आत्म एवं व्यक्तित्व class 12 questions and answers: Class 12 Psychology chapter 2 ncert solutions in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Psychology |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | आत्म एवं व्यक्तित्व class 12 ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: आत्मा क्या है? आत्मा की भारतीय अवधारणा पाश्चत्य अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर 1: भारतीय संस्कृति में आत्मा को ब्रह्मा का अंश माना जाता है, जो अनन्त और सर्वव्यापी है। यह न केवल व्यक्ति के भीतर निवास करती है, बल्कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड में समाहित हो जाती है। आत्मा और अन्य (जैसे प्रकृति, अन्य जीव, और ब्रह्म) के बीच कोई स्पष्ट सीमा नहीं होती, और यह निरंतर बदलते हुए, एकदूसरे में विलीन होने की प्रक्रिया में होती है। भारतीय दृष्टिकोण में आत्मा का अनुभव व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों पहलुओं में होता है, जहां व्यक्ति अपनी पहचान को ब्रह्मा के साथ जोड़ते हुए समग्रता में अनुभव करता है।
वहीं पाश्चात्य संस्कृति में आत्मा को एक व्यक्तिगत, स्थिर और पृथक अस्तित्व माना जाता है, जो अन्य से स्पष्ट रूप से अलग होती है। यहां आत्मा और मनुष्य की पहचान को सीमाओं के भीतर ही देखा जाता है, और व्यक्तिवाद पर अधिक बल दिया जाता है। पाश्चात्य अवधारणा में आत्मा, प्रकृति और समाज से अलग, एक स्वतंत्र इकाई के रूप में मानी जाती है। इसके परिणामस्वरूप पाश्चात्य संस्कृति में व्यक्ति और समूह के बीच स्पष्ट विभाजन होता है, जबकि भारतीय संस्कृति में दोनों का सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व होता है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति को अधिक सामूहिकतावादी और पाश्चात्य संस्कृति को व्यक्तिवाद आधारित माना जाता है।
प्रश्न 2: परितोषण के विलंब से क्या तात्पर्य है? इसे क्यों वयस्कों के विकास लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है?
उत्तर 2: आत्म – नियमन का तात्पर्य हमारे अपने व्यवहार को संगठित और प्रिरिवीक्षण या मॉनिटर करने की योग्यता से है। जिन लोगों में बाह्य पर्यावरण की माँगो के अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित करने की क्षमता होती है, वे आत्मा-परिवीक्षण में उच्च होते है। जीवन की कई स्थितियों में स्थितिपरक दबावों के प्रति प्रतिरोध और स्वयं पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। यह संभव होता है उस चीज के द्वारा जिसे हम सामान्यतया ‘संकल्प शक्ति’ के रूप में जानते है।
मनुष्य रूप में हम जिस तरह भी चाहे अपने व्यवहार को नियंत्रित कर सकते हैं। हम प्रायः अपनी कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि को विलंबित अथवा आस्थगित। कर देते हैं। आवश्यकताओं के परितोषण को विलंबित अथवा आस्थगित करने के व्यवहार को सोखना ही आत्मा – नियंत्रण कहा जाता है। दीर्धावधि लक्ष्यों की संप्राप्ति में आत्म – नियंत्रण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय सांस्कृतिक परंपराएँ हमें कुछ ऐसे प्रभावी उपाय प्रदान करती हैं जिससे आत्म – नियंत्रण का विकास होता है।
प्रश्न 3: व्यक्तित्व को आप किस प्रकार परिभाषित करते है? व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम कौन-से है?
