12 Class Political Science Chapter 4 सत्ता के समकालीन केंद्र Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | सत्ता के समकालीन केंद्र |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
Class 12 Political Science Chapter 4 सत्ता के समकालीन केंद्र Notes in Hindi इस अध्याय मे हम संगठन – यूरोपीय संघ , आसियान , सार्क , ब्रिक्स । राज्य – रूस , चीन , इज़राइल , भारत , जापान और दक्षिण कोरिया के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
सत्ता के नए केन्द्र से अभिप्राय : –
🔹 सोवियत संघ के विभाजन के बाद विश्व में अमेरिका का वर्चस्व कायम हो गया है । कुछ देशों के संगठनों का उदय सत्ता के नए केन्द्र के रूप में हुआ है । ये संगठन अमरीका के प्रभुत्व को सीमित करेंगे क्योंकि ये संगठन राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली हो रहे है ।
सत्ता के नए केन्द्र का अर्थ : –
🔹 शीत युद्ध के पश्चात विश्व में विश्व पटल पर कुछ ऐसे संगठनों तथा देशों ने प्रभावशाली रूप से अंतराष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करना प्रारम्भ किया , जिससे यह स्पष्ट होने लगा कि यह संगठन तथा देश अमेरिका की एक ध्रुवीयता के समक्ष विकल्प के रूप में देखे जा सकते हैं । विश्व राजनीति में दो ध्रुवीय व्यवस्था के टूटने के बाद स्पष्ट हो गया कि राजनैतिक और आर्थिक सत्ता के नए केंद्र कुछ हद तक अमेरिका के प्रभुत्व को सीमित करेंगे ।
क्षेत्रीय संगठन : –
🔹 क्षेत्रीय संगठन प्रभुसत्ता सम्पन्न देशों के स्वैच्छिक समुदायों की एक संधि है , जो निश्चित क्षेत्र के भीतर हो तथा उन देशों का सम्मिलित हित हो जिनका प्रयोजन उस क्षेत्र के संबंध में आक्रामक कार्यवाही न हो ।
- संगठन :- यूरोपीय संघ , आसियान , ब्रिक्स , दक्षेस
- देश :- रूस , चीन , जापान , भारत , इजरायल , जापान और दक्षिण कोरिया
क्षेत्रीय संगठन के उद्देश्य : –
- सदस्य देशों में एकता की भावना का मजबूत होना ।
- क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा ।
- सदस्यों के बीच आपसी व्यापार को बढ़ाना ।
- क्षेत्र में शांति और सौहार्द को बढ़ाना ।
- विवादों को आपसी बातचीत द्वारा निपटाना ।
मार्शल योजना : –
🔹 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप को बहुत नुकसान पहुँचा । अमरीका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त जबरदस्त मदद की । इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है ।
🔹 मार्शल योजना के तहत 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई । जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद दी गई । यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक – दूसरे की मदद शुरू की ।
❄️ संगठन ❄️
यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन : –
🔹 1948 में मार्शल योजना के तहत यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई । जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद की गई ।
🔹 1957 में छः देशो – फ्रांस , पश्चिम जर्मनी , इटली , बेल्जियम , नीदरलैंड और – लक्जमबर्ग ने रोम संधि के माध्यम से यूरोपीय आर्थिक समुदाय और यूरोपीय एटमी ऊर्जा समुदाय का गठन किया ।
🔹 जून 1979 में यूरोपीय पार्लियामेंट के गठन के बाद यूरोपीय आर्थिक समुदाय ने राजनीतिक स्वरूप लेना शुरू कर दिया था ।
यूरोपीय आर्थिक समुदाय के उद्देश्य : –
- उन सभी विवादों को समाप्त करना जिन्होंने यूरोप को विभाजित कर रखा है ।
- यूरोपीय प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए अनुकूल भूमिका निभाना ।
यूरोपीय संघ का गठन : –
- फरवरी 1992 में मास्ट्रिस्ट संधि के द्वारा यूरोपीय संघ का गठन हुआ ।
यूरोपीय संघ : –
