Psychology Class 12 Chapter 4 question answers in hindi मनोवैज्ञानिक विकार

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मनोवैज्ञानिक विकार class 12 questions and answers: Class 12 Psychology chapter 4 ncert solutions in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPsychology
ChapterChapter 4
Chapter Nameमनोवैज्ञानिक विकार class 12 ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 1: अवसाद और उन्माद से संबंधित लक्षणो की पहचान कीजिए।

उत्तर 1: अवसाद और उन्माद मानसिक स्वास्थ्य की दो विपरीत अवस्थाएँ हैं, जो मूड विकारों के अंतर्गत आती हैं।

अवसाद में व्यक्ति अत्यधिक उदासी, नकारात्मकता और निराशा का अनुभव करता है। इसके लक्षणों में रुचि की कमी, ऊर्जा की कमी, नींद की समस्याएँ, आत्ममूल्य में गिरावट, निर्णय लेने में कठिनाई और कभी-कभी आत्महत्या के विचार शामिल हो सकते हैं। इसके विपरीत,

उन्माद में व्यक्ति अत्यधिक उत्साह, ऊर्जा और आत्मविश्वास महसूस करता है, जो अक्सर असामान्य रूप से उच्च स्तर का होता है। उन्माद के लक्षणों में अनियंत्रित बोलना, अत्यधिक गतिविधियाँ, जोखिम भरे निर्णय लेना, चिड़चिड़ापन, और कभी-कभी यथार्थता से भटकाव शामिल होते हैं।

प्रश्न 2: अतिक्रियाशील वाले बच्चो की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर 2: अतिक्रियाशील बच्चों, जिन्हें अक्सर ध्यान अभाव और अतिक्रियाशीलता विकार (ADHD) से प्रभावित माना जाता है, की विशेषताएँ उनके व्यवहार, संज्ञानात्मक क्षमताओं और सामाजिक प्रतिक्रियाओं में देखी जा सकती हैं। ये बच्चे अत्यधिक सक्रिय होते हैं और लंबे समय तक शांत बैठने या एक कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस करते हैं। उनका व्यवहार अक्सर आवेगी होता है, जिसमें वे बिना सोचे-समझे निर्णय ले सकते हैं या प्रतिक्रिया कर सकते हैं।

पढ़ाई के दौरान उनका ध्यान भटकना आम है, और वे बार-बार अपना काम अधूरा छोड़ सकते हैं। सामाजिक स्थितियों में, अतिक्रियाशील बच्चे दूसरों की बात काटने, अत्यधिक बोलने या अपने व्यवहार से अनुशासनहीनता का प्रदर्शन कर सकते हैं। शारीरिक रूप से, वे लगातार हाथ-पांव हिलाना, दौड़ना या अनावश्यक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। हालांकि, इन बच्चों में ऊर्जा, रचनात्मकता और अनूठे विचारों की भरमार होती है, लेकिन इन्हें सही दिशा और सहानुभूतिपूर्ण मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है ताकि वे अपनी क्षमताओं का सकारात्मक उपयोग कर सकें।

प्रश्न 3: मद्य जैसे मादक द्रव्य के सेवन के क्या परिणाम हैं?

उत्तर 3: मादक द्रव्यों दुरूपयोग – में बारंबार घटित होने वाले प्रतिकूल या हानिकर परिणाम होते हैं जो मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित होते हैं। जो लोग नियमित रूप से मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं, उनके पारिवारिक और सामाजिक संबंध बिगड़ जाते हैं, वे कार्य स्थान पर ठीक से निष्पादन नहीं कर पाते तथा दूसरों के लिए शारीरिक खतरा उत्पन्न करते हैं।

मादक द्रव्य निर्भरता – में जिस मादक द्रव्य का व्यसन होता है उसके सेवन के लिए तीव्र इच्छा जागृत होती है, व्यक्ति सहिष्णुता और नीतिवर्तन लक्षण प्रदर्शित करता है तथा उसे आवश्यक रूप से उस मादक द्रव्य का सेवन करना पड़ता है। सहिष्णुता का तातपर्य व्यक्ति के वैसा ही। प्रभाव पाने के लिए अधिक – से – अधिक उस मादक द्रव्य के सेवन से है। विनिवर्तन का तात्पर्य उन शारीरिक लक्षणो से है जो तब उत्पन्न होते हैं जब व्यक्ति मनः प्रभावी मादक द्रव्य का सेवन बंद या कम कर देता है। मनःप्रभवि मादक द्रव्य वे मादक द्रव्य हैं जिनमे इतनी क्षमता होती है।

