12 Class Political Science Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 8 |
Chapter Name | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
Class 12 Political Science Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Notes In Hindi इस अध्याय मे हम पर्यावरणीय आंदोलन , वैश्विक तापन और जलवायु परिर्वतन , प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
पर्यावरण : –
🔹 पर्यावरण शाब्दिक रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है , परि + आवरण । ‘ परि ‘ का अर्थ है – चारों ओर तथा ‘ आवरण ’ का अर्थ है – ढँके हुए । इस प्रकार , पर्यावरण से तात्पर्य , उस सब कुछ से है , जो किसी भौतिक अथवा अभौतिक वस्तु को चारों ओर से ढँके हुए हैं ।
🔹 पर्यावरण का अर्थ , उन सभी परिस्थितियों और उनके प्रभावों से है , जो किसी भी स्थान पर किसी समय मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती है ।
पर्यावरण की एक परिभाषा : –
🔹 रॉस के अनुसार , “ पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है , जो हमको प्रभावित करती है । इस प्रकार पर्यावरण से तात्पर्य , मनुष्य के चारों ओर की उन परिस्थतियों से है , जो उसकी क्रियाओं को प्रभावित करती है । ”
प्राकृतिक संसाधन : –
🔹 प्रकृति से प्राप्त मनुष्य के उपयोग के साधनो को प्राकृतिक संसाधन कहते है ।
समकालीन राजनीति में पर्यावरण की चिंता के कारण : –
- कृषि भूमि में कमी
- वैश्विक तापन में वृद्धि
- पीने योग्य जल की मात्रा में कमी
- बढ़ता प्रदूषण
- सीमित संसाधन
- मानव अस्तित्व को खतरा
- ओजोन परत में छिद्र
पर्यावरण प्रदूषण : –
🔹 पर्यावरण के अनेक घटक हैं । इन सभी घटकों के बीच परस्पर क्रिया प्रतिक्रियाओं द्वारा संतुलन स्थापित रहता है । उस पर्यावरण में ही जीव अपना जीवन – चक्र पूर्ण करता है लेकिन यह संतुलन बिगड़ने पर जीवों को अपना जीवन – चक्र चलाने में अत्यधिक कठिनाई होने लगती हैं , अतः इस प्रकार के किसी घटक को वातावरण में कम या अधिक कर देना अथवा किसी अन्य प्रकार के पदार्थों का पर्यावरण में प्रवेश आदि ही ‘ पर्यावरण का प्रदूषण ‘ है ।
🔹 किसी भी प्रकार के भौतिक परिवर्तन , रासायनिक परिवर्तन या अन्य किसी भी प्रकार के परिवर्तन जो जीवों के जीवन – क्रम को अवांछनीय रूप से प्रभावित करते हैं , पर्यावरण प्रदूषण के अन्तर्गत ही आते हैं ।
विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के उत्तरदायी कारक : –
- जनसंख्या वृद्धि ।
- वनो की कटाई ।
- उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा ।
- संसाधनों का अत्याधिक दोहन ।
- औद्योगिकीकरण को बढ़ावा ।
- परिवहन के अत्यधिक साधन ।
पर्यावरण प्रदूषण के संरक्षण के उपाय : –
- जनसंख्या नियंत्रण ।
- वन संरक्षण ।
- पर्यावरण मित्र तकनीक का प्रयोग ।
- प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग ।
- परिवहन के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग ।
- जन जागरूकता कार्यक्रम ।
- अर्न्तराष्ट्रीय सहयोग ।
” लिमिट्स टू ग्रोथ ” नामक पुस्तक : –
🔹 वैशिवक मामलो में सरोकार रखने वाले विद्वानों के एक समूह ने जिसका नाम है ( क्लब ऑफ़ रोम ) ने 1972 में एक पुस्तक ” लिमिट्स टू ग्रोथ “ लिखी । इस पुस्तक में बताया गया कि जिस प्रकार से दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है उसी प्रकार संसाधन कम होते जा रहे हैं ।
यू.एन.ई.पी. क्या है ?