उत्तर 3: व्यक्तित्व वह मानसिक और भावनात्मक संरचना है जो व्यक्ति के विशिष्ट विचारों, भावनाओं और व्यवहारों का निर्धारण करती है। यह शब्द लैटिन शब्द “पर्सोना” से लिया गया है, जो नाटक में अभिनेता द्वारा पहने जाने वाले मुखोटे को दर्शाता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व केवल उसके शारीरिक और बाह्य रूप तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह उसकी आंतरिक विशेषताओं, मानसिक संरचनाओं और सामाजिक प्रतिक्रियाओं का भी संयोजन होता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, व्यक्तित्व वह विशिष्टता है जो हर व्यक्ति को दूसरों से अलग बनाती है।
व्यक्तित्व के अध्ययन के लिए कई प्रमुख उपागम और सिद्धांत विकसित किए गए हैं। इन सिद्धांतों का उद्देश्य व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को समझना और उसकी व्याख्या करना है। इनमें से कुछ प्रमुख उपागम हैं:
- मानववादी उपागम: यह व्यक्ति की स्व-साक्षात्कार, आत्म-सम्मान और विकास की प्रक्रिया पर जोर देता है, जैसे कि अब्राहम मस्लो का ‘आत्मवास्तविकता’ सिद्धांत।
- संवेदनात्मक उपागम: यह व्यवहार के बाहरी कारकों पर आधारित होता है, जैसे कि बी.एफ. स्किनर का व्यवहारवाद, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके बाहरी अनुभवों और प्रतिक्रियाओं से जोड़ता है।
- संरचनात्मक उपागम: इसमें व्यक्तित्व को विभिन्न मानसिक संरचनाओं के रूप में देखा जाता है, जैसे कि फ्रायड का मनोविश्लेषण सिद्धांत, जो अवचेतन मानसिक प्रक्रियाओं और मनोवैज्ञानिक संघर्षों पर आधारित है।
- सामाजिक-सीखी हुई थ्योरी: यह उपागम इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि व्यक्तित्व सामाजिक अनुभवों और पर्यावरण के प्रभाव से कैसे विकसित होता है।
इन विभिन्न सिद्धांतों का उद्देश्य व्यक्तित्व के जटिल और विविध पहलुओं को समझना है, लेकिन किसी भी एक उपागम में व्यक्तित्व के सभी पक्षों का व्याख्यान नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 4: व्यक्तित्व का विशेषक उपागम क्या है? यह कैसे प्रारूप उपागम से भिन्न है?
उत्तर 4: प्रारूप उपागम व्यक्ति के प्रेक्षित व्यवहारपरक विशेषताओं की कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है प्रत्येक व्यवहार पर एक स्वरूप व्यक्तित्व के किसी एक प्रकार का इंगित करता है जिसके अंतर्गत उस स्वस्य की विहारपरक विशेषता की समानता के आधार पर व्यक्तियों को रखा जाता है।
प्राचीनकाल से ही लोगो को व्यक्तित्व के प्रारूपों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है ग्रीक चिकित्स्क हिप्पोक्रेट्स ने एक व्यक्तित्व का प्ररूप विज्ञान प्रस्ताविक किया जो फ्लेड और ह्यूमर पर आधारित है उन्होंने लोगो को चार प्रारूपो में वर्गीकृत किया है (जैसे – उत्साही, श्लेष्मिक, विवादों तथा कोपशील) भारत में भी एक प्रसिद्द आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता ने लोगो को वात, पित, एव कफ तीन वर्गों में तीन ह्यूमरल तत्वों जिन्हे त्रिदोष कहते है, के आधार पर वर्गीकृत किया है।
जबकि विशेषक उपागम मुख्यत: व्यक्तितत्व के आधारभूत घटको के वर्णन अथवा विशेषीकरण से संबंधित होता है यह सिद्धांत व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले मूल तत्व की खोज करते है मनुष्य व्यापक रूप से मनोवैज्ञानिक गुणों में भिन्नताओं का प्रदर्शन करते है फिर भी उनको व्यक्तित्व विश्लेषकों के लघु समूह में सम्मिलित किया सकता है।
विशेषक उपागम हमारे दैनिक जीवन के सामान्य अनुभव के बहुत नजदीक है उदाहरण के लिए जब हम यह जान लेते है की कोई व्यक्ति सामाजिक है तब हम यह मान लेते है की वह व्यक्ति ना केवल सहयोग मित्रता और सहायता करने वाला होगा बल्कि सामाजिक घटक से युक्त व्यवहार प्रदर्शित करने में भी प्रवृत होगा।
प्रश्न 5: फ्राइड ने व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या कैसे की है?
