Political Science Class 12 Chapter 9 question answers in Hindi

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वैश्वीकरण प्रश्न-उत्तर: Class 12 Political Science chapter 9 ncert solutions in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science
ChapterChapter 9 ncert solutions
Chapter Nameवैश्वीकरण
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

क्या आप कक्षा 12 विषय राजनीति विज्ञान पाठ 9 वैश्वीकरण के प्रश्न उत्तर ढूंढ रहे हैं? अब आप यहां से Political Science Class 12 Chapter 9 question answers in Hindi, वैश्वीकरण प्रश्न-उत्तर download कर सकते हैं।

note: ये सभी प्रश्न और उत्तर नए सिलेबस पर आधारित है। इसलिए चैप्टर नंबर आपको अलग लग रहे होंगे।

प्रश्न 1. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?

  • (क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
  • (ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।
  • (ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान हैं।
  • (घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

उत्तर: (घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

प्रश्न 2. वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन सा कथन सही है?

  • (क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
  • (ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
  • (ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
  • (घ) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।

उत्तर: (क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।

प्रश्न 3. वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है?

  • (क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
  • (ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
  • (ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
  • (घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।

उत्तर: (क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।

प्रश्न 4. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?

  • (क) वैश्वीकरण का सम्बन्ध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
  • (ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
  • (ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
  • (घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

उत्तर: (घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

प्रश्न 5. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन गलत है?

  • (क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
  • (ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज़्यादा बढ़ेगी।
  • (ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
  • (घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

उत्तर: (घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

प्रश्न 6. विश्वव्यापी ‘पारंपरिक जुड़ाव’ क्या है? इसके कौन-कौन से घटक है?

उत्तर: विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ का अर्थ – विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव वैश्वीकरण का आधार और उसकी प्रमुख विशेषता है। इसका अर्थ है कि सारे संसार के लोग आपस में एक दूसरे से जुड़ गए हैं एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित है एक दूसरे पर निर्भर है और अब उन्हें एक दूसरे के साथ मिलकर ही रहना है तथा मिलकर ही अपनी गतिविधियों का संचालन करना है। विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का अर्थ है मानव समाज में इस भावना का विकास होना की सारे संसार के लोग वे चाहे किसी भी देश या क्षेत्र में रहते हों आपस में एक ही परिवार के सदस्य है और उन्हें एक – दूसरे से सहयोग करके ही जीवन व्यतीत करना है। विश्वव्यापी आपसी जुड़ाव के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं –

  • संचार तथा परिवहन के शीघ्रगामी साधन जिन से व्यक्तियों, वस्तुओं तथा पूँजी के प्रवाह में गति आई है और पारस्परिक जुड़ाव संभव हुआ।
  • सुचना प्रसारण के साधन जैसे की टी. वी., इंटरनेट, कंप्यूटर आदि जिनके कारण संसार के लोग प्रत्येक घटना के बारे में सूचित रहते है और आपस में जुड़े महसूस करते हैं।
  • सामान्य अर्थव्यवस्था अर्थात बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था जो अब सभी देशों ने अपना ली है।
  • विश्वव्यापी समस्याओं जैसे की आतंकवाद, एड्स की बीमारी, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे समुद्री तूफान, भूकंप आदि जिनका समाधान कोई देश अपने अकेले के प्रयासों से नहीं कर सकता और उन्हें एक – दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है।

प्रश्न 7. वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?

उत्तर: वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान – वैश्वीकरण की धारणा तथा विकास में सबसे अधिक योगदान प्रौद्योगिकी का है क्योंकि इसमें ही सारे संसार के लोगों का पारंपरिक किया है और विभिन्न देशों तथा क्षेत्र को आमने सामने ला खड़ा किया है उनकी निर्भरता को बढ़ाया है और साथ ही उन्हें यह महसूस करने पर बाध्य किया है कि वह सब एक ही परिवार के सदस्य हैं निम्नलिखित तथ्य पुष्टि करते हैं।

(i) प्रौद्योगिकी प्रगति ने सारे संसार में लोगों वस्तुओं पूंजी और विचारों के प्रवाह में आश्चर्यजनक बुद्धि की है। इनकी गतिशीलता बहुत तेज हुई है।

