समाजशास्त्र कक्षा 12 अध्याय 5 प्रश्न और उत्तर: औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | समाजशास्त्र |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: अपने आस-पास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए और इसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में कीजिए –
(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संगठन – जाति, जेंडर, आयु, क्षेत्र;
(ख) मजदूर प्रक्रिया – काम किस तरह से किया जाता है;
(ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ;
(घ) कार्यावस्था – सुरक्षा, आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि।
उत्तर 1: व्यवसाय: सड़क पर फल बेचने वाला (Street Vendor)
(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संगठन: फल विक्रेता आमतौर पर निम्न आर्थिक वर्ग के लोग होते हैं।
- जाति: इस व्यवसाय में जातिगत भेदभाव कम होता है, लेकिन अधिकतर यह व्यवसाय निम्न जातियों या समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों से जुड़ा होता है।
- जेंडर: अधिकांश फल विक्रेता पुरुष होते हैं, लेकिन महिलाएं भी इस काम में शामिल होती हैं।
- आयु: इसमें किशोरों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल होते हैं। युवा इस काम को अपनी जीविका के लिए करते हैं, जबकि बुजुर्ग पारिवारिक सहारे के लिए।
- क्षेत्र: यह काम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में समान रूप से होता है।
(ख) मजदूर प्रक्रिया:
- फल विक्रेता सुबह-सुबह थोक बाजार से फल खरीदते हैं।
- अपनी रेहड़ी या ठेले पर फल सजाकर सड़क किनारे या व्यस्त स्थानों पर बेचते हैं।
- ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए बातचीत और मोलभाव करना पड़ता है।
- तौलने के लिए हाथ से चलने वाली तराजू या डिजिटल स्केल का उपयोग करते हैं।
(ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ:
- उनकी आय अनिश्चित होती है और पूरी तरह उनकी बिक्री पर निर्भर करती है।
- औसतन, एक फल विक्रेता प्रतिदिन 300-500 रुपये तक कमा सकता है, लेकिन इसमें लागत शामिल होती है।
- अन्य सुविधाएँ, जैसे बीमा या पेंशन, आमतौर पर नहीं मिलतीं।
(घ) कार्यावस्था:
- सुरक्षा: मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। कोई सुरक्षा उपकरण या सहायता उपलब्ध नहीं होती।
- आराम का समय: आराम का समय निश्चित नहीं होता; जब ग्राहक कम होते हैं, तब वे आराम कर सकते हैं।
- कार्य के घंटे: दिन की शुरुआत सुबह जल्दी होती है और काम रात तक चलता है, औसतन 10-12 घंटे।
यह व्यवसाय कड़ी मेहनत और धैर्य की मांग करता है, लेकिन यह जीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है।
प्रश्न 2: ईंटे बनाने के, बीड़ी रोल करने के, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं, के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम के बारे में क्या सोचती हैं?
उत्तर 2: सामाजिक संघटन: ईंट बनाने, बीड़ी रोल करने, सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग और खदान के काम में सामाजिक संघटन भिन्न-भिन्न है।
- ईंट निर्माण और खदान: निम्न जाति, ग्रामीण क्षेत्र और पुरुष प्रधान कार्य शक्ति देखी जाती है।
- बीड़ी रोलिंग: यह मुख्यतः महिलाओं द्वारा किया जाता है। समुदाय और रिश्तेदारी का इसमें बड़ा योगदान होता है।
- सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग: जाति और लिंग का प्रभाव कम है। शिक्षा, कौशल और शहरीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कार्यावस्था:
- ईंट निर्माण: कठिन शारीरिक श्रम, असुरक्षित कार्यस्थल, लंबे घंटे।
- बीड़ी रोलिंग: महिलाएं घंटों एक मुद्रा में बैठकर काम करती हैं। स्वास्थ्य समस्याएं आम हैं।
- सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग: सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन तनाव और लंबे कार्य घंटे भी शामिल हैं।
- खदान: खतरनाक परिस्थितियां, स्वास्थ्य और सुरक्षा की गंभीर समस्याएं।
मधु जैसी लड़कियों का दृष्टिकोण: मधु आर्थिक दबाव के कारण बीड़ी बनाती है। उसे इस काम में अपनी साथी महिलाओं के साथ गपशप करने का अवसर मिलता है, लेकिन लंबे समय तक बैठने के कारण उसे पीठ दर्द जैसी समस्याएं होती हैं। मधु का सपना है कि वह दोबारा स्कूल जाए और बेहतर भविष्य की ओर बढ़े।
प्रश्न 3: उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर 3: उदारीकरण और रोजगार पर प्रभाव: उदारीकरण, जो 1991 के आर्थिक सुधारों के साथ शुरू हुआ, ने भारतीय रोजगार प्रतिमानों में बड़े बदलाव किए। इसका प्रभाव निम्नलिखित क्षेत्रों में स्पष्ट है:
- रोजगार का प्रतिस्थापन और नौकरी छूटना:
- विदेशी कंपनियों और उत्पादों के आगमन से घरेलू उद्योगों पर दबाव बढ़ा।
- कई छोटे व्यापारी, हस्तकला विक्रेता, और पारंपरिक रोजगार क्षेत्र प्रतिस्पर्धा के कारण प्रभावित हुए।
- उदाहरण: पारले पेय का कोका-कोला द्वारा अधिग्रहण।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन:
- कई भारतीय कंपनियां वैश्विक मंच पर उभरकर बहुराष्ट्रीय बनीं, जबकि कुछ को विदेशी कंपनियों ने अधिग्रहित किया।
- बड़ी विदेशी कंपनियों (जैसे वॉलमार्ट और कैरेफोर) का भारतीय खुदरा व्यापार में प्रवेश स्थानीय व्यापारियों के लिए चुनौती बन गया।
- निजीकरण और विनिवेश:
- सरकारी कंपनियों के निजीकरण और विनिवेश के प्रयासों ने सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए नौकरी की असुरक्षा बढ़ाई।
- निजी क्षेत्र में स्थायी रोजगार कम हो रहे हैं, और अस्थायी एवं ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है।
- आउटसोर्सिंग और असंगठित श्रम:
- कंपनियां अब बाह्यस्रोतों (आउटसोर्सिंग) का उपयोग कर रही हैं, विशेष रूप से सस्ते श्रम वाले विकासशील देशों में।
- भारत में आईटी, बीपीओ, और सेवा क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर बने, लेकिन असंगठित श्रम के कारण श्रमिक अधिकार कमजोर हुए।
- छोटे व्यापारों पर प्रभाव:
- बड़े मॉल, सुपरमार्केट, और शोरूम के बढ़ते प्रभाव ने छोटे व्यापारियों और हॉकरों का बाजार सीमित कर दिया।
- इसके बावजूद, भारत का खुदरा क्षेत्र अभी भी छोटे व्यापारियों द्वारा संचालित है (97%)।
- नई रोजगार संभावनाएं:
- आईटी और सेवा क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा हुए।
- वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति ने कुशल श्रमिकों के लिए संभावनाएं बढ़ाईं, लेकिन अकुशल श्रमिकों के लिए चुनौतियां बढ़ीं।