Class 12 Physics Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र ncert solutions: किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र प्रश्न उत्तर
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | भौतिकी |
Chapter | Chapter 9 |
Chapter Name | किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 9.1: 2.5 cm साइज़ की कोई छोटी मोमबत्ती 36 cm वक्रता त्रिज्या के किसी अवतल दर्पण से 27 cm दूरी पर रखी है। दर्पण से किसी परदे को कितनी दूरी पर रखा जाए कि उसका सुस्पष्ट प्रतिबिंब परदे पर बने। प्रतिबिंब की प्रकृति और साइज़ का वर्णन कीजिए। यदि मोमबत्ती को दर्पण की ओर ले जाएँ, तो परदे को किस ओर हटाना पड़ेगा?
उत्तर 9.1: दिया गया है:
- मोमबत्ती की ऊँचाई \( h_o = 2.5 \, \text{cm} \)
- दर्पण की वक्रता त्रिज्या \( R = -36 \, \text{cm} \)
- वस्तु की दूरी \( u = -27 \, \text{cm} \)
चरण 1: फोकस दूरी का निर्धारण
अवतल दर्पण के लिए फोकस दूरी ( f ) वक्रता त्रिज्या के आधी होती है:
\(f = \frac{R}{2} = \frac{-36}{2} = -18 \, \text{cm}\)
चरण 2: दर्पण सूत्र का उपयोग
दर्पण सूत्र:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{u}\)
जहाँ ( v ) प्रतिबिंब की दूरी है, ( u ) वस्तु की दूरी, और ( f ) फोकस दूरी है।
अब इसमें ( f = -18 cm ) और ( u = -27 cm ) के मानों को रखें:
\(\frac{1}{-18} = \frac{1}{v} + \frac{1}{-27}\)
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{-18} + \frac{1}{27}\)
समान हर का लाएँ:
\(\frac{1}{v} = \frac{-3 + 2}{54} = \frac{-1}{54}\)
अतः,
\(v = -54 \, \text{cm}\)
इसका अर्थ है कि परदा दर्पण से 54 सेमी दूरी पर रखा जाना चाहिए ताकि सुस्पष्ट प्रतिबिंब बने।
चरण 3: प्रतिबिंब की प्रकृति और साइज़
प्रतिबिंब की प्रकृति:
- ( v ) की नकारात्मक होने का मतलब है कि प्रतिबिंब वास्तविक है।
- वास्तविक प्रतिबिंब उल्टा होता है।
प्रतिबिंब का आकार जानने के लिए आवर्धन सूत्र का उपयोग करें:
\(m = \frac{h_i}{h_o} = \frac{-v}{u}\)
जहाँ ( hi ) प्रतिबिंब की ऊँचाई और ( ho ) वस्तु की ऊँचाई है।
\(m = \frac{-(-54)}{-27} = 2\)
इसका मतलब है कि प्रतिबिंब का आकार वस्तु से 2 गुना बड़ा होगा:
\(h_i = m \times h_o = 2 \times 2.5 = 5 \, \text{cm}\)
अतः प्रतिबिंब की ऊँचाई 5 सेमी होगी, और यह वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु से 2 गुना बड़ा होगा।
चरण 4: यदि मोमबत्ती को दर्पण की ओर लाया जाए
यदि मोमबत्ती को दर्पण की ओर ले जाया जाए ( u की मान घटती है), तो ( v ) की मान कम होती जाएगी। इसका मतलब है कि परदे को दर्पण की ओर ले जाना पड़ेगा ताकि प्रतिबिंब सही से परदे पर बने।
प्रश्न 9.2: 4.5 cm साइज़ की कोई सुई 15 cm फोकस दूरी के किसी उत्तल दर्पण से 12 cm दूर रखी है। प्रतिबिंब की स्थिति तथा आवर्धन लिखिए। क्या होता है जब सुई को दर्पण से दूर ले जाते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर 9.2: दिया गया है:
- सुई की ऊँचाई \( h_o = 4.5 \, \text{cm} \)
- उत्तल दर्पण की फोकस दूरी \( f = 15 \, \text{cm} \)
- वस्तु की दूरी \( u = -12 \, \text{cm} \) (सकारात्मक वस्तु की दूरी वाम से नकारात्मक मानी जाती है)
चरण 1: दर्पण सूत्र का उपयोग
दर्पण सूत्र:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{u}\)
जहाँ ( v ) प्रतिबिंब की दूरी है और ( u ) वस्तु की दूरी है।
चूँकि यह उत्तल दर्पण है, उसकी फोकस दूरी धनात्मक होती है, अतः \( f = +15 \, \text{cm} \)।
अब सूत्र में \( f = +15 \, \text{cm} \) और \( u = -12 \, \text{cm} \) के मानों को डालते हैं:
\(\frac{1}{15} = \frac{1}{v} + \frac{1}{-12}\)
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{15} + \frac{1}{12}\)
समान हर लाएँ:
\(\frac{1}{v} = \frac{4 + 5}{60} = \frac{9}{60}\)
अतः,
\(v = \frac{60}{9} = 6.67 \, \text{cm}\)
इसका मतलब है कि प्रतिबिंब दर्पण से \( 6.67 \, \text{cm} \) की दूरी पर बनेगा।
चरण 2: प्रतिबिंब का आवर्धन
आवर्धन ( m ) का सूत्र है:
\(m = \frac{h_i}{h_o} = \frac{-v}{u}\)
जहाँ ( hi ) प्रतिबिंब की ऊँचाई और ( ho ) वस्तु की ऊँचाई है।
\(m = \frac{-6.67}{-12} = 0.556\)
इसका मतलब है कि प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार का ( 0.556 ) गुना होगा।
प्रतिबिंब की ऊँचाई:
\(h_i = m \times h_o \)
\(= 0.556 \times 4.5 = 2.5 \, \text{cm}\)
अतः प्रतिबिंब का आकार \( 2.5 \, \text{cm} \) होगा, और यह वस्तु से छोटा, सीधा और आभासी (उत्तल दर्पण में प्रतिबिंब हमेशा आभासी और सीधा होता है) होगा।
अर्थात् प्रतिबिंब सीधा (आभासी) तथा 2.5 cm लंबा (ऊँचा) बनेगा।
जब सुई को दर्पण से दूर ले जाते हैं तो इसका प्रतिबिंब दर्पण से दूर फोकस की ओर खिसकेगा तथा इसका आकार घटता जायेगा।
प्रश्न 9.3: कोई टैंक 12.5 cm ऊँचाई तक जल से भरा है। किसी सूक्ष्मदर्शी द्वारा बीकर की तली पर पड़ी किसी सुई की आभासी गहराई 9.4 cm मापी जाती है। जल का अपवर्तनांक क्या है? बीकर में उसी ऊँचाई तक जल के स्थान पर किसी 1.63 अपवर्तनांक के अन्य द्रव से प्रतिस्थापन करने पर सुई को पुनः फोकसित करने के लिए सूक्ष्मदर्शी को कितना ऊपर/नीचे ले जाना होगा?
