Psychology Class 12 Chapter 5 question answers in hindi चिकित्सा उपागम

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चिकित्सा उपागम class 12 questions and answers: Class 12 Psychology chapter 5 ncert solutions in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPsychology
ChapterChapter 5
Chapter Nameचिकित्सा उपागम class 12 ncert solutions
CategoryNcert Solutions
MediumHindi

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प्रश्न 1: मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। मनश्चिकित्सा में चिकित्सात्मक संबंध के महत्त्व को उजागर कीजिए।

उत्तर 1: मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र: मनश्चिकित्सा एक वैज्ञानिक और चिकित्सात्मक क्षेत्र है जो मानव मन, व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के अध्ययन, निदान और उपचार पर केंद्रित है। यह मनोविज्ञान, जैविक विज्ञान, समाजशास्त्र और चिकित्सा जैसे बहु-विषयक दृष्टिकोणों का उपयोग करता है। इसका उद्देश्य व्यक्ति की मानसिक समस्याओं, जैसे अवसाद, चिंता, द्विध्रुवीय विकार, सिज़ोफ्रेनिया आदि, का समाधान करना और उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करना है। मनश्चिकित्सा में व्यक्ति की मानसिक स्थिति को समझने और उसकी जड़ों तक पहुंचने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे मनोविश्लेषण, संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी, और औषधीय उपचार।

चिकित्सात्मक संबंध का महत्त्व: मनश्चिकित्सा में चिकित्सक और मरीज के बीच का संबंध अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है। यह संबंध विश्वास, सहानुभूति और पारस्परिक सम्मान पर आधारित होता है। चिकित्सात्मक संबंध का उद्देश्य मरीज को एक सुरक्षित और गैर-आलोचनात्मक वातावरण प्रदान करना है, जहां वह अपनी भावनाओं और समस्याओं को खुले दिल से साझा कर सके। यह संबंध मरीज के मानसिक उपचार को प्रभावी बनाने में सहायक होता है, क्योंकि एक अच्छा संबंध मरीज को चिकित्सक की सलाह और उपचार को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है। इस संबंध के बिना, उपचार प्रक्रिया में बाधाएं आ सकती हैं और वांछित परिणाम प्राप्त करना कठिन हो सकता है।

प्रश्न 2: मनश्चिकित्सा के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं? किस आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है?

उत्तर 2: मनश्चिकित्सा को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • 1. मनोगतिक मनश्चिकित्सा।
  • 2. व्यवहार मनश्चिकित्सा।
  • 3. अस्तित्वपरक मनश्चिकित्सा।

मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण निम्नलिखित प्राचलों के आधार पर किया गया है:

  • 1. क्या कारण है, जिसने समस्या को उत्पन्न किया?
  • 2. कारण का प्रादुर्भाव कैसे हुआ?
  • 3. उपचार की मुख्य विधि क्या है?
  • 4. सेवार्थी और चिकित्सक के बीच चिकित्सात्मक संबंध की स्वीकृति क्या होती है?
  • 5. सेवार्थी के मुख्य लाभ क्या हैं?
  • 6. उपचार की अवधि क्या है?

प्रश्न 3: व्यवहार चिकित्सा में प्रयुक्त विभिन्न तकनीकों की चर्चा कीजिए।

उत्तर 3: व्यवहार चिकित्सा एक मनोचिकित्सात्मक दृष्टिकोण है, जो व्यवहारवाद के सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें अस्वास्थ्यकर या अनुपयुक्त व्यवहार को पहचानकर उसे बदलने के लिए वैज्ञानिक रूप से स्थापित तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यह तकनीकें व्यक्ति के वर्तमान व्यवहार और इसे प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों पर केंद्रित होती हैं।

1. निषेधात्मक प्रबलन

  • तात्पर्य: यह वांछित व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए अप्रिय या नकारात्मक परिणामों को दूर करने पर आधारित है।
  • उदाहरण: यदि बच्चा कक्षा में शोर करता है और अध्यापक उसे फटकार लगाते हैं, तो यह उसके अवांछित व्यवहार को रोकने में मदद कर सकता है।