🔹 यू.एन.ई.पी. संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण कार्यक्रम से सम्बद्ध एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है , इसका पूरा नाम ( UNITED NATION ENVIRONMENT PROGRAMME ) यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेन्ट प्रोग्राम ( संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ) है ।
यू . एन . ई . पी . के मुख्य कार्य है : –
- पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के लिए विश्वस्तर पर सम्मेलनों का आयोजन करना ।
- यू . एन . ई . पी . का कार्य पर्यावरण पर वैज्ञानिक ज्ञान एवं सूचना को बढ़ावा देना है ।
- यू . एन . ई . पी . का कार्य एक विश्वव्यापी नेटवर्क वैश्विक संसाधन सामग्री आधार की रचना के आधार पर तैयार करना है ।
- यू . एन . ई . पी . 175 से अधिक देशों में एकीकृत पर्यावरणीय सूचना सेवा प्रदान कर रहा है ।
- यू . एन . ई . पी . विश्व की स्थिति का आंकलन और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की जरूरत वाले विषयों की पहचान करती है ।
- यू . एन . ई . पी . संयुक्त राष्ट्र संघ की सामाजिक और आर्थिक नीतियों एवं कार्यक्रमों में पर्यावरणीय विचारों को शामिल करने में सहायता देती है ।
- यू . एन . ई . पी . महासागरों तथा सागरों के बचाव के लिए कार्य करता है ।
- यू . एन . ई . पी . ने जैव विविधता , मरूस्थलीकरण एवं मौसम परिवर्तन पर सन्धियों हेतु वार्ता एवं उन्हें कार्याविन्त करने में भी मदद की और यह उन संधियों के लिए प्रशासन एवं सचिवालय का कार्य कर रही है ।
रियो सम्मेलन / पृथ्वी सम्मेलन ( Earth Summit ) : –
🔹 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ । इसे पृथ्वी सम्मेलन ( Earth Summit ) कहा जाता है । इस सम्मेलन में 170 देश , हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया ।
रियो सम्मेलन / पृथ्वी सम्मेलन की विशेषताएँ / महत्व : –
🔹 पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकार को इसी सम्मेलन में राजनितिक दायरे में ठोस रूप मिला ।
🔹 रियो – सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देश अर्थात उत्तरी गोलार्द्ध तथा गरीब और विकासशील देश यानि दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग – अलग एजेंडे के पैरोकार है ।
🔹 उत्तरी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत को नुकसान और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर थी जबकि दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्यादा चिंतित थे ।
🔹 रियो – सम्मेलन में जलवायु – परिवर्तन , जैव – विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए । इसमें एजेंडा – 21 के रूप में विकास के कुछ तौर – तरीके भी सुझाए गए ।
🔹 इसी सम्मेलन में ‘ टिकाऊ विकास ‘ का तरीका सुझाया गया जिसमें ऐसी विकास की कल्पना की गयी जिसमें विकास के साथ – साथ पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे । इसे धारणीय विकास भी कहा जाता है ।
टिकाऊ विकास का तरीका क्या है ?