प्रश्न 4: क्या विकृत शरीर प्रतिमा भोजन विकार को जन्म दे सकती है? इसके विभिन्न रूपों का वर्गीकरण कीजिए।

उत्तर 4: विकारो का एक और समूह जिसमे युवा लोगी की विषयकर रूचि होती है, वह भोजन विकार है। इनमे क्षुधा आभाव, क्षुधतिशरता, अनियंत्रित भोजन सम्मिलित है। क्षुधा आभाव आदमी का अपनी शरीर के बारे में गलत धरणा होती है जिसके वजह से वह अपने को वजन वाला समझने लगता है अक्सर खोने का मना करना। अधिक व्यायाम ब्रध्यता का होना, तथा साधारण आदतो को विकसित करना, जैसे दूसरो के सामने न खाना – इनसे व्यक्ति काफी मात्रा में वजन घटा सकता है।

और मृत्यु की स्थिति तक अपने को भूखा रख सकता है क्षुधतिशयता, में व्यक्ति बहुत अधिक मात्रा में खाना खाने लगता है बाद रेचक और मूत्र वर्धक दबाओ के सेवन से या उल्टी करके, खाने को अपने शरीर से साफ कर सकता है। व्यक्ति पेट साफ होने के बाद तनाव और नकारात्मक संवेमोक से अपने को मुक्त महसूस करता है। अतियत्रित भोजन में अत्यधिक भोजन करने का प्रसंग बारंबार पाया जाता है। व्यक्ति में सामान्य की तुलना में जल्दी – जल्दी खाने की आदत होती है और वह तब तक खाता रहता है जब तक की उसे महसुस होता है की वह जरूरत से ज्यादा खा चूका है।

असल में, बहुत अधिक खाना उसी स्थिति में खाया जाता है जबकि व्यक्ति को भूक नहीं लगी होती। वव्यसनात्मक व्यवहार, चाहे इसमें उच्च कैलोरी वाला भोजन करना जिससे अत्यधिक बजन बाढ जाता है या मत दिया कोकेन का दुरूपयोग शामिल है जो आज के समाज में सबसे अधिक गंभीर समस्या है, इसे विशेष रूप हमारे समाज से दूर करना चाहिए।

प्रश्न 5: “चिकित्सक व्यक्ति के शारीरिक लक्षणो को देखकर बीमारी का निदान करते है” मनोवैज्ञानिक विकारो का निदान किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर 5: मनोवैज्ञानिक विकार भी अन्य बीमारियों की तरह होते हैं जो कि अनुकूलन की असफलता के कारण होती हैं। मनोवैज्ञानिक विकार किसी भी असामान्य बात की तरह हमारे लिए असुविधा उत्पन कर सकता है और भयभीत भी कर सकता है। मनोवैज्ञानिक विकारों के बारे में लोगों के अस्पष्ट विचार है। जो अंधविश्वास, अज्ञान और भय के तत्वों पर आधारित होते है। सामान्यतः यह भी माना जाता है की मनोवैज्ञानिक विकार कुछ शर्मनाक पहलू है तथा मानसिक रोगों पर लगे कलंक के कारण लोग मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेने में हिचकिचाते हैं क्योंकि अपनी समस्याओं को वे लज्जास्पद समझते हैं। परन्तु मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान किया जा सकता हैं।

अतिप्राकृत द्द्ष्टिकोंण के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार अलौकिक और जादुई शक्तियों जैसे – बुरी आत्माएँ या शैतान के कारण है तथा इनका निदान आज भी झाड़ – फुक और प्रार्थना द्वारा किया जाता है। जैविक और आगिक उपागत के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार शरीर और मस्तिष्क के उचित प्रकार से काम नहीं करने के कारण होता है तथा कई प्रकार के विकारों को दोषपूर्ण जैविक प्रक्रियाओं को ठीक करके दूर किया जा सकता है जिसका परिणाम समुन्नत प्रकार्य में होता है। मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है।

