँ: आय घटने पर उपभोक्ता सामान्य वस्तुएँ कम खरीदते हैं, जिससे इन वस्तुओं की मांग घट जाती है। मांग में कमी से बाजार की मांग वक्र बाईं ओर खिसक जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि संतुलन की कीमत और मात्रा दोनों घट जाती हैं, क्योंकि कम मांग के कारण उत्पादक उत्पादन कम कर देते हैं।
2. निम्न वस्तुएँ: आय घटने पर उपभोक्ता निम्न वस्तुओं की ओर रुख करते हैं, जिससे इनकी मांग बढ़ जाती है। निम्न वस्तुओं की मांग बढ़ने से मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है। परिणामस्वरूप, संतुलन की कीमत और मात्रा दोनों बढ़ जाती हैं।
प्रश्न 10: पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर 10: जूतों की जोड़ी तथा मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ है। पूरक वस्तु की कीमत और मात्रा में ऋणात्मक संबंध है अर्थात् X की कीमत बढ़ने पर Y की माँग कम हो जाती है तथा विपरीत। इसलिए जूतों की कीमतों कीमत में वृद्धि होने पर मोजों की जोड़ी की माँग में कमी होगी। तदनुसार माँग वक्र बाईं ओर खिसक जायेगा और मोजों की कीमत तथा उसकी खरीदी व बेची जाने वाली संख्या में कमी होगी। (चित्र देखें।)
प्रश्न 11: कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतुलन मात्रा पर प्रभाव को समझाइए।
उत्तर 11: काफी के कीमत में परिवर्तन का चाय की संतुलन कीमत तथा मात्रा का प्रभाव:
चाय और कॉफी प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ हैं। प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत और माँग में धनात्मक संबंध होता है अर्थात् वस्तु X की कीमत बढ़ने पर वस्तु Y की मात्रा बढ़ती है, तथा विपरीत। अतः कॉफी की कीमत बढ़ने से चाय की माँग में वृद्धि होगी, माँग में वृद्धि होने पर संतुलन कीमत भी बढ़ेगी और संतुलन मात्रा भी बढ़ेगी। कॉफी की कीमत कम होने से चाय की माँग में कमी होगी। माँग में कमी होने से संतुलन कीमत भी घटेगी तथा संतुलन मात्रा भी घटेगी।
प्रश्न 12: जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर 12: आगतों की कीमतों में परिवर्तन वस्तु की उत्पादन लागत और फलस्वरूप लाभ को प्रभावित करता है। इससे उत्पादक का पूर्ति वक्र प्रभावित होता है।
प्रश्न 13: यदि वस्तु X की स्थानापन्न वस्तु (Y) की कीमत में वृद्धि होती है तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर 13: जब उत्पाद Y की कीमत बढ़ती है, तो उत्पाद X की मांग भी बढ़ने लगती है। बाजार मूल्य समान रहने से, बढ़ी हुई मांग के फलस्वरूपस्वरूप बाजार में उत्पाद X की आपूर्ति कम हो जाएगी। परिणामस्वरूप इस बढ़ती मांग और आपूर्ति में कमी के कारण, संतुलन की कीमत बढ़ने लगती है। फर्म उत्पाद X की आपूर्ति को बढ़ाना शुरू कर देता है, और इसलिए संतुलन मात्रा भी बढ़ जाती है।
प्रश्न 14: बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में माँग वक्र के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर 14: एक बाजार में जहां फर्मों की संख्या तय की जाती है, किसी उत्पाद की मांग बढ़ने पर संतुलन की कीमत बढ़ जाएगी, और इसलिए आउटपुट भी बढ़ेगा। परन्तु यदि कोई बाजार फर्मों के प्रवेश और निकास की अनुमति देता है, तो संतुलन की कीमत घट जाएगी। बाज़ार में संतुलन की कीमत कम होने पर अधिक फर्मों को प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी क्योंकि वे भी अधिक लाभ कमाना चाहते हैं। लेकिन प्रविष्टियों की एक निश्चित संख्या के बाद, आपूर्ति बढ़ने के साथ लाभ कम होने लगता है। कीमत घटने पर उपभोक्ता एक ही खर्च में अधिक खरीदी करते है, और बढ़ती मांग उपभोक्ताओं को एक ही खर्च में कम खरीदारी करवाती है। इस कारण फर्म बाजार में अपने उत्पादों की मात्रा में अंतर करने के लिए विवश हो जाती है।
प्रश्न 15: माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर 15: इसमें तीन स्थितियाँ संभव हैं।
1. जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम हो-इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से कम होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाती है।
2. जब माँग वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि बराबर होते हैं। इस स्थिति में माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि का प्रभाव एक दूसरे को समाप्त कर देते हैं तथा संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है परंतु संतुलन मात्रा
अधिक हो जाती है।
3. जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो—इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के
प्रभाव से अधिक होता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाते हैं।
प्रश्न 16: संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब ।
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?