उत्तर 9.3: इस प्रश्न में जल की वास्तविक गहराई \( d_{\text{वास्तविक}} = 12.5 \, \text{cm} \) और आभासी गहराई \( d_{\text{आभासी}} = 9.4 \, \text{cm} \) दी गई है।
जल का अपवर्तनांक \( n_{\text{जल}} \) ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करेंगे:
\(n_{\text{जल}} = \frac{d_{\text{वास्तविक}}}{d_{\text{आभासी}}}\)
चरण 1: जल का अपवर्तनांक ज्ञात करें
अब दिए गए मानों को सूत्र में रखें:
\(n_{\text{जल}} = \frac{12.5}{9.4}\)
\(n_{\text{जल}} \approx 1.33\)
इस प्रकार, जल का अपवर्तनांक \( n_{\text{जल}} = 1.33 \) है।
चरण 2: नए द्रव के साथ स्थिति
अब, यदि बीकर में जल की जगह किसी \( n_{\text{द्रव}} = 1.63 \) अपवर्तनांक वाले अन्य द्रव का उपयोग किया जाए, तो हमें यह जानना है कि सूक्ष्मदर्शी को कितना ऊपर या नीचे ले जाना पड़ेगा।
नए द्रव में आभासी गहराई \(( d_{\text{आभासी, नया}} )\) को निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात कर सकते हैं:
\(n_{\text{द्रव}} = \frac{d_{\text{वास्तविक}}}{d_{\text{आभासी, नया}}}\)
यहाँ \( d_{\text{वास्तविक}} = 12.5 \, \text{cm} \) और \( n_{\text{द्रव}} = 1.63 \) है। अब इस सूत्र में \( n_{\text{द्रव}} \) और \( d_{\text{वास्तविक}} \) के मान डालते हैं:
\(1.63 = \frac{12.5}{d_{\text{आभासी, नया}}}\)
अब \( d_{\text{आभासी, नया}} \) ज्ञात करें:
\(d_{\text{आभासी, नया}} = \frac{12.5}{1.63}\)
\(d_{\text{आभासी, नया}} \approx 7.67 \, \text{cm}\)
चरण 3: सूक्ष्मदर्शी को कितना ऊपर या नीचे ले जाना होगा
पहले जल के साथ आभासी गहराई \( 9.4 \, \text{cm} \) थी, जबकि नए द्रव के साथ आभासी गहराई \( 7.67 \, \text{cm} \) हो गई है। सूक्ष्मदर्शी को अब \( 9.4 \, \text{cm} – 7.67 \, \text{cm} = 1.73 \, \text{cm} \) नीचे ले जाना होगा, क्योंकि आभासी गहराई कम हो गई है।
प्रश्न 9.4: चित्र 9.27 (a) तथा (b) में किसी आपतित किरण का अपवर्तन दर्शाया गया है जो वायु में क्रमशः काँच-वायु तथा जल-वायु अंतरापृष्ठ के अभिलंब से 60° का कोण बनाती है। उस आपतित किरण का अपवर्तन कोण ज्ञात कीजिए, जो जल में जल-काँच अंतरापृष्ठ के अभिलंब से 45° का कोण बनाती है [चित्र 9.27 (c)]।
उत्तर 9.4: दिए गए चित्र के अनुसार, काँच-वायु अंतरापृष्ठ के लिए:
आपतन कोण, i = 60°
अपवर्तन कोण, r = 35°
वायु के सापेक्ष काँच का आपेक्षिक अपवर्तनांक स्नेल के नियम द्वारा इस प्रकार दिया जाता है:
\(\mu_{g}^{a}=\frac{sin\;i}{sin\;r}\ \)
\(=\frac{sin\;60°}{sin\;35°}\)
\(=\frac{0.8660}{0.5736}=1.51\) …..(i)
दिए गए चित्र के अनुसार, जल-वायु अंतरापृष्ठ के लिए:
आपतन कोण, i = 60°
अपवर्तन कोण, r = 47°
वायु के सापेक्ष जल का आपेक्षिक अपवर्तनांक स्नेल के नियम द्वारा इस प्रकार दिया जाता है:
\(\mu_{w}^{a}=\frac{sin\;i}{sin\;r}\ \)
\(=\frac{sin\;60°}{sin\;47°}\)
\(=\frac{0.8660}{0.7314}\)
\(=1.184\) …..(ii)
(1) और (2) का उपयोग करके, जल के संबंध में काँच का सापेक्ष अपवर्तनांक निम्नानुसार प्राप्त किया जा सकता है:
\(\mu_{g}^{w}=\frac{\mu_{g}^{a}}{\mu_{w}^{a}}\ \)
\(=\frac{1.51}{1.184}=1.275\)
निम्नलिखित चित्र में जल-काँच अंतरापृष्ठ से संबंधित स्थिति दर्शाई गई है।
आपतन कोण, i = 45°
अपवर्तन कोण = r
स्नेल के नियम से, r की गणना इस प्रकार की जा सकती है:
\(\frac{sin\;i}{sin\;r}=\mu_{g}^{w}\ \)
\(\frac{sin45°}{sin\;r}=1.275\ \)
\(sin\;r=\frac{\frac{1}{\sqrt{2}}}{1.275}=0.5546\ \)
Therefore r = \(sin^{-1}(0.5546)=38.68°\)
अतः, जल-काँच अंतरापृष्ठ पर अपवर्तन कोण 38.68° है।
प्रश्न 9.5: जल से भरे 80 cm गहराई के किसी टैंक की तली पर कोई छोटा बल्ब रखा गया है। जल के पृष्ठ का वह क्षेत्र ज्ञात कीजिए जिससे बल्ब का प्रकाश निर्गत हो सकता है। जल का अपवर्तनांक 1.33 है। (बल्ब को बिंदु प्रकाश स्रोत मानिए।)
उत्तर 9.5: यह प्रश्न टोटल इंटरनल रिफ्लेक्शन (पूर्ण आंतरिक परावर्तन) और क्रिटिकल एंगल (संकट कोण) पर आधारित है। टोटल इंटरनल रिफ्लेक्शन तब होता है जब प्रकाश किरण एक उच्च अपवर्तनांक वाले माध्यम (जल) से एक निम्न अपवर्तनांक वाले माध्यम (वायु) में जाती है और आपतित कोण (angle of incidence) संकट कोण से अधिक हो जाता है। इस स्थिति में किरण जल के पृष्ठ पर वापस प्रतिबिंबित हो जाती है और बाहर नहीं निकल पाती।
प्रश्न में हमें उस क्षेत्र को खोजने के लिए कहा गया है जिससे बल्ब का प्रकाश जल के पृष्ठ से बाहर निकल सकता है।
दिए गए मान:
- जल की गहराई \( h = 80 \, \text{cm} = 0.80 \, \text{m} \)
- जल का अपवर्तनांक \( n = 1.33 \)
- वायु का अपवर्तनांक \( n_{\text{air}} = 1 \) (मानक)
चरण 1: संकट कोण (Critical Angle) ज्ञात करना
संकट कोण \(( \theta_c )\) वह कोण है जिस पर आपतित किरण जल और वायु की सीमा पर टोटल इंटरनल रिफ्लेक्शन के लिए सीमांत स्थिति में होती है। यह कोण निम्न सूत्र से ज्ञात किया जाता है:
\(\sin \theta_c = \frac{n_{\text{air}}}{n_{\text{water}}}\)
जहाँ,
- \( n_{\text{air}} = 1 \) है,
- \( n_{\text{water}} = 1.33 \) है।
\(\sin \theta_c = \frac{1}{1.33}\)
