Class 12 political science book 2 chapter 1 notes in hindi: राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Notes
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Notes |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां notes, Class 12 political science book 2 chapter 1 notes in hindi इस अध्याय मे हम राष्ट्र और राष्ट्र निर्माण , सरदार वल्लभभाई पटेल और राज्यों का एकीकरण , विभाजन की विरासत, शरणार्थियों की चुनौती , पुनर्स्थापना , कश्मीर मुद्धा , राष्ट्र निर्माण में नेहरू का दृष्टिकोण , भाषा पर राजनीतिक संघर्ष और राज्यों का भाषायी आधार पर निर्माण के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय : –
🔹 राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय है जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ न कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनैतिक स्वायतता प्राप्त करते हैं । ( डेविड ए . विलयम )
भारत की आजादी : –
🔹 लगभग 200 वर्ष की अंग्रेजों की गुलामी के बाद 14 – 15 अगस्त सन 1947 की मध्यरात्रि को हिन्दुस्तान आजाद हुआ । लेकिन इस आजादी के साथ देश की जनता को देश के विभाजन का सामना पड़ा । संविधान सभा के विशेष सत्र में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘ भाग्यवधु से चिर – प्रतीक्षित भेंट या ‘ ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी ‘ के नाम से भाषण दिया ।
🔶 आजादी की लड़ाई के समय दो बातों पर सबकी सहमति थी ।
- आजादी के बाद देश का शासन लोकतांत्रिक पद्धति से चलाया जायेगा ।
- सरकार समाज के सभी वर्गों के लिए कार्य करेगी ।
आजाद भारत की नए राष्ट्र की चुनौतियाँ : –
🔹 मुख्य तौर पर भारत के सामने तीन तरह की चुनौतियाँ थी ।
- एकता एवं अखडता की चुनौती
- लोकतंत्र की स्थापना
- समानता पर आधारित विकास
🔸 1 ) एकता एवं अखडता की चुनौती :- भारत अपने आकार और विविधता में किसी महादेश के बराबर था । यहाँ विभिन्न भाषा , संस्कृति और धर्मो के अनुयायी रहते थे , इन सभी को एकजुट करने की चुनौती थी ।
🔸 2 ) लोकतंत्र की स्थापना :- भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया है । और भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार तथा मतदान का अधिकार दिया गया है ।
🔸 3 ) समानता पर आधारित विकास :- ऐसा विकास जिससे सम्पूर्ण समाज का कल्याण हो , न कि किसी एक वर्ग का अर्थात् सभी के साथ समानता का व्यवहार किया जाए और सामाजिक रूप से वंचित वर्गो तथा धार्मिक सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए ।
आजादी के बाद भारत के सामने पहली चुनौती क्या थी ?
🔹 आजादी के बाद भारत के सामने चुनौती देश को एकता के सूत्र में बाँधने की थी ।
भारत को एकता के सूत्र में बाँधना क्यों कठिन था ?
🔹 क्योंकि भारत बहुभाषी , बहुधर्मी और बहुसंस्कृतियों का देश था ।
द्वि – राष्ट्र सिद्धांत : –
🔹 इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘ हिन्दू ‘ और ‘ मुसलमान ‘ नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की ।
भारत का विभाजन : –
🔹 14 – 15 अगस्त 1947 को एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र – ( भारत और पाकिस्तान ) अस्तित्व में आए । मुस्लिम लीग ने ‘ द्वि – राष्ट्र सिद्धांत ‘ को अपनाने के लिए तर्क दिया कि भारत किसी एक कौम का नहीं , अपितु ‘ हिन्दु और मुसलमान ‘ नाम की दो कौमों का देश है । और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानी पाकिस्तान की मांग की ।
🔹 कांग्रेस ‘ द्वि – राष्ट्र सिद्धांत ‘ तथा पाकिस्तान की माँग का विरोध किया । बहरहाल , सन् 1940 के दशक में राजनीतिक मोर्चे पर कई बदलाव आए ; कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तथा ब्रिटिश- शासन की भूमिका जैसी कई बातों का ज़ोर रहा । नतीजतन , पाकिस्तान की माँग मान ली गई ।
विभाजन की प्रक्रिया : –
🔹 फ़ैसला हुआ कि अब तक जिस भू – भाग को ‘ इंडिया ‘ के नाम से जाना जाता था उसे ‘ भारत ‘ और ‘ पाकिस्तान ‘ नाम के दो देशों के बीच बाँट दिया जाएगा ।
🔹 भारत के विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया । जिसके कारण कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई जिनका बारे में नीचे बात की गई है ।
भारत विभाजन की आईं मुख्य समस्या : –
🔶 पहली समस्या : क्षेत्रों को धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर बाँटाना :-
🔹 क्षेत्रों को धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर बाँटा गया , जैसे :- मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों ने पाकिस्तान बनाया तथा बाकी भारत में ही बस गए , जिसने संप्रदायिक दंगों को देश में स्थान दिया ।
🔹 ब्रिटिश इंडिया में कोई एक भी इलाका ऐसा नहीं था, जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हो । केवल दो इलाके पूर्वी व पश्चिम पाकिस्तान ऐसे क्षेत्र थे । इन दोनों को जोड़कर एक बनाना मुश्किल था , अतः इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में दो इलाके शामिल होंगे यानी पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान तथा इनके बीच में भारतीय भू – भाग का एक बड़ा विस्तार रहेगा ।
🔶 दूसरी समस्या : लोगो का पाकिस्तान में शामिल होने को राजी नहीं होना :-