🔹 यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है । यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में हुई थी । यूरोपीय संघ का अपना झंडा , गान तथा स्थापना दिवस है । यूरोपीय देशों की अपनी मुद्रा है , जिसे ‘ यूरो ‘ कहते हैं , यूरोपीय संघ में निरंतर नए सदस्यों का समावेश होता रहता है , जिससे हम पता लगा सकते हैं कि यूरोपीय संघ कितना प्रभावशाली है । इसके पास परमाणु हथियार हैं । यूरोपीय संघ के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है ।
नोट :- यूरोपीय संघ ने 2003 में अपना संविधान बनाने का प्रयास किया लेकिन उसमें असफल रहा ।
यूरोपीय संघ के सदस्य देश : –
🔶 यूरोपीय संघ के पुराने सदस्य : ऑस्ट्रिया , बेल्जियम , डेनमार्क , फिनलैंड , फ्रांस , जर्मनी , ग्रीस , आयरलैंड , इटली , लक्जमबर्ग , माल्टा , नीदरलैंड , पुर्तगाल , स्वीडन , स्पेन । ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से जून 2016 में एक जनमत संग्रह के द्वारा अलग होने का निर्णय किया जिसे ब्रेक्जिट कहा जाता है अब यह यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है जनवरी 2020 में यह यूरोपीय संघ से अलग हो गया । यह पुराने सदस्यों में से एक सदस्य देश था ।
🔶 यूरोपीय संघ के नए सदस्य : एस्तोनिया , लातविया , लिथुआनिया , पोलैंड , चेक गणराज्य , रोमानिया , स्लोवाकिया , हंगरी , क्रोशिया , बुल्गारिया , साइप्रस , स्लोवेनिया ।
🔹 यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की वर्तमान में संख्या 27 है ।
यूरोपीय संघ के गठन के उद्देश्य : –
- एक समान विदेश व सुरक्षा नीति ।
- आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मामलों पर सहयोग ।
- एक समान मुद्रा का चलन ।
- वीजा मुक्त आवागमन ।
यूरोपीय संघ की विशेषताएँ : –
- यूरोपीय संघ ने आर्थिक सहयोग वाली संस्था से बदलकर राजनैतिक संस्था का रूप ले लिया है ।
- यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह कार्य करने लगा है ।
- इसका अपना झंडा , गान , स्थापना दिवस और अपनी एक मुद्रा है ।
- अन्य देशों से संबंधों के मामले में इसने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति बना ली है ।
- यूरोपीय संघ का झंडा 12 सोने के सितारों के घेरे के रूप में वहाँ के लोगों की पूर्णता , समग्रता , एकता और मेलमिलाप का प्रतीक है ।
यूरोपीय संघ को ताकतवार बनाने वाले कारक या विशेषताएँ : –
- 2005 में यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और इसका सकल घरेलू उत्पादन अमरीका से भी ज्यादा था ।
- इसकी मुद्रा यूरो , अमरीकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन गई है ।
- विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमेरिका से तीन गुना ज्यादा है ।
- इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव यूरोप , एशिया और अफ्रीका के देशों पर है ।
- यह विश्व व्यापार संगठन के अंदर एक महत्वपूर्ण समूह के रूप में कार्य करता है ।
- इसका एक सदस्य देश फ्रांस सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है ।
- इसके चलते यूरोपीय संघ अमरीका समेत सभी राष्ट्रों की नीतियों को प्रभावित करता है ।
- यूरोपीय संघ का सदस्य देश फ्रांस परमाणु शक्ति सम्पन्न है ।
- अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक , राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है ।
यूरोपीय संघ की कमजोरियाँ : –
- इसके सदस्य देशों की अपनी विदेश और रक्षा नीति है जो कई बार एक – दूसरे के खिलाफ भी होती हैं । जैसे – इराक पर हमले के मामले में ।
- यूरोप के कुछ हिस्सों में यूरो मुद्रा को लागू करने को लेकर नाराजगी है ।
- डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्स संधि और साझी यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का विरोध किया ।
- यूरोपीय संघ के कई सदस्य देश अमरीकी गठबंधन में थे ।
- ब्रिटेन यूरोपीय संघ से जून 2016 मे एक जनमत संग्रह के द्वारा अलग हो गया है ।
एक आर्थिक समुदाय के रूप में बने यूरोपीय संघ ने एक राजनीतिक संगठन का रूप कैसे ले लिया ?