\(\sin \theta_c = 0.75188\)
अब, \( \theta_c \) ज्ञात करने के लिए:
\(\theta_c = \sin^{-1}(0.75188) \approx 48.75^\circ\)
चरण 2: वह क्षेत्र ज्ञात करना जिससे प्रकाश निकल सकता है
यह क्षेत्र एक वृत्त होगा जिसका केंद्र बल्ब के ठीक ऊपर होगा और इसकी त्रिज्या उस बिंदु पर निर्भर करेगी जहाँ प्रकाश संकट कोण पर जल के पृष्ठ को छूता है।
त्रिज्या ( r ) ज्ञात करने के लिए हम त्रिकोणमिति का प्रयोग करेंगे। संकट कोण के आधार पर, त्रिज्या और गहराई के बीच संबंध निम्नलिखित होगा:
\(\tan \theta_c = \frac{r}{h}\)
\(r = h \cdot \tan \theta_c\)
जहाँ \( h = 0.80 \, \text{m} \) और \( \theta_c = 48.75^\circ \) है।
पहले हम \( \tan 48.75^\circ \) ज्ञात करेंगे:
\(\tan 48.75^\circ \approx 1.141\)
अब, ( r ) की गणना करें:
\(r = 0.80 \cdot 1.141 \approx 0.913 \, \text{m}\)
चरण 3: जल के पृष्ठ पर क्षेत्रफल ज्ञात करना
जल के पृष्ठ पर क्षेत्र एक वृत्ताकार क्षेत्र होगा जिसका त्रिज्या \( r = 0.913 \, \text{m} \) है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफल ( A ) निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाएगा:
\(A = \pi r^2\)
\(A = \pi (0.913)^2 \approx 3.1416 \cdot 0.833 \)
\(\approx 2.617 \, \text{m}^2\)
जल के पृष्ठ का क्षेत्रफल जिससे बल्ब का प्रकाश निकल सकता है, लगभग \( 2.617 \, \text{m}^2 \) है।
प्रश्न 9.6: कोई प्रिज्म अज्ञात अपवर्तनांक के काँच का बना है। कोई समांतर प्रकाश-पुंज इस प्रिज्म के किसी फलक पर आपतित होता है। प्रिज्म का न्यूनतम विचलन कोण 40° मापा गया। प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक क्या है? प्रिज्म का अपवर्तन कोण 60° है। यदि प्रिज्म को जल (अपवर्तनांक 1.33) में रख दिया जाए तो प्रकाश के समांतर पुंज के लिए नए न्यूनतम विचलन कोण का परिकलन कीजिए।
उत्तर 9.6: इस प्रश्न में हमें प्रिज्म के अपवर्तनांक का पता लगाना है और फिर यह देखना है कि जब प्रिज्म को जल में रखा जाता है, तो न्यूनतम विचलन कोण कैसे बदलता है।
भाग 1: प्रिज्म के अपवर्तनांक की गणना
प्रिज्म के लिए न्यूनतम विचलन कोण \(( \delta_{\text{min}} )\) और प्रिज्म का अपवर्तन कोण ( A ) के बीच संबंध निम्न सूत्र से होता है:
\(n = \frac{\sin \left( \frac{A + \delta_{\text{min}}}{2} \right)}{\sin \left( \frac{A}{2} \right)}\)
जहाँ,
- n प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक है,
- A प्रिज्म का अपवर्तन कोण है,
- \( \delta_{\text{min}} \) न्यूनतम विचलन कोण है।
दिए गए मान:
- \( \delta_{\text{min}} = 40^\circ \),
- \( A = 60^\circ \)।
अब हम इन मूल्यों को उपरोक्त सूत्र में रखकर ( n ) ज्ञात करेंगे:
\(n = \frac{\sin \left( \frac{60^\circ + 40^\circ}{2} \right)}{\sin \left( \frac{60^\circ}{2} \right)}\)
\(n = \frac{\sin \left( 50^\circ \right)}{\sin \left( 30^\circ \right)}\)
हम जानते हैं कि \( \sin 50^\circ \approx 0.766 \) और \( \sin 30^\circ = 0.5 \), अतः:
\(n = \frac{0.766}{0.5} = 1.532\)
भाग 2: प्रिज्म को जल में रखने पर न्यूनतम विचलन कोण
अब हमें यह जानना है कि जब प्रिज्म को जल में रखा जाता है, तो न्यूनतम विचलन कोण \( \delta’_{\text{min}} \) क्या होगा। प्रिज्म को जल में रखने से अपवर्तनांक का नया अनुपात ( n’ ) होगा:
\(n’ = \frac{n_{\text{glass}}}{n_{\text{water}}}\)
जहाँ,
- \( n_{\text{glass}} = 1.532 \) (पहले से ज्ञात),
- \( n_{\text{water}} = 1.33 \) (जल का अपवर्तनांक)।
\(n’ = \frac{1.532}{1.33} \approx 1.152\)
अब नए न्यूनतम विचलन कोण \(( \delta’_{\text{min}} )\) के लिए हम उसी सूत्र का उपयोग करेंगे:
\(n’ = \frac{\sin \left( \frac{A + \delta’_{\text{min}}}{2} \right)}{\sin \left( \frac{A}{2} \right)}\)
यहाँ \( n’ = 1.152 \) और \( A = 60^\circ \) है। इस सूत्र को हल करने के लिए, पहले निम्नलिखित समीकरण बनाते हैं:
\(1.152 = \frac{\sin \left( \frac{60^\circ + \delta’_{\text{min}}}{2} \right)}{\sin \left( 30^\circ \right)}\)
चूंकि \( \sin 30^\circ = 0.5 \), यह समीकरण ऐसे बदल जाएगा:
\(1.152 = 2 \cdot \sin \left( \frac{60^\circ + \delta’_{\text{min}}}{2} \right)\)
अब, दोनों पक्षों को 2 से विभाजित करें:
\(\sin \left( \frac{60^\circ + \delta’_{\text{min}}}{2} \right) = \frac{1.152}{2} = 0.576\)
अब \( \frac{60^\circ + \delta’_{\text{min}}}{2} \) ज्ञात करें:
\(\frac{60^\circ + \delta’_{\text{min}}}{2} = \sin^{-1} (0.576) \approx 35.2^\circ\)
अब, इस समीकरण को हल करें:
\(60^\circ + \delta’_{\text{min}} = 70.4^\circ\)
अतः,
\(\delta’_{\text{min}} = 70.4^\circ – 60^\circ = 10.4^\circ\)
- जब प्रिज्म को जल में रखा जाता है, तो नया न्यूनतम विचलन कोण \( 10.4^\circ \) होगा।
- प्रिज्म का अपवर्तनांक ( 1.532 ) है।
प्रश्न 9.7: अपवर्तनांक 1.55 के काँच से दोनों फलकों की समान वक्रता त्रिज्या के उभयोत्तल लेंस निर्मित करने हैं। यदि 20 cm फोकस दूरी के लेंस निर्मित करने हैं तो अपेक्षित वक्रता त्रिज्या क्या होगी?