भूत – विद्या और अंधविश्वासों के अनुसार मानसिक विकारों से ग्र्सिंत व्यक्ति में दुष्ट आत्माएँ होती है और मध्य युग में उनका धर्मशास्त्रीय उपचार पर बल दिया जाता था। परन्तु आज वैज्ञानिक युग में मनोवैज्ञानिक विकारों के प्रति वैज्ञानिक अभिवृति में वृद्धि हुई है। आज मनोवैज्ञानिक विकारो में ग्रसित व्यक्तियों के प्रति करुणा या सहानुभूति की भावना में वृद्धि हुई है तथा मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान मनोवैज्ञानिक व्यवहारों द्वारा तथा उपयुक्त देख – रेख द्वारा लोगों एवं विशेषकर मनोवैज्ञानिक द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6: मनोग्रस्ति और बाध्यता के बीच विभेद स्थापित कीजिए।

उत्तर 6: मनोग्रस्ति और बाध्यता आमतौर पर ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) के प्रमुख पहलू हैं, लेकिन इन दोनों में स्पष्ट भेद है। मनोग्रस्ति मानसिक विचार, छवियां, या आवेग हैं जो बार-बार और अनैच्छिक रूप से व्यक्ति के मस्तिष्क में आते हैं और उसे अत्यधिक चिंता या परेशानी में डालते हैं। ये विचार अक्सर अप्रिय या असंगत होते हैं, जैसे गंदगी का डर, किसी को नुकसान पहुंचाने की आशंका, या परफेक्शन की आवश्यकता।

दूसरी ओर, बाध्यता उन दोहरावदार कार्यों या व्यवहारों को संदर्भित करती है जिन्हें व्यक्ति इन विचारों से राहत पाने या चिंता कम करने के लिए करता है। उदाहरण के लिए, गंदगी के डर के कारण बार-बार हाथ धोना, या किसी चीज को बार-बार जांचना। मनोग्रस्ति मानसिक प्रक्रिया पर आधारित होती है, जबकि बाध्यता व्यवहारात्मक प्रतिक्रिया है। हालांकि, दोनों के बीच गहरा संबंध है, क्योंकि बाध्यता अक्सर मनोग्रस्ति के कारण उत्पन्न होती है। कई तरह की बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जांचना, छूना और धोना सम्मिलित होता है। श्रेणी में शामिल अन्य विकार है – कंजूसी करना बाल खींचना, खुजली करना आदि।

प्रश्न 7: क्या विसामन्य व्यवहार का एक दीर्धकालिक प्रतिरूप अपसामान्य समझा जा सकता है? इसकी व्याख्या कीजिए।

उत्तर 7: अपसामान्य का अर्थ होता है ‘जो सामान्य से परे हो’ इसका तातपर्य हुआ जो स्पष्ट रूप से परिभाषित है मानको या मानदंडों से हट कर हो। मनोविज्ञान में हमारे पास मानव व्यवहार का कोई ‘आदर्श मॉडल’ या ‘सामान्य मॉडल’ नहीं है जिसे तुलना के आधार के रूप में उपयोग किया जा सके। सामान्य और अपसामान्य व्यवहार में विभेद करने के लिए कई उपागम प्रयुक्त हुए है।

अपसामान्य व्यवहार, विचार और संवेग वह है जो उचित प्रकार्यो से संबंधित समाज के विचारो से काफी भिन्न हो। प्रत्यक समाज के कुछ मानक होते है जो समाज में उचित आचरण के लिए कथित या अकथित नियम होते है। वह व्यवहार, विचार और संवेग जो सामाजिक मानको को तोडते है अपसामान्य कहे जाते है।

प्रश्न 8: लोगो के बिच बात करते समय रोगी बारंबार विषय परिवर्तन करता है, क्या यह मनोविदलता का सकारत्मक या नकारात्मक लक्षन है? मनोविदलता के अन्य लकणो तथा उप – प्रकारो का वर्णन कीजिए।

उत्तर 8: लोगों के बीच बात करते समय रोगी का बार-बार विषय परिवर्तन करना मनोविदलता का एक नकारात्मक लक्षण माना जाता है। यह लक्षण मानसिक विकारों में एक सामान्य संकेत है, विशेष रूप से शिज़ोफ्रेनिया जैसे विकारों में। ऐसे रोगी अपने विचारों को एक-दूसरे से जोड़ने में असमर्थ होते हैं, जिससे संवाद में निरंतर विचारों का अव्यवस्थित प्रवाह होता है और विषयों के बीच कनेक्शन स्पष्ट नहीं होते। इससे वार्ता असंगत और विचलित हो जाती है, जिसे मनोविदलता कहा जाता है।

