समाजशास्त्र कक्षा 12 अध्याय 2 प्रश्न और उत्तर: भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | समाजशास्त्र |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत के बुनियादी तर्क को स्पष्ट कीजिए। संक्रमण अवधि ‘जनसंख्या विस्फोट’ के साथ क्यों जुड़ी है?
उत्तर 1: जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत यह बताता है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के सभी स्तरों से जुड़ी होती है तथा प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है। जनसंख्या वृद्धि की तीन आधारभूत अवस्थाएँ होती हैं-
प्रथम अवस्था प्राथमिक अवस्था (अल्प-विकसित देश)
- चूँकि ये देश अल्प-विकसित तथा तकनीकी रूप से पिछड़े होते हैं, अतः समाज में जनसंख्या की वृद्धि कम होती है।
- इस तरह के समाजों में, जैसे कि अफ्रीका-जन्म-दर उच्च होती है, क्योंकि लोग छोटे परिवार से होने वाले लाभों से अनभिज्ञ होते हैं। वे शिक्षित नहीं होते।
- मृत्यु-दर भी उच्च होती है, क्योंकि स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं। अतएव, जनसंख्या कम होती है।
तृतीयक अवस्था (विकसित देश) जन्म-दर कम होती है क्योंकि लोग शिक्षित और जागरूक होते हैं। तथा गर्भ निरोधी उपायों का प्रयोग करते हैं। स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के कारण मृत्यु-दर भी कम होती है। अतः जनसंख्या कम होती है। संक्रमण की अवस्था (पिछड़ापन तथा निपुण जनसंख्या के बीच की अवस्था) – इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि की दर काफी ऊँची होती है, जबकि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, पोषण तथा आधुनिक चिकित्सा तकनीक के कारण मृत्यु-दर में कमी आती है। इसी कारण से संक्रमण काल जनसंख्या विस्फोट से जुड़ा होता है।
द्वितीयक अवस्था (विकासशील देश) जन्म-दर तथा मृत्यु-दर दोनों का ही स्तर बहुत ऊँचा होता है। विशुद्ध संवृद्धि दर भी निम्न होती है। जन्म-दर ऊँची होती है, क्योंकि इन देशों का समाज पुरुष प्रमुख वाला होता है तथा पुरुष ही यह निर्णय करते हैं कि कितने बच्चे को जन्म दिया जाए। वे बालकों को प्राथमिकता देते हैं। लोग अज्ञानी तथा अशिक्षित होते हैं। मृत्यु-दर भी उच्च होती है, क्योंकि स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं।
प्रश्न 2: माल्थस का यह विश्वास क्यों था कि अकाल और महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएँ, जो बड़े पैमाने पर मृत्यु का कारण बनती हैं, अपरिहार्य हैं?
उत्तर 2: अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थामस रॉबर्ट माल्थस का मानना था कि जीवन-निर्वाह के साधनों (जैसे-भूमि, कृषि) की तुलना में मानवीय जनसंख्या की वृद्धि की दर तेज़ होती है। उनका कहना था कि जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय गति से होती है, जबकि कृषि का उत्पादन अंकगणितीय गति से होता है।
माल्थस का ऐसा विश्वास था कि जनसंख्या पर नियंत्रण का प्राकृतिक निरोध, जैसे-अकाल, बीमारियाँ इत्यादि अवश्यंभावी हैं। यह खाद्य आपूर्ति तथा जनसंख्या वृद्धि के बीच संतुलन स्थापित करने का प्राकृतिक तरीका है। उनके अनुसार, इस तरह के प्राकृतिक निरोध काफी कष्टकारी तथा कठिन होते हैं। यद्यपि यह जनसंख्या तथा आजीविका के बीच संतुलन का काम मृत्यु-दर में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप करता है।
प्रश्न 3: मृत्यु दर और जन्म दर का क्या अर्थ है? कारण स्पष्ट कीजिए कि जन्म दर में गिरावट अपेक्षाकृत धीमी गति से क्यों आती है जबकि मृत्यु-दर बहुत तेजी से गिरती है।
उत्तर 3: मृत्यु दर और जन्म दर का अर्थ:
- मृत्यु दर: यह प्रति 1,000 जनसंख्या पर एक निश्चित समय अवधि (आमतौर पर एक वर्ष) में होने वाली मौतों की संख्या है।
- जन्म दर: यह प्रति 1,000 जनसंख्या पर एक निश्चित समय अवधि (आमतौर पर एक वर्ष) में होने वाले जन्मों की संख्या है।
जन्म दर में गिरावट अपेक्षाकृत धीमी गति से क्यों आती है, जबकि मृत्यु दर तेजी से गिरती है?
- मृत्यु दर में तेज गिरावट के कारण:
- चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: उन्नत चिकित्सा सेवाएं, टीकाकरण, और आधुनिक दवाएं बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
- साफ-सफाई और स्वच्छता: स्वच्छ जल की उपलब्धता, बेहतर सेनिटेशन और स्वच्छता अभियान मृत्यु दर को तेजी से कम करते हैं।
- बेहतर पोषण: कृषि उत्पादन और खाद्य आपूर्ति में सुधार से कुपोषण कम होता है।
- शिशु मृत्यु दर में गिरावट: नवजात शिशुओं की बेहतर देखभाल और शिशु मृत्यु दर में कमी, कुल मृत्यु दर को तेजी से घटाती है।
- जन्म दर में धीमी गिरावट के कारण:
- सामाजिक और सांस्कृतिक कारण: पारंपरिक समाजों में अधिक बच्चों को आर्थिक और सांस्कृतिक सुरक्षा का साधन माना जाता है।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव: परिवार नियोजन के महत्व और छोटे परिवार के फायदों के बारे में जागरूकता धीमी गति से फैलती है।
- आर्थिक जरूरतें: विकासशील देशों में कृषि-आधारित अर्थव्यवस्थाओं में बच्चे एक अतिरिक्त श्रमशक्ति के रूप में देखे जाते हैं।
- धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं: कई समाजों में अधिक बच्चों को आशीर्वाद माना जाता है।
- महिलाओं की स्थिति: महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और उनके अधिकारों में सुधार धीरे-धीरे होता है। जब तक महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर नहीं बनतीं, परिवार नियोजन को अपनाने में समय लगता है।
प्रश्न 4: भारत के कौन-कौन से राज्य जनसंख्या संवृद्धि के प्रतिस्थापन स्तरों’ को प्राप्त कर चुके हैं अथवा प्राप्ति के बहुत नज़दीक हैं? कौन-से राज्यों में अब भी जनसंख्या संवृद्धि की दरें बहुत ऊँची हैं? आपकी राय में इन क्षेत्रीय अंतरों के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर 4: प्रतिस्थापन स्तर से तात्पर्य उस संवृद्धि की दर से है, जो पुरानी पीढ़ी के लोगों के मरने के उपरांत उस स्थान की पूर्ति के लिए नई पीढ़ी के लिए आवश्यक होती है। प्रतिस्थापन स्तर से आराम यह भी है कि दो बच्चों के जन्म के साथ ही प्रतिस्थापन स्तर पूरा हो जाता है।
- जनसंख्या वृद्धि के प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने वाले राज्य– तमिलनाडु, केरल, गोआ, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, जम्मू और कश्मीर तथा पंजाब हैं।
- जनसंख्या वृद्धि के निकटतम प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने वाले राज्य– उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम तथा पश्चिम बंगाल हैं।
- तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले राज्य– उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश हैं।
क्षेत्र तथा क्षेत्रीय विभिन्नताएँ: विभिन्न प्रदेशों में साक्षरता प्रतिशत में विभिन्नता
- विभिन्न प्रदेशों की सामाजिक परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न हैं। आतंकवाद, युद्ध जैसी स्थिति तथा उपद्रव की स्थिति जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्यमान है।
- विभिन्न राज्यों में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में विभिन्नता है।
- गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक संस्कार- लोगों का ऐसा धार्मिक विश्वास है कि अधिक बच्चों का मतलब आपके उपार्जन के लिए अधिक हाथ है।
प्रश्न 5: जनसंख्या की आयु संरचना’ का क्या अर्थ है? आर्थिक और संवृद्धि के लिए उसकी क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर 5: जनसंख्या की आयु संरचना का अर्थ: जनसंख्या की आयु संरचना (Age Structure of Population) किसी देश या क्षेत्र की कुल जनसंख्या को विभिन्न आयु समूहों में वर्गीकृत करती है। आमतौर पर जनसंख्या को तीन मुख्य आयु समूहों में विभाजित किया जाता है:
- निर्भर समूह (0-14 वर्ष): यह आयु वर्ग बच्चों का होता है, जो आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं।
- कार्यशील या श्रमिक आयु वर्ग (15-64 वर्ष): यह आयु वर्ग आर्थिक रूप से सक्रिय जनसंख्या का होता है, जो उत्पादन और सेवाओं में योगदान देता है।
- वरिष्ठ नागरिक समूह (65 वर्ष और उससे अधिक): यह आयु वर्ग बुजुर्गों का होता है, जो प्रायः कार्यक्षेत्र से बाहर रहते हैं और सामाजिक सुरक्षा पर निर्भर करते हैं।
निम्नलिखित सारणी से भारतीय जनसंख्या की आयु संरचना को समझा जा सकता है।
वर्ष | 0-14 वर्ष | 15-59 वर्ष | 60+ वर्ष | कुल |
1961 | 41 | 53 | 6 | 100 |
1971 | 42 | 53 | 5 | 100 |
1981 | 40 | 54 | 6 | 100 |
1991 | 38 | 56 | 7 | 100 |
2001 | 34 | 59 | 7 | 100 |
2011 | 29 | 63 | 8 | 100 |
2026 | 23 | 64 | 12 | 100 |
स्रोत-राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के जनसंख्या प्रेक्षक विषय तकनीकी समूह के आँकड़ों (1996 और 2006) पर आधारित।
यह सारणी प्रदर्शित करती है कि कुल जनसंख्या में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों का प्रतिशत जो 1971 में उच्चतम 42% था, 2011 में घटकर 29% हो गया। 2026 तक इसको 23% हो जाने का अनुमान है। इसका अर्थ यह है कि भारत में जन्म-दर में क्रमशः गिरावट आ रही है।
आर्थिक विकास तथा संवृद्धि की प्रासंगिकता
- चिकित्सा विज्ञान की प्रगति, सार्वजनिक स्वास्थ्य के विभिन्न उपायों तथा पोषण के कारण जीवन की प्रत्याशा बढ़ी है। यह आर्थिक विकास तथा संवृद्धि के कारण ही संभव हुआ है।
- परिवार नियोजन की आवश्यकता को अब समझा जाने लगा है। 0 – 14 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों के प्रतिशत में गिरावट यह प्रदर्शित करती है कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का उपयुक्त ढंग से कार्यान्वयन हुआ है।
- भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन तथा आर्थिक संवृद्धि के कारण जनसंख्या की आयु संरचना एक सकारात्मक युवा भारत की तरफ उन्मुख हो रही है।
- पराश्रितता अनुपात घट रहा है तथा कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक संवृद्धि का संकेत दे रही है।
- आर्थिक विकास तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार ने जीवन प्रत्याशा में वृद्धि की है तथा जनसंख्या की संरचना में परिवर्तन किया है।
- उच्च शिशु मृत्यु-दर तथा मातृ मृत्यु-दर, जिसका कारण | निम्न आर्थिक संवृद्धि रहा है, ने जनसंख्या की आयु संरचना को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
प्रश्न 6: “स्त्री-पुरुष अनुपात’ का क्या अर्थ है? एक गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के क्या निहितार्थ हैं? क्या आप यह महसूस करते हैं कि माता-पिता आज भी बेटियों के बजाय बेटों को अधिक पसंद करते हैं? आपकी इस राय में पसंद के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर 6: स्त्री-पुरुष अनुपात का अर्थ: स्त्री-पुरुष अनुपात किसी क्षेत्र में प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को दर्शाता है। यह एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय संकेतक है, जो सामाजिक और लैंगिक समानता के स्तर को मापने में मदद करता है।
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार, स्त्री-पुरुष अनुपात 943 (प्रति 1,000 पुरुषों पर 943 महिलाएं) था।
गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के निहितार्थ: गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के कई सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव हो सकते हैं:
- लैंगिक असमानता में वृद्धि:
- समाज में महिलाओं की संख्या में गिरावट लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती है।
- महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- विवाह से जुड़ी समस्याएं:
- महिलाओं की कमी के कारण पुरुषों के लिए विवाह करना मुश्किल हो सकता है।
- इससे विवाह बाजार में प्रतिस्पर्धा और महिलाओं के प्रति हिंसा का खतरा बढ़ता है।
- मानव तस्करी और शोषण:
- कम स्त्री-पुरुष अनुपात वाले क्षेत्रों में महिलाओं की तस्करी और शोषण जैसी घटनाएं बढ़ सकती हैं।
- सामाजिक संरचना में असंतुलन:
- समाज में महिलाओं की भूमिका परिवार, बच्चों के पालन-पोषण और सामाजिक सामंजस्य में महत्वपूर्ण होती है। उनकी संख्या में कमी सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकती है।
- प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- महिलाओं की संख्या में कमी स्वास्थ्य देखभाल और जनसंख्या वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
क्या माता-पिता बेटियों के बजाय बेटों को अधिक पसंद करते हैं?
हां, यह अभी भी भारत के कई हिस्सों में सच है। बेटों की प्राथमिकता के पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारण हैं:
- सांस्कृतिक मान्यताएं और परंपराएं:
- बेटों को वंश वृद्धि और परिवार के नाम को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है।
- बेटों को अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक माना जाता है, खासकर हिंदू धर्म में।
- आर्थिक कारण:
- बेटों को आर्थिक सहारा और बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करने वाला माना जाता है।
- बेटियों की शादी में दहेज प्रथा के कारण उन्हें आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है।
- सुरक्षा चिंताएं:
- समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताओं के कारण माता-पिता बेटों को प्राथमिकता देते हैं।
- शिक्षा और जागरूकता की कमी:
- शिक्षा और महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव बेटियों के प्रति भेदभाव को बढ़ाता है।
- लिंग आधारित भ्रूण हत्या:
- लिंग निर्धारण परीक्षण और भ्रूण हत्या के कारण स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट देखी गई है।