नियोजित विकास की राजनीति notes, class 12 political science 2 book chapter 3 notes in hindi

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Class 12 political science 2 book chapter 3 notes in hindi: नियोजित विकास की राजनीति Notes In Hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science 2nd book
ChapterChapter 3
Chapter Nameनियोजित विकास की राजनीति
CategoryClass 12 Political Science
MediumHindi

नियोजित विकास की राजनीति notes, class 12 political science 2 book chapter 3 notes in hindi इस अध्याय मे हम भारत के आर्थिक विकास की बदलती प्रवृत्ति , योजना आयोग और पंचवर्षीय योजनाएँ , राष्ट्रीय विकास परिषद और नीति आयोग के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

नियोजन : –

🔹 नियोजन ‘ का अर्थ है योजनाबद्ध तरीके से कार्य की प्राथमिकता का निर्धारण करना तथा उपलब्ध साधनों के आधार पर कार्य को आगे बढ़ाना है । नियोजन के माध्यम से उत्पादन में वृद्धि , रोजगार के अवसरों में वृद्धि और आर्थिक स्थिरता आदि लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है ।

विकास का क्या अर्थ : –

🔹 सामान्य रूप से विकास का अर्थ परिवर्तन लिया जाता है । वर्तमान भौतिकवादी युग में व्यक्ति या समाज के विकास का अर्थ , आर्थिक विकास से ही लिया जाना है ।

नियोजित विकास का अर्थ : –

🔹 नियोजित विकास का अर्थ कम से कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करना है ।

🔹 नियोजित विकास का तात्पर्य अपनी विकास की प्राथमिकताओं का निर्धारण कर उपलब्ध साधनों का समुचित उपयोग करना है ताकि विकास की प्रक्रिया को व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाया जा सके ।

भारत के विकास का अर्थ : –

🔹 आजादी के बाद लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक समाजिक न्याय दोनो ही है । 

🔹 इस बात पर भी सहमति थी कि आर्थिक विकास और सामाजिक – आर्थिक न्याय को केवल व्यवसायी , उद्योगपति व किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता । सरकार को प्रमुख भूमिका निभानी होगी । 

🔹 आजादी के वक्त ‘ विकास ‘ का पैमाना पश्चिमी देशों को माना जाता था । आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना ।

नियोजन के उद्देश्य : –

🔹 भारत जैसे अविकसित राष्ट्र के लिए नियोजन द्वारा निम्न उद्देश्य निश्चित किए गए हैं :-

  • उद्योगों के विकास की योजना बनाना , 
  • निर्धनता और बेरोजगारी का उन्मूलन करना , 
  • निरक्षरता का उन्मूलन करना , 
  • सामाजिक न्याय की स्थापना करना , 
  • कृषि उत्पादन में वृद्धि करना , 
  • कृषि तकनीक में सुधार करना , 
  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में आत्म – निर्भरता पैदा करना , 
  • राष्ट्रीय पूँजी में वृद्धि और उसका उचित वितरण करना ,  
  • आयात और निर्यात का सन्तुलन बनाना ।

भारत में नियोजन की आवश्यकता के कारण : –

🔹 आजादी के बाद भारतीय अर्थ व्यावस्था पिछड़ी हुई थी । इसलिए भारत में नियोजन पर बल दिया 

  • संविधान में वर्णित नीति निर्देशकों के क्रियान्वयन हेतु ।
  • निर्धनता एवं बेरोजगारी दूर करने हेतु । 
  • उपलब्ध साधन से सही उपयोग से आत्मनिर्भता प्राप्त करने हेतु ।
  • आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु 
  • समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु ।  
  • सार्वजनिक हित की प्राथमिकता ।

वामपंथी : –

🔹 ऐसे लोग जो गरीबों के भले की बात करते हैं । गरीबों को राहत पहुंचाने वाली नीतियों का समर्थन करते हैं ।

दक्षिणपंथी : –

🔹 यह खुली प्रतिस्पर्धा और बाजार मुल्क अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं । इनका कहना है सरकार को अर्थव्यवस्था में गैर जरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।