- यूरोपीय संघ एक राज्य की भाँति है जिसका अपना झण्डा , गान एवं स्थापना दिवस है ।
- यूरोपीय संसद के गठन के कारण ।
- सोवियत संघ के विघटन के बाद 1992 में यूरोपीय संघ का गठन ।
- एक मुद्रा , समान विदेश एवं सुरक्षा नीति , न्याय एवं घरेलू मामलों पर आपसी सहयोग ।
🔹 इन कारणो के कारण यूरोपीय संघ ने एक राजनीतिक संगठन का रूप लिया ।
यूरोपीय संघ एक अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में कैसे उभरा ?
- सबसे पुराना संगठन जो इसे स्थायित्व और प्रभावकारी बनाता है ।
- समान राजनीतिक रूप जैसे – झंडा , गान , स्थापना दिवस और मुद्रा ।
- यूरोपीय संघ की सहयोग की नीति ।
- विश्व व्यापार में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी अमरीका से तीन गुना अधिक हैं ।
- इसके पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है । उसका रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है ।
- ब्रिटेन तथा फ्रांस संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य है ।
🔹 इन कारणो से यूरोपीय संघ एक अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में उभरा ।
आसियान ( ASEAN ) : –
- आसियान का नाम ( in English ) :- Association of Southeast Asian Nations
- आसियान का नाम ( in hindi ) :- दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन
- स्थापना :- 1967 में पाँच देशों ने बैंकॉक घोषणा पर हस्ताक्षर करके ‘ आसियान ‘ की स्थापना की ।
- संस्थापक देश :- ये देश थे इंडोनेशिया , मलेशिया , फिलिपींस , सिंगापुर और थाईलैंड ।
- बाद में शामिल देश :- बाद के वर्षों में ब्रुनेई , दारुस्सलाम , वियतनाम , लाओस , म्यांमार और कंबोडिया भी आसियान में शामिल हो गए तथा इसकी सदस्य संख्या दस हो गई ।
- आसियान का झंडा :- आसियान के प्रतीक चिह्न में धान की दस बालियाँ दक्षिण – पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती हैं जो आपस में मित्रता और एकता के धागे से बंधे हैं । वृत्त आसियान की एकता का प्रतीक है ।
आसियान के मुख्य उद्देश्य :-
- सदस्य देशों के आर्थिक विकास को तेज करना ।
- इसके द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक विकास हासिल करना ।
- कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों का पालन करके क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना ।
आसियान शैली : –
🔹 अनौपचारिक , टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल – मिलाप का नया उदाहरण पेश करके आसियान ने काफी यश कमाया है । इसे ही ‘ आसियान शैली ‘ कहा जाने लगा ।
आसियान के प्रमुख स्तंभ : –
- आसियान सुरक्षा समुदाय
- आसियान आर्थिक समुदाय
- सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय
🔶 आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है ।
🔶 आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है ।
🔶 आसियान सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय का उद्देश्य है कि आसियान देशों के बीच टकराव की जगह बातचीत और सहयोग को बढ़ावा दिया जाए ।
आसियान का विजन दस्तावेज 2020 : –
🔹 आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है । इसके विजन दस्तावेश 2020 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है । आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही यह बात निकली है ।
आसियान विजन -2020 की मुख्य बातें या विशेषताएं : –
- आसियान विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गयी है ।
- आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा समस्याओं के हल निकालने को महत्व देना । इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को सम्भाला है ।
- आसियान की असली ताकत अपने सदस्य देशों , सहभागी सदस्यों और बाकी गैर – क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श करने की नीति में है ।
आसियान क्षेत्रीय मंच : –
🔹 1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गई । जिसका उद्देश्य देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाना है ।
आसियान की उपयोगिता या प्रासंगिकता : –
- आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति खासतौर से भारत और चीन जैसे तेजी से विकसित होने वाले एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश के मामले में प्रदर्शित होती है ।
- आसियान ने निवेश , श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर भी ध्यान दिया है । अमरीका तथा चीन ने भी मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में रूचि दिखाई है ।
- आसियान की असली ताकत अपने सदस्य देशों , सहभागी सदस्यों और बाकी गैर- क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरंतर संवाद और परामर्श करने की नीति में है ।
- यह एशिया का एकमात्र ऐसा संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए मंच उपलब्ध कराता है ।
आसियान और भारत : –
🔹 1991 के बाद भारत ने ‘ पूरब की ओर देखो ‘ की नीति अपनाई है । भारत ने आसियान के दो सदस्य देशों सिंगापुर और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है ।
🔹 2009 में भारत ने आसियान के साथ ‘ मुक्त व्यापार समझौता किया । जो 1 जनवरी 2010 से लागू हुआ ।
🔹 हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने आसियान देशों की यात्रा की तथा विभिन्न क्षेत्रों सहयोग बढ़ाने पर समझौते किए तथा ‘ पूर्व की ओर देखो ‘ नीति के स्थान पर पूर्वोत्तर कार्यनीति ‘ ( एक्ट ईस्ट पॉलिसी ) की संकल्पना प्रस्तुत की । इसी के अंतर्गत वर्ष 2018 के गणतंत्र दिवस समारोह में आसियान देशों के राष्ट्रध्यक्षों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था ।
- 2018 सिंगापुर में हुए 33 वां आसियान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाग लिया ।
- 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैंकाक में आयोजित आसियान शिखर सम्मेलन भी भाग लिया ।
- 17 वें आसियान – भारत शिखर सम्मेलन 12 नवंबर 2020 को VIRTUAL आयोजित किया गया ।
पूरब की ओर देखो नीति : –
🔹 भारत ने 1991 से पूरब की ओर देखो नीति अपनायी । इससे पूर्वी एशिया के देशों जैसे आसियान , चीन जापान और दक्षिण कोरिया से उसके आर्थिक संबंधों में बढ़ोतरी हुई ।
ब्रिक्स : –
🔹 5 देशों का समूह है जो विश्व की अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रयोग किया जाता है । ब्रिक्स की स्थापना 2006 में रूस में की गई । वर्ष 2009 में अपनी प्रथम बैठक में दक्षिण अफ्रीका के समावेश के बाद ब्रिक् , ब्रिक्स में परिवर्तित हो गया ।
🔹 ब्रिक्स शब्द क्रमश :- ब्राजील , रूस , भारत , चीन , दक्षिण अफ्रीका को संदर्भित करता है ।
- B – Brazil
- R – Russia
- I – India
- C – China
- S – South Africa
ब्रिक्स की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य : –
🔹 प्रत्येक राष्ट्र की आंतरिक नीतियों तथा परस्पर समानता में अहस्तक्षेप के अतिरिक्त इसके सदस्य देशों के मध्य सहयोग तथा पारस्परिक आर्थिक लाभ का वितरण करना है ।
🔹 विश्व राजनीति में , ब्रिक्स अंतराष्ट्रीय स्थिरता को बनाए रखने और वैश्विक आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने और बहुध्रुवीय दुनिया का एकजुट केन्द्र बनने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है ।
ब्रिक्स के सम्मेलन : –
- ब्रिक्स का 11 वां सम्मेलन 2019 में ब्राजील में सम्पन्न हुआ , जिसकी अध्यक्षता ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने की ।
- ब्रिक्स का 12 वां सम्मेलन 2020 में रूस में ऑनलाइन आयोजित हुआ । रूस ब्रिक्स का मेजबान और अध्यक्ष था ।
13 वां BRICS शिखर सम्मेलन : –
- 13 वां ब्रिक्स वार्षिक शिखर सम्मेलन 9 सितंबर 2021 को वर्चुअल माध्यम ये आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने की ।
- इस सम्मेलन का विषय – निरतंरता , समेकन और आम सहमति हेतु ब्रिक्स के बीच सहयोग था ।
- ‘ Counter Terrorism Action Plan ‘ आतंकवाद को रोकने के लिए अपनाया गया ।
- इस सम्मेलन में पहली बार डिजीटल हेल्थ की चर्चा की गई जिसमें तकनीक के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराना है ।
- वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा के मसलों पर आम सहमति से चर्चा हुई ।
- पर्यावरण को संरक्षित करने हेतु भी चर्चा हुई ।
दक्षेस ( SAARC ) :-
SAARC | South Asian Association for Regional Corporation |