मनोविदलता के अन्य लक्षण और उप-प्रकार

  1. अवसाद: रोगी बातचीत के दौरान किसी सवाल का उत्तर देने के बजाय विषयों से भटक जाते हैं। वे संवाद में पूरी तरह से नहीं आते और सवाल का प्रत्यक्ष उत्तर नहीं देते।
  2. विचलित विचार: विचारों का तेज़ी से आना और बदलना। व्यक्ति एक विचार से दूसरे विचार की ओर तेजी से जा सकता है, जिससे संवाद अप्रत्याशित और कठिन हो जाता है।
  3. ध्यान की विकृति: व्यक्ति बहुत जल्दी अपने विचारों से विचलित हो जाता है। यह मानसिक स्थिति किसी बाहरी उत्तेजना या विचार द्वारा विचारों को प्रभावित करने का परिणाम हो सकता है।
  4. अव्यक्तता: व्यक्ति नई, काल्पनिक शब्दों का निर्माण करता है, जो किसी अन्य व्यक्ति के लिए समझ में नहीं आते। ये शब्द अव्यवस्थित सोच का परिणाम होते हैं।
  5. रंगीन और अव्यवस्थित भाषाशैली: व्यक्ति के बोलने का तरीका असंगत और उलझा हुआ हो सकता है। उनके वाक्य स्पष्ट नहीं होते, और यह किसी मानसिक विकार का संकेत हो सकता है।

मनोविदलता के उप-प्रकार

  1. शिज़ोफ्रेनिया: यह विकार अक्सर मनोविदलता के लक्षणों के साथ जुड़ा होता है, जैसे कि अजीब विचार, असंगत बोलने की शैली और भ्रम की स्थिति।
  2. मूड डिसऑर्डर: जैसे कि बाइपोलर डिसऑर्डर में भी कभी-कभी मनोविदलता देखी जा सकती है, विशेषकर उन्माद की अवस्था में।
  3. ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD): इस विकार में व्यक्ति अपनी अवांछित विचारों और कार्यों के बीच संबंध स्थापित करने में कठिनाई महसूस कर सकता है, जो मानसिक अव्यवस्था का कारण बन सकता है।

प्रश्न 9: ‘विच्छेदन’ से आप क्या समझते है? इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।

उत्तर 9: विच्छेदन मानसिक स्वास्थ्य की एक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति अपनी सोच, भावनाओं, यादों, या पहचान से अस्थायी रूप से अलग-थलग महसूस करता है। इसे एक मानसिक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है, जिसमें व्यक्ति अपने अनुभवों से मानसिक रूप से अलग हो जाता है या उन पर नियंत्रण खो देता है। यह स्थिति आमतौर पर तनावपूर्ण या दर्दनाक घटनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है, जब व्यक्ति अपने अनुभवों को स्वीकार नहीं कर पाता और उनसे बचने के लिए मानसिक रूप से खुद को अलग कर लेता है। विच्छेदन के विभिन्न रूप होते हैं, जिनमें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर अलगाव देखा जा सकता है।

विच्छेदन के विभिन्न रूप:

  1. स्मृति विच्छेदन: इस रूप में व्यक्ति अपनी कुछ महत्वपूर्ण यादों को भूल जाता है, खासकर उन घटनाओं को जो मानसिक या शारीरिक रूप से अत्यधिक तनावपूर्ण या आघातपूर्ण होती हैं। यह यादों का गायब होना अचानक होता है और व्यक्ति खुद को भूलने की वजह से संकट का अनुभव कर सकता है।
  2. विच्छेदन व्यक्तित्व विकार: पहले इसे “मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर” के नाम से जाना जाता था। इसमें व्यक्ति के भीतर एक से अधिक पहचान होती हैं, और वे अलग-अलग परिस्थितियों में सक्रिय हो सकती हैं। व्यक्ति को अपनी अन्य पहचान का पता नहीं होता और यह मानसिक स्थिति गंभीर रूप से जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।
  3. विच्छेदन भावना: इस विकार में व्यक्ति को अपनी अपनी पहचान या शरीर से जुड़ा हुआ नहीं लगता, जैसे कि वह खुद को बाहरी दृष्टिकोण से देख रहा हो। इसके अलावा, व्यक्ति को अपने आसपास की दुनिया को असली नहीं, बल्कि एक सपने जैसा या भ्रमित अनुभव हो सकता है, जिसे डेरियलाइजेशन कहा जाता है।
  4. संवेग विच्छेदन: इसमें व्यक्ति मानसिक रूप से अपनी पहचान या जीवन की स्थिति को खो देता है और अचानक अपने परिवेश को छोड़कर कहीं दूर चला जाता है। इस दौरान वह अपनी पहचान भूल जाता है और नए स्थान पर एक नई पहचान अपनाता है। यह स्थिति आमतौर पर आघात या गंभीर मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न होती है।