विकास के मॉडल : –

🔹 विकास के दो मॉडल थे पहला उदारवादी / पूँजीवादी मॉडल तथा दूसरा – समाजवादी मॉडल

🔸 ( i ) उदारवादी / पूंजीवादी मॉडल :- यह मॉडल यूरोप के अधिकतर देशों और अमेरिका में यह मॉडल अपनाया गया था । इस व्यवस्था के अंतर्गत हर सभी वस्तुओ का उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है और सरकार का हस्तक्षेप न के बराबर होता है ।

🔸 ( ii ) समाजवादी मॉडल :- यह मॉडल सोवियत रूस में अपनाया था । इसके अंदर सभी चीज़ो का उत्पादन सरकार द्वारा किया जाता है । देश में निजी क्षेत्र नहीं होता और सभी कम्पनियाँ सरकार के आधीन होती है ।

नोट :- दोनों वर्गों की बात मानते हुए भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया जिसमें सार्वजानिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था ।

विकास का मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल  : –

🔹 मिश्रित अर्थव्यवस्था का तात्पर्य यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र व सरकारी क्षेत्र दोनों को कार्य करने की अनुमति होगी । मिश्रित अर्थव्यवस्था में जनहित व सुरक्षा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों को सरकारी क्षेत्र के अधीन रखा जाता है तथा अन्य गतिविधियों में निजी क्षेत्र को कार्य करने की अनुमति प्रदान की जाती है ।

भारत में विकास के कौन – से मॉडल अपनाये ?

🔹 भारत में विकास के उदारवादी मॉडल , साम्यवादी मॉडल , कल्याणकारी मॉडल , गाँधीवादी मॉडल सभी के मिश्रित मॉडल अपनाया है । भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल ( जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था ) को अपनाया ।

स्वतंत्रता के बाद भारत में अपनाए जाने वाले आर्थिक विकास के मॉडल से सम्बन्धित सहमति तथा असहमति के विभिन्न क्षेत्र : –

🔸 सहमति के क्षेत्र :-

🔹 भारत के विकास का अर्थ आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक न्याय होना चाहिए । 

🔹 विकास के मुद्दे को केवल व्यापारियों , उद्योगपतियों व किसानो पर ही नहीं छोड़ा जा सकता है । अपितु सरकार को एक प्रमुख भूमिका निभानी चाहिये । 

🔹 गरीबी उन्मूलन तथा सामाजिक व आर्थिक वितरण के काम को सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी माना गया । 

🔸 असहमति के क्षेत्र :-

🔹 सरकार द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका पर असहमति । 

🔹 यदि आर्थिक वृद्धि से असमानता हो तो न्याय की जरूरत से जुड़े महत्व पर असहमति । 

🔹 उद्योग बनाम् कृषि तथा निजी बनाम सार्वजनिक क्षेत्र के जुड़े मुद्दे पर असहमति ।

भारत द्वारा अपनायी गयी विकास के मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल के परीणाम ( मिश्रित अर्थव्यवस्था की समीक्षा ) : –

🔹 मिश्रित अर्थव्यवस्था के संचालन में भारत में सकारात्मक व नकारात्मक दोनों तरह के परिणाम सामने आये हैं । 

🔸 सकारात्मक परिणाम :-

🔹 सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से सरकार ने विकास की प्राथमिकताओं को पूरा किया गया । 

🔹 विकास के लिए ढाँचागत सुविधाओं तथा शोध व तकनीकि के विकास का प्रयोग किया गया । इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र दीर्घकालीन व अनिश्चित लाभ के कारण निवेश करने से कतराता है । 

🔹 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए सामाजिक न्याय व कल्याण के कार्यक्रमों की योजनाएँ लागू करने में सफलता प्राप्त की । सरकारी क्षेत्र का संचालन लाभ के लिए नहीं वरन् लोक हित में किया गया ।

🔹 व्यापक राष्ट्रीय हित में कतिपय आर्थिक क्षेत्रों जैसे :- रक्षा उत्पादन , रेल्वे आदि को सरकारी क्षेत्र में रखना – आवश्यक था । 

