12 Class Political Science – II Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
Class 12 Political Science – II Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Notes in Hindi इस अध्याय मे हम राष्ट्र और राष्ट्र निर्माण , सरदार वल्लभभाई पटेल और राज्यों का एकीकरण , विभाजन की विरासत :- शरणार्थियों की चुनौती , पुनर्स्थापना , कश्मीर मुद्धा , राष्ट्र निर्माण में नेहरू का दृष्टिकोण , भाषा पर राजनीतिक संघर्ष और राज्यों का भाषायी आधार पर निर्माण के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय : –
🔹 राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय है जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ न कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनैतिक स्वायतता प्राप्त करते हैं । ( डेविड ए . विलयम )
भारत की आजादी : –
🔹 लगभग 200 वर्ष की अंग्रेजों की गुलामी के बाद 14 – 15 अगस्त सन 1947 की मध्यरात्रि को हिन्दुस्तान आजाद हुआ । लेकिन इस आजादी के साथ देश की जनता को देश के विभाजन का सामना पड़ा । संविधान सभा के विशेष सत्र में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘ भाग्यवधु से चिर – प्रतीक्षित भेंट या ‘ ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी ‘ के नाम से भाषण दिया ।
🔶 आजादी की लड़ाई के समय दो बातों पर सबकी सहमति थी ।
- आजादी के बाद देश का शासन लोकतांत्रिक पद्धति से चलाया जायेगा ।
- सरकार समाज के सभी वर्गों के लिए कार्य करेगी ।
आजाद भारत की नए राष्ट्र की चुनौतियाँ : –
🔹 मुख्य तौर पर भारत के सामने तीन तरह की चुनौतियाँ थी ।
- एकता एवं अखडता की चुनौती
- लोकतंत्र की स्थापना
- समानता पर आधारित विकास
🔶 1 ) एकता एवं अखडता की चुनौती :- भारत अपने आकार और विविधता में किसी महादेश के बराबर था । यहाँ विभिन्न भाषा , संस्कृति और धर्मो के अनुयायी रहते थे , इन सभी को एकजुट करने की चुनौती थी ।
🔶 2 ) लोकतंत्र की स्थापना :- भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया है । और भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार तथा मतदान का अधिकार दिया गया है ।
🔶 3 ) समानता पर आधारित विकास :- ऐसा विकास जिससे सम्पूर्ण समाज का कल्याण हो , न कि किसी एक वर्ग का अर्थात् सभी के साथ समानता का व्यवहार किया जाए और सामाजिक रूप से वंचित वर्गो तथा धार्मिक सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए ।
आजादी के बाद भारत के सामने पहली चुनौती क्या थी ?
🔹 आजादी के बाद भारत के सामने चुनौती देश को एकता के सूत्र में बाँधने की थी ।
भारत को एकता के सूत्र में बाँधना क्यों कठिन था ?