🔹 पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना होने वाले आर्थिक विकास को टिकाऊ विकास का तरीका कहा जाता है ।
टिकाऊ विकास को लागू करने के तरीके : –
- अपरिग्रह की भावना ( आवश्यकताओं में कमी )
- आवश्यकता अनुसार उत्पादन करना ।
- प्राकृतिक सह अस्तित्व ।
- प्राकृतिक साधनों का उचित एवं पूर्ण प्रयोग ।
” अवर कॉमन फ्यूचर ” नामक रिपोर्ट की चेतावनी : –
🔹 1987 में आई इस रिपोर्ट में जताया गया कि आर्थिक विकास के चालू तौर तरीके भविष्य में टिकाऊ साबित नही होगे ।
अजेंडा – 21 : –
🔹 रियो सम्मेलन में विकास के कुछ तौर – तरीके सिखाये गये इसे ही अजेंडा – 21 कहा गया ।
अजेंडा – 21 की आलोचना : –
🔹 कुछ आलोचकों का कहना है कि ‘ अजेंडा – 21 ‘ का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है ।
साझी संपदा : –
🔹वे संसाधन जिन पर किसी एक का वास्तविक अधिकार न होकर सम्पूर्ण समुदाय का अधिकार होता, साझी सम्पदा कहलाती है । जैसे संयुक्त परिवार का चूल्हा , चारागाह , मैदान , कुआँ या नदी साझी संपदा के उदाहरण हैं ।
वैश्विक संपदा या मानवता की साझी विरासत : –
🔹 इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं । इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है । इन्हें ‘ वैश्विक संपदा ‘ या मानवता की साझी विरासत ‘ कहा जाता है ।
🔹 इसमें पृथ्वी का वायुमंडल अंटार्कटिका , समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष भी शामिल है ।
‘ वैश्विक संपदा ‘ की सुरक्षा के पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कायम करने के लिए किए गए समझौते : –
🔹इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे :- अंटार्कटिका संधि ( 1959 ) मांट्रियल न्यायाचार ( 1987 ) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार ( 1991 ) हो चुके है ।
साझी परन्तु अलग अलग जिम्मेदारी : –
🔹 वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा को लेकर भी विकसित एवं विकासशील देशों का मत भिन्न है । विकसित देश इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी देशों में बराबर बाँटने के पक्ष में है । परन्तु विकासशील देश दो आधारों पर विकसित देशों की इस नीति का विरोध करते है :-
- पहला यह कि साझी संपदा को प्रदूषित करने में विकसित देशो की भूमिका अधिक है
- दूसरा यह कि विकासशील देश अभी विकास की प्रक्रिया में है ।
🔹 अतः साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में विकसित देशों की जिम्मेवारी भी अधिक होनी चाहिए तथा विकासशील देशों की जिम्मेदारी कम की जानी चाहिए ।
” सांझी जिम्मेदारी लेकिन अलग – अलग भूमिकाएँ ” विचार को लागू करने के उपाय : –
- पर्यावरण संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानून विकासशील देशों के अनुकूल हो ।
- पर्यावरण संरक्षण हेतु संयुक्त कोष ।
- व्यक्तिगत , क्षेत्रीय , राजकीय , राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास ।
- साझी संपदा तथा संसाधनों पर अनुसंधान कार्य ।
पर्यावरण को लेकर विकसित और विकासशील देशों का रवैया : –
🔶 विकसित देश :-
🔹 उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण आज मौजूद है । ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो ।
🔶 विकासशील देश :-
🔹 विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है । यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए । इसके अलावा , विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और जरुरी है कि उन पर वे प्रतिबंध न लगें जो विकसित देशों पर लगाये जाने हैं ।
ग्लोबल वार्मिंग : –
🔹 वायुमंडल के ऊपर ओजोन गैस की एक पतली सी परत है जिसमे से सूर्य की रोशनी छन कर पृथ्वी तक पहुँचती है यह सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों से हमे बचाती है । इस गैस की परत में छेद हो गया है जिससे अब सूरज की किरणें Direct पृथ्वी पर आ जाती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर की बर्फ तेजी से पिघल रही है जिसके कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है इससे उन स्थान पर ज्यादा खतरा है जो समुद्र के किनारे बसे हैं ।
🔹 कार्बन डाई ऑक्साइड , मीथेन , हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ये गैस ग्लोबल वार्मिंग प्रमुख कारण है ।
क्योटो प्रोटोकॉल : –
🔹 पर्यावरण समस्याओं को लेकर विश्व जनमानस के बीच जापान के क्योटो शहर में 1997 में इस प्रोटोकॉल पर सहमती बनी ।
🔹 1992 में इस समझौते के लिए कुछ सिद्धांत तय किए गए थे और सिद्धांत की इस रूपरेखा यानी यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज पर सहमति जताते हुए हस्ताक्षर हुए थे । इसे ही क्योटो प्रोटोकॉल कहा जाता है ।
🔹 भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल ( 1997 ) पर हस्ताक्षर किये और इसका अनुमोदन किया ।
🔹 भारत , चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट दी गई है क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्शन के मामले में इनका कुछ खास योगदान नहीं था ।
🔹 औद्योगीकरण के दौर को मौजूदा वैश्विक तापवृद्धि और जलवायु – परिवर्तन का जिम्मेदार माना जाता है ।
पावन वन प्रान्तर या देवस्थान क्या है ?