🔹 निजी क्षेत्र को पूरी तरह प्रतिबन्धित नहीं किया गया , जिससे सीमित आर्थिक प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला तथा विकास के लिए निजी क्षेत्र से आवश्यक संसाधन भी प्राप्त हो सके । 

🔸 नकारात्मक परिणाम :-

🔹 अर्थव्यवस्था पर राज्य के अधिक नियंत्रण के कारण आर्थिक विकास में प्रतियोगिता के अभाव के साथ – साथ निजी क्षेत्र की भूमिका सीमित रही । इससे आर्थिक विकास प्रभावित हुआ तथा वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतियोगी क्षमता का विकास नहीं हो पाया । 

🔹 सरकारी क्षेत्र भी सरकारी नियंत्रण व नौकरशाही कारण तेजी से विकास नहीं कर सका तथा कई सरकारी उद्यम घाटे पर चले गये तथा सरकार पर बोझ बन गये । 

🔹 कोटा तथा लाइसेन्स के कारण नौकरशाही को विवेकाधिकार प्राप्त हो गये तथा भ्रष्टाचार व अन्य अवैध आर्थिक क्रियाओं को बढ़ावा मिला । 

🔹 आलोचकों का मानना है कि मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र व सरकारी क्षेत्र दोनों के लाभ नहीं मिल पाये , बल्कि अर्थव्यवस्था में दोनों की बुराइयों का समावेश हो गया । 

🔹 सन् 1990 के दशक में उदारवादी अर्थव्यवस्था अपनाते समय ये सभी नकारात्मक पहलू नीति निर्माताओं के मस्तिष्क में घूम रहे थे । भारतीय अर्थव्यवस्था में उपजी अक्षमताओं को दूर करने तथा वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण सन् 1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण व निजीकरण की नई आर्थिक नीति को लागू किया ।

बॉम्बे प्लान : –

🔹 सन् 1944 में उद्योगपतियों का एक तब का एक जुट हुआ । इस समूह ने नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने के लिए औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाने के लिए एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया जिसे ‘ बॉम्बे प्लान ‘ कहते हैं ।

बोम्बे प्लान का उदेश्य : –

🔹 बाम्बे प्लान की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए ।

योजना आयोग : –

🔹 भारत के आजाद होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया । योजना आयोग की स्थापना मार्च , 1950 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा की गई । प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने । भारत अपने विकास के लिए कौन – सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा यह फैसला करने में इस संस्था ने केन्द्रीय और सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाई ।

योजना आयोग की कार्यविधि : –

🔹सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना ।

🔹 भारत – सरकार अपनी तरफ से एक दस्तवेज तैयार करेगी जिसमें अगले पांच सालों के लिए उसकी आमदनी और खर्च की योजना होगी ।

🔹 इस योजना के अनुसार केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया ।

🔹 एक हिस्सा गैरयोजना – व्यय का था । इसके अंतर्गत सालाना आधार पर दिन दैनिक मदों पर खर्च करना था । दूसरा हिस्सा योजना व्यय था ।

योजना आयोग के उद्देश्य : –

  • देश के संसाधनों का अनुमान लगाना । 
  • देश के विकास के लिए योजना बनाना । 
  • विभिन्न कार्यक्रमों के बीच प्राथमिकता का निर्धारण करना । 
  • योजनाकाल के दौरान हुई प्रगति का आकलन करना ।

प्रथम पंचवर्षीय योजना : –

  • यह योजना 1951 से 1956 तक थी ।
  • इसमें ज्यादा जोर कृषिक्षेत्र पर था ।
  • इसी योजना के अन्तर्गत बाँध और सिचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया ।
  • भागड़ा – नांगल परियोजना इनमे से एक थी ।

पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियाँ : –

  • भारत के भविष्य की बुनियाद मजबूत 
  • भूमि सुधार प्रक्रिया आरम्भ । 
  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि ।
  • सामाजिक न्याय स्थापित । 
  • साक्षरता में वृद्धि उत्पादन में आत्मनिर्भरता ।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना : –

  • यह योजना 1956 से 1961 तक थी ।
  • इस योजना में उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया ।
  • सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया ।
  • इस योजना के योजनाकार पी . सी . महालनोबीस थे ।

विकास का केरल मॉडल : –

🔹 केरल में विकास और नियोजन के लिए अपनाए गए इस मॉडल में शिक्षा , स्वास्थ्य , भूमि सुधार , कारगर खाद्य – वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है ।

🔹 जे . सी . कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रीयों ने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की , जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था ।

🔹 चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठायी ।

🔹 भूमि सुधार के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा की समाप्ति , जमीन के छोटे छोटे टुकड़ों को एक साथ करना ( चकबंदी ) और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत-बो रहे थे , उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण जैसे कदम उठाए गए ।

🔹 1960 के दशक में सूखा व अकाल के कारण कृषि की दशा बद से बदतर हो गयी । खाद्य संकट के कारण गेहूँ का आयात करना पड़ा ।

चकबंदी से क्या लाभ है ? 

🔹 चकबंदी से कृषकों को उन्नत किस्म के खद्यान्नों का प्रयोग करने में सहायता मिलती है । तथा वे कम से कम प्रयत्नों से अधिकतम उत्पादन करने में सफल होते हैं । इससे उत्पादन लागत में भी कमी आती है ।

राष्ट्रीय विकास परिषद्  : –

🔹 राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना 6 April 1952 में प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत ( भारत सरकार के एक प्रस्ताव ) द्वारा की गई । यह एक सलाहकारी निकाय है योजनाओं को तैयार करने में राज्यों की भागीदार को सुनिश्चित करना इसका मुख्य उद्देश्य था । 

🔹 इसके पदेन अध्यक्ष प्रधान मंत्री होते हैं । Oct 1967 में प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश पर इसका पुनर्गठन किया गया और इसके कामों को सिरे से परिभाषित किया गया ।

राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना के उद्धेश्य : –

  • देश के सभी भागों में तीव्र और संतुलित विकास करने के लिए । 
  • योजनाओं के कार्यान्वयन में राज्यों के सहयोग को सुनिश्चित करना । 
  • नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करना । 
  • प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना ।

‘ नीति आयोग ‘ : –

🔹 01 जनवरी 2015 से योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग अस्तित्व में आया है । इसका मुख्यालय नई दिल्ली है । भारत के प्रधानमंत्री नीति आयोग के पदेन सभापति है तथा वे नीति आयोग के उपसभापति की नियुक्ति करते हैं । नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया थे । वर्तमान में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉक्टर राजीव कुमार है । ( 2021 )

नीति आयोग की स्थापना का औचित्य : –

🔹 भारत की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए : –

  • योजना आयोग भूमंडलीकरण के दौर में नवीन चुनौतियों से निपटने में असमर्थ था । 
  • देश की राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक और तकनीकी स्थितियों में परिवर्तन हो रहा था । 
  • भारत अब विकासशील से विकसित देश बनने की ओर अग्रसर है । 
  • उपयुक्त चुनौतियों से निपटने के लिए ही नीति आयोग की स्थापना की गयी है ।

नीति आयोग का कार्य : –

🔹 राष्ट्रीय सुरक्षा तथा आर्थिक नीतियों के मध्य सांमजस्य स्थापित करने तथा सामरिक क्षेत्र में नीतिसंगत कार्यक्रमों का दीर्घकालिक ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से नीति आयोग केंद्र सरकार के वैचारिक केंद्र ‘ अथवा ‘ प्रबुद्ध मण्डल ‘ के रूप में कार्य करता है ।

🔹 ‘ उर्ध्वमुखी दृष्टिकोण ‘ ( Bottom Up Approach ) को अंगीकार करते हुए तथा देश के समस्त राज्यों की समान भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए नीति आयोग सहकारी संघवाद के भाव से कार्य करता है ।


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