प्रश्न 10: दुर्भिति क्या है? यदि किसी को सांप से अत्यधिक भय हो तो क्या यह सामान्य दुर्भिति दोषपूर्ण या गलत अधिगम के कारण हो सकता है? यह दुर्भिति किस प्रकार विकसित हुई होगी? विश्लेषण कीजिऐ।

उत्तर 10: किसी व्यक्ति को छिपकली के भय से कमरे से घुसने से मना कर दिया हो या किसी ने इमारत की दसवीं मंजिल पर सीढी से जाने या लिफ्ट में चढ़ने से मना कर दिया हो ऐसे लोग दुर्भिति का शिकार हुए होते है। आपने अपने किसी मित्र को श्रेताओ के सामने बोलते हुए देखा होगा की घबराहट होने लगती है, नर्वस हो जाता है। इस तरह के भय दुर्भिति कहते है। जिन लोगो को होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु, लोग या स्थितियो के प्रति अविवेक या अतर्क भय होता है। दुर्भिति बहुत धीरे – धीरे या सामान्यतः दुष्चित विकार से उतपन्न होती है।

दुर्भिति को मुख्यतः तीन प्रकार का मना जाता है – विशिष्ट दुर्भिति सामाजिक दुर्भिति विवृतिभीति। विशिष्ट दुर्भिति सामान्यता घटित होने वाली दुर्भिति होती है। इसमें अविवेकी या अतर्क भरा जैसे किसी विशिष्ट प्रकार के जानवर के प्रति तीर्व और भय का होना या किसी बंद जगह में होने के भय का होना सम्मिलित होते है। दुसरो बर्ताव करते समय तीव्र और अक्षम करने वाला भय तथा उलझन अनुभव कारना सामाजिक दुश्चित चिकार का लक्षण है। सामान्यतः ऐसा कहा जा सकता है बार – बार डराए जाने या किसी घटना का दिमाग पर गहरा असर हो जाने पर हुआ होगा। जिससे आगे चलकर ये देख जाने लगा और मनोवैज्ञानिक इसे समझने का प्रयास करने लगे।

प्रश्न 11: दुश्चिता को “पेट में तितलियों का होना” जैसे अनुभूति कहा जाता है। किस अवस्था में दुश्चिता विकार का रूप लेती है? इसके प्रकारो का वर्णन कीजिए।

उत्तर 11: दुश्चिता का अनुभव तब होता है जब किसी परीक्षा की प्रतीक्षा कर रहे होते है या किसी दंत चिकित्स्क के पास जाना होता है या कोई एकल प्रदर्शन करना होता है। यह सामान्य है, जिसकी हमसे प्रत्यशा की जाती है। यहाँ तक की इससे हमें अपना कार्य अच्छी तरह करने की अभिप्रेरणा भी मिलती है। इसके विपरीत जब उच्च स्तरीय दुसिचंता जो कष्टप्रद होती है तथा हमारे सामान्य क्रियाकलापों में बाधा पहुंचाती है तब यह मनोवैज्ञानिक विकारो की सबसे सामान्य श्रेणी दुश्चिंता विकार की उपस्थिति का संकेत होती है।

प्रत्येक व्यक्ति को आकुलता और भय होते है। सामान्यतः दुश्चिता शब्द को भय और आशंक की विस्तृत, अस्पष्ट और अप्रीतिकर भावना के रूप में परिभाषा किया जाता है। दुश्चिता व्यक्ति में निम्न लक्षणो का सम्मिलित रूप रहता है, यथा – हृदयगति का तेज होना, सांस की कमी होना, भूख न लगना, बेहोशी, चक्क्र आना, पसीना आना, निद्रा की कमी, बार – बार मूत्र त्याग करना तथा कपकपी आना। दुश्चिता विकार के कई प्रकार होते है। सामान्यकृत दुश्चिता विकार, आतंक, सामाजिक दुश्चिता विकार, वियोगज दुश्चिता विकार, वियोगज दुश्चिता विकार आदि।

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