🔹 क्योंकि भारत बहुभाषी , बहुधर्मी और बहुसंस्कृतियों का देश था ।
द्वि – राष्ट्र सिद्धांत : –
🔹 इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘ हिन्दू ‘ और ‘ मुसलमान ‘ नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की ।
भारत का विभाजन : –
🔹 14 – 15 अगस्त 1947 को एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र – ( भारत और पाकिस्तान ) अस्तित्व में आए । मुस्लिम लीग ने ‘ द्वि – राष्ट्र सिद्धांत ‘ को अपनाने के लिए तर्क दिया कि भारत किसी एक कौम का नहीं , अपितु ‘ हिन्दु और मुसलमान ‘ नाम की दो कौमों का देश है । और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानी पाकिस्तान की मांग की ।
🔹 कांग्रेस ‘ द्वि – राष्ट्र सिद्धांत ‘ तथा पाकिस्तान की माँग का विरोध किया । बहरहाल , सन् 1940 के दशक में राजनीतिक मोर्चे पर कई बदलाव आए ; कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तथा ब्रिटिश- शासन की भूमिका जैसी कई बातों का ज़ोर रहा । नतीजतन , पाकिस्तान की माँग मान ली गई ।
विभाजन की प्रक्रिया : –
🔹 फ़ैसला हुआ कि अब तक जिस भू – भाग को ‘ इंडिया ‘ के नाम से जाना जाता था उसे ‘ भारत ‘ और ‘ पाकिस्तान ‘ नाम के दो देशों के बीच बाँट दिया जाएगा ।
🔹 भारत के विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया । जिसके कारण कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई जिनका बारे में नीचे बात की गई है ।
भारत विभाजन की आईं मुख्य समस्या : –
🔶 पहली समस्या : क्षेत्रों को धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर बाँटाना :-
- क्षेत्रों को धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर बाँटा गया , जैसे :- मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों ने पाकिस्तान बनाया तथा बाकी भारत में ही बस गए , जिसने संप्रदायिक दंगों को देश में स्थान दिया ।
- ब्रिटिश इंडिया में कोई एक भी इलाका ऐसा नहीं था, जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हो । केवल दो इलाके पूर्वी व पश्चिम पाकिस्तान ऐसे क्षेत्र थे । इन दोनों को जोड़कर एक बनाना मुश्किल था , अतः इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में दो इलाके शामिल होंगे यानी पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान तथा इनके बीच में भारतीय भू – भाग का एक बड़ा विस्तार रहेगा ।
🔶 दूसरी समस्या : लोगो का पाकिस्तान में शामिल होने को राजी नहीं होना :-
- मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में शामिल होने को राजी नहीं था तथा वे द्वि – राष्ट्र सिद्धांत के भी खिलाफ़ थे । पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के नेता खान – अब्दुल गफ्फार खाँ जिन्हें ‘ सीमांत गांधी ‘ के नाम से जाना जाता है , वह ‘ द्वि – राष्ट्र सिद्धांत ‘ के एकदम खिलाफ थे । फिर भी उनकी अनदेखी करते हुए संयोग से पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया ।
🔶 तीसरी समस्या : पंजाब और बंगाल के बहुसंख्यक गैर – मुस्लिम आबादी इलाके :-
- ब्रिटिश इंडिया ‘ के मुस्लिम – बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर – मुस्लिम आबादी वाले थे । ऐसे में इन प्रान्तों का बँटवारा धार्मिक बहुसंख्या के आधार पर जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार बनाकर किया गया ।
- भारत विभाजन केवल धर्म के आधार पर हुआ था । इसलिए दोनों ओर के अल्पसंख्यक वर्ग बड़े असमंजस में थे , कि उनका क्या होगा । वह कल से पाकिस्तान के नागरिक होगें या भारत के ।
🔶 चौथी समस्या : अल्पसंख्यकों की समस्या :-
- भारत – विभाजन की योजना में यह नहीं कहा गया कि दोनों भागों से अल्पसंख्यकों का विस्थापन भी होगा । विभाजन से पहले ही दोनों देशों के बँटने वाले इलाकों में हिन्दु – मुस्लिम दंगे भड़क उठे ।