उत्तर 5: फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया है: इड (Id), ईगो (Ego), और सुपरईगो (Superego)। इन तीनों के बीच संतुलन और संघर्ष व्यक्तित्व के विकास और व्यवहार को प्रभावित करता है।
1. इड (Id): यह व्यक्तित्व का सबसे प्राचीन और प्राथमिक भाग है, जो जन्म के समय से ही मौजूद होता है। इड की मुख्य विशेषता उसकी सहज और अवचेतन प्रवृत्तियों में होती है। यह केवल तात्कालिक संतुष्टि की तलाश करता है और “आनंद सिद्धांत” (Pleasure Principle) का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि इड केवल सुख और संतुष्टि की तलाश करता है और इसे तुरंत प्राप्त करने की कोशिश करता है, भले ही इसके लिए समाजिक या नैतिक मानकों की अनदेखी करनी पड़े।
2. ईगो (Ego): ईगो व्यक्तित्व का वह हिस्सा है जो वास्तविकता से जुड़ा होता है। यह इड की इच्छाओं को वास्तविकता के साथ समन्वय करने की कोशिश करता है और “वास्तविकता सिद्धांत” (Reality Principle) का पालन करता है। ईगो यह सुनिश्चित करता है कि इड की इच्छाओं को समाजिक और नैतिक सीमाओं के भीतर संतुष्ट किया जाए। ईगो का कार्य संतुलन बनाए रखना है, ताकि इड और सुपरईगो के बीच संघर्ष को कम किया जा सके।
3. सुपरईगो (Superego): यह व्यक्तित्व का नैतिक और आदर्शवादी हिस्सा है। यह समाज के नैतिक मूल्यों, माता-पिता के आदेशों और सामाजिक नियमों का पालन करता है। सुपरईगो “सिद्धांत सिद्धांत” (Morality Principle) का पालन करता है और व्यक्ति को सही और गलत का बोध कराता है। इसका कार्य ईगो को नैतिक और आदर्शवादी दिशा में मार्गदर्शन करना है।
फ्रायड के अनुसार, व्यक्तित्व का विकास इन तीन भागों के बीच संघर्ष और संतुलन के आधार पर होता है। इड, ईगो, और सुपरईगो के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध व्यक्तित्व के स्वास्थ्य और संतुलन को बनाए रखता है। अगर इनमें से किसी एक का प्रभाव अधिक हो जाता है, तो यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
प्रश्न 6: हानि की अवसाद की व्याख्या अल्फ्रेड एडलर की व्याख्या से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर 6: एडलर के सिद्धांत को व्यष्टि या व्यक्तिक मनोविज्ञान के रूप में जाना जाता है उनके आधारभूत अभी गृह यह है की व्यक्ति का व्यवहार उद्द्देश्य पूर्ण होता है हम में से प्रत्येक में चयन करने एव सर्जन करने की क्षमता होती है हमारे व्यक्तिगत लक्ष्य ही हमारी अभिप्रेरणा के श्रोत होते है जो लक्ष्य हमें सुरक्षा प्रदान करती है और हमारी पर्याप्तता की भावना पर विजय प्राप्त करने में हमारी सहायता करते है वह हमारे व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
एडलर के विचार से प्रत्येक व्यक्तित्व पर्याप्तता और अपराध की भावनाओ से ग्रसित होता है इसे हम हीनता मनोग्रंथ के नाम से जानते है जो बाल्यावस्था में उतपन्न होता है इस मनोवृत्ति पर विजय प्राप्त करना इष्टतम व्यक्तित्व विकास के लिए आवशयक है। वही करें हानि जो की फ्राइड की एक अन्य अनुयायी थी, जिन्होंने फ्राइड के आधरभूत सिद्धन्तो से भिन्न एक सिद्धंत विकसित किया उन्होंने मानव समृद्धि और आत्मसिदधि पर बल देते हुए मानव जीवन के एक आशीवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया।
प्रश्न 7: व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की प्रमुख प्रतिग्यप्ति क्या है? आत्मसिद्धि से मैस्लो का क्या तात्पर्य था?