दक्षेश | दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन |
स्थापना | 1985 |
मुख्यालय | काठमांडू (नेपाल) |
सदस्य | भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्री लंका, मालदीव अफगानिस्तान (2007 में शामिल) |
🔹 दक्षिण एशियाई देशों ने आपस में सहयोग के लिए सन् 1985 में दक्षेस ( SAARC – साउथ एशियन एसोशियन फॉर रिजनल कोऑपरेशन ) की स्थापना की ।
दक्षेस SAARC के उद्देश्यों :-
- दक्षिण एशिया के देशों में जनता के विकास एवं जीवन स्तर में सुधार लाना ।
- आत्मनिर्भरता का विकास ।
- आर्थिक विकास करना ।
- सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास करना ।
- आपसी सहयोग ।
- आपसी विवादों का निपटारा ।
- आपसी विश्वास बढ़ाकर व्यापार को बढ़ावा देना ।
दक्षेस SAARC के सम्मेलन : –
- 2005 में 13वें सार्क शिखर सम्मेलन ढाका में अफगानिस्तान को सार्क में शामिल करने पर सहमति बनी ।
- 2007 के 14वें शिखर सम्मेलन ( नई दिल्ली ) में अफगानिस्तान पहली बार सार्क शिखर सम्मेलन में शामिल हुआ ।
- वैश्वीकरण के दौर में हुए सार्क सम्मेलनों में जलवायु परिवर्तन , आपदा प्रबन्धन एवं आतंकवाद की समाप्ति संबंधी तथा इस क्षेत्र में व्यापार एवं विकास को बढ़ावा देने हेतु कई समझौतो पर हस्ताक्षर हुए हैं ।
- सार्क का 18वाँ शिखर सम्मेलन 26 – 27 नवम्बर 2014 को नेपाल की राजधानी काठमांडू में सम्पन्न हुआ जिसका विषय शांति एवं समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध एकजुटता था ।
19 वां सार्क शिखर सम्मेलन : –
- 15-16 नवंबर 2016 को 19 वां सार्क शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद , पाकिस्तान में आयोजन किया जाना तय था ।
- कश्मीर में हुए आतंकवादी ‘ उरी हमले ‘ के विरोध में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया ।
- बांग्लादेश , अफगानिस्तान , भूटान , मालद्वीव और श्रीलंका ने भी सम्मेलन में भाग नहीं लिया ।
सार्क की उपलब्धियाँ :-
- भारत व पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बावूजद भी द्विपक्षीय स्तर पर समझ और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए छोटे देशों के लिए अभी भी उपयोगी संगठन है ।
- साफ्टा को बनाकर व्यापार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है ।
- पर्यावरण , आर्थिक विकास व ऊर्जा आदि क्षेत्रों में सहयोग की बात की है ।
दक्षेस ( साक ) की चुनौतियाँ : –
- सार्क के सदस्य देशों की बैठकों में कमी ।
- 15-16 नवंबर 2016 को 19 वां सार्क शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद में आयोजन किया जाता तय था ।
- कश्मीर में हुए आतंकवादी ‘ उरी हमले ‘ के विरोध में भारत ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया ।
- बांग्लादेश , अफगानिस्तान , भूटान , मालदीव और श्री लंका ने भी सम्मेलन में भाग नहीं लिया ।
BIMSTEC :-
- BIMSTEC ( Bay of Bengal Intiative for multi sectoral Technical and Economic Cooperation ) बंगाल की खाड़ी बहु – क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम इसके सदस्य देश , बांग्लादेश , भारत , बर्मा , श्रीलंका , थाईलैण्ड , भूटान और नेपाल है ।
- वर्तमान में भारत बिम्सटेक ( BIMSTEC ) पर अधिक बल दे रहा है , इसके वरिष्ठ अधिकारियों की 17 वीं बैठक फरवरी 2017 में काठ मांडू ( नेपाल ) में आयोजित की गई ।
- इस बैठक में व्यापार और निवेश , उर्जा प्रौद्योगिकी , मत्सयपालन , जलवायु परिवर्तन , संस्कृति , लोगों के बीच संपर्क और अन्य क्षेत्रों के बारे में चर्चा की गई ।
SAFTA :-
SAFTA | South Asian Free Trade Area |
साफ्टा | दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र |
लागु हुआ | 2006 में |
🔹 जनवरी 2004 में आयोजित 12वें शिखर सम्मेलन में सार्क देशों ने ऐतिहासिक दक्षिणी एशियाई मुक्त व्यापार सौदा ( SAFTA ) समझौते पर हस्ताक्षर किये , जो 1 जनवरी 2006 से प्रभावी हुआ ।
🔹 इस समझौते के दो मुख्य उद्देश्य है ।
- दक्षिण एशियाई क्षेत्र युक्त व्यापार संबंधी बाधाओं को दूर करना ।
- व्यापार एवं प्रशुल्क प्रतिबंधों के सभी प्रकारों को समाप्त करने का प्रयास करते हुए अधिक उदार व्यवस्था स्थापित करना ।