(ii) प्रौद्योगिक की प्रगति के कारण आज संसार के किसी भी भाग में बैठा व्यक्ति हजारों लाखों मील की दूरी पर घटने वाली घटनाओं से तुरंत ही परिचित हो जाता है और ऐसा महसूस करने लगता है कि वह उसी स्थान पर मौजूद है और उसके आसपास की घटना घट रही हैं।

(iii) टीवी पर दिखाए जाने वाले लाइव टेलीकास्ट से व्यक्ति हजारों मिल दूर घटने वाली घटनाओं तथा मैच आदि के बारे में यह महसूस करता है कि वह उस घटना या मैच को प्रत्यक्ष रूप से उसी स्थान पर बैठा देख रहा है और समय तथा स्थान की दूरी प्राय समाप्त हो गई है

(iv) प्रौद्योगिक में हुई प्रगति के कारण अपने घर में बैठा व्यक्ति सारे संसार से जुड़ा हुआ महसूस करता है वह घर बैठे ही विदेशों से व्यापार करता है धन का भुगतान करता है। आपस में बातचीत करता है यहां तक कि सम्मेलनों तथा बैठकों में भागीदारी भी करता है।

(v) प्रौद्योगिकी विभिन्न देशों की संस्कृति की संस्कृतियों टी. वी. तथा इंटरनेट के माध्यम से अंतः क्रिया करने में भूमिका निभाई है और वे एक दूसरे को ऐसे प्रभावित करने लगी है जैसे लोग प्रत्यक्ष रूप से सामने आकर बातचीत से प्रभावित होते हैं वैश्वीकरण के प्रसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान प्रौद्योगिकी का है।

प्रश्न 8. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें?

उत्तर: वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका – विकासशील देशों में भारत भी आता है और इन देशों में वैश्वीकरण के कारण राज्य की परंपरागत भूमिका बदलने लगी है। इन देशों में राज्य की बदलती भूमिका की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

(i) राज्य की अपनी अर्थव्यवस्था का निर्धारण करने की क्षमता में बहुत कमी आई है क्योंकि आज सभी देशों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था मुक्त व्यापार खुली प्रतियोगिता आदि को अपनाया गया है अतः इस दृष्टि से राज्य की भूमिका में बदलाव आया है।

(ii) राज्य द्वारा आयात – निर्यात के कड़े नियम बनाने तथा उन्हें लागू करने की भूमिका में परिवर्तन आया है क्योंकि वैश्वीकरण में व्यक्तियों वस्तुओं पूंजी तथा विचारों के तीव्र प्रवाह की धारणा आधारित भूत है। अतः अथवा परमिट पासपोर्ट लाइसेंस आदि की बाधाएं कम हुई है और राज्य की दृष्टि से भूमिका कम हुई है।

(iii) आज विकासशील देशों में भी सामाजिक कल्याण सामाजिक सुरक्षा आदि की प्राथमिकताएं बाजार द्वारा निश्चित होती है सरकारों ने इन क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को सिमित किया है।

(iv) वैश्वीकरण के वातावरण में राज्यों की अपनी निर्भरता बढ़ी है इससे राज्य की स्वेच्छापूर्वक राष्ट्रीय तथा विदेश नीति के निधरिण की शक्ति भी कम किया है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठनों की नीतियों तथा निर्णय को मानने के लिए बाध्य किया है।

(v) वैश्वीकरण ने राज्य की प्रभुत्ता तथा राष्ट्रीय सीमाओं पर हो उसके नियंत्रण को प्रभावित किया है राज्य अपने नागरिकों पर भी कड़ा नियंत्रण रखने में इतना ताकतवर नहीं रहे हैं।

प्रश्न 9. वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई है? इस संदर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है?