उत्तर 9.7: लेंस के वक्रता त्रिज्या (R) का उपयोग करने के लिए, हम लेंस के फोकल लंबाई (f) और अपवर्तनांक (n) का उपयोग कर सकते हैं। एक लेंस के लिए फोकल लंबाई और वक्रता त्रिज्या के बीच संबंध इस प्रकार है:
\(\frac{1}{f} = (n – 1) \left( \frac{1}{R_1} – \frac{1}{R_2} \right)\)
चूंकि दोनों फलकों की समान वक्रता त्रिज्या है, तो \( R_1 = R \) और \( R_2 = -R \) होगा। इसलिए, समीकरण को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:
\(\frac{1}{f} = (n – 1) \left( \frac{1}{R} – \frac{1}{-R} \right)\)
यहाँ से हम इसे सरल कर सकते हैं:
\(\frac{1}{f} = (n – 1) \left( \frac{2}{R} \right)\)
अब इसे पुनर्व्यवस्थित करते हैं:
\(R = 2(n – 1)f\)
अब, दिए गए मानों को प्रतिस्थापित करते हैं:
- n = 1.55
- f = 20 cm
अब हम ( R ) की गणना करेंगे:
\(R = 2(1.55 – 1)(20)\)
चलो इस समीकरण को हल करें:
\(R = 2(0.55)(20) = 22 \, \text{cm}\)
इसलिए, अपेक्षित वक्रता त्रिज्या \( R = 22 \, \text{cm} \) होगी।
प्रश्न 9.8: कोई प्रकाश-पुंज किसी बिंदु P पर अभिसरित होता है। कोई लेंस इस अभिसारी पुंज के पथ में बिंदु P से 12 cm दूर रखा जाता है। यदि यह (a) 20 cm फोकस दूरी का उत्तल लेंस है, (b) 16 cm फोकस दूरी का अवतल लेंस है, तो प्रकाश-पुंज किस बिंदु पर अभिसरित होगा?
उत्तर 9.8: इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हम लेंस के फोकल लम्बाई और उसके स्थान को ध्यान में रखते हुए लेंस समीकरण का उपयोग करेंगे। लेंस समीकरण है:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} – \frac{1}{u}\)
जहाँ:
- ( f ) = फोकल लम्बाई
- ( v ) = इमेज की स्थिति (लेंस से)
- ( u ) = वस्तु की स्थिति (लेंस से)
(a) उत्तल लेंस के लिए:
- \( f = +20 \, \text{cm} \)
- \( u = -12 \, \text{cm} \) (चूँकि वस्तु लेंस के विपरीत दिशा में है)
लेंस समीकरण में मान डालते हैं:
\(\frac{1}{20} = \frac{1}{v} – \frac{1}{(-12)}\)
इससे हमें ( v ) ज्ञात करना है। पहले समीकरण को हल करते हैं:
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{20} + \frac{1}{12}\)
\(\frac{1}{v} = \frac{3 + 5}{60} = \frac{8}{60}\)
\(\frac{1}{v} = \frac{2}{15}\)
इससे:
\(v = \frac{15}{2} = 7.5 \, \text{cm}\)
अर्थात, उत्तल लेंस पर प्रकाश-पुंज \( 7.5 \, \text{cm} \) की दूरी पर अभिसरित होगा।
(b) अवतल लेंस के लिए:
- \( f = -16 \, \text{cm} \)
- \( u = -12 \, \text{cm} \)
लेंस समीकरण में मान डालते हैं:
\(\frac{1}{-16} = \frac{1}{v} – \frac{1}{(-12)}\)
इससे हमें ( v ) ज्ञात करना है। पहले समीकरण को हल करते हैं:
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{-16} + \frac{1}{12}\)
\(\frac{1}{v} = \frac{-3 + 4}{48} = \frac{1}{48}\)
इससे:
\(v = 48 \, \text{cm}\)
अर्थात, अवतल लेंस पर प्रकाश-पुंज \( 48 \, \text{cm} \) की दूरी पर अभिसरित होगा।
सारांश:
- उत्तल लेंस (20 cm) पर प्रकाश-पुंज \( 7.5 \, \text{cm} \) पर अभिसरित होगा।
- अवतल लेंस (16 cm) पर प्रकाश-पुंज \( 48 \, \text{cm} \) पर अभिसरित होगा।
प्रश्न 9.9: 3.0 cm ऊँची कोई बिंब 21 cm फोकस दूरी के अवतल लेंस के सामने 14 cm दूरी पर रखी है। लेंस द्वारा निर्मित प्रतिबिंब का वर्णन कीजिए। क्या होता है जब बिंब लेंस से दूर हटती जाती है?
उत्तर 9.9: वस्तु का आकार, h1 = 3 cm
वस्तु की दूरी, u = −14 cm
अवतल लेंस की फोकस दूरी, f = −21 cm
प्रतिबिंब की दूरी = v
लेंस सूत्र के अनुसार,
\(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\)
\(\frac{1}{v}=-\frac{1}{21}-\frac{1}{14}\)
=\(\frac{-2-3}{42}=\frac{-5}{42}\)
Therefore v = \(-\frac{42}{5}=-8.4cm\)
प्रतिबिंब का आवर्धन:
\(m=\frac{Image\;height(h_{2})}{Object\;height(h_{1})}=\frac{v}{u}\)
∴ h2 =\(\frac{-8.4}{-14}\times3\)
\(=0.6\times3=1.8cm\)
अतः प्रतिबिंब 1.8 cm लंबा आभासी तथा सीधा होगा, जो लेंस के बायीं ओर उससे 8.4 cm की दूरी पर बनेगा। जैसे-जैसे बिंब लेंस से दूर हटती है, वैसे-वैसे प्रतिबिंब फोकस के समीप खिसकता जाता है।
प्रश्न 9.10: किसी 30 cm फोकस दूरी के उत्तल लेंस के संपर्क में रखे 20 cm फोकस दूरी के अवतल लेंस के संयोजन से बने संयुक्त लेंस (निकाय) की फोकस दूरी क्या है? यह तंत्र अभिसारी लेंस है अथवा अपसारी? लेंसों की मोटाई की उपेक्षा कीजिए।
उत्तर 9.10: किसी संयुक्त लेंस (लेंसों के संयोजन) की फोकस दूरी निकालने के लिए हम निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करते हैं:
\(\frac{1}{F} = \frac{1}{F_1} + \frac{1}{F_2}\)
जहां:
- ( F ) संयुक्त लेंस की फोकस दूरी है।
- ( F1 ) पहले लेंस (उत्तल लेंस) की फोकस दूरी है।
- ( F2 ) दूसरे लेंस (अवतल लेंस) की फोकस दूरी है।
जानकारी:
- \( F_1 = 30 \, \text{cm} \) (उत्तल लेंस, जो सकारात्मक होगा)
- \( F_2 = -20 \, \text{cm} \) (अवतल लेंस, जो नकारात्मक होगा)
अब हम ( F ) की गणना करते हैं:
\(\frac{1}{F} = \frac{1}{30} + \frac{1}{-20}\)
अब हम इसे हल करते हैं:
\(\frac{1}{F} = \frac{1}{30} – \frac{1}{20}\)
पहले हम \( \frac{1}{30} \) और \( \frac{1}{20} \) के लिए समान हर (LCM) खोजते हैं:
LCM(30, 20) = 60
अब हम \( \frac{1}{30} \) और \( \frac{1}{20} \) को 60 के हर में बदलते हैं:
\(\frac{1}{30} = \frac{2}{60}, \quad \frac{1}{20} = \frac{3}{60}\)
तो,
\(\frac{1}{F} = \frac{2}{60} – \frac{3}{60} = \frac{-1}{60}\)
अब ( F ) निकालने के लिए, हम उलट करते हैं:
\(F = -60 \, \text{cm}\)
संयुक्त लेंस की फोकस दूरी \( -60 \, \text{cm} \) है। चूंकि फोकस दूरी नकारात्मक है, यह एक अपसारी लेंस है।
प्रश्न 9.11: किसी संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में 2.0 cm फोकस दूरी का अभिदृश्यक लेंस तथा 6.25 cm फोकस दूरी का नेत्रिका लेंस एक-दूसरे से 15 cm दूरी पर लगे हैं। किसी बिंब को अभिदृश्यक से कितनी दूरी पर रखा जाए कि अंतिम प्रतिबिंब (a) स्पष्ट दृष्टि की अल्पतम दूरी (25 cm), तथा (b) अनंत पर बने? दोनों स्थितियों में सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता ज्ञात कीजिए।
उत्तर 9.11: अभिदृश्यक लेंस की फोकस दूरी, f1 = 2.0 cm
नेत्रिका लेंस की फोकस दूरी, f2 = 6.25 cm
दोनों लेंसों के बीच की दूरी, d = 15 cm
(a) स्पष्ट दृष्टि की अल्पतम दूरी, d’ = 25
∴ नेत्रिका के लिए प्रतिबिंब दूरी, v2 = −25 cm
नेत्रिका के लिए बिंब दूरी = u2
लेंस सूत्र के अनुसार,
\(\frac{1}{v_{2}}-\frac{1}{u_{2}}=\frac{1}{f_{2}}\)
\(\frac{1}{-25}-\frac{1}{6.25}=\frac{-1-4}{25}\)
= \(\frac{-5}{25}\)
= \(\frac{-1}{5}\)
∴ u2 = −5 cm
अभिदृश्यक लेंस के लिए प्रतिबिंब दूरी,
\(v_{1}=d+u_{2}=15 – 5=10 cm\)
अभिदृश्यक लेंस के लिए बिंब दूरी = \(u_{1}\)
लेंस सूत्र के अनुसार,
\(\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{f_{1}}\)
\(\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{f_{1}}\)
\(\frac{1}{10}-\frac{1}{2}=\frac{1-5}{10}=\frac{-4}{10}\)
\(u_{1}=-2.5cm\)
बिंब दूरी का परिमाण, |u1| = 2.5 cm
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता निम्न संबंध द्वारा दी जाती है:
\(m=\frac{v_{0}}{|u_{0}|}(1+\frac{d}{f_{e}}) \ \)
= \(\frac{10}{2.5}(1+\frac{25}{6.25}) \ \)
= 20
अतः सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता 20 है।
(b) अंतिम प्रतिबिंब अनंत पर बनता है।
∴ नेत्रिका के लिए प्रतिबिंब दूरी, v2 = ∞
नेत्रिका के लिए बिंब दूरी = u2
लेंस सूत्र के अनुसार,
\(\frac{1}{v_{2}}-\frac{1}{u_{2}}=\frac{1}{f_{2}}\)
\(\frac{1}{\infty}-\frac{1}{u_{2}}=\frac{1}{6.25}\)
\(u_{2}=-6.25cm\)
∴ \(u_{2}=-6.25cm\)
अभिदृश्यक लेंस के लिए प्रतिबिंब दूरी, v1 = d + u2 = 15 − 6.25 = 8.75 cm
अभिदृश्यक लेंस के लिए बिंब दूरी = u1
फिरसे लेंस सूत्र के अनुसार,
\(\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{f_{1}}\)
\(\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{f_{1}}\)
\(\frac{1}{8.75}-\frac{1}{2.0}=\frac{2-8.75}{17.5}\)
\(u_{1}=-\frac{17.5}{6.75}\)
= -2.59 cm
बिंब दूरी का परिमाण, |u1| = 2.59 cm
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता निम्न संबंध द्वारा दी जाती है:
m = \(\frac{v_{1}}{|u_{1}|}(\frac{d’}{|u_{2}|})\)
= \(\frac{8.75}{2.59}\times\frac{25}{6.25}\)
= 13.51
अतः सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता 13.51 है।
प्रश्न 9.12: 25 cm के सामान्य निकट बिंदु को कोई व्यक्ति ऐसे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी जिसका अभिदृश्यक 8.0 mm फोकस दूरी तथा नेत्रिका 2.5 cm फोकस दूरी की है, का उपयोग करके अभिदृश्यक से 9.0 mm दूरी पर रखे बिंब को सुस्पष्ट फोकसित कर लेता है। दोनों लेंसों के बीच पृथकन दूरी क्या है? सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता क्या है?
उत्तर 9.12: अभिदृश्यक लेंस की फोकस दूरी, fo = 8 mm = 0.8 cm
नेत्रिका की फोकस दूरी, fe = 2.5 cm
अभिदृश्यक लेंस के लिए प्रतिबिंब दूरी, uo = −9.0 mm = −0.9 cm
दूर दृष्टि की न्यूनतम दूरी, d = 25 cm
∴ नेत्रिका के लिए प्रतिबिंब दूरी, ve = −d = −25 cm
नेत्रिका के लिए बिंब दूरी = ue
लेंस सूत्र का उपयोग करके, हम ue का मान इस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं:
\(\frac{1}{v_{e}}-\frac{1}{u_{e}}=\frac{1}{f_{e}}\)
\(\frac{1}{u_{e}}=\frac{1}{v_{e}}-\frac{1}{f_{e}}\)
\(\frac{1}{-25}-\frac{1}{2.5}=\frac{-1-10}{25}\)
\(u_{e}=-\frac{25}{11}\)
= -2.27cm
हम लेंस सूत्र का उपयोग करके अभिदृश्यक लेंस (vo) के लिए बिंब दूरी का मान भी प्राप्त कर सकते हैं।
\(\frac{1}{v_{o}}-\frac{1}{u_{o}}=\frac{1}{f_{o}}\)
\(\frac{1}{v_{o}}=\frac{1}{f_{o}}+\frac{1}{u_{o}}\)
\(=\frac{1}{0.8}-\frac{1}{0.9}\)
\(=\frac{1}{7.2}\)
vo = 7.2 cm
दोनों लेंसों के बीच पृथकन दूरी = |ue| + vo
= 2.27 + 7.2
= 9.47 cm
सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता निम्न संबंध द्वारा की जाती है:
\(M = \frac{v_{o}}{u_{o}}(1+\frac{D}{f_{e}}) \)
\(M = \frac{7.2}{0.9}(1+\frac{25}{25})\)
= 8 × 11
= 88
अतः सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता 88 है।
प्रश्न 9.13: किसी छोटी दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 144 cm तथा नेत्रिका की फोकस दूरी 6.0 cm है। दूरबीन की आवर्धन क्षमता कितनी है? अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच पृथक्कन दूरी क्या है?