🔹 भारत के अपने पेड़ोसी देशों के साथ जिनमें पाकिस्तान , नेपाल , बांग्लादेश एवं श्रीलंका प्रमुख है , इनमें से यदि पाकिस्तान को छोड़ दिया जाये तो बाकी राष्ट्रों के साथ भारत के संबंध कमोबेश मधुर बने हुए हैं ।
🌍 देश 🌍
रूस : –
- सोवियत संघ के विघटन से पूर्व रूस सोवियत संघ का सबसे वृहत भाग था ।
- 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना ।
- वैश्विक पटल पर यह एक शक्तिशाली राज्य है , इसके पास खनिजों प्राकृतिक संसाधनों तथा गैसों का अपार भंडार है ।
- परिष्कृत शस्त्रों के विशाल भंडार हैं ।
- रूस परमाणु शक्ति संपन्न राज्य है ।
- यह संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद , जिसे पी -5 भी कहा जाता है , का एक स्थाई सदस्य भी है ।
रूस की आर्थिक विशेषताएँ : –
- दुनिया की 11 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है ।
- इसकी अर्थव्यवस्था मूल रूप से प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादन और निर्यात के लिए उन्मुख है ( ज्यादातर तेल ) ।
- अपने उन्नत संसाधनों के कारण यह विश्व में एक मजबूत देश के रूप में स्थापित है लेकिन आर्थिक विकास के मामले में
- यह अमेरिका से अभी भी काफी पीछे है ।
रूस की राजनीतिक विशेषताएँ : –
- 1993 का संविधान इसको एक गणतांत्रिक सरकार के साथ लोकतांत्रिक , संघात्मक , कानून आधारित देश घोषित करता है ।
- यह UNO का एक स्थायी सदस्य है और इसके पास वीटो पावर है ।
- यहां के वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन है ।
- यहां पर भी सामान्य रूप से चुनाव होते है और नेताओ को चुना जाता है ।
रूस की सैन्य विशेषताएँ : –
- इसके पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है ।
- यह एक परमाणु संपन्न देश है ।
- तकनीक के विकसित होने के कारण इसके पास बहुत आधुनिक हथियार मौजूद है ।
- यह हथियारों का एक बहुत बड़ा निर्यातक देश है भी है ।
- कुल रूसी हथियारों के निर्यात में भारत का 25 % हिस्सा है ।
- इसकी सेना ने आधुनिकीकरण की दिशा में प्रगति करना जारी रखा है ।
- इसके पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट भी है ।
चीन : –
🔹 1949 की क्रांति के द्वारा चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई । शुरू में यहाँ साम्यवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया गया था । लेकिन इसके कारण चीन को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा
माओ के नेतृत्व में चीन का विकास : –
- चीन ने समाजवादी मॉडल खड़ा करने के लिए विशाल औद्योगिक अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपने सारे संसाधनों को उद्योग में लगा दिया ।
- चीन अपने नागरिको को रोजगार , स्वास्थ्य सुविधा और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के मामले में विकसित देशों से भी आगे निकल गया लेकिन बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधा उत्पन्न कर रही थी ।
- कृषि परम्परागत तरीकों पर आधारित होने के कारण वहाँ के उद्योगों की जरूरत को पूरा नहीं कर पा रही थी ।
चीन में सुधारों की पहल : –
- चीन ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया ।
- 1973 में प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने कृषि , उद्योग , सेवा और विज्ञान – प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे ।
- 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुलेद्वार की नीति का घोषणा की ।
- 1982 में खेती का निजीकरण किया गया ।
- 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया गया । इसके साथ ही चीन में विशेष आर्थिक क्षेत्र ( स्पेशल इकॉनामिक जोन- SEZ ) स्थापित किए गए ।
- चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया । इस तरह दूसरे देशों के लिए अपनी अर्थव्यवस्था खोलने की दिशा में चीन ने एक कदम और बढ़ाया हैं ।
चीनी सुधारों का नकारात्मक पहलू : –
- वहाँ आर्थिक विकास का लाभ समाज के सभी सदस्यों को प्राप्त नहीं हुआ ।
- पूँजीवादी तरीकों को अपनाए जाने से बेरोजगारी बढ़ी है ।
- वहाँ महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात संतोषजनक नहीं है ।