उत्तर: वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को आर्थिक क्षेत्र में भी प्रभावित किया है। इसे के अच्छे प्रभाव भी पड़े हैं और बुरे भी। सकारात्मक आर्थिक प्रभाव वैश्वीकरण के अच्छे आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं

(i) वैश्वीकरण से विभिन्न देशों के बीच आर्थिक प्रभाह तेज हुआ है इस आर्थिक प्रभाह की तेजी में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का भी हाथ है इससे देशों के आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।

(ii) वैश्वीकरण के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह में भी वृद्धि हुई है जिससे देशों में व्यापारिक गतिविधियां तेज भी हुई है अधिक भी हुई है और इससे आर्थिक विकास को गति मिलती है।

(iii) पूँजी के प्रवाह के कारण विकासशील देशों के लोग विकासशील देशों में अपनी पूंजी का निवेश करने लगे हैं ताकि उससे अधिक व्याज मिल सके। इससे विकासशील देशों की आर्थिक विकास की वृद्धि होती है और उन्हें अपने सामाजिक आर्थिक विकास हेतु विदेशी पूंजी प्राप्त हो जाती है।

(iv) वैश्वीकरण में क्योंकि समान व्यापारिक तथा श्रम नियम आपनाए जाने की व्यवस्था की जा रही है, इससे आशा की जाती है कि सभी देशों का संतुलित आर्थिक विकास होगा।

वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण के नकारात्मक आर्थिक परिणाम भी है प्रमुख आर्थिक नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।

उत्तर: (i) वैश्वीकरण ने सभी देशों में पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा दिया है और बाजार मुल्क का अर्थ व्यवस्था अपनाई गई है इससे अमीरों की संख्या कम और गरीबों की संख्या अधिक होती जा रही है। अर्थात अमीर और अधिक अमीर तथा गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं।

(ii) वैश्वीकरण के अंतर्गत राज्य समाज कल्याण सामाजिक न्याय तथा सामाजिक सुरक्षा से संबंधित गतिविधियों से भी हाथ खींच लिया है इससे सरकारी सहायता तथा संरक्षण पर आश्रित रहने वाले लोगों की दशा और अधिक शोचनीय होती जा रही है।

(iii) अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाएं ऐसे तौर-तरीके प्रयोग करती है जिनसे विकसित देशों के आर्थिक हितों को बढ़ावा मिले उनकी सुरक्षा हो गरीब देशों के आर्थिक हितों की अनदेखी की जा रही है जिसके कारण विकासशील देशों में वैश्वीकरण के प्रति विरोध बढा है और इन देशों में तनाव की स्थिति बढ़ती जा रही हैं।

(iv) बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गरीब तथा तीसरी दुनिया के देशों के काम धंधों पर चोट की है और छोटे – छोटे व्यापारी इन बड़ी कंपनियों का मुकाबला न कर सकने के कारण बेरोजगार होते जा रहे हैं।

वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव – 1991 में वित्तीय संकट से उबरने और आर्थिक वृद्धि की ऊंची दर हासिल करने की इच्छा से भारत में आर्थिक सुधारों की योजना शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर आयद बाधाएँ हटाई गई। इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी शामिल थे। यह कहना जल्दबाजी होगी की भारत के लिए यह सब कितना अच्छा साबित हुआ है क्योकि अंतिम कसौटी ऊँची वृद्धि – दर नहीं बल्कि इस बात को सुनिश्चित करना है की आर्थिक बढ़वार के फायदों में सबका साझा हो ताकि हर कोई खुशहाल बनें।

प्रश्न 10. क्या आप इस तर्क से सहमत है कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है?

उत्तर: (i) हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही हैं। वस्तुत: इससे दुनिया के विभिन्न भाग सांस्कृतिक दृष्टि से एक दूसरे से नजदीक आ रहे हैं। हम अपने देश का ही उदाहरण लेते हैं हम जो कुछ खाते पीते पहनते हैं अथवा सोचते हैं सब पर इसका असर नजर आता है हम जिन बातों को अपनी पसंद कहते हैं वह बातें भी वैश्वीकरण के असर में तय होती है।

(ii) वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह प्रक्रिया विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुंचाएगी वैश्वीकरण से यह होता है क्योंकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता ले आता है सांस्कृतिक समरूपता का यह अर्थ नहीं है कि किसी विश्व संस्कृति का उदय हो रहा है विश्व संस्कृति के नाम पर दरअसल इस विषय पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रहे हैं।