उत्तर 9.13: अभिदृश्यक लेंस की फोकस दूरी, fo = 144 cm
नेत्रिका की फोकस दूरी, fe = 6.0 cm
दूरबीन की आवर्धन क्षमता:
\(M = \frac{f_o}{f_e}\)
\(M = \frac{144}{6.0} = 24\)
अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच की पृथक्कन दूरी:
fo + fe
= 144 + 6
= 150 cm
अतः दूरबीन की आवर्धन क्षमता 24 है और अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच की पृथक्कन दूरी 150 cm है।
प्रश्न 9.14: (a) किसी वेधशाला की विशाल दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 15 m है। यदि 1.0 cm फोकस दूरी की नेत्रिका प्रयुक्त की गयी है तो दूरबीन का कोणीय आवर्धन क्या है? (b) यदि इस दूरबीन का उपयोग चंद्रमा का अवलोकन करने में किया जाए तो अभिदृश्यक लेंस द्वारा निर्मित चंद्रमा के प्रतिबिंब का व्यास क्या है? चंद्रमा का व्यास 3.48 × 106 m तथा चंद्रमा की कक्षा की त्रिज्या 3.8 × 108 m है।
उत्तर 9.14: दूरबीन के अभिदृश्यक लेंस की फोकस दूरी, fo = 15 m = 15 × 102 cm
नेत्रिका की फोकस दूरी, fe = 1.0 cm
(a) दूरबीन का कोणीय आवर्धन इस प्रकार दिया गया है:
\(\alpha =\frac{f_{o}}{f_{e}}\)
= \(\frac{15\times10^{2}}{1}\)
= 1500
अतः दी गई दूरबीन का कोणीय आवर्धन 1500 है।
(b) चंद्रमा का व्यास, d = 3.48 × 106 m
चंद्रमा की कक्षा की त्रिज्या, r0 = 3.8 × 108 m
मान लीजिए d’ अभिदृश्यक लेंस द्वारा निर्मित चंद्रमा के प्रतिबिंब का व्यास है।
चंद्रमा के व्यास द्वारा बनाया गया कोण, प्रतिबिंब द्वारा बनाए गए कोण के बराबर है।
\(\frac{d}{r_{o}}=\frac{d’}{f_{o}}\)
\(\frac{3.48\times10^{6}}{3.8\times10^{8}}=\frac{d’}{15}\)
∴, d’= \(\frac{3.48}{3.8}\times10^{-2}\times15\)
\(13.74\times10^{-2}m\)
= 13.74cm
अतः अभिदृश्यक लेंस द्वारा निर्मित चंद्रमा के प्रतिबिंब का व्यास 13.74 cm है।
प्रश्न 9.15: दर्पण-सूत्र का उपयोग यह व्युत्पन्न करने के लिए कीजिए कि (a) किसी अवतल दर्पण के f तथा 2f के बीच रखे बिंब का वास्तविक प्रतिबिंब 2f से दूर बनता है। (b) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आभासी प्रतिबिंब बनता है जो बिंब की स्थिति पर निर्भर नहीं करता। (c) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आकार में छोटा प्रतिबिंब, दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच बनता है। (d) अवतल दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के बीच रखे बिंब का आभासी तथा बड़ा प्रतिबिंब बनता है।
उत्तर 9.15: इस प्रश्न में हमें दर्पण सूत्र का उपयोग करके चार अलग-अलग स्थितियों में दर्पणों के प्रतिबिंबों के गुणों को व्युत्पन्न करना है। आइए इसे क्रम से समझते हैं।
दर्पण सूत्र
दर्पण सूत्र निम्नलिखित है:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{u}\)
जहाँ:
- ( f ) = फोकल लंबाई (अवतल दर्पण के लिए f > 0 , उत्तल दर्पण के लिए f < 0
- ( v ) = प्रतिबिंब की दूरी (सकारात्मक वास्तविक प्रतिबिंब के लिए, नकारात्मक आभासी प्रतिबिंब के लिए)
- ( u ) = वस्तु की दूरी (सकारात्मक वस्तु के लिए)
(a) अवतल दर्पण के f तथा 2f के बीच रखे बिंब का वास्तविक प्रतिबिंब 2f से दूर बनता है।
- वस्तु की स्थिति: वस्तु को u = -f से -2f के बीच रखा गया है।
- दर्पण सूत्र का उपयोग:
जब u = -f:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{(-f)}\)
इसे हल करने पर:
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{f} + \frac{1}{f} = \frac{2}{f}\)
तो \( v = \frac{f}{2} \)। जब ( u = -2f ):
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{(-2f)}\)
इसे हल करने पर:
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{f} + \frac{1}{2f} = \frac{3}{2f}\)
तो \( v = \frac{2f}{3} \)।
स्थिति: ( u ) की ये मान ( -f ) और ( -2f ) के बीच हैं, और परिणामस्वरूप ( v ) ( 2f ) से दूर बनता है।
(b) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आभासी प्रतिबिंब बनता है जो बिंब की स्थिति पर निर्भर नहीं करता।
- उत्तल दर्पण के लिए: ( f < 0 )
- दर्पण सूत्र का उपयोग: जब भी वस्तु को उत्तल दर्पण के सामने रखा जाता है (सकारात्मक दिशा में), ( u ) हमेशा नकारात्मक होता है। दर्पण सूत्र:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{u}\)
f नकारात्मक है, इसलिए:
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{f} – \frac{1}{u}\)
इस स्थिति में ( v ) हमेशा नकारात्मक होगा, जो दर्शाता है कि बिंब आभासी है। - अवधारणाएं: ( v ) की स्थिति वस्तु की स्थिति पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हमेशा आभासी होती है।
(c) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आकार में छोटा प्रतिबिंब, दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच बनता है।
- दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच: जब वस्तु ( u ) की दूरी ( u = -f ) और ध्रुव के बीच रखी जाती है।
- दर्पण सूत्र का उपयोग:
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{u}\)
यदि ( u = -f ):
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{f} + \frac{1}{f} = \frac{2}{f}\)
इससे ( v ) की गणना:
\(v = \frac{f}{2}\) - आवर्धन क्षमता ( M ) की गणना:
\(M = -\frac{v}{u} = -\frac{f/2}{-f} = \frac{1}{2}\)
यह दर्शाता है कि प्रतिबिंब हमेशा आकार में छोटा होता है।
(d) अवतल दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के बीच रखे बिंब का आभासी तथा बड़ा प्रतिबिंब बनता है।
- वस्तु की स्थिति: जब वस्तु ( u ) की दूरी ( u = -f ) से -( 0 ) के बीच रखी जाती है।
- दर्पण सूत्र का उपयोग: यदि \( u = -f/2 \):
\(\frac{1}{f} = \frac{1}{v} + \frac{1}{(-f/2)}\)
इससे:
\(\frac{1}{v} = \frac{1}{f} + \frac{2}{f} = \frac{3}{f}\)
जिससे ( v ):
\(v = \frac{f}{3} \, (यह आभासी है)\) - आवर्धन क्षमता ( M ):
\(M = -\frac{v}{u}\)
यहाँ ( u ) की दूरी नकारात्मक है, जिससे ( M ) सकारात्मक होगा:
\(M = -\frac{f/3}{-f/2} = \frac{2}{3}\)
इससे पता चलता है कि यह आभासी और बड़ा प्रतिबिंब बनाता है।
निष्कर्ष
- (d) अवतल दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के बीच रखे बिंब का आभासी तथा बड़ा प्रतिबिंब बनता है।
- (a) अवतल दर्पण के f तथा 2f के बीच रखे बिंब का वास्तविक प्रतिबिंब 2f से दूर बनता है।
- (b) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आभासी प्रतिबिंब बनता है जो बिंब की स्थिति पर निर्भर नहीं करता।
- (c) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आकार में छोटा प्रतिबिंब, दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच बनता है।
प्रश्न 9.16: किसी मेज के ऊपरी पृष्ठ पर जड़ी एक छोटी पिन को 50 cm ऊँचाई से देखा जाता है। 15 cm मोटे आयताकार काँच के गुटके को मेज के पृष्ठ के समांतर पिन व नेत्र के बीच रखकर उसी बिंदु से देखने पर पिन नेत्र से कितनी दूर दिखाई देगी? काँच की अपवर्तनांक 1.5 है। क्या उत्तर गुटके की अवस्थिति पर निर्भर करता है?