उत्तर 7: मानवतावादी सिद्धांत मुख्यत: फ्रायड के सिद्धंत के प्रत्युत्तर में विकसित हुए व्यक्तितत्व के संदर्भ में मानवतावादी परिपेक्ष के विकास में कार्ल रोजर्स और अब्रह्म मैस्लो ने विशेष रूप से योगदान किया है रोजर्स द्वारा प्रस्तविक सर्वधिक महत्वपूर्ण विचार एक पूर्णत प्रकायर्शील व्यक्ति का है उनका विश्वास है की व्यक्तित्व के विकास के लिए संतुष्टि अभिप्रेरक शक्ति है लोग अपनी क्षमताओं संभ्वयताओ और प्रतिभाओ को संभव सवत्कॄष्ट तरीके से अभिव्यक्ति करने के लिए निदिर्ष्ट करती है मानव व्यवहार के बारे रोजर्स ने दो आधरभूत अभिग्रह निमित किया है एक यह की व्यवहार लक्षोमुख और सार्थक होता है और दूसरा यह की लोग जो की सहज रूप से अच्छे होते है सदैव अनुकूली तथा आत्मसिद्धि वाले में व्यवहार चयन करेंगे।
रोजर्स का सिद्धांत उनके निदानशाला में रोगियों को सुनते हुए प्राप्त अनुभवों से विकसित हुआ है। उन्होंने यह ध्यान दिया की उनके सेवार्थियों के अनुभव में आत्म एक महत्त्वपूर्ण तत्व था। इस प्रकार, उनका सिद्धांत आत्म के संप्रत्यय के चतुर्दिक संरचित है। उनके सिद्धांत का अभिग्रह है की लोग सतत अपने वास्तविक आत्म की सिद्धि या प्राप्ति की प्रक्रिया में लगे रहते हैं।
रोजर्स ने सुझाव दिया है की प्रत्येक व्यक्ति के पास आदर्श अंह या आत्म का एक संप्रत्यय होता है। एक आदर्श आत्म होता है जो की एक व्यक्ति बनना अथवा होना चाहता है। जब वास्तविक आत्म और आदर्श आत्म के बिच समरूपता होती है तो व्यक्ति सामान्यतया प्रसन रहता है किन्तु दोनों प्रकार के आत्म के बिच विसंगति के कारण प्रायः अप्रसन्ता और असंतोष की भावनाएँ उत्पत्र होती है। रोजर्स का एक आधारभूत सिद्धांत है की लोगो में आत्मसिद्धि के माध्यम से आत्म – संप्रत्यय को अधिकतम सिमा तक विकसित करने की प्रवृत्ति होती है। इस प्रक्रिया में आत्म विकसित, विस्तारित और अधिक सामाजिक हो जाता है।
रोजर्स व्यक्तित्व – विकास को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। इसमें अपने आपको मूल्यांकन करने का अधिगम और आत्मसिद्धि की प्रक्रिया में प्रवीणता सत्रिहित होती है। आत्म – संप्रत्यय के विकास में सामाजिक प्रभवों की भूमिका को उन्होंने स्वीकार किया है। जब सामाजिक दशाएं अनुकूल होती हैं, तब आत्म – संप्रत्यय और आत्म – सम्मान उच्च होता है। इसके विपरीत, जब सामाजिक दशाएं प्रतिकूल होती हैं तब आत्म – संप्रत्यय और आत्म – सम्मान निम्र होता है। उच्च आत्म – संप्रत्यय और उच्च आत्म – सम्मान रखने वाले लोग सामान्यता नम्य एवं नए अनुभवों के प्रति मुक्त भाव से ग्रहणशील होते हैं ताकि वे अपने सतत विकास और आत्मसिद्धि में लगे रह सकें।