2. विमुखी अनुबंधन

  • तात्पर्य: अवांछित व्यवहार को रोकने के लिए उसे अप्रिय परिणामों से जोड़ा जाता है।
  • उदाहरण: एक मद्यपान करने वाले व्यक्ति को बिजली का हल्का आघात दिया जाता है जब वह शराब पीने की कोशिश करता है। यह अवांछित व्यवहार को हतोत्साहित करता है और शराब के प्रति अरुचि उत्पन्न करता है।

3. सकारात्मक प्रबलन

  • तात्पर्य: यह किसी वांछित व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक परिणाम या पुरस्कार प्रदान करने पर आधारित है।
  • उदाहरण: यदि बच्चा नियमित रूप से गृहकार्य करता है, तो उसकी माँ उसे मनपसंद भोजन बनाकर देती है। यह व्यवहार को प्रोत्साहित करता है।
  • टोकन अर्थव्यवस्था: वांछित व्यवहार करने पर सेवार्थी को टोकन (जैसे, स्टार, पॉइंट्स) दिए जाते हैं। ये टोकन बाद में पुरस्कार या लाभ के लिए बदले जा सकते हैं।

प्रश्न 4: उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए कि संज्ञानात्मक विकृति किस प्रकार घटित होती हैं।

उत्तर 4: संज्ञानात्मक चिकित्सा आरन बेक की है। दुश्चिंता या अवसाद द्वारा अभिलक्षित मनोवैज्ञानिक कष्ट संबंधी उनके सिद्धांत के अनुसार परिवार और समाज द्वारा दिए गए बाल्यावस्था में दिए गए अनुभव मूल अन्विति योजना या तंत्र के रूप में विकसित हो जाता है। जिनमे व्यक्ति के विश्वास और क्रिया के प्रतिरूप सम्मिलित होते है। इस प्रकार एक सेवार्थी जो बाल्यावस्था में अपने माता पिता द्वारा उपक्षित था एक ऐसा मूल स्कीमा विकसित कर लेता है, “मैं वांछित हु” जीवन काल के दौरान कोई निर्णयक घटना उसके जीवन में घटित होती है।

विद्यालय में सबके सामने अध्यापक के द्वारा हंसी उड़ाई जाती है। यह निर्णयक घटना उसके मूल स्कीमा, मै वांछित हु, को क्रियाशील कर देती है जो नकारात्मक स्वचालित विचारो को विकसित करती है।नकारात्मक विचार सतत अविवेक की विचार होते है, जैसे – मुझसे कोई प्यार नहीं करता, मैं बुरा हु, में मुर्ख हूँ। इन तरीके है जो सामान्य प्रकृति के होते है किन्तु वह वास्तविकता को नकारात्मक से विकृत करते है।

प्रश्न 5: कौन-सी चिकित्सा सेवार्थी को व्यक्तिगत संवृद्धि चाहने एवं अपनी संभाव्यताओं की सिद्धि के लिए प्रेरित करती है? उन चिकित्साओं की चर्चा कीजिए जो इस सिद्धांत पर आधारित हैं।

उत्तर 5: मानवतावादी – अस्तित्वरक चिकित्सा की धरना है की मनोवैज्ञानिक कष्ट व्यक्ति के अकेलेपन, विसंबंधिन तथा जीवन का अर्थ समझने और यथार्थ संतुष्टि प्राप्त करने में योग्यता की भावनाओं के कारण उतपन्न होते है। मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवयश्कता से प्रेरित होते है। जब समाज और परिवार के द्वारा ये आवश्यकता बधित की जाती है तो मनुष्य मनोवैज्ञनिक कष्ट का अनुभव करता है। आत्मसिद्धि को सहज शक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।