🔹 पावन वन प्रान्तर प्रथा में वनों के कुछ हिस्सों को काटा नहीं जाता । इन स्थानों पर देवता का वास माना जाता है । इन्हें ही पावन वन प्रान्तर या देवस्थान कहा जाता है ।
भारत ने भी पर्यावरण सुरक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अपना योगदान दिया है : –
- 2002 क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर एवं उसका अनुमोदन ।
- 2005 में जी – 8 देशों की बैठक में विकसित देशों द्वारा की जा रही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी पर जोर ।
- नेशनल ऑटो – फ्यूल पॉलिसी के अंर्तगत वाहनों में स्वच्छ ईधन का प्रयोग ।
- 2001 में उर्जा सरंक्षण अधिनियम पारित किया ।
- 2003 में बिजली अधिनियम में नवीकरणीय उर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया ।
- भारत में बायोडीजल से संबंधित एक राष्ट्रीय मिशन पर कार्य चल रहा है ।
- भारत SAARC के मंच पर सभी राष्ट्रों द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा पर एक राय बनाना चाहता है ।
- भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ( NGT ) की स्थापना की गई ।
- भारत विश्व का पहला देश है जहाँ अक्षय उर्जा के विकास के लिए अलग मन्त्रालय है ।
- कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में प्रति व्यक्ति कम योगदान ( अमेरिका 16 टन , जापान 8 टन , चीन 06 टन तथा भारत 01.38 टन ।
- भारत ने पेरिस समझौते पर 2 अक्टूबर 2016 हस्ताक्षर किये हैं ।
- 2030 तक भारत ने उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33- 35 % कम करने का लक्ष्य रखा है ।
- COP – 23 में भारत वृक्षारोपण व वन क्षेत्र की वृद्धि के माध्यम से 2030 तक 2.5 से 3 विलियन टन CO2 के बराबर सिंक बनाने का वादा किया है ।
पर्यावरण आंदोलन : –
🔹 पर्यावरण की हानि की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर किया जाने वाला आन्दोलन पर्यावरण आन्दोलन कहलाता है ।
🔹 पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों के अतिरिक्त विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरणीय कार्यकताओ ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर कई आंदोलन किये है जैसे :-
- दक्षिणी देशों मैक्सिकों , चिले , ब्राजील , मलेशिया , इण्डोनेशिया , अफ्रीका और भारत के वन आंदोलन ।
- ऑस्ट्रेलिया में खनिज उद्योगों के विरोध में आन्दोलन ।
- थाइलैंण्ड , दक्षिण अफ्रीका , इण्डोनेशिया , चीन तथा भारत में बड़े बाँधों के विरोध में आंदोलन जिनमें भारत का नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रसिद्ध है ।
संसाधनों की भू – राजनीति : –
🔹 यूरोपीय देशों के विस्तार का मुख्य कारण अधीन देशों का आर्थिक शोषण रहा है । जिस देश के पास जितने संसाधन होगें उसकी अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी ।
🔶 इमारती लकड़ी :- पश्चिम के देशों ने जलपोतो के निर्माण के लिए दूसरे देशों के वनों पर कब्जा किया ताकि उनकी नौसेना मजबूत हो और विदेश व्यापार बढ़े ।
🔶 तेल भण्डार :- विश्व युद्ध के बाद उन देशों का महत्व बढ़ा जिनके पास यूरेनियम और तेल जैसे संसाधन थे । विकसित देशों ने तेल की निर्बाध आपूर्ति के लिए समुद्री मार्गो पर सेना तैनात की ।