मैस्लो ने आत्मसिद्धि की लब्धि या प्राप्ति के रूप में मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ लोगों की एक विस्तृत व्याख्या दी है। आत्मसिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण संभाव्यताओं को विकसित कर चुके होते हैं। मैस्लो ने मनुष्यों का एक आशावादी और सकारात्मक द्द्ष्टिकोण विकासित किया है जिसके अंतर्गत मानव में प्रेम, हर्ष और सृजनात्मक कार्यो को करने में स्वतंत्र माने गए हैं। अभिप्रेरणाओं, जो हमारे जीवन को नियमित करती है के विश्लेषण के द्वारा आत्मसिद्धि को संभव बनाया जा सकता है। हम जानते है की जैविक, सुरक्षा और आत्मीयता की आवश्यकताएं (उत्तरजीवित आवश्यकताए) पशुओं और मनुष्यों दोनों में पाई जाती हैं। अतएव किसी व्यक्ति का मात्र इन आवश्यकताओं की संतुष्टि में संलग्र होना उसे पशुओं के स्तर पर ले आता है। मानव जीवन की वास्तविक यात्रा आत्म – सम्मान और आत्मसिद्धि जैसी आवश्यकताओ के अनुसरण से आरंभ होती है। मानवतावादी उपागम जीवन के सकारात्मक पक्षों के महत्व पर बल देता है।
प्रश्न 8: व्यक्तित्व मूल्यांकन में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख प्रेक्षण विधियों का विवेचन करे विधियों के उपयोग से हमें किस प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ता है?
उत्तर 8: लोगो को जानने, समझने और उनका वर्णन करने का कार्य ऐसा है जिससे दैनदिनी जीवन में प्रत्यक व्यक्ति संबंध होता है हम अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने पूर्व अनुभवी, प्रेक्षणो, वार्त्लापो और दूसरे लोगो से प्राप्त सूचनाओं पर विश्वास करते है इस उपागम के आधार पर दुसरो को समझना अनेक कारको से प्रभावित हो सकता है जो हमारे निर्णयों का अतिरंजित कर वस्तुनिष्ठ को कम कर सकते है इसलिए व्यक्तिगतत्वों का विश्लेषण करने के लिए हमें अपने प्रयासों को अधिक औपचारिक रूप से संगठित करने की आवश्यकता होती है।
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की समझ के लिए सौद्देश्य औपचारिक प्रयास को व्यक्तित्व मूल्यांकन कहा कहा जाता है मूल्यांकन का तातपर्य उन प्रक्रियाओ से है जिनका उपयोग कुछ विशेषताओं के आधार पर लोग के मूल्यांकन या उनके मध्य विभेदन के लिए किया जाता है मूल्याकन का लक्ष्य लोगो के व्यवहारो को न्यूनतम त्रुटि और अधिकतम परिशुद्धता के साथ समझना और उनकी भविष्यवाणी करना होता है मुल्यांकन में किसी स्थिति विशेष में व्यक्ति सामान्यतया कैन सा व्यवहार करता है और कैसे करता है हम यह समझने का प्रयास करते हमारी समझ को उन्नत करने के अतिरिक्त, मूल्यांकन निदान, प्रक्षिष्ण स्थानन, परामर्श और अन्य उद्देश्यो को लिए भी बहुत उपयोगी है।
मनोविज्ञानिको ने विभिन्न तरीको से व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने का प्रयास किया है सामान्यता सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली तकनीको के अंतर्गत मनोमितिक परीक्षणो आत्म प्रतिवेदन माप प्रक्षेपि तकनीक और व्यवहारपरक विश्लेषण आते है। इन तकनीकों के मूल विभिन्न सिद्धतिक उन्मुखता में है इसीलिए यह तकनीक व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालती है।
प्रश्न 9: संरचित व्यक्तित्व परीक्षण से क्या तात्पर्य है? व्यापक रूप से उपयोग किये गए दो संरचित व्यक्तित्व परीक्षण कैन से है?