- पश्चिमी पंजाब में रहने वाले अल्पसंख्यक गैर मुस्लिम लोगों को अपना घर – बार , जमीन – जायदाद छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से पूर्वी पंजाब या भारत आना पड़ा । और इसी प्रकार मुसलमानों को पाकिस्तान जाना पड़ा ।
- लोगों के पुनर्वास को बड़े ही संयम ढंग से व्यावहारिक रूप प्रदान किया । शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सर्वप्रथम एक पुनर्वास मंत्रालय बनाया गया ।
भारत – विभाजन के परिणाम : –
- भारत – विभाजन के परिणामस्वरूप ही शरणार्थियों की समस्या पैदा हुई थी ।
- भारत के विभाजन की प्रक्रिया की दूसरी समस्या कश्मीर की समस्या है । भारत के विभाजन स्वरूप ही कश्मीर की समस्या पैदा हुई है ।
- भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप जो एक अन्य समस्या पैदा हुई , वह थी देशी रियासतों का स्वतंत्र भारत में विलय करना ।
- भारत के विभाजन के कारण राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भी पैदा हुई ।
- विभाजन की प्रक्रिया में भारत की भूमि का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि भारत की सम्पदा का भी बँटवारा हुआ ।
- लोगो को मजबूरन अपना घर छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा ।
- बड़े स्तर पर हिंसा का शिकार होना पड़ा ।
- अमृतसर और कोलकाता में सांप्रदायिक दंगे हुए ।
- लोगों को मजबूरन शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा ।
- औरतों को अगवा किया गया जबरन शादी करनी पड़ी धर्म बदलना पड़ा ।
- कई मामलों में लोगों ने परिवार की इज्जत बचाने के लिए खुद घर की बहू बेटियों को मार डाला ।
- 80 लाख लोगों को घर छोड़कर उनके सीमा पर आना पड़ा ।
- 5 से 10 लाख लोगों अपनी जान गवाई ।
रजवाड़ो का भारत मे विलय : –
🔹 स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था – ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासत । इन देशी रियासतों की संख्या लगभग 565 थी ।
🔹 रियासतों के शासकों को मनाने – समझाने में सरदार पटेल ( गृहमंत्री ) ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई और अधिकतर रजवाड़ो को उन्होंने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी किया था ।
रजवाड़ों के विलय में समस्या : –
🔹 आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजों ने कहा कि भारत ब्रिटिश प्रभुत्व से आजाद होने जा रहा है ऐसे में रजवाड़ों भी आजाद कर दिया जाएंगे और रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत में शामिल हो जाएं चाहे तो पाकिस्तान में या फिर स्वतंत्र रह सकते हैं ।
🔹 यह फैसला राजा को करना था जनता की इसमें कुछ नहीं चलनी थी । ऐसे में देश की एकता और अखंडता को खतरा मंडरा रहा था अगर रजवाड़े अलग होने की मांग करते हैं तो ना जाने देश के कितने टुकड़े हो जाते ।
🔹 त्रावणकोर के राजा ने सबसे पहले अपने राज्य को आजाद करने को कहा । अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने ऐसा किया । भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल होना नहीं चाहते थे ।
रजवाड़ों के विलय में सरदार पटेल जी की भूमिका : –
🔹भारत देश के छोटे – बड़े टुकड़े हो जाने की संभावना बनी ऐसे में सरकार ने कठोर फैसला लिया । मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया लोगों का कहना था कि रजवाड़ों को उनकी मनमर्जी का फैसला लेने के लिए छोड़ दिया जाए । सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी चतुराई और सूझबूझ से रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल कर लिया ।
देशी रियासतों के बारे में अहम बातें : –
- अधिकतर रजवाड़ो के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे ।
- भारत सरकार कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी जैसे – जम्मू कश्मीर ।
- विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय एकता और अखण्डता का प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण हो गया था ।
- अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे इस सहमति पत्र को ‘ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन ‘ कहा जाता है ।
- जूनागढ़ , हैदराबाद , कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय बाकी रियासतों की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ ।
हैदराबाद का विलय : –
🔹 हैदराबाद के शासक को ‘ निजाम ‘ कहा जाता था । उन्होंने भारत सरकार के साथ नवंबर 1947 में एक साल के लिए यथास्थिति बहाल रहने का समझौता किया ।
🔹 कम्युनिस्ट पार्टी और हैदराबाद कांग्रेस के नेतृत्व में किसानों और महिलाओं ने निजाम के खिलाफ आंदोलन शुरू किया । तेलंगाना के किसानों ने विशेष रूप से उसके खिलाफ आवाज उठाई । महिलाएँ भी बड़ी संख्या में इस आन्दोलन से जुड़ी । कम्युनिस्ट व हैदराबाद कांग्रेस इस आन्दोलन की अग्रिम पंक्ति में थे । आंदोलन को देख निजाम ने लोगों के खिलाफ एक अर्द्धसैनिक बल रवाना किया , जिसे ‘ रजाकार ‘ कहा जाता था ।
🔹 इसके जबाव में भारत सरकार ने सितंबर 1948 को सैनिक कार्यवाही के द्वारा निजाम को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया । इस प्रकार हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय हुआ ।
मणिपुर रियासत का विलय : –
🔹 मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता बनी रहे , इसको लेकर महाराजा बोधचंद्र सिंह व भारत सरकार के बीच विलय के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए ।
🔹 जनता के दबाव में निर्वाचन करवाया गया इस निर्वाचन के फलस्वरूप संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ ।
नोट :- मणिपुर भारत का पहला भाग है जहाँ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाकर जून 1948 में चुनाव हुए ।
🔹 मणिपुर की निर्वाचित विधानसभा से परामर्श किए बगैर भारत सरकार ने महाराज पर दबाव डाला कि वे भारतीय संघ में शामिल होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दे व इसमें भारत सरकार को सफलता भी मिली ।
सरदार पटेल तथा राष्ट्रीय एकता : –
🔹 भारत के प्रथम उप – प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल 1918 के खेड़ा सत्याग्रह तथा 1928 के बारदोली सत्याग्रह के पश्चात स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में उभरे ।
🔶 सरदार पटेल जी का महत्त्वपूर्ण योगदान : –
🔹 स्वतंत्रता के समय रजवाड़ों के एकीकरण की समस्या राष्ट्रीय एकता व भारत की अखंडता के लिए एक बड़ी चुनौती थी । ऐसे कठिन समय में सरदार पटेल ने सभी 565 देसी रियासतों के एकीकरण के साहसिक कार्य का उत्तरदायित्व लिया ।
🔹 सभी देसी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को लेकर भारत में लौह पुरूष के नाम से विख्यात सरदार पटेल का दृष्टिकाण स्पष्ट था । वे भारत की क्षेत्रीय अखंडता को लेकर कोई समझौता नहीं चाहते थे । उनके राजनीतिक अनुभव , कूटनीतिक कौशल और दूरदर्शिता के कारण 565 में से कई रियासतें भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही भारत में विलय के लिए अपनी सहमति दें चुकीं थीं ।
🔹 सरदार पटेल को एकीकरण में मुख्यतः तीन राज्यों हैदराबाद , जूनागढ़ तथा कश्मीर द्वारा चुनौतियों का सामना करना पड़ा । उन्हीं के नेतृत्व में भारतीय सेनाओं ने हैदराबाद तथा जूनागढ़ को भारत में विलय के लिए बाध्य किया ।
🔹 पाकिस्तान की मंशा , जो कि जिन्ना के विभाजनकारी “ द्विराष्ट्र सिद्धांत ” पर आधारित थी , से भली – भांति परिचित होने के कारण , सरदार पटेल की कश्मीर पर राय अन्य नेताओं से भिन्न थीं । हैदराबाद की भांति वें कश्मीर को भी सैन्य अभियान के द्वारा ही भारत में मिलाना चाहते थे । परंतु कुछ महत्वपूर्ण नेताओं के अदूरदर्शी राजनीतिक निर्णयों के कारण सरदार पटेल कश्मीर का भारत में पूरी तरह से विलय कराने में सफल नही हो पाए ।
🔹 तथापि सरदार पटेल सदैव एक ऐसे अद्भुत नेता के रूप में जाने जाते रहेंगे जो स्वयं में राष्ट्रवाद , परिवर्तक तथा यथार्थवाद के सम्मिश्रण थे जिन्हें भारतीय राजनीतिक इतिहास में एनसीआर ( NCR – Nationalist Catalyst Realist ) के रूप में जाना जाता है ।
