पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Notes: Class 12 Political science chapter 8 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 8 |
Chapter Name | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Notes |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
Class 12 political science chapter 8 notes in hindi, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन notes इस अध्याय मे हम पर्यावरणीय आंदोलन , वैश्विक तापन और जलवायु परिर्वतन , प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
पर्यावरण : –
🔹 पर्यावरण शाब्दिक रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है , परि + आवरण । ‘ परि ‘ का अर्थ है – चारों ओर तथा ‘ आवरण ’ का अर्थ है – ढँके हुए । इस प्रकार , पर्यावरण से तात्पर्य , उस सब कुछ से है , जो किसी भौतिक अथवा अभौतिक वस्तु को चारों ओर से ढँके हुए हैं ।
🔹 पर्यावरण का अर्थ , उन सभी परिस्थितियों और उनके प्रभावों से है , जो किसी भी स्थान पर किसी समय मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती है ।
पर्यावरण की एक परिभाषा : –
🔹 रॉस के अनुसार , “ पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है , जो हमको प्रभावित करती है । इस प्रकार पर्यावरण से तात्पर्य , मनुष्य के चारों ओर की उन परिस्थतियों से है , जो उसकी क्रियाओं को प्रभावित करती है । ”
प्राकृतिक संसाधन : –
🔹 प्रकृति से प्राप्त मनुष्य के उपयोग के साधनो को प्राकृतिक संसाधन कहते है ।
समकालीन राजनीति में पर्यावरण की चिंता के कारण : –
- कृषि भूमि में कमी
- वैश्विक तापन में वृद्धि
- पीने योग्य जल की मात्रा में कमी
- बढ़ता प्रदूषण
- सीमित संसाधन
- मानव अस्तित्व को खतरा
- ओजोन परत में छिद्र
पर्यावरण प्रदूषण : –
🔹 पर्यावरण के अनेक घटक हैं । इन सभी घटकों के बीच परस्पर क्रिया प्रतिक्रियाओं द्वारा संतुलन स्थापित रहता है । उस पर्यावरण में ही जीव अपना जीवन – चक्र पूर्ण करता है लेकिन यह संतुलन बिगड़ने पर जीवों को अपना जीवन – चक्र चलाने में अत्यधिक कठिनाई होने लगती हैं , अतः इस प्रकार के किसी घटक को वातावरण में कम या अधिक कर देना अथवा किसी अन्य प्रकार के पदार्थों का पर्यावरण में प्रवेश आदि ही ‘ पर्यावरण का प्रदूषण ‘ है ।
🔹 किसी भी प्रकार के भौतिक परिवर्तन , रासायनिक परिवर्तन या अन्य किसी भी प्रकार के परिवर्तन जो जीवों के जीवन – क्रम को अवांछनीय रूप से प्रभावित करते हैं , पर्यावरण प्रदूषण के अन्तर्गत ही आते हैं ।
विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के उत्तरदायी कारक : –
- जनसंख्या वृद्धि ।
- वनो की कटाई ।
- उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा ।
- संसाधनों का अत्याधिक दोहन ।
- औद्योगिकीकरण को बढ़ावा ।
- परिवहन के अत्यधिक साधन ।
पर्यावरण प्रदूषण के संरक्षण के उपाय : –
- जनसंख्या नियंत्रण ।
- वन संरक्षण ।
- पर्यावरण मित्र तकनीक का प्रयोग ।
- प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग ।
- परिवहन के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग ।
- जन जागरूकता कार्यक्रम ।
- अर्न्तराष्ट्रीय सहयोग ।
” लिमिट्स टू ग्रोथ ” नामक पुस्तक : –
🔹 वैशिवक मामलो में सरोकार रखने वाले विद्वानों के एक समूह ने जिसका नाम है ( क्लब ऑफ़ रोम ) ने 1972 में एक पुस्तक ” लिमिट्स टू ग्रोथ “ लिखी । इस पुस्तक में बताया गया कि जिस प्रकार से दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है उसी प्रकार संसाधन कम होते जा रहे हैं ।
यू.एन.ई.पी. क्या है ?