उत्तर 9: संरचित व्यक्तित्व परीक्षण वे परीक्षण होते हैं, जिनमें व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने के लिए निर्धारित, स्पष्ट और मानकीकृत प्रश्नों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण में व्यक्ति को सीधे-सीधे सवाल पूछे जाते हैं, और व्यक्ति अपनी प्रतिक्रियाओं को चयनित विकल्पों में से चुनता है या उन पर विशिष्ट तरीके से प्रतिक्रिया करता है। संरचित व्यक्तित्व परीक्षणों में उत्तरों को संख्यात्मक रूप में मापा जा सकता है, जिससे परीक्षण की परिणामों की तुलना और विश्लेषण करना आसान हो जाता है। इन परीक्षणों का उद्देश्य व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य, व्यवहार, सोच और मानसिक प्रक्रियाओं का विस्तृत मूल्यांकन करना होता है।
व्यापक रूप से उपयोग किए गए दो संरचित व्यक्तित्व परीक्षण हैं:
- मिनेसोटा मल्टीफैसिक पर्सनालिटी इन्वेंट्री (MMPI): यह सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला संरचित व्यक्तित्व परीक्षण है। यह मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और व्यक्तित्व विकारों का मूल्यांकन करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसमें 500 से अधिक प्रश्न होते हैं जो विभिन्न मानसिक और भावनात्मक मुद्दों का मूल्यांकन करते हैं। MMPI का उपयोग अक्सर क्लिनिकल सेटिंग्स में किया जाता है।
- कैलिफोर्निया पर्सनालिटी इन्वेंट्री (CPI): यह परीक्षण भी संरचित है और व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार, अंतरव्यक्तिक संबंधों और अन्य व्यक्तित्व विशेषताओं का मूल्यांकन करता है। यह अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व के पहलुओं को मापता है और इसे शैक्षिक और व्यवसायिक सेटिंग्स में भी उपयोग किया जाता है।
इन संरचित व्यक्तित्व परीक्षणों का उपयोग व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को समझने के लिए किया जाता है, और ये व्यक्ति के व्यवहार को स्पष्ट रूप से मापने और विश्लेषण करने में मदद करते हैं।
प्रश्न 10: व्याख्या कीजिए की प्रक्षेपी तकनीक किस प्रकार व्यक्तित्व का मूल्यांकन करती है? कौन-से व्यक्तित्व के प्रक्षेपी परीक्षण मनोवेज्ञानक द्वारा व्यापक रूप से उपयोग में लाये गए है?