🔶 जल :- पानी के नियन्त्रण एवं बँटवारे को लेकर लड़ाईयाँ हुई । जार्डन नदी के पानी के लिए चार राज्य दावेदार है इजराइल , जार्डन , सीरिया एवम् लेबनान ।
मूलवासी का अर्थ : –
🔹 जनता का वह भाग किसी वन प्रदेश या अन्य भू भाग मे आदिकाल से निवास करते चले आ रहे हो , वह सम्बन्धित क्षेत्र के मूलवासी कहलाते है ।
🔹 संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1982 में ऐसे लोगों को मूलवासी बताया जो मौजूदा देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे थे तथा बाद में दूसरी संस्कृति या जातियों ने उन्हें अपने अधीन बना लिया ।
मूलवासियों के प्रमुख स्थान : –
🔹 मूलवासियों के प्रमुख स्थान मध्य व दक्षिण अमेरिका , अफ्रीका , दक्षिण – पूर्व एशिया व भारत है ।
मूलवासियों के प्रमुख जनसंख्या : –
- फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र में 20 लाख मूलवासी लोग रहते हैं ।
- चिले में मापुशे नामक मूलवासियों की संख्या 10 लाख है ।
- बांग्लादेश के चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में 6 लाख आदिवासी बसे हैं ।
- उत्तर अमरीकी मूलवासियों की संख्या 3 लाख 50 हजार है ।
- पनामा नहर के पूरब में कुना नामक मूलवासी 50 हज़ार की तादाद में है ।
- उत्तरी सोवियत में ऐसे लोगों की आबादी 10 लाख है ।
भारत में किन लोगों को ” मूलवासी ” कहा जाता है ?
🔹 भारत में ‘ मूलवासी ‘ के लिए जनजाति या आदिवासी शब्द का प्रयोग किया जाता है । अर्थात भारत में अनुसूचित जनजाति के लोगों को मूलवासी कहा जाता है ।
मूलवासियों के जीवन – यापन के लिए सबसे बड़े खतरे : –
🔹 प्राकृतिक संसाधन एवं कृषि पर निर्भर है , परंतु विकसित देशों एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन प्राकृतिक संसाधनों कृषि योग्य भूमि का दोहन अपने हित में करना शुरू कर दिया जिससे मूलवासियों के जीवन – यापन पर खतरा पैदा हो गया है ।
मूलवासियों की प्रमुख माँगे : –
- विश्व में मूल वासियों को बराबरी का दर्जा प्राप्त हो ।
- मूल वासियों के आर्थिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन नहीं किया जाना चाहिए ।
- मूल वासियों को देश के विकास का लाभ मिलना चाहिए ।
- मूलवासियों को अपनी स्वतंत्र पहचान रखनेवाले समुदाय के रूप में जाना जाए ।
उत्तर अंटार्कटिका महाद्वीप की विशेषताएँ : –
- अंटार्कटिका महादेशीय क्षेत्र का विस्तार 1 करोड 40 लाख वर्ग करोड़ किलोमीटर में है ।
- यह विश्व का सबसे सुदूर ठण्डा एवं झंझावती प्रदेश है ।
- विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत भाग इस महाद्वीप के अन्तर्गत आता है ।
- इस महादेश का 3 करोड 60 लाख वर्ग किलोमीटर तक अतिरिक्त विस्तार समुद्र में है ।
- स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत भाग एवं धरती के स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग इस महाद्वीप में मौजूद है ।
अंटार्कटिका महाद्वीप का महत्त्व : –
- इस महाद्वीपीय क्षेत्र में समुद्री पारिस्थितिकी तन्त्र अत्यन्त उर्वर पाया जाता है ।
- क्षैत्र वैज्ञानिक अनुसंधान , मत्स्य आखेट एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है ।
- अंटार्कटिका महाद्वीप विश्व की जलवायु को संतुलित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है ।
- इस महाद्वीपीय प्रदेश में जमी बर्फ से लाखों वर्ष पूर्व का वायुमण्डलीय तापमान का पता लगाया जा सकता है ।