(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर 16: संतुलन कीमत और मात्रा पर माँग और पूर्ति वक्रों के शिफ्ट का प्रभाव निम्नलिखित प्रकार से होगा:
(a) माँग और पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं: जब माँग और पूर्ति दोनों वक्र समान दिशा में शिफ्ट होते हैं (यानी दोनों में वृद्धि या दोनों में कमी), तो संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:
- जब माँग और पूर्ति दोनों में समान मात्रा में वृद्धि होती है: इस स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं पड़ेगा (वह वैसी की वैसी रहेगी), लेकिन संतुलन मात्रा बढ़ जाएगी।
- जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो: इस स्थिति में माँग की वृद्धि का प्रभाव अधिक होगा, जिससे संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों बढ़ जाएंगे।
- जब पूर्ति में वृद्धि माँग में वृद्धि से अधिक हो: इस स्थिति में पूर्ति की वृद्धि का प्रभाव अधिक होगा, जिससे संतुलन कीमत घट सकती है, जबकि संतुलन मात्रा बढ़ेगी।
(b) माँग और पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं: जब माँग और पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं (यानी एक में वृद्धि होती है और दूसरे में कमी), तो संतुलन कीमत और मात्रा पर निम्नलिखित प्रभाव होंगे:
- जब माँग बढ़ती है और पूर्ति घटती है: इस स्थिति में दोनों प्रभाव एक-दूसरे के विपरीत होंगे, परंतु माँग में वृद्धि पूर्ति में कमी से अधिक प्रभाव डालेगी, जिससे संतुलन कीमत बढ़ेगी और संतुलन मात्रा घटेगी।
- जब माँग घटती है और पूर्ति बढ़ती है: यहाँ पूर्ति की वृद्धि का प्रभाव अधिक होगा, जिससे संतुलन कीमत घटेगी और संतुलन मात्रा बढ़ेगी।
प्रश्न 17: वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर 17: वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में दोनों में ईष्टतम मात्रा का निर्धारण पूर्ति और माँग शक्तियों द्वारा ही होता है। परन्तु श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति करने वाले परिवार क्षेत्रक है और श्रम की माँग फर्मों से आती है, जबकि वस्तुओं के बाजार में वस्तुओं की माँग करने वाले परिवार क्षेत्रक है और श्रम की माँग फर्मों से आती है।
मजदूरी दरें तथा ईष्टतम मात्रा का निर्धारण श्रम के लिए माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ श्रम की माँग और पूर्ति संतुलन में हों। इसी प्रकार वस्तुओं की कीमतों तथा ईष्टतम मात्रा का निर्धारण भी पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर हो।
प्रश्न 18: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर 18: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा मार्जिनल उत्पाद (MP) और श्रमिक का वेतन (W) के बीच संतुलन से निर्धारित होती है। जब एक फर्म श्रम का उपयोग करती है, तो उसे मार्जिनल उत्पाद (MP) की तुलना में श्रमिक के वेतन का भुगतान करना पड़ता है।
इष्टतम श्रम मात्रा तब होती है जब:
मार्जिनल उत्पाद (MP) = श्रमिक का वेतन (W)
इस स्थिति में, फर्म को प्रत्येक अतिरिक्त श्रमिक से उतना ही लाभ प्राप्त होता है जितना कि उसे उस श्रमिक को भुगतान करना पड़ता है, और इस प्रकार श्रम की मांग और आपूर्ति में संतुलन बन जाता है।
प्रश्न 19: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर 19: एक अधिकतमकर्ता फर्म उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अंतिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के अतिरिक्त लागत मजदूरी दर w है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे सीमांत संप्राप्ति उत्पाद कहा जाता है। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ ।
w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद
तथा श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति x श्रम का सीमांत उत्पाद
जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर से अधिक है, फर्म श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर की तुलना से कम हैं, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती है।
प्रश्न 20: क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर 20: भारत में किसी वस्तु पर लागू उच्चतम निर्धारित कीमत का एक उदाहरण आवश्यक दवाएं हैं, जिनकी कीमतों को राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
उच्चतम कीमत सीमा के परिणाम:
- उपभोक्ता संरक्षण: दवाएं सस्ती रहती हैं, जिससे सभी वर्गों को आवश्यक दवाएं उपलब्ध हो पाती हैं।
- कृत्रिम मुनाफाखोरी पर रोक: कंपनियां अत्यधिक कीमत नहीं वसूल सकतीं।
- गुणवत्ता पर प्रभाव: कुछ कंपनियां कम मुनाफे के कारण गुणवत्ता में कमी कर सकती हैं।
- आपूर्ति संकट: कम लाभ के कारण कंपनियां उत्पादन कम कर सकती हैं, जिससे दवाओं की कमी हो सकती है।
इस प्रकार, उच्चतम कीमत सीमा उपभोक्ताओं को राहत तो देती है, परंतु इससे बाजार में आपूर्ति और गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है।
प्रश्न 21: माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर 21: माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत और मात्रा पर प्रभाव निर्भर करता है कि बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर है या उसमें प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति है।
1. जब फर्मों की संख्या स्थिर हो:
- यदि माँग बढ़ती है, तो कीमत में अधिक वृद्धि होगी क्योंकि फर्मों की संख्या सीमित है, जिससे आपूर्ति जल्दी से नहीं बढ़ सकती। इससे उत्पादन की मात्रा पर सीमित प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि फर्मों की उत्पादन क्षमता स्थिर है।
- यदि माँग घटती है, तो कीमत घटेगी लेकिन उत्पादन की मात्रा पर कम प्रभाव होगा क्योंकि फर्मों की संख्या वही रहेगी और उत्पादन क्षमता सीमित रहेगी।
2. निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन की स्थिति में:
- माँग बढ़ने पर: नए फर्म आसानी से बाजार में प्रवेश कर सकते हैं। इससे आपूर्ति बढ़ेगी, जिससे मूल्य पर कम प्रभाव होगा लेकिन उत्पादन की मात्रा पर अधिक प्रभाव होगा।
- माँग घटने पर: फर्में आसानी से बाजार से बाहर निकल सकती हैं। इससे आपूर्ति घटेगी, और मूल्य में अपेक्षाकृत कम कमी होगी लेकिन मात्रा में अधिक कमी होगी।
निष्कर्ष: जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तो कीमत में बड़ा बदलाव होता है और मात्रा में कम, जबकि निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन के साथ, कीमत स्थिर रहती है और मात्रा में अधिक बदलाव होता है।
प्रश्न 22: मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में वस्तु X की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं:
qD = 700 – p
qS = 500 + 3p for p ≥ 15
= 0 for 0 ≤ p < 15
मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। 15 ₹ से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर 22: 15 ₹ से कम किसी भी कीमत पर वस्तु x की पूर्ति के शून्य होने का कारण है कि 15 ₹ न्यूनतम औसत लागत है। यदि एक फर्म को अपनी न्यूनतम औसत लागत जितनी कीमत भी नहीं मिल रही तो वह उत्पादन
नहीं करेगी अतः q5 = 0 होगा
संतुलन कीमत का निर्धारण होगा जहां
qD = qs हो, 700 – P = 500 + 3P
4P = 200, P = 50, P = 250
संतुलन कीमत पर संतुलन मात्रा ज्ञात करने के लिए
qD = 700 + P, qD = 700 – 50 = 650
qs = 500 + 3P, qs = 500 + 3(50) = 650
650 = 650
प्रश्न 23: फर्मों को वस्तु का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है:
qSf = 8 + 3p for p ≥ 20
= 0 for 0 ≤ p < 20
(a) P = 20 का क्या महत्व है?