- गाँव व शहर के और तटीय व मुख्य भूमि पर रहने वाले लोगों के बीच आय में अंतर बढ़ा है ।
- विकास की गतिविधियों ने पर्यावरण को काफी हानि पहुँचाई है ।
- चीन में प्रशासनिक और सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार बढ़ा ।
भारत : –
- 21 वीं सदी में भारत को एक ‘ उदयीमान वैश्विक शक्ति ‘ के रूप में देखा जा रहा है ।
- एक बहुआयामी दृष्टिकोण से विश्व भारत की शक्ति तथा उसके उदय का अनुभव कर रहा है ।
- भारत की जनसंख्या लगभग 135 करोड़ है ।
- भारत की आर्थिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्थिति बहुत सुदृढ़ है ।
आर्थिक परिप्रेक्ष्य ( भारत ) : –
🔹 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य , एक विशाल प्रतिनिधि व्यापार केन्द्र तथा संपूर्ण विश्व में 200 मिलियन भारतीय प्रवासियों के साथ भारत की प्राचीन समावेशी संस्कृति भारत को 21 वीं शताब्दी में शक्ति के एक नए केन्द्र के रूप में एक विशिष्ट अर्थ तथा महत्व प्रदान करती है ।
सामरिक दृष्टिकोण ( भारत ) : –
🔹 भारत की सैन्य शक्ति , परमाणु तकनीक के साथ इसे आत्मनिर्भर बनाती है ।
विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी ( भारत ) : –
🔹 विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में ‘ मेक इन इंडिया ‘ योजना भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बना सकती है । यहसभी परिवर्तन वर्तमान विश्व में भारत को शक्ति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बनाते हैं ।
चीन के साथ भारत के संबंध : विवाद के क्षेत्र में : –
- 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के संबंध एकदम बिगड़ गये ।
- चीन ने 1962 में लद्दाख और अरूणचल प्रदेश पर अपने दावे को जबरन स्थापित करने के लिए भारत पर आक्रमण किया ।
- चीन द्वारा पाकिस्तान को मदद देना ।
- चीन भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध करता है ।
- बांग्लादेश तथा म्यांमार से चीन के सैनिक संबंध को भारतीय हितो के खिलाफ माना जाता है ।
- संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकी संगठन जैश – ए – मुहम्मद पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रस्ताव को पेश किया । चीन द्वारा वीटो पावर का प्रयोग करने से यह प्रस्ताव निरस्त हो गया ।
- भारत ने अजहर मसूद के आतंवादी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव पेश किया , जिस पर चीन ने वीटो पावर का प्रयोग किया ।
- चीन की महत्वाकांक्षी योजना Ones Belt One Road , जो कि POK से होती हुई गुजरेगी , उसे भारत को घेरने की रणनीति के तौर पर लिया जा रहा है ।
- वर्ष 2017 में भूटान के भू – भाग , परन्तु भारत के लिए सामरिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण डोकलाम पर अधिपत्य के दावे को लेकर दोनों देशों के मध्य लंबा विवाद चला जिससे दोनों देशों के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गये । परंतु इस विवाद के समाधान के लिए भारत के धैयपूर्ण प्रयासों और भारत के रूख को वैश्विक स्तर पर सराहा गया ।
चीन के साथ भारत के संबंध : सहयोग का दौर ( क्षेत्र ) : –
- 1970 के दशक में चीनी नेतृत्व बदलने से अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख हो रहे है ।
- 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने चीन की यात्रा की जिसके बाद सीमा विवाद पर यथास्थिति बनाए रखने की पहल की गई ।
- दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान – प्रदान , विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने हेतु समझौते किए गए है ।
- 1999 से द्विपक्षीय व्यापार 30 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है । विदेशों में ऊर्जा सौदा हासिल करने के मामलों में भी दोनों देश सहयोग द्व रा हल निकालने पर राजी हुए है ।
- वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी है ।
इजराइल : –
🔹 विश्व मानचित्र में एक बिंदु के समकक्ष प्रतिबिंबित इजराइल , अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी , रक्षा तथा गुप्तचर मामलों में 21 वी शताब्दी के विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उदित हुआ है ।