उत्तर 9.16: पिन की वास्तविक गहराई, d = 15 cm
पिन की स्पष्ट गहराई = d’
काँच का अपवर्तनांक, μ = 1.5
वास्तविक गहराई और स्पष्ट गहराई का अनुपात काँच के अपवर्तनांक के बराबर होता है, अर्थात
\(\mu=\frac{d}{d’}\)
∴, d’= \(\frac{d}{\mu}\)
= \(\frac{15}{1.5}\)
= 10cm
वह दूरी जिस पर पिन उठा हुआ प्रतीत होता है = d’ − d = 15 − 10 = 5 cm
छोटे आपतन कोण के लिए, यह दूरी स्लैब के स्थान पर निर्भर नहीं करती है।
प्रश्न 9.17: चित्र में अपवर्तनांक 1.68 के तंतु काँच से बनी किसी ‘प्रकाश नलिका’ (लाइट पाइप) का अनुप्रस्थ परिच्छेद दर्शाया गया है। नलिका का बाह्य आवरण 1.44 अपवर्तनांक के पदार्थ का बना है। नलिका के अक्ष से आपतित किरणों के कोणों का परिसर, जिनके लिए चित्र में दर्शाए अनुसार नलिका के भीतर पूर्ण परावर्तन होते हैं, ज्ञात कीजिए। (b) यदि पाइप पर बाह्य आवरण न हो तो क्या उत्तर होगा?
उत्तर 9.17: (a) वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक, μ1 = 1.68
पाइप के बाहरी आवरण का अपवर्तनांक, μ2 = 1.44
आपतन कोण = i
अपवर्तन कोण = r
अंतरापृष्ठ पर आपतन कोण = i’
आंतरिक कोर – बाहरी कोर अंतरापृष्ठ का अपवर्तनांक (μ) निम्नानुसार दिया गया है:
\(\mu=\frac{\mu_{2}}{\mu_{1}}=\frac{1}{sin i’}\)
\(sin i’=\frac{\mu_{1}}{\mu_{2}}\)
\(=\frac{1.44}{1.68}=0.8571\)
\(∴\;i’=59°\)
क्रांतिक कोण के लिए, कुल आंतरिक परावर्तन केवल तभी होता है जब i > i’, यानी, i > 59° हो।
अधिकतम परावर्तन कोण, rmax = 90° − i’ = 90° − 59° = 31°
मान लीजिए, imax अधिकतम आपतन कोण है।
वायु-काँच अंतरापृष्ठ पर अपवर्तनांक, μ1 = 1.68
हमारे पास आपतन और परावर्तन के अधिकतम कोणों के लिए निम्न संबंध है:
\(\mu_{1}=\frac{sin i_{max}}{sin r_{max}}\)
sin imax = μ1 sin rmax
= 1.68 sin 31°
= 1.68 × 0.5150
= 0.8652
∴ imax = sin−1 0.8652 ≈ 60°
इस प्रकार, 0 < i < 60° की सीमा में स्थित कोणों पर आपतित सभी किरणें पूर्ण आंतरिक परावर्तन से ग्रस्त होंगी।
(b) यदि पाइप का बाहरी आवरण मौजूद नहीं है, तो:
बाहरी पाइप का अपवर्तनांक, μ1 = वायु का अपवर्तनांक = 1
आपतन कोण i = 90° के लिए, हम वायु-पाइप इंटरफ़ेस पर स्नेल का नियम इस प्रकार लिख सकते हैं:
\(\frac{sin i}{sin r}=\mu_{2}=1.68\)
\(sin r=\frac{sin 90°}{1.68}=\frac{1}{1.68}\)
\(r=sin^{-1}(0.5932)\)
= 36.5°
∴ i’ = 90° − 36.5° = 53.5°
चूँकि i’ > r, सभी आपतित किरणें पूर्ण आंतरिक परावर्तन से गुजरेंगी।
प्रश्न 9.18: किसी कमरे की एक दीवार पर लगे विद्युत बल्ब का किसी बड़े आकार के उत्तल लेंस द्वारा 3 m दूरी पर स्थित सामने की दीवार पर प्रतिबिंब प्राप्त करना है। इसके लिए उत्तल लेंस की अधिकतम फोकस दूरी क्या होनी चाहिए?