उत्तर 10: व्यक्तित्व मूल्यांकन के जिन तकनीक को वर्णन सामान्य रूप से होता है वे सब प्रत्यक्ष तकनीके है जिनमे व्यक्ति से सीधे उसके बारे में सूचनाएं प्राप्त करके उसके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है और वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से जानता है की उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जा रहा है।
इन स्थितियो में लोग प्राय: आत्मचेतन का अनुभव करते है और अपनी निजी या अंतरंग भावनाओ, विचारो और अभिप्रेनाओ को व्यक्त करने में हिचकिचाते है वे जब भी ऐसा करते है तो प्राय: सामाजिक दृष्टी से वाछिनीय तरीके के व्यवहार करने का प्रयास करते है प्रक्षेपी तकनीकों का विकास अचेतन अभिप्रेरणाओं और भावनाओ का मूल्यांकन करने के लिए किया गया है यह तकनीके अभीग्रह पर आधारित है की कम संरचित अथवा असंरचित उद्दीपक अथवा स्थिति व्यक्तिओ को उस स्थिति पर अपनी भावनाओ, इच्छाओ और आवश्य्कताओ को प्रक्षेपण करने का अवसर प्रदान करता है।
विशेष्ज्ञो द्वारा इन प्रक्षेपणों की व्याख्या की जाती है विभिन्न प्रकार की प्रक्षेपी तकनीके विकसित की गई है जिनमे व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार के उद्दीपक सामग्रीओ बनाने की आवश्यकता होती है। मासिल्म परीक्षण को मनोवैज्ञानिकों द्वारा उपयोग किया गया है रोर्श परीक्षण में इसका इस्तेमाल हुआ है जो व्यापक रूप से प्रसिद्ध है यह परीक्षण हर्मन रोर्शा द्वारा विकसित किया गया था।
प्रश्न 11: अरिहन्त एक गायक बनना चाहता है, इसके बावजूद कि वह चिकित्सकों के एक परिवार से संबंध रखता है। यद्यपि उसके परिवार के सदस्य दावा करते हैं कि वे उसको प्रेम करते हैं किंतु वे उसकी जीवनवृत्ति को दृढ़ता से अस्वीकार कर देते हैं। कार्ल रोजर्स की शब्दावली का उपयोग करते हुए अरिहन्त के परिवार द्वारा प्रदर्शित अभिवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर 11: कार्ल रोजर्स की शब्दावली में, अरिहन्त के परिवार द्वारा प्रदर्शित अभिवृत्तियाँ स्वतंत्रता और आत्म-साक्षात्कार के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। रोजर्स के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में अपनी प्राकृतिक प्रवृत्तियों और क्षमताओं को पूरी तरह से व्यक्त करने की जन्मजात प्रवृत्ति होती है। लोग अपनी असली पहचान और स्वभाव को प्रकट करने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं। इस संदर्भ में, अरिहन्त का गायक बनने की इच्छा उसकी स्वयं की वास्तविकता (self-actualization) को साकार करने का प्रयास है।
हालांकि, अरिहन्त का परिवार चिकित्सकों का परिवार है और वे उसकी जीवनवृत्ति को दृढ़ता से अस्वीकार करते हैं। यह अभिवृत्ति कार्ल रोजर्स के सिद्धांत के अनुसार, परिवार के स्व-संप्रेषण (self-concept) से जुड़ी है। परिवार के सदस्य अपनी परंपरा और पृष्ठभूमि को मानते हुए चाहते हैं कि अरिहन्त उनका रास्ता अपनाए, जिससे उनका स्वाभाविक स्वभाव (inherited nature) संतुष्ट हो सके। इस प्रकार, परिवार का यह दृष्टिकोण अरिहन्त के आत्म-साक्षात्कार को दबाने का कारण बनता है। वे उसकी गायक बनने की इच्छा को अस्वीकार कर रहे हैं, क्योंकि यह उनके परिवार के स्वाभाविक स्वभाव और स्व-संप्रेषण से मेल नहीं खाता।
इसके बावजूद कि वे अरिहन्त से प्रेम करते हैं, वे उसके आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ने के प्रयास को रोकने के लिए एक अडिग रवैया अपनाते हैं। उनके द्वारा व्यक्त किए गए इस अस्वीकार भाव को रोजर्स के सिद्धांत में सशर्त सकारात्मक मूल्यांकन (conditional positive regard) कहा जा सकता है, जहां वे अरिहन्त को केवल तभी स्वीकार करते हैं जब वह उनके निर्धारित मानकों के अनुसार कार्य करता है, न कि अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और क्षमताओं के अनुसार। यह स्थिति अरिहन्त के आत्म-संवेदन और आत्म-सम्मान को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।