राज्यों का पुनर्गठन : –
🔹 औपनिवेशिक शासन के समय प्रांतो का गठन प्रशासनिक सुविधा के अनुसार किया गया था , लेकिन स्वतंत्र भारत में भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता के आधार पर राज्यों के गठन की माँग हुई ।
नोट :- भाषा के आधार पर प्रांतो के गठन का राजनीतिक मुद्दा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन ( 1920 ) में पहली बार शामिल किया गया था ।
आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण : –
🔹 तेलगुभाषी , लोगों ने मांग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगुभाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्र प्रदेश बनाया जाए ।
🔹 आंदोलन के दौरान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता पोट्टी श्री रामुलू की लगभग 56 दिनों की भूख – हड़ताल के बाद मृत्यु हो गई ।
🔹 इसके कारण सरकार को दिसम्बर 1952 में आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा करनी पड़ी । इस प्रकार आंध्रप्रदेश भाषा के आधार पर गठित पहला राज्य बना ।
राज्य पुनर्गठन आयोग ( SRC ) : –
🔹 सरकार ने 29 दिसंबर 1953 को न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन पर विचार कर अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को शीघ्र प्रस्तुत करने के निर्देश के साथ राज्य पुनर्गठन आयोग के गठन की घोषणा की ।
🔹 इस आयोग के अन्य सदस्य स्व . श्री हृदयनाथ कुंजरु और के . एस . पणिक्कर थे । आयोग लगभग दो वर्ष तक सारे देश का भ्रमण कर सभी भाषायी संगठनों , बुद्धिजीवियों व राजनीतिज्ञों से विचार विमर्श कर 30 सितम्बर 1955 को 267 पृष्ठों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसमें देश की जनता की क्षेत्रीय भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रहित में एक संतुलित एवं समन्वित पुनर्गठित राज्यों की रूपरेखा प्रस्तुत करने हेतु निम्नलिखित सिफारिशें की :-
आयोग की प्रमुख सिफारिशे : –
🔹 त्रिस्तरीय ( भाग ABC ) राज्य प्रणाली को समाप्त किया जाए ।
🔹 केवल 3 केन्द्रशासित क्षेत्रों ( अंडमान और निकोबार , दिल्ली , मणिपुर ) को छोड़कर बाकी के केन्द्रशासित क्षेत्रों को उनके नजदीकी राज्यों में मिला दिया जाए ।
🔹 राज्यों की सीमा का निर्धारण वहाँ पर बोली जाने वाली भाषा होनी चाहिए ।
परिणाम : –
🔹 इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में प्रस्तुत की तथा इसके आधार पर संसद में राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 पारित किया गया और देश को 14 राज्यों एवं 6 संघ शासित क्षेत्रों में बाँटा गया ।
संघ शासित क्षेत्र जो बाद में राज्य बने : –
🔹 मिजोरम , मणिपुर , त्रिपुरा और गोवा आदि ।
Additional topics : –
वर्तमान संदर्भ में भारत में शरणार्थियों की स्थिति : –
🔹 पिछले कुछ वर्षों से भारत में शरणार्थियों की समस्या तेजी से बढ़ी है । बंग्लादेश एवं श्रीलंका से मानवीय कारणों के कारण भारत में शरणार्थियों का आगमन तेजी से बढ़ा है । इसके अलावा प्राकृतिक कारणों एवं औद्योगिक कारणों के चलते अंतरप्रांतीय स्तर पर विस्थापन की समस्या तेजी से बढ़ी है । युद्ध एवं आतंकवाद ने भी शरणार्थियों की समस्या को बढ़ाया है । बाढ़ , सूखे एवं बेरोजगारी के कारण भी विस्थापन में वृद्धि हुई है ।
🔹 वर्तमान में पर्यावरण शरणार्थियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है । इस समय राजस्थान , गुजरात , उड़ीसा , मध्यप्रदेश , आंध्रप्रदेश , कश्मीर आदि से पलायन कर दूसरे स्थान पर शरण लेकर अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए संघर्ष करने वाली जनसंख्या भी कम नहीं है । सूखे के कारण प्रतिवर्ष राजस्थान से काफी लोग पलायन करते हैं । प्राकृतिक व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ तथा प्राकृतिक साधनों का अविवेकपूर्ण दोहन पलायन को बढ़ा रहा है ।
आजाद कश्मीरं क्या है ?