(iii) कुछ लोगों का तर्क है कि बर्गर अथवा नीली जींस की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता अमेरिकी जीवन शैली के गहरे प्रभाव से हैं क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली संस्कृति कम ताकतवर समाज पर अपनी छाप छोड़ते हैं और संसार वैसा ही दिखता है वैसा ताकतवर सांस्कृतिक इसे बनाना चाहती है जो यह तर्क देते हैं कि वे अक्सर दुनिया के ‘मैक्डोनॉल्डीकरण’ की तरफ इशारा करते हैं ऐसा मानना है कि विभिन्न संस्कृतियों और अपने को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढ़रें पर ढलने लगी हैं। चूँकि इससे पूरे विश्व के समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे खत्म होती है इसीलिए यह केवल गरीब देशों के लिए ही नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए खतरनाक है।

(iv) इसके साथ साथ है यह मान लेना एक भूल है कि वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव सिर्फ नकारात्मक है। सांस्कृतिक कोई जोड़ वस्तु नहीं होती और संस्कृति और समय बाहरी प्रभाव को स्वीकार करती रहती है कुछ बाहरी प्रभाव नकारात्मक होते हैं क्योंकि इससे हमारी पसंद में कमी आती हैं। कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद ना पसंद का दायरा बढ़ता है तो कभी इनसे परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना सांस्कृतिक का कोई कारण होता है बर्गर मसाला डोसा का विकल्प नहीं है इसीलिए बर्गर से वस्तुत: कोई खतरा नहीं है इससे कुछ मात्रा इतना है कि हमारे भोजन की पसंद में एक चीज और शामिल हो गई है।

(v) दूसरी तरफ, नीली जींस भी हथकरधा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है। यहां हम बाहरी प्रभाव से एक अनूठी बात देखते हैं कि नीली जींस के ऊपर खादी का कुर्ता पहना जा रहा है मजेदार बात तो यह है कि इस अनूठे पहनावे को उसी देशों को निर्यात किया जा रहा है जिसने हमें नीली जींस दी है जींस के ऊपर कुर्ता पहन ने अमेरिकियों को देखा ना अब संभव है।

(vi) सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का अगर एक पक्ष है तो उसी प्रक्रिया से ठीक इसका उल्टा प्रभाव भी पैदा हुआ है वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है इसी प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैश्वीकरण कहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि संस्कृतियों के मेलजोल में उनकी ताकत का सवाल गैण है परंतु इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि सांस्कृतिक प्रभाव एक तरफा नहीं होता।

प्रश्न 11. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है?

उत्तर: भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव – पूँज वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणाम स्वरुप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यात तक तथा बने बनाए सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद ब्रिटेन के साथ अपने अनुभव से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनवाया जाए।

हमने यह भी फैसला किया है कि दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजों को बनाना सीख सकें इस ‘संरक्षणवाद’ कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुई। कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जीतने के हकदार थे भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही। भारत में वैश्वीकरण को अपनाना 1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना लिया।

अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण की नीति को त्याग दिया गया बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना विदेशी पूंजी के निवेश का स्वागत किया गया विदेशी प्रौद्योगिक और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं दूसरी ओर भारत में औद्योगिक शिक्षण की नीति को त्याग दिया है जब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है भारत स्वयं को अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं लाखों लोग बेरोजगार हैं कुछ लोग जो पहले धनी थे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीब की संख्या बढ़ रही है भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध वैश्वीकरण बड़ा बहस का मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है भारत में वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं।

(i) वामपंथी राजनीति के रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूंजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनी को को और ज्यादा धनी (तथा उनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

(ii) राज्यों के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचकों के राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव को लेकर चिंतित है राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता है वह चाहते हैं कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और सरंक्षण वाद्य का दौर फिर कायम हो सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जमीन मूल्य तथा तौर तरीकों से हाथ धो बैठेंगे।

वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव

(i) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने आस पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद मिलती है लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आंदोलनों से मदद मिलती है भारत में वैश्वीकरण के खिलाफ वामपंथी तेवर की आवाजें जैसे मंचों से भी औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठन ने बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है कुछ वामपंथियों मसलन ‘नीम’ को अमेरिकी और यूरोपीय फर्मो ने पेटेंट कराने के प्रयास किए। इसका भी कड़ा विरोध हुआ।

(ii) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभाव का विरोध कर रहा है जिसमें केवल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं विदेशी टीवी चैनलों से लेकर वैलेंटाइन डे मनाने तथा स्कूल कॉलेज के छात्र छात्राओं के पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरुचि तक का विरोध शामिल है।

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