व्यक्ति को जटिल, संतुलित और समाकलित होने के लिए अथार्त बिना खंडित हुए जटिलता एवं संतुलन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। जब सेवार्थी अपने जीवन में आत्मसिद्धि के लिए आवश्यक है संवेगो की मुक्ति अभिव्यक्ति। इसमें मूल पूर्व धरना यह है की वेसारथी को अपने व्यवहारो का नियंत्रण करने की स्वतंत्रता है तथा यह उसका ही उत्तरदायी है। चिकित्सक केवल एक सुगमकर्ता और मार्गदर्शन होता है। चिकित्सा की सफलता के लिए सेवार्थी सव्य उत्तदायी होता है। चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य सेवार्थी की जागरूकता को बढ़ाना है। जैसे-जैसे सेवार्थी अपनी व्यक्तिगत अनुभवों को समझने लगता है वह स्वस्थ होने लगता है। सेवार्थी आत्मसंवृद्धि की प्रक्रिया को प्रारंभ करता है।

प्रश्न 6: मनश्चिकित्सा में स्वास्थ्य-लाभ के लिए किन कारकों का योगदान होता है? कुछ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की गणना कीजिए।

उत्तर 6: मनश्चिकित्सा में स्वास्थ्य लाभ में योगदान देनेवाले कारक निम्नलिखित हैं:

1. स्वास्थ्य लाभ में एक महत्त्वपूर्ण कारक है चिकित्सक द्वारा अपनाई गई तकनीक तथा रोगी/सेवार्थी के साथ इन्हीं तकनीकों का परिपालन। यदि दुश्चित सेवार्थी को स्वस्थ करने के लिए व्यवहार पद्धति और संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा शाखा अपनाई जाती है तो विभ्रांति की विधियाँ और संज्ञानात्मक पुनः संरचना तकनीक स्वास्थ्य-लाभ में बहुत बड़ा योगदान देती है।

2. चिकित्सात्मक मैत्री जो चिकित्सक एवं रोगी/सेवार्थी के बीच में बनती है, में स्वास्थ्य लाभ से गुण विद्यमान होते हैं क्योंकि चिकित्सक नियमित रूप से सेवार्थी से मिलता है तथा उसे तदनुभूति और हार्दिकता प्रदान करता है।

3. चिकित्सा के प्रारंभिक सत्रों में जब रोगी/सेवार्थी की समस्याओं की प्रकृति को समझने के लिए उसका साक्षात्कार किया जाता है, जो वह स्वयं द्वारा अनुभव किए जा रहे संवेगात्मक समस्याओं को चिकित्सक के सामने रखता है। संवेगों को बाहर निकालने की इस प्रक्रिया को भाव-विरेचन या केथार्सिस कहते हैं और इसमें स्वास्थ्य लाभ के गुण विद्यमन होते हैं।

4. मन चिकित्सा से संबंधित अनेक अवशिष्ट कारक है। इनमे से कुछ कारक सेवार्थी से संबंधित बताये जाते है तथा कुछ चिकित्स्क से संबंधित। यह कारक अवशिष्ट इसलिए कहे जाते है क्योकी यह मन चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियों, भिन्न सेवार्थियों मन चिकित्स्कों के आर पार घटित होती है। सेवार्थी पर लाग होने वाले अवशिष्ट कारक है परिवर्तन के लिए अभिप्रेरण उपचार के कारण सुधार की प्रत्याशा इत्यादि । चिकित्सक लागू होने वाले अवशिष्ट कारक है – सकारात्मक स्वभाव अंसुलझे संवेगात्मक द्वंद्व की अनुपस्थित, अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की उपस्थिति इत्यादि।

प्रश्न 7: मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन के लिए कौन सी तकनीकों का उपयोग किया जाता है?