उत्तर 9.18: वस्तु और प्रतिबिंब के बीच दूरी, d = 3 m
उत्तल लेंस की अधिकतम फोकस दूरी = fmax
वास्तविक प्रतिबिंब के लिए, अधिकतम फोकल दूरी इस प्रकार दी गई है:
\(f_{max}=\frac{d}{4}\)
= \(\frac{3}{4}=0.75m\)
अतः, अपेक्षित उद्देश्य के लिए, उत्तल लेंस की अधिकतम संभावित फोकल दूरी 0.75 m है।
प्रश्न 9.19: किसी परदे को बिंब से 90 cm दूर रखा गया है। परदे पर किसी उत्तल लेंस द्वारा उसे एक-दूसरे से 20 cm दूर स्थितियों पर रखकर, दो प्रतिबिंब बनाए जाते हैं। लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
उत्तर 9.19: प्रतिबिंब (परदे) और वस्तु के बीच की दूरी, D = 90 cm
उत्तल लेंस के दो स्थानों के बीच की दूरी, d = 20 cm
लेंस की फोकस दूरी = f
फोकस दूरी d और D से इस प्रकार संबंधित है:
\(f=\frac{D^{2}-d^{2}}{4D}\)
= \(\frac{90^{2}-(20^{2})}{4\times90}\)
= \(\frac{770}{36}=21.39cm\)
अतः उत्तल लेंस की फोकस दूरी 21.39 cm है।
प्रश्न 9.20: (a) दो लेंसों के संयोजन की प्रभावी फोकस दूरी उस स्थिति में ज्ञात कीजिए जब उनके मुख्य अक्ष संपाती हैं तथा ये एक-दूसरे से 8 cm दूरी पर रखे हैं। क्या उत्तर आपतित समांतर प्रकाश पुंज की दिशा पर निर्भर करेगा? क्या इस तंत्र के लिए प्रभावी फोकस दूरी किसी भी रूप में उपयोगी है? (b) उपर्युक्त व्यवस्था (a) में 1.5 cm ऊँचा कोई बिंब उत्तल लेंस की ओर रखा है। बिंब की उत्तल लेंस से दूरी 40 cm है। दो लेंसों के तंत्र द्वारा उत्पन्न आवर्धन तथा प्रतिबिंब का आकार ज्ञात कीजिए।
उत्तर 9.20: उत्तल लेंस की फोकस दूरी, f1 = 30 cm
अवतल लेंस की फोकस दूरी, f2 = −20 cm
दोनों लेंसों के बीच की दूरी, d = 8.0 cm
(a) (i) जब प्रकाश की समांतर किरण उत्तल लेंस पर सबसे पहले आपतित होती है:
लेंस सूत्र के अनुसार,
\(\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{f_{1}}\)
जहाँ,
u1 = बिंब दूरी = ∞
v1 = प्रतिबिंब दूरी
\(\frac{1}{v_{1}}=\frac{1}{30}-\frac{1}{\infty}=\frac{1}{30}\)
∴ , \(v_{1}=30cm\)
प्रतिबिंब अवतल लेंस के लिए आभासी वस्तु के रूप में कार्य करेगा।
अवतल लेंस पर लेंस सूत्र लागू करने पर, हमें यह प्राप्त होता है:
\(\frac{1}{v_{2}}-\frac{1}{u_{2}}=\frac{1}{f_{2}}\)
जहाँ,
u2 = बिंब दूरी
= (30 − d) = 30 − 8 = 22 cm
v2 = प्रतिबिंब दूरी
\(\frac{1}{v_{2}}=\frac{1}{22}-\frac{1}{20}\)
\(= \frac{10-11}{220}=\frac{-1}{220}\)
∴ v2 = −220 cm
समांतर आपतित प्रकाश एक बिंदु से अपसरित होता प्रतीत होता है जो दोनों लेंसों के संयोजन के केंद्र से \((220-\frac{d}{2}=220-4)216cm\) दूर है।
(ii) जब प्रकाश की समांतर किरण बायीं ओर से अवतल लेंस पर सबसे पहले आपतित होती है:
लेंस सूत्र के अनुसार, हमारे पास है:
\(\frac{1}{v_{2}}-\frac{1}{u_{2}}=\frac{1}{f_{2}}\)
\(\frac{1}{v_{2}}=\frac{1}{f_{2}}+\frac{1}{u_{2}}\)
जहाँ,
u2 = बिंब दूरी = −∞
v2 = प्रतिबिंब दूरी
\(\frac{1}{v_{2}}=\frac{1}{-20}+\frac{1}{-\infty}=-\frac{1}{20}\)
∴ v2 = −20 cm
प्रतिबिंब उत्तल लेंस के लिए वास्तविक वस्तु के रूप में कार्य करेगा।
उत्तल लेंस पर लेंस सूत्र लागू करने पर, हमें यह प्राप्त होता है:
\(\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{f_{1}}\)
जहाँ,
u1 = बिंब दूरी
= −(20 + d) = −(20 + 8) = −28 cm
\(\frac{1}{v_{1}}=\frac{1}{30}+\frac{1}{-28}\)
\( = \frac{14-15}{420}=\frac{-1}{420}\)
अतः समांतर आपतित किरण एक बिंदु से विचलित होता प्रतीत होता है जो दो लेंसों के संयोजन के केंद्र के बाईं ओर से (420 − 4) 416 cm दूर है।
इसका उत्तर संयोजन के उस पक्ष पर निर्भर करता है जिस पर प्रकाश की समांतर किरण आपतित होती है। प्रभावी फोकस दूरी की धारणा इस संयोजन के लिए उपयोगी नहीं है।
(b) प्रतिबिंब की ऊंचाई, h1 = 1.5 cm
उत्तल लेंस की ओर से वस्तु की दूरी, u1 = -40 cm
\(|u_{1}|=40cm\)
लेंस सूत्र के अनुसार:
\(\frac{1}{v_{1}}-\frac{1}{u_{1}}=\frac{1}{f_{1}}\)
जहाँ,
v1 = प्रतिबिंब दूरी
\(\frac{1}{v_{1}}=\frac{1}{30}+\frac{1}{-40}\)
\(= \frac{4-3}{120}=\frac{1}{120}\)
∴ v1 = 120 cm
आवर्धन, m = \(\frac{v_{1}}{|u_{1}|}=\frac{120}{40}=3\)
अतः उत्तल लेंस के कारण आवर्धन 3 है।
उत्तल लेंस द्वारा बनाई गई प्रतिबिंब अवतल लेंस के लिए एक वस्तु के रूप में कार्य करती है।
लेंस सूत्र के अनुसार:
\(\frac{1}{v_{2}}-\frac{1}{u_{2}}=\frac{1}{f_{2}}\)
जहाँ,
u2 = बिंब दूरी
= +(120 − 8) = 112 cm
v2 = प्रतिबिंब दूरी
\(\frac{1}{v_{2}}=\frac{1}{-20}+\frac{1}{112}\)
\(= \frac{-112+20}{2240}=\frac{-92}{2240}\)
∴ \(v_{2}=\frac{-2240}{92}\)
आवर्धन, m’= \(|\frac{v_{2}}{u_{2}}|=\frac{2240}{92}\times \frac{1}{112}=\frac{20}{92}\)
अतः अवतल लेंस के कारण आवर्धन \(\frac{20}{92}\) है।
दो लेंसों के संयोजन से उत्पन्न आवर्धन की गणना इस प्रकार की जाती है: \(m \times m’\)
= 3 × 20/92 = 60/92 = 0.652
संयोजन का आवर्धन इस प्रकार दिया गया है: h2 = h1 × 0.652
जहाँ,
h1 = बिंब का आकार = 1.5 cm
h2 = प्रतिबिंब का आकार
∴ h2 = 0.652 × 1.5 = 0.98 cm
अतः, प्रतिबिंब की ऊंचाई 0.98 cm है।