🔹 यू.एन.ई.पी. संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण कार्यक्रम से सम्बद्ध एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है , इसका पूरा नाम ( UNITED NATION ENVIRONMENT PROGRAMME ) यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेन्ट प्रोग्राम ( संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ) है ।
यू . एन . ई . पी . के मुख्य कार्य है : –
🔹 पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के लिए विश्वस्तर पर सम्मेलनों का आयोजन करना ।
🔹 यू . एन . ई . पी . का कार्य पर्यावरण पर वैज्ञानिक ज्ञान एवं सूचना को बढ़ावा देना है ।
🔹 यू . एन . ई . पी . का कार्य एक विश्वव्यापी नेटवर्क वैश्विक संसाधन सामग्री आधार की रचना के आधार पर तैयार करना है ।
🔹 यू . एन . ई . पी . 175 से अधिक देशों में एकीकृत पर्यावरणीय सूचना सेवा प्रदान कर रहा है ।
🔹 यू . एन . ई . पी . विश्व की स्थिति का आंकलन और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की जरूरत वाले विषयों की पहचान करती है ।
🔹 यू . एन . ई . पी . संयुक्त राष्ट्र संघ की सामाजिक और आर्थिक नीतियों एवं कार्यक्रमों में पर्यावरणीय विचारों को शामिल करने में सहायता देती है ।
🔹 यू . एन . ई . पी . महासागरों तथा सागरों के बचाव के लिए कार्य करता है ।
🔹 यू . एन . ई . पी . ने जैव विविधता , मरूस्थलीकरण एवं मौसम परिवर्तन पर सन्धियों हेतु वार्ता एवं उन्हें कार्याविन्त करने में भी मदद की और यह उन संधियों के लिए प्रशासन एवं सचिवालय का कार्य कर रही है ।
रियो सम्मेलन / पृथ्वी सम्मेलन ( Earth Summit ) : –
🔹 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ । इसे पृथ्वी सम्मेलन ( Earth Summit ) कहा जाता है । इस सम्मेलन में 170 देश , हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया ।
रियो सम्मेलन / पृथ्वी सम्मेलन की विशेषताएँ / महत्व : –
🔹 पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकार को इसी सम्मेलन में राजनितिक दायरे में ठोस रूप मिला ।
🔹 रियो – सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देश अर्थात उत्तरी गोलार्द्ध तथा गरीब और विकासशील देश यानि दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग – अलग एजेंडे के पैरोकार है ।
🔹 उत्तरी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत को नुकसान और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर थी जबकि दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्यादा चिंतित थे ।
🔹 रियो – सम्मेलन में जलवायु – परिवर्तन , जैव – विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए । इसमें एजेंडा – 21 के रूप में विकास के कुछ तौर – तरीके भी सुझाए गए ।
🔹 इसी सम्मेलन में ‘ टिकाऊ विकास ‘ का तरीका सुझाया गया जिसमें ऐसी विकास की कल्पना की गयी जिसमें विकास के साथ – साथ पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे । इसे धारणीय विकास भी कहा जाता है ।
टिकाऊ विकास का तरीका क्या है ?
🔹 पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना होने वाले आर्थिक विकास को टिकाऊ विकास का तरीका कहा जाता है ।
टिकाऊ विकास को लागू करने के तरीके : –
- अपरिग्रह की भावना ( आवश्यकताओं में कमी )
- आवश्यकता अनुसार उत्पादन करना ।
- प्राकृतिक सह अस्तित्व ।
- प्राकृतिक साधनों का उचित एवं पूर्ण प्रयोग ।
” अवर कॉमन फ्यूचर ” नामक रिपोर्ट की चेतावनी : –
🔹 1987 में आई इस रिपोर्ट में जताया गया कि आर्थिक विकास के चालू तौर तरीके भविष्य में टिकाऊ साबित नही होगे ।
अजेंडा – 21 : –
🔹 रियो सम्मेलन में विकास के कुछ तौर – तरीके सिखाये गये इसे ही अजेंडा – 21 कहा गया ।
अजेंडा – 21 की आलोचना : –
🔹 कुछ आलोचकों का कहना है कि ‘ अजेंडा – 21 ‘ का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है ।
साझी संपदा : –
🔹वे संसाधन जिन पर किसी एक का वास्तविक अधिकार न होकर सम्पूर्ण समुदाय का अधिकार होता, साझी सम्पदा कहलाती है । जैसे संयुक्त परिवार का चूल्हा , चारागाह , मैदान , कुआँ या नदी साझी संपदा के उदाहरण हैं ।
वैश्विक संपदा या मानवता की साझी विरासत : –
🔹 इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं । इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है । इन्हें ‘ वैश्विक संपदा ‘ या मानवता की साझी विरासत ‘ कहा जाता है ।
🔹 इसमें पृथ्वी का वायुमंडल अंटार्कटिका , समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष भी शामिल है ।
‘ वैश्विक संपदा ‘ की सुरक्षा के पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कायम करने के लिए किए गए समझौते : –
🔹इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे :- अंटार्कटिका संधि ( 1959 ) मांट्रियल न्यायाचार ( 1987 ) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार ( 1991 ) हो चुके है ।
साझी परन्तु अलग अलग जिम्मेदारी : –
🔹 वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा को लेकर भी विकसित एवं विकासशील देशों का मत भिन्न है । विकसित देश इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी देशों में बराबर बाँटने के पक्ष में है । परन्तु विकासशील देश दो आधारों पर विकसित देशों की इस नीति का विरोध करते है :-
- पहला यह कि साझी संपदा को प्रदूषित करने में विकसित देशो की भूमिका अधिक है
- दूसरा यह कि विकासशील देश अभी विकास की प्रक्रिया में है ।
🔹 अतः साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में विकसित देशों की जिम्मेवारी भी अधिक होनी चाहिए तथा विकासशील देशों की जिम्मेदारी कम की जानी चाहिए ।
” सांझी जिम्मेदारी लेकिन अलग – अलग भूमिकाएँ ” विचार को लागू करने के उपाय : –
- पर्यावरण संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानून विकासशील देशों के अनुकूल हो ।
- पर्यावरण संरक्षण हेतु संयुक्त कोष ।
- व्यक्तिगत , क्षेत्रीय , राजकीय , राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास ।
- साझी संपदा तथा संसाधनों पर अनुसंधान कार्य ।