उत्तर 7: मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जो उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती हैं। इनमें से प्रमुख तकनीकों में संज्ञानात्मक-व्यवहारात्मक थेरेपी (CBT) शामिल है, जो रोगी के नकारात्मक विचारों को पहचानने और उन्हें सकारात्मक रूप से बदलने में मदद करती है। इसके अलावा, सकारात्मक मनोविज्ञान का उपयोग करके रोगी में आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

समूह चिकित्सा और परिवार चिकित्सा जैसे तरीके भी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि यह रोगी को सामाजिक समर्थन और सामूहिक सोच से मदद देते हैं। दवाओं का उपयोग भी मानसिक रोगों के उपचार में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, जैसे एंटीडिप्रेसेंट्स और एंटीसाइकोटिक्स। इसके अतिरिक्त, ध्यान और योग जैसी तकनीकें मानसिक शांति और तनाव कम करने में सहायक होती हैं। इन सभी तरीकों का उद्देश्य मानसिक रोगियों को सामान्य जीवन जीने में सक्षम बनाना और उन्हें समाज में पुनः स्थापित करना होता है।

प्रश्न 8: छिपकली/तिलचट्टा के दुरभिती भय का सामाजिक अधिगम सिद्धांतकार किस प्रकार स्पष्टीकरण करेगा? इसी दुर्भीति का एक मनोविश्लेषक किस प्रकार स्पष्टीकरण करेगा?

उत्तर 8: छिपकली/तिलचटा आदि से होने वाले भय को दुर्भीति कहते हैं। जिन लोगों को दुर्भीति होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु, लोग या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अर्वक भय होता है। यह बहुधा दुश्चिता विकार से उत्पत्र होती है। दुर्भीति या अविवेकी भय के उपचार के लिए वॉल्प द्वारा प्रतिपादित क्रमिक विसंवेदनीकरण एक तकनीक है। छिपकली/तिलचटा के दुर्भीति भय वाले व्यक्ति का साक्षात्कार मनोविश्लेषक भय उत्पन्न करने वाले उद्दीपको का एक पदानुक्रम तैयार करता है। तथा सेवार्थी को विश्रांत करता है। और सबसे कम दुश्चिता उत्पन्न करने वाली स्थिति के बारे में सोचने को कहता है। सेवार्थी से कहा जाता है की उसे वर्तमान में ही तनाव है और उसको इसकी विपरीत अवस्था में जाना है। उसे कहा जाता है की जरा – सा भी तनाव महसूस करने पर भयानक स्थिति के बारे में बंद कर दे।

कई सत्रों के पश्चित सेवार्थी विश्रांति की अवस्था बनाए रखते तीव्र भय उत्पत्र करने वाली स्थितियो के बारे में सोचने में समर्थ हो जाता है। यहाँ अन्योन्य प्रावरोध का सिद्धांत क्रियाशील होता है। पहले विश्रांति की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात धीरे से दुश्चिता उत्पत्र करने वाले दद्श्य की कल्पना की जाती है और विश्रांत से दुश्चिता पर विजय प्राप्त की जाती है। इसके अतिरिक्त मनोविश्लेषक सौम्य तथा बिना धमकी वाले किन्तु सेवार्थी के दुर्भाति भय का खंडन करने वाले प्रश्न करता है। ये प्रश्न सेवार्थी को दुर्भीति भय की विपरीत दिशा में सोचने को बाध्य करते है जो दुश्चिता को घटती है। सामाजिक अधिगम सिद्धांतकार सामाजिक पक्षों को पर्यावरण परिवर्तन द्वारा स्पष्ट करेगा।

प्रश्न 9: किस प्रकार की समस्याओं के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा सबसे उपयुक्त मानी जाती है?

उत्तर 9: मनश्चिकित्सा की प्रभावित एवं परिणाम पर किये गए अनुसंधन ने निर्णायक रूप प्रामाणिक किया है की संज्ञातात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारो जैसे – दुष्चित, अवसाद आतंक दौरा सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षीप्त और प्रभावोत्पादक उपचार है। मनोविकृत की रूप रेखा बताने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा जैव – मनोसामाजिक उपागम का उपयोग करती है। यह संज्ञात्मक चिकित्सा को व्यवहारपरक तकनीकों के साथ संयुक्त करती है।

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