🔹 पश्चिम एशियाई देशों की ज्वलंत राजनीति के मध्य स्थित , इजराइल अपनी अदस्य क्षमता , रक्षा कौशल , तकनीकी नवाचार , औद्योगिकीकरण तथा कृषि विकास के कारण वैश्विक राजनीतिक क्षेत्र में नई ऊंचाईयों पर पहुंच गया है ।
🔹 प्रतिकूलता के विरूद्ध निरंतरता के सिद्धांत से मार्गदर्शक एक सूक्ष्म यहूदी – सियोनवादी राष्ट्र अर्थात इजरायल सामान्य रूप से समकालीन वैश्विक राजनीति में तथा विशिष्ट रूप में अरब प्रभुत्वशील पश्चिम एशियाई राजनीति में एक विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करता है ।
इजराइल सत्ता का नया केंद्र बनकर उभरने के कारण : –
- इजरायल की मजबूत अर्थव्यवस्था
- विज्ञान प्रौद्योगिकी में उन्नत तकनीक
- रक्षा तथा गुप्तचर मामलों में अग्रणीय
- तकनीकी क्षेत्र में नवाचार का उपयोग
- औद्योगिकीकरण तथा कृषि विकास में अग्रणी
जापान : –
🔹 जापान के पास प्राकृतिक संसाधन कम हैं और वह ज्यादातर कच्चे माल का आयात करता है । इसके बावजूद दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान ने बड़ी तेजी से प्रगति की ।
- जापान 1964 में आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन / ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकॉनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट ( OECD ) का सदस्य बन गया ।
- 2017 में जापान की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है ।
- एशिया के देशों में अकेला जापान ही समूह – 7 ( G -7 ) के देशों में शामिल है ।
- आबादी के लिहाज से विश्व में जापान का स्थान ग्यारहवाँ है ।
- परमाणु बम की विभीषिका झेलने वाला एकमात्र देश जापान है ।
- जापान संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में 10 प्रतिशत का योगदान करता ।
- संयुक्त राष्ट्रसंघ के बजट में अंशदान करने के लिहाज से जापान दूसरा सबसे बड़ा देश है ।
- 1951 से जापान का अमरीका के साथ सुरक्षा – गठबंधन है ।
- जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार ” राष्ट्र के संप्रभु अधिकार के रूप में युद्ध को तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में बल प्रयोग अथवा धमकी से काम लेने के तरीके का जापान के लोग हमेशा के लिए त्याग करते हैं ।
- ” जापान का सैन्य व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1 प्रतिशत है फिर भी सैन्य व्यय के लिहाज से विश्व में जापान का स्थान सातवां है ।
दक्षिण कोरिया : –
- कोरियाई प्रायद्वीप को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में दक्षिण कोरिया ( रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया ) और उत्तरी कोरिया ( डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया ) में 38 वें समानांतर के साथ – साथ विभाजित किया गया था ।
- 1950-53 के दौरान कोरियाई युद्ध और शीत युद्ध काल की गतिशीलता ने दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंदिता को तेज़ कर दिया ।
- अंतत : 17 सितंबर 1991 को दोनों कोरिया संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बने । इसी बीच दक्षिण कोरिया एशिया में सत्ता के केंद्र के रूप में उभरा ।
- 1960 के दशक से 1980 के दशक के बीच इसका आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से विकास हुआ , जिसे “ हान नदी पर चमत्कार “ कहा जाता है ।
- अपने सर्वांगीण विकास को संकेतित करते हुए , दक्षिण कोरिया 1996 में ओईसीडी का सदस्य बन गया ।
- 2017 में इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सैन्य खर्च में इसका दसवां स्थान है ।
- मानव विकास रिपोर्ट 2016 के अनुसार दक्षिण कोरिया का एचडीआई रैंक 18 है ।
- इसके उच्च मानव विकास के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों में ” सफल भूमि सुधार , ग्रामीण विकास , व्यापक मानव संसाधन विकास , तीव्र न्यायसंगत आर्थिक वृद्धि “ शामिल है ।
- अन्य कारकों में निर्यात उन्मुखीकरण , मज़बूत पुनर्वितरण नीतियाँ , सार्वजनिक अवसंरचना विकास , प्रभावी संस्थाएँ और शासन हैं ।
- सैमसंग , एलजी और हुंडई जैसे दक्षिण कोरियाई ब्रांड भारत में प्रसिद्ध हो गए हैं ।
- भारत और दक्षिण कोरिया के बीच कई समझौते उनके बढ़ते वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाते हैं ।