(b) बाजार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
उत्तर 23: (a) P = 20 का अर्थ है कि इतनी फर्म की औसत लागत है। यदि यह भी एक फर्म को नहीं मिलती तो
वह उत्पादन बंद कर देगी और उत्पादन शून्य के बराबर होगा।
(b) बाजार में ४ की संतुलन कीमत P = 20 होगी क्योंकि यदि बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा अधिर्गमन की अनुमति है तो कोई भी फर्म न्यूनतम औसत लागत से अधिक कीमत नहीं ले सकती।
(c) संतुलन मात्रा qD = 700 – P, P = 20
qb = 700 – 20 = 680 इकाइयां
एक फर्म द्वारा पूर्ति = 8 + 3P
= 8 + 3(20) = + 60 = 68 इकाइयां
फर्मों की संख्या = कुल बाजार मांग/एक फर्म द्वारा पूर्त
= 680/68 = 10
प्रश्न 24: मान लीजिए कि नमक की माँग और पूर्ति वक्र इस प्रकार दिया गया है:
qD = 1,000 – p, qS = 700 + 2p
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है:
qS = 400 + 2p
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 ₹ प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
उत्तर 24: (a) संतुलन कीमत और मात्रा ज्ञात कीजिए:
संतुलन की स्थिति वह होती है जब माँग (qD) और पूर्ति (qS) बराबर होती हैं। हमें दिए गए हैं:
- माँग वक्र: qD = 1,000 – p
- पूर्ति वक्र: qS = 700 + 2p
संतुलन पर: qD = qS
अर्थात, 1,000 – p = 700 + 2p
अब इस समीकरण को हल करते हैं:
1,000 – 700 = p + 2p
300 = 3p
p = \(\frac{300}{3}\)
p = 100
इस प्रकार, संतुलन कीमत p = 100 है। अब संतुलन मात्रा (q) ज्ञात करते हैं:
माँग या पूर्ति वक्र में p = 100 डालते हैं:
- qD = 1,000 – 100 = 900
- qS = 700 + 2(100) = 900
इसलिए, संतुलन मात्रा q = 900 होगी।
संतुलन कीमत: ₹100
संतुलन मात्रा: 900 इकाई
(b) आगत की कीमत में वृद्धि के बाद नया संतुलन:
अब नया पूर्ति वक्र है: qS = 400 + 2p
संतुलन पर फिर से माँग और पूर्ति बराबर होंगी: qD = qS ]
अर्थात, 1,000 – p = 400 + 2p
समीकरण को हल करते हैं:
1,000 – 400 = p + 2p
600 = 3p
p = \(\frac{600}{3}\)
p = 200
इस प्रकार, नई संतुलन कीमत p = 200 है। अब संतुलन मात्रा (q) ज्ञात करते हैं:
माँग या पूर्ति वक्र में p = 200 डालते हैं:
- qD = 1,000 – 200 = 800
- qS = 400 + 2(200) = 800
इसलिए, नई संतुलन मात्रा q = 800 होगी।
नई संतुलन कीमत: ₹200
नई संतुलन मात्रा: 800 इकाई
परिवर्तन:
- संतुलन कीमत बढ़कर ₹200 हो गई।
- संतुलन मात्रा घटकर 800 इकाई हो गई।
यह परिवर्तन अपेक्षित है, क्योंकि उत्पादन के लागत में वृद्धि होने से पूर्ति घट जाती है, जिससे कीमत बढ़ती है और मात्रा घटती है।
(c) सरकार द्वारा 3 ₹ प्रति इकाई कर लगाने का प्रभाव:
अब सरकार प्रति इकाई 3 ₹ का कर लगाती है। इससे विक्रेताओं के लिए प्रभावी पूर्ति वक्र बदल जाएगा, क्योंकि विक्रेताओं को अब हर इकाई पर 3 ₹ अतिरिक्त देने होंगे। इसका मतलब है कि पूर्ति वक्र ऊपर की ओर शिफ्ट हो जाएगा।
नया पूर्ति वक्र होगा:
qS = (400 + 2(p – 3))
qS = 400 + 2p – 6
qS = 394 + 2p
अब फिर से संतुलन प्राप्त करते हैं: qD = qS
1,000 – p = 394 + 2p
समीकरण को हल करते हैं:
1,000 – 394 = p + 2p
606 = 3p
p = \(\frac{606}{3}\)
p = 202
इस प्रकार, कर के बाद संतुलन कीमत p = 202 होगी। अब संतुलन मात्रा (q) ज्ञात करते हैं:
माँग वक्र में p = 202 डालते हैं:
- ( qD = 1,000 – 202 = 798 )
नई संतुलन कीमत: ₹202
नई संतुलन मात्रा: 798 इकाई
परिवर्तन:
- कीमत बढ़कर ₹202 हो गई।
- मात्रा घटकर 798 इकाई हो गई।
सरकार के कर लगाने से कीमत में वृद्धि होती है और मात्रा घट जाती है, क्योंकि कर से विक्रेताओं का लागत बढ़ जाता है, जिससे वे कम उत्पादन करने को तैयार होते हैं।
प्रश्न 25: मान लीजिए कि अपार्टमेंट के लिए बाजार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता। यदि सरकार किराए पर अपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका अपार्टमेंटों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर 25: ऐसे में बाजार में अधिमाँग उत्पन्न होगा। अपार्टमेंट लेने की माँग अधिक होगी और सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर किराये के लिए अपार्टमेंट की पूर्ति कम होगी। इस स्थिति में या तो सरकार को सरकारी अपार्टमेंट किराये पर देकर इस अधिमाँग को पूरा करना होगा या बाजार की यह अधिमाँग कालाबाजारी को जन्म देगी, जिसमें अपार्टमेंट के मालिक सरकार द्वारा निर्धारित किराये से अधिक किराया वसूल करेंगे और उस किराये पर भी उन्हें किरायेदार मिल जायेंगे।