🔹 आजाद कश्मीर , कश्मीर का वह हिस्सा है , जो कि पाकिस्तान के अवैध नियंत्रण में है । इस हिस्से को पाक अधिकृत कश्मीर भी कहते हैं ।
कश्मीर समस्या के उद्भव के कारण : –
🔶 बाह्य कारण :- पाकिस्तान का दावा है कि कश्मीर घाटी पाक का हिस्सा होना चाहिए । सन् 1947 में वहाँ पाकिस्तान ने कबायली हमला करवाया , जिसके फलस्वरूप राज्य का एक हिस्सा पाक नियंत्रण में आ गया । पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को ‘ आजाद कश्मीर ‘ कहा , वहीं भारत ने दावा किया कि वह क्षेत्र का अवैध अधिग्रहण है , सन् 1947 के पश्चात् कश्मीर दोनों देशों के बीच संघर्ष का एक बड़ा मुद्दा रहा है ।
🔶 आन्तरिक कारण :- भारतीय संघ में कश्मीर को लेकर आन्तरिक रूप से भी विवाद रहा है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 द्वारा कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान किए गए है । अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत इसे अन्य भारतीय राज्यों की अपेक्षा अधिक स्वायत्तता प्रदान की गयी है , राज्य में अपना संविधान है । संसद द्वारा पारित कानून राज्य में उसकी सहमति के पश्चात् ही लागू हो सकते हैं ।
🔹 कश्मीर की इस विशेष स्थिति के कारण दो विरोधी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न हुई है । एक वर्ग के लोगों का मानना है कि कश्मीर के 370 अनुच्छेद के धारा विशेष दर्जा देने की वजह से यह पूर्णरूपेण भारत के साथ नहीं जुड़ पाया है , अतः यह वर्ग चाहता है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करके कश्मीर को अन्य राज्यों की भाँति कर देना चाहिए । जबकि अधिकांश कश्मीरी लोगों के दूसरा वर्ग का कहना है कि वर्तमान में दी गयी स्वायत्तता पर्याप्त नहीं है ।
🔹 कश्मीर की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनमत संग्रह से समाधान की बात कही । लेकिन पाकिस्तान द्वारा कश्मीर अधिकृत भाग की स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुआ । अतः वहाँ जनमत संग्रह नहीं हो सका ।
नोट :- वर्तमान में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया । तथा इसे दो केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया जम्मू कश्मीर व लद्दाख ।
राष्ट्र निर्माण में जवाहरलाल नेहरू का दृष्टिकोण : –
🔹 पं . नेहरू देश का बौद्धिक विकास करने के पक्ष में थे , वे भारत को आधुनिक एवं विकसित राष्ट्र बनाना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग के विकास पर बल दिया , विशेषकर महिलाओं के सामाजिक , राजनीतिक एवं आर्थिक विकास पर ।
🔹 पं . नेहरू देश निर्माण के लिए औद्योगीकरण के पक्ष में थे । उन्होंने राजनीतिक एवं आर्थिक समस्याओं को धार्मिक आधार की अपेक्षा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा , उन्होंने विज्ञान तथा औद्योगीकरण का मानवतावादी सहिष्णुता तथा करुणा के आदर्शों के साथ तालमेल करने पर बल दिया ।
🔹 इस प्रकार राष्ट्र – निर्माण के लिए वैज्ञानिक एवं आधुनिक दृष्टिकोण का अपनाना पं . जवाहरलाल नेहरू की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।