🔹 मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में शामिल होने को राजी नहीं था तथा वे द्वि – राष्ट्र सिद्धांत के भी खिलाफ़ थे । पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के नेता खान – अब्दुल गफ्फार खाँ जिन्हें ‘ सीमांत गांधी ‘ के नाम से जाना जाता है , वह ‘ द्वि – राष्ट्र सिद्धांत ‘ के एकदम खिलाफ थे । फिर भी उनकी अनदेखी करते हुए संयोग से पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया ।
🔶 तीसरी समस्या : पंजाब और बंगाल के बहुसंख्यक गैर – मुस्लिम आबादी इलाके :-
🔹 ब्रिटिश इंडिया ‘ के मुस्लिम – बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर – मुस्लिम आबादी वाले थे । ऐसे में इन प्रान्तों का बँटवारा धार्मिक बहुसंख्या के आधार पर जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार बनाकर किया गया ।
🔹 भारत विभाजन केवल धर्म के आधार पर हुआ था । इसलिए दोनों ओर के अल्पसंख्यक वर्ग बड़े असमंजस में थे , कि उनका क्या होगा । वह कल से पाकिस्तान के नागरिक होगें या भारत के ।
🔶 चौथी समस्या : अल्पसंख्यकों की समस्या :-
🔹 भारत – विभाजन की योजना में यह नहीं कहा गया कि दोनों भागों से अल्पसंख्यकों का विस्थापन भी होगा । विभाजन से पहले ही दोनों देशों के बँटने वाले इलाकों में हिन्दु – मुस्लिम दंगे भड़क उठे ।
🔹 पश्चिमी पंजाब में रहने वाले अल्पसंख्यक गैर मुस्लिम लोगों को अपना घर – बार , जमीन – जायदाद छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से पूर्वी पंजाब या भारत आना पड़ा । और इसी प्रकार मुसलमानों को पाकिस्तान जाना पड़ा ।
🔹 लोगों के पुनर्वास को बड़े ही संयम ढंग से व्यावहारिक रूप प्रदान किया । शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सर्वप्रथम एक पुनर्वास मंत्रालय बनाया गया ।
भारत – विभाजन के परिणाम : –
- भारत – विभाजन के परिणामस्वरूप ही शरणार्थियों की समस्या पैदा हुई थी ।
- भारत के विभाजन की प्रक्रिया की दूसरी समस्या कश्मीर की समस्या है । भारत के विभाजन स्वरूप ही कश्मीर की समस्या पैदा हुई है ।
- भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप जो एक अन्य समस्या पैदा हुई , वह थी देशी रियासतों का स्वतंत्र भारत में विलय करना ।
- भारत के विभाजन के कारण राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भी पैदा हुई ।
- विभाजन की प्रक्रिया में भारत की भूमि का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि भारत की सम्पदा का भी बँटवारा हुआ ।
- लोगो को मजबूरन अपना घर छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा ।
- बड़े स्तर पर हिंसा का शिकार होना पड़ा ।
- अमृतसर और कोलकाता में सांप्रदायिक दंगे हुए ।
- लोगों को मजबूरन शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा ।
- औरतों को अगवा किया गया जबरन शादी करनी पड़ी धर्म बदलना पड़ा ।
- कई मामलों में लोगों ने परिवार की इज्जत बचाने के लिए खुद घर की बहू बेटियों को मार डाला ।
- 80 लाख लोगों को घर छोड़कर उनके सीमा पर आना पड़ा ।
- 5 से 10 लाख लोगों अपनी जान गवाई ।
रजवाड़ो का भारत मे विलय : –
🔹 स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था – ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासत । इन देशी रियासतों की संख्या लगभग 565 थी ।
🔹 रियासतों के शासकों को मनाने – समझाने में सरदार पटेल ( गृहमंत्री ) ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई और अधिकतर रजवाड़ो को उन्होंने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी किया था ।
रजवाड़ों के विलय में समस्या : –
🔹 आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजों ने कहा कि भारत ब्रिटिश प्रभुत्व से आजाद होने जा रहा है ऐसे में रजवाड़ों भी आजाद कर दिया जाएंगे और रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत में शामिल हो जाएं चाहे तो पाकिस्तान में या फिर स्वतंत्र रह सकते हैं ।
🔹 यह फैसला राजा को करना था जनता की इसमें कुछ नहीं चलनी थी । ऐसे में देश की एकता और अखंडता को खतरा मंडरा रहा था अगर रजवाड़े अलग होने की मांग करते हैं तो ना जाने देश के कितने टुकड़े हो जाते ।
🔹 त्रावणकोर के राजा ने सबसे पहले अपने राज्य को आजाद करने को कहा । अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने ऐसा किया । भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल होना नहीं चाहते थे ।
रजवाड़ों के विलय में सरदार पटेल जी की भूमिका : –
🔹भारत देश के छोटे – बड़े टुकड़े हो जाने की संभावना बनी ऐसे में सरकार ने कठोर फैसला लिया । मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया लोगों का कहना था कि रजवाड़ों को उनकी मनमर्जी का फैसला लेने के लिए छोड़ दिया जाए । सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी चतुराई और सूझबूझ से रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल कर लिया ।
देशी रियासतों के बारे में अहम बातें : –
🔹 अधिकतर रजवाड़ो के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे ।
🔹 भारत सरकार कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी जैसे – जम्मू कश्मीर ।
🔹 विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय एकता और अखण्डता का प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण हो गया था ।
🔹 अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे इस सहमति पत्र को ‘ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन ‘ कहा जाता है ।
🔹 जूनागढ़ , हैदराबाद , कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय बाकी रियासतों की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ ।