समाजशास्त्र कक्षा 12 अध्याय 3 प्रश्न और उत्तर: संविधान एवं सामाजिक परिवर्तन question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | समाजशास्त्र |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | संविधान एवं सामाजिक परिवर्तन ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: क्या आपने बाल मजदूर तथा मजदूर किसान संगठन के बारे में सुना है? यदि नहीं तो पता कीजिए और उनके बारे में 200 शब्दों में एक लेख लिखिए।
उत्तर 1: भारत में बाल मजदूरी और मजदूर किसान संगठन एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है। बाल मजदूरी से आशय उन बच्चों से है जो शिक्षा, खेल और अपने बचपन के अधिकारों से वंचित रहकर काम करने के लिए मजबूर होते हैं। गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता इसके मुख्य कारण हैं। बाल मजदूरों को कम वेतन, लंबा कार्यकाल और खराब कार्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है।
मजदूर किसान संगठन ऐसे समूह हैं जो मजदूरों और किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करते हैं। ये संगठन मजदूरी में वृद्धि, कार्य की उचित शर्तें और सामाजिक सुरक्षा की मांग उठाते हैं। साथ ही, वे बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने और उन्हें शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।
सरकार ने बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम और मनरेगा जैसे कार्यक्रम लागू किए हैं, लेकिन इनकी सफलता के लिए जागरूकता और सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। मजदूर किसान संगठनों को सशक्त बनाकर और बच्चों की शिक्षा पर जोर देकर ही इस समस्या का समाधान संभव है। यह हमारे समाज की नैतिक जिम्मेदारी है कि हर बच्चे को उसका बचपन और हर मजदूर-किसान को गरिमामय जीवन मिले।
प्रश्न 2: ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वाँ संविधान-संशोधन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।
उत्तर 2: 73वाँ संशोधन ग्रामीण लोगों की आवाज बुलंद करने हेतु एक मिसाल की तरह है। इसका कारण यह है कि यह संशोधन राज्य के नीति निर्देशक तत्वों तथा पंचायती राज से संबंधित है। यह संशोधन जनता की शक्ति के सिद्धांतों पर आधारित है तथा पंचायतों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है।
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ।
- पंचायतों का स्वायत्तशासी सरकार के रूप में मान्यता।
- आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय हेतु कार्यक्रम तैयार करने हेतु पंचायतों को शक्तियाँ।
- पंचायतों की एक मजबूत त्रिस्तरीय-ग्राम, प्रखंड तथा जिला स्तर पर व्यवस्था। यह व्यवस्था उन सभी राज्यों में होगी, जहाँ की आबादी 20 लाख से अधिक है।
- यह अधिनियम दिए गए क्षेत्र के कमजोर वर्गों के लिए पंचायतों में हिस्सेदारी, पंचायतों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, वित्तीय व्यवस्था तथा चुनाव इत्यादि के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
अधिनियम का महत्त्व
- जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की लाने में यह एक क्रांतिकारी कदम था।
- 73 वें संशोधन अधिनियम के दिशा-निर्देशों क आलोक में सभी राज्यों ने अपने यहाँ कानून बनाए।
- इस अधिनियम के कारण पंचायती राज्य का विचार जमीनी स्तर पर यथार्थ रूप में सामने आया।
प्रश्न 3: एक निबंध लिखकर उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइए जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता के दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं और उनकी समस्याओं का अनुभव किया है।
उत्तर 3: भारत के संविधान ने हम सबके लिए एक लोकतांत्रिक पद्धति प्रदान की है। लोकतंत्र जनता के जनता से तथा जनता के लिए बनी शासन-व्यवस्था है। यह केवल राजनैतिक स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय तक ही सीमित नहीं है। यह सभी जाति, धर्म, कुल तथा लिंगों के लिए समान स्वतंत्रता प्रदान करता है।
भारत के संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को स्थापित किया है। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं तथा सभी भारतीयों को अपने धर्म के प्रति आस्था रखने की पूरी स्वतंत्रता है। भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को भी समान अधिकार प्रदान करता है तथा उनके विकास के लिए उसमें बहुत सारे उपबंध विद्यमान हैं।
भारत एक कल्याणकारी राज्य है तथा यहाँ का समाज सामाजिकता से संरक्षित है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम सार्वजनिक तथा राष्ट्रीय संपत्ति की हिफाजत करें। यह संविधान हम सबके लिए इस बात का समान अवसर प्रदान करता है कि हम संसाधनों का उपयोग करें तथा आर्थिक विकास के लिए प्रयत्न करें।
भारत का संविधान यहाँ के नागरिकों को समान रूप से सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय एवं समानता प्रदान करता है। अतएव यह हमारा कर्तव्य है कि हम सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों; जैसे – जनसंख्या नियंत्रण, चेचक, मलेरिया तथा पल्स पोलियो उन्मूलन कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी प्रदान करें। खाद्य सुरक्षा अधिनियम, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार तथा महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रयास कुछ ऐसे कदम हैं, जिन्हें सरकार ने उठाए हैं, ताकि लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जा सके।
प्रश्न 4: लोकतंत्र में राजनैतिक दलों की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर 4: लोकतंत्र में राजनैतिक दलों की महत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के संचालन की रीढ़ माने जाते हैं। राजनैतिक दल जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं, जिससे जनता की इच्छाओं और आवश्यकताओं को नीति-निर्माण में शामिल किया जा सके। ये दल चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से योग्य प्रतिनिधियों का चयन करते हैं और सरकार बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
राजनैतिक दल विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, बहस और समाधान प्रस्तुत करते हैं, जिससे समाज में विविध विचारधाराओं का समन्वय संभव हो पाता है। इसके अलावा, ये दल विपक्ष की भूमिका निभाकर सरकार की नीतियों और कार्यों पर निगरानी रखते हैं, जिससे लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है। लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि राजनैतिक दल अपने दायित्वों को ईमानदारी और प्रतिबद्धता से निभाएं और समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करें।
प्रश्न 5: लोकतांत्रिक व्यवस्था में दबाव समूह की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर 5: लोकतांत्रिक व्यवस्था में दबाव समूहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे नागरिकों की आकांक्षाओं और हितों को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाने का माध्यम बनते हैं। दबाव समूह ऐसे संगठन होते हैं जो विशेष सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करते हैं, लेकिन चुनाव नहीं लड़ते। ये समूह नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं और विभिन्न मुद्दों पर जनमत तैयार करते हैं।
उदाहरण के लिए, व्यापारिक संघ, किसान संगठन, श्रमिक संघ, महिला और पर्यावरण समूह जैसे दबाव समूह अपनी मांगों के समर्थन में सरकार से संवाद करते हैं। ये समूह जागरूकता फैलाने, विरोध प्रदर्शन, ज्ञापन सौंपने और जनसंपर्क अभियानों के माध्यम से अपनी भूमिका निभाते हैं। लोकतंत्र में दबाव समूहों की उपस्थिति सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाती है तथा नीति निर्माण में विविध हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित करती है। हालांकि, यह आवश्यक है कि दबाव समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नैतिक और विधिसम्मत तरीकों का ही उपयोग करें।
प्रश्न 6: दबाव समूह का गठन किस प्रकार होता है?
उत्तर 6: दबाव समूह का गठन विशेष उद्देश्यों और हितों की पूर्ति के लिए समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एकत्रित होने से होता है। ये समूह विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संगठित ढंग से कार्य करते हैं। दबाव समूहों का गठन औपचारिक या अनौपचारिक रूप से हो सकता है। औपचारिक दबाव समूह, जैसे ट्रेड यूनियन, किसान संगठन, या व्यावसायिक संघ, एक पंजीकृत संस्था के रूप में कार्य करते हैं और अपने सदस्यों के अधिकारों और हितों की रक्षा करते हैं।
अनौपचारिक दबाव समूह बिना पंजीकरण के भी संगठित हो सकते हैं, जैसे पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यरत समूह। इनका गठन आमतौर पर विचार-विमर्श, बैठकें, घोषणापत्र जारी करने और एक नेतृत्व चयन करने के माध्यम से किया जाता है। दबाव समूह अपनी मांगों को सरकार और संबंधित संस्थाओं तक पहुंचाने के लिए रैलियां, विरोध प्रदर्शन, ज्ञापन सौंपने और मीडिया अभियानों का सहारा लेते हैं। इनका गठन समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज को मजबूत करने और